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Thursday, July 11, 2013

उर्मिला और चामी को जानिए, देश को हरा-भरा बनाइए

उर्मिला और चामी को जानिए, देश को हरा-भरा बनाइए

9 JULY 2013 NO COMMENT

♦ अनुपमा

ड़ीसा के बालासोर जिला के कोठापाड़ा गांव की है उर्मिला और झारखंड के सरायकेला के भुरसा गांव में चामी मुरमू रहती है। सबसे पहले उर्मिला की कहानी। निजी जिंदगी के कुछ प्रसंगों के चलते उर्मिला के सामने दुखों का पहाड़ था। आसपास समाज और परिवार के ताने थे और करीब रोज ही तनाव की नयी बनती दुनिया थी। ऐसे में करीब दो दशक पहले उसने एक ऐसे काम की शुरुआत की, जिसने उसकी जिंदगी बदल दी।

बीस साल पहले उसने अपने रोज की शुरुआत एक पेड़ लगाने से की और वह उसकी हर सुबह का यह काम बन गया। अपने आसपास के करीब पांच दर्जन गांवों में एक लाख से ज्यादा पेड़ उसने लगाये। उनके पति, जो पेशे से दर्जी का काम करते हैं, उन्होंने भी उसका साथ देना शुरू किया। उर्मिला दो बेटियों की मां बनी। बाद में बेटियों ने भी इस अभियान को आगे बढ़ाना शुरू किया। पेड़ों के प्रति उर्मिला की निष्ठा और लगन ऐसी रही कि इलाके में उसे 'गाछा मां' व 'वृक्ष्य मां' के नाम से बुलाया जाने लगा। उर्मिला सिर्फ पेड़ लगाती ही नहीं, बल्कि उसके बड़े होने तक उसकी सेवा भी करती है। वह हर सुबह नये पेड़ों को काजल व हल्दी लगाती है और उसकी बेटियां गांव की अन्य लड़कियों के साथ मिलकर रक्षाबंधन में राखी बांधती है। उर्मिला हर दिन कम से कम दस पेड़ लगाती रही। कभी-कभार यह संख्या सौ भी पार करती रही। उर्मिला ने लोगों को जागरूक करने के लिए 'पाला गायक' नाम से एक लोकसंगीत दल बनाया। संगीत के जरिये पेड़ का महत्व समझाने लगी। लोग समझने लगे। सहजता और आत्मीयता के साथ उर्मिला की बात लोगों तक पहुंचती रही। ग्लोबल वार्मिंग पर भाषण देने वाला कोई विशेषज्ञ भी अपनी बात उस तरह संप्रेषित नहीं कर पाता।

ब चामी मुरमू की कहानी। चामी को देश और उसका अपना राज्‍य नहीं जानता लेकिन उनके इलाके का हर कोई अब उनके काम को जानता है। लगभग 42 साल की चामी ने अब तक 25 लाख से अधिक पौधों को जिंदगी दी है। अब उनकी राह पर कई महिलाएं उनका हमकदम होकर चल रही हैं। चामी बताती हैं कि 1990 के आसपास उन्‍होंने घर की देहरी से बाहर कदम रखा। महिलाओं को संगठित कर एक संगठन बनाया। महिला होने के नाते तरह-तरह की बातें सुननी पड़ीं। लोग ताने देते रहे लेकिन वे अपने अभियान में लगी रही। खुद बीज से पौधे को तैयार किया और फिर पौधे को आसपास के इलाके में लगाना शुरू किया। फलदार-फूलदार, सभी प्रकार के पौधे। चामी ने तय किया कि इलाके के नौजवानों को जोड़ना है तो फिर उन्हें इस पेड़ लगाने में, उन्हें बचाने में, बढ़ाने में रोजगार का पाठ भी पढ़ाना होगा। उन्होंने वैसा ही किया। नौजवानों को जोड़कर उन्हें फलदार-फूलदार वृक्ष लगाने को प्रेरित की ताकि इससे उनकी आमदनी हो और इसी बहाने पर्यावरण का भी भला हो। चामी कहती हैं, मेरा एकमात्र और सबसे बड़ा मकसद यही था कि अंधाधुंध काटे जा रहे पेड़ों, उजाड़े जा रहे जंगल में कोई जंगल को बढ़ाने वाला, पेड़ों को लगानेवाला भी तो हो। मैंने खुद इसकी कोशिश की और बाद में तो एक-एक कर लोग जुड़ते गये।

उर्मिला और चामी को आज दुनिया नहीं जानती, लेकिन उन्‍हें जानना और उनके काम को सलाम करना ही हमारे लिए नयी और हरी-भरी दुनिया का दरवाजा खोल सकती है।

(अनुपमा। झारखंड की चर्चित पत्रकार। प्रभात खबर में लंबे समय तक जुड़ाव के बाद स्‍वतंत्र रूप से रूरल रिपोर्टिंग। महिला और मानवाधिकार के सवालों पर लगातार सजग। देशाटन में दिलचस्‍पी। फिलहाल तरुण तेजपाल के संपादन में निकलने वाली पत्रिका तहलका की झारखंड संवाददाता। अनुपमा का एक ब्‍लॉग है: एक सिलसिला। उनसे log2anupama@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

http://mohallalive.com/2013/07/09/story-of-urmila-and-chami/

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