फिरभी रुपया गिरा क्यों भाई
खाद्य सुरक्षा परोस दी थाली पर
पलाश विश्वास
ताशेर देश लिखी थी टैगोर ने
उन्होंने बना दिया डालर देश यह!
1.83 लाख करोड़ रु. की तीन दर्जन परियोजनाओं को मंजूरी: वित्तमंत्री
Food bill raises fiscal fears, rupee posts biggest fall in nearly 18 years
Times of India | - 45 minutes ago |
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MUMBAI/NEW DELHI: Rupee hit a record low and posted its biggest percentage fall in 18 years on Tuesday as Parliament's approval of a $20 billion plan to provide cheap grain to the poor renewed doubts about government resolve to control spending ...
Opinion:How to reduce rupee's depreciation? Just get your calculations rightEconomic Times
In-depth:Rupee, stocks plummet as food Bill fuels fiscal fearsLivemint - by Dinesh Unnikrishnan
Live Updating:Live: Sensex closes 590 pts down, rupee closes at life low of 66.24Firstpost - by Adrija Bose
Wikipedia:BSE SENSEX
BBC Hindi
डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य गिरता जा रहा है. क्या इससे आप प्रभावित हुए हैं. अगर आप पढ़ने या घूमने के लिए विदेश जा रहे हैं तो रुपए का मूल्य गिरने का आप पर क्या असर पड़ा है. लिख भेजिए हमें.
25 सालों में बना हिंदू एनसाइक्लोपीडिया, अगले हफ्ते होगा विमोचन
रुपया पहुँचा रसातल में, सेंसेक्स भी 500 अंक गिरा
32 हजार के पार पहुंचा सोना
सरकार ने दिए सोना गिरवी रखने के संकेत
Zee News: 'Govt may use its gold reserves to reduce CAD'
Published on 27 Aug 2013
With the current account deficit (CAD) widened to a record high of USD 88 bn or 4.8 percent of the GDP for the fiscal ended March 31, Union Minister Anand Sharma on Tuesday hinted that the government may use a portion of the country's gold reserves to reduce the widening current deficit.
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सरकारी तेल विपणन कंपनियों को मौजूदा कारोबारी साल की पहली तिमाही में कुल 4,403 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। यह जानकारी मंगलवार को पेट्रोलियम राज्य मंत्री पनाबका लक्ष्मी ने दी।
खाद्य सब्सिडी विधेयक को लेकर चिंता के बीच मंगलवार को रुपया अपने नए सर्वकालिक निचले स्तर 66.30 प्रति डॉलर पर पहुंचने के बाद वहां से थोड़ा 66.24 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
शेयर बाजार में पिछले तीन दिन की कमाई मंगलवार को एक झटके में चली गयी। डॉलर के मुकाबले रुपये में भारी गिरावट के बीच आज शेयर औंधे मुंह गिरे तथा बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 590 अंक से अधिक का गोता लगा गया।
रुपए की विनिमय दर में अभूतपूर्व गिरावट के बीच वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मंगलवार को कहा कि वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के प्रभावों से निपटने के लिए देश में उठाए गए कदम भी रुपए के मूल्य ह्रास के लिए जिम्मेदार हैं। चिदंबरम ने आज राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान कहा कि रुपया अपनी वास्तविक दर से नीचे चल गया है। पर उन्होंने विश्वास जताया कि रुपया अपने उचित स्तर को पुन: प्राप्त कर लेगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चालू खाते के घाटे (कैड) को कम करने के लिये तेल आयात बिल में 25 अरब डॉलर कटौती पर जोर दिया है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
भारत ने पिछले वर्ष पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर 170 अरब डॉलर खर्च किये। अब भारत ईरान से तेल आयात बढ़ाने पर नये सिरे से ध्यान दे रहा है, क्योंकि फारस की खाडी स्थित इस देश से तेल आयात का भुगतान रुपये में करता है।
पेट्रोलियम मंत्री ने यहां संवाददाताओं से कहा तेल आयात की कैड में अहम भूमिका है। प्रधानमंत्री ने हमें कहा है कि इसके आयात बिल में 25 अरब डॉलर की कटौती होनी चाहिये। आज की स्थिति के अनुसार हमने आयात बिल में 22 अरब डॉलर बचाने की योजना बनाई है।
इस योजना के एक बड़े हिस्से के तौर पर ईरान से तेल का आयात बढ़ाना शामिल है। अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा ईरान पर प्रतिबंध के चलते भुगतान के सभी रास्ते बंद होने की वजह से भारत ईरान को तेल आयात का भुगतान कोलकाता स्थित यूको बैंक की शाखा में रुपये में करता है।
अधिकारियों के अनुसार यदि भारत चालू वित्त वर्ष के दौरान ईरान से एक करोड़ से लेकर 1.10 करोड टन तेल का आयात करता है तो इससे 10 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की बचत हो सकती है। पिछले साल भारत ने ईरान से एक करोड 31 लाख टन तेल का आयात किया था।
खाद्य सुरक्षा परोस दी थाली पर
अमीरी पहले ही परोस दी थी
दिलो दिमाग हुआ धर्मोन्मादी
पैदल सेनाओं,लूट का हिस्सा
मिलेगा भी यकीनन,तुम्हारे स्वजनों
का कत्लेआम हो जाने दो
रुपया गिरने का गणित कुछ
अलग है,थामते न थामते
फिसल रहा रुपया,ऐसी फिसलन
ही अर्थव्यवस्था है
बहुत मना किया था अमेरिका ने
मौलिक विनिवेश मंत्री ने भी किया
आगाह।चुनावी समीकरण का समर्थन
जनादेश के लिए था अनिवार्य
फिरभी पास खाद्य सुरक्षा
चूंकि धर्मस्थल को संसद बनाना
अब भी भारी मुश्किल है
निवेशकों की आस्था के लिए
हो गये सारे वायदे और
शत प्रतिशत एफडीआई
फिरभी रुपया गिरा क्यों भाई?
भूमि सुधार पर जुबान सारे बंद हैं
विचाधाराएं तालाबंद हैं
पर्यावरण अब भूमि अधिग्रहण है
वनाधिकार विशुद्ध बेदखली
खनन अधिनियम
पांचवीं छठीं अनुसूचियों की काट
आगे पढ़ लेना जयराम रमेश को भी
खाद्यसुरक्षा हो गयी
सर्वशिक्षा भी हासिल
सूचना का भी मिलाअधिकार
काम का भी मिला समझो
सरकार खुद चाहती है आरक्षण
निजी क्षेत्र में भी
ताकि जायज हो जाये
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
निजीकरण और निवेश
अब क्या चाहते हो?
