कोल इंडिया की किस्मत से खेलने लगी है रेटिंग संस्थाएंभी और अब अंधाधुंध कोयला आयात। कोयला और बिजली के दाम बढ़ते रहेंगे।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोल इंडिया की किस्मत से खेलने लगी है रेटिंग संस्थाएं भी। रेटिंग संस्था इंडिया रेटिंग ने बाकायदा सर्वे कराकर यह साबित कर दिया है कि कोल इंडिया का वर्चस्व टूटने से भारत में कोयला उद्योग का भला ही भला होना है। इंडिया रेटिंग ने कोयला सुधार की दिशा में कोयला नियमक के गठन को क्रांतिकारी कदम ठहरा दिया है और कहा है कि इससे कोयला उद्योग की खामियां दूर होंगी। दूसरी ओर, अंधाधुंध कोयला आयात के जरिये कोल इंडिया को चूना लगाया जा रहा है। अकेले इंदोनेशिया से कोयला आयात में 40 फीसद वृद्धि हुई है। कोयला नियामक के गठन के बाद बाजार विशेषज्ञ भी कोलइंडिया के शेयर पकड़े रहने की सलाह दे रहे हैं। सबसे बुरी खबर यह है कि रुपये की गिरती हालत और अमेरिकी अर्थ व्यवस्था में सुधार के मद्देनजर गहराते मंदी के साये में भारत सरकार पर आर्थिक सुधार लागू करने के वैश्विक और कारपोरेट दबाव दोनों हैं। इसका मुकाबला करने कीस्थिति में कोयला यूनियनें कतई नहीं हैं। विनिवेश और पुनर्गठन तो तय है, बल्कि अब सरकार कोल इंडिया की नकदी को भी निवेश का माहौल बेहतर बनाने के बहाने दांव पर रख सकती है।गौरतलब है कि अब रुपये को हर सहारा, बेसहारा साबित हो रहा है। रुपये में लगातार बढ़ती कमजोरी मौजूदा समय में देश की अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर पेश कर रही है। सोमवार के कारोबारी सत्र में रुपये में अब तक की रिकॉर्ड कमजोरी देखी गई और रुपये ने 61 का स्तर भी पार कर दिया था।
इंडिया रेटिंग ने बारत में कोयले के बड़े भंडार और खदानों के विकास व कोयला उत्पादन में कोल इंडिया की निर्विवाद दक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उद्योगों के लिए कोयले की भारी किल्लत बताते हुए कोयला आयात की आवश्यकता पर जोर दिया है।उसके मुताबिक कोयला उद्योग में तमाम गड़बड़ियां कोल इंडिया के एकाधिकार की वजह से ही पैदा हुई और इसी लिए कोयला नियामक के गठन को उसने जायज ठहराया है।दूसरी ओर, कोयला नियमक बन जाने और कोल इंडिया का वर्चस्व टूटते ही बिजली कंपनियों ने कोयला आयात में भारी इजाफा करने की रणनीति बनायी है। जिसका भार आम उपभोक्ताओं पर डालने की केंद्र सरकार की हरी झंडी पहले ही मिल चुकी है। इससे कोयला और बिजली की कीमतें बेतहाशा बढ़ेंगी। रुपये के गिरते मूल्य ने हालात और खराब कर दिये हैं क्योंकि आयातित कोयले के लिए अब निरंतर ज्यादा कीमत देनी होगी। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि कोयला और बिजली की दरों में लगातार वृद्धि होती रहेगी।चीन और अमेरिका पर्यावरण नीति के तहत कोयला का उपयोग नियंत्रित कर रहा है, जिससे आयातित कायला और महंगा मिलेगा । वैश्विक परिस्थितिया तो कोयला क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और कोयला उत्पादन में वृद्धि के लिए कोलइंडिया को ौर मजबूती देने की मांग करती हैं,लेकिन हमारे नीति निर्धारक कुछ दूसरे ही गुल खिलाने में लगे हैं।
गौरतलब है कि शुक्रवार को कैबिनेट ने कोयला नियामक विधेयकको मंजूरी प्रदान कर दी जिसमें नियामक की भूमिका मूल्य निर्धारण (कच्चे और धुले हुए कोयले), खनन में निवेश आकर्षित करने, विवादों के समाधान में मदद और नीतिगत मुद्दों पर परामर्श के लिए ढांचा तैयार करने की होगी। हालांकि कोल इंडिया अपने कीमत निर्धारण प्रभाव को बनाए हुए है। इससे निवेशकों का भय कम हुआ है और शेयर पर सकारात्मक असर दिखा है।
कंपनी मई के अंत में (कुछ वर्ष बाद) अपने ईंधन आपूर्ति समझौतों (एफएसए) के लिए कीमत वृद्घि में सफल रही जिससे उसे बड़ी राहत मिली है। कंपनी कर्मचारी लागत में वृद्घि के बावजूद कुछ समय से कीमत वृद्घि में विफल रही थी। मॉर्गन स्टैनले के विश्लेषकों का कहना है कि कीमतें बढ़ाए के लिए कोल इंडिया की दक्षता में निवेशकों का विश्वास बढ़ाए जाने की जरूरत है। ब्रोकरेज ने कोल इंडिया की औसतन प्राप्तियां वित्त वर्ष 2014 में 5.3 फीसदी तक और वित्त वर्ष 2015 में 6.4 फीसदी तक बढऩे का अनुमान व्यक्त किया है।
कोयला नियामक को मंजूरी मिलने की खबर से शेयर बाजार में कोल इंडिया के शेयर भाव में तेजी का रुख बना हुआ है।
