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Sunday, April 14, 2013

नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक हैं तो आडवाणी क्या हैं?

नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक हैं तो आडवाणी क्या हैं?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


जेडी(यू) की 2 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के संघी प्रधानमंत्रित्व के दावे की हवा निकाल दी नीतीश कुमार ने, मीडिया चीख चीखकर बोल रहा है। पर लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ इन धर्मनिरपेक्ष महानुभवों का कोई मतामत अभी अप्रकाशित है।जदयू की राष्ट्रीय परिषद में आज पारित राजनैतिक प्रस्ताव के अनुसार, प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए कि जिसकी धर्मनिरपेक्ष छवि देश में संदेह से परे हो, जो समावेशी विकास का पक्षधर हो और पिछड़े वर्ग एवं क्षेत्रों तथा सभी को साथ लेकर चलने का हिमायती हो।प्रस्ताव में कहा गया है कि उसकी साख अटल बिहारी वाजपेयी की तरह हो अन्यथा इसके नकारात्मक परिणाम होंगे।पार्टी ने कहा, 'भाजपा का दायित्व है कि उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार तय करे। इस वर्ष के अंत तक भाजपा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम अवश्य बताये, जैसी परंपरा पूर्व में रही है।'अपने आप को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई भ्रम नहीं है और वह पार्टी की सीमित ताकत को समझते हैं।समाजवादी पार्टी का कहना है कि जब नीतीश को बिहार का सीएम बनना था तब तो उन्हें बीजेपी धर्मनिरपेक्ष पार्टी लगती थी और अब जब मोदी का नाम सामने आया है तो वो धर्मनिरपेक्षता की बात कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस का कहना है कि नीतीश कुमार किस आधार पर मोदी को सांप्रदायिक बता रहे हैं और आडवाणी को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं। खबर है कि इस बीच बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव से बातकर कहा है कि पीएम उम्मीदवार पर दबाव बनाने के बजाए मिल बैठकर मामला सुलझाएं।हाल के दिनों में नीतीश कुमार समेत पार्टी के तमाम दिग्गजों के बयान धर्मनिरपेक्षता के नाम पर नरेंद्र मोदी की मुख़ालफ़त का इशारा कर चुके हैं।


प्रस्ताव में कहा गया है,'जदयू का स्पष्ट मत है कि राजग के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार आम चुनाव से पहले घोषित किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार ऐसा होना चाहिए जो राजग के राष्ट्रीय एजेंडा और पूर्व में निर्धारित तीन मुद्दों (अयोध्या में राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता) को लेकर प्रतिबद्ध हो।'


प्रस्ताव के अनुसार, 'उसकी छवि भारत जैसे बहुधर्मी और बहुभाषी देश के अनुरूप हो और उसकी धर्मनिरपेक्ष साख देश में संदेह से परे हो। वह समावेशी राजनीति के पक्ष में हो और पिछड़े वर्ग एवं क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध हो।'


प्रस्ताव में कहा गया है कि देश का राजनीतिक परिदृश्य निराशाजनक है। संप्रग सरकार कमजोर है और इसके समय में राजनीतिक संस्थाओं एवं मूल्यों का ह्रास हुआ है। सरकार नीतिगत जड़ता का शिकार हो गई है और देश में निवेश बंद हो गया है।


प्रस्ताव में कहा गया है, 'बेरोजगारी और महंगाई ने गरीबों को और गरीब बना दिया है। गरीब-अमीर की खाई बढ़ी है। पिछले कई वर्षों में देश का विकास दर घटा है। देश के संघीय ढांचे पर प्रहार हुआ है।'