लोकसभा ने सोमवार को खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित करते हुए विपक्ष द्वारा पेश सभी 305 संशोधनों को खारिज कर दिया, जबकि सरकार द्वारा पेश 11 संसोधनों को स्वीकार कर लिया गया।
विधेयक का उद्देश्य देश की 1.2 अरब आबादी में से 67 प्रतिशत लोगों को रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। विधेयक का लाभ 80 करोड़ लोगों को मिलेगा। इन सभी को चावल तीन रुपये प्रति किलोग्राम, गेंहू दो रुपये प्रति किलोग्राम और अन्य मोटे अनाज एक रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध कराए जाएंगे।
सूत्रों के अनुसार राज्यों को लाभार्थियों के चयन की अनुमति होगी और अनाज के परिवहन का खर्च केंद्र उठाएगा। बहरहाल, सोमवार रात विधेयक पारित करने से पहले उसमें चार महत्वपूर्ण संसोधन किए गए। 35 राज्यों में से जिन 18 राज्यों को कम अनाज मिलना था, उनके मौजूदा अनाज आवंटनों को गरीबी रेखा से ऊपर के लाभर्थियों के लिए लागू होने वाली दरों पर संरक्षित किया जाएगा।
इस संशोधन से सरकार के ऊपर 5,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। दूसरे संशोधन के तहत राज्यों को इस योजना को लागू करने के लिए 180 के बजाय 360 दिन दिए गए हैं। तीसरे संशोधन की योजना के तहत सरकारी स्कूलों में बच्चों को तैयार खाद्य की जगह ताजा पकाया हुआ खाना उपलब्ध कराने की शर्त रखी गई है। चौथे संशोधन के तहत राज्यों को शिकायत निपटारा आयोगों की स्थापना करने की छूट दी गई है।
सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी योजना खाद्य सुरक्षा बिल लोकसभा में पास हो गया है। गौरतलब है कि बीजेपी ने इसे वोट सुरक्षा बिल करार दिया तो वहीं समाजवादी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा कि राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ अभी और चर्चा की जरूरत है। इसके बाद खाद्य सुरक्षा बिल पर बहस का जवाब खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने दिया।
थॉमस ने कहा कि इस बिल में राज्यों के ऐतराज का ध्यान रखा गया है। जिसके बाद समाजवादी पार्टी ने थॉमस के इस बयान के बाद अपना संशोधन प्रस्ताव वापस ले लिया। वहीं खाद्य सुरक्षा बिल को ऐतिहासिक बताते हुए यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी दलों से मतभेद दूर कर इसे सर्वसम्मति से पास कराने की अपील की। राज्यसभा में आज इस बिल पर चर्चा होगी।
गौरतलब है कि इससे पहले सोनिया गांधी लोकसभा में सोमवार को अपने संबोधन में कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक लागू करने के लिए देश को किसी भी तरह से संसाधन जुटाने होंगे। सोनिया के मुताबिक खाद्य सुरक्षा कानून को कामयाब बनाने के लिए सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। यूपीए अध्यक्ष के मुताबिक अब ये संदेश देने का वक्त आ गया है कि भारत सभी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी उठा सकता है।
खाद्य सुरक्षा बिल के बहाने भले ही यूपीए सरकार चुनावी नैया पार करने का सपना देख रही है, पर उस दिशा में उठे कदम बाजार और रुपए को रास नहीं आ रहे हैं।
सोमवार देर रात खाद्य सुरक्षा बिल के लोकसभा से पारित होने के बाद रुपया मंगलवार को सुबह से ही लड़खड़ाने लगा।
पहले तो रुपए ने डॉलर के मुकाबले 65 के स्तर को छूने का रिकॉर्ड बनाया, उसके बाद शाम होते-होते 66 के स्तर को भी पार कर गया।
पढ़ें, बाजार में हाहाकार, रुपया 66 के पार, सोना 32 हजार
पूरे दिन में रुपए में 194 पैसे की गिरावट के साथ अभी तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई और यह 66.24 के स्तर पर बंद हुआ।
बाजार में आई गिरावट पर कोटक सिक्योरिटीज के संजीव जरबड़े के अनुसार पूरी अर्थव्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है। उसमें सोमवार को खाद्य सुरक्षा बिल के पारित होने से सरकार पर वित्तीय बोझ और बढ़ने वाला है।
लगातार गिरते रुपए की वजह से जहां आम आदमी की जेब पर महंगाई का बोझ बढ़ रहा है। वहीं कॉरपोरेट जगत पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। इसे देखते हुए कॉरपोरेट जगत ने भी सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा बिल लागू करने के समय पर सवाल उठाए हैं।
पढ़ें, छह साल में छह गुना बढ़ा भारतीय कंपनियों का कर्ज
इंडिया इंफोलाइन के रिसर्च प्रमुख अमर अंबानी के अनुसार सरकार का खाद्य सुरक्षा बिल लाना पॉपुलिस्ट कदम है। इसके जरिए राजकोषीय घाटे पर प्रतिकूल असर होगा।
यहीं नहीं सरकार के लिए राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले 4.8 फीसदी के स्तर पर भी बनाए रखना मुश्किल होगा।
गिरावट की प्रमुख वजहें:-
- खाद्य सुरक्षा बिल से सरकारी खजाने पर 1.3 लाख करोड़ रुपए का बोझ।
- सुस्त अर्थव्यवस्था में सरकार का घाटा और बढ़ने की आशंका।
- महीने का अंत होने से आयातकों के तरफ से डॉलर की ज्यादा मांग आने की अंदेशा।
- अमेरिका का सीरिया पर हमने करने की आशंका बढ़ना।
- विदेशी बाजार में भी गिरावट।
आम आदमी पर बढ़ रहा महंगाई का बोझ:-
- रुपए में लगातार गिरावट से खाने-पीने से लेकर जरूरत की सभी वस्तुएं महंगी हो रही हैं।
- दाल, खाद्य तेल, दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी।
- एलसीडी, वाशिंग मशीन, रेफ्रीजरेटर, कारें आदि की बढ़ रही हैं कीमतें।
- स्टील की कीमतों में भी बढ़ोतरी के कंपनियों ने दिए हैं संकेत।
- विदेशों में पढ़ाई भी लगातार हो रही है महंगी।
- घर बनाना, कारोबार करना भी हुआ महंगा।
- ब्याज दरों में फिर से बढ़ोतरी का दौर शुरू।
विदेशी मुद्रा की तुलना में रुपए की कीमत
विदेशी मुद्रा---रुपए की कीमत
यूएस डॉलर---66.24
यूरो---88.07
ब्रिटिश पाउंड---102.31
स्वीस फ्रेंक---71.63
चीनी युआन---10.78
(रेट 27 अगस्त, 2013 का)
2
अरसे बाद खुली युवराज की जुबान
बोले,जाति क्या होती है
नहीं था मालूम
हांजी,दलितों में ही बोले युवराज
जाति क्याचीज है
नहीं था मालूम
अब क्या मालूम है भाई?
