Human Rights violated,UID linked to CIA
इस जिद के साथ कि सबको जाति-पाति रहित एक सुंदर जीवन चाहिए!
Parliament, State Legislatures should oppose 12 digit biometric
aadhaar/UID Number like West Bengal Assembly
पलाश विश्वास
INTERNATIONAL HUMAN RIGHTS DAY!
आज के संवाद का शीर्षक
सबको जाति-पाति रहित एक सुंदर जीवन चाहिए
कृपया फेस बुक पर लिखें
PRESS RELEASE- Black Day for Human Rights, Queer Rights in #India #Sec377
http://www.kractivist.org/press-release-black-day-for-human-rights-queer-rights-in-india-sec377/
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Adv Kamayani Bali Mahabal
+919820749204
skype-lawyercumactivist
Hey folks, coined this term " Kracktivism ", check out my blog
http://kractivist.wordpress.com/Kracktivism
Blog for girl child- http://fassmumbai.wordpress.com/
Blog for Kashmir -http://kashmirsolidaritymumbai.wordpress.com/
Blog for KKM defence Committee- http://kabirkalamanch.wordpress.com
https://twitter.com/#!/Kracktivist
https://www.facebook.com/kamayani
*I carry a torch in one hand
And a bucket of water in the other:
With these things I am going to set fire to Heaven
And put out the flames of Hell
So that voyagers to God can rip the veils
And see the real goal.......
Rabia (Rabi'a Al-'Adawiyya)
आज मानवाधिकार दिवस है।जाहिर है कि देशभर में मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में नगर में विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने कार्यक्रम आयोजित किये गये।भारत में अस्पृश्य भूगोल में न कानून का राज है और न कहीं संविधान लागू है।सुप्रीम कोर्ट की अवमानना सत्ता वर्ग के बांए हाथ का खेल है। भारतीय जनता के विरुद्ध युद्धरत है सैनिक राष्ट्र। आर्थिक सुधारों,विकास और इंफ्रा के नाम,शहरीकरण और औद्योगीकरण के बहाने देश के चप्पे चप्पे पर मानवाधिकार का हनन हो रहा है।मीडिया और सोशल मीडिया में भी जनसरोकार के मुद्दे सिरे से गायब है। संसदीय प्रणाली कारपोरेट नीति निर्धारण,कारपोरेट राजनीति और कारपोरेट राजकाज की वजह से अब भारतीय लोकगणराज्य के नागरिकों का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
भारत में मानवाधिकार व नागरिक अधिकारों की अनुपस्थिति की मुख्य वजह वर्णवर्चस्वी सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था और इसके तहत जाति व्यवस्था,नस्ली भेदभाव,आदिवासियों का अलगाव और भौगोलिक अस्पृश्यता है।इस तिलिस्म को तोड़ने की कोई पहल किये बिना मानवाधिकार चर्चा आत्मरति के अलावा कुछ नहीं है।
भारत में मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध सारे युद्ध अपराधी राष्ट्रनेता है। आदिवासियों और अस्पृश्यों का नरसंहार आंतरिक सुरक्षा है। सिख जनसंहार, भोपाल गैस त्रासदी, मरीचझांपी नरसंहार, बाबरी विध्वंस,गुजरात नरसंहार,मुजफ्फरनगर में रामपुर तिराहा बलात्कार कांड,ऐसे ही पूर्वोत्तर और कश्मीर में मानवाधिकार हनने के मामलों,नरसंहारों,सामूहिक बलात्कारकांडो,फर्जी मुठभेड़ों, देश भर में समय समय़ पर हुए दंगों और देशभर में भूमि संघर्षों,जाति संघर्षों के मामलों कोई न्याय हुआ नहीं है।हमारी सारी मेधा इन्हीं अपराधियों को देश की बागडोर सौंपने में खर्च हो रही है और हमीं लोग मानवाधिकार की वातानुकूलित चर्चा भी कर रहे हैं।इसे पाखंड के सिवाय क्या कहा जाये,हमारे पास शब्द नहीं है। भारतीय नागरिक सूचना के अधिकार होने के बावजूद बेहद जरुरी सूचनाओं से वंचित है। नागरिक सेवाएं और बुनियादी जरुरतें क्रयशक्ति पर निर्भर है।ऐसे जनविरोधी नरसंहार समय में हम किसक मानवाधिकार की बात कर रहे हैं,सोचें।मानवाधिकारों का हनन अब सामान्य सी बात हो गई है। सड़कों से थानों तक ऐसे तमाम मामले हर रोज देखने को मिलते हैं। जहां मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ती हैं।
जबकि किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है। मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही बहस होती रही है। बहस इस बात पर कि एक इंसान की के अधिकार कहाँ तक सीमित हैं, बहस इस बात की कि इंसान को इंसान की तरह जीने देना, और साथ में उनका भी मानव अधिकार जो औरों के मानव अधिकारों का हनन करतें हैं। मानव अधिकारों का मतलब है कि मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है, जिसके सभी मनुष्य अधिकारी है।
बेहद जटिल परिस्थितियां हैं।आदिवासी समुदायों से मेरी निरंतर बात होती रहती है। सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून और सलवा जुड़ुम के अलावा बाकी कानून भी बदलकर बिगाड़कर सर्वदलीय सहमति से जनसंहार संस्कृति जारी है निरंकुश। अस्मिताओं की राजनीति में उलझा लोकतंत्र विकलांग हो चुका है।इसके विपरीत कहने को प्रति वर्ष 10 दिसंबर को मानव अधिकार दिवस मनाया जाता है। सन् 1945 में अपनी स्थापना के समय से ही संयुक्त राष्ट्रसंघ ने मानव अधिकारों की अभिवृद्धि एवं संरक्षण के लिए प्रयास आरंभ किए। इसी के मद्देनजर मानव अधिकार आयोग ने अधिकारों की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 को स्वीकार किया। मानवाधिकार मनुष्य के वे मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं, जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता।
ढाक ढोल से मुनादी होते रहने के बावजूद मानवाधिकारों की बहाली भारत में हुई ही नहीं है।संयुक्त राष्ट्र का संचालन अमेरिकी नियंत्रण में है और अमेरिकी जायनवादी कारपोरेट साम्राज्यवाद के हितों के मद्देनजर दुनिया के हर हिस्से में गृहयुद्ध और युद्ध के हालात है।मुक्त बाजार की व्यवस्था और ग्लोबीकरण का पूरा तंत्र ही युद्धक अर्थशास्त्र है जो भारत में धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद और वर्णवर्चस्वी नस्ली जाति व्यवस्था व भौगोलिक भेदभाव,एकाधिकारवादी कारपोरेट आक्रमण और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट, जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता के निरंकुश बेदखली अभियान की वजह से युद्ध परिस्थितियां हैं।हर नागरिक आधार योजना के तहत सीआईए,नाटो,ड्रोन सुरक्षातंत्र, पारमाणविक विकिरण,रसायनिक संक्रमण और प्रिज्म निगरानी की जद में है।कृषि व्यवस्था का ध्वंस भारत में मानवाधिकार हनन का सबसे बड़ा कारण है और इसका सबसे घातक हथियार है असंवैधानिक निराधार कारपोरेट आधार।वैसे भी विश्व के समस्त देशों के नागरिकों को अभी पूर्ण मानव अधिकार नहीं मिला है। अफ्रीका के अनेक देशों एवं संयुक्त राज्य अमरीका के दक्षिणी राज्यों में अभी भी किसी-न-किसी रूप में दासप्रथा, रंगभेद तथा बेगारी मौजूद हैं। भारत में हरिजनों तथा अनेक परिगणित जातियों को व्यवहार में समता और संपत्ति के अधिकार नहीं मिल सके हैं। दो तिहाई मानव जाति का अभी भी आर्थिक शोषण होता चला आ रहा है। भारत में तो निनानब्वे प्रतिशत जनगण मानवाधिकार वंचित हैं और उन्हें इसका अहसास तक नहीं है।
सामाजिक यथार्थ से टकराने वाले लोग अलग अलग द्वीप बने हुए हैं। पीड़ित भारतीय जनता अलगाव की शिकार युद्धबंदी हैं तो बाकी नागरिक मुक्त बाजार के उपभोक्ता मात्र।क्रयशक्ति की अश्लीलता ने वर्णवर्चस्वी समाज को धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के शिकंजे में बुरी तरह से फंसा दिया है।
हमने पिछले दिनों वैकल्पिक मीडिया के लिए बेहतरीन काम कर रहे अभिषेक श्रीवास्तव, रियाजुल हक से लेकर तमाम साथियों से निवेदन किया है कि हमें बेहतर समन्वय के साथ हमारे प्रयासों के समग्र प्रभाव के बारे में नये सिरे से सोचना चाहिए। अपने ब्लागों और सोशल नेटवर्किंग के मार्फत हम सूचनाएं लोगों तक पहुंचाने का हरसंभव प्रयत्न कर रहे हैं। लेकिन जिन लोगों पर इस कारपोरेट राज का कहर बरप रहा है,उन्हें हम संबोधित कर ही नहीं पा रहे हैं। सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी के लिए अबतक हम कोई पहल नहीं कर सके हैं।राष्ट्रव्यापी जनआंदोलन तो बहुत असंभव है मौजूदा परिस्थितियों में, हम अलग अलग आंदोलन चला रहे,अलग अलग जनसंगठनों के बीच कोई आपसी संवाद की स्थिति बना पाने में भी नाकाम है।
बढ़ती हुई सोशल मीडिया की ताकत के मद्देनजर इस माध्यम की पहुंच से भी जनसरोकार को अलहदा करने का तंत्र बन रहा है। दूसरी तरफ,ड्रोन और प्रिज्म की निगरानी में न केवल निजी गोपनीयता और नागरिक संप्रभुता का हनन हो रहा है,असंवैधानिक कारपोरेट आधार कार्ड योजना से हर जरुरी बुनियादी सेवाओं को गैरकानूनी ढंग से जोड़कर नागरिकों के बारे में बायोमेट्रिक डिजिटल तथ्य सीआईए और नाटो के हवाले किये जा रहे हैं।
यह पूंजीवाद नहीं है,कारपोरेट साम्राज्यवाद है और हमारे तमाम जागरुक मित्र मानतेहैं कि इस बंदोबस्त में किसानों और मजूरों का कत्लेआम तय है। आदिवासियों और दूसरे कमजोर समुदायों का नरसंहार अभियान तो नरंकुश चल ही रहा है।
नागरिकता संशोधन कानून बनते वक्त भी हम इसे कारपोरेट राज का हथियार मानते रहे हैं। आधार योजना तो आधी आबादी के सफाये का चाकचौबंद इंतजाम है।इस कानून के खिलाफ पहलीबार किसी विधानसभा में पहलीबर सर्वदलीय प्रस्ताव पारित हुआ। पर बंगाल विधानसभा में पारित इस प्रस्ताव पर चर्चा करने के बजाय कारपोरेट मीडिया में आधार कार्ड की अनिवार्यता स्थापित करने का अभूतपूर्व अभियान जारी है।सोशल मीडिया ने भी सिरे से इस खबर को नजरअंदाज कर दिया।
रियाज के मार्फत काफी अरसा पहले से अरुंधति राय का लिखा हिंदी में उपलब्ध है। राष्ट्र और अर्तव्यवस्था के चरित्र पर उनका विश्लेषण अति महत्वपूर्ण होने के बाद भी हम लोगों ने इसे आम जनता तक पहुंचाने की कोई कवायद नहीं की है। गोपाल कृष्ण जी पूरी टीम के साध आधार प्रतिरोध में लगे हैं। लोकिन हम बुरी तरह आम लोगों को, निनानब्वे फीसद जनता को संबोधित करने में नाकाम हैं।क्योंकि सारे जनमाध्यम बेदखल हो चुके हैं।
इनजटिल परिस्थितियों में मानवाधिकार हनन रोकने का कोई महाप्रयत्नसूचनाओं के जनतंत्र के अलावा सूचनाओं की साझेदारी से ही संभव है। लेकिन सूचनाओं पर एकाधिकार के कारपोरेट वाइरल से हम सारे लोग संक्रमित हैं।
हमने आज इस सिलसिले में माननीय आधार एक्टिविस्ट गोपाल कृष्ण जी से भी लंबी बात की है और उनसे भी आपसी समन्वय का निवेदन किया है।
मानवाधिकार संगोष्ठियों और मोमबत्ती जुलूसों से मानवाधिकार हनन के इस रोबोटिक हत्यारे तंत्र को रोका नहीं जा सकता,समझ लीजिये।
हमें इस दुस्समय से निकल बाहर होने के लिए महाप्रयत्न करने होंगे।
भारतीय यथार्थ को संबोधित करनेका मूल मंत्र बाबासाहेब अंबेडकर ने जाति उन्मूलन बतौर संविधान रचने से पहले ही दिया है। देश और समाज को जोड़ने के लिए ,अस्मिताओं में कैद लोकतंत्र की रिहाई के लिए अब इस एजंडे पर अमल अनिवार्य है।वरना न हम संविदान लागू कर सकते हैं और न कानून का राज बहाल कर सकते हैं। मानवाधिकार और नागरिक अधिकार, नागरिकता और आजीविका की तो भूल ही जाइये और छनछन कर विकास का प्रसाद लेने के लिए पंक्तिबद्ध होकर कदमताल करते रहिये।
महज मानवाधिकार दिवस मनाने की रस्म निभाने से हालात बदलने वाले नहीं हैं।
हालांकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान करते हुए और समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा वर्ष 1990 में भारतीय सीमा के भीतर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से मानवाधिकार प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। हालांकि संविधान द्वारा भी मनुष्यों को विभिन्न प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, लेकिन उनका क्षेत्र बहुत हद तक सीमित है। जहां मौलिक अधिकारों का प्रयोग केवल नागरिक ही कर सकते हैं, वहीं मानवाधिकार भारत की शासकीय सीमा में रहने वाले सभी व्यक्तियों, चाहे वे भारत के नागरिक हों या ना हों, पर समान रूप से लागू होते हैं। भले ही शहरी क्षेत्रों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के चलते व्यक्ति बहुत हद तक अपने अधिकारों के विषय में जागरुक रहने लगे हों, लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी यह परिस्थितियां विकसित नहीं हो सकी हैं।
व्यक्तिगत जीवन के लिए मानवाधिकार की महत्ता को समझते हुए भारत सरकार द्वारा 12 अक्टूबर, 1993 में मानवाधिकार आयोग नामक एक स्वायत्त संस्था का गठन किया गया, जो मनुष्य को उपलब्ध मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए कार्य करती है। इस संस्था का मुख्य दायित्व भारत में निवास कर रहे सभी मनुष्यों की हितों की रक्षा करना और उनके विकास में आने वाली बाधाओं, चाहे वे राजनैतिक हो या फिर सामाजिक, के विरुद्ध आवाज बुलंद करना है।
हालात इतने संगीन हैं कि सामाजिक बदलाव के केंद्र देश में मानवाधिकार हनन के मामलों में से आधे यूपी में दर्ज होते हैं लेकिन इनके निस्तारण की रफ्तार इतनी धीमी है कि हर साल 10 हजार से ज्यादा मामले बकाया रह जाते हैं। स्थिति यह है कि वर्तमान में यूपी मानवाधिकार आयोग (यूपीएचआरसी) में करीब 50 हजार मामले लंबित चल रहे हैं। मामलों का संज्ञान लेने में भी आयोग का रवैया बेहद शिथिल है। अपनी स्थापना के 12 वर्ष पूरे कर रहे आयोग में अब तक 2 लाख 572 शिकायतें रजिस्टर की गई हैं। इनमें से 25 फीसदी शिकायतें आज भी लंबित हैं। आयोग के ज्वाइंट सेक्रेट्री विनोद कुमार सिंह इसकी वजह केंद्रीय एक्ट की सीमाओं को बताते हैं। वे कहते हैं कि 20 करोड़ की आबादी वाले यूपी के आयोग में 1 चेयरमैन और 2 सदस्यों की व्यवस्था है, तो 16 लाख की आबादी वाले गोवा में भी यही व्यवस्था। दोनों राज्यों में आने वाले मामलों का अंतर भी आबादी के अनुपात जितना ही है। ऐसे में गैर-निस्तारित मामले निश्चित तौर पर बढ़ेंगे।
