मुहम्मद तुगलक के पीछे मोदी जी और उनके पीछे
हरीश रावत. और मेरे पिताश्री
मुहम्मद तुगलक ने हिसाब तो सही लगाया था कि राजधानी दिल्ली राज्य के एक कोने में है. और इस पर मंगोलों के आक्रमण का खतरा बना रहता है. यदि राजधानी राज्य के केन्द्र में होगी तो प्रशासनिक दृष्टि से भी और मंगोलों के आक्रमण से दूरी के हिसाब से उचित रहेगा. महाराष्ट्र स्थित दौलताबाद को नयी राजधानी के लिए चुना गया. दोनों स्थानों के बीच प्रशस्त राजमार्ग बनाया गया, मार्ग के दोनों ओर छायादार पेड़ लगाये गये. और हुक्म हुआ कि राजधानी का हर वाशिन्दा चाहे वह सकलांग हो या विकलांग दौलताबाद के लिए प्रस्थान करे. . दूरी सात सौ मील या १२४० कि.मी. साधन- सम्पन्न घोडों, पालकियों, हाथी पर सवार होकर चले तो विपन्न छकड़ों पर या पैदल चले. दौलताबाद पहुँचते-पहुँचते आधे से अधिक मनुष्य और पशु स्वर्ग सिधार गये. सुल्तान को अपनी गलती का अहसास हुआ तो फिर हुक्म जारी हुआ कि सब लोग वापस दिल्ली चलें. इस हुक्म से ही बहुत से लोगों को ऐसा धक्का लगा कि बचे हुए लोगों मे से भी सैकड़ों मार्ग में भोगी गयी कठिनाइयों की पुनरावृत्ति की याद से ही चल बसे. सुल्तान उजड़ी दिल्ली में वापस आ गया.
आज भी भारत की बहुसंख्य जनता अभावों, कुपोषण, अशिक्षा, चिकित्सा की दुर्लभता और प्रशासनिक उत्पीड़न या उपेक्षा से पीडित है. हर साल हजारों किसान सूखे, फसलों के बरबाद होने, बिचौलियों के कारण अपनी उपज का उसकी लागत के बराबर मूल्य न मिलने भारी सूद पर उधार देने वाले का कर्ज न चुका पाने के कारण आत्म हत्या कर रहे हैं,
पर सरकार है कि उसकी फिजूलखर्ची कम होती ही नहीं
मोदी जी भी मन की बात करते हैं पर तन की नहीं सोचते. अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के एक दिवसीय नौटंकी में एक अरब रुपये से भी अधिक धनराशि, जिससे कम से कम दस हजार लोगों को छत मिल सकती थी, हवा हो गयी. अब कच्छ में पुलिस महा निदेशक-प्रधानमंत्री संगम फिल्म की शूटिंग हो रही है. ४००० पुलिस कर्मी, अनेक हेलीकौप्टर, सशत्र बल के जवान, तैनात हो रहे हैं. बुलेट प्रूफ टैंट लगवाये जा रहे हैं लाव लश्कर के साथ प्रधानमंत्री, गृह मंत्री,प्रशासनिक अधिकारी पधारेंगे, उनके लिए सैकड़ों टैंट लगेंगे. और चार दिन बाद शिविर समाप्त हो जायेगा. फिर शिविर उठाने पर व्यय होगा. २०-२२ अरब की यहाँ भी ठुकेगी.
मैं सोचता हूँ कि क्या यह कार्यक्रम दिल्ली में नहीं हो सकता था.? क्या हर एक पुलिस महानिरीक्षक के साथ अन्तरंग बातचीत दिल्ली में नहीं हो सकती थी? मोदी जी डिजिटल इंडिया का हल्ला तो बहुत करते हैं. अच्छा होता यह सारा उपक्रम वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से होता. और इस कार्यक्रम मे लगने वाली राशि को लाखों गरीबों के जी्वन स्तर को उठाने के लिए नियोजित किया जाता. पर जब दिमाग में बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी का जुनून हो तो ऐसे में देश के आम आदमी की तकलीफें कहाँ टिक सकती हैं.
यही हाल हमारे मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत के गैरसैण में विधान सभा का सत्र के आयोजन का है. आर्थिक अभावों से जूझ रहे प्रदेश पर यह अधिक से अधिक धनराशि का बिल बना्ने में माहिर महारथियों की यह नौटंकी कितनी भारी पड़ती होगी, यह हम सब समझ सकते हैं.
मैं स्वयं इस का भुक्तभोगी हूँ. मेरे पिताश्री ने में जहाँ तहाँ से उधार लेकर बड़ी धूमधाम से अपने इकलौते स्कूल मास्टर बेटे की शादी की, बेटे ने पिताजी से आपत्ति जतायी तो पिताश्री ने कहा ' तू क्या जानता है ठाठ से ठाठ मारा जाता है' यह ठाठ तो नहीं मारा गया. कहाँ हनी कहाँ मून, बेटे की शादी के आरंभिक सात साल कर्ज उतारने में ही मारे गये.
इसलिए मोदी जी और रावत जी चूंकि आप इस स्कूल मास्टर की सी परिस्थिति से उबरे हैं. इसलिए किसी भी ऐसे कार्यक्रम से पहले यह विचार अवश्य कर लीजिएगा कि कहीं आपके मेरे पिता जी की तरह ठाठ से ठाठ मारने से देश के हजारो नौजवानों की जवानी मेरी तरह उधार चुकाने में ही न मारी जाय.
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