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने दलितों को रिझाने के लिए मंगलवार को कहा कि आने वाले समय में यह राजनीतिक दल उनके लिए सबसे बड़ा सहारा होगा। वहीं, दलित समुदाय से नेताओं को आगे नहीं बढ़ाने पर उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती पर निशाना भी साधा।
राहुल ने कहा कि वह उनकी :दलितों की: प्रगति सुनिश्चित करने के लिए उनके साथ खड़े रहेंगे, चाहे जितना भी वक्त लगे। उन्होंने कहा कि आप यूपी में पांच दलित नेताओं के नाम पूछिए और आपको जवाब मिलेगा-मायावती, मायावती, मायावती, मायावती और मायावती। मैं चाहता हूं कि यूपी में, दिल्ली में, प्रखंड स्तर पर और गांवों में सभी स्तर पर नेताओं की एक कतार हो।
राहुल 'सामाजिक विषमता पर राष्ट्रीय संवाद' सभा को संबोधित कर रहे थे, जिसका आयोजन यहां राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने किया था। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी आने वाले समय में दलितों के लिए सबसे बड़ा सहारा होगी।
दरअसल, वह उत्तर प्रदेश में बसपा से दलितों का समर्थन वापस हासिल करने की कोशिशें कर रहे हैं, जो अगले साल के शुरूआत में होने वाले चुनाव में कांग्रेस के लिए मायने रखेगा।
सबसे पहले सुनाया एक किस्सा
जब भी मैं यूपी जाता हूं, मुझे कोई स्कूल दिखता है, तो मैं कोशिश करता हूं कि बच्चों से, टीचर से बात करूं. उस वक्त मायावती जी की सरकार थी. तो मेरे तीन सवाल हुआ करते थे. स्कूल में जाता था. जो आगे वाली लाइन होती थी. उनके बच्चों के नाम पूछता था मैं. जो पीछे वाली लाइन होती थी, उनके बच्चों के नाम पूछता था. और जो टीचर होती थी उनसे दो सवाल पूछता था. आपका टॉपर कौन है, सबसे वीक स्टूडेंट कौन हैं. नब्बे फीसदी स्कूल में मैं आपको जवाब बता देता हूं. अगली लाइऩ में दलित बच्चा कभी नहीं दिखा, जो पीछे वाली लाइन होती थी, इसमें ज्यादा से ज्यादा दलित बच्चे दिखते थे. ये रिएलिटी है. टीचर से पूछता टॉपर कौन है, तो आगे की लाइन. अच्छा काम कौन नहीं कर रहा है, तो पीछे की लाइन. फिर मैं पूछता कि भइया एक बात बताइए कि अगर दलित बच्चे पिछली लाइन में हैं और आप मुझे कह रही हैं कि पिछली लाइऩ से कोई ब्राइट स्टूडेंट नहीं निकल रहा है, तो इसमें आपमें कोई कमी तो नहीं है, शायद आपने कैटिगरी बना ली कि इनको आगे बिठाऊंगी. इनको पीछे. जो आगे बैठ रहे हैं, उन्हें ज्यादा सुनाई देगा. पुनिया जी का कहना है कि दो तरह के स्कूल हैं. मेरा कहना है कि स्कूल के अंदर भी दो तरीके हैं. ये दलितों की नहीं भेदभाव की बात है.
200 लोग तय करते हैं पूरे देश की राजनीति
आठ साल से नौ साल से मैं राजनीति में हूं. हर स्टेट में जाता हूं, चुनाव देखता हूं. जब हमारा लोकसभा का, विधानसभा का चुनाव होता है, कितने लोग फैसला लेते हैं.कितने लोग तय करते हैं कि भइया लोकसभा में कौन जाएगा, विधानसभा में कौन जाएगा, पीएम कौन बनेगा. हिंदुस्तान की आबादी कितनी है. उनमें से 60-70 फीसदी लोग वोट करते हैं, तकरीबन 10 करोड़ लोग डिसाइड करते हैं. मुझे टिकट डिसीजन भी दिखते है, कैंडिडेट चुनने का डिसीजन भी दिखता है. अब आप बताइए कि हुंदुस्तान में सब पार्टियों को जोड़ दें तो कितने लोग होंगे. आपने कहा कि 10 करोड़ वोट देते हैं, तो कैंडिडेट चुनने का फैसला कितने लोग करते हैं, बोलिए बोलिए.हिंदुस्तान में, मेरी पार्टी में भी, अगर आपने बहुत घोलकर बोला, तो 100 लोग. बीजेपी में 70-80 लोग, बीएसपी में एक व्यक्ति, सपा में तीन लोग, बीजेडी में दो लोग. कुल सिस्टम में दो सौ लोग, तीन सौ लोग, अगर आपने खोलकर बोला तो 500 लोग इस देश के राजनैतिक भविष्य का फैसला लेते हैं. मैं आपको सीधा बता देता हूं कि जब तक ये 500 लोग फैसला लेंगे तब तक दलितों की आवाज सही ढंग से न लोकसभा में पहुंचेगी, न विधानसभा में.मेरे दिमाग में सवाल आता है कि यूपी में बीएसपी की सरकार है, मगर तब भी वहां एक व्यक्ति चार सौ लोगों को चुनता है. तो मूवमेंट दलितों की हुई. संघर्ष कांशीराम जी ने किया. और फिर ढांचा बंद हो गया.
किया राजीव को फोन और पीसीओ के बहाने याद
एक समय हुआ करता था जब एमपी और एमएलए टेलिफोन का फैसला लेते थे. आपको याद होगा कि भइया कोटा होता था. एक एमपी कहता था 500 लोगों को ये टेलिफोन दूंगा. परमार जी (साथ में मंच पर बैठे एक नेता) उस समय मोबाइल नहीं खऱीद सकते थे. विधायक के पास हाथ जोड़कर जाना होता था. क्या बदला, आज ये इनकी मेज पर पड़ा है मोबाइल फोन.ये कहां से आया. इसको यहां पीसीओ लाया. जो पहले एमपी एमलए के हाथ में होता था, उसको राजीव गांधी ने पीसीओ के माध्यम से गांव में पहुंचाया. जब पीसीओ आया, तब मैं कहता हूं कि हिंदुस्तान को कम्युनिकेशन राइट्स मिले. पहले ये सिर्फ सांसद और विधायक के पास था.
यही अब राजनैतिक सिस्टम में हो रहा है. 200-400 लोग तय करते हैं कैंडिडेट कौन बनेगा. सच्ची पॉलिटिकल राइट्स न आम आदमी को मिलती है, न दलित को मिलती है. चुने हुए कुछ लोगों को मिलती है.इसको चैलेंज करने का तरीका 73वें और 74वें संशोधन में है, जवाब यहां से निकलेगा.
बंद कमरे में हुए चुनावी फैसले नहीं चलेंगे
हम भोजन के अधिकार की बात करते हैं, बड़ी चीज है. रोजगार योजना बड़ी चीज है. आरटीआई दे दिया. सब राजनैतिक दलों से पूछ लीजिए. आप अपनी पार्टी में राजनीतिक हक किसको देते हो. आप टिकट का फैसला लेते हो, किस किस के पास राइट्स हैं. कोई भी पार्टी आपको इसका जवाब नहीं दे सकती. एक पार्टी नहीं हिंदुस्तान में, अगर हमें राजनीति को 21वीं सदी में ले जाना है, तो ये 200 को 500, 1000 और फिर एक लाख तक ले जाना है. बंद कमरे जहां टिकट डिसीजन हो रहे हैं, इन्हें खोलना है. ये मेन बात है, बाकी सब पेरिफरी पर है. जब तक ये दरवाजे नहीं खुलेंगे, तब तक सचमुच राजनीतिक हक नहीं मिलेगा. दलित पर मैं थोड़ा फोकस करना चाहता हूं, जब सिस्टम बंद होता है, तो सबसे ज्यादा दबाव सबसे कमजोर पर पड़ता है. जो ताकतवर है वो बंद सिस्टम में घुसकर भी अपना रास्ता निकाल सकता है, मगर जो ऐसा नहीं है, उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है.
मेरे परिवार में जाति की बात नहीं होती थी
मैं जाति में यकीन नहीं करता. क्योंकि मेरी सोच है कि व्यक्ति एक होते हैं. मेरे परिवार में जाति की बात पहले होती ही नहीं थी. मालूम ही नहीं था मुझे. क्योंकि मेरी दादी के लिए, मेरे पापा के लिए, मेरे परदादा के लिए सब लोग एक जैसे थे. उनकी सोच ये थी कि भाई व्यक्ति होता है, उसकी क्षमता होती है, दलितों में ये होती है, बाकी लोगों में होती है, कोई फर्क नहीं पड़ता. रिएलिटी ये है कि दलित में, ओबीसी में, क्षमता में कोई फर्क नहीं है. इसलिए कहानी बताई वो स्कूल की. उसमें आप बच्चे को अनफेयर ट्रीटमेंट दे रहे हैं. पीछे बैठा दिया है. फिर बाद में कह रहे हैं कि ये ठीक से पढ़ नहीं पा रहा है.फिर कह रहे कि रिजल्ट ठीक नहीं आ रहा. तो मेरा कहना है कि कमी क्या दिखती है मुझे.
