मजदूर वर्ग की नयी एकजुटता के लिए पहल करो !!
साथियो!
दुनिया भर के सभी मेहनतकशों का त्योहार मई दिवस फिर से आ गया है -हमें मजदूर आन्दोलन के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाने, भविष्य के संघर्षों के लिए प्रेरणा देने।
दुनिया भर के सभी मेहनतकशों का त्योहार मई दिवस फिर से आ गया है -हमें मजदूर आन्दोलन के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाने, भविष्य के संघर्षों के लिए प्रेरणा देने।
पहली मई का दिन, वह दिन है जब आज से ठीक 126 वर्ष पहले अमेरिका के शिकागो शहर के मजदूर "आठ घण्टे काम" करने को कानूनी बनवाने की माँग को लेकर लाखों की तादात में सड़कों पर उतर आये थे। पूँजीपतियों और उनकी सरकार ने मजदूरों के इस ऐतिहासिक संघर्ष को खून के समुद्र में डुबा देने की कोशिश की। यह वह जमाना था जब पूँजीपतियों और कारखानेदारों द्वारा मजदूरों से 15-16 घण्टे काम लेना आम बात थी। लेकिन लाठी, गोली और दमन तथा गिरफ्तारियों, मुकदमों और फाँसियों के लम्बे सिलसिले के बावजूद आठ घण्टे के कार्य दिवस की माँग का दबाया नहीं जा सका। आखिकार, पूँजीपतियों और सरकार को घुटना टेकना पड़ा। 'आठ घण्टे के कार्य दिवस' की चेतना पूरे देश में और देश की सरहदों का पार कर दुनिया के कोने-कोने तक फै ल गयी। अपने एकताबद्ध संघर्ष और बेमिसाल कुर्बानियों के बल पर वहाँ के मजदूरों ने वह कारनामा कर दिखाया जो थोड़े दिनों पहले तक सिर्फ एक सपना था। आगे चलकर दुनिया भर में मजदूरों की बढ़ती हुई चेतना और तेज होती हुई संघर्षों की धार के चलते सभी सभ्य समाजों को 'आठ घण्टे काम' को एक सार्वभौमिक कानून के रूप में मान्यता देनी पड़ी जिसके पीछे यह धारणा थी कि बाकी के सोलह घण्टे में आठ घण्टे आराम और आठ घण्टे मनोरंजन और रोजमर्रा के दूसरें कामों के लिए होना चाहिए।
हमारे देश में आठ घण्टे के कार्य दिवस का कानून हो या दूसरे ऐसे अधिकार हों मसलन, यूनियन बनाने का अधिकार, न्यूनतम मजदूरी का कानून, काम के अतिरिक्त घण्टों के लिए विशेष दरों पर 'ओरव टाइम' भत्ते का अधिकार, परिवार जनों के शिक्षा और दवा इलाज का अधिकार, सेवा-निवृति के बाद की सुविधाएँ, ये सभी मजदूरों ने अपनी एकता, संघर्ष और कुर्बानियों के बल पर हासिल किए थे। ये अधिकार अभी भी हमारे देश के कानूनों की किताबों में दर्ज हैं। लेकिन क्या ये कानून व मजदूरों के अधिकार आज भी अमल में आ रहे हैं? भारत की सम्पूर्ण मजदूर आबादी के जिस बहुत ही छोटे से हिस्से को कभी ये अधिकार हासिल हुए थे, उनके हाथ से भी ये अधिकार आज छिनते जा रहे हैं। देश की बाकी मजदूर आबादी या, कम से कम, उसके बड़े हिस्से ने कभी इन अधिकारों को जाना तक नहीं।
आज देश की बहुलांश मजदूर आबादी सभी अधिकारों और सुविधाओं से वंचित और जीवन की नारकीय परिस्थिातियों में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुडग़ाँव या फ रीदाबाद, हम अपने आसपास जहाँ भी नजर डालें, इस हकीकत से रु बरु हो सकते हैं। इन सभी जगहों पर काम के मनमाने घण्टे लागू हैं दस-बारह-चौदह घण्टे काम लेना आम बात है। सिर्फ यूनियन बनाने की माँग को हासिल करने के लिए, जो कि भारतीय संविधान के मुताबिक एक मौलिक अधिकार है, मारूति सुजुकी के मजदूरों को तीन महीनों तक संघर्ष करना पड़ा और प्रशासन के दमन उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा।