झारखंड ह्यूमन राइट्स मूवमेंट ने कहा है कि यहां 57 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। वहीं, समाज कल्याण विभाग के आंकड़ों में यह संख्या 5.5 लाख है। राइट्स मूवमेंट के अनुसार 78.2 प्रतिशत किशोरियां और 70 प्रतिशत महिलाएं एनिमिक हैं। इनमें आदिवासी समुदाय के पांच वर्ष से कम वर्ष के 80 प्रतिशत बच्चे और 85 प्रतिशत महिलाएं हैं। वहीं लुप्तप्राय जनजाति के 40 लोग कुपोषण से मौत के शिकार हो गए हैं। इसके अलावा राज्य में प्रतिवर्ष 360 मादा भ्रूण की हत्या कर दी जाती है।
बाल मजदूरी भी मानवाधिकार हनन का बड़ा कारण बन रही है। काम की तलाश में प्रतिवर्ष एक लाख 25 हजार पलायन करने वालों में बाल मजदूर के रूप में 33 हजार लड़कियां होती हैं। इंडियन पीपुल्स ट्रिब्यूनल ऑन इनवॉयरमेंट एंड ह्यूमन राईट्स के अनुसार झारखंड में विकास के नाम पर अब तक 65.40 लाख लोग विस्थापन के शिकार हो चुके हैं।
विश्व मानवाधिकार दिवस मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को प्रकाश में लाने के लिए 10 दिसंबर 2013 को विश्वभर में मनाया गया। वर्ष 2013 में विश्व मानवाधिकार दिवस का थीम 'आपके अधिकारों के लिए काम करते हुए 20 वर्ष' है। विश्व मानवाधिकार दिवस को मनाये जाने का उद्देश्य मानवाधिकारों के प्रति लोगों को जागरूक बनाना है।
वर्ष 1948 में 10 दिसंबर के दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी किया था। तभी से प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। मानवाधिकार घोषणा पत्र के अनुसार विश्व में न्याय, शांति और स्वतंत्रता की बुनियाद के रूप में समाज के सभी वर्गों को सम्मान और बराबरी का अधिकार दिए जाने की बात कही गई थी।
मानवाधिकार का अर्थ
किसी भी व्यक्ति के जीवन, आजादी, समानता और सम्मान के अधिकार को मानवाधिकार कहते है। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है।
भारतीय संदर्भ में मानवाधिकार दिवस
भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 12 अक्टूबर 1993 को किया। वर्ष 2011 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पूर्व प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन हैं। इनका कार्यकाल 11 मई 2015 तक निर्धारित है।
आयोग के कार्यक्षेत्र
आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं। जैसे बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार।
जम्मू कश्मीर में पिछले 20 वर्ष में 124 सैन्यकर्मियों, जिनमें 41 अधिकारी शामिल हैं, को मानवाधिकारों के उल्लंघन का दोषी पाया गया और दंडित किया गया। रक्षा मंत्रालय, उत्तरी कमान में जनसंपर्क अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल राजेश कालिया ने आज बताया, 'मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में 41 अधिकारियों सहित 124 सैन्यकर्मियों पर सेना की अदालतों में त्वरित मुकदमे चलाए गए और उन्हें बिना किसी सेवा लाभ के सेवा से बर्खास्तगी से लेकर जेल तक की सजा (पिछले 20 बरस में) दी गई।
लेफ्टिनेंट कर्नल कालिया ने बताया कि पिछले 20 वर्ष में उत्तरी कमान में सेवारत 1,524 सैन्यकर्मियों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए गए। 'प्रत्येक आरोप की स्वतंत्र और स्वायत्त निकाय से जांच के बाद इन आरोपों में से 42 सही पाए गए।' मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर आज लेफ्टिनेंट जनरल संजीव चाचड़ा, जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ उत्तरी कमान ने जम्मू कश्मीर में तमाम सैनिकों को आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों के दौरान शून्य मानवाधिकार उल्लंघन सुनिश्चित करने को कहा।
भारतीय सेना का अपने नागरिकों के मानवाधिकारों के संरक्षण के मामले में बहुत उजला रिकार्ड है और मानवाधिकारों को दिया जाने वाला महत्व इस तथ्य से उजागर होता है कि सेना मुख्यालय में मार्च 1993 से एक मानवाधिकार शाखा कार्यरत है और यह शाखाएं ब्रिगेड और सेक्टर स्तर तक मौजूद हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल कालिया ने कहा, 'कुछ मामले चल रहे हैं, जिनपर सेना कानून में उल्लिखित प्रक्रियाओं और कानून के तहत नजदीकी नजर रखी जा रही है।'
आज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस है। इस मौके पर मानवाधिकारों से जुड़े सिद्धांतों और मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता जताते हुए राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने कहा कि सम्मानपूर्वक जीवन जीने का हक सभी को है और हर हाल में मानवाधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।
मानवाधिकार आयोग करेगा SFI नेता सुदीप्तो की मौत की जांच
अमेरिकी ड्रोन हमले से खिलाफ खड़ा हुआ मानवाधिकार समूह
पाक की मलाला को 2013 संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पुरस्कार
और भी... http://www.p7news.com/country/16787-ansari-said-to-protect-human-rights-in-all-circumstances.html
सदन की बैठक शुरू होने पर अंसारी ने आज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर कहा कि 10 दिसंबर 1948 को ही मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र को अंगीकार किया गया था जो मूलभूत मानवाधिकारों की सार्वभौमिक रक्षा की मांग करता है। सभापति ने कहा कि वर्ष 1993 में वियना में मानवाधिकारों पर हुए विश्व सम्मेलन में वियना डिक्लेरेशन एंड प्रोग्राम ऑफ एक्शन को मंजूरी दी गई थी और आज इसके पूरे 20 साल हो गए हैं। उन्होंने कहा इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र ने इस साल के लिए थीम आपके अधिकारों के लिए काम करते हुए 20 साल घोषित की है।
अंसारी ने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर हम सभी मानवाधिकारों से जुड़े सिद्धांतों और मूल्यों के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताते हैं।
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Sumedh Ranvir
यह जब इस देश से ...इस देश के महानतम जनतांत्रिक सरोकारोंसे अपना हिसाब मांगेगे तो जवाब क्या मिलेगा ?? हिटलर के यातना गृह कि याद ताजा हो जाती है।
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Afroz Alam Sahil
इस धरती पर जन्म लेने का भी अधिकार नहीं है?
आखिर यह कैसी विडंबना है कि पहले बेटों की चाह में बेटियों को जन्म के पश्चात मौत के घाट उतार दिया जाता रहा पर अब आधुनिकीकरण के युग ने बच्चियों से जन्म लेने का अधिकार भी छीना जा रहा है. ऐसे में तमाम मानव अधिकारों की बातें तो भूल जाइए. कोई बस इतना बता दे कि क्या लड़कियों को अब इस धरती पर जन्म लेने का भी अधिकार नहीं है? ऐसे में यह अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस हमारे लिए एक ढ़ोंग से बढ़कर कुछ भी नहीं है...http://beyondheadlines.in/2012/12/women-and-human-rights/
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हीरा डोम की कविता पोस्ट करने के लिए परम आदरणीया अनिता भारती का आभार और आज के संवाद का शीर्षक भी यही।
Anita Bharti
आज 10 दिसम्बर यानि मानव अधिकार दिवस पर कवि "हीराडोम" की विश्व प्रख्यात कविता आप सबके लिए, इस जिद के साथ की सबको जाति-पाति रहित एक सुंदर जीवन चाहिए।
बभने के लेखे हम भिखिया न मांगबजां,
ठाकुरे के लेखे नहिं लउरि चलाइबि।
सहुआ के लेखे नहिं डांडी हम मारबजां,
अहिरा के लेखे नहिं गइया चोराइबि।
भंटउ के लेखे न कवित्त हम जोरबजां,
पगड़ी न बान्हि के कचहरी में जाइबि।
अपने पसीनवां के पइसा कमाइबाजां,
घरभर मिलि जुलि बाँटि-चोटि खाइबि।3
खंभवा के फारि पहलाद के बचवल जां,
ग्राह के मुंह से गजराज के बंचवले।
धोती जुरजोधना कै भइया छोरत रहै,
परगट होके तहां कपड़ा बढ़ वले।
मरले खन्नवा के पलुखे भभिखना के,
कानी अंगुरी पर धैके पथरा उठवाले।
कहवां सुतल बाटे सुनत न बाटे अब,
डोम जानि हमनी के छुए से डेरइले।4
Press Release
Parliament, State Legislatures should oppose 12 digit biometric
aadhaar/UID Number like West Bengal Assembly
Verdict of the four assembly elections is against biometric aadhaar
like schemes
"Biometric identification can even invite violence"
Supreme Court to hear the case against biometric aadhaar number on December 10
Rejected National Identification Authority of India (NIDAI) Bill
listed for re-introduction in the current winter session
December 9, 2013:Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL) urges
Parliamentarians and legislators from state legislatures to endorse
the West Bengal Assembly resolution on 12 digit biometric aadhaar/UID
Number which was deemed illegal and illegitimate by the Parliamentary
Standing Committee on Finance and that faces legal challenge in the
Supreme Court. The Court has listed December 10 for its hearing. In a
rare show of unity both Tirnamool Congress and CPI (M) voted in favour
of the resolution against aadhaar.
The resolution against the 12 digit biometric aadhaar/UID number
passed by West Bengal State Assembly on December 2, 2013 is attached
along with its English translation.
People's right to energy to cooking fuel funded by government is being
snatched away by linking it with aadhaar and the right to life and
livelihood is under tremendous threat because they have been moved
away from fire wood and coal based cooking. In delhi which is going to
elections today, the state cliaims that it is 100 % LPG state. That
means right to life and livelihood can be snatched away with its with
link with aadhaar. So the threat is based on decrees and sanctions
unleash violence on the people. This is unconstitutional due to its
dangerous impacts.
Endorsing the resolution Prof. Tarun Naskar, MLA in West Bengal
Assembly said, "time when High Court of Punjab and Haryana right from
Andhra Pradesh has given their verdicts against it and recently even
the Supreme Court did not support the government's policies, how the
policy of the Central Government be supported" in the House. He
referred to the report of the Parliamentary Standing Committee on
Finance. His speech is attached. Prof. Naskar's SUCI (Communist) party
has submitted a memorandum with 3.57 crore signatures of Indians
seeking scrapping of aadhaar project among other demands.
The report of the Parliamentary Standing Committee on Finance on The
National Identification Authority of India (NIDAI) Bill is attached.
NIDAI Bill which was rejected by the Committee is listed for
re-introduction in the Lok Sabha in the current Winter Session after
its re-approval by the Union Cabinet on October 8, 2013. The Bill is
likely to be referred again to the Parliamentary Standing Committee on
Finance.
After endorsing the resolution against biometric aadhaar, on December
5, 2013, CPIM issued a statement stating "The report that the Unique
Identification Authority of India (UIDAI) has tied up with a US
company with CIA links is a matter of deep concern. According to a
report in the Economic Times, a US company, MongoDB, is providing the
software to manage the data base for the registration of Aadhar. One
of the investors in this company is the CIA. Earlier too, the UIDAI
had entered into contracts with the US based company, L-1 Identity
Solutions, and another French company for the Aadhar project. The
collection of personal data and biometrics of all Indian citizens
through the Aadhar programme has been made available to the United
State's agencies through the employment of these companies. It is now
known through the Snowden files that the US authorities have been
suborning all data through US telecom and internet companies. The
Indian government and the UIDAI has compromised the vital data
collected of Indian citizens by such tie-ups. The UIDAI collection
of data has no legal basis. It is also being used illegally to make
the Aadhar number compulsory for delivery of social services and
subsidies."
CPIM statement reads, "The Polit Bureau demands the cancellation of
the tie-up with foreign companies and a suspension of the Aadhar
scheme till Parliament deliberates and decides on its future and, if
required, a legislative enactment." The statement is attached.
