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Tuesday, April 2, 2013

मीडिया खुलकर साम्प्रदायिक ताकतों की भाषा बोल रहा है

मीडिया खुलकर साम्प्रदायिक ताकतों की भाषा बोल रहा है


नागरिक के वार्षिक सेमिनार में वक्तों का निष्कर्ष

 

शहीदे आज़म भगत सिंह के शहादत दिवस (23 मार्च, 1931) एवं साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ते हुये शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी (25 मार्च, 1931) के शहीद दिवस के अवसर पर 24 मार्च को 'नागरिक' अखबार की ओर से एक सेमिनार हिन्दी भवन, मऊ उ.प्र. में आयोजित किया गया। सेमिनार का विषय'साम्प्रदायिकता और मीडिया' था। 'नागरिक' की ओर से सेमिनार में एक आधार पत्र भी प्रस्तुत किया गया।

सेमिनार को सम्बोधित करते हुये वक्ताओं ने शहीद-ए- आज़म भगत सिंह द्वारा साम्प्रदायिकता के सवाल पर कही बातें एवं साम्प्रदायिकता के खिलाफ गणेश शंकर विद्यार्थी की बातों को रखा।

वक्ताओं ने कहा कि औपनिवेशिक समय में आजादी के आन्दोलन को कमजोर करने हेतु अंग्रेजी हुकूमत ने देश में साम्प्रदायिकता को बढ़ाया और जनता को आपस में बाँटने की घृणित कोशिशें की थीं। आजादी के आन्दोलन में क्रान्तिकारी ताकतों एवं गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे जनपक्षधर लेखकों/ पत्रकारों ने अंग्रेजों की घृणित चालों का भण्डाफोड़ किया व हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल दिया था।

आजादी के बाद भारतीय पूँजीपति वर्ग की सरकारों ने भी जनता को आपस में बाँटने का घृणित कार्य जारी रखा। एक समय तक धर्मनिरपेक्ष पार्टी की छवि रखने वाली कांग्रेस पार्टी भी कभी छिपे रूप में तो कभी खुलकर हिन्दू-मुस्लिम-सिख जनता को आपस में लड़ाने का कार्य करती रही तो दूसरी ओर घोर प्रतिगामी मूल्यों से लैस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आर.एस.एस.) की उत्पत्ति ही साम्प्रदायिकता को बढ़ाने हेतु हुयी। आर.एस.एस. के सभी संगठन भाजपा, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद आदि हिन्दुत्व के नाम पर मुस्लिम एवं ईसाइयों के खिलाफ प्रचार-प्रसार ही नहीं बल्कि मुस्लिमों एवं ईसाइयों के कत्लेआम को अंजाम देते रहे हैं।

साम्प्रदायिक दंगों के समय मीडिया की भूमिका पर वक्ताओं ने कहा कि जहाँ अंग्रेजी शासन में पूँजीवादी अखबार खुलकर साम्प्रदायिक ताकतों के साथ नहीं आते थे वहीं वर्तमान में मीडिया भी खुलकर न केवल साम्प्रदायिक ताकतों की भाषा बोल रहा है बल्कि एक विशेष समुदाय के नाम पर मुस्लिम समुदाय के प्रति समाज में घृणा पैदा करने का कार्य कर रहा है। किसी भी घटना के बाद मीडिया तुरन्त इसके पीछे किसी मुस्लिम संगठन का हाथ होने का माहौल बना देता है। हिन्दू आतंकवादी ताकतों द्वारा सिलसिलेवार किये गये बम धमाकों के बाद भी मीडिया का रुख मुस्लिम विरोधी ही था।

वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान समय में मीडिया घराने के हित देश के पूँजीपति वर्ग एवं पूँजीवादी राजनीतिक पार्टियों के हितों के साथ जुड़े हुये हैं। मीडिया द्वारा समाज में जो कुछ भी परोसा जा रहा है, वह अपने वर्गीय चरित्र के अनुरूप ही है।