हर जगह भारतीय सरकार के श्रमकानूनों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। स्थानीय प्रशासन की पूरी मिली भगत के साथ पूँजीपतियों और मिलमालिकों द्वारा अपना स्वेच्छाचारी श्रमकानून लागू किया जा रहा है। न्यूनतम से भी कम मजदूरी देना, ठेका मजदूरों से अधिक से अधिक काम लेना, मनमानी छँ टनी या तालाबन्दी करना, "जब चाहा रक्खा, जब चाहा निकाला" पर अमल करना, मनमानी सेवा शर्ते और काम के घण्टे लागू करना, भविष्य निधि, बीमा और ओवर टाइम के मजदूरों के पैसे को हजम कर जाना और यहाँ तक कि धमकाना, मारना पीटना और गालीगलौज करना-करवाना तक आम बात हो गयी है। आज मई दिवस के मौके पर हमारा सबसे पहला कर्तव्य यह है कि हम इस बात पर विचार करें यह सब क्यों हो रहा हैं, क्यों हो पा रहा हैं।
हर जगह भारतीय सरकार के श्रमकानूनों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। स्थानीय प्रशासन की पूरी मिली भगत के साथ पूँजीपतियों और मिलमालिकों द्वारा अपना स्वेच्छाचारी श्रमकानून लागू किया जा रहा है। न्यूनतम से भी कम मजदूरी देना, ठेका मजदूरों से अधिक से अधिक काम लेना, मनमानी छँ टनी या तालाबन्दी करना, "जब चाहा रक्खा, जब चाहा निकाला" पर अमल करना, मनमानी सेवा शर्ते और काम के घण्टे लागू करना, भविष्य निधि, बीमा और ओवर टाइम के मजदूरों के पैसे को हजम कर जाना और यहाँ तक कि धमकाना, मारना पीटना और गालीगलौज करना-करवाना तक आम बात हो गयी है। आज मई दिवस के मौके पर हमारा सबसे पहला कर्तव्य यह है कि हम इस बात पर विचार करें यह सब क्यों हो रहा हैं, क्यों हो पा रहा हैं।
यदि गम्भीरता से विचार किया जाय तो मजदूर वर्ग की वर्तमान दुर्दशा के ढेरों कारण हैं, जो एक दुसरे से गहरे से गुंथे हुए हैं। लेकिन इनमें से दो कारण प्रधान हैं – देश और दुनिया के पैमाने पर मजदूर वर्ग का मौजूदा बिखराव तथा इस बिखराव का फायद उठाते हुए पूरी दुनिया के थैलीशाहों द्वारा आपसी मिली भगत से मजदूर वर्ग पर बोला गया हमला।
संक्षेप में ही सही, आइये, इन कारणों पर विचार करें। दुनिया के पैमाने पर मजदूर वर्ग के संघर्षों का इतिहास बेमिसाल, कुर्बानियों और शानदार उपलब्धियों का इतिहास रहा हैं। साथ ही, यह सम्पूर्ण मानवता को पूँजी की गुलामी से मुक्त करने, हर प्रकार के जुल्मों सितम को खत्म करने तथा इंसाफ और बराबरी पर आधारित एक नयी दुनिया के निर्माण के सपने से जुड़ा रहा है। पिछली शताब्दी में मजदूर वर्ग ने अपने इन संघर्षों के बल पर दुनिया के एक हिस्से से पूँजीवादी शासन को उखाड़ फेंका और अपना राज कायम किया था। इसके अलावा ढेरों अन्य देशों में उसने पूँजीवादी हुकमरानों को झुकने और मजदूरों के कुछ वाजिब हकों का मान लेने पर मजबूर किया था। लेकिन शानदार जीतों का यह सिलसिला आगे जारी नहीं रह पाया। कुछ बाहरी साजिशों व कुछ अन्दुरूनी दिक्कतों की वजह से मजदूर वर्ग अपनी इस कामयाबी को बरकरार नहीं रख पाया। नतीजन, मजदूर वर्ग और पूरी मानवता को पूँजी के जुए से मुक्ति का काम फिलहाली तौर पर टल गया। दुनिया भर के पूँजी के मालिकों और पूँजीवादी हुक्मरानों के लिए यह बड़ा ही अनुकूल अवसर था और उन्होनें मजदूरों और मेहनतकशों पर एक चौतरफा हमला बोल दिया। इसी के चलते आज की वह हालत पैदा हुई जिसका ऊपर जिक्र किया गया है।
दुनिया भर थैलीशाहों व साम्राज्यवादी ताकतों से कदम से कदम मिलाते हुए भारत के शासकों ने भी अपने शोषण-शासन के नियम-कानूनों और तौर तरीकों में भारी बदलाव किए जिससे कि मजदूरों, मेहनतकशों और आम जनता के शोषण को और गहरा बनाया जा सके। 1990 में लागू आर्थिक नीतियों के द्वारा पूँजीपति वर्ग के मुनाफे की लूट पर जो थोड़ी बहुत पाबन्दियाँ थीं, उन्हें भी खत्म किए जाने के सिलसिले की शुरूआत कर दी गई। मजदूरों ने अपने संघर्षों के बल पर जो कुछ भी अधिकार हासिल किए थे, नियम कानून बनवाए थे, उन्हें ताक पर रख दिया गया और किसी भी तरीके से मुनाफा कमाने को जायज ठहराया जाने लगा। एक ऐसे अन्धे विकास की नींव पड़ी जो देश की जनता को पहचानता ही नहीं था।
