वाशिंगटन से फिर सुधार मुहिम तेज करने के संकेत,अब देखें कि संसद इस बाहरी दबाव को कैसे झेलती है!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
मनमोहन सिंह संसद की दुहाई दे रहे हैं वित्त विधेयक के जरिये आर्थिक सुधार लागू करने के लिए । पर संसद पर दबाव डालने के लिए प्रणव मुखर्जी की टीम ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। रही सही कसर पूरी करदी आईएमएफ ने। वाशिंगटन के शास्त्रीय कार्यक्रम के बाद वाशिंगटन से फिर सुधार मुहिम तेज करने के संकेत आये हैं, अब देखें कि संसद इस बाहरी दबाव को कैसे झेलती है।इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) का कहना है कि भारत सरकार के कामकाज में सुस्ती की वजह से निवेश के लिए माहौल बिगड़ा है।आईएमएफ की एशिया पैसेफिक रीजनल आउटलुक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार को पिछड़ रहे आर्थिक सुधारों में जान फूंकने के लिए नए सिरे से कोशिश करनी होगी।इसके अलावा भारत की अंदरूनी दिक्कतों की वजह से भी वित्त वर्ष 2012 में अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ी है। आईएमएफ ने 2012 में भारत की जीडीपी दर का अनुमान 7 फीसदी से घटाकर 6.9% किया है।इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ाने के संकेत दिए हैं।आईएमएफ ने निवेश का माहौल सुधारने, बुनियादी ढांचे की बाधाओं को दूर करने और शिक्षा के अवसरों के विस्तार की जरूरत बताई है, जिससे सुधारों को रफ्तार दी जा सके।अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने कहा कि भारत में निवेश घटने की वजह से 2012 में वृद्धि दर का परिदृश्य कमजोर हुआ है। आईएमएफ ने कहा कि ढांचागत सुधार एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए नए प्रयासों की जरूरत है।आईएमएफ ने कहा कि 2012-13 के बजट में कुछ वित्तीय सुधारों और सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के कुछ उपायों को छोड़कर बुनियादी ढांचा क्षेत्र से संबंधित सुधारों के क्रियान्वयन की गति धीमी रहेगी।
प्रधानमंत्री ने आज कहा कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट के दाम बाजार भाव के हिसाब से वाजिब बनाए जाने की जरूरत है।पंजाब के भटिंडा में एचपीसीएल की रिफाइनरी का उद्घाटन करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत पूरी तरह से पेट्रोलियम प्रोडक्ट के आयात पर निर्भर है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाम बढ़ने का सीधा असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि गरीबों पर पेट्रोलियम उत्पादों का बोझ लादना बड़ा मुश्किल फैसला होता है लेकिन सब्सिडी का बोझ भी एक तय सीमा से ज्यादा ऊपर नहीं लाया जा सकता।पेट्रोलियम रिफाइनरी कंपनियां पहले ही पेट्रोल के दाम 8 रुपये लीटर तक फौरन बढ़ाने की मांग कर रही हैं। साथ ही डीजल पर तेल कंपनियों को करीब 15 रुपये लीटर का नुकसान हो रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री के बयान से लगता है कि सरकार पर दाम बढ़ाने का दबाव बढ़ रहा है।वोडाफोन जैसे सौदों पर कर लगाने के लिए आयकर कानून में पिछली तारीख से संशोधन के प्रस्ताव पर चल रही बहस के बीच सरकार ने शनिवार को कहा कि वह इस मामले में संसद के फैसले को मानेगी।कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने संवाददाताओं से कहा कि मेरी समझ से वित्त विधेयक पर मई के पहले सप्ताह में बहस होगी और मुझे वहीं करना है जो संसद कहेगी।नीतियों के मामले में एक के बाद एक कदम पीछे हटाने के आरोप झेल रही सरकार आखिरकार बैंकिंग विधेयक के मामले में तो आगे बढ़ रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जिस विधेयक को मंजूरी दी, उसमें सरकारी बैंकों में वोटिंग अधिकार की सीमा 1 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी कर दी गई। निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए सीमा 10 से बढ़ाकर 26 फीसदी कर दी गई है। अब इस पर संसद की मुहर लगना बाकी रह गया है।यह विधेयक इस बजट सत्र में ही पेश किया जाएगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में बैकिंग कानून संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गई। इसके मुताबिक सरकारी क्षेत्र के बैंकों में हिस्सेदारों के मौजूदा वोटिंग अधिकार एक से बढ़ाकर 10 फीसद कर दिया जाएगा। इसी तरह से निजी क्षेत्र के बैंकों में हिस्सेदारों को 26 फीसद का वोटिंग अधिकार दिया गया है। इसका मतलब हुआ कि इन बैंकों में हिस्सेदारों की चाहे जितनी भी इक्विटी हो उन्हें इस सीमा से ज्यादा वोटिंग का अधिकार नहीं मिलेगा। अभी इनके इनके वोटिंग अधिकार 10 फीसद तक सीमित हैं। पहले वित्त मंत्रालय ने बैंकिंग कंपनियों में इक्विटी रखने वालों को उनकी हिस्सेदारी के बराबर वोटिंग देने का प्रस्ताव किया था।यह विधेयक पिछले वर्ष लोक सभा में पेश किया गया था। बाद में वित्त मंत्रालय की स्थाई समिति ने इसमें कई बदलाव करने के सुझाव दिए थे। इस विधेयक के जरिए सरकार यह इंतजाम भी करने जा रही है कि बैंकिंग कंपनियों को विलय के लिए प्रतिस्पर्धा आयोग की मंजूरी न लेनी पड़े। प्रस्तावित विधेयक बैंकों की निगरानी को लेकर रिजर्व बैंक [आरबीआइ] को ज्यादा अधिकार भी देगा। केंद्रीय बैंक न सिर्फ बैंक बल्कि उनकी कुछ सहायक कंपनियों पर गतिविधियों पर भी नजर रख सकेगा। साथ ही भारतीय बैंकों को शेयर बाजार से राशि जुटाने के लिए कुछ अन्य सुविधाएं भी यह विधेयक देगा। मसलन सरकारी बैंकों के लिए बोनस शेयर जारी करना आसान हो जाएगा।
बाजार का ताजा हाल सरकार को राहत देने के लिए कापी नहीं है। थोड़ी बहुत तेजी से मामला बनता नहीं दीख रही। सरकार गियर नहीं बदलती तो बाजार सुस्त ही रहने की आशंका है।हालांकि स्पेशल ट्रेडिंग सेशन के आखिरी कारोबार में बाजार ने रफ्तार पकड़ी। सेंसेक्स 75 अंक चढ़कर 17209 और निफ्टी 18 अंक चढ़कर 5209 पर बंद हुए।सरकारी कंपनियों के शेयरों में 1.5 फीसदी की तेजी आई। नेवेली लिग्नाइट, ईआईएल, एनएमडीसी, एससीआई 3.5-3 फीसदी चढ़े।रियल्टी, बैंक, मेटल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटो, पावर, हेल्थकेयर, एफएमसीजी शेयर 1-0.4 फीसदी मजबूत हुए। ऑयल एंड गैस, कैपिटल गुड्स, आईटी, तकनीकी शेयरों में हल्की बढ़त दिखी। ग्लोबल तेजी के बीच मौजूदा शादी-ब्याह सीजन के मद्देनजर भारी लिवाली के चलते दिल्ली सर्राफा बाजार में शनिवार को सोने के भाव 100 रु. की तेजी के साथ 29540 रु. प्रति दस ग्राम की रेकॉर्ड ऊंचाई तक जा पहुंचे। यह स्तर 8 दिसंबर को देखा गया था। औद्योगिक इकाइयों और आभूषण निर्माताओं की मांग बढ़ने से चांदी के भाव 100 रु. की तेजी के साथ 56500 रु. प्रति किलो बोले गए। बजट 2012 में इंश्योरेंस और म्यूचुअल फंड को लेकर कुछ बड़े ऐलान नहीं किए गए। कहा जा सकता है इस बजट से ना तो इंश्योरेंस इंडस्ट्री खुश है और ना ही म्यूचुअल फंड स्कीमों की झोली में कुछ खास आया है।