Follow palashbiswaskl on Twitter

ArundhatiRay speaks

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Jyoti basu is dead

Dr.B.R.Ambedkar

Saturday, April 13, 2013

डायन बताकर 12 सौ महिलाओं की हत्या

डायन बताकर 12 सौ महिलाओं की हत्या


नहीं हिचकते गूह खिलाने से, बलात्कार तो बड़ा आम 
कमजोर कानून देता अपराधियों को ताकत, बना संपत्ति हड़पने का अचूक अस्त्र

विशेष रिपोर्ट

ऐसे कुकृत्य को पंचायत से भी अनुमति मिल जाती है. एक दूसरी धरणा अंधविश्वासियों के बीच यह है कि अमावस्या की रात में ऐसी महिलाएं श्मशान घाट में जमा होती हैं और निर्वस्त्र होकर कमर के चारों ओर झाडू लपेटकर मंत्रों का जाप करती हुयी नृत्य करती हैं...

नीरा सिन्हा


झारखंड में डायन प्रथा को तांडव आज 21वीं शताब्दी में भी उसी तरह जारी है जैसे कि मध्यकालीन भारत में हुआ करता था. एक डोंगा तामसी नामक महिला के भतीजे ने उसे डायन कह कर सर काट दिया. यह घटना 6 अप्रैल को झीकपानी थाना अंतर्गत नोवा गांव की है. झीकपानी थाना के थाना प्रभारी चक्रवर्ती राम ने बताया कि डोंगा तामसी को उसके भतीजे ने कुछ लोगों के साथ मिलकर तेज हथियार से उसका गर्दन काट दिया और शव को पास के जंगल में छुपा दिया था.

bhoot-bali-bakra

खबर मिलने पर पुलिस ने सर कटे शव और अलग से सर को जंगल से बरामद किया. 7 अप्रैल को पश्चिम सिंहभूम के मझहारी थाना क्षेत्र में सिनी कुई नामक एक महिला को डायन बताकर उसके रिश्तेदारों ने उसे तब तक पिटते रहे जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ा. हालांकि उक्त घटनाओं में पुलिस ने तो मामले दर्ज कर लिया है पर किसी के गिरफतार होने की सूचना नहीं है.

एक अन्य घटना में एक 55 वर्षीय महिला रजनीगंधा मुखी ने अंधविश्वास में वशीभूत एक देवी को खुश करने के लिए अपने पांव के नश को काट लिया और अस्पताल ले जाने के पहले ही उसकी जान निकल गयी. यह घटना 10 अप्रैल को पश्चिम सिहंभूम जिला के कसूरवान गांव के सोनूआ थाना क्षेत्र की है. सोनूआ थाना के थाना प्रभारी विनोद उरांव ने बताया कि खून इतनी तेजी से बह रहा था कि गांव वाले उसे अस्पताल नहीं पहुंचा सके और अस्पताल ले जाने के क्रम में ही उसकी मौत हो गयी.

डायन प्रथा एक सामाजिक कुरीति है जो आज भी झारखंड़ जैसे राज्य में गहराई तक अपनी जड़ जमायी हुयी है. झारखंड़ राज्य की आबादी का लगभग 28 प्रतिशत गरीब और शोषित जनजातियों का है और लगभग 12 प्रतिशत अनुसूचित जातियों का है. अशिक्षा और अज्ञानता का प्रभाव राज्य के ग्रामीण इलाकों में सर चढ़ कर बोलता है. इसमें दो मत नहीं कि साक्षरता दर बढ़ा है, 1951 में जहां साक्षरता दर मात्र 13 प्रतिशत थी तो वर्ष 2001 में बढ़कर 54 प्रतिशत तक पहुंच गयी परंतु इन में दो तिहाई पुरूषों में केवल 40 प्रतिशत महिलाएं ही साक्षर है.

झारखंड राज्य में डायन प्रथा का कहर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो दशकों में लगभग 1200 महिलाओं को डायन कह कर मौत के घाट उतार दिया गया. इसके अतिरिक्त महिलाओं को डायन कह कर मलमूत्र पिलाना, पेड़ से बांधकर पीटा जाना, अर्द्धनग्न और कभी नग्न कर गांव के गलियों में घसीटा जाना आदि प्रताडि़त करने के कुछ तरीके है जो राज्य के ग्रामीण इलाकों में रोजमर्रा की घटनाएं है.