कुछ वक्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूरी दुनिया में आज आर्थिक मन्दी का दौर है। साम्राज्यवादी देशों की अर्थव्यवस्था की हालत काफी कमजोर है। यूरोपीय यूनियन के कई देश आर्थिक संकट से घिरे हैं। जनविरोधी नीतियों के कारण इन देशों की जनता सड़कों पर है। ऐसे में, जनता को आपस में बाँटने हेतु इन देशों की सरकारें घृणित चालें चल रही है और इन देशों में दक्षिणपन्थी ताकतों को पूँजीपति-मीडिया बढ़ावा दे रहा है। ठीक यही कार्य हमारे देश में भी हो रहा है। एक तरफ मुस्लिमों को आतंकवादी, साम्प्रदायिक, देशद्रोही आदि की तस्वीर मीडिया द्वारा बनाकर समाज में पेश किया जा रहा है। पिछले दिनों 'आजमगढ़' को 'आतंकगढ़' के रूप में मीडिया द्वारा प्रचारित प्रसारित किया गया मानो पूरे आजमगढ़ की मुस्लिम आबादी ही आतंकवादी हो तो दूसरी ओर गुजरात नरसंहार कर करीब 2000 मुस्लिमों के कत्लेआम के पुरोधा फासिस्ट नरेन्द्र मोदी को देशी-विदेशी कॉरपोरेट घराने हाथों-हाथ ले रहे हैं।

मीडिया के क्षेत्र में मीडिया के मालिकों एवं मीडियाकर्मियों जिनका शोषण मीडिया मालिक करते हैं, के सम्बंधों पर भी बातें वक्ताओं द्वारा रखी गयीं और साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में इन मीडियाकर्मियों की भूमिका पर बात की गयी।

वक्ताओं की आम राय थी कि साम्प्रदायिकता की समस्या से गम्भीर संघर्ष वर्तमान पूँजीवादी मीडिया के द्वारा नहीं हो सकता। इसके लिए भगतसिंह एवं गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा बताये रास्ते पर चलकर देश के मजदूर-मेहनतकश आबादी को एकजुट कर इस पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष चलाने व मजदूर-मेहनतकशों के राज स्थापित करने की बात की गयी और इस कार्य हेतु जनपक्षधर पत्र-पत्रिकाओं को स्थापित करने व उनके प्रचार की चुनौतियों पर सेमिनार में चर्चा की गयी।

वक्ताओं ने 'नागरिक' अखबार की ओर से प्रस्तुत आधार पत्र में साम्प्रदायिकता से महिलाओं के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव एवं हिन्दू साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा ईसाइयों के ऊपर हो रहे हमले का जिक्र न होने की कमी की ओर इशारा किया।

सेमिनार में बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता (हिन्दुवादी ताकतों) के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिमसिख आदि) की साम्प्रदायिकता की भी निन्दा की गयी।

सेमिनार की अध्यक्षता बुजुर्ग क्रान्तिकारी साथी अम्बिका सिंह (बनारस), जी.पी.मिश्रा (साम्राज्यवादी क्रांतिकारी जनमोर्चा, इलाहाबाद), बाबूराम शर्मा (पी.डी.एफ.आई.), मुनीष अग्रवाल (सम्पादक, नागरिक) रामजी सिंह (के.कमेटी सदस्य, इंकलाबी मजदूर केन्द्र) ने की। सेमिनार में परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, क्रान्तिकारी लोक अधिकार संगठन, जन कला मंच के सूरज पाल, एस.यू.सी.आई. के डॉ. त्रिभुवन, जन चेतना मंच के बाबूराम पाल, किसान संग्राम समिति के रामू मास्टर, भाकपा (माले) के विनोद सिंह, एमसीपीआई के राम सिंहासन, नन्दन, अमर नाथ द्विवेदी, रणवीर सिंह, विजय सिंह, राम प्यारे आदि ने अपनी बातें रखीं।

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