असली चाल,अबाधित विदेशी पूंजी के लिए करों में राहत
असली खतरा,फिर तेल युद्ध का साया मंडराता
वधस्थल में अब अबाध भूमि अधिग्रहण
विकासदर,वित्तीय घाटा का खेल तेज इसीलिए
Are you for or against military action against Syria?
पलाश विश्वास
राष्ट्रद्रोही नहीं कोई आदिवासी
समझ लो भइये
राष्ट्रद्रोही नहीं कोई अस्पृश्य भूगोल
कश्मीर समेत सारा हिमालय,
दंडकारण्य समेत
समूचा आदिवासी भूगोल
पूरा का पूरा गोंडवाना
राष्ट्रद्रोही नहीं है
मणिपुर या पूर्वोत्तर का कोई कोना
राष्ट्रद्रोह नहीं है
जल जंगल जमीन
आजीविका और नागरिकता
की लड़ाई
कारपोरेट प्रोमोटर राज और
अबाध विदेशी पूंजी के विरुद्ध
जनांदोलन जनविद्रोह
भी राष्ट्रद्रोह नहीं
न राष्ट्रद्रोह है
कुड़नकुलम परमाणु संयंत्र
और परमाणु ऊर्जा का विरोध
राष्ट्रद्रोह नहीं है
डूब में सामिल गांवों की चीख
राष्ट्रद्रोही नहीं
बंधी हुई नदियों का सैलाब
न तपिश में गल रहे ग्लेशियरों
से उतरता हिमालयी सुनामी
राष्ट्रद्रोह है सही मायने में
जनता के विरुद्ध
निरंतर युद्ध और गृहयुद्ध
राष्ट्रद्रोह है
आर्थिक संकट का यह दुश्चक्र
और कालाधन का अबाध कारोबार
राष्ट्रद्रोह है अबाध भ्रष्टाचार
राष्ट्रद्रोह है निरंकुश कारपोरेट राज
कारपोरेट नीति निर्धारण भी राष्ट्रद्रोह
संविधान लागू करने की मांग
नहीं है, नहीं है,नहीं है
नहीं है राष्ट्रद्रोह
राष्ट्रद्रोह नहीं है
नहीं है, नहीं है, नहीं है
नहीं है कानून के राज
के लिए जनसंघर्ष,सत्याग्रह
राष्ट्रद्रोह नहीं है
जाति उन्मूलन की परिकल्पना
नहीं है, नहीं है,नहीं है
लोकतात्रिक संस्थानों के हक
में उठती आवाज
नागरिक और मानवाधिकार
के पक्ष में अभिव्यक्ति
राष्ट्रद्रोह नहीं है
नहीं नहीं नहीं है
राष्ट्रद्रोह है संविधान की हत्या
कारपोरेट हित में
राष्ट्रद्रोह है राजसूय यज्ञ
जनसंहार के लिए
राष्ट्रद्रोह है जनविरोधी
सत्ता में हिस्सेदारी
विचारधारा के नाम पर
विश्वासघात भी राष्ट्रद्रोह है
अब तक वे सिर्फ फाड़ रहे थे
अब तक सिर्फ वे मार रहे थे
अब तक वे सिर्फ
खूंटियों पर टांग रहे थे
हमारे पुरखों के नरमुंड
अब तक सिर्फ वे
कबंध बना रहे थे हमें
अब वे हमारा अचार भी डालेंगे
फाइव स्टार कार्निवाल में
हमारी फटी का मुरब्बा
बनाकर खा जायेंगे
अभयारण्य में जो हैं पशु
उनका अपना जीवन चक्र है
उनका अपना अलंघ्य व्याकरण है
कारपोरेट के व्याकरण को
भी नहीं मानते ये लोग
ये कोई सौंदर्यशास्त्र नही ंमानते
ये जीवन के विरुद्ध लोग हैं
ये मनुष्यता के युद्ध अपराधी हैं
रंगबिरंगे धर्मोन्माद के झंडेवरदार
आत्मघाती हिसा,अराजकता, सलवा जुड़ुम
दंगों के कारोबारी हैं ये
ये हैं युद्ध अपराधी आदमखोर
ये बलात्कारी हैं नृशंस
नरमांस का भोज लगाते ये
मांस के दरिया के गोताखोर
प्रकृति का सर्वनाश करते
ये हमारे भाग्य विधाता
कहा और बार बार कहा
चिदंबरम ने
छपा और बार बार छपा
प्रसारित भी हुा रात दिन
सात दिन चौबीसों घंटे
अर्थ संकट के लिए प्रणव है जिम्मेदार
संसद सत्र जारी है
चिदंबरम साबित करें आरोप
वरना दे दें त्यागपत्र
राष्ट्रीय शर्म है
राष्ट्रपति ही अर्थव्वस्था
के दुष्काल के जिम्मेदार
तो उनके खिलाफ
क्यों नहीं लगाते महाभियोग
या फिर लोकगणराज्य की मर्यादा
के अनुकूल राष्ट्रपति ही
इस्तीफा क्यों नहीं दे देते
दरअसल यह दुरुपयोग है
संवैधानिक रक्षाकवच का
राष्ट्रपति के खिलाफ
न मुकमा चल सकता है
न जांच हो सकती है
राष्ट्रपति के विरुद्ध
हर घोटाला,
हर संकट
इसीलिए राष्ट्रपति के नाम
यह भी मैच फिक्सिंग
अजब है आईपीएल
कितनी सब्सिडी देते हैं वे हमें
क्या उर्वरक, रसाई गैस, भोजन
मिलाकर एक लाख करोड़ होंगे
लेकिन हार साल पांच सात
करोड़ टैक्स छूट
कारपोरेट हित में
सेज के लिए टैक्स होलीडे
उद्योग के लिए प्रोत्साहन
निर्यात के लिए करों में राहत
कितने लाख करोड़ हुए बूझो
अर्थव्यवस्था यह
उत्पादन प्रणाली के बिना है
अर्थव्यवस्था यह
वित्तीय नीतियों के बिना है
अर्थव्यवस्था यह
सिर्फ आउटसोर्सिंग है
अर्थव्यवस्था यह
जरुरी सेवाओं का बाजार है
अर्थव्यवस्था यह
कारपोरेट हित में
मौद्रिक कवायद है
अर्थव्यवस्था यह
घनघोर अस्पृश्यता है
अर्थव्यवस्था यह
चरम नस्ली रंगभेद है
अर्थव्यवस्था यह
निरंतर दमन है, उत्पीड़न है
नरसंहार है
अर्थव्यवस्था यह
बहिस्कार संसकृति की
अबाध निरंतरता है
आर्थिक नीतियों
आर्थिक सुधारों
अबाध कालाधन
अबाध विदेशी पूंजी
अबाध भ्रष्टाचार
की निरंतराता की तरह
अर्थव्यवस्था यह
भारतीय जनता के विरुद्ध
निरंतर युद्ध घोषणा है
खुला बाजार है देश अब
सटोरियों के हवाले
वायदा बाजार है
कि मुद्रास्फीति की कारोबार चले
सटोरियों के हवाले
आयात निर्यात है कि
मुनाफा हर कीमत का खेल चले
विदेशी मुद्राओं की दरें भी
सटोरियों के हवाले
रेटिंग भी करते सटोरिये
वित्तीय घाटा और विकास दर
के आंकड़ों के वे ही समर्त खिलाड़ी
उत्पादक शक्तियां और
सामाजिक शक्तियां भी
बाजार की छांव तले
हर किसी की उंगलियों की छाप कैद है
हर किसी की आंखों की पुतलियां कैद हैं
हर कोई प्रिज्म निगरानी की जद में
लिखने बोलने की छोड़ों
हमारे विचारों ौर सपनों पर भी पहरा है
रोबोट है पहरेदार
चूं तक कि नहीं कि गिलोटिन तैयार
हमारे चारों तरफ बहतीं खून की नदियां
और आपदाओं से घिरे हुए हैं हम
हमारी आपदाएं
हमारी भूख
हमारी बेरोजगारी
हमारी बेमौत मौत
हमारी हत्या
स्वजनों का नरसंहार
अबाध अश्वमेध यज्ञ
नरमेध का आयोजन
और यह अनंत वधस्थल का
अबाध लूटतंत्र
उनकी अर्थ व्यवस्था है
हमारी थाली में परोस दी अमीरी
मनरेगा का क्या हुआ
जने शहरी रोजगार योजना
से गंदी बस्तियों की बेदखली
कितनों को कहां कहां रोजगार मिला
सामाजिक योजनाओं किनके लिए
लाभार्थी वोट बैंक तो सधा
रोजगार का हुआ क्या
आरक्षित पद भी क्यों है खाली
खेतों की कर दी हत्या
तो क्या हुआ पुनर्वास का
बताओं किस किस को
कब कहां पुनर्वास मिला
विस्थापितों को
कितना कितना मुआवजा मिला
नगर महानगर और सेज
बना दिये अनगिनत
बच्चों को दी सर्वशिक्षा की खिचड़ी
जनवितरण प्रणाली का क्या हुआ
इतने ही थे सामाजिक सरोकार
तो अनिवार्य सेवाओं का
बाजार क्यों खुला
जितना खर्च कर रहे हैं अब
उससे कितना ज्यादा था
सब्सिडी का बोझ
तेल कंपनियों के घाटे
का हल्ला बहुत है
निजी कंपनियों को
तेल ब्लाकों का
मुफ्त उपहार किसने दिया
विदेशी कर्ज का भी हल्ला है बहुत
बतायें पहले कि
डालरो का जुलूस कहां निकला
विदेशों में किसका फैला कारोबार
संपत्तियां किसने अर्जित की
डालर के खर्च से
बदले में देश को क्या मिला
पहले यह भी बता दें
कोयला ब्लाक किसने बांटे
किसने बांटे स्पेक्ट्रम
किसने नाबालिग बच्चों
को बलात्कार विशेषज्ञ बनाये
किसने स्त्री को माल बनाया
किसने सेक्स का बाजार सजाया
कौन लाया चियरिनों का
टांग उठाउं जलवा
किसने प्ले बाय और प्ले गर्ल की इजाजत दी
किसने न्यूड का कल्चर किया चालू
किसने खोला ग्रुप सेक्स का क्लास रूम
गांवों में और कस्बों में