अगर गुजरात नरसंहार के लिए मोदी सांप्रदायिक हैं तो बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में मुख्य अभियुक्त लालकृष्णआडवाणी क्या हैं?राममंदिर के कारसेवकों को लेकर गुजरात नरसंहार की पृष्ठभूमि बनी। वे कारसेवक कहां से आये उनका आवाहन किसने किया देश दुनिया में बाबरी विध्वंस के लिए जो दंगे हुए, उसकी जिम्मेवारी किस पर है? लेकिन नीतीश कुमार और उनकी पार्टी इस मुद्दे पर चुप हैं। और तो और, बिहार से ही उनकी पार्टी के सांसद कैप्टेन जय नारायण निषाद मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए यज्ञ महायज्ञ कर रहे हैं। धर्मनिरपेक्षता का तकाजा तो यह है कि वे निषाद को बाहर का दरवाजा दिखा दें। आडवाणी कोई अटल बिहारी वाजपेयी तो है नहीं, जिनपर धर्मनिरपेक्ष मुखौटा भी जम जाये! फिर संघ परिवार में ऐसा कौन माई का लाल है जो उग्र हिंदुत्व के एजंडा और हिंदू साम्राज्यवाद के खिलाफ है? खिलाफ तो जेडी(यू) भी नहीं है। गैरकांग्रेसवाद के समाजवादी नारे के साथ संघ परिवार को बिना शर्त समर्थन के तहत ही बिहार में सत्ता में काबिज हैं ​​सुशासनबाबू। मोदी की खिलाफत दरअसलधर्मनिरपेक्षता कम, नीतीश कुमार की राजनीतिक महात्वाकांक्षा कुछ ज्यादा ही है और इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है।


इसी बीच अयोध्या में राम जन्मभूमि के विवादित स्थान पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिन्दू परिषद 11 साल बाद फिर से अभियान चला रहा है। इस अभियान के तहत गुरुवार को राम शिलाओं और तराशे गए पत्थरों की परिक्रमा की गयी। सन् 1989 में देशभर से इन शिलाओं को यहां लाया गया था। श्रीराम जन्मभूमि न्यास कार्यालय में रखी इन शिलाओं की संख्या करीब एक लाख है।इन शिलाओं के पूजन के माध्यम से विहिप ने देशभर में मंदिर आंदोलन का माहौल तैयार किया था। सितम्बर 1990 में विहिप ने मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों को तराशने की कार्यशाला स्थापित की थी। कार्यशाला में विहिप के प्रस्तावित मंदिर के मुताबिक 70 प्रतिशत से अधिक पत्थरों को तराशा जा चुका है। इस कार्यशाला को लेकर बीच बीच में राजनीतिक सरगर्मियां भी बढ़ी। कई मौकों पर संसद की कार्यवाही भी ठप हुई।विहिप के प्रस्तावित मॉडल के अनुसार मंदिर में 212 खम्भों का निर्माण होना है। मंदिर की उंचाई 128 फीट, चौड़ाई 140 फीट और लंबाई 268.5 फीट रखी गई है। सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर प्रस्तावित निर्माण के लिए विहिप राम नाम जप मंदिर निर्माण संकल्प समारोह पूरे देश में शुरु करने जा रही है ।


जेडी(यू) की 2 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अंतिम दिन पार्टी के सीनियर नेता और बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना अजेंडा लगभग तय कर दिया है। पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने भले अपने भाषण में मोदी पर लचीला रवैया अपनाने का संकेत दिया हो, नीतीश कुमार ने बिना मोदी का नाम लिए, शुरू से आखिर तक उन्हीं पर निशाना बनाए रखा। उन्होंने मोदी के विकास मॉडल पर तो परोक्ष हमला बोला ही, धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर भी उन्हें घेरने की कोशिश करते रहे। उनके इस रुख को बीजेपी ने भी गंभीरता से लिया। शाम होते-होते इस पर बीजेपी की प्रतिक्रिया आ गई। आक्रामक तेवर अपनाते हुए बीजेपी ने साफ कर दिया कि वह अपने सहयोगियों से मोदी के खिलाफ कुछ नहीं सुनने वाली।