मुनाफे की इस अन्धी हवस और उसको पूरा करने की खुली छूट ने बीस वर्षों में देश को अन्याय-अत्याचार और कलह-विग्रह के नये दौर में पहुँचा दिया है। मजदूरों की पगारें बेतहाशा गिरा दी गयी। सभी नियम कानून ताक रख दिए गये। सांसद से न्यायालय तक, व्यवस्था के सभी अंग उपांग खुले आम पूँजी और मुनाफे के पैरोकारों में तब्दील हो गये। खेतीबाड़ी उजडऩे लगी और लाखों किसान खुदकशी करने पर मजबूर हो गये। लाखों आदिवासियों को उनके जगह जमीन से उजाड़ कर खदेड़ दिया गया। जल, जंगल, जमीन, पहाड़, नदियाँ और प्राकृतिक संसाधन के हर मुमकिन रूप को देशी-विदेशी कम्पनियों को नीलाम कर दिए जाने के लिए खोल दिया गया। पिछले बीस-बाइस सालों से लूट का यही सिलसिला बदस्तूर जारी हैं। लेकिन इसी के समानान्तर इस लुटते, तबाह होते और उजड़ते मुल्क, में लूट के इसी पैसे के एक हिस्से से, मुट्ठी भर धनाढ्यों के लिए विलासिता के स्वर्गों का निर्माण हो रहा है। जहाँ गगनचुम्बी, इमारतें, पाँच सितारा होटल, करोड़ों के अपार्टमेण्ट और चमचमाते हुए शापिंग मॅाल हैं, भाँति-भाँति की विदेशी कारें और उनके लिए शानदार सड़कें और हैरतअंगेज फ्लाइ ओवर हैं, और न जाने क्या क्या हैं ?
लेकिन यह सिलसिला कब तक जारी रह सकता है? जुल्मों सितम के इस इन्तहा से, अन्याय अत्याचार के इस अन्धकार से देश को कौन बाहर निकाल सकता है? कौन इन्साफ , अमन और बराबरी पर आधारित नये समाज से सपने को फिर से जिन्दा कर सकता है? वही, केवल वही लोग इस काम को अंजाम दे सकते हैं जिन्होनें देश की समस्त सम्पदा के निर्माण में अपना खून पसीना बहाया है। वही लोग, जो आज देश की आबादी का सबसे बडा हिस्सा हैं। जाहिरा तौर पर यह मजदूर वर्ग है। यह वही वर्ग है जिसकी अगुआई में चली लड़ाईयों ने पिछली सदी में कई देशों के हुकूमतों को नेस्तनाबूद कर दिया और दुनिया के थैलीशाहों के दिलों में खौफ पैदा कर दिया था। हाँ, यही वर्ग आज समाज को बदलने की लड़ाई में अन्य मेहनतकश वर्गों और आम जनता को नेतृत्व प्रदान कर सकता है। लेकिन भारत का मजदूर वर्ग आज बँटा हुआ है और उसका आन्दोलन ठहराव और दिशाहीनता का शिकार है। अलग-अलग सैक्टरों, उद्योगों, उद्यमों, सेवाओं और कल कारखानों में कार्यरत या अलग-अलग ट्रेड यूनियनों और राजनीतिक दलों के झण्डें तलें संगठित या पूर्णत: असंगठित मजदूरों की करोड़ों की तादात आज बिखरी हुई। इस बिखरी ताकत को एकजुट करना और उसको विचारधारा के क्रान्तिकारी धार से लैस करना आज सबसे बड़ी चुनौती है।
आज मई दिवस का हमारा संकल्प यही होना चाहिए कि हम मजदूर वर्ग की इस नयी एकजुटता को कायम करने के प्रयास में प्राणप्रण से जुट जाए। निश्चित तौर पर यह एक मुश्किल काम है और इसकों अंजाम देने के लिए न केवल एक बड़ी सांगनिक शक्ति की जरूरत है बल्कि प्रतिबद्धता, सूझबूझ और धैर्य के साथ कठिन परिश्रम की आवश्यकता है। निश्चित तौर पर, इस काम को तुरत फुरत में अंजाम नहीं दिया जा सकता है। लेकिन आज हम अपनी छोटी से छोटी ताकत के बूते पर अपनी अपनी जगह इस काम की शुरुआत अवश्य कर सकते हैं।
आइये साथियों, हम मिले जुले, बैठें और इस सवाल पर गम्भीर विचार विमर्श की शुरुआत करें। आइयें शुरुआती कदम रखें। आइये, एक साथ मई दिवस के संकल्पों पर चर्चा करने के लिए निम्न कार्यक्रम में भाग लें :
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