किसने सिखायी
नाबालिग बच्चों को
कंडोम और गर्भ निरोधक की खरीददारी
किसकी है यह बलात्कार संस्कृति
तेलयुद्ध की अब तैयारी है
तेल में भुने जाने की तैयारी भी कर लो भइये
खाद्य सुरक्षा दे दी
जमीन अधिग्रहण की बारी है
मुआवजा जमीन का दे देंगे चार गुणा
बहुत ठीक है
लेकिन खनिज के मूल्य का क्या
सुप्रीम कोर्ट का कहना है
जमीन जिसकी खनिज उसीका
जमीन की कीमत देगो तुम
खनिज की कीमत देगा कौन
भूमि सुधार पर कोई
बहस नहीं है भइये
सिंहद्वार पर दस्तक बहुत तेज है
जाग सको तो जाग जाओ भइये
अलगाव और बहिस्कार के इस तिलिस्म
के बाहर आ जाओ भइये
बात पचासी की नहीं है अब
यह लड़ीई है निनानब्वे की
समझ सको तो समझ जाओ भइये
डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान की मांग करते विपक्ष के हंगामे के बीच गुरुवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पेश कर दिया गया।
एक घंटे के स्थगन के बाद सदन की कार्यवाही शुरू होने पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक पेश कर दिया। विभिन्न दलों के सदस्य लगातार यह मांग करते रहे कि प्रधानमंत्री सदन में उपस्थित हों और रुपये की गिरावट को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दें।
इसके बाद सदन की कार्यवाही 12.30 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। इस महत्वपूर्ण विधेयक में कहा गया है कि निजी परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण से पहले 80 प्रतिशत भूस्वामियों और सार्वजनिक-निजी परियोजनाओं के लिए 70 प्रतिशत भूस्वामियों की सहमति लेना अनिवार्य होगा।
मिशन-2014 से पहले केंद्र की यूपीए सरकार आम आदमी को रिझाने की पूरी कोशिश कर रही है। इसी कोशिश के तहत आज लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश किया गया। कहा जा रहा है कि इस नए विधेयक में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित लोगों को न्याय दिलाने पर जोर होगा। बिल में ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण होने पर प्रभावित परिवारों को जमीन के बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्रों में दो गुना मूल्य देने का प्रस्ताव किया गया है।
इस विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि भूमि अधिग्रहण से प्रभावित लोगों को विकास में भागीदार बनाया जाए ताकि अधिग्रहण के बाद उनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति सुधरे। जयराम रमेश ने कहा कि यह विधेयक 'भूमि अधिग्रहण, पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास में पारदर्शिता तथा उचित मुआवजे का अधिकार विधेयक, 2012' भूमि अधिग्रहण मामलों में अब तक होने वाले अन्याय को दूर करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
सरकार ने इस दिशा में कदम उठाते हुए मजबूत कानूनी पूर्वापेक्षाएं तय की हैं जिन्हें भूमि अधिग्रहण से पहले पूरा करना होगा। यह विधेयक सदियों पुराने भूमि अधिग्रहण कानून 1894 की जगह लेगा जिसमें आज के हिसाब से अनेक कमियां हैं। इस विधेयक को दो सर्वदलीय बैठकों के बाद पेश किया जा रहा है जिसमें सरकार ने भाजपा नेता सुषमा स्वराज तथा वामदलों द्वारा सुझाए गए पांच प्रमुख सुझावों को स्वीकार किया है। मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून 1894 में बना था। सरकार इसे नए कानून से बदलने वाली है। हाल ही में यूपीए के महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा बिल को भी लोकसभा में मंजूरी मिली है।
Land Acquisition Bill debate in Lok Sabha today: Top 10 facts
Edited by Abhinav Bhatt (with PTI inputs) | Updated: August 29, 2013 19:36 IST
New Delhi: After scoring a major victory by getting its landmark food security scheme cleared by the Lok Sabha this week, the government hopes today to push through another reform that could serve as a mega vote-getter in the national elections. The land acquisition bill is being debated in parliament.
Here is your 10-point cheat-sheet for this big story:
The proposal establishes new rules for compensation for land acquired for infrastructure projects and industry, a move seen as raising costs but potentially reducing protests that have plagued India's industrialisation drive.
The legislation replaces a more-than-century-old law and has been championed by Congress vice-president Rahul Gandhi, and is seen as a key to the party winning votes in 2014 elections. Both Mr Gandhi and his mother, Congress president Sonia Gandhi, were present for the debate.
The most important feature of the bill is that it requires developers to get the consent of up to 80 per cent of people whose land is acquired for private projects. For public-private partnerships, the approval of 70 per cent of landowners is mandatory.
Land acquisition in states like Haryana and Uttar Pradesh for factories, roads and housing projects has sparked bitter clashes between farmers and state authorities, resulting in huge project delays.
The proposal asks for compensation of up to four times the market value of land in rural areas and two times the value in urban parts.
Business lobbies say they welcome land acquisition reform but fear the measure could push up property purchase costs by at least 40 to 60 per cent, making industrial projects financially unviable and sharply escalating housing costs.
A broad consensus was reached at a meeting between the government and the opposition on the main features of the bill in April. The government agreed to the demand of the main opposition party, the Bharatiya Janata Party, that land could be leased to developers so its ownership could remain with the landowners and give them a regular income.
The legislation includes resettlement and new skills training for people whose land is acquired.
Activists say the bill does not go far enough, and offers no safeguards about the protection of vast areas of common land.
The land bill is part of a string of reforms initiated by the government to draw more investment and kickstart growth before the 2014 elections.
Parliament Live: Voting on Land Acquisition Bill begins in Lok Sabha
INDIA TODAY ONLINE NEW DELHI, AUGUST 29, 2013 | UPDATED 20:18 IST
BJP chief Rajnath Singh.
