क्रिकेट मूर्खों का खेल अवश्य है , लेकिन सभी क्रिकेट खिलाड़ी मूर्ख नहीं होते , यह मेरे पूर्व परिचित भागवत झा आज़ाद के सुपुत्र कीर्ति झा ने सिद्ध कर दिखाया । भागवत झा आज़ाद उन दिनों बिहार के मुख्य मंत्री थे और उनके आत्मज कीर्ति राजनीति में दाखिल होने जा रहे थे । मेरा मानना था , आज भी है , कि क्रिकेट खेलने और देखने वाले छिछोरे , कम अक़्ल और अंग्रेजों के मानसिक गुलाम होते हैं । अतः उन्हें राज काज से दूर रखना चाहिए । मैं पटना में नव भारत टाइम्स का सब एडिटर था । मैंने अपने पिता के मित्र और बिहार के वरिष्ठ मंत्री प्रो . सिद्धेश्वर प्रसाद को बोला - मैं अज़दवा को किलसाना चाहता हूँ , ताकि वह मुझे मारने लपके और मैं बवाल काटूं । प्रोफेसर जी हंसे और मुझे अपनी कार में बिठा कर मुख्य मंत्री आवास या दफ्तर कहीं ले गए । हंसता खिलखिलाता बिंदास सी एम् मैंने पहली बार देखा । मेरी ओर बेल का शर्बत बढ़ाते मुख्य मंत्री ने बताया कि किस तरह उन्होंने मंत्री पद ठुकरा दिया था , jb indiraa गांधी ने उनके जूनियर को केबिनेट और उन्हें राज्य मंत्री बनाया । फिर एक बार उन्होंने राजीव गांधी को ललकारा - संभाल तेरी घोड़ी , मैंने नौकरी छोड़ी । ,,,, " मैं अपना एजेंडा भूल गया । जिया हो बिहार में लाला हो
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