हर लेवल पर दलित लीडरशिप चाहिए. यूपी में आप मुझे पांच दलितों के नाम बता दीजिए जो नेता हैं. मुझे एक ही नाम सुनाई देता है. मायावती जी...दूसरा नाम ही नहीं सुनाई देता. अगर हम यूपी की बात करें तो लाइन लग जाए. इस ब्लॉक में ये नेता है. इस जिले में ये दर्जन नेता हैं. इस गांव में ये हैं. उन्हें हम सिस्टैमेटिक राइट्स दें. अगर आप पंचायत में काम करते हो और कांग्रेस में हो तो आपको ये अधिकार मिलेंगे. ये नहीं कि मुझे लगा कि पुनिया जी अच्छा काम कर रहे हैं, तो आगे बढ़ा दिया. मुझे लगा दिया कि कोई और काम नहीं कर रहा तो पीछे कर दिया. इससे नुकसान होता है, जब तक नीचे से नहीं उठाएंगे, तब तक बात नहीं बनने वाली. जो भी मैं सिस्टम की बात करता हूं, मेरी सोच है कि हम अधिकार की बात करें, पॉलिटिकल नेता है, काम करता है, डिसीजन में इसकी क्या आवाज है.सिस्टैमेटिकली. तो ये मैं आहिस्ते आहिस्ते करने की कोशिश कर रहा हूं.
पहले दलित कांग्रेस को दबाकर सपोर्ट करते थे
आप लोग दलित लीडरशिप हो, केपेबल लोग हो. और मैं अभी कांग्रेस की बात करूं. तो सिस्टैमेटिकली आपकी आवाज कांग्रेस में नहीं आती, एक एक करके आती है, आपने किसी से बात कर ली. काफी सीनियर नेता बैठे हैं, मगर इंस्टीट्यूशनली नहीं आती. मैं चाहता हूं आपकी बात आए तो इंडीविजुएल पर न आए कम्युनिटी के बेसिस पर आए. फिर आपको सचमुच में आपका जो पावर है, उसका फायदा होगा और जो दलित वर्ग है, उनको पता लगेगा कि भइया यहां पर बात सुनी जा रही है, सुनवाई हो रही है.
15-20, 25 साल पहेल कांग्रेस पार्टी को दलित वर्ग दबाकर सपोर्ट करता था. बैकबोन होता था कांग्रेस की, मैं चाहता हूं कि आज से 5-8 साल बाद फिर दलित ये फील करे कि हम कांग्रेस पार्टी की बैकबोन हैं. और ये फील करने के लिए उन्हें नहीं बदलना है, हमें बदलना है. हम उनको ये कभी नहीं समझा पाएंगे कि भइया आप हमारी बैकबोन हो. अगर हमारे फैसले में, संगठन में वो सचमुच में बैकबोन नहीं हैं. ये काम मैं सिर्फ दलितों के लिए नहीं करना चाहता. मैं जो कमजोर कम्युनिटी हैं. देखिए दलितों की बात होती है, यहां एक दलित महिला बैठी है. उनके ऊपर दलित का भेद होता है, फिर महिला का होता है, तो डबल होता है. पचास फीसदी महिलाएं, वो भी वंचित तबके से हैं. तो मेरी सोच है कि जो कमजोर है. उनको हम जोड़कर उनकी आवाज लोकसभा में, विधानसभा में डालें, सिस्टैमेटिकली, ये मेरी कोशिश है.
कोयला घोटाला: टकराव की दिशा में केंद्र और सीबीआई
नई दिल्ली : कोयला खदान आवंटन घोटाले में सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की इजाजत के सवाल पर केंद्रीय जांच ब्यूरो और केंद्र में टकराव सरीखी स्थिति बनती दिख रही है।
जांच एजेंसी सीबीआई ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उसे इस मामले में वरिष्ठ अधिकारियों पर मुकदमा दायर करने के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। केन्द्र सरकार का सीबीआई के विपरीत है। सीबीआई की ओर से पेश छह पृष्ठ के हलफनामे में दावा किया गया है कि न्यायालय की निगरानी वाले मामलों में मुकदमा दायर करने के लिए सरकार से मंजूरी या पहले अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
जांच ब्यूरो ने इस संबंध में 2जी स्पेक्ट्रम प्रकरण में शीर्ष अदालत के निर्णय का हवाला दिया है जिसमें सरकार के लिये अन्य मामलों में भी मुकदमा चलाने की अनुमति देने हेतु समय सीमा निर्धारित की गई है। हलफनामे में कहा गया है कि न्यायालय द्वारा जांच के आदेश दिये जाने वाले या उसकी निगरानी वाले मामलों में मुकदमा चलाने के लिये मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।
हलफनामे के अनुसार कि दिल्ली विशेष पुलिस इस्टेबलिशमेन्ट कानून की धारा 6-ए और भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 19 के बारे में शीर्ष अदालत के फैसलों में स्पष्ट है कि यदि न्यायालय से निर्देशित के निर्देश पर या न्यायलाय की निगरानी हो रही है तो ऐसे मामले में मुकदमा चलाने के लिये अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है।
इसके विपरीत, केन्द्र सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा था कि भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरण में न्यायालय की निगरानी वाले मामलों में भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ जांच के लिये पहले अनुमति लेना अनिवार्य है। केन्द्र सरकार के इस नजरिये का प्रतिवाद करते हुये जांच एजेन्सी ने अपने हलफनामे में कहा है कि न्यायालय की निगरानी वाले मामलों में पहले मंजूरी लेने की अनिवार्य का मतलब प्रकरण की जांच की निगरानी करने के न्यायालय के अधिकार को निलंबित करना होगा।
जांच एजेंसी ने मंजूरी के सवाल पर संविधान पीठ की उस व्यवस्था का भी हवाला दिया है, जिसके अनुसार संवैधानिक न्यायालय को सीबीआई से जांच का निर्देश देने का अधिकार है और ऐसे मामलों में किसी प्रकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। सीबीआई ने कहा है कि पहले मंजूरी लेने की अवधारणा के पीछे नौकरशाहों को 'दुर्भावनापूर्ण और परेशान करने वाली जांच' की 'धमकी' और 'अपमान' से संरक्षण प्रदान करने का मकसद है। हलफनामे के अनुसार, न्यायलाय की निगरानी वाले मामलों में अदालतें नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले या अभिभावक के रूप में काम करती हैं और अदालतों की निगरानी वाले मामलों में कानून की धारा 6-ए के तहत प्रदत्त संरक्षण का उद्देश्य पहले ही हासिल कर लिया गया होता है। इसतिलए ऐसे मामलों में सरकार से पहले मंजूरी लेना जरूरी नहीं है।
सीबीआई ने यह भी कहा है कि इसके अलावा धारा 6-ए की कोई अन्य व्याख्या इसे निर्थक बना देगी क्योंकि इससे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा और यह उस मकसद को ही निष्पफल कर देगी जिसके लिये इस धारा को शामिल किया गया है। जांच एजेन्सी ने एक अन्य अर्जी में शीर्ष अदालत से कोयला खदान आबंटन घोटाला प्रकरण में अपने आतंरिक और विशेष वकीलों के साथ तथ्यों को साझा करने की अनुमति मांगी है।
जांच एजेन्सी ने कहा है कि अभियोजकों और विशेष वकीलों के नाम सीलबंद लिफाफे में 29 अगस्त तक न्यायालय को सौंप दिए जाएंगे। न्यायालय ने आठ मई को सीबीआई को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि जांच के विवरण किसी भी व्यक्ति या मंत्री सहित किसी प्राधिकारी या विधि अधिकारी और सीबीआई के वकीलों के साथ साझा नहीं किए जाएं। जांच एजेन्सी ने इस आदेश में संशोधन का अनुरोध करते हुये कहा है कि इन मामलों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिये जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य और दूसरी सामग्री की स्वीकार्यता के बारे में जांच की आवश्यकता है। फाइनल रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिये ऐसे मामले के सारे तथ्यों पर वकीलों और अभियोजकों के साथ विचार विमर्श की आवश्यकता है।
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डावांडोल होती अर्थव्यवस्था से घबड़ाई सरकार, सोना गिरवी रखने के दिए संकेत
डॉलर के मुकाबले रुपए के लगातार कमजोर होने और सेंसेक्स में भारी गिरावट से घबड़ाई सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सोना गिरवी रखने पर विचार कर रही है।
सोना एक बार फिर महंगा हो गया है। घरेलू स्तर पर रुपये में रिकॉर्ड गिरावट रहने से आयात महंगा होने की वजह दिल्ली सर्राफा बाजार में आज सोना 500 रुपये चढकर नौ माह से अधिक के उच्चतम स्तर 32000 रुपये प्रति दस ग्राम पर पहुंच गया और चांदी 1050 रुपये चढ़कर 54,800 रुपये प्रति किलोग्राम पहुंच गया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शुरूआती कारोबार के दौरान सोना सात जून के बाद की ऊंचाई 1406.04 डालर प्रति औस पर पहुंच गया है। हालांकि अमेरिका सोना वायदा 0.1 फीसदी की मामूली गिरावट के साथ 1402.71 डालर प्रति औस रह गया। चांदी भी 0.6 प्रतिशत फिसल गयी। जानकारों का कहना है कि रुपये में आई रिकॉर्ड गिरावट के कारण आयात और महंगा हो गया है जिसके कारण पीली धातु की चमक बढी है। सरकार कीमती धातुओ का आयात शुल्क पहले ही बढा चुकी है। इसके अलावा त्यौहारी सीजन के कारण मांग रहने से कीमतें आसमान छू रही हैं।
1991 की क्यों याद आयी बार बार
क्यों सांड़ों और भालुओं के इस आईपीएल को
तौल रहे थे 1991 के पैमाने से
अब राज वह भी खुल रहा है
तब भी विदेशी कर्ज
और डालर की महिमा से
सोना रखा था गिरवी
उसी आधार पर
अमेरिकी देवभूमि से
भारत मर्त्यपर उतर आया
कारपोरेट देवमंडल
गलत फहमी में मत रहना
कि हम चुनते हैं प्रधानमंत्री
चलाओ जितना चाहे अभियान
करलो देश को गुजरात
होइहिं वहीं जो अमेरिका रचि राखा
अब कोई उनसे पूछे
सोना गिरवी रखने जैसे भुगतान संकट
को सुलझाने जो हुआ ग्लोबीकरण
तो फिर क्यों गिरवी पर रखते हो सोना?
अब कोई उनसे पूछे
जब पूरा देश बेच डाला
बचाया नहीं कोई कोना
फिर क्यो गिरवी रखते हो सोना
प्रिज्म के हवाले कर दी
हमारी उंगलियों की छाप
पुतलियों की तस्वीर तक
कर दी कारपोरेट हवाले
निजता गोपनीयता तो क्या
राष्ट्र की एकता और अखंडता भी किया
रख दिया दांव पर
नया राज्यफिर न बनेगा
अब करते हो घोषणा
सुलगाकर चप्पे चप्पे दावानल
आंतरिक सुरक्षा केये हवाले
सीआईए और मोसाद के
डुबोया हमें रक्तनदियों में
आतंक के खिलाफ युद्ध के बहाने
गृहयुद्ध में झोंका देश
तो अब क्यों रखते हो
फिर सोना गिरवी पर
विदेशी कर्ज डालरों में हमने नहीं ली
डालरों की जमाकोरी हमने नहीं की
विदेशी दौरे पर गये नहीं कभी
तो कैसे छूते डालर भाई
देश विदेश में डालर से
जो एस्सेट खरीजदते
और मंदी की आड़ में लाखों करोड़
की चैक्स छूट वसूलते
हर साल,उसका भी राज खुला है भइया
अब बताओ किस वित्तीयघाटा
के लिए फिर गिरवी पर
ऱख रहे हो सोना
इतने किये सुधार
खंडित जनादेश के बावजूद
बदल डाले सार कानून
रोज किया संविदान का कत्ल
लोकतंत्र को कर दिया तालाबंद
सिर्फ अबाध पूंजी प्रवाह के लिए
आर्थिक नीतियों की निरंतरता रही जारी
जारी रहा धर्नमोन्मादी तांडव
नरसंहार होते रहे
फिर भी गिरवी पर रखते हो सोना
विकास दर और विदेशी रेटिंग
का समीकरण भी नहीं है राज कोई
राजनीतिक बाध्यताओं का खेल
सर्वदलीय सहमति आईपीएल है
केतो को कर दिया कत्ल
हरियाली नंगी हो गयी
बलात्कार की संस्कृति जोरों पर
कृषि विकास शूनयहै
तो औद्योगिक उत्पादन भी शून्य
यह तुम्हारा वित्तीय प्रबंधन
मौद्रिक कवायद से शेयर कैसिनों में
अरबों का होता वारा न्यारा
हमारे हिस्से मंहगाई,मुद्रास्फीति
और नकद सब्सिडी के साथ
कारपोरेट सामाजिक योजनाएं
फिर भी रखते हो
गिरवी पर सोना
बढ़ता राजस्व और चालू खाता घाटा, धीमी होती विकास दर और कमजोर होते रुपये के दबाव से सरकार सकते में है. बदहाल इकोनॉमी को सही रास्ते पर लाने के लिए सरकार सोना गिरवी रख सकती है. इस ओर इशारा किया है वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने.
आनंद शर्मा ने कहा, 'हमारे पास 31000 टन सोना है. अगर हम 500 टन सोने को गिरवी रखकर नकद उगाहने की कोशिश करते हैं तो चालू खाता घाटे का निपटारा हो सकता है. यह एक सुझाव मात्र है. 2009 में भी हमने ऐसा किया था.'
हालांकि आनंद शर्मा ने इशारों में यह भी साफ किया कि सरकार ऐसा करने वाली है इसपर कोई फैसला नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि अलग परिस्थितियों का अलग ढंग से सामना करना होगा. नई चुनौतियों का सामना करने की जरूरत है.
आनंद शर्मा ने कहा, 'क्या हम कुछ कर सकते हैं, का सवाल नहीं है. मेरा मानना है कि नई सोच लाने की जरूरत है. पर यह आरबीआई और वित्त सचिव को सोचना है कि ऐसी परिस्थिति के समाधान के लिए क्या किया जाए?'
गौर करने वाली बात है कि मंगलवार को रुपये में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई. डॉलर के मुकाबले रुपया 66.24 पर बंद हुआ. यह अब तक का सबसे निचला स्तर है. आज के कारोबार में 194 पैसे की गिरावट दर्ज की गई.
वहीं, शेयर बाजार में भी भारी गिरावट दर्ज की गई. प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 590.05 अंकों की गिरावट के साथ 17,968.08 पर और निफ्टी 189.05 अंकों की गिरावट के साथ 5,287.45 पर बंद हुए.
देश के शेयर बाजारों में मंगलवार को भारी गिरावट दर्ज की गई. प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 590.05 अंकों की गिरावट के साथ 17,968.08 पर और निफ्टी 189.05 अंकों की गिरावट के साथ 5,287.45 पर बंद हुए.
बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 97.41 अंकों की गिरावट के साथ 18,460.72 पर खुला और 590.05 अंकों या 3.18 फीसदी की गिरावट के साथ 17,968.08 पर बंद हुआ. दिन भर के कारोबार में सेंसेक्स ने 18,460.72 के ऊपरी और 17,921.82 के निचले स्तर को छुआ.
सेंसेक्स के 30 में से तीन शेयरों में तेजी रही. इंफोसिस (0.91 फीसदी), डॉ. रेड्डीज लैब (0.53 फीसदी) और सेसा गोवा (0.18 फीसदी) में सर्वाधिक तेजी रही.
सेंसेक्स में गिरावट वाले शेयरों में प्रमुख रहे भेल (9.49 फीसदी), एचडीएफसी बैंक (8.04 फीसदी), एचडीएफसी (7.70 फीसदी), एनटीपीसी (5.86 फीसदी) और जिंदल स्टील (5.68 फीसदी).
मंगलवार को देश की मुद्रा रुपये ने भी डॉलर के मुकाबले नया ऐतिहासिक निचला स्तर छू लिया. मुंबई में अंतर बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपये ने डॉलर के मुकाबले नया ऐतिहासिक निचला स्तर 66.07 को छू लिया. इससे पहले 22 अगस्त को रुपया 65.56 के निचले स्तर पर पहुंच गया था. दोपहर बाद के कारोबार में हालांकि रुपया थोड़ा संभला था और उसे 65.92 के स्तर पर देखा गया.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी 50.00 अंकों की गिरावट के साथ 5,426.50 पर खुला और 189.05 अंकों या 3.45 फीसदी गिरावट के साथ 5,287.45 पर बंद हुआ. दिन भर के कारोबार में निफ्टी ने 5,427.40 के ऊपरी और 5,274.25 के निचले स्तर को छुआ.
बीएसई के मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों में भी गिरावट दर्ज की गई. मिडकैप 112.50 अंकों की गिरावट के साथ 5,278.28 पर और स्मॉलकैप 89.79 अंकों की गिरावट के साथ 5,199.66 पर बंद हुआ.
बीएसई के 13 में से एक सेक्टर सूचना प्रौद्योगिकी (0.16 फीसदी) में तेजी रही.
गिरावट वाले सेक्टरों में प्रमुख रहे बैंकिंग (5.34 फीसदी), पूंजीगत वस्तु (4.71 फीसदी), बिजली (4.51 फीसदी), रियल्टी (3.95 फीसदी) और सार्वजनिक कंपनियां (3.80 फीसदी).
बीएसई में कारोबार का रुझान नकारात्मक रहा. 719 शेयरों में तेजी और 1538 में गिरावट रही, जबकि 138 शेयरों के भाव में बदलाव नहीं हुआ.
5
बुनियादी ढांचे की 1.83 लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को मंजूरी
नई दिल्ली : निवेशकों को लुभाने के लिए सरकार ने बिजली और अन्य बुनियादी क्षेत्रों की 1.83 लाख करोड़ रुपए की 36 परियोजनाओं को मंजूरी दी है जो नियामकीय बाधाओं के कारण अटकी पड़ी थीं। यह बात वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज कही।
इनमें 83,773 करोड़ रुपए के निवेश वाली 18 बिजली परियोजनाएं तथा सड़क, रेलवे, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे क्षेत्रों की 18 अन्य परियोजनाएं शामिल हैं।
चिदंबरम ने यहां संवाददाताओं से कहा कि कल बहुत सी परियोजनाओं पर विचार करने के लिए सीसीआई की बैठक हुई। उसने कुल 1.83 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंजूरी दी, हम यह संदेश दे रहे हें कि हम निवेश चक्र को फिर से शुरू करने के इच्छुक हैं। यह चक्र शुरू हो गया है और हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं।
चिदंबरम ने कहा कि बिजली क्षेत्र की परियोजनाओं के अलावा नौ अन्य परियोजनाओं को मंजूरी दे दी गई है जिनके लिए बैंकों ने 1,484 करोड़ रुपए का वितरण कर दिया है। बिजली क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए ईंधन आपूर्ति समझौता छह सितंबर तक समझौता होगा जबकि यह समयसीमा पहले 31 अगस्त थी।
उन्होंने कहा कि लंबित नौ परियोजनाओं के संबंध में कोई समस्या नहीं है। इन सबको सुलझा लिया गया है। सिर्फ संबद्ध मंत्रालयों को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के सामने समय-समय पर कार्रवाई रपट सौंपने की जरूरत है। सीसीआई ने 85,000 करोड़ रुपए से अधिक की अन्य नौ परियोजनाओं की समीक्षा भी की।
वित्त मंत्री ने कहा कि बैंकों ने बिजली क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए 30,000 करोड़ राशि का वितरण कर दिया है और अब मंजूरी मिलने के बाद वे इन परियोजनाओं के लिए और धन मुहैया कराएंगे।
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मानसून सत्र के बाद डीजल के दाम में हो सकती है 3 रु. की वृद्धि
नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र अगले सप्ताह खत्म होने के बाद डीजल की कीमतों में कम से कम तीन रुपए लीटर की बढ़ोतरी की जा सकती है, क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपया और कमजोर होने से सरकार का ईंधन सब्सिडी बिल और बढ़ने की आशंका है।
पेट्रोलियम मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने कहा कि डीजल कीमतें बढ़ाने का हालांकि, फिलहाल कोई प्रस्ताव उनके पास नहीं है, लेकिन रुपए में गिरावट चिंता का विषय है।
डॉलर के मुकाबले रुपया 66 का स्तर पार कर जाने के साथ सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को विदेश से कच्चा तेल खरीदने पर अधिक बिल चुकाना पड़ेगा। यदि ईंधन के दाम नहीं बढ़ाए जाते हैं तो खरीद और बिक्री के अंतर की भरपाई सरकार को अपने खजाने से करनी पड़ेगी।
मोइली ने संवाददाताओं से कहा, 'मैंने दाम (डीजल के) बढ़ाने पर फिलहाल विचार नहीं किया है, लेकिन भविष्य के बारे में मैं कुछ कह नहीं सकता।'
तेल कंपनियों को डीजल के मौजूदा बिक्री मूल्य पर उसकी वास्तविक लागत के मुकाबले 10.22 रपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है। महीने की शुरुआत में यह नुकसान 9.29 रुपये लीटर पर था। मई में यह नुकसान 3 रुपये लीटर से भी कम था। डीजल के दाम में तेल कंपनियां 50 पैसे लीटर हर महीने बढ़ोतरी कर रही हैं, लेकिन रुपये के तेजी से गिरते मूल्य की वजह से उनका नुकसान बढ़ता जा रहा है।
तेल कंपनियों को मिट्टी तेल पर 33.54 रुपये प्रति लीटर और घरेलू गैस सिलेंडर पर 412 रुपये प्रति सिलेंडर का भी नुकसान हो रहा है
7
खाद्य विधेयक पर खर्च से राजकोषीय घाटा बढेगा: उद्योग जगत
उद्योग जगत का मानना है कि खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम से सरकारी खजाने पर हजारों करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और इससे राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है। उद्योग मंडल सीआईआई के अध्यक्ष क्रिस गोपालकष्णन ने कहा कि अभी इस तरह के भारी खर्च से निश्चित रूप से राजकोषीय स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इसका प्रबंधन किए जाने की जरूरत है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम खाद्य सुरक्षा विधेयक सोमवार को लोकसभा में पारित हो गया। इससे देश की दो-तिहाई आबादी को हर महीने पांच किलोग्राम अनाज 1 से 3 रुपये किलो की दर पर पाने का कानूनी अधिकार मिलेगा।
एसोचैम के अध्यक्ष राणा कपूर ने कहा कि जहां तक अतिरिक्त बोझ का सवाल है, यह खाद्य सब्सिडी के लिए सालाना 25,000 करोड़ रुपये का होगा। हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने जोड़ा कि आम आदमी को इससे मिलने वाला लाभ लागत से कहीं अधिक होगा।
इसे दुनिया की सबसे बड़ी योजना माना जा रहा है। सरकार 67 फीसदी आबादी को सालाना 6.2 करोड़ टन चावल, गेहूं और मोटे अनाज की आपूर्ति पर सालाना 1,25,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी।
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आर्थिक सुनामी की ओर बढ़ रहा है देश: विपक्ष
विपक्ष ने आज आरोप लगाया कि सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था 1991 के संकट की स्थिति से दूर नहीं है और हालात आर्थिक सुनामी की ओर बढ़ रहे हैं।
लोकसभा में नियम 193 के तहत देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विशेष चर्चा की शुरुआत करते हुए कम्युनिस्ट पार्टी के गुरूदास दासगुप्ता ने कहा कि सरकार में अर्थशास्त्रियों की त्रिमूर्ति (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और वित्त मंत्री पी चिंदबरम) के बावजूद अर्थव्यवस्था हर क्षेत्र में न केवल सिकुड़ रही है, बल्कि यह दिवालिया हो गई है।
उन्होंने कहा कि देश के आर्थिक हालात इतने खराब और अराजक हो चुके हैं कि 1991 का आर्थिक संकट अब दूर नहीं है, एक तरह की आर्थिक सुनामी आई है, जिसमें करोड़ों देशवासियों की जीविका प्रभावित हो रही है, करोड़ों लोग रोजगार गवां रहे हैं। कृषि, विनिर्माण, विदेशी मुद्रा भंडार, सेवा क्षेत्र सहित सभी क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं।
कम्युनिस्ट नेता ने कहा कि यह सरकार समावेशी विकास और समावेशी अर्थव्यस्था की बात करती है, लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। उन्होंने कहा कि मनरेगा और कल सदन में पारित हुए खाद्य सुरक्षा विधेयक इस बात के सुबूत हैं कि विकास की दौड़ में समाज का बड़ा हिस्सा वंचित और भूखा है। इस वंचित समाज को कुछ दिन का रोजगार देने के लिए पहले मनरेगा और भूखों का दो जून की रोटी देने के लिए कल खाद्य सुरक्षा विधेयक लाया गया।
9
मुनाफे वाले बैंकिंग उद्यम की स्थापना की जाएगी : अनिल अंबानी
मुंबई. उद्योगपति अनिल अंबानी ने मंगलवार को भरोसा जताया कि मुनाफे वाले बैंकिंग उद्यम की स्थापना की जाएगी और कहा कि प्रस्तावित बैंक की मदद से रिलायंस कैपिटल का ऋण मौजूदा स्तर से घटकर चौथाई स्तर पर रह जाएगा और इसे अगले तीन साल में एक अलग कंपनी के तौर पर सूचीबद्ध कराया जायेगा.
रिलायंस कैपिटल के शेयरधारकों को संबोधित करते हुये अंबानी ने कहा कि प्रस्तावित बैंकिंग कंपनी का जो तुरंत फायदा होगा वह यह होगा कि कंपनी का समेकित कर्ज 20,000 करोड़ रुपये से घटकर 5,000 करोड़ रुपये रह जायेगा.
रिलायंस कैपिटल के चेयरमैन ने कहा बैंक की दीर्घकालिक वृद्धि की संभावनाओं के अलावा प्रस्तावित बैंक मुनाफा कमाने वाला संस्थान होगा और इसका आपकी कंपनी को जो तुरंत फायदा होगा वह यह कि हमारे तमाम वाणिज्यिक वित्त व्यावसाय को प्रस्ताविक बैंक में स्थानांतरित करने से हमारा समेकित कर्ज 20000 करोड़ रुपये से घटकर 5000 करोड़ रुपये रह जायेगा.
रिलायंस कैपिटल ने नये बैंक लाइसेंस के लिये रिजर्व बैंक को जून में आवेदन सौंपा है. रिलायंस कैपिटल उन 26 उद्योगों में शामिल हैं जिन्हांने बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन किया है। रिलायंस कैपिटल पहले से ही बीमा, म्युचुवल फंड और ब्रोकरेज क्षेत्र में कारोबार कर रहा है.
अंबानी ने कहा कि समूह के बैंकिंग क्षेत्र में पांव रखने से रिलायंस कैपिटल का ऋण इक्विटी अनुपात समूचे उद्योग जगत के मानक से भी बेहतर होकर 0.5 से 1 के स्तर पर आ जायेगा. उन्होंने कहा कि कंपनी के पास पूंजी की तंगी नहीं है और प्रस्तावित बैंक के लिये रिलायंस कैपिटल के शेयरधारकों को शुरआती पूंजी देने के लिये कहने की कोई योजना नहीं है.
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Our self-flagellation partly to blame for India's pain: Jairam Ramesh
Jairam Ramesh has said the Indian economy is not alone in battling strong economic headwinds and all emerging markets are experiencing severe stress.
Editor's Pick
ET SPECIAL:
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NEW DELHI: Rural Development MinisterJairam Ramesh has said the Indian economyis not alone in battling strong economic headwinds and all emerging markets are experiencing severe stress, but the sense of crisis appears outsized in India because of its penchant for "self-flagellation".
The outspoken Ramesh, in an interview with ET, also took head-on criticism of the government for its various entitlement schemes, chided industry and blasted BJP, especially singling out Narendra Modi and former finance minister Yashwant Sinha, blaming the latter as the "single most destabilising factor in government-Opposition relations".
During the wide-ranging interview that spanned economics, social justice and politics, Ramesh said while India was going through difficult days, some of its present economic pain was real and some were manufactured.
"Brazil, Indonesia are in far worse condition; in China, there has been a definite slackening of growth. All emerging markets are under stress and strain. India appears to be more because we are adept at self-flagellation," he said.
No 'Right Time' for Food Bill
"When the going is good our swagger is unbearable, and when the going gets tough our despondency is equally unbearable... We have three years of 8.5% growth and we said that we have arrived on the world stage as a superpower, there was a swagger. The swagger is as irrational as the despondency," Ramesh said.
Long viewed as the enfant terrible of the UPA government, Ramesh is viewed by many as one of the main architects of Congress' leftward tilt, providing the intellectual firepower for several of its populist interventions and legislations on land acquisitions and food security.
The former IIT-Mumbai and MIT alumnus, who held charge of the environment ministry before being shifted to the rural development ministry, has been blamed in some quarters for the morass the Indian economy finds itself in, a suggestion he termed "ridiculous" and "ill-informed allegations that fly in the face of facts".
Ramesh, 59, defended the government's various legislations, especially the land acquisition bill, which he is piloting in Parliament, and the food security bill. He said the land bill, which has been mostly panned by industry, was fair and redressed historic injustices. "Which world is industry living in? ... All of us have had it easy in the last 50 or 60 years — those part of the modern economy. We have benefited from it, but the tribal and the poor have not benefited from it," he said.
On whether it was the right time to bring in the food security bill, which will entail costs of several thousands of crores annually and could burden already-strained public finances, he said: "No time is the right time. You've got to do what you have to do, there is no such thing as an ideal time. I don't think the passage of the bill is in lieu of reviving economic growth. It is not anybody's case that the bill should take precedence over economic growth; both are essential.
Both are two sides of the same coin. The centrality of reviving economic growth cannot be denied." He, however, kept his sharpest barbs for BJP, saying the main Opposition party was polarising the electorate ahead of the national elections next year and its governance plank was a "mukhota" (mask).
"What is happening in Uttar Pradesh is only a curtain-raiser... The manner in which RSS and VHP have upped the ante in UP clearly shows the path BJP under Modi will take. Governance issues will be a mukhota... I see a determined effort to polarise an election, but giving a veneer of governance," he said.
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Tasher Desh
Tasher Desh (The Land of Cards) | |
---|---|
Directed by | Q |
Produced by | NFDC (India) / Overdose Art Pvt Ltd / Dream Digital Inc / Anurag Kashyap Films / Entre Chien Et Loup |
Written by | Q/ Surojit Sen |
Screenplay by | Q/ Surojit Sen |
Story by | Rabindranath Tagore |
Based on | Tasher Desh by Rabindranath Tagore |
Starring | Anubrata Joyraj Tillotama Shome Rii Tinu Verghese Immaduddin Shah / Soumyak Kanti |
Music by | Neel Adhikari/ Miti Adhikari |
Cinematography | Manu Dacosse/ Q |
Editing by | Nikon |
Distributed by | NFDC (India) / Insomnia World sales |
Release date(s) | 23 August 2013, (India)[2] |
Running time | 114 minutes |
Country | India |
Language | Bengali |
Tasher Desh (English: The Land of Cards) is a 2012 Bengali fantasy film directed by Q. The film has been described as a "trippy adaptation" of the Rabindrath Tagore's namesake play.[3] It features Soumyak Kanti DeBiswas, Anubrata Basu, Tillotama Shome, Rii, Joyraj Bhattacharjee, Tinu Verghese, and Immaduddin Shah in the lead roles.[4] Tasher Desh made its international premiere on November 11, 2012 at the 7thRome International Film Festival.[5][6] The film is having its release in India on August 23rd, 2013. [7]
Contents
[hide]Plot[edit source | editbeta]
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Cast[edit source | editbeta]
- Tillotama Shome as Queen
- Imaad Shah as Ruiton
- Anubrata Basu as Friend
- Rituparna Sen as Horotoni / Widow
- Maya Tideman as Tekkani
- Soumyak Kanti De Biswas as Prince
- Joyraj Bhattacharjee as Storyteller / Tash King
- Tinu Verghese as Oracle
References[edit source | editbeta]
- ^ Sen, Zinia (14 November 2012). "Q plays the Roman card". Times of India. Retrieved 2 December 2012.
- ^ Template:Http://tollywoodhamaka.com/news/qs-tasher-desh-aims-an-august-release.html
- ^ "Tasher Desh trailer creates a buzz". Times of India. 20 November 2012. Retrieved 2 December 2012.
- ^ "Dasher Desh". Times of India. 20 November 2012. Retrieved 2 December 2012.
- ^ "'Tasher Desh' to have world premier at Rome film fest". Times of India. 6 November 2012. Retrieved 2 December 2012.
- ^ "Bollywood turns our collective brains into chicken-feed: Director Q". Zee News. 25 November 2012. Retrieved 2 December 2012.
- ^ http://tollywoodhamaka.com/news/qs-tasher-desh-aims-an-august-release.html
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टैगोर की ताशेर देश मेरी फिल्म शैली से मेल खाती है ...
hindi.business-standard.com/storypage_hin.php?autono=142724
16-08-2013 - उन्होंने कहा, यहां मैंने सौ वर्ष पहले लिए गए संवादों को जस का तस उपयोग किया है। यह मूलत: टैगोर का काम है और मैं इसमें छेड़छाड़ नहीं करना चाहता था। ताशेर देश दुनिया भर के कई प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की जा चुकी ...
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ताश का देश - Jeevan Shaily - LiveHindustan.com
www.livehindustan.com/news/.../article1-citi-event-50-50-187201.html
26-08-2011 - गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के शताब्दी वर्ष में ताशेर देश डांस-ड्रामा दिल्ली के श्रीराम सेंटर में प्रस्तुत किया गया। ताश को बांग्ला भाषा में ताशेर कहा जाता है।
76 - होम
www.livehindustan.com/home/search/%20डांस%20बार/76.html
गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के शताब्दी वर्ष में ताशेर देश डांस-ड्रामा दिल्ली के श्रीराम सेंटर में प्रस्तुत किया गया। ताश को बांग्ला भाषा में ताशेर कहा जाता है। आगे पढे · मेहनत करना रितिक से सीखो तुम में से ज्यादातर बच्चों को रितिक रोशन ...
अनुराग कश्यप (निर्देशक) - विकिपीडिया
hi.wikipedia.org/wiki/अनुराग_कश्यप_(निर्देशक)
2012, ताशेर देश, हाँ. 2012, शहीद, हाँ, 2012 टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में विश्व प्रीमियर. 2012, पेड्लेर्स, हाँ. 2013, लूटेरा, हाँ, हाँ, भावी-प्रदर्शन (5 जुलाई 2013 को प्रदर्शन की सम्भावना). 2013, अगलि, हाँ, हाँ, भावी-प्रदर्शन. 2013, हसी तो फसी ...
ताश की तरह कलाकार 10657581 - Dainik Jagran Hindi News
20-08-2013 - जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : श्रीराम सेंटर में सोमवार को गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की बेहतरीन कृति 'ताशेर देश ' का मंचन किया गया। समाज में 10657581.
new wave cinema from mumbai to bihar: इंडिया टुडे: आज तक
14-01-2013 - अनुराग बांग्ला में क्यू की फिल्म ताशेर देश, मराठी फिल्मकार सचिन कुंडलकर की अय्या और बेदब्रत पाइन की चटगांव को भी प्रोड्यूस कर चुके हैं. वे कौल की अगली फिल्म भी प्रोड्यूस करते लेकिन कौल के निधन की वजह से ऐसा नहीं हो सका.
ताशेर देश की चित्र
ताश के पत्तों की शक्ल में मंच पर उतरे कलाकार - Yahoo!
hindi.yahoo.com/ताश-के-पत्तों-की-शक्ल-में-मंच-पर-17455...
19-08-2013 - श्रीराम सेंटर में सोमवार को गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की बेहतरीन कृति 'ताशेर देश (द लैंड ऑफ द कार्ड)' का मंचन किया गया। समाज में व्याप्त कुंठा को बयां करती इस नृत्य नाटिका का दर्शकों ने खूब आनंद उठाया। अभिनेत्री सुषमा सेठ ...
Tasher Desh movie review: Wallpaper, Story, Trailer at Times of India
अनुवादित: Tasher देश फिल्म समीक्षा: वॉलपेपर, कहानी, टाइम्स ऑफ इंडिया में ट्रेलर
With Tasher Desh, bad boy Q has taken the giant leap from pirated DVDs and ... But this is not the vivacious woman from card country who's broken the shackles ...
I am deconstructing Rabindranath Tagore in `Tasher Desh ...
zeenews.india.com/.../i-am-deconstructing-rabindranath-tagore-in-tasher-...
अनुवादित: मैं `Tasher देश में रवीन्द्रनाथ टैगोर deconstructing हूँ...
It took almost a decade for the filmmaker to bring `Tasher Desh` on-screen, ... embarks on an adventure and arrives in a country of cards, where they are to be ...
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