After the passage of the landmark Food Security Bill, the Land Acquisition and Rehabilitation Bill was tabled in the Lok Sabha on Thursday amid ruckus by the Opposition members.
While the government has moved 165 amendments, the Opposition has moved as many as 116 amendments to the Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Bill, 2011, which seeks to replace the colonial-era Land Acquisition Act, 1894.
The most important feature of the bill is that the consent of 80 per cent of land owners concerned is needed for acquiring land for private projects and of 70 per cent landowners for public-private projects.
The bill also defines "public purpose" to include: Mining, infrastructure, defence, manufacturing zones, roads, railways, highways, and ports built by government and public sector enterprises, land for project-affected people, planned development and improvement of village or urban sites and residential purposes for the poor and landless and government-administered schemes or institutions, among others.
Highlights of the debate on the Land Acquisition Bill:
08.05 pm: Voting on Land Acquisition Bill begins in Lok Sabha
06.40 pm: Land Acquisition Bill should be enacted for the benefit of farmers, says Lalu
05.30 pm: Land Acquisition Bill must also take care of industry's concerns, says NCP MP Supriya Sule
4:33 pm: The Land Acquisition Bill will affect ownership pattern of share croppers, says CPI-M MP Basudeb Acharya.
4:04 pm: Government should not play mediator in land acquisition, says Trinamool MP Sudip Bandyopadhyay
4:02 pm: The Land Acquisition Bill should protect multi-crop land, says Trinamool MP Sudip Bandyopadhyay
3:51pm: Instead of feritle land, fallow land should be used for industrialisation, says JD-U MP Rajiv Ranjan Singh.
3:47 pm: The Land Acquisition Bill will be applicable on SEZs too, says Rural Development Minister Jairam Ramesh.
3:31 pm: Land Bill must tell farmers the purpose behind acquisition, says BSP MP Surendra Singh Nagar.
3:16 pm: Need a bill to curb the country's growing population since it is eating up land and river and forests, says JD-U MP Sharad Yadav.
3:13 pm: This Land Acquisition Bill will destroy farmers, says SP MP Mulayam Singh Yadav.
2:57 pm: Land Acquisition Bill is not a populist but a historic move, says Congress MP Meenakshi Natarajan.
2:49 pm: BJP will support any bill that helps rehabilitate evicted slum dwellers, says Rajnath Singh.
2:30 pm: Crop-producing land should not be acquired, says Rajnath Singh.
2:25 pm: Land Acquisition Bill has deviated from its main purpose, says BJP MP Rajnath Singh.
Read more at: http://indiatoday.intoday.in/story/land-acquisition-bill-lok-sabha-rahul-gandhi-farmers/1/304328.html
फूड बिल के बाद UPA ने चलाया अपना दूसरा चुनावी दांव, जमीन अधिग्रहण बिल लोकसभा में पेश
सोनिया गांधी
खाद्य सुरक्षा बिल के बाद सरकार का दूसरा गेमचेंजर माना जाने वाला भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पेश हो चुका है. जमीन अधिग्रहण के तरीकों में बदलाव करने के मकसद से इस बिल पर लोकसभा में बहस जारी है.
खाद्य सुरक्षा बिल के बाद सरकार की पूरी कोशिश भूमि अधिग्रहण बिल को पास कराने की है. जिस तरह से खाद्य सुरक्षा बिल सोनिया गांधी के दिल के बेहद करीब था उसी तरह से ये बिल राहुल गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है.
भट्टा परसौल में किसानों के पक्ष में प्रदर्शन करने के बाद से राहुल गांधी ने इस बिल पर काफी गंभीरता दिखाई थी. इस बिल को लेकर राहुल गांधी ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के साथ काफी बैठकें की. साथ ही इस मामले पर 2 बार सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई लेकिन मुश्किल ये थी कि कुछ लोगों को ये बिल किसानों के पक्ष में लगता तो कुछ को इंडस्ट्री के पक्ष में.
इस बिल को लेकर मोटे तौर पर सहमति बन गई है. हालांकि बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों ने तमाम संशोधन भी सुझाये हैं. राहुल गांधी के अलावा बीमारी के बाद सोनिया गांधी भी इस बिल पर बहस के दौरान संसद में मौजूद थी.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/jairam-ramesh-introduces-land-bill-in-lok-sabha-1-740438.html
जगत ने उठाए ७.५ अरब डॉलर विदेशी ऋ ण
इस साल अब तक ११ कंपनियों ने बॉण्ड बेचकर रिकॉर्ड ७.५ अरब डॉलर के विदेशी ऋण जुटाए, जो वर्ष २०१२ की मुकम्मल अवधि में इस तरीके से जुटाई गई रकम का ७५ प्रतिशत है।
मर्चेंट बैंकरों के मुताबिक कम-से-कम २.५ अरब डॉलर के बॉण्ड सौदे बिलकुल निकट भविष्य में होने वाले हैं, जबकि रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया अंतरराष्ट्रीय बॉण्ड बिक्री की तैयार कर रहे हैं।
एक मर्चेंट बैंकर ने बताया कि इस साल भारतीय कॉर्पोरेट जगत कम-से-कम २० अरब डॉलर के विदेशी ऋण जुटाने की तैयारी में है। ज्यादातर रकम की व्यवस्था बॉण्ड बिक्री के जरिये की जाएगी। बहरहाल, इस साल अब तक ११ कॉर्पोरेट ने १३ निर्गमों के जरिये बॉण्डों की बिक्री करके ७.४७२ अरब डॉलर पूंजी जुटाई, जबकि वर्ष २०१२ की पूरी अवधि में महज १० अरब डॉलर की विदेशी पूंजी जुटाई गई थी। रिलायंस इंडस्ट्रीज के पास फिलहाल ८४,००० करोड़ ヒपए की नकदी है। बावजूद इसके कंपनी २ अरब डॉलर की विदेशी पूंजी जुटाने की योजना बना रही है।
Thursday, 29 August 2013 10:38 |