CFCL holds that the text of the resolution should have called for
scrapping of illegal and illegitimate biometric identification which
was aptly questioned by Parliamentary Standing Committee on Finance
and the Gujarat Chief Minister in his letter to the Prime Minister.
The reason for the vehement opposition to 12 digit biometric unique
identification (UID)/aadhhar number project is that it is contrary to
the basic structure of the Constitution of India which provides for a
limited government and not an unlimited government. The project is
aimed at creating an unlimited government. Even if a law is passed to
make it legal it will remain bad and illegitimate. This is the
argument that has been advanced by Shyam Diwan, the lawyer
representing the opponents of the project in the Supreme Court.
The country was put under Internal Emergency under Article 352 of the
Constitution of India, effectively bestowing on Indira Gandhi, the
then Prime Minister the power to rule by decree, suspending elections
and civil liberties for a 21 month period during June 25, 1975-March
21, 1977. Even the imposition Internal Emergency was made legal and it
remained so as long as it lasted. The powers given to her virtually
had no limits. Human body came under assault as a result of forced
vasectomy of thousands of men under the infamous family planning
initiative of Sanjay Gandhi.
Like Indira Gandhi, Dr Manmohan Singh has been a Prime Minister for
nearly 10 years. The installation of authoritarian architecture
through biometric identification of Indians is likely to get the
similar response from voters as they had given in the aftermath of
proclamation of emergency. Human body is again under attack through
indiscriminate biometric profiling with patronage from Rahul Gandhi.
Indian National Congress is likely to face a bigger defeat than it had
suffered in 1977. Uttar Pradesh elections and the recent assembly
elections are indicative of the trend. Verdict of the four assembly
elections in Rajasthan, Delhi, Madhya Pradesh and Chhatisgarh is
against biometric aadhaar like schemes.
Given the fact that judicial orders from the High Courts and Supreme
Court have so far dealt with the limited issue of how UID/aadhaar
cannot be made mandatory, first thing anyone should do understand with
regard to gathering momentum against biometric unique identification
(UID)/aadhaar number is that the very first document that residents of
India encounter in this regard is "Aadhaar Enrolment Form'. At the
very outset the Enrolment Form makes a declaration is that "Aadhaar
Enrolment is free and voluntary." This is a declaration of Government
of India. This is a promise of Planning Commission of India headed by
the Prime Minister. As a consequence, all the agencies State
Governments, the Government of India and the "agencies engaged in
delivery of welfare services " are under legal and moral obligation to
ensure that it cannot be made mandatory. As of Supreme Court has
simply stated what the Prime Minister himself has promised. In its
interim order what the Court has done is to simply reiterate the
significance of the promise made by Government of India. If programs,
projects and schemes are launched in breach of Prime Minister's
promise, it will set a very bad and unhealthy precedent and no one
ever in future trust the promise made by any Prime Minister. The
column no. 8 in the Aadhaar Enrolment Form at page no. 1 refers to
"agencies engaged in delivery of welfare services "does not define who
these agencies are. It appears that its definition has deliberately
been kept vague. Which are the agencies that are involved in delivery
of welfare services? Aren't security agencies and commercial agencies
with ulterior motives included in it?
At page no. 2 of the Aadhaar Enrolment Form provides, "Instructions to
follow while filling up the enrolment form" which states that column
no. 8 is about seeking consent from an Indian "Resident (who) may
specifically express willingness / unwillingness by selecting the
relevant box" by ticking "yes" or "no" options . The column no. 8
reads: "I have no objection to the UIDAI sharing information provided
by me to the UIDAI with agencies engaged in delivery of welfare
services." Now the issue is that if residents are promised that
enrolment is "voluntary" they may give their consent unaware of its
ramifications but if they know that it is made "mandatory" they are
may refuse to give their consent.
Are the agencies with whom Planning Commission's Unique Identification
Authority of India (UIDAI) on behalf of President of India has signed
contract agreements like foreign surveillance technology companies
like Accenture Services Pvt Ltd, USA, Ernst & Young, USA, L1 Identity
Solutions Operating Company, now France (as part of Safran group),
Satyam Computer Services Ltd. (Mahindra Satyam), as part of a "Morpho
led consortium" (Safran group), France and Sagem Morpho Security Pvt.
Ltd (Safran group), France "engaged in delivery of welfare services ".
Admittedly, these agencies have access to personal information of the
Purchaser and/or a third party or any resident of India for at least 7
years as per Retention Policy of Government of India or any other
policy that UIDAI may adopt in future. The purchaser is President of
India through UIDAI.
The contract agreement is applicable to both Planning Commission's
Centralized Identities Data Repository (CIDR) of digit biometric
unique identification (UID)/aadhhar number which is 'voluntary' and
the 'mandatory' National Population Register (NPR) of Ministry of Home
Affairs which is also generating aadhaar number. Notably, column no. 2
in the Aadhaar Enrolment Form at page no. 1 and 2 refers to "NPR
Number" and "NPR Receipt/TIN Number" and at states "Resident may bring
his/her National Population Register Survey slip (if available) and
fill up the column" no. 2.
The databases of both the numbers namely, UID/aadhaar number and NPR
number are being converged as per approved strategy. Does it not make
both the databases of biometric identification numbers one and
mandatory in the end? Is the promise by the Prime Minister about
Aadhaar Enrolment being "free and voluntary" truthful? It is not
"free" for sure because it costs citizens' their democratic rights. As
it being "voluntary" it is not so by design. It is evident that the
Prime Minister has been miser with truth.
Initially, it seemed surprising as to why L 1 which was a high value
company of USA that worked with the USA's intelligence was sold to
French conglomerate Safran group which has a forty year partnership
with China. It also seemed puzzling as to why the contract amount
given to Sagem Morpho of Safran Group is not being disclosed. But with
the disclosure of non-traceability of financial data with regard to
French conglomerate's Sagem Morpho courtesy New Indian Express and
emergence of the possible relationship of UIDAI with US based agencies
like In-Q-Tel and MongoDB on the horizon courtesy Navbaharat
Times/Economic Times, such transactions do not appear astounding
anymore.
Now the question is did these agencies have access to biometric and
demographic data of even those residents of India who did not give
consent as per Column 8 of aadhaar enrolment form for sharing
information provided by them to the UIDAI with these agencies who do
seem to be engaged in delivery of welfare services.
There is no confusion as to why such agencies of USA, France and China
are eager to get hold of the biometric database of Indians.
"Biometrics Design Standards For UID Applications" prepared by UIDAI's
Committee on Biometrics states in its recommendations that "Biometrics
data are national assets and must be preserved in their original
quality."
UIDAI's paper titled 'Role of Biometric Technology in Aadhaar
Authentication' based on studies carried out by UIDAI from January
2011 to January 2012 on Aadhaar biometric authentication reveals that
the studies "focused on fingerprint biometric and its impact on
authentication accuracy in the Indian context. Further improvements to
Aadhaar Authentication accuracy by using Iris as an alternative
biometric mode and other factors such as demographic, One Time Pin
(OTP) based authentication has not been considered in these studies."
This paper explains, "Authentication answers the question 'are you who
you say you are'". This is done using different factors like: What you
know– userid/password, PIN, mother's maiden name etc, What you have –
a card, a device such as a dongle, mobile phone etc and What you are –
a person's biometric markers such as fingerprint, iris, voice etc. The
'what you are' biometric modes captured during Aadhaar enrollment are
fingerprint, iris and face. "It is noteworthy that this paper refers
to biometric markers like "fingerprint, iris, voice etc" revealing
that after fingerprint and iris, "voice" print is also on the radar
and its reference to "etc" includes DNA prints as well.
Notably, E.S.L. Narasimhan, Andhra Pradesh Governor said, "We are
spending thousands of crores on identification cards every other day
and then saying it is useless card. It happened in case of citizenship
card, PAN card, voter identity card and now they are coming to Aadhaar
card," said Narasimhan at the inaugural session of fifth international
conference on 'emerging trends in applied biology, biomedicines and
bioforensics'. This was reported by Business Standard on November 30,
2013. Narasimhan is a former head of the Intelligence Bureau. DNA
analysis has become so cheap that within a few years instead of an
Aadhaar, one can have whole DNA sequence with unique marker because
"with a few thousand rupees, everybody's entire DNA sequence can be
put on a card", argued Ramakrishna Ramaswamy, vice chancellor,
University of Hyderabad speaking at the same conference. It is
noteworthy that these efforts are going in a direction wherein very
soon employers are likely to ask for biometric data CD or card instead
of asking for conventional bio-data for giving jobs etc. It is likely
to lead to discrimination and exclusion.
In villages, they say when you give a hammer to a blacksmith he/she
will only think in terms nailing something. The only difference is
that here it is the human body which is being nailed. If you only have
a hammer, you tend to see every problem as a nail. If biometric
technologies are at hand, some people under the influence of
technology companies tend see every problem as an identification
problem.
The UIDAI paper states, "Of the 3 modes, fingerprint biometric happens
to be the most mature biometric technology in terms of usage,
extraction/matching algorithms, standardization as well as
availability of various types of fingerprint capture devices. Iris
authentication is a fast emerging technology which can further improve
Aadhaar Authentication accuracy and be more inclusive." Such absolute
faith in biometric technology is based on a misplaced assumption that
are parts of human body that does not age, wither and decay with the
passage of time. Basic research on whether or not unique biological
characteristics of humans beings is reliable under all circumstances
of life is largely conspicuous by its absence in India and even
elsewhere.
There is a need for the Parliament, Supreme Court, State legislatures
and High Courts to examine whether or not biometrics provides an
established way of fixing identity of Indians. Has it been proven? A
report "Biometric Recognition: Challenges and Opportunities" of the
National Research Council, USA published on September 24, 2010
concluded that the current state of biometrics is 'inherently
fallible'. That is also one of the finding of a five-year study. This
study was jointly commissioned by the CIA, the US Department of
Homeland Security and the Defence Advanced Research Projects Agency.
Another study titled "Experimental Evidence of a Template Aging Effect
in Iris Biometrics" supported by the Central Intelligence Agency
(CIA), the Biometrics Task Force and the Technical Support Working
Group through Army contract has demolished the widely accepted fact
that iris biometric systems are not subject to a template aging
effect. The study provides evidence of a template aging effect. A
"template aging effect" is defined as an increase in the false reject
rate with increased elapsed time between the enrollment image and the
verification image. The study infers, "We find that a template aging
effect does exist. We also consider controlling for factors such as
difference in pupil dilation between compared images and the presence
of contact lenses, and how these affect template aging, and we use two
different algorithms to test our data."
A report "Biometrics: The Difference Engine: Dubious security"
published by The Economist in its October 1, 2010 issue observed
"Biometric identification can even invite violence. A motorist in
Germany had a finger chopped off by thieves seeking to steal his
exotic car, which used a fingerprint reader instead of a conventional
door lock."
Notwithstanding similar unforeseen consequences Prime Minister's faith
in biometric remain unshaken. It seems that considerations other than
truth have given birth to its faith. Is there a biological material
in the human body that constitutes biometric data immortal, ageless
and permanent? Besides working conditions, humidity, temperature and
lighting conditions also impact the quality of biological material
used for generating biometric data. Both aadhaar and NPR are based on
the unscientific and questionable assumption that there are parts of
human body likes fingerprint, iris, voice etc" that does not age,
wither and decay with the passage of time. They who support Aadhaar
and NPR seem to display unscientific temper by implication.
Unmindful of this all the political organizations and institutions of
government who supported imposition of emergency are likely to support
biometric identification project as it helps build a permanent
emergency architecture which was conceived then.
Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL) had given its testimony in
the matter before this Parliamentary Standing Committee. CFCL's
petition regarding Subordinate Legislation for Biometric Identity Card
NRIC and Aadhhar/UID is illegal & illegitimate and Constitutional,
Legal, Historical & Technological Reasons Against UID/Aadhaar Scheme"
has formally been admitted by the Parliamentary Standing Committee on
Subordinate Legislation. On CFCL's complaint, the National Human
Rights Commission (NHRC) has issued an order addressed to the
Secretary, Ministry of Home Affairs.
For Details:Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL),
Mb: 09818089660, 08227816731, E-mail:gopalkrishna1715@gmail.com
NATIONAL ALLIANCE OF PEOPLE'S MOVEMENTS
National Office : 6/6 Jangpura B, New Delhi – 110 014 . Phone : 011 2437 4535 |9818905316
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Human Rights Day
People's Movements Assert Right to Life, Dignity and Nature
and Expose Failure of Rights Institutions and the State
Mumbai / Nagpur / Delhi, December 10 : Today is Human Rights Day. It is a recognition of the rights of the people but will mean nothing if people across the globe didn't fight to assert those rights and fight for it.
On this day hundreds of working class people living in slums, bastis, resettlement colonies of Mumbai, under the banner of Ghar Bachao Ghar Banao Andolan, protested in front of State Human Rights Commission, Maharashtra demanding its complete failure in protecting their rights. They charged complete absence of basic amenities – water, sanitation, electricity, education and health services. Rights bodies in State have failed to prevent or provide relief when their homes have been demolished unjustly by the administration or been arbitrarily arrested for defending their homes from getting demolished. Can Rights bodies ensure their safety and protect their constitutional rights, they ask ?
With no permanent shelter and a sword of demolition hanging over their permanent houses, state refuses to recognise their right to livelihood and shelter. Is this not human rights violation? Is this not a threat to the right to life ? Why is Commission silent on this ?
NAPM along with the National Sugar factory Workers Federation launched Sahkar Bachao, Desh Bachao dharna on the second day of the Mahrashtra Vidhan Sabha in Nagpur. The unpaid workers of the sugar factories and farmers, whose land had been taken over by the mills, have joined the rally. Not only were Sugar factories sold at throwaway prices, the workers have not been paid their dues and farmers not been returned their deposit amount along with interest too. Farmers had given their land for cooperative factories and not private units. They should be returned their land. A 20,000 crore scam has taken place in connivance with the political party leaders of Congress, NCP and BJP.
