सैंया भये कोतवाल
संजय शर्मा
कभी उनके नाम पर सभी राजनेता नाक भौं सिकोड़ते थे। उनका नाम प्रदेश के बड़े गुंडों में शुमार किया जाता था। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उन्हें ''कुंडा का गुंडा'' कहा था। मगर बाद में पहली बार भाजपा सरकार में ही राजा भैया ने मंत्री पद संभाला था। जेल का लंबा सफर तय करके अब वह खुद जेल मंत्री बन गए हैं। मगर इसके बाद जेलों में आए समाजवाद ने पूरी समाजवादी पार्टी को हिला दिया है। करोड़ो रुपये के घोटाले के आरोपी इस दबंग मंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत फिलहाल किसी में नजर नही आ रही।
प्रदेश भर में समाजवाद फैलाने का सपना लिए सत्ता में आये यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके अपने एक काबीना मंत्री के कारण सबसे पहले जेलों में समाजवाद आ जायेगा और कैदी जेल के अफसरों को ही पीटने में जुट जायेंगे। अफसर सफाई दे रहे हैं कि यह मामूली घटना है इसे राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चहिए। मगर कैदियों को 'सैया भये कोतवाल…' जुमला याद आ रहा है और वह कुछ सुनने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री को अंदाजा नहीं था कि सरकार बनने के एक महीने के भीतर ही उनके एक काबीना मंत्री इतनी सुर्खियां बटोर लेंगे। एक ओर जेलों में ताबड़-तोड़ घटनाओं ने शासन को सकते में डाल दिया है वहीं राजा भैया के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी ने उन पर गरीबों का करोड़ों रुपए का राशन हड़प करने का आरोप लगाकर उन्हें परेशानी में डाल दिया है। अखिलेश यादव जानते हैं कि राजा भैया के इन कारनामों से सरकार की किरकिरी हो रही है पर वह चाहकर भी कुछ ज्यादा कर पाने की स्थिति में नहीं हैं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इसकी झलक पहले ही दिन मिल गई थी। शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद खुशी से लबालब अखिलेश यादव ने जब प्रेस वार्ता शुरू की तो शुरआती दौर में ही उन पर आपराधिक छवि के राजा भैया को मंत्रिमंडल में शामिल करने का सवाल दागा गया। माथे पर शिकन लिए अखिलेश यादव ने हालांकि राजा भैया का बचाव करते हुए कहा कि यह मुकदमे राजनीतिक दुर्भावना के चलते पिछली सरकार ने लगवाये हंै। यह बात दीगर है कि वहां बैठे सभी लोग जानते थे कि यह सच नहीं हैं। इसके बाद पूरे दिन टीवी चैनलों पर शपथ ग्रहण के साथ ही राजा भैया को मंत्री बनाने का मामला छाया रहा। तभी लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि राजा को मंत्री बना कर खुद अखिलेश यादव ने अपराधियों को दूर रखने की अपनी कवायद पर ग्रहण लगा दिया।
लोग समझ नहीं पा रहे थे कि डीपी यादव को पार्टी में शामिल कराने से इंकार करके अखिलेश यादव ने जो अपनी छवि बनाई थी उसे एक झटके में खत्म क्यों कर दिया। वह भी तब जब सरकार के पास बहुमत से कही ज्यादा विधायक थे और उसे किसी निर्दलीय विधायक की जरुरत नहीं थी। उस पर भी सोने पर सुहागा जैसी बात तब हो गई जब अपराधी छवि के राजा भैया को कारागार मंत्री बना दिया गया। कारागार मंत्री बनते ही राजा भैया ने कहा भी कि बह लम्बे समय तक जेल में रहे हैं इसलिए उन्हें जेल का बेहद अनुभव हैं। कैदियो की जिंदगी बहुत खराब है इसे सुधारा जायेगा। इस संदेश को किसी और ने समझा हो या ना समझा हो पर यूपी की जेल में बंद कैदियो को लग गया कि भाई चारा निभाने का समय आ गया। बस फिर क्या था एक के बाद एक लगातार जेलों में घटनाओं की लाइन लग गयी। हालत इतने बिगड़ गए कि शासन के आला अफसरों के हाथ पांव फूल गए।
सबसे पहली घटना दस मार्च को बस्ती जिला कारागार में घटी जहां कमीशनबाजी को लेकर कैदियों और अधिकारियों के बीच लम्बे समय से विवाद चल रहा था और अंततरू इस विवाद ने एक व्यक्ति की जान ले ली और नौ बन्दी रक्षक गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके एक हफ्ते बाद ही सोलह मार्च को रमाबाई नगर में हुए विवाद में लगभग दो दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। शासन के अफसर भौचक्के थे कि दो जेलों में इतनी बड़ी घटनाएं हो गई। वह कुछ और सोंच पाते इससे पहले मऊ में जेल एक बार फिर लड़ाई का अखाड़ा बनी और दो लोगों की मौत हो गयी जबकि दो दर्जन बन्दी रक्षक गंभीर रूप से घायल हो गए। इन घटनाओं के बाद कैदियों का दुस्साहस बढ़ता ही गया और अठ्ठारह अप्रैल को मेरठ के कैदियों ने जिला कारागार से बाहर निकालने की योजना बनाई और भयंकर उत्पात किया। जेल में गोली चलाने की नौबत आ गयी। गैस के सिलेंडरों से कई स्थानों पर आग लगा दी गयी।
इन घटनाओं पर गंभीर रुख अपनाने के स्थान पर कारागार मंत्री ने मीडिया पर इसका ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि वह घटनाओं को बड़ा चढ़ाकर दिखा रही है। कारागारों में यह हंगामा खत्म भी नही हुआ था कि राजा भैय्या के पूर्व जनसंपर्क आधिकारी राजीव यादव ने सीबीआई को दस्तावेज सौंपे जिसमें इस बात के स्पष्ट प्रमाण थे कि पिछली सरकार में जब राजा भैय्या खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के मंत्री थे तब उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए सौ करोड़ रुपये से अधिक का गोलमाल किया था। यह वह धनराशि थी जिससे गरीबों को राशन दिया जाना था।
इन घटनाओं ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के माथे पर शिकन डाल दिया है मगर वह कुछ ज्यादा कर पाने की स्थिति में नहीं हंै। दरअसल मुलायम सिंह यादव आगामी लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में यादवों, मुस्लिमों के साथ क्षत्रियों को भी अपने साथ जोडऩा चाहते हैं। उनको लगता है कि राजा भैय्या का चेहरा आगे करने से क्षत्रियों में अच्छा संदेश जायेगा। लिहाजा वह मजबूर हैं कि राजा भैय्या की हर जायज और नाजायज बातों को आंखे मूंदकर मानते रहे भले इससे अखिलेश सरकार की छवि पर खासा खराब प्रभाव पड़ रहा हो।
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