*जनसत्ता 29 अगस्त, 2013 : अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रुपए की बदहाली ने आर्थिक मोर्चे पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। यूपीए सरकार यह कहते नहीं थकती कि विश्वव्यापी मंदी के दौर में भी उसने भारतीय अर्थव्यवस्था को संभाले रखा। लेकिन अब, जबकि वैसा वैश्विक परिदृश्य नहीं है, क्यों देश की अर्थव्यवस्था संकट में पड़ती दिख रही है? वित्तमंत्री कहते रहे हैं कि रुपए की कीमत में आई गिरावट से घबराने की जरूरत नहीं है, जल्दी ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। मगर ऐसे आश्वासन बार-बार अर्थहीन साबित हुए हैं। यों मुद्रा बाजार में थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव आम बात है। लेकिन कुछ महीनों से डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में आती गई गिरावट एक अपूर्व स्थिति है। इस साल के शुरू से अब तक रुपए का बीस फीसद तक अवमूल्यन हो चुका है। मंगलवार को एक डॉलर का मूल्य छियासठ रुपए से कुछ ऊपर पहुंच गया। फिर अगले ही रोज यह रिकार्ड टूट गया; एक डॉलर अड़सठ रुपए के पार चला गया, और फिर थोड़ा पीछे हटने के बावजूद उसकी कीमत सड़सठ रुपए से ज्यादा रही। यह सिलसिला कहां थमेगा? इस स्थिति ने अर्थव्यवस्था के अस्थिर होने का खतरा पैदा कर दिया है। रुपए के रसातल में जाने का असर मुंबई के शेयर बाजार पर भी नजर आया। मंगलवार को संवेदी सूचकांक पांच सौ नब्बे अंक लुढ़क गया। कयास है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक को लोकसभा की मंजूरी मिलने की खबर ने रुपए को भी झटका दिया और शेयर बाजार को भी। इसलिए कि इस विधेयक के चलते सरकार पर सबसिडी का जो बोझ पड़ेगा उससे चालू खाते का घाटा बढ़ जाएगा। इसी आशंका के आधार पर इस समय खाद्य सुरक्षा विधेयक लाने के औचित्य पर भी सवाल उठाए गए हैं। लेकिन उद्योग क्षेत्र को दिए गए प्रोत्साहन पैकेज और सालों-साल दी गई कर-रियायतों के मद्देनजर राजकोषीय घाटे की फिक्र क्यों नहीं की गई? सच यह है कि चालू खाते का घाटा बढ़ने का सिलसिला ढाई दशक पहले ही शुरू हो गया था। डब्ल्यूटीओ के दबाव में तमाम चीजों के आयात पर शुल्क घटा दिए गए और आयात को निर्बाध बना दिया गया। हालांकि इसके बरक्स निर्यात बढ़ाने के लिए करों में छूट और सेज से लेकर कई तरह की सुविधाएं दी गर्इं, पर निर्यात के मुकाबले आयात बढ़ता ही गया। विदेश व्यापार के बढ़ते असंतुलन ने चालू खाते को संकट के कगार पर पहुंचा दिया है। इससे पार पाने और रुपए को संभालने के लिए एक बार फिर जोर-शोर से विदेशी निवेशकों का भरोसा बहाल करने के नाम पर उन्हें और ज्यादा रियायतें या सहूलियतें देने की वकालत की जा रही है। लेकिन तथ्य यह है कि विदेशी निवेश में पोर्टफोलियो निवेश का हिस्सा लगातार बढ़ता गया है और वह कुल विदेशी निवेश के आधे तक पहुंच गया है। इस तरह की पूंजी अस्थिर होती है और कभी भी बाहर जा सकती है। फिर, अनाज से लेकर सोना-चांदी तक के दाम वायदा बाजार के सटोरिए तय करने लगे हैं जो डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत का अनुमान लगा कर अपना खेल खेलते हैं। चौतरफा मुश्किलों की चर्चा तो हो रही है, पर वायदा बाजार और पूंजी बाजार के सटोरियों पर लगाम लगाने की बात क्यों नहीं हो रही? रुपए के बेतहाशा अवमूल्यन ने आयात-खर्च में बढ़ोतरी और फलस्वरूप महंगाई और बढ़ने का रास्ता खोल दिया है। भाजपा ने अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत को लेकर यूपीए सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, मगर वह क्यों नहीं बताती कि सरकार की कौन-सी नीतियां और फैसले गलत हैं और मौजूदा स्थिति से उबरने के लिए क्या किया जाना चाहिए। मौजूदा संकट को एक अवसर में भी बदला जा सकता है। पर इसके लिए नीतियों और प्राथमिकताओं में बदलाव करना होगा, जिसकी कोई इच्छाशक्ति हमारे राज्यतंत्र और नीति नियंताओं में फिलहाल नहीं दिखती।
फेसबुक पेज को लाइक करने के क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta |
বিদেশি প্রাতিষ্ঠানিক লগ্নির ওপর কর ছাড়ের প্রস্তাব বণিকসভাগুলির
নয়াদিল্লি: টাকার দর ধরে রাখতে দ্রুত ব্যবস্থা করা উচিত্ সরকারের৷ এ জন্য বন্ড ইস্যু করার পাশাপাশি প্রতিষ্ঠানিক বিদেশি বিনিয়োগ (এফআইআই) ধরে রাখতে শর্ট টার্ম ক্যাপিটাল গেনের ক্ষেত্রেও তাদের সুযোগ-সুবিধা দেওয়া উচিত বলে মনে করে বণিকসভা কনফেডারেশন অফ ইন্ডিয়ান ইন্ডাস্ট্রিজ৷ ইনফোসিসের ভাইস চেয়ারম্যান ও সিআইআই প্রেসিডেন্ট ক্রিস গোপালকৃষ্ণন এ দিন বলেন, 'যথেষ্ট পরিমাণে রাষ্ট্রীয় বন্ড (সোভরেন গ্যারান্টিড বন্ড) ইস্যু করার ব্যাপারে ভাবা উচিত্৷ এফআইআইগুলির ক্ষেত্রে শর্ট টার্মে ক্যাপিটাল গেন ট্যাক্স রদ করা যায় কি না তা বিবেচনা করে দেখা দরকার৷' সিআইআই মনে করে, সরকার ও রিজার্ভ ব্যাঙ্ক যখন চেষ্টা করছেই তখন অস্থিরতা কাটাতে এমন পদক্ষেপ করা যেতেই পারে৷
পিএইচডি চেম্বার অফ কমার্স অ্যান্ড ইন্ডাস্ট্রির প্রেসিডেন্ট সুমন জ্যোতি খৈতানও মনে করেন, আশু পদক্ষেপ হিসাবে এই বন্ড ছাড়া যেতে পারে৷ বণিকসভাগুলি মনে করে, এফআইআইগুলির আস্থা ফেরাতে সরকারকে উপযুক্ত পদক্ষেপ করতে হবে৷ এ জন্য বাণিজ্য ঘাটতি কমাতে হবে, তাই বিপুল পরিমাণে রপ্তানির জন্য ব্যাপক হারে উত্পাদন করতে হবে৷ একই সঙ্গে তারা মনে করে, বিনিয়োগ ও বাণিজ্যের বিরুদ্ধে যেতে পারে এমন কোনও সিদ্ধান্ত ঘোষণা থেকে সরকারের বিরত থাকা উচিত্৷ প্রসঙ্গত, লোকসভায় খাদ্যসুরক্ষা বিল পাশ হওয়ায় সরকারের উপর যে বিপুল আর্থিক চাপ আসবে তার ফলে আর্থিক ঘাটতি ৪.৮ শতাংশে বেঁধে রাখা কঠিন হবে বলে মনে করছে বিনিয়োগকারীরা৷ এর ফলেই এক দিনে ৫০০ পয়েন্টেরও বেশি পড়ে সেনসেক্স৷ তা ছাড়া টাকার পতনও কোনও ভাবে আটকানো যাচ্ছে না৷
খৈতান বলেন, 'মূলধনী ক্ষেত্রে বিনিয়োগ আরও বাড়াতে হবে৷ বাণিজ্য ঘাটতি কমাতে রপ্তানি ক্ষেত্রকেও চাঙ্গা করতে হবে৷' গোপালকৃষ্ণনের কথায়, 'রিয়েল এস্টেট ইনভেস্টমেন্ট ট্রাস্ট গড়ে খুচরো বাজারে বিদেশি বিনিয়োগ টানা যেতে পারে৷ পাশাপাশি এটাও দেখতে হবে যে সরকারি ভাবে কোনও দিক থেকেই যাতে এমন কিছু ঘোষণা করা না হয় যা বাণিজ্যবান্ধব নয়৷'
বণিকসভা অ্যাসোচ্যাম মনে করে, মার্কিন ফেডেরাল রিজার্ভের ঘোষণার জন্য টাকার উপরে যে প্রভাব পড়ছে তা আটকাতে নীতিনির্ধারকদের নিয়ে জরুরি ভিত্তিতে বৈঠকে বসা দরকার সরকারের, আলোচনা করা উচিত্ অন্যান্য উদীয়মান অর্থনীতির সঙ্গেও৷ অ্যাসোচ্যাম বলেছে, 'ব্রাজিল, দক্ষিণ আফ্রিকা, চিন, রাশিয়া, ইন্দোনেশিয়া ও তুরস্কের সঙ্গে শীঘ্র আলোচনা করার ব্যাপারে কথা বলা উচিত্ অর্থমন্ত্রী চিদম্বরমের৷' টাকার সর্বনিম্ন দরে রেকর্ড হওয়ার পাশাপাশি সোনারও দামেও নতুন রেকর্ড তৈরি হয়েছে৷
CNBC Awaaz - India's No.1 Business Channel
बाजार की नजर शुक्रवार को आने वाले जीडीपी आंकड़ों पर है। अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2014 की पहली तिमाही में जीडीपी दर में में तेज गिरावट दिखाई दे सकती है। अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी दर 4.8 फीसदी से घटकर 4.6 फीसदी रहने का अनुमान है, जो 4 साल में सबसे कम है। वहीं, बीएनपी पारिबा ने वित्त वर्ष 2014 के लिए जीडीपी अनुमान 5.2 फीसदी से घटाकर 3.7 फीसदी किया है।
BBC World News
Are you for or against military action against Syria?