In Delhi, Pension Parishad's dharna entered 15th day today at Jantar Mantar. In the winter of Delhi nearly 500 elderly people from across the country have been holding on the footpath of Delhi demanding their right to a dignified life, demanding a pension of Rs. 2000, linked with the inflation, which is a meagre Rs. 200 at the moment. Is that too much to ask from a democratically elected State with pretensions of being a socialist republic ? Why is the rights bodies failing to take note of such issues ?
In Muzzafarnagar, more than 30 children die living in the relief camps in this winter after the worst riots with no place to go and the rights bodies, minority, sc/st or woment commissions look other way and have no power to deal with this.
Today, the world is going under control of corporates be it Deshi orVideshi. Nature based communities are being displaced by the corporates with help of the state every now and then across the country in complete violations of their rights. Thousands of people in Koodankulam, Posco, Niyamgiri, Chhindwara and elsewhere are charged with sedition charges because of upholding the rights given in the constitution. A large number of young people from Muslim community are in Indian jails today in fabricated cases with false implications. Is that not a violation of their human rights ?
The time has come when there is an urgent need to address not only the social and political rights of the people but the special rights of the nature based communities to their livelihood, which includes access to land, water, forests, minerals and eek a honest living. Rights bodies, be it NHRC, SHRC, NCW, SC/STC, NCM or others, they all have a role to play in this, more so when State itself violates the rights of the people.
We are besotted with new problems today, manifesting themselves in the climate crisis, having a serious impact on the earth and human beings. Our development model needs to change, the iniquitous growth will lead us no where, this will mean disaster for humanity. It is time we woke up to that.
Medha Patkar - Narmada Bachao Andolan - National Alliance of People's Movements (NAPM); Prafulla Samantara - Lok Shakti Abhiyan, NAPM, Odisha; Dr. Sunilam, Aradhna Bhargava - Kisan Sangharsh Samiti, NAPM, MP; Gautam Bandopadhyay – Nadi Ghati Morcha, NAPM, Chhattisgarh; Vilas Bhongade, Suniti SR, Prasad Bagwe - NAPM, Maharashtra; Gabriel Dietrich, Geetha Ramakrishnan – Unorganised Sector Workers Federation, NAPM, TN; C R Neelakandan – NAPM Kerala; Ramakrishnan Raju, Saraswati Kavula, P Chennaiah – NAPM Andhra Pradesh, Bhupender Singh Rawat, Rajendra Ravi, Anita Kapoor – NAPM, Delhi; Arundhati Dhuru, Sandeep Pandey - NAPM, UP; Sister Celia - Domestic Workers Union, NAPM, Karnataka; Sumit Wanjale, Madhuri Shivkar – Ghar Bachao, Ghar Banao Andolan, NAPM, Mumbai; Manish Gupta - Jan Kalyan Upbhokta Samiti, NAPM, UP; Vimal Bhai - Matu Jan sangathan, NAPM, Uttarakhand; Krishnakant, Anand Mazhgaonkar, Paryavaran Suraksh Samiti, NAPM Gujarat
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वर्तमान व्यवस्था में मानवाधिकार
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत में सरकार ने अपनी ही जनता पर ऑपरेशन ग्रीनहण्ट के नाम से 2009 से युद्ध चला रखा है, जिससे हजारों मजदूर-किसान, आदिवासी मारे जा चुके हैं...
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर आज 10 दिसम्बर 2013 को सामाजिक जाग्रति मंच 'आवाज' के तत्वाधान में 'वर्तमान व्यवस्था व मानव अधिकार' विषय पर नगरपालिका सभागार अल्मोड़ा में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया.
विचार गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषण के 65 वर्ष पूरे हो गये हैं, लेकिन हर तबके, शहर और दुनिया के कोने-कोने में किसी न किसी वजह से लोगों को बराबरी के हक से महरूम रखने का सिलसिला बद्स्तूर जारी है.
पिछले दो दशकों से पूरी दुनिया में मानव अधिकार हनन की घटनायें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. भारत में भी 1991 से जबसे उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की नीतियों को लागू किया गया है, मानव अधिकार हनन की घटनाओं में बहुत तेजी से वृद्धि हुयी है.
गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड में आयी आपदा के छह माह पूरे होने वाले हैं, लेकिन पीड़ितों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये समुचित उपाय व साधन उपलब्ध कराने में राज्य सरकार फेल हुयी है. राज्य सरकार केवल प्रचार द्वारा ही आपदा पीड़ितों को राहत देने की बात कर रही है. जमीनी स्तर पर आज भी हजारों-हजार आपदा पीड़ित खुले आसमान के नीचे जीने को मजबूर हैं.
आपदा पीड़ितों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन सरकार की संवेदनहीनता के कारण हो रहा है. उत्तराखण्ड में औद्योगिक क्षेत्र सिडकुल में कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों का खुलेआम धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. मजदूर अर्द्धगुलामी का जीवन जीने को मजबूर हैं, लेकिन सरकार कम्पनियों के हितों के लिये ही काम कर रही हैं. उसे आम मजदूर की कोई परवाह नहीं है.
विचार गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि आज देश में तमाम काले कानूनों व जनविरोधी नीतियों के कारण आम आदमी के मानवाधिकार हनन की घटनायें आम हो गयी हैं. गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) से बड़े पैमाने पर मानव अधिकारों का हनन हो रहा है.
इस कानून के कारण पूरे देश में आज तक हजारों-हजार बेगुनाह नौजवान, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, मजदूर-किसान व आदिवासी जेलों में बंद हैं. इसी तरह उत्तर पूर्व भारत (मणिपुर, नागालैण्ड, असम) से जम्मू-कश्मीर तक 'सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम' द्वारा हजारों निर्दोष नौजवानों, महिलाओं व बच्चों की हत्या कर दी गयी है.
इस कानून को खत्म करने के लिए मणिपुर की इरोम शर्मिला पिछले 13 वर्षों से भूख हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार की कान में जूं तक नहीं रेंग रही है. वक्ताओं ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत में सरकार ने अपनी ही जनता पर ऑपरेशन ग्रीन हण्ट के नाम से 2009 से युद्ध चला रखा है, जिससे हजारों मजदूर-किसान, आदिवासी मारे जा चुके हैं.
पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को आवाज देने में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है. दुनिया में तमाम जगहों पर बहुत से लोग अपने अधिकारों की जंग लड़ रहे हैं. यह जंग जारी रहनी चाहिए और आम आदमी को इसका हिस्सा बनना चाहिए.
गोष्ठी को आर0 डी0 एफ0 के प्रदेश अध्यक्ष जीवन चन्द्र (जेसी), सामाजिक कार्यकर्ता ईश्वर दत्त जोशी, आम आदमी पार्टी के ललित चन्द्र जोशी, उपपा के अध्यक्ष पी0सी0 तिवारी, गोविन्द सिंह मेहरा, आन्नदी वर्मा, आर0डी0एफ0 के गोपाल, विमला, विधि छात्रा, लीला देवी, दीपा कम्र्याल, ममता अण्डोला, जी0एस0 नगरकोटी, साहित्यकर्मी रमेश पाण्डे राजन, आदि ने संबोधित किया.
अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता गोविन्द लाल वर्मा व वरिष्ठ पत्रकार पी0सी0 जोशी ने संयुक्त रूप से की. संचालन कौशल पंत ने किया. गोष्ठी में हसन अली, पुष्पा आर्या, पत्रकार गोपाल गुरूरानी, पूरन राम, कमला गोस्वामी, अल्का पन्त, स्वाती तिवारी, विशन सनवाल सहित दर्जनों लोग शामिल थे. कार्यक्रम के दौरान पोस्टर प्रर्दशनी भी लगायी गयी.
http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-08-56/81-blog/4592-vartman-vyvstha-men-manvadhikar-for-janjwar
562 authors from around the world sign petition to end mass surveillance
Rajdeep Sarkar : New Delhi, Tue Dec 10 2013, 16:14 hrsThe message is clear from these protestors: STOP WATCHING US (Reuters image)
A group of 562 authors came together on International Human Rights Day to sign a petition calling for a stop to digital surveillance as carried out by governments and private corporations to acquire personal information.
The list is illustrious. It includes the likes of celebrated Nobel laureates Orhan Pamuk from Turkey, Gunter Grass from Germany and J M Coetzee from Australia. A number of Indians too have signed, among them Arundhati Roy, Ramachandra Guha, Amitav Ghosh and Girish Karnad.
The petition A Stand for Democracy in the Digital Age by Writers Against Mass Surveillance calls on the 'states and corporations' to acknowledge and respect democratic rights, 'the citizens' to be the defenders of what is rightfully theirs and for the United Nations to take cognizance and derive an international convention, binding all member states through it, to uphold civil rights of peoples the world over.
Since the revelations of whistleblower Edward Snowden, a former contractor at America's National Security Agency (NSA), which specialises in digital data gathering, there has been a wave of disclosures showing that such surveillance is more the rule and not the exception. This new age of snooping has led to collusion in the highest levels of governments to gain an advantage over allies and enemies alike.
The petition has raised concerns that the most vulnerable party in the whole episode are civilians who are kept in the dark about government policies on snooping. It notes the ease with which an agency can track a person – his mobile device, his internet activity, his social network – and come to know, illicitly, of his 'opinions, political leanings and activities, consumption and behaviour'.
It claims 'the basic pillar of democracy', which is 'the inviolable integrity of the individual' has been rendered 'null and void through abuse of technological developments' and that a person under surveillance is 'no longer free' and a society under surveillance is 'no longer a democracy'. In a democracy, people have the right 'to determine' to what extent data can be 'collected, stored and processed, and by whom'. It is also the democratic right of people to know, so reads the petition, what this information will be used for. Additionally, there must also be a provision for an individual to appeal for 'deletion if data has illegally collected and stored'.
मानव अधिकार दिवस: क्या सबको मिला है अधिकार?
Published by: Vineet Verma
Published on: Tue, 10 Dec 2013 at 07:56 IST
लखनऊ। 10 दिसम्बर को पूरा विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाता है। किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है। मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही बहस होती रही है। बहस इस बात पर कि एक इंसान की के अधिकार कहाँ तक सीमित हैं, बहस इस बात की कि इंसान को इंसान की तरह जीने देना, और साथ में उनका भी मानव अधिकार जो औरों के मानव अधिकारों का हनन करतें हैं। मानव अधिकारों का मतलब है कि मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है, जिसके सभी मनुष्य अधिकारी है। मनुष्य के अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं में उनमें नागरिक और राजनीतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार ।
इसी अवधारणा को अपनाते हुए संयुक्त राष्ट्र 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा की। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन इंसान के मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए तय किया। लेकिन मानवाधिकार कानून को अमल में लाने में हमारे देश को काफी वक़्त लग गया। भारत में 26 सिंतबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया है। कानून तो बना दिया गया लेकिन क्या वाकई सभी मनुष्यों को उनके अधिकार प्राप्त हैं।
रोटी, कपड़ा और आवास, शिक्षा व स्वास्थ्य, नौकरी, पेयजल, बिजली, साफ-सफाई लोगों के ये सब अधिकार सरकार क्या सबको मिलें हैं? आज भी कई ऐसे देश हैं जहाँ एक तिहाई से ज्यादा लोगों को खाने को नहीं मिलता, बच्चें कुपोषण के शिकार हैं। शिक्षा तो दूर की बात है। हमारे करोड़ों लोग बहुत गरीबी में रहते हैं। ये लोग आवश्यक वस्तुओं से भी वंचित हैं। करोड़ों लोगों को अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में, बार-बार राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग और जाति के आधार पर भेदभाव सहना पड़ता है। महिलाएं कई प्रकार से शोषण और दमन की शिकार बनती हैं। आज भी दलितों के साथ भेदभाव होता है। कहाँ है उनके मानवाधिकार? मानव अधिकारों पर बहस तो चलती रहती है लेकिन समाधान आज तक नजर नहीं आया।
अमरीका सहित कई पश्चिमी देश जो 'मानव अधिकारों'' के समर्थक होने का दावा करते हैं उन्होंने खुद कईयों बार मानवाधिकारों का हनन किया है। दूसरे देशों पर अपने मनमानियों को थोपा है। अलपसंख्यकों के अधिकारों का हनन किया है। इराक, अफ़गानिस्तान व लिबिया पर कब्ज़ा ज़माया गया है और पाकिस्तान, ईरान व दूसरे देशों पर धमकियां दी जा रही हैं। मानव होने के नाते हर व्यक्ति के अपने अधिकार होते हैं। जिसे पाना भी उसका अधिकार है। आज हर इंसान अपने अधिकारों के लिए जागरूक है। इसलिए देश भर में करोड़ों लोग अपने बुनियादी मानव अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहें हैं। इस बढ़ती धारा के दबाव में देश की सरकारों ने भी दिखावे के बड़े अभियान चलाये हैं, जैसे कि वे ''शिक्षा के अधिकार'', ''भोजन के अधिकार'', ''रोजगार के अधिकार'', आदि लेकिन सारी लिए होती हैं। विश्व में करोङो लोग है जो आज भोजन के लिए भी तरस रहें हैं? कहाँ है मानव अधिकार? कब मिलेगा सबको उनके अधिकार?
हर्षिता शुक्ला की रिपोर्ट
सौजन्यःपर्दाफाश
Reyazul Haque via Umar Khalid
The good old voice of sanity. Arundhati Roy speaks on Nelson Mandela, ANC, AAP, Human Rights Industry and Imperialism! Do listen..
Arundhati Roy on Nelson Mandela and the ANC
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नए ढंग के मीडिया से अगर बहुजन नेतृत्व अंजान है तो उसे इक्कसवीं सदी का नेता बनने से तौबा कर लेना चाहिए .
१ -मध्यम आय वर्ग हो या निम्न आय वर्ग आज सबके पास एफ एम् युक्त मोबाइल सेट है .अब आप यह नहीं जानते कि एफ एम् मनोरंजक गाने के बीच किस न्यूज़ को पिक कर रहे हैं और किसे पीकदान में फेंक रहे है तो एफ एम् जो 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' और 'आप ' को भरपूर सपोर्ट कर रहा है या जो प्रभाव पैदा कर रहा है वे किन लोगों को फायदा पहुँचाने के लिए है तो आप यंग बहुजन इंडिया से अंजान हैं .