ग्रामीणों में यह अंधविश्वास होता है कि डायन एक ऐसी महिला होती है जिसे अलौकिक शक्ति भूत-साधना से प्राप्त होती है और वह महिला भिन्न-भिन्न तरीके से लोगों को मार देती है, प्रचलित शब्द है खा जाती है. अंधविश्वास जब किवदंती का रूप लेने लगती है तो समाज से उसे हटाना मुश्किल हो जाता है. आए दिन मीडिया में भी 'डायन' शब्द का प्रयोग जैसे डायन कोशी, डायन मंहगाई आदि धडल्ले से किया जाता है, जो नहीं किया जाना चाहिए. बिडम्बना यह भी है कि शिक्षित लोग भी इस अंधविश्वास से भले प्रभावित नहीं होते हों पर इस अंधविश्वास को दूर करने के जागरूकता लाने का प्रयास नहीं करते बल्कि छोटे शहरों में भी कई बार भूत पकड़ लेने की घटना होती रहती है और भूत भगाने के लिए ओझा, तांत्रिक, मंत्री, गुणी आदि को बुलाया जाता है. 

अंधविश्वास की गहरी पैठ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गांव में अगर किसी व्यक्ति को मलेरिया हो गया हो और चिकित्सा के बाद उसे टायफायड हो जाए या पीलिया रोग हो जाए तो ग्रामीण इसे डायन द्वारा किया गया करामात कहेगें न कि इलाज करायेगें लिहाजा ऐसी परिस्थिति में मरीज की मौत सुनिश्चित है और गांव में जिस महिला पर ग्रामीण डायन होने का इल्जाम लगाया होता है उसे उक्त मरीज के मौत का जिम्मेवार मानकर या तो मलमूत्र पिलाना शुरू कर देगें या अगर मरने वाले के यहां अगर कोई गुंडा तत्व हुए तो उस महिला को पीट-पीट कर अधमरा कर देगें या जान मार देगें. 

सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि ऐसे कुकृत्य को पंचायत से भी अनुमति मिल जाती है. एक दूसरी धरणा अंधविश्वासियों के बीच यह है कि अमावस्या की रात में ऐसी महिलाएं श्मशान घाट में जमा होती हैं और निर्वस्त्र होकर कमर के चारों ओर झाडू लपेटकर मंत्रों का जाप करती हुयी नृत्य करती हैं. श्मशान घाट में कोई औगड़ तांत्रिक महिलाओं को डायन विद्या में इस शत्र्त पर निपुण करता है कि वे इस विद्या को गुप्त रखेगी और अपने किसी प्रिय व्यक्ति को मार कर पूर्ण निपुणता प्राप्त करेगी.

लोगों में उक्त अंधविश्वास का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. डायन प्रथा बीमार दीमाग की उपज है और ग्रामीण इलाकों में कुछ चालाक और दुष्ट प्रवृति के व्यक्तियों द्वारा इसे पाला-पोशा जाता रहा है. किसी महिला को डायन बताये जाने के पीछे देहाती राजनीति होती है. जैसे किसी की संपत्ति हड़पने की साजिश में उस घर के महिलाओं को ग्रामीण समाज में डायन करार देना, किसी बाल विधवा जो कलांतर में युवती हो गयी उसका यौन शोषण करने के लिए उसे समाज में डायन कह का प्रताडि़त करना. इतना ही नहीं मौका देख उसका यौन शोषण करना, व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के गरज से किसी गरीब महिला को डायन कहना. इसके अतिरिक्त अशिक्षा, जागरूकता की कमी, धार्मिक अंधविश्वास डायन प्रथा को बढ़ावा देने वाले अन्य कारक है.