Tell us why and we'll share your thoughts with our viewers on BBC World News.
http://www.bbc.co.uk/news/world-middle-east-23875121...See More
BBC World News
US President Barack Obama says the US has concluded that the Syrian government carried out a chemical weapons attacks near Damascushttp://bbc.in/185p0bm
He said the use of chemical weapons affected US national interests and sending a "shot across the bows" could have a positive impact on Syria's war. But in the interview with PBS, said he had not yet made a decision about whether to intervene militarily.
Unlike · · Share · 1,354821607 · 9 hours ago ·
BBC World News
The UK has put a suggested resolution to the five permanent members of the UN Security Council "authorising all necessary measures to protect civilians" in Syria http://bbc.in/184MZay
It calls for military action against what Britain has termed Syria's "unacceptable" use of chemical weapons.
But Russia has said the UN must finish its investigation into the claims before discussing any resolution.
रक्षा में 100 फीसदी एफडीआई चाहता है उद्योग जगत
Indo Asian News Service, Last Updated: मार्च 25, 2012 07:14 PM IST
नई दिल्ली: भारत ने जहां हथियारों के आयात में चीन को पीछे छोड़ दिया है वहीं उद्योग जगत का एक संगठन देश के रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मौजूदा 26 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी करना चाहता है, ताकि देश में आधुनिकतम सैन्य प्रौद्योगिकी आ सके और आयात में कुछ कमी हो।
भारतीय सेना अभी अपनी कुल उपकरण और प्रणाली जरूरतों के 70 फीसदी हिस्से का आयात करता है और पिछले एक दशक में रूस, इजरायल और अमेरिका देश का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है।
एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने रक्षा क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई की मांग की है ताकि घरेलू औद्योगिक आधार का विकास हो, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिले और बड़े स्तर पर आयात में कमी आए।
एसोचैम ने कहा, "हमें इस सच्चाई को समझना होगा कि रक्षा क्षेत्र पूरी तरह पूंजी और प्रौद्योगिकी पर आधारित है। देश में एक मजबूत औद्योगिक आधार बनाने के लिए हमें विदेशी पूंजी और प्रौद्योगिकी दोनों की जरूरत है।"
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि एफडीआई पर 26 फीसदी की सीमा ने दोनों ही चीजों को देश से बाहर रखा है।
रावत ने कहा, "हमें इस सीमा पर विचार करना होगा। इस सीमा को रखने और 100 फीसदी एफडीआई को अनुमति नहीं देने का कोई कारण नहीं है।"
FDI पर सरकार के फैसले ऐतिहासिक: उद्योग जगत
पेंशन क्षेत्र में 26 प्रतिशत विदेशी हिस्सेदारी की अनुमति देने और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने के सरकार के निर्णय का स्वागत करते हुए उद्योग जगत ने इसे ऐतिहासिक और नई दिशा देने वाला कदम बताया है। उद्योग जगत ने कहा है 'ये धमाकेदार सुधारवादी निर्णय' इस बात का संकेत देते हैं कि भारत सरकार अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल के आज के सुधारवादी निर्णयों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उद्योग मंडल फिक्की के अध्यक्ष आर.वी. कनोड़िया ने कहा कि इन दूरदर्शी उपायों से बीमा और पेंशन क्षेत्र में पूंजी आएगी जो बहुत जरूरी हो गया है। कनोड़िया ने कहा, 'अब जरूरत इस बात की है कि बीमा और पेंशन की निधि के निवेश संबंधी दिशानिर्देशों को भी लचीला बनाया जाए ताकि इस क्षेत्र में जमा पैसे को बुनियादी ढांचे के विकास में और बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सके।' उन्होंने कहा कि मौजूदा नियमों में बीमा और पेंशन को उसका का बड़ा हिस्सा परियोजनाओं के बजाय सरकारी प्रतिभूतियों में लगाना पड़ता है। इन नियमों में ढील देने की जरूरत है।
सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि भारत और दुनिया का निवेश समुदाय सरकार द्वारा तेजी से लिए जा रहे फैसलों पर गौर कर रहा है और इन फैसलों से अब निवेशकों की धारणा मजबूत होगी। बनर्जी ने उम्मीद जताई है कि सभी राजनीतिक दल इन मामलों में प्रस्तावित विधेयकों की अच्छाई को देखेंगे और उनको जल्द पारित कराने में सहयोग करेंगे।
405 अंकों की तेजी पर बंद हुआ सेंसेक्स
मुंबई: देश के शेयर बाजारों में गुरुवार को जबरदस्त तेजी देखी गई। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 404.89 अंकों की तेजी के साथ 18,401.04 पर और निफ्टी 124.05 अंकों की तेजी के साथ 5,409.05 पर बंद हुआ। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 77.51 अंकों की तेजी के साथ 18,073.66 पर खुला और 404.89 अंकों या 2.25 फीसदी की तेजी के साथ 18,401.04 पर बंद हुआ। दिन भर के कारोबार में सेंसेक्स ने 18,455.66 के ऊपरी और 18,071.22 के निचले स्तर को छुआ।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी 31.50 अंकों की तेजी के साथ 5,316.50 पर खुला और 124.05 अंकों या 2.35 फीसदी की तेजी के साथ 5,409.05 पर बंद हुआ। दिन भर के कारोबार में निफ्टी ने 5,428.90 के ऊपरी और 5,303.00 के निचले स्तर को छुआ।
बीएसई के मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों में भी तेजी रही। मिडकैप 76.59 अंकों की तेजी के साथ 5,300.72 पर और स्मॉलकैप 35.26 अंकों की तेजी के साथ 5,180.73 पर बंद हुआ।
बीएसई के सभी 13 सेक्टरों में तेजी रही। तेल एवं गैस (2.86 फीसदी), धातु (2.38 फीसदी), तेज खपत वाली उपभोक्ता वस्तु (2.29 फीसदी), पूंजीगत वस्तु (2.20 फीसदी) और वाहन (2.10 फीसदी) में सर्वाधिक तेजी रही।
राडिया टेप : सुप्रीम कोर्ट ने बंद कमरे में की दो घंटे सुनवाई
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक समूहों के लिए संपर्क सूत्र का काम करने वाली नीरा राडिया के टेलीफोन टैपिंग मामले में सरकार का नजरिया जानने और 'अति गोपनीय' दस्तावेजों के अवलोकन के लिए आज दो घंटे तक बंद कमरे में सुनवाई की। इन दस्तावेज के आधार पर ही नीरा राडिया के फोन टैप किये थे।
न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति वी. गोपाल गौडा की खंडपीठ ने सुबह 10.30 बजे यह कार्यवाही शुरू की जो दोपहर 12.30 बजे तक चली। इस दौरान न्यायालय कक्ष में सिर्फ दो अतिरिक्त सालिसीटर जनरल, केन्द्रीय जांच ब्यूरो, आय कर विभाग और गृह मंत्रालय के अधिकारियों को ही उपस्थिति रहने दिया गया। दूसरे पक्षकारों के वकीलों, पत्रकारों और अन्य व्यक्तियों को इस कार्यवाही से अलग रखा गया। न्यायाधीशों ने बंद कमरे में सुनवाई की कार्यवाही पूरी करने के बाद इस मामले को एक अक्तूबर के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
इस खंडपीठ ने 27 अगस्त को नीरा राडिया से संबंधित प्रकरण की कार्यवाही न्यायालय के बंद कमरे में करने का निश्चय किया था। संवेदनशील मामलों में निचली अदालतों में बंद कमरे में सुनवाई सामान्य बात है लेकिन हाल के वषरे में यह दूसरा मौका है जब शीर्ष अदालत ने बंद कमरे में सुनवाई की है। इससे पहले, 1996 में बहुचर्चित हवाला कांड में शीर्ष अदालत ने बंद कमरे में सुनवाई की थी।
तमाम रिपोर्ट में अनेक विवादास्पद और संवदेनशील सूचनाएं तथा कई व्यक्तियों के नाम सामने आने के बाद ही न्यायालय ने बंद कमरे में इसकी सुनवाई करने का निश्चय किया था क्योंकि इन तथ्यों को सार्वजनिक करना राष्ट्रहित में नहीं था और इससे कई व्यक्तियों की छवि धूमिल हो सकती थी। न्यायालय के बंद कमरे में हुयी कार्यवाही के दौरान आज न्यायाधीशों ने सरकार की गोपनीय रिपोर्ट और इस मसले पर केन्द्र की दलीलों पर विचार किया।
वित्त मंत्री को 16 नवंबर, 2007 में मिली एक शिकायत के आधार पर नीरा राडिया के फोन पर होने वाली बातचीत रिकार्ड करने का आदेश दिया गया था। इस शिकायत में आरोप लगाया गया था कि नौ साल के भीतर नीरा राडिया ने तीन सौ करोड़ रूपए का कारोबार खड़ा कर लिया है। सरकार ने तीन चरणों में 180 घंटे नीरा राडिया के टेलीफोन की वार्ताएं रिकार्ड की थी। पहली बार 20 अगस्त, 2008 से 60 दिन और फिर 19 अक्तूबर से 60 दिन तक उसकी टेलीफोन वार्ताएं रिकार्ड की गयी। इसके बाद 11 मई, 2009 को आठ मई के आदेश के तहत एक बार फिर 60 दिन के लिये उसका फोन टैप किया गया।