२ सोशल मीडिया जो प्रभाव पैदा कर रहा है उसके चपेट में कितने बहुजन हैं .
३ इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया अपने न्यूज़ और व्यूज से बहुजन माइंड को कैसे संक्रमित कर रहा है .
और
४ ) बहुजन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और सोशल मीडिया को प्रभावित करने में क्यों अक्षम है .
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24 Ghanta
http://zeenews.india.com/bengali/
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Jayantibhai Manani
देश के पढेलिखे ओबीसी, एससी और एसटी अगर संविधान के राज्यनीति के सिध्धांतो को और अपने संवैधानिक अधिकारों को नहीं जानते, तो वे न अपने फेमेली के, न अपने समुदाय के या न देश के हितेच्छु है. क्योकि अपने संवैधानिक अधिकारों की धज्जिया उडानेवाले शासको और् प्रशासको को वे कभी नहीं पहेचान सकते. येही बात हमें चार राज्यों के चुनाव परिणाम में दिखाई दियी है.
मित्रो, आप क्या कहेंगे?
Pramod Joshi
केजरीवाल और योगेंद्र यादव के घर के आसपास लगी ओबी वैनों की कतार बताती है कि सत्ता के करीब आना व्यक्ति को महत्वपूर्ण बना देता है। तकरीबन तीन साल पहले केजरीवाल और उनके साथी किसी ऐसे व्यक्ति को खोज रहे थे जो उनके आंदोलन का नेतृत्व करे। उन्हें अन्ना मिल गए। देखते रहिए अगले कुछ दिन में केजरीवाल का कद अन्ना से ऊँचा हो जाएगा।
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Navbharat Times Online
बीजेपी के प्रधानमंत्री कैंडिडेट नरेंद्र मोदी ने फेसबुक पर क्रिकेट लेजंड सचिन तेंडुलकर और हाल ही में लॉन्च हुए ऐपल आईफोन 5s को पीछे छोड़ दिया है।#NarendraModi #Modi
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मेरा सवाल यही है दोस्तों कि जब नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल लोगों को सोशल मीडिया के जरिये सीधे संबोधित कर रहे हैं ,तो आप और हम क्यों पीछे रहेंगे,जिन्हें अपने लोगों के हक हकूक की आवाज उठानी है।पलाश
BBC World News
Thousands of people are gathering at a stadium in Johannesburg for a memorial service for Nelson #Mandela.
US President Barack Obama, Cuban President Raul Castro and UN Secretary General Ban Ki-moon will address the service, as will four of Mr Mandela's grandchildren.
It will be held at the 95,000 capacity FNB stadium and be shown on big screens at three "overflow" stadiums.
The former South African president died aged 95 last Thursday.
We have full coverage on BBC World News. You can also follow the coverage on the special live page on our website here.http://www.bbc.co.uk/news/world-africa-25297913
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Malayalam
അമ്മ പറഞ്ഞ നുണകള്...
1) ദാരിദ്ര്യം... നിറഞ്ഞുനിന്നിരുന്ന ആ വീട്ടില് എല്ലാ ദിവസവും രാത്രി ഭക്ഷണം കഴിക്കുമ്പോള് മകന്റെ പാത്രത്തിലേക്ക് തന്റെ പങ്കുകൂടി അമ്മ ഇട്ടുകൊടുക്കുമായിരുന്നു. അമ്മക്ക് വേണ്ടേ എന്ന മകന്റെ ചോദ്യത്തിന് എനിക്കു വിശപ്പില്ലെന്നായിരുന്നു അമ്മയുടെ സ്ഥിരമായ മറുപടി.
2) വളരെ അപൂര്വമായിട്ടായിരുന്നു വീട്ടില് മീന് വാങ്ങിയിരുന്നത്.കഷണങ്ങള് മകന് നല്കിയിട്ട് മുള്ളുകള് മാത്രമായിരുന്നു അമ്മ കഴിച്ചിരുന്നത്.മീന് കഷണങ്ങള് ഇഷ്ട്ടമല്ലെന്നായിരുന്നു അമ്മ പറഞ്ഞിരുന്നത്.....
3) മകന്റെ പഠനത്തിനായി അടുത്തുള്ള തീപ്പട്ടികംബനിയില് അമ്മ ജോലിക്ക് പോയിരുന്നു. ഫാക്ടരിയില്നിന്നും സാധനങ്ങള് കൊണ്ടുവന്നു രാത്രികളില് വീട്ടിലിരുന്നും അമ്മ ജോലി ചെയ്യുമായിരുന്നു.ഒരു തണുപ്പുള്ള രാത്രിയില് മകന് ഉറക്കം തെളിഞ്ഞപ്പോള് ജോലി ചെയ്യുന്ന അമ്മയെ ആണ് കണ്ടതു , അമ്മ എന്താണു കിടക്കാത്തതെന്നുള്ള ചൊദ്യത്തിനു ഉറക്കം വരുന്നില്ലെന്നായിരുന്നു ഉത്തരം.
4)പിതാവിന്റെ പെട്ടന്നുള്ള മരണം അമ്മയുടെയും മകന്റെയും ജീവിതം കൂടുതല് ദുഷ്കരമാക്കി. ബന്ധുക്കളും സുഹൃത്തുക്കളുമൊക്കെ മറ്റൊരു വിവാഹത്തിനു നിര്ബന്ധിച്ചെങ്കിലും സ്നേഹിക്കാനുള്ള മനസ്സ് നഷ്ട്ടമായതുകൊണ്ട് വിവാഹം വേണ്ടാ എന്നാണ് അമ്മ എല്ലാവരോടും പറഞ്ഞതു...
5) മകന് പത്താം ക്ലാസ് പരീക്ഷക്കായി അര്ദ്ധരാത്രി വരെ പഠിക്കുമ്പോള് അമ്മയും അവനോടൊപ്പം ഉറങ്ങാതിരിക്കുമായിരുന്നു.രാത്രിയില് മകനു ചായ കൊടുക്കുമ്പോള് അമ്മ എന്താണ് ചായ കുടിക്കാത്തതെന്നു ചോദിക്കുമ്പോള് രാത്രിയില് ചായ ഇഷ്ട്ടമല്ലെന്നയിരുന്നു മറുപടി.
6) കോളേജ് വിദ്യാഭ്യാസത്തിനായി മകന് പട്ടണത്തിലേക്കാണ് പോയത്.പഠനത്തോടൊപ്പം ഒരു ജോലിയും അവനു ലഭിച്ചു. അമ്മയുടെ കഷ്ട്ടപാടുകളെകുറിച്ചു ബോധ്യമുണ്ടായിരുന്നതുകൊണ്ട് അവന് ചിലവുകള് ചുരുക്കി ചെറിയൊരു തുക അമ്മക്കയച്ചുകൊടുത്തു .എനിക്കിപ്പോള് പണത്തിനു യാതൊരു ബുദ്ധിമുട്ടുമില്ല,ഭക്ഷണ കാര്യങ്ങളില് നീ കൂടുതല് ശ്രദ്ധിക്കണമെന്നുള്ള കുറിപ്പോടെ അമ്മ ആ പണം തിരിച്ചയച്ചു.
7) വിദ്യാഭ്യാസം കഴിഞ്ഞ ഉടന്തന്നെ അവനു വിദേശത്തു ജോലി ലഭിച്ചു. അമ്മയെ കൂടി കൊണ്ടുപോവാനായിരുന്നു മകന്റെ പദ്ധതി.പക്ഷേ,ഉയര്ന്ന നിലയിലോന്നും ജീവിക്കാന് ഇഷ്ട്ടമല്ലെന്ന് പറഞ്ഞു അമ്മ പോകാന് തയ്യാറായില്ല ( താന്കൂടി ചെന്നാല് വിദേശത്തെ ചെലവ് താങ്ങാന് മകനു കഴിയില്ലെന്നു അമ്മക് അറിയാമായിരുന്നു).
അമ്മക്ക് കാന്സര് ആണെന്നുള്ള വിവരമറിഞ്ഞാണ് മകന് നാട്ടിലേക്കു വന്നത് .പാതി മറഞ്ഞ ബോധാത്തിനിടയിലും ആശുപത്രിയിലെ കിടക്കയില്വെച്ചു മകനെ നോക്കി ചിരിച്ചുകൊണ്ട് അമ്മ പറഞ്ഞു തീരെ വേദനയില്ലെന്നു.പിറ്റേ ദിവസം അമ്മ മരിക്കുകയും ചെയ്തു..
അമ്മമാരുടെ സ്നേഹത്തിനു ചിലപ്പോള് നുണയുടെ രൂപമുണ്ടാവും.ഓരോ നുണകളും അമ്മമാരുടെ ഓരോ ത്യാഗങ്ങള് ആയിരുന്നുവെന്നു എല്ലാ മക്കളും അറിയുന്നു .എന്നിട്ടും എത്രയോ അമ്മമാരാണ് ഓരോ ദിവസവും വഴിയരികുകളിലും അനാഥാലയങ്ങളിലും ഉപേക്ഷിക്കപെടുന്നത്
ഒരുനിമിഷം തന്റെ അമ്മ തനിക്കുവേണ്ടി സഹിച്ചിട്ടുള്ള കഴ്ട്ടപ്പാടുകള് ഓര്ത്തു നോക്കു. അപ്പോള് അറിയാം ... എല്ലാതിനെക്കളും ഏതിനെക്കളും ശ്രേഷ്ഠം മാതാവു തന്നെ .........
(ഇവിടെ ഒരിക്കലും പിതാവിന്റെ കഷ്ട്ടപ്പാട് മറക്കുന്നില്ല )
മാതാ, പിതാ, ഗുരു, ദൈവം .....
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Economic and Political Weekly
Postscript: Setting Women Free
http://www.epw.in/postscript/setting-women-free.html
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Himanshu Kumar
बच्चों की कब्रें देखना सबसे ज्यादा खौफनाक मंजर होता है .
ये उन बच्चों की कब्रें हैं जो मुज़फ्फर नगर के मलकपुर राहत शिविर में ठण्ड से मर गए .
इनके माँ बाप को घर से इसलिए निकाल दिया गया था क्योंकि इनके माता पिता की ईश्वर के विषय में कल्पना हमसे कुछ अलग थी .
इसलिए ये दुनिया के सबसे ज्ञान सम्पन्न देश में मर गए .
कल पूरा अहवाल लिखूंगा .
Like · · Share · December 7 at 9:14pm ·
Mohan Shrotriya
दिल्ली में भाजपा ने अभूतपूर्व नैतिक स्टेंड (?) लिया है...
क्या लोकसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ी (किंतु बहुमत से दूर) पार्टी बन जाने पर भी वह इस स्टेंड पर कायम रह पाएगी?
देश सांस रोककर इसके जवाब की प्रतीक्षा कर रहा है ! बोलें, भाजपा नेतागण, कुछ तो बोलें !
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Sudha Raje
आज मनरेगा का काम देखा ।
दो घंटे काम करके 140 रुपया लेकर मजदूर चला गया ।
दिन भर की हाजिरी लग गयी ।
अब जाकर कही निजी काम करेगा 200रुपये पर ।
मेट ठेकेदार
का कमीशन फिट्ट।
कहीं मीडिया बहादुर नहीं जाते अरबों का घोटाला देखने!!!
RTIइसी घपले पर बना था राजस्थान की तलब पर
सुधा राजे
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Faisal Anurag shared Dhruv Gupt's photo.
ये हैं मणिपुर की इरोम चानू शर्मिला। पिछले तेरह सालों से अपने सूबे में मानवाधिकार की लड़ाई अकेली लड़ रही हैं। तेरह वर्षों से अन्न तो क्या, पानी की एक बूंद भी नहीं डाला हैं इन्होंने मुंह में। सरकार इन्हें ज़बरन नाक से तरल पदार्थ देकर जिंदा रखे हुए है। इनके खिलाफ आत्महत्या के प्रयास का मुक़दमा भी दर्ज़ किया गया है। शर्मिला की एकमात्र मांग है कि राज्य से 'मणिपुर विशेष सशस्त्र बल अधिनियम, 1958' हटा लिया जाय। यह एक काला क़ानून है जिसने वहां आतंकवाद से लड़ने के नाम पर सुरक्षा बलों कोअसीमित अधिकार दे रखे हैं जिनकी कोई सुनवाई नहीं। इस काले कानून की आड़ में वहां सैकड़ों निर्दोष युवकों को आतंकवादी बताकर जेलों में डाल दिया गया। सैकड़ों स्त्रियां सुरक्षा बलों की दरिंदा हवस की शिकार हुईं। इस राज्य में सुरक्षा बलों पर पुलिस और न्यायालयों में मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता। उनके द्वारा किए गए अपराधों की सुनवाई उनके भीतर गठित ट्रिब्यूनल करते हैं। इस छोटे से राज्य में सरकारी गैंग रेप कोई मुद्दा नहीं। जिन लोगों ने भी इस अलोकतांत्रिक कानून का विरोध किया वे आतंकवादी बता कर जेलों में डाल दिए गए। यह शर्मिला के जीवट और ज़ज्बे का कमाल है जो अकेले दम पर अपनी जान की चिन्ता किए बगैर मनुष्यता के पक्ष में एक ज़रूरी लड़ाई लड़ रही हैं। उनके प्रति राज्य और केंद्र सरकारों का उदासीन रवैया हैरान करता है। दुर्भाग्य से वे देश की मीडिया का ध्यान भी अपनी ओर नहीं खींच पाईं। या शायद देश की मीडिया यह मान बैठी है कि मणिपुर इस 'महान' देश का हिस्सा ही नहीं है। मानवाधिकार दिवस पर शर्मिला को सलाम !
sojnya rupesh
विश्व मानवाधिकार दिवस (10 दिसंबर) पर एक सलाम इन्हें भी ! ये हैं मणिपुर की इरोम चानू शर्मिला। पिछले तेरह सालों से अपने सूबे में मानवाधिकार की लड़ाई अकेली लड़ रही हैं। तेरह वर्षों से अन्न तो क्या, पानी की एक बूंद भी नहीं डाला हैं इन्होंने मुंह में। सरकार इन्हें ज़बरन नाक से तरल पदार्थ देकर जिंदा रखे हुए है। इनके खिलाफ आत्महत्या के प्रयास का मुक़दमा भी दर्ज़ किया गया है। शर्मिला की एकमात्र मांग है कि राज्य से 'मणिपुर विशेष सशस्त्र बल अधिनियम, 1958' हटा लिया जाय। यह एक काला क़ानून है जिसने वहां आतंकवाद से लड़ने के नाम पर सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार दे रखे हैं जिनकी कोई सुनवाई नहीं। इस काले कानून की आड़ में वहां सैकड़ों निर्दोष युवकों को आतंकवादी बताकर जेलों में डाल दिया गया। सैकड़ों स्त्रियां सुरक्षा बलों की दरिंदा हवस की शिकार हुईं। इस राज्य में सुरक्षा बलों पर पुलिस और न्यायालयों में मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता। उनके द्वारा किए गए अपराधों की सुनवाई उनके भीतर गठित ट्रिब्यूनल करते हैं। इस छोटे से राज्य में सरकारी गैंग रेप कोई मुद्दा नहीं। जिन लोगों ने भी इस अलोकतांत्रिक कानून का विरोध किया वे आतंकवादी बता कर जेलों में डाल दिए गए। यह शर्मिला के जीवट और ज़ज्बे का कमाल है जो अकेले दम पर अपनी जान की चिन्ता किए बगैर मनुष्यता के पक्ष में एक ज़रूरी लड़ाई लड़ रही हैं। उनके प्रति राज्य और केंद्र सरकारों का उदासीन रवैया हैरान करता है। दुर्भाग्य से वे देश की मीडिया का ध्यान भी अपनी ओर नहीं खींच पाईं। या शायद देश की मीडिया यह मान बैठी है कि मणिपुर इस 'महान' देश का हिस्सा ही नहीं है। मानवाधिकार दिवस पर शर्मिला को सलाम !
