उत्तराखंड त्रासदी के क्या हैं सबक़!
सुनीता नारायण
महानिदेशक, सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/07/130701_sunita_hillpolicy_dk.shtml
उत्तराखंड में भारी बारिश और भू-स्खलन के कारण हुई जान और माल की बर्बादी का हम सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा सकते हैं. जो होना था वो तो हो गया लेकिन मेरा मानना है कि हम इस त्रासदी से भविष्य के लिए सीख ले सकते हैं.
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जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सभी हिम प्रदेशों की सरकारों के दिमाग़ में इस वक़्त एक ही सवाल होना चाहिए. सवाल ये कि उत्तराखंड से क्या वो कुछ सीख सकते हैं? साथ ही उन्हें ये भी सोचना होगा कि ऐसी आपदाओं से होने वाले नुक़सान को कैसे कम किया जा सकता है.
मेरे हिसाब से इस त्रासदी के पीछे दो कारण हैं, एक तो ग्लोबल वॉर्मिंग और दूसरा विकास के नाम पर प्रकृति का अंधाधुंध दोहन.
मौसम में बदलाव सिर्फ़ उत्तराखंड में ही नहीं हो रहा है बल्कि पूरे हिमालय में हो रहा है. आने वाले समय में भारी और बेमौसम वर्षा होगी. यही समय है जब हम सही क़दम उठा सकते हैं.
एक जैसी नीति
अगर पर्यावरण के प्रति हम ये असंवेदनशील रवैया बनाए रखेंगे तो ऐसी प्राकृतिक आपदाएं आती रहेंगी. अभी तो ज़्यादातर जगहों का हाल ये है कि जैसे दिल्ली या फिर गुड़गांव में निर्माण कार्य होता है ठीक उसी तरह उत्तराखंड में भी हुआ. लोगों ने ये भी नहीं सोचा कि ये कितना घातक साबित हो सकता है.
मेरी राय में तो सभी हिम प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को साथ आना चाहिए. उन्हें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि उनके यहाँ विकास की प्रणाली कैसी हो? सभी हिम प्रदेशों को एक जैसी नीति बनानी चाहिए.
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इन सभी प्रदेशों को बस ये सोचना चाहिए कि विकास तो हो लेकिन विनाश न हो. पहाड़ों के जंगल भी बचे रहें और स्थानीय लोगों को भी फ़ायदा हो. और हां अगर हो सके तो पर्यटन से संबंधित भी कोई नीति बनाई जानी चाहिए
'पर्यटन पर नियंत्रण'
"हिम प्रदेशों को बस ये सोचना होगा कि विकास तो हो लेकिन विनाश न हो. पहाड़ों के जंगल भी बचे रहें और स्थानीय लोगों का फायदा भी हो."
सुनीता नारायण, पर्यावरणविद
पर्यटन पर नियंत्रण होना बहुत ही ज़रूरी है. मुझे पता है कि कई लोग इसका ये कहकर विरोध करेंगे कि आप पर्यटन को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं. कुछ लोग इस बात पर आपत्ति जताएंगे कि धार्मिक जगहों पर जाने पर कैसे कोई रोक हो सकती है? लेकिन मुझे लगता है कि हम सबको मिलकर इस बात का समर्थन करना चाहिए.
अगर सरकार वन्य अभयारण्य के लिए कायदे कानून बना सकती है तो पहाड़ों में होने वाले पर्यटन के लिए क्यों नहीं?
(सुनीता नारायण दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट की अध्यक्ष हैं. ये लेख सुनीता की बीबीसी संवाददाता दीप्ति कार्की से बातचीत पर आधारित है.)
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