शीर्ष अदालत ने इस बातचीत के विवरण की जांच के लिये जांच अधिकारियों का एक दल नियुक्त किया था। जांच अधिकारियों के विशेष दल द्वारा इस बातचीत के लिप्यांतरण और रिपोर्ट के अवलोकन के बाद कहा था कि इसके कुछ बिन्दु जांच का विषय हो सकते हैं।
`विदेशी पूंजी आकर्षित करने की नई पहल बहुत जल्द`Tag: वित्त मंत्री, पी चिदंबरम, विदेशी पूंजी आकर्षित करने की पहल, एफआईआई मुंबई : वित्त मंत्री पी चिदंबरम की आज यहां बैंकों और विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के साथ बैठकों के बाद वित्त मंत्रालय ने कहा है कि देश में विदेशी पूंजी का प्रवाह बढाने के लिए हफ्ता दस दिन में ही कुछ और पहल की जा सकती है। सरकार चालू खाते का घाटा (कैड) कम करने के लिए बाहर से और अधिक पूंजी आकर्षित करना चाहती है। वित्तीय सेवा प्रभाग के सचिव राजीव टकरू ने मुंबई में बैंकों के प्रमुखों और विदेशी संस्थागत निवेशकों के प्रतिनिधियों के साथ बैठकों साथ वित्त मंत्री की बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, पूंजी का प्रवाह आकर्षित करने के लिए सभी प्रकार के उपायों पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि आप को जल्दी ही कुछ देखने को मिलेगा, आप कह सकते हैं कि हफ्ता दस दिन के अंदर ही। इन उपायों के तहत सरकारी बांड, प्रवासी बांड या अर्ध सरकारी विदेशी मुद्रा बांड जारी करने जैसा कौन सा कदम उठाया जा सकता है इस बारे में टकरू ने कोई जानकारी नहीं दी। चालू खाते के घाटे के बढ़ने से निवेशकों को चिंता है और इस कारण पिछले दिनों शेयर बाजार में उठापटक शुरू हो गयी थी तथा रुपए की विनिमय दर में भारी गिरावट दर्ज की गयी। चिदंबरम ने पहले बैंकों के साथ बंद कमरे में बैठ की। बाद में वह विदेशी संस्थागत निवेशकों से मिले। सरकार मौजूदा आर्थिक स्थिति को लेकर निवेशकों की आशंका दूर करना चाहती है और यह भरोसा देना चाहती है और उन्हें बताना चाहती है कि वह आर्थिक वृद्धि को गति देने तथा रुपए की विनिमय दर में स्थिरता लाने के लिए क्या क्या कर रही है। बैंकिंग सचिव टकरू ने कहा, विदेशी संस्थागत निवेशक चीजें समझना चाहते थे, वित्त मंत्री ने उन्हें समझा दिया। भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से भारतीय कंपनियों और व्यक्त्यिों द्वारा पूंजी विदेश भेजने पर पिछले सप्ताह कुछ अंकुश लगाने के भारतीय रिजर्व बैंक के निर्णय के बाद कुछ हलकों में आशंका जताई जाने लगी कि देश पूंजी प्रवाह पर नियंत्रण की दिशा में बढ सकता है। केंद्रीय बैंक ने यह कदम रुपए को संभालने के लिए उठाया था। वित्त मंत्री ने गुरूवार को स्पष्ट किया था कि सरकार का पूंजी प्रवाह पर नियंत्रण लगाने का कोई इरादा नहीं है। टकरू ने बताया कि बैंकों के साथ बैठक में मौजूदा स्थिति का समाना करने के लिए कई सुझाव आये। खास कर भारतीय स्टेट बैंक ने एनआरआई बांड के विचार का विरोध किया क्योंकि उसकी राय में विदेशी बाजारों में इसको लेकर कई कानूनी पचड़े पैदा होते है। यह बात अमेरिका के संबंध में खास कर कही गयी। चिदंबरम ने इन बैठकों के संबंध में संवाददाताओं से कई चर्चा नहीं की। जिस होटल में ये बैठकें की वहां बाहर संवाददाता खड़े थे। विदेशी पूंजी आकर्षित करने के तात्कालिक उपायों में बैंकों को प्रवासी भारतीय और विदेशी मुद्रा प्रवासी-बी (एफसीएनआर-बी) जमा खातों पर ब्याज बढाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इन जमाओं पर ब्याज 10 प्रतिशत तक पहले ही पहुंच चुका है। एक्सिस बैंक, आईडीबीआई बैंक, फेडरल बैंक और सरकारी क्षेत्र के कुछ बैंकों ने एनआरआई जमाओं पर हाल में ब्याज बढाई है। यह पूछे जाने पर कि क्या बैंकों को एनआरई जमाओं पर ब्याज बढाने के लिए कोई दिशानिर्देश दिया गया है तो टकरू ने कहा, हम बैंकों को इस तरह के निर्णय के लिए न तो बाध्य करते हैं और न ही उकसाते हैं। इसका निर्णय उनके हाथ में हैं जो वे धन की स्थिति को देख कर करते हैं। उन्होंने कहा, अगले सप्ताह ही नौ अटकी परियोजनाओं पर मंत्रिमंडल में अंतिम निर्णय लिया जाना है। ये कोयला, बिजली और परिवहन क्षेत्र की परियोजनाएं हैं। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि पिछले एक महीने में 1,100 अरब रुपए के निवेश की 27 बड़ी परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। चालू खाते के घाटे (कैड) के लिए वित्त का प्रबंध करने में विदेशी संस्थागत निवेश को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बैंकों के साथ बैठक में वित्तमंत्री के साथ आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम और वित्तीय सेवा सचिव राजीव टकरू भी शामिल हुए। बैठक में भारतीय स्टेट बैंक के प्रतीप चौधरी, आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर, एचडीएफसी बैंक के आदित्य पुरी, सिटी ग्रुप इंडिया के प्रमीत झावेरी, बैंक आफ इंडिया की विजय लक्ष्मी अय्यर, केनरा बैंक के आर के दुबे और स्टैंर्डर्ड चार्टर्ड इंडिया के अनुराग अदलखा और कुछ अन्य बैंकों के प्रमुख भी शामिल हुये। भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन चौधरी से पत्रकारों ने जब पूछा कि क्या वित्त मंत्री ने कोई निर्देश दिया है, जो उन्होंने कहा, इसमें कोई निर्देश नहीं दिया गया। इसमें केवल विचार विमर्श किया गया। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 22 मई को अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल बैंक की आसान ऋण नीति में बदलाव के संकेत के बात से भारतीय बाजार से अब तक 12 अरब डॉलर की पूंजी निकाल ली है। इसका रुपये की विनिमय दर पर बुरा असर पड़ा है। गुरूवार को कारोबार के दौरान रुपया गिरकर 65.56 प्रति डॉलर चला गया था। इसके लिए चालू खाते के घाटे को मुख्य रूप से जिममेदार माना जा रहा है। यह घाटा पिछले वित्तवर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के 4.8 प्रतिशत के बराबर था। निजी कंपनियों को छह हवाई अड्डों में 100 फीसदी हिस्सेदारी दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद व बेंगलूर के बाद सरकार छह और हवाई अड्डों में 100 प्रतिशत इक्विटी हिस्सेदारी निजी कंपनियों को देने की इच्छुक है जिनका विकास भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) ने किया है। नागर विमानन मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि चेन्नई व लखनऊ हवाई अड्डे में पात्र कंपनियों के चयन हेतु पात्रता के लिए आवेदन का दस्तावेज (आरएफक्यू) दो चार दिन में जारी किया जाएगा। जोधपुर, गुवाहाटी, अहमदाबाद तथा कोलकाता के लिए आरएफक्यू अगले कुछ सप्ताह में जारी किए जाने की संभावना है। सूत्रों ने कहा कि ये हवाई अड्डे निजी कंपनियों को परिचालन के लिए छूट के आधार पर 30 साल के लिए दिए जा सकते हैं। इस दौरान एएआई को परिचालक कंपनी की आय में हिस्सा मिलता रहेगा। निविदा प्रर्किया के दौरान इस पर विचार किया जाएगा। मौजूदा नीति के तहत ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे में 100 प्रतिशत विदेशी तथा निजी निवेश की अनुमति है लेकिन ब्राउनफील्ड (मौजूदा) में नहीं। उन्होंने कहा कि भारतीय विमानपत्तन प्राधिकार (एएआई) की निजी हवाई अड्डा कंपनियों में कोई इक्विटी भागीदारी नहीं हो। एएआई को इन फर्मों से आय में हिस्सा मिलता रहेगा और वह इन हवाई अड्डों की वास्तविक मालिक रहेगा। यह आय भागीदारी 46 प्रतिशत से अधिक हो सकती है जो कि एएआई को फिलहाल दिल्ली व मुंबई में मिल रही है। दूरसंचार क्षेत्र में 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी मिली सुधारों को गति देते हुए सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को गुरुवार को मंजूरी दे दी। कोष की कमी से जूझ रहे उद्योग की यह प्रमुख मांग थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र में एफडीआई सीमा मौजूदा 74 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने का निर्णय किया गया है। इसमें 49 प्रतिशत स्वत: मार्ग से और उसके उपर विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की मंजूरी के जरिये होगा। उन्होंने कहा कि औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) द्वारा संबद्ध मंत्रालयों से विचार-विमर्श के बाद इस बारे में विस्तत जानकारी दी गयी। दूरसंचार क्षेत्र में एफडीआई सीमा बढ़ाने का मकसद उद्योग के वित्तीय बोझ को कम करना तथा उन्हें नई पूंजी प्राप्त करने में मदद करना है। यह पहल दूरसंचार कंपनियों के विदेशी सहयोगियों के