CNBC Awaaz - India's No.1 Business Channel
केंद्र में बीजेपी की सरकार आना मुश्किलः शंकर शर्मा
http://hindi.moneycontrol.com/mccode/news/article.php?id=91912
फर्स्ट ग्लोबल के चीफ ग्लोबल ट्रेडिंग स्ट्रेटेजिस्ट शंकर शर्मा का कहना है कि 2014 में कुछ भी हो सकता है और नतीजे बाजार की उम्मीदों से अलग हो सकते हैं। 2014 में तीसरे मोर्चे या यूपीए की सरकार बनना मुमकिन है। केंद्र में बीजेपी की अगुआई में सरकार बनना बहुत मुश्किल है।
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Economic and Political Weekly
Commentary: Amma Unavagams of Tamil Nadu: Panacea for Urban Food Insecurity?
http://www.epw.in/commentary/amma-unavagams-tamil-nadu.html
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Navbharat Times Online
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दूसरी पार्टियों के तमाम 'ईमानदार' नेताओं से AAP में शामिल होने की अपील कर दी है। पढ़ें पूरी खबर और कॉमेंट के जरिए दें अपनी राय...
खबर: http://navbharattimes.indiatimes.com/assembly-elections-2013/delhi-special-news/delhi/delhi-special-news/kejriwal-appeals-honest-leaders-to-join-aap/electionarticleshow/27159486.cms
Like · · Share · 70811338 · 27 minutes ago ·
H L Dusadh Dusadh
मित्रों!आज बहुजन राजनीति अत्यंत संकटग्रस्त स्थिति में है.आपको शायद 'आप'के खतरे का इल्म नहीं है.यह पार्टी २० वीं सदी में जी रही बहुजन राजनीति को पूरी तरह अप्रासंगिक बना देगी.क्योंकि इनके सामने दलित -पिछड़े नेताओं की कार्य शैली ग्रेजुएट जैसी है जबकि आप वाले यूनिवर्सिटी पास जैसे हैं.इस समय यदि आपको 'बहुजन भारत' से प्रेम है तो सवर्णपरस्त बहुजन नेताओं को उनकी जिम्मेवारी का ही एहसास नहीं कराना है बल्कि इससे भी आगे बढ़कर आपको बताना होगा कि यदि वे इसी तरह की राजनीति करते रहे तो उन्हें आपके वोट से हाथ धोना पड़ेगा.बहुजवादी नेताओं को आज आपकी नहीं सिर्फ अपने कैरियर की चिंता है.वे जानते हैं की हर हाल में आप अपना वोट उनको देंगे ही इसलिए वे अपनी सारी ताकत सवर्णों का वोट लेने लगा रहे हैं .इससे बहुजन राजनीति में बहुजनों के मुद्दे शून्य होते जा रहे हैं.ऐसे हालत में आपके लोग आप जैसो को वोट देने के मजबूर है.अतः दलित -पिछडे नेताओं को आप बता दो की यदि वे नहीं सुधरेंगे तो उनको आपका वोट मिलने से रहा.
दुसाध जी,सहमति।
Tehelka
A Lone Woman's Fight Against Sand Mining
She broke a gender barrier by learning to drive an autorickshaw. Now, Jazeera V is taking on the might of the sand mafia in Kerala. |http://bit.ly/1hzLw47
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The Economic Times
Tips for first time investors in stock markets. Read on ETWealth
Like · · Share · 4577149 · 21 hours ago ·
The Economic Times
ET Market News Dismal BSE PSU index: Will a Modi-led govt revive sick units? Read here & share your views http://ow.ly/rCcqv
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Bodhi Sattva
माँ को फोटो उतरवाना बहुत अच्छा लगता है
जैसे फोटो उतारने की बात होती है मां तैयार हो जाती है। चंद्रमौलि भैया गाँव में आए। उनको अपने आँगन में पाकर अच्छा लगा। जैसे ही उन्होंनें माँ से कहा कि फोटो खीचनी है माँ ने हाँ कर दिया है। माँ ने उनको खूब सारा आशीष दिया।Chandramauli Pandey भाई का यह पहली बार मेरे गाँव आना था। शायद हम जल्द फिर वहाँ मिले।
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सभी माताओं का किस्सा यही है भइया।लेकिन इन माताओं की सहज सरल सर्वव्यापी पीढी खत्म हो रही है। चिंता बस इतनी सी है।आप खुशकिस्मत है कि अब भी मां आपके पास हैं। पलाश
H L Dusadh Dusadh
मित्रों,आज शाम बॉम्बे हास्पिटल के आईसियू में पड़े विश्व कवि नामदेव ढसाल से मिलने का तीसरा प्रयास किया.उनसे मिलना विजिटरों के लिए प्राय पूरी तरह निषेध था.यही कारण है जब सुप्रसिद्ध पत्रकार सुधीन्द्र कुलकर्णी ने उन्हें देखने के लिए मेरे साथ चलने की इच्छा व्यक्त की,मेरे साथ के पैंथर कार्यकर्ताओं ने मना कर दिया. किन्तु चूँकि कल शाम मुझे बॉम्बे छोड़ना है इसे देखते हुए उनके कुछ समर्थकों ने हॉस्पिटल प्रशासन से जुड़े लोगों ने मुझे उनसे मिलवाने का विशेष प्रयास किया,जो सफल रहा.मैं यही उम्मीद रखा था कि मुझे अधिक से अधिक शीशे के दरवाजे के बाहर से देखने का अवसर मिलेगा.किन्तु मुझे अन्दर जाने की इजाजत मिली.दादा की आंखे मुंदी हुईं थी पर,मेरे आने की आहट पाकर खुल गयीं.न सिर्फ आँखे बल्कि जुबान भी खुली और उन्होंने मेरा हालचाल जानना शुरू किया .जवाब देने की बजाय मैं जल्दी से आईसीयू से बाहर आया और कुर्सी पर पड़ी डाइवर्सिटी इयर बुक:२०१३-१४ लेकर पुनः जल्दी से प्रवेश किया.मैंने जल्दी से फ़ोर कलर में छपी डाइवर्सिटी डे -२०१२ की वह तस्वीरें दिखलाना शुरू किया जो उनके दलित पैंथर के सौजन्य से मुंबई में आयोजित हुआ था .तस्वीरें देखकर उनके चेहरे पर खासी लम्बी मुस्कान खिल गयी.यह सारा कुछ बमुश्किल डेढ़ मिनट में हो गया.उनकी सेहत को देखते हुए वहां और ठहरना उचित नहीं था इसलिए मैं स्वंयं चलने का उपक्रम किया.उनका कमरा छोड़ने के पहले जब यह बताया की निकट भविष्य में उनकी बायो-ग्राफी लिखने जा रहा हूँ तो उनके चेहरे पर पुनः मुस्कान की हलकी सी लकीर उभरी.बहार आकर जब यह बातें ,पैन्थारों को बताई ,उनमे हर्ष की लहर दौड़ गयी.क्योंकि दादा ढसाल साहब कई दिनों से इतनी बाते नहीं किये थे.तो मित्रों आज मेरी इस बार की बॉम्बे यात्रा उनसे मिलकर सफल हो गयी.
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India Today
Kejriwal's AAP army that defeated political giants
http://indiatoday.intoday.in/gallery/kejriwals-aap-army-that-defeated-political-giants/1/10698.html
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Jayantibhai Manani commented on this.
Jayantibhai MananiAcademic Forum for Social Justice
तमिलनाडु देश के संविधान के राज्यनीति के मार्गदर्शक सिध्धांतो के अनुसार शासन चलानेवाला न. 1 पर आता राज्य है. देश के विकास का मोडल तमिलनाडु को बनाया जा सकता है गुजरात नहीं, गुजरात देश में शिक्षा में 17-वे स्थान पर है.
मित्रो, आप क्या कहेंगे?
Jayantibhai Manani with Bhilisthan Vikas Morcha and 19 others
देश में तमिलनाडु एक ऐसा अनोखा राज्य है जहां देश के प्रति एक लाख ओबीसी, एससी और एसटी में लेपटोप में न.1, PhD में न. 1, IAS - IPS में न. 1, हाईकोर्ट के जज में न. ...See More
Share · November 12 at 8:51am ·
1967 से तमिलनाडु में कोंग्रेस और भाजपा की सरकार नहीं बन पाई है, फिर संविधान का अमल क्यों नहीं होता? तमिलनाडु देश के संविधान के राज्यनीति के मार्गदर्शक सिध्धांतो के अनुसार शासन चलानेवाला न. 1 पर आता राज्य है.
देश के पढेलिखे ओबीसी, एससी और एसटी अगर संविधान के राज्यनीति के सिध्धांतो को और अपने संवैधानिक अधिकारों को नहीं जानते, तो वे न अपने फेमेली के, न अपने समुदाय के या न देश के हितेच्छु है. क्योकि अपने संवैधानिक अधिकारों की धज्जिया उड़नेवाले शासको और् प्रशासको को वे कभी नहीं पहेचान सकते. येही बात हमें चार राज्यों के चुनाव परिणाम में दिखाई दियी है.
Gopikanta Ghosh
Well analyzed
Communalism Watch: Nationalism, Secularism & Modi | Nilotpal Basu
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Panini Anand
झाड़ू का बिना हाथ कोई मोल नहीं. झाड़ू तभी कारगर है जब वो हाथ में हो. सफाई करनी हो, झाड़ना-बुहारना हो, हाथ की ज़रूरत पड़ती है. हाथ कर्ता है, झाड़ू माध्यम है, सफ़ाई कर्म है. इस व्यवहारिक बात को समझें. निभाएं साथ, झाड़ू और हाथ.
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प्रेस विज्ञप्ति
अरविंद केजरीवाल को बधाई एवं सवाल
नई दिल्ली, 10 दिसंबर, 2013.
