Monday, 08 July 2013 10:14 |
अख़लाक अहमद उस्मानी मुहम्मद मुर्सी के राष्ट्रपति बनने के साथ ही तत्कालीन अमेरिकी विदेशमंत्री हिलेरी क्लिंटन ने काहिरा की यात्रा की। मुर्सी ने पिछले साल 11 जुलाई को पहला विदेश दौरा सऊदी अरब का किया और सऊद राजपरिवार के प्रति अपनी वफादारी की दुहाई दी। कतर अमेरिकी और इजराइली हितों के लिए खुल कर काम करने वाला देश है। मुर्सी के सत्ता में आने के बाद कैबिनेट में अनुकूल लोगों को मंत्री बनाने पर कतर ने बीस लाख अमेरिकी डॉलर की पेशकश की थी। कतर ने यह भी घोषणा की कि वह मिस्र में दस अरब अमेरिकी डॉलर ढांचागत सुधार में निवेश करेगा। बीते साल बाईस नवंबर को मुर्सी ने नए संविधान को पार्टी घोषणापत्र में बदलने की नाकाम कोशिश की। मुर्सी ने संविधान सभा के काम में न्यायिक दखल रोकने की डिक्री पास कर दी। लाखों लोग इसके विरोध में फिर राजधानी काहिरा में जमा हुए और मुर्सी को झुकना पड़ा। मुर्सी चाहते थे कि ऐसा संविधान बने जो मुसलिम ब्रदरहुड की नीतियों के अनुकूल हो। बेरोजगारी और खाद्यान्न के संकट को तो मुर्सी ने दूर नहीं किया बल्कि देश को चालीस प्रतिशत तक राजस्व देने वाले पर्यटन उद्योग को भी डुबो दिया। शायद मुर्सी मानते होंगे कि फिरऔन के पिरामिडों को दिखा कर बेचना हमारा काम नहीं है। वे अफगानिस्तान के बामियान में प्रतिमाएं तोड़ने वाले तालिबानियों को आदर्श मान बैठे। पर्यटन को लेकर उनके दकियानूसी रवैये ने देश को और गर्त में धकेल दिया। सीरिया से कूटनीतिक संबंध खत्म करने में मुर्सी ने बहुत जल्दबाजी दिखाई। किसी जमाने में सीरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति हाफिज अल असद ने सीरिया के झंडे में दो सितारे इसलिए रखे थे जिससे वे यह संदेश दे सकें कि एक सितारा सीरिया का और दूसरा उसके दोस्त मिस्र का। मुर्सी ने काहिरा में सीरियाई दूतावास पर ताला जड़वा दिया और सीरिया के राजदूत को बेइज्जत कर देश से निकाला। अमेरिका से ज्यादा इजराइल को खुश करने की मुर्सी की यह अदा भी मिस्रवासियों को पसंद नहीं आई। अरब-इजराइल जंग में कभी सीरिया और मिस्र मिल कर लड़े थे, लेकिन बदले हालात और अमेरिका-सऊदी अरब-इजराइल की तिकड़ी से तैयार उग्र वहाबियत ने मिस्र को भी एक साल के लिए जकड़ लिया था। मुर्सी ने सीरिया के बागियों के समर्थन वाली रैली में पंद्रह जून को हिस्सा लिया और कथित बागियों की रक्षा के लिए 'नो फ्लाइ जोन' की मांग की। मुर्सी भूल गए कि मिस्र की सेना धर्मनिरपेक्ष है। सलफी आतंक को बढ़ावा देने वाली रैली में सीरिया के विरुद्धआग उगलने वाले मुर्सी के खिलाफ जून में जब प्रदर्शन बढ़ने लगे तो उसी सेना ने प्रदर्शनकारियों को नहीं रोका। सीरिया के विरुद्ध आग उगलने वाले यह वही मुर्सी हैं जिन्होंने पिछले साल अक्तूबर में इजराइल के तत्कालीन राष्ट्रपति शेमोन पेरेज को 'महान और अच्छा दोस्त' बताते हुए दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। जब से मुर्सी की कुर्सी गई है, इजराइल सकते में है। बराक ओबामा ने चुनी हुई सरकार के यों चले जाने पर दुख जताया है। आम मिसरी उनके दुख को समझ सकता है। रिपब्लिकन सांसद मकेन ने मांग की है कि अमेरिका को मिस्र की सेना को दी जाने वाली मदद बंद कर देनी चाहिए। क्या इसलिए कि मुर्सी को जाते हुए सेना ने रोका नहीं? अदली मंसूर कार्यवाहक राष्ट्रपति चुने गए हैं। वे उसी न्यायालय के न्यायाधीश हैं जिसे मुर्सी दरकिनार करने चले थे। मुसलिम ब्रदरहुड के आलीशान दफ्तर को काहिरा के लोगों ने धूल में मिला दिया। मुसलिम ब्रदरहुड के टूटते दफ्तर को सेना चुपचाप देखती रही। मिस्र क्या चाहता है यह मुहम्मद मुर्सी को समझ में आ गया होगा। तीस जून की ऐतिहासिक रैली में आतिशबाजी करती काहिरा की जनता को विश्वास दिलाने के लिए मिसरी वायुसेना ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ उड़ानें भरीं और लाखों नम आंखों ने 'शुकरन शुकरन' के नारे लगाए। यह वही मिस्र का अवाम है जिसकी हुस्नी मुबारक के खिलाफ क्रांति को अमेरिका, यूरोप और सऊदीपरस्त अरबी मीडिया ने 'अरब वसंत' कहा था। तब जनता के गुस्से की चाबी से काहिरा की सत्ता का दरवाजा मुहम्मद मुर्सी के लिए खुल गया था। उसी मुर्सी के खिलाफ वही जनता फिर खड़ी हुई तो अमेरिकी, यूरोपीय और सऊदीपरस्त अरब मीडिया ने इसे 'अरब वसंत' नहीं कहा। वसंत के फूल जब मतलब के मुताबिक न खिलें तो कौन उसे बहार कहेगा? मुर्सी के हाथ लगी बटेर उड़ गई। उम्मीद है काहिरा अबके बरस जब फिर वसंत के फूल खिलाएगा तो जोश में होश कायम रखेगा। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/48522-2013-07-08-04-45-19 |
Monday, July 8, 2013
मिस्र की दूसरी क्रांति
मिस्र की दूसरी क्रांति
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