लिये राहत लायी है क्योंकि इससे वे कारोबार में मालिकाना हक हासिल कर सकते हैं। उद्योग जगत के विश्लेषकों के अनुसार दूरसंचार क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई से 10 अरब डॉलर का निवेश आकर्षित हो सकता है। रिलायंस-बीपी की 3.18 अरब डालर निवेश योजना को मंजूरीTag: रिलायंस-बीपी, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, केजी-डी6 ब्लॉक, निवेश योजना, मंजूरी नई दिल्ली : रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और उसके भागीदार बीपी पीएलसी को केजी-डी6 ब्लॉक में आर-श्रृंखला के गैस क्षेत्र में 3.18 अरब डालर की निवेश योजना को मंजूरी मिल गई है। आरआईएल-बीपी ने केजी-डी6 ब्लॉक के आसपास के क्षेत्रों में जल्दी ही उत्पादन शुरू करने की योजना बनाई है ताकि क्षेत्र से उत्पादन में आई कमी को दूर करने में मदद मिल सके। इस घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों के मुताबिक तेल खोज क्षेत्र के नियामक हाइड्रोकार्बन महानिदेशक (डीजीएच) की अध्यक्षता वाली प्रबंधन समिति ने आरआईएल और इसके भागीदार बीपी पीएलसी और निको रिसोर्सेज को 13 साल के लिए डी-34 से प्रतिदिन 1.3-1.5 करोड़ घन मीटर गैस उत्पादन योजना को मंजूरी दी है। डी-34 से नियोजित उत्पादन धीरूभाई-एक और तीन (डी1 और डी3) गैस क्षेत्र और केजी-डी6 ब्लॉक के एमए क्षेत्र के संयुक्त उत्पादन के बराबर है। डी-34 में 2,200 अरब घन फुट गैस भंडार है। आरआईएल जो केजी-डी6 ब्लॉक में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ इस ब्लॉक का परिचालक है, ने 30 जनवरी को हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) को डी-34 के लिए क्षेत्र विकास योजना (एफडीपी) सौंपी थी। सूत्रों ने बताया कि डीजीएच ने जांच के बाद उत्पादन योग्य गैस भंडार का अनुमान घटाकर 1,191 अरब घन फुट कर दिया जबकि परिचालक ने 1,413 अरब घन फुट भंडार का अनुमान जाहिर किया था। हालांकि, आरआईएल ने उत्पादन का उच्चतम स्तर 1.49 करोड़ घन मीटर होने का अनुमान जाहिर किया था जबकि डीजीएच ने इसे घटाकर 1.29 करोड़ घन मीटर कर दिया। धीरभाई 34 यानी डी 34 गैस खोज केजी बेसिन डी6 के दक्षिणी हिस्से में हुई और इसे मई 2007 में अधिसूचित किया गया। प्रबंधन समिति ने नवंबर 2011 में इसे वाणिज्यिक लिहाज से वहनीय घोषित किया। |
Land Acquisition and Rehabilitation and Resettlement Bill From Wikipedia, the free encyclopedia Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Bill[1] in India is a highly controversial bill proposed for forced Land acquisition by government, and its transfer to projects including private projects of multinational corporations. The bill was introduced in Lok Sabha in India on 7 September 2011.[2][3] The bill will be central legislation in India for the rehabilitation and resettlement of families affected by land acquisitions. The Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement, 2011 Bill is also known as LARR Bill 2011 and LARR 2011. The Bill has 107 clauses. It is currently in public domain and India's parliament for review, as Bill number 77 of 2011. This bill has not yet been tabled in the parliament of India. It is under review for revisions. Contents[hide]Purpose of the Bill[edit source | editbeta]LARR 2011 seeks to repeal and replace India's Land Acquisition Act, 1894. The Bill seeks to enact a law that will apply when:[4]
LARR Bill 2011 aims to establish the law on land acquisition, as well as the rehabilitation and resettlement of those directly affected by the land acquisition in India. The scope of LARR 2011 includes all land acquisition whether it is done by the central government of India, or any state government of India, except the state of Jammu & Kashmir. Need for the Bill[edit source | editbeta]The Government of India claims there is heightened public concern on land acquisition issues in India. Of particular concern is that despite many amendments, over the years, to India's Land Acquisition Act of 1894, there is an absence of a cohesive national law that addresses:[4]
The Government of India believes that a combined law is necessary, one that legally requires rehabilitation and resettlement necessarily and simultaneously follow government acquisition of land for public purposes. Forty-Fourth Amendment Act of 1978 omitted Art 19(1) (f) with the net result being:- 1.The right not to be deprived of one's property save by authority of law has since been no longer a fundamental right. Thus, if government issues a fiat to take away the property of a person, that person has no right to move the Supreme Court under Art 32. 2.Moreover, no one can challenge the reasonableness of the restriction imposed by any law the legislature made to deprive the person of his property. Art 31(2) in the original Constitution embodied the principle that if the Government makes a compulsory acquisition or requisitioning of private property, then it must take following actions:- a) make a law b) such law must be for public purpose c) compensation must be paid to the owner of the property First, the 25th Amendment Act, 1971 replaced the requirement of 'compensation' by 'an amount', the adequacy of which cannot be challenged in any court. Then the real killer 44th Amendment Act, 1978 came and omitted the Art 31 along with Art 19(1) (f). Thus individual's right to compensation for loss of property was also lost. In recent times, there have been multiple incidents where farmers were protesting against the Government as it took away the land from them without paying the adequate compensation and against the wishes of many farmers. The whole debate about Right to Property needs to be re-initiated under this background. The Right to Property, which was enshrined in the original Constitution of India, as Fundamental Right should be re-instated by voiding the changes made by 44th Amendment Act of 1978 in this respect. Content of the Bill[edit source | editbeta]Definition of public purpose[edit source | editbeta]Clauses 2 and 3 of LARR Bill 2011 define the following as public purpose for land acquisition within India:[5]
the acquird land is not used in five years the land should be back to original land owners When government declares public purpose and shall control the land directly, consent of the land owner shall not be required. However, when the government acquires the land on behalf of public sector companies or for private companies, LARR 2011 proposes that the consent of at least 80% of the project affected families shall be obtained through a prior informed process before government uses its power under LARR 2011 to acquire the remaining land for public good. LARR 2011 includes an urgency clause for expedited land acquisition. The urgency clause may only be invoked for national defense, security and in the event of rehabilitation of affected people from natural disasters or emergencies. Definition of 'land owner' and 'livelihood loser'[edit source | editbeta]LARR 2011 defines the following as land owners:[5]
LARR 2011 defines the following as livelihood losers:
Limits on acquisition[edit source | editbeta]LARR Bill 2011 forbids land acquisition when such acquisition would:[5]
