मिलावट की गारंटी देते दुकानदार
- MONDAY, 30 APRIL 2012 16:26
नकली चाय की पत्ती तैयार करने में पुराने चमड़ों का बारीक बुरादा इस्तेमाल किया जाता है. इसी प्रकार चीनी की जगह भी कुछ ऐसी दवाईयां व केमिकल्स प्रयोग हो रहे हैं जो चीनी से कम लागत में चीनी से अधिक मिठास पैदा कर देते हैं...
निर्मल रानी
भारत में दूध को सबसे अधिक पवित्र,पौष्टिक खाद्य एवं पेय पदार्थ माना जाता है. पीने के अतिरिक्त दूध का प्रयोग विभिन्न रूपों में भी किया जाता है. दही, पनीर, छाछ, मक्खन,घी,मलाई व छेना के अतिरिक्त सैकड़ों प्रकार की मिठाईयां इसी दूध से तैयार होती हैं. दूध के उत्पादन के स्रोत भी मुख्यत: गाय व भैंस ही होते हैं. परन्तु हमारे देश में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण उत्पाद व खपत में आने वाले बड़े अन्तर के परिणामस्वरूप दूध उत्पादन के और भी कई रास्ते वैज्ञानिकों द्वारा तलाश कर लिए गए हैं. जिनमें सोयाबीन से बनने वाला दूध भी एक ऐसा दुग्ध उत्पाद है जोकि जनता द्वारा लगभग स्वीकार किया जा चुका है.
हमारे देश में दूध की निरंतर बढ़ती खपत का ही परिणाम है कि देश में जगह-जगह नई-नई कम्पनियों ने अपने मिल्क प्लांट खोल दिए हैं. कई पुराने मिल्क प्लांट ने इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपने नए युनिट तमाम नई जगहों पर स्थापित कर लिए हैं. इन मिल्क प्लांट में आमतौर पर सीधे गांवों में जाकर पशु पालकों से दूध की $खरीददारी कर ली जाती है.
यहां यह कहा जा सकता है कि अपनी योजना के अनुसार मिल्क प्लांट अपनी जरूरत का कुछ ही प्रतिशत दूध सीधे पशु पालकों से खरीद पाने में सफल हो पाता है. परन्तु यदि हम दूध की कुल खरीद तथा उस दूध से बनने वाले व्यंजन की सभी किस्मों की मात्रा तथा भार पर नजर डालें तो हम देखेंगे कि किसी मिल्क प्लांट में जितनी मात्रा में अथवा जितने वजन में दूध की आमद या $खरीद होती है, उससे कई गुना अधिक वजन के दुग्ध उत्पाद इन्हीं मिल्क प्लांट में तैयार किए जाते हैं.
मिल्क प्लांट में तैयार होने वाले उत्पादों में शुद्घ देसी घी, दूध की कई रंगीन स्वादिष्टï व विभिन्न खुशबुओं वाली बोतलें, मीठी व नमकीन लस्सी, मिल्क केक, पेड़ा, खीर, पनीर, खोया, मक्खन, क्रीम, आईसक्रीम तथा सादे दूध की दो तीन श्रेणियों के अतिरिक्त दुग्ध उत्पाद से जुड़ी और भी बहुत सी $िकस्में पाई जाती हैं. यहां प्रश्र यह है कि यदि इन मिल्क प्लांट्स में दूध की खरीद ही कुल उत्पादन के व$जन एवं मात्रा से काफी कम की जाती है तो उत्पाद के लिए मिल्क प्लांट आखिर दूध के अतिरिक्त और कौन से कच्चे माल का इस्तेमाल करता है?
आमतौर पर घरेलू विधि के अनुसार यदि किसी दूध से घी अथवा क्रीम निकाल लिया जाए तो उस दूध की पौष्टिïकता लगभग समाप्त हो जाती है. परन्तु यह मिल्क प्लांट ही हैं जहां न केवल उनके पास दूध से देसी घी, दही व पनीर जैसे सभी उत्पादों के तैयार कर लिए जाने के बावजूद बढिय़ा दूध भी उपलब्ध रहता है. बल्कि जितना चाहें और जब चाहें तब उतना ही उपलब्ध रहता है.
यह तो था आम लोगों के सामने प्रतिदिन नजर आने वाला वह रहस्य जिसे न तो जनता सुलझाना चाहती है न ही मिल्क प्लांट की ओर से इन बातों की सच्चाई पर रौशनी डालने की कोशिश की जाती है. दूध की दिनों-दिन बढ़ती हुई राष्ट्रव्यापी खपत ने कुछ तीव्र बुद्घि ठगों को भी दूध बनाने के नए-नए उपाय सुझा दिए हैं. पुलिस द्वारा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान,पंजाब, बिहार व उत्तर प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में कई बार ऐसे गिरोहों का भण्डाफोड़ हो चुका है जो कि यूरिया खाद, कपड़ा धोने वाले साबुन में प्रयोग होने वाले कुछ रसायन तथा ऐसी कई अन्य ज़हरीली वस्तुओं के मिश्रण से हूबहू दूध जैसा वह घोल तैयार कर देते हैं जोकि न सिर्फ देखने में शुद्घ दूध सा प्रतीत होता है बल्कि इसी दूध से वह सभी उत्पाद तैयार हो जाते हैं जोकि असली दूध से तैयार होते हैं.