भाजपा अपने तेवर पर कायम रहती है और संघ परिवार की पसंद पर मुहर लगाते हुए मोदी को ही प्रधानमंत्री बनाने का निश्चय करती है तो क्या कांग्रेस के साथ खड़े हो जायेंगे नीतीश कुमार? नीतीश कुमार जो कदम उठायेंगे, क्या उसी दिशा में चल पड़ेगी समाजवादियों की यह जमात, जिनकी सत्तालिप्सा अब उनकी विचारधारा बन गयी है? फिर अगर संघ परिवार ने लालकृष्ण आडवानी के नाम पर ही सहमति दे दी तो क्या समाजवादी धर्मनिरपेश्रता का एजंडा कामयाब माना जायेगा?जो मन चाहे करें सुशासनबाबू  लोकतंत्र हैं और वे कोई भी निर्णय लेने को आजाद हैं, दूसरे तमाम क्षत्रपों की तरह। कमसे कम धर्मनिरपेक्षता का जाप करते हुए बिहार के बाद बाकी देश में अपनी रथयात्रा को तो विराम दें।खबरें हैं कि पीएम उम्मीदवार के ऐलान के लिए नीतीश कुमार ने समय की कोई पांबदी नहीं रखी है! इतना जरूर कहा है कि दिसंबर तक ऐलान हो जाए. लेकिन नरेंद्र मोदी अब भी नतीश को मंजूर नहीं! भाजपा के एक वर्ग द्वारा प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किये जा रहे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को नकारते हुए जदयू ने रविवार को भाजपा से स्पष्ट कहा कि वह इस साल के अंत तक प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दे और उम्मीदवार ऐसा हो जिसकी धर्मनिरपेक्ष साख देश में संदेह से परे हो।


नीतीश कुमार ने आज कहा कि देश का अगला पीएम ऐसा हो जो देश को जोड़कर चले। देश सद्भाव से चलता है, जोर जबरदस्ती से देश नहीं चलता। नीतीश ने कहा कि राजनीति में जनता दल यूनाइटेड अहम भूमिका निभाएगा। नीतीश ने शरद यादव को तीसरी बार अध्यक्ष पद पर चुने जाने पर बधाई दी और कहा कि शरद यादव आने वाले दिनों में नई कार्यकारिणी का गठन करेंगे।


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में हमने शून्य से यात्रा शुरू की। हमारे शासन से पहले बिहार बदहाल था। हमारा विकास सबके लिए है। हमने विकास का ऐसा मॉडल अपनाया है जिसमें हम सबको साथ लेकर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि हमने किसी विकसित राज्य का विकास नहीं किया है। हम लोगों ने तो बिहार को रसातल से आगे बढ़ाया है। हम ऐसा विकास नहीं चाहते कि जीडीपी के साथ कुपोषण भी बढ़े। विकास का मतलब सिर्फ जीडीपी बढ़ाना नहीं होना चाहिए। यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि उस विकास का लाभ कुछ लोगों को नहीं, बल्कि समाज के हर तबके को मिले।उन्होंने कहा कि इस देश में कई तरह की संस्कृतियां हैं। विविधताएं हैं। उन विविधताओं को साथ लेकर हमें देश को आगे बढ़ाना है। जो व्यक्ति सबको साथ लेकर चलने की क्षमता रखता हो, वही देश का नेतृत्व कर सकता है। उन्होंने कहा कि हमने बिहार में सबका भरोसा जीता है। नीतीश ने कहा कि यह देश हवाबाजी से नहीं चलता, इसके लिए धरातल पर काम करना पड़ता है।उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि पीएम वही हो सकता है जिसकी धर्मनिरपेक्ष छवि हो और जिसमें सबको साथ लेकर चलने की क्षमता हो। बीजेपी की तरफ से पीएम कैंडिडेट के सबसे बड़े दावेदार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना नीतीश ने उन पर कई कटाक्ष किए। नीतीश ने कहा कि वह 'कैसा विकास जहां जीडीपी के साथ-साथ कुपोषण भी बढ़ रहा है।' उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि सबको साथ लेकर चलने वालों को कभी टीका लगाना पड़ता है तो कभी टोपी भी पहननी पड़ती है। हम टोपी भी पहनते हैं और टीका भी लगाते हैं। उन्होंने कहा कि देश का नेतृत्व करने के लिए अटल जी जैसी सोच की जरूरत है। अटल जी हर वक्त 'राजधर्म' पालन करने की बात करते थे।



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