इसी के बीच कोयला घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कोयला आवंटन में हुई गड़बड़ी पर सरकार से जवाब मांगा है। सरकार को इस बारे में हलफनामा देना है।सुप्रीम कोर्ट ने कोयला खान बांटने के पूरे तरीके पर संदेह जताते हुए सरकार से इसका आधार पूछा है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए हुई स्टीयरिंग कमेटी की सभी 36 बैठकों का जवाब दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने तो आज यहां तक कहा कि सरकार इस घोटाले की जांच में सहयोग नहीं दे रही है।सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट पर भी हैरानी जताई है। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जुलाई को करेगा।
इंडिया रेटिंग्स के डायरेक्टर दीप नारायण मुखर्जी का कहना है कि रुपये को ताकत देने के लिए सरकार को लंबी अवधि के निवेश को बढ़ावा देना होगा। वहीं एफडीआई के मोर्चे पर और सफाई लानी होगी, ताकि विदेशी निवेश के दरवाजे पूरी तरह से खुल सकें। उसके बाद ही रुपये में मजबूती का दौर एक बार फिर से देखने को मिलेगा। हालांकि आरबीआई ने रुपये को सहारा देने के लिए सोमवार को कुछ अहम कदम उठाएं हैं लेकिन इससे केवल छोटी अवधि में ही कुछ राहत मिलेगी। लंबी अवधि के लिए सरकार को आर्थिक सुधारों की गाड़ी को पटरी पर लाना होगा।
दरअसल रुपये की कमजोरी से पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम बढ़ने के आसार हैं। विदेश में पढ़ाई और घूमना महंगा हो गया है। इंपोर्टेड कच्चा माल महंगा होगा जिससे महंगाई बढ़ेगी। साबुन, डिटर्जेंट, डियो, शैंपू के अलावा खाद्य तेल और दालों के दाम बढ़ेंगे। एटीएफ खर्च बढ़ेगा जिससे हवाई यात्रा महंगी होगी। टीवी, फ्रिज, मोबाइल फोन और कंप्यूटर महंगे हो जाएंगे। कार और ऑटो पार्ट्स के दाम बढ़ेंगे। आपका मनपसंद पिज्जा महंगा हो जाएगा।कमजोर रुपये का अर्थव्यवस्था पर वित्तीय घाटा बढ़ने और रेटिंग घटने के खतरे के रूप में असर होता है। डॉलर में 1 रुपये की बढ़त से तेल मार्केटिंग कंपनियों को 8,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। रुपये के 10 फीसदी तक टूटने से महंगाई 2 फीसदी बढ़ जाएगी। कमजोर रुपये के चलते कर्ज सस्ता होने की उम्मीद अब नहीं के बराबर है। इंपोर्ट पर निर्भर कंपनियों का मार्जिन घटेगा। ईसीबी कर्ज पर ब्याज खर्च बढ़ जाएगा।
कैबिनेट कमेटी द्वारा कोल रेग्युलेेटरी बिल को मंजूरी दिए जाने के बाद कोल इंडिया के शेयर में मजबूती आई। दो कारोबारी सत्रों में यह शेयर जून तिमाही के निराशाजनक परिणाम की वजह से मंगलवार को कुछ नरम पडऩे से पहले लगभग 6 फीसदी मजबूत हुआ था। हालांकि मॉनसून के जल्द आगमन की वजह से उत्पादन और उठाव की दर अल्पावधि में नरम रहने का अनुमान है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि कोल इंडिया बाद में खोए हुए कारोबार की भरपाई करने में सफल रहेगी।
कंपनी की ढुलाई या उठाव क्षमता वित्त वर्ष 2013 में 46.5 करोड़ टन पर पहुंचने के बाद उसने वित्त वर्ष 2014 में 49.2 करोड़ टन की ढुलाई की योजना बनाई है। हालांकि जून तिमाही के आंकड़े निराशाजनक रहे हैं। कंपनी का उत्पादन 10.69 करेाड़ टन के लक्ष्य के विपरीत 10.29 करोड़ टन पर रहा और 11.525 करोड़ टन के साथ ढुलाई भी 12.08 करोड़ के लक्ष्य की तुलना में पीछे रही है। रेलिगेयर के विश्लेषकों का कहना है कि कोल इंडिया के लिए तीन प्रमुख रेलवे लाइनों की शुरुआत में विलंब होने की आशंका है और इन वजहों से कंपनी वृद्घि के अपने मध्यावधि लक्ष्य में पिछड़ सकती है।
विस्तार को लेकर मंजूरी से भी रफ्तार बढ़ी है और मॉर्गन स्टैनले के विश्लेषकों वित्त वर्ष 2014 की दूसरी छमाही में मजबूत उत्पादन वृद्घि की उम्मीद कर रहे हैं।
कारोबार के अलावा कोल इंडिया मूल्य निर्धारण ताकत भी बरकरार रखेगी और मई के अंत में कीमत वृद्घि भी मुनाफे के लिए फायदेमंद होगी। ब्लूमबर्ग के आंकड़े के अनुसार 376 रुपये के कीमत लक्ष्य के साथ ज्यादातर विश्लेषक इस शेयर पर सकारात्मक बने हुए हैं। सरकार द्वारा हिस्सेदारी बिक्री हालांकि इस शेयर की कीमतों पर अल्पावधि में दबाव बनाए रख सकती है।
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