पुलिस द्वारा कई बार ऐसे नेटवर्क का भण्डाफोड़ किया जा चुका है. परंतु सवाल यह है कि क्या पुलिस द्वारा ऐसे नेटवर्क का भण्डाफोड़ किए जाने के बावजूद अब यह नेटवर्क पूरी तरह बन्द हो चुके हैं या ऐसे तत्वों ने अपने चेहरे व स्थान बदल कर दूध के नाम पर जहर, बेचने का यह व्यवसाय अब भी बदस्तूर चला रखा है?
पिछले दिनों मुझे यू पी होते हुए बिहार जाने का अवसर मिला. रास्ते में ट्रेन पर मिलने वाली चाय के हर जगह लगभग अलग-अलग स्वाद चखने को मिले. चाय पीने से सा$फ पता लगता था कि स्टेशन व रेलगाडिय़ों में बिकने वाली चाय में न केवल दूध का स्वाद संदेहपूर्ण है बल्कि चाय की पत्ती व चीनी भी अपने वास्तविक स्वाद के अनुरूप नहीं लगी. इस विषय पर छिड़ी चर्चा के दौरान अधिकांश मुसाफिर यही कहते मिले कि दूध, चीनी व पत्ती सभी कुछ अविश्वसनीय है.
एक व्यक्ति ने तो यहां तक बताया कि जिस प्रकार नक़ली दूध बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के केमिकल्स तथा यूरिया आदि का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है, उसी प्रकार चाय की पत्ती के नाम पर भी बाजार में वह कुछ बिक रहा है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. बात सुनने में अविश्वसनीय तो जरूर लगेगी परन्तु कुछ मुसाफिरों ने तो बड़े दावे के साथ यह भी कहा कि नकली चाय की पत्ती तैयार करने में पुराने चमड़ों का बारीक बुरादा इस्तेमाल किया जाता है. इसी प्रकार चीनी की जगह भी कुछ ऐसी दवाईयां व केमिकल्स प्रयोग हो रहे हैं जो चीनी से कम लागत में चीनी से अधिक मिठास पैदा कर देते हैं. ज़ाहिर है ऐसी चीज़ों का सेवन किसी भी व्यक्ति के शरीर में केवल ज़हर ही घोलता है.
इसी प्रकार दीपावली जैसे त्यौहारों के नजदीक आते ही पूरे देश में लाखों टन मिठाईयों का आदान-प्रदान व खरीद फरोख्त जनता द्वारा की जाती है. दीपावली के आगमन से पूर्व जनता भले ही स्वयं को नवरात्रों व दशहरा जैसे त्योहारों में व्यस्त क्यों न पाती हो परन्तु दुग्ध मिलावटखोरों व नकली दूध निर्माताओं की निगाहें पहले से ही दीपावली की उस रौनक पर पड़ चुकी होती है, जिसमें कि लाखों टन नकली दूध दीपावली के बहाने भारत जैसे विशाल बाजार में खप जाया करता है. देश में कई स्थानों पर कई बार मालगोदामों व कोल्ड स्टोरेज में बड़ी मात्रा में छुपा कर रखी गई वह ज़हरीली मिठाईयां पकड़ी जाती हैं जो कि दीपावली में बेचने के मकसद से तैयार कर काफी पहले से कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित रख दी जाती हैं.
आखिर देश की भोली-भाली जनता के साथ ऐसा विश्वासघात कब तक होता रहेगा? जिस दूध की पवित्रता की लोग कसमें खाते हैं तथा सफेदी के लिए जिस दूध के रंग को उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उस दूध के नाम पर हम कब तक जहर पीते रहेंगे? यहां एक विषय यह भी काबिले गौर है कि ऐसे धन्धों में लिप्त लोगों के लिए न तो किसी बड़ी सजा का प्रावधान है न ही वे अधिक समय तक जेल में रह पाते हैं.
उधर समाज भी ऐसे समाज विरोधी लोगों को जल्दी ही माफ भी कर देता है. जाहिर है ज़हर बेचने जैसा जुर्म करने व इसके बावजूद इनका कुछ न बिगडऩे के बाद इनके हौसले पस्त क्योंकर होंगे? दूसरी ओर अन्य विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों की तरह इस नेटवर्क में भी जिम्मेदार लोगों व तथाकथित राष्ट्र रक्षकों की संलिप्तता से भी कतई इन्कार नहीं किया जा सकता. क्योंकि इस तरह का जो भी काम होता है, वह कहीं न कहीं आबादी के बीच में ही होता है तथा इस नकली उत्पाद में प्रयुक्त होने वाली सामग्री के आवागमन को भी गुप्त नहीं रखा जा सकता.
यह नकली माल इन्हीं मुख्य सडक़ों पर चल फिर कर अपनी मंजिल तय करता है जिस पर कि हम सभी तथा कानून के रखवाले भी आया-जाया करते हैं. लिहाजा जम्मेदार लोग इस नेटवर्क से अनभिज्ञ हैं, यह बात भी पूरी तरह हजम नहीं होती. कुल मिलाकर जनता को इस विषय पर बहुत चौकस व सचेत रहने की जरूरत है. जनता को यह समझ लेना चाहिए कि सफेद दिखाई देने वाला हर पेय पदार्थ दूध नहीं हो सकता.
निर्मल रानी उपभोक्ता मामलों की जानकार हैं.
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