Even below these threshold, LARR 2011 requires that wherever multi crop irrigated land is acquired an equivalent area of culturable wasteland shall be developed by the state for agricultural purposes. These limits shall not apply to linear projects. LARR 2011 illustrates linear projects with examples such as railways, highways, major district roads, power lines, and irrigation canals. Compensation[edit source | editbeta]Clause 26 of LARR 2011 defines the method by which market value of the land shall be computed under the proposed law. Schedule I outlines the proposed minimum compensation based on a multiple of market value. Schedule II through VI outline the resettlement and rehabilitation entitlements to land owners and livelihood losers, which shall be in addition to the minimum compensation per Schedule I. The market value of the proposed land to be acquired, shall be set as the higher of:[5]
LARR 2011 bill proposes that the minimum compensation be a multiple of the total of above ascertained market value plus a solatium. Specifically, the current version of the Bill proposes the total minimum compensation be:
In addition to above compensation, the draft LARR 2011 bill proposes a wide range of rehabilitation and resettlement entitlements to land owners and livelihood losers from the land acquirer. For land owners, the Bill proposes:[4]
In addition to minimum compensation explained above, and additional entitlements for the affected land owners, LARR 2011 bill proposes the following additional entitlements to each livelihood loser:[4]
In addition to the above compensation and entitlements under the proposed LARR 2011, scheduled caste and schedule tribe (SC/ST) families will be entitled to several other additional benefits per Schedule II of the proposed bill. India has over 250 million people protected and classified as SC/ST, about 22% of its total population. The proposed additional benefits to these families include:[5]
Schedule III of LARR 2011 proposes additional amenities over and beyond those outlined above. Schedule III proposes that the land acquirer shall provide 25 additional services to families affected by the land acquisition.[5] Some examples of the 25 additional services include schools, health centres, roads, safe drinking water, child support services, places of worship, burial and cremation grounds, post offices, fair price shops, and storage facilities. LARR Bill 2011 proposes that Schedule II through VI shall apply even when private companies willingly buy land from willing sellers, without any involvement of the government. The Bill as drafted mandates compensation and entitlements without limit to number of claimants. Thus, for clarity and as an example, if 1000 acres of rural land is to be acquired for a project, with market price of Rs.225,000 per acre (US$ 5000 per acre), 100 families claim to be land owners, and 5 families per acre claim their rights as livelihood losers under the proposed LARR 2011 Bill, the total cost to acquire the 1000 acre would be
The average effective cost of land, in the above example will be at least Rs.4,100,000 (US$ 91,400) per acre plus replacement homes and additional services per Schedule III to VI of the proposed bill. Even if the pre-acquisition average market price for land were just Rs.22,500 per acre (US$ 500 per acre) in the above example, the proposed R&R, other entitlements and Schedule III to VI would raise the effective cost of land to at least Rs.3,303,000 (US$ 73,400) per acre. The LARR Bill of 2011 proposes the above benchmarks as minimum. The state governments of India, or private companies, may choose to set and implement a policy that pays more than the minimum proposed by LARR 2011. For context purposes, the proposed land prices because of compensation and R&R LARR 2011 may be compared with land prices elsewhere in the world:
A 2010 report by the Government of India, on labour whose livelihood depends on agricultural land, claims[9] that, per 2009 data collected across all states in India, the all-India annual average daily wage rates in agricultural occupations ranged between Rs.53 to 117 per day for men working in farms (US$ 354 to 780 per year), and between Rs.41 to 72 per day for women working in farms (US$ 274 to 480 per year). This wage rate in rural India study included the following agricultural operations common in India: ploughing, sowing, weeding, transplanting, harvesting, winnowing, threshing, picking, herdsmen, tractor driver, unskilled help, mason, etc. Benefits and Effects of the Bill[edit source | editbeta]The 2011 LARR Bill, if enacted into law, is expected to affect rural families in India whose primary livelihood is derived from farms. The Bill will also affect urban households in India whose land or property is acquired. Per an April 2010 report,[10] over 50% of Indian population (about 600 million people) derived its livelihood from farm lands. With an average rural household size of 5.5,[11] LARR Bill 2011 R&R entitlement benefits may apply to about 109 million rural households in India. According to Government of India, the contribution of agriculture to Indian economy's gross domestic product has been steadily dropping with every decade since its independence. As of 2009, about 15.7% of India's GDP is derived from agriculture. LARR Bill 2011 will mandate higher payments for land as well as guaranteed entitlements from India's non-agriculture-derived GDP to the people supported by agriculture-derived GDP. It is expected that the Bill will directly affect 132 million hectares (326 million acres) of rural land in India, over 100 million land owners, with an average land holding of about 3 acres per land owner.[10] Families whose livelihood depends on farming land, the number of livelihood-dependent families per acre varies widely from season to season, demands of the land, and the nature of crop. LARR Bill 2011 proposes to compensate rural households – both land owners and livelihood losers. The Bill goes beyond compensation, it mandates guaranteed series of entitlements to rural households affected. According to a July 2011 report from the Government of India, the average rural household per capita expenditure/income in 2010, was Rs.928 per month (US$ 252 per year).[12] For a typical rural household that owns the average of 3 acres of land, the LARR 2011 Bill will replace the loss of annual average per capita income of Rs.11,136 for the rural household, with:[4]
If the affected families on the above rural land demand 100% upfront compensation from the land acquirer, and the market value of land is Rs.100,000 per acre, the 2011 LARR Bill will mandate the land acquirer to offset the loss of an average per capita 2010 income of Rs.11,136 per year created by this 3 acre of rural land, with the following:[4]
The effects of LARR Bill 2011, in certain cases, will apply retroactively to pending and incomplete projects. The Bill exempts land acquisition for all linear projects such as highways, irrigation canals, railways, ports and others.[5] Criticism of the Bill[edit source | editbeta]The proposed Bill, LARR 2011, is being criticized on a number of fronts:
See also[edit source | editbeta]References[edit source | editbeta]
|
No comments:
Post a Comment