डॉ0 उदित राज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनो का अखिल भारतीय परिसंघ ने आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री अरविंद केजरीवाल को बधाई दी। उनका मानना है कि जो बात आम आदमी पार्टी के नेता कहते हैं, उसको करके भी दिखाते हैं। दिल्ली की जनता ने अपार समर्थन इसी विश्वास के साथ दिया।
अरविंद जी! आपकी कार्य-प्रणाली एवं सिद्धांत को देखते हुए यह जानना चाहूंगा कि अनुसूचित जाति/जन जाति का आरक्षण कब और किस तरह से खत्म करेगें? आपने 2 अगस्त, 2008 को ताप्ती छात्रावास, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में आरक्षण खत्म करने का उद्घोष किया था। यूथ फॉर इक्वालिटी फोरम के द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस फोरम के आप सक्रिय नेतृत्व थे और इसकी स्थापना ही आरक्षण के विरोध में की गयी थी। अन्ना हजारे के साथ जब जन लोकपाल बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे तो उस समय भी हमने सवाल किया था कि आपके बिल में एन.जी.ओ. उद्योगजगत एवं मीडिया में भ्रष्टाचार को क्यों नहीं शामिल किया गया है? लोकपाल में दलितों एवं पिछड़ों का आरक्षण हो, इस पर भी सवाल पूछा गया था, लेकिन आप चुप रहे। अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहा है, इसका आप समर्थन करते हैं या विरोध, अभी तक स्पष्ट नहीं किया।
आपकी पार्टी 28 सीट दिल्ली विधान सभा चुनाव में जीत गयी है। कांग्रेस ने बाहर से सहयोग देकर सरकार बनाने के लिए कहा है, फिर भी आप लोग इस जिम्मेदारी से पीछे हट रहे हैं। आप पार्टी ने जिन मुद्दों और समस्याओं पर लोगांे का समर्थन प्राप्त किया है, क्या उसे आप लागू नहीं करना चाहते हैं? आप लोग ईमानदार एवं सैद्धांतिक व्यक्ति हैं, इसलिए सरकार बनाकर बिजली की दर 50 प्रतिशत कम करने का काम शीघ्र करना चाहिए, यह आपका प्रमुख वायदा था। इससे गरीबों का बड़ा उपकार होगा। सफाई कर्मचारियों को नियमित करने का भी वायदा किया है। अनियमित कॉलोनियों को भी सरकार बनाकर नियमित कर सकते हैं। सरकार बनाएंगें तो भ्रष्टाचार भी मिटाने में सहयोग मिलेगा। आपके घोषणापत्र में वायदा किया गया कि लोगों को पानी पर्याप्त दिया जाएगा, गंदे पानी का निकास, स्ट्रीटलाइट, शौचालय, यातायात की सुविधा, महंगाई पर अंकुश, आवास की सुविधा, 15 दिन के अंदर जनलोकपाल बिल बना देना, डबलडेकर फ्लाईओवर ब्रिज, मुसलमानों के खिलाफ फर्जी मुकदमों की वापिसी, 1984 में सिक्खों के साथ हुई ज्यादती को न्याय, दलितों को व्यापार करने के लिए 0 प्रतिशत ब्याज पर पूंजी उपलब्ध कराना, दिल्ली विश्वविद्यालय में 4वर्षीय पाठ्यक्रम का खात्मा इत्यादि है। सरकार बनाकर ही इन वायदों को पूरा किया जा सकता है। कांग्रेस के सहयोग से यदि आप सरकार बनाते हैं और आपके घोषणा-पत्र की मांगों को लागू करने में यदि आपका वह साथ नहीं देती है तो हानि कांग्रेस की ही होगी, न कि आपकी। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो जनता को लोक सभा के चुनाव तक सपने दिखाकर समर्थन हासिल करने की राजनीति कर रहे हैं, न कि भ्रष्टाचार मिटाना, आम लोगों के जीवन की बुनियादी सुविधाएं देना और विकास करना।
(उदित राज)
9899382211
Ashok Dusadh
जो लोग यह कह रहे हैं बीजेपी को सरकार बनाना चाहिए वह बेवकूफ नहीं बहुत चालाक और काइंया लोग है . दिल्ली में तीन दल है एक बीजेपी ,आम आदमी पार्टी ,कांग्रेस दो निर्दलीय ही मान लीजिये .बीजेपी ३ १ सीट लाकर पहले पोजीसन पर है जबकि मात्र ३ सीट पीछे 'आप ' २ ८ सीट लिए हुए हैं ,८ कांग्रेस के पास है .अगर बीजेपी सरकार बनाना चाहती है तो उसे दो निर्दलीय या आठ कांग्रेस या २ ८ आप से समर्थन लेना होगा .दिल्ली को छोड़ दे तो तीन राज्यों में बीजेपी ने कांग्रेस को ही हराया है .इसलिए कोई भी कम नासमझ राजनीतिज्ञ यह बता सकता है कांग्रेस बीजेपी को सपोर्ट नहीं करेगी .अब दो निर्दलीय कि बात आती है तो एक तो बीजेपी का सहयोगी ही है ,एक जनता दल यूनाइटेड का है वह बीजेपी को सपोर्ट देगा नहीं क्योंकि जेडीयू और बीजेपी का छतीस का आकंड़ा है .अगर दे भी देता है तो भी बीजेपी बहुमत नहीं बना पा रही है .सरकार बनाने कि दो ही सूरत उपलब्ध है या तो बीजेपी और 'आप ' मिलकर एक दूसरे का समर्थन ले या दे ,लेकिन यह भी असम्भव लगता है क्योंकि 'आप ' और बीजेपी का फर्क मिटने का डर है .तीसरी सूरत है 'आप ' कांग्रेस से बाहर से समर्थन ले .यह परिस्थिति सम्भव है क्योंकि कांग्रेस के पास कोई मोरल ग्राउंड नहीं बचा है जो 'आप ' को बाहर से समर्थन न देने का तर्क दे . इस तरह आप आसानी से सरकार बना सकती है .लेकिन उसके बाद जोखिम यह है कि आप मनमाने ढंग से सरकार नहीं चला सकती है और न ही अपने 'बीस करोड़ रुपये चंदे' के खर्च को सरकार से' रिम्बर्स ' करा सकती है .उसके लिए 'आप ' का अपनी पूर्ण बहुमत का सरकार होना चाहिए ?!
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Aaj Tak
गर्लफ्रेंड की शॉपिंग से तंग आकर ब्वॉयफ्रेंड ने मॉल से कूदकर जान दे दी. पढ़ें ये दर्दनाक खबर: http://aajtak.intoday.in/story/harassed-boyfriend-jumped-to-his-death-after-his-girlfriend-insisted-on-going-into-another-clothes-shop-1-749251.html
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Yashwant Singh
आम आदमी पार्टी मूलतः विचारहीन पार्टी है. विचार के नाम पर कोरी भावुकता है, कि हम सब(चोरों)को जेल भेज देंगे... टाइप की. कांग्रेस-भाजपा के करप्शन, दोगलापन और चिरकटुई से उबे हुए हम लोगों ने एक नई पार्टी और नए नेता पर जरूर दांव लगा दिया लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी समझ-बूझ कर रखिए. विचारहीनता अंततः कारपोरेट और बड़े लोगों के पक्ष में ही जाकर बैठती है. आजकल का यूथ न संघी होना चाहता है और न ही कामरेड बनना चाहता है और न ही संघियों-कामरेडों की ट्रेडीशनल दुकानों, मठों, पंथों, संप्रदायों से जुड़ना चाहता है. वो सहजता और समझदारी चाहता है. पर राजनीति के अपने तरीके होते हैं. वहां सहजता और समझदारी अंततः हराममियों की साजिशों के मकड़जाल में बेमौत मर जाया करती हैं. इसलिए राजनीति की दुनिया की हरमजदगी में देर-सबेर सबको इसी नशे-लहर से थोड़ा-बहुत तर-बतर होना पड़ता है. केजरीवाल ने अपने लिए विचारधारा का एक मजबूत झूला बना लिया है, जो संघियों से लेकर कम्युनिस्टों तक झूलता रहता है. किसी एक केजरीवाल के ठीक होने, ईमानदार होने, विजनरी होने से सिस्टम नहीं बदलता, बस कुछ दिनों के लिए थरथरा कर भ्रष्टाचार के पुराने पलस्तर झाड़-गिरा सकता है लेकिन करप्शन तो कोई एक मोनोलिथक, एक जगह पर पड़ी हुई चीज नहीं जिसे पकड़ा और गंगा में डाल कर ये कहते हुए हाथ झाड़ लिया कि हमेशा के लिए काम खत्म. नई स्थितियों में नए किस्म के भ्रष्टाचारी पैदा होंगे. कांग्रेस-भाजपा के भ्रष्टाचारी बड़े भदेस और थेथर किस्म के हैं. आम आदमी पार्टी के शासन के भ्रष्टाचारी हमारे-आप जैसे प्रवचन देने वाले और सड़क छाप दिखने वाले होंगे. करप्शन नामक बीमारी नई दवाई के हिसाब से इम्युनिटी, रेजिस्टेंस डेवलप करने की क्षमता से लैस है, खासकर तब जब शासन करने वालों के पास सिर्फ नारे हों, भावुकता हो और ढेर सारी बातें हों.
ये सब जब लिख रहा हूं तो कइयों को लग सकता है कि आखिर यशवंत जी ने अपने सुर क्यों बदल दिए, चुनाव नतीजे आने के बाद , आम आदमी पार्टी की इतनी भव्य जीत के बाद... तो बंधु, इसका भी जवाब ले लीजिए. अपन काम होता है बेचारों को, संघर्षशीलों को, सड़कछाप वालों को, विपक्षियों को, विरोधियों को सपोर्ट करना और उन्हें सफलता दिलाना. सफलता दिलाकर अपन फिर तलाशने लगते हैं कोई सड़क छाप, कोई जेनुइन, कोई संघर्षरत. अब जब आम आदमी पार्टी ने अपने संक्षिप्त व तेज सियासी सफर में जबरदस्त मजबूती, नाम, मुकाम पा लिया है तो अपना काम है कि इस पार्टी का भी पोस्टमार्टम शुरू किया जाए ताकि अपन सब के पास इस पार्टी, इस मिशन, इस विजन को लेकर एक सेकेंड पर्सपेक्टिव, अल्टरनेट पर्सपेक्टिव भी रहे, जिससे कभी ये पार्टी राह से भटके तो हम सबों को सुसाइड न करना पड़े, पता रहे कि ऐसा होने की संभावना/आशंका इस पार्टी के नेचर में निहित थी... यह सब लिखते हुए कहना चाहूंगा कि कांग्रेस-भाजपा की राजनीति और इसके बुड्ढे-भ्रष्ट नेता मुर्दाबादा... आम आदमी पार्टी और इसके नेता जिंदाबाद... अभी तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा सपा बसपा सभी को सबक सिखाकर 'आप' को जिताना है जिससे राजनीति के ट्रेडीशनल हरामियों को हताश कर नए किस्म के शरीफ, हमउम्र व हमारे-आप जैसे घरों से निकले हरामियों को आगे बढ़ाया जाए...
है न मजेदार बात...
नहीं...
गंदी बात गंदी बात गंदी बात गंदी बात...
और
लुंगी डांस लुंगी डांस लुंगी डांस लुंगी डांस...
जय हो...
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Gopal Rathi
सौजन्य - श्री वीरेन्द्र जैन ,भोपाल
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अधिक सीटों की जीत के धूम धड़ाके में यह बात भुला दी जा रही है कि मध्य प्रदेश के दस मंत्री चुनाव में हार गये है ये मंत्री शिवराज मंत्रिमण्डल द्वारा बहु प्रचारित विकास के आंकड़ों के प्रमुख सूत्रधार रहे हैं। इन मंत्रियों में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास, संस्कृति, जनसम्पर्क, धार्मिक न्यास और धर्मस्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा, राजस्व व पुनर्वास मंत्री करण सिंह वर्मा, किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री राम कृष्ण कुसमारिया, और इसी विभाग के राज्यमंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, आदिमजातिऔर अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री हरि शंकर खटीक, पशु पालन, मछुआ कल्याण एवं मत्सय विभाग, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्री अजय विश्नोई, सामान्य प्रशासन, नर्मदा घाटी विकास, और विमानन के राज्यमंत्री के.एल अग्रवाल, श्रम मंत्री जगन्नाथ सिंह, और दशरथ सिंह लोधी चुनाव हार गये हैं। लोक निर्माण मंत्री नागेन्द्र सिंह ने चुनाव लड़ने से ही इंकार कर दिया था, और वित्त, योजना, आर्थिक विकास, भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास मंत्री राघव जी की कथा तो सब को पता ही है। जीत की संख्याओं के आगे ये मंत्रिपरिषद के सदस्यों की यह पराजय शासन के बारे में कुछ संकेत देती लगती है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
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मानवाधिकार - विकिपीडिया
hi.wikipedia.org/wiki/मानवाधिकार
अनेक प्राचीन दस्तावेजों एवं बाद के धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों में ऐसी अनेक अवधारणाएं है जिन्हेंमानवाधिकार के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। ऐसे प्रलेखों में उल्लेखनीय हैं अशोक के आदेश पत्र, मुहम्मद(saw) द्वारा निर्मित मदीना का ...
भारत में मानवाधिकार - विकिपीडिया
hi.wikipedia.org/wiki/भारत_में_मानवाधिकार
देश के विशाल आकार और विविधता, विकसनशील तथा संप्रभुता संपन्न धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा, तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति ...
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मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा - विकिपीडिया
hi.wikipedia.org/.../मानवाधिकारों_की_सार्वभौम_घोषणा
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसेमानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते; मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ...
प्रवेशद्वार:मानवाधिकार - विकिपीडिया
hi.wikipedia.org/wiki/प्रवेशद्वार:मानवाधिकार
Human rights refers to the concept of human beings as having universal rights, or status, regardless of legal jurisdiction, and likewise other localizing factors, such as ethnicity and nationality. Philosophically, human rights can be based on social contract theories, conceptions of natural rights, or a combination thereof.
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पुलिस और मानवाधिकार
1. दृ सै चंहु स्म त्मा 2 ' 3. है मैं 1141, 3 11 '१'. ईकाई 3. पुलिस और मानवाधिकार. 3. है परिचय.मानवाधिकारों की अतक्सा तथा इसका परिक्षण काने. क्ली सस्था'आँ को समझने के बाद अब हम लोक्ला' में. पुलिस की भूमिका, उसकं कार्य और जवाबदेही को. जानने की ...
मानवाधिकार कानून की जानकारी दी - Yahoo
5 घंटे पहले - Read 'मानवाधिकार कानून की जानकारी दी' on Yahoo. हरदोई, निज प्रतिनिधि : राष्ट्रीय मानवाधिकार अन्वेषण संगठन के तत्वावधान में मंगलवार को मानवाधिकार दिव.
मानवाधिकार दिवस पर ने ली शपथ - Yahoo
2 घंटे पहले - Read 'मानवाधिकार दिवस पर ने ली शपथ' on Yahoo. जागरण संवाद केंद्र, सिरसा : उपायुक्त डा जे गणेसन ने मंगलवार को लघु सचिवालय में अधिकारियों व कर्मचारि.
Human rights in India - Wikipedia, the free encyclopedia
en.wikipedia.org/.../Human_rights_in_I...
Human rights in India is an issue complicated by the country's large size, its tremendous diversity, its status as a developing country and a sovereign, secular, ...
Chronology of events regarding ... - Use of torture by police
National Human Rights Commission of India - Wikipedia, the free ...
en.wikipedia.org/.../National_Human_...
The National Human Rights Commission (NHRC) of India is an autonomous public body constituted on 12 October 1993 under the Protection of Human Rights ...
human rights in india की चित्र
National Human Rights Commission, New Delhi, India.
Catering to the preservation of human rights of various strata of society.
India - Human Rights Watch
www.hrw.org/asia/india
Reports, background briefings, testimony, press releases and commentary on thehuman rights situation in the country.
World Report 2013: India | Human Rights Watch
India, the world's most populous democracy, continues to have significant human rights problems despite making commitments to tackle some of the most ...
Indian Institute of Human Rights
www.rightsedu.net/
It gives me great pleasure to send my warmest greetings to postgraduate students at theIndian Institute of Human Rights. The United Nations Charter enshrines ...
India — Asian Human Rights Commission
www.humanrights.asia/countries/india
INDIA: Supreme Court's scathing report against the government on encounter ... Urgent Appeal Case : The Asian Human Rights Commission (AHRC) has ...