बाजार की इस शिकायत को दूर करने की भी तैयारी चल रही है।वित्तीय घाटे को लेकर म्यूचुअल फंड बाजार में काफी चिंता बनी हुई। वित्तीय घाटे के चलते बाजार निराशाजनक स्थिति में बने रहते हैं, जिसका असर म्यूचुअल फंड्स के रिटर्न पर पड़ता है।राजीव गांधी इक्विटी स्कीम को लेकर भी अच्छे ऐलान सरकार ने किए हैं। लेकिन एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स बढ़ाकर सरकार ने बाजार कि चिंताओं को जिंदा रखा है।म्यूचुअल फंड उद्योग में नई जान फूंकने के लिए फिर से एंट्री लोड लगा सकता है सेबी! बाजार नियामक सेबी ने अगस्त 2009 में म्यूचुअल फंड के एंट्री लोड को खत्म कर दिया था जिसका फंड वितरकों और एजेंटों ने काफी विरोध किया था। अब सेबी फिर से इसे लागू कर सकता है। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड इन इंडिया (एंफी) के चेयरमैन एच एन सिनोर ने हाल में इस तरह का संकेत दिया था कि सेबी इस मसले को लेकर गंभीर है और संभव है कि वह फिर से एंट्री लोड लगा सकता है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को पेट्रो पदार्थो की कीमतों में वृद्धि का अर्थशास्त्र समझाते हुए कहा कि भारत ऊर्जा के मोर्चे पर विकट स्थिति का सामना कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से देश का आयात खर्च बढ़ता जा रहा है इसलिए घरेलू कीमतों को तर्कसंगत बनाने की जरूरत है।गौरतलब है कि सरकारी कंपनियों ने कच्चे तेल और दूसरी जरुरी लागतों के दाम में भारी बढ़ोतरी के बावजूद पिछले एक वर्ष से घरेलू एलपीजी और केरोसिन के दाम नहीं बढ़ाए हैं।प्रधानमंत्री ने कीमतों को तर्कसंगत बनाने के साथ साथ जरूरतमंदों का ध्यान रखने पर भी जोर दिया। हालाकि, सरकार ने जून 2010 से पेट्रोल कीमतों के निर्धारण पर से अपना नियंत्रण हटा लिया है। लेकिन सरकारी तेल कंपनियां राजनीतिक दबावों की वजह से कीमतों में बढ़ोतरी नहीं कर पा रही है।
दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 65.64 रुपये है जो कि उसकी लागत से करीब नौ रुपये कम है। डीजल, घरेलू एलपीजी और मिट्टी तेल के दाम निर्धारण पर सरकारी नियंत्रण है। तेल कंपनियों को मौजूदा दाम पर डीजल की बिक्री पर 16.16 रुपये, राशन में बेचे जाने वाले मिट्टी तेल पर 32.59 रुपये लीटर और 14.2 किलो के घरेलू रसोई गैस सिलेंडर पर 570.50 रुपये का नुकसान हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव से आम आदमी को बचाने के लिए डीजल, केरोसिन और घरेलू एलपीजी के दामों को उनकी वास्तविक बाजार लागत से कम पर रख सरकार इनका भारी बोझ वहन कर रही है।
वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान इंडियन ऑयल कारपोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम को लागत से कम कीमत पर डीजल, घरेलू एलपीजी और केरोसिन की बिक्री से 1,38,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अंतरराष्ट्रीय बाजार की मौजूदा ऊंची कीमतों को देखते हुए चालू वित्त वर्ष में इसके 208,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशंका है।
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