हजारीबाग के पेलावल गांव की रधिया देवी कहती हैं कि पति के मृत्यु के बाद एक दिन अचानक मैं डायन घोषित कर दी गयी. मेरे पड़ोसी की नजर मेरे संपत्ति पर थी, पड़ोसी के बड़े लड़के ने एक दिन मेरी इज्जत लेने की कोशिश की जिसकी शिकायत मैं पंचायत में की थी परंतु फैसला दंबगों के पक्ष में हुआ. चाईबासा जिला के पीसूकोचा ग्राम की गौरी देवी ने कहा कि एक दिन गांव में किसी भंयकर बीमारी के फैलने से दो-तीन बच्चों की इलाज के आभाव में मृत्यु हो गयी, गांव का ही एक दंबग व्यक्ति ने पंचायत में यह कह दिया कि मै डायन हॅू और मैंने ही उन बच्चों को खा लिया और पंचायत ने भी मेरे उपर 30 हजार का अर्थदंड़ लगा दिया और अर्थदंड़ नहीं देने की सूरत में मुझे निर्वस्त्र गांव के गली-गली में घुमाया गया, संयोग से पुलिस मौके पर पहुंची और मेरी जान बच गयी. 

सरायकेला के बीरबांस ग्राम की चंदवा देवी कहती है कि एक दिन गांव का एक दंबग व्यक्ति 10-12 लोगों के साथ मेरे घर पर मेरे पिता को खोजते हुए आए और मेरे मना करने पर मुझे उठा कर पास के नदी के किनारे ले गए और फिर मेरे साथ सभी ने दुष्कर्म किया और वहीं रेत पर मैं रात भर पड़ी रही और जब सुबह घर पहुंची तो देखा कि घर पर ताला लगा हुआ है और पुलिस पहुंची हुयी है. मुझे पुलिस ने बताया मां-बाप सहित मेरे सात भाई-बहनों की हत्या उस रात कर दी गयी थी. 

टाटा जैसे औद्योगिक शहर के एक गांव गम्हरिया की एक महिला रूपनी देवी के साथ जो हुआ उसे बताते हुए उसके रोगंटे खड़े हो जाते है. डायन कह कर उसे मलमूत्र पिलाया गया, सर के बाल मुडंवा दी गयी, अर्द्धनग्न कर गली-गली में घुमाया गया. अततः उसे गांव छोड़कर गांव से बाहर एक झोपडा़ डाल कर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. लोग उसे वहां भी तंग करना नहीं छोड़े, पुलिस से शिकायत पर पुलिस उसकी कोई मदद नहीं की. आपने भाग्य को सराहते हुए कहती है कि एक गैर सरकारी संस्था 'आशा' के संपर्क में वो आयी तब कहीं जाकर उसकी जान बची अन्यथा उसका अंत सुनिश्चित था.

डायन प्रथा की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने जुलाई 2001 में ही डायन प्रतिषेध अधिनियम 1999 को अंगीकृत किया जिसके तहत किसी महिला को डायन करार देकर उसका शारीरिक या मानसिक शोषण करने वाले को छह माह की जेल या 2000 रूपए का जुर्माना देने का प्रावधान है. इसके अलावे डायन का दुष्प्रचार करने या इस कार्य के लिए लोगों को प्रेरित करने वाले व्यक्ति को तीन माह का साश्रम कारावास व 1000 रूपए जुर्माना का प्रावधान है. 

उक्त कानून राज्य में लागू रहने के बावजूद डायन प्रथा बढ़ती ही जा रही है. इसे सिर्फ कानून बनाकर नहीं रोका जा सकता है, इसे रोकने के लिए ग्रामीणों को जागरूक करने की आवश्यकता है जिसके लिए सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं, समूहो को आगे आना होगा तथा नुक्कड़ नाटक, कार्यशाला, रेडियो व टीवी कार्यक्रमों के माध्यम से राज्य के जनजाति, दलीत व पिछड़े समाज के लोगों को जागरूक बनाना होगा तभी समाज में गहराई तक जड़ जमा चुकी डायन प्रथा जैसे अंधविश्वास को दूर किया जा सकेगा और इस अभिशाप से मुक्ति मिल सकेगी एवं तभी हम एक सभ्य समाज की कप्पना कर सकते है. 

neera-sinhaघरेलू जिम्मेदारी संभाल रहीं नीरा सिन्हा सामाजिक मसलों पर लिखती हैं.

http://www.janjwar.com/society/1-society/3907-dayan-batakar-12-mahilaon-kee-hatya-by-neera-sinha

No comments: