अदालती रस्साकशी की वजह से पंचायत चुनावों में जो बेलगाम खर्च हो गया है, वह कौन देगा?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
पंचायत चुनावों में के लिए राज्य सरकार से 209 करोड़ रुपये लिये थे राज्य चुनाव आयोग ने। सामने पालिका चुनाव है।फिर ख्रच का मामला है।गनीमत है कि पालिका चुनाव के लिए कोई खास विवाद नही है और न पंचायत चुनावों की तरह आयोग केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग कर रह है। लेकिन राज्य सरकार और चुनाव आयोग के रिश्ते में दूसरी वजह से खटास पैदा होने की नौबत आ गयी है।पंचायत चुनावों में बेलगाम खर्च हो गया है।
चुनाव प्रक्रिया के दौरान विपक्ष ने हिंसा और अराजकता के जो आरोप लगाये, उससे सुरक्षा इंतजामात कड़े करने की अनिवार्यता हो गयी।सुरक्षा इंतजाम के लिए ही मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के मुताबिक चुनाव हो गये तो माकपा भी मानने लगी कि हिंसा को मुद्दा बनाना गलत हो गया।दीदी को सकारात्मक मतदान से ही भारी जीत मिली है।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकीलों को मुकदमे के बाबत जो फीस दी गयी, वह पंचायत चुनाव खर्च में शामिल है। अधिसूचना जारी होने के बावजूद चुनाव तिथियां बदलते रहने से नये सिरे से तैयारियां करनी पड़ीं तोपुरानी कवायद का पैसा भी खर्च में इजाफा करता रहा। सुरक्षा इंतजाम और चुनाव कर्मचारियों का खर्च भी बढ़ गया।बारिश के मौसम में चुनाव होने की वजह से जलयात्रा का खर्च जो अतिरिक्त हुआ,वह अलग है।
चुनाव आयोग ने जिलावार खर्च का ब्यौरा मंगाया है। यह ब्यौरा आयेगा तो कुल खर्च का अंदाजा हो सकेगा।
अब सवाल है कि अदालती रस्साकशी की वजह से पंचायत चुनावों में जो बेलगाम खर्च हो गया है, वह कौन देगा।राज्य सरकार ने अभी इस मांग को खारिज तो नहीं किया है।लेकिन राज्य की आर्थिक बदहाली के मद्देनजर राज्य चुनाव आयोग को खर्च हुआ पैसा कब मिलेगा,इसका पता नहीं चल रहा है।
पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने अभी खामोशी बनाये रखी है।
अब हालत यह है कि पालिका चुनाव के लिए आयोग ने तीन करोड़ रुपये मांगे हैं।जबकि आयोग को राज्य सरकार से अब तक सिर्फ 98 हजार रुपये मिले हैं।
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