Human Rights India
humanrightsindia.blogspot.com/
1 दिन पहले - It is HUMAN RIGHTS DAY TODAY -December 10th 2013 ... and the courage of Ambedkar for a free and secular India or do we give in to those ...
Working Group On Human Rights in India and the UN
The Working Group on Human Rights in India and the UN (WGHR) was established in January 2009 by a group of civil society organisations and independent ...
Human Rights in India - HumanRights.in
www.humanrights.in/
Provides information about the leading Human Rights Organisations in India including their membership information and contact details to enable you to join, ...
Human Rights Commissions in India-HUMAN RIGHTS NETWORK ...
www.mphrc.nic.in/.../Human_Rights_C...
15+ आइटम - NATIONAL HUMAN RIGHTS COMMISSION FARIDKOT HOUSE ...
ASSAM HUMAN RIGHTS COMMISSION GMC ROAD, BHANGAGARH ...
0361.
ANDRA PRADESH HUMAN RIGHTS COMMISSION 'GRUHAKALPA ...
040.
Human Rights Law Network (HRLN)
The Human Rights Law Network (HRLN) is a collective of lawyers and social activists dedicated to the use of the legal system to advance human rights in India ...
WBHRC - West Bengal Human Rights Commission...
www.wbhrc.nic.in/Human_right.htm
(1 ) This Act may be called the Protection of Human Rights Act, 1993. (2) It extends to the whole of India. Provided that it shall apply to the State of Jammu and ...
India Together: Human Rights - news articles, reports, opinions and ...
www.indiatogether.org/humanrights/
Despite the call by human rights organizations to stop the use of weapons such as ...Is freedom of speech and expression deeply accepted in Indian society?
All India Human Rights Seva Sangh | Facebook
https://www.facebook.com/...India-Human-Rights.../440433792681996
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All India Human Rights Seva Sangh. 115 likes · 4 talking about this. This Organisation Is Help To Every Human In the World, Not For Depend Upon The Cast.
Human Rights Council of India | Facebook
https://www.facebook.com/.../Human-Rights...of-India/3208499679869...
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Mr ANTHONY RAJ National President All India Council of Human Rights Liberties & Social Justice. H-10, Basement, NDSE-Part One, New Delhi-110049 ...
International Human Rights Association India | Facebook
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To connect with International Human Rights Association India, sign up for Facebook ...The object of the Association is to spread knowledge of Human Right as ...
Nationalist Human Rights movement of india | Facebook
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Nationalist Human Rights movement of india. 7159 likes · 70 talking about this. Non-Governmental Organization (NGO)
Human Rights Observers – International Human Rights Association ...
ihraindia.com/
Human Rights Observers is a common platform of the various groups and individuals committed to the cause of human rights in India. Our mission is to support ...
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All India Human Rights Grievances Association
All India Human Rights Grievances Association (AHIRGA) has developed to become a broad-spectrum, countrywide human rights body. Nationally, the AHIRGA ...
India - Asian Centre for Human Rights
www.achrweb.org/countries/india.htm
India's Role For Promotion of Human Rights in Third Countries Through Universal Periodic Review. 15 November 2013. India's Unfinished Agenda for Inclusion.
India Human Rights | Amnesty International USA
Amnesty International works to stop India human rights violations. India human rights abuses can end with your support.
Human Rights | National Portal of India
india.gov.in/spotlight/human-rights-0
18-09-2012 - Human rights are rights inherent to all human beings, irrespective of a person's nationality, place of residence, sex, national or ethnic origin, ...
[PDF]
human rights in india - International Environmental Law Research ...
30-07-2000 - In India, the last quarter of the 20th century has been witness to a ... It is axiomatic that this interest in human rights is rooted in the denial of life ...
All India Human Rights And Citizen Option
All India Human Rights & Citizen Option (AIHRCO) is today the larges tnon-government organisation (NGO) in the indian sub contnent engaged in human rights ...
[PDF]
HUMAN RIGHTS IN INDIA - AN OVERVIEW - Shodhganga
लेखक SK Mathews - 2013 - संबंधित लेख
3.3 HUMAN RIGHTS AND THE INDIAN CONSTITUTION 61. 3.4 FUNDAMENTAL RIGHTS AND HUMAN RIGHTS. 64. 3.5 DIRECTIVE PRIPICIPLES OF STATE ...
HUMAN RIGHTS COUNCIL OF INDIA - India | LinkedIn
in.linkedin.com/in/hrcofindia
View HUMAN RIGHTS COUNCIL OF INDIA's (India) professional profile on LinkedIn. LinkedIn is the world's largest business network, helping professionals like ...
Human Rights - अन्य हिन्दी ख़बरें
Read More: श्रीलंकाई तमिल, श्रीलंका, मानवाधिकार, भारत, लिट्टे, India, LTTE, Srilankan Tamil, Srilanka, Human rights ...
20-year-old student from Odisha represents India at Human Rights ...
ibnlive.in.com › India › Odisha
15-09-2013 - Presenting the perspective of youths at the International Human RightsSummit in Brussels, 20-year-old engineering student from Odisha ...
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Live हिन्दुस्तान-06-12-2013
p7news-04-12-2013
न्यायमूर्ति गांगुली लगातार तीसरे दिन नहीं ...प्रभात खबर-18 घंटे पहले कोलकाता : कानून की इंटर्न छात्र के यौन उत्पीड़न के मामले में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की एक समिति द्वारा दोषारोपित किये गये न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली आज तीसरे दिन भी पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के ... |
गांगुली मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटें ...Live हिन्दुस्तान-05-12-2013 विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने मांग की कि शीर्ष अदालत के पैनल द्वारा उच्चतम न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश ए के गांगुली को आवांछित आचरण का दोषी पाए जाने के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष ... |
मानवाधिकार आयोग को जुर्माना लगाने का अधिकार ...नवभारत टाइम्स-06-12-2013 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पुलिस अधिकारियों के किसी कृत्य अथवा उनके आचरण को लेकर उन पर जुर्माना नहीं लगा सकती। अदालत ने कहा है कि आयोग को अधिक से अधिक पुलिस के कृत्यों की जांच ... |
* | मानवाधिकार आयोग से सिवान के जिलाधिकारी की ...दैनिक जागरण-07-12-2013 पटना : सिवान समाहरणालय में पदस्थापित एक सहायक विनोद कुमार सिन्हा ने अपने जिलाधिकारी सहित कई अन्य अधिकारियों के खिलाफ राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करायी है। सिन्हा ने कहा है कि डीएम के दबाव में ये अधिकारी ... |
मलाला को 2013 का UN मानवाधिकार पुरस्कारShri News-06-12-2013 न्यूयॉर्क : तालिबान हमले में बची एवं महिला शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर रही पाकिस्तानी किशोरी मलाला यूसुफजई को साल 2013 के मानवाधिकार पुरस्कार से नवाजे जाने की घोषणा हुई है. 10 दिसंबर यानीमानवाधिकार दिवस पर मलाला को यह ... |
मानवाधिकार ने दर्ज किया मुकदमादैनिक जागरण-06-12-2013 दुद्धी (सोनभद्र) : पीयूसीएल की जांच रिर्पोट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गंभीरता से लेते हुए आरोपी सीआइएसएफ के जवानों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। बताते चले कि सितंबर में सीआइएसएफ के जवानों ने कथित कबाड़ चोरी के ... |
रोज होता है मानवाधिकारों का हननदैनिक जागरण-09-12-2013 पूरे विश्व में आज मानवाधिकार दिवस मनाया जाएगा। जिले में विभिन्न संस्थाओं द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन होगा। भाषणों का लंबा दौर चलेगा। अफसोस, यहां मानवाधिकार का सच बेहद कड़वा है। कानून और नीतियों की आड़ में ... |
मानवाधिकार आयोग को मुआवजा लगाने का अधिकार नहींनवभारत टाइम्स-06-12-2013 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पुलिस अधिकारियों के किसी कृत्य अथवा उनके आचरण को लेकर उन पर मुकदमा नहीं लगा सकती। अदालत ने कहा है कि आयोग को अधिक-अधिक पुलिस के कृत्यों की जांच कर ... |
मानवाधिकारों के प्रति रहना होगा सचेत : अहलावतदैनिक जागरण-7 घंटे पहलेसाझा करें जागरण संवाद केंद्र, कुरुक्षेत्र : प्रदेश मानवाधिकार आयोग के सदस्य जेएस अहलावत ने कहा कि लोगों को उनके मानव अधिकारों के प्रति सचेत करने के लिए से 18 दिसंबर को एक दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। सम्मेलन में मुख्य ... |
करियर के रूप में मानवाधिकार क्षेत्र में बेहतर मौकेSahara Samay-20-11-2013 मानवाधिकार क्षेत्र अपने विकास के चरम पर है. इस क्षेत्र को आज भी समाज सेवा से जोड़कर देखा जाता है. पर अब यह महज समाज सेवा नहीं रह गया है बल्कि एक करियर के रूप में उभरकर सामने आया है. शिक्षित युवाओं के अलावा दूसरे कई और ... |
* | मानवाधिकार क्षेत्र में हैं बेहतर मौकेSahara Samay-20-11-2013 मानवाधिकार क्षेत्र अपने विकास के चरम पर है. इस क्षेत्र को आज भी समाज सेवा से जोड़कर देखा जाता है. पर अब यह महज समाज सेवा नहीं रह गया है बल्कि एक करियर के रूप में उभरकर सामने आया है. शिक्षित युवाओं के अलावा दूसरे कई और प्रोफेशनल्स के लिए भी ... |
* | मलाला को मिला यूरोपीय संघ का सखारोव ...Zee News हिन्दी-20-11-2013 मलाला को मिला यूरोपीय संघ का सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार लंदन : लड़कियों की शिक्षा की हिमायती पाकिस्तानी किशोरी मलाला यूसुफजई को आज स्ट्रासबर्ग में एक समारोह में यूरोपीय संघ का सखारोव मानवाधिकार पुरस्कार प्रदान ... + और अधिक दिखाएं |
* | गोष्ठियां आयोजित कर समझाए गए अधिकारदैनिक जागरण-4 घंटे पहले निज प्रतिनिधि, एटा: मंगलवार को मानवाधिकार दिवस पर जनपद में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुए। कार्यक्रमों में मानवाधिकारों पर चर्चा के साथ ही जिम्मेदारों ने उनके संरक्षण और सद्पयोग को लेकर निष्ठा व्यक्त करते हुए संकल्प लिए। + और अधिक दिखाएं |
* | कोलंबो ने खारिज की मानवाधिकार जांच की दलीलएनडीटीवी खबर-16-11-2013 कोलंबो: राष्ट्रमंडल के शासनाध्यक्षों की बैठक (चोगम) में हिस्सा लेने आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की मानवाधिकार रिकार्ड की अंतरराष्ट्रीय जांच की चेतावनी को खारिज करते हुए श्रीलंका ने शनिवार को जोर देकर कहा कि ... + और अधिक दिखाएं |
* | बादल के खिलाफ मानवाधिकार हनन का मामला खारिजZee News हिन्दी-28-11-2013 न्यूयार्क : अमेरिका की एक अदालत ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ मानवाधिकार हनन के एक मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया है कि एक सिख समूह ने बादल को उचित तरीके से अदालती समन पेश नहीं किया। शिकागो में ... + और अधिक दिखाएं |
* | जनता के बीच मानवाधिकार आयोगदैनिक जागरण-25-11-2013 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की फुल बेंच 26 व 27 नवंबर को यहां जनता के बीच में बैठेगी। आयोग के अध्यक्ष केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में संचालित होने वाली यह बेंच आयुक्त सभागार में दो दिन तक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति ... + और अधिक दिखाएं |
एमआर के वीसी डॉ. वाधवा को मिला मानवाधिकार ...नवभारत टाइम्स-08-12-2013 फरीदाबाद में सूरजकुंड रोड स्थित मानव रचना इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी(एमआरआईयू) के वाइस चांसलर डॉ. एन सी वाधवा को तीसरा भारतीय मानवाधिकार पुरस्कार-2013 मिला है। इसे लेकर कैंपस में खुशी की लहर है। डॉ. वाधवा सेवानिवृत आईएएस ... |
मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष पद से हटाए जाएंगे ...नवभारत टाइम्स-06-12-2013 लॉ इंटर्न से अशोभनीय व्यवहार के लिए पहली नजर में दोषी पाए गए जस्टिस ए. के. गांगुली की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गांगुली को राज्यमानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) के अध्यक्ष पद से ... |
* | मिस्र में प्रदर्शनों संबंधी कानून मानवाधिकार ...रेडियो रूस (РГРК)-28-11-2013साझा करें उनके अनुसार बान की मून ने याद दिलाया कि कोई भी कानून स्वीकार करते वक्त इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी है कि वह मानवाधिकारों के सभी अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होना चाहिये। रविवार को मिस्र के अस्थायी राष्ट्रपति ... |
आइएचआरए का मानवाधिकार पखवाड़ा 10 सेदैनिक जागरण-04-12-2013 जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन (आइएचआरए) 10 दिसंबर सेमानवाधिकार पखवाड़ा मनाएगा। यह निर्णय मंगलवार को एसोसिएशन के साकची स्थित कार्यालय में जिलाध्यक्ष आशुतोष सिंह की अध्यक्षता में हुई ... |
* | रूस मानवाधिकार परिषद के लिए निर्वाचितरेडियो रूस (РГРК)-12-11-2013 रूस के अलावा, 13 अन्य देशों को भी मानवाधिकार परिषद के लिए निर्वाचित किया गया है जिनमें ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, क्यूबा, सऊदी अरब और दक्षिणी अफ्रीका भी शामिल हैं। जॉर्डन और दक्षिणी सूडान को सदस्य बनने के लिए आवश्यक संख्या ... |
* | ईरान ने मानवाधिकार पर यूएन के प्रस्ताव को ठुकरायाZee News हिन्दी-21-11-2013 तेहरान : संयुक्त राष्ट्र महासभा की समिति द्वारा ईरान में मानवाधिकार के उल्लंघन मामले पर लाए गए प्रस्ताव को यहां की सरकार ने अस्वीकृत कर दिया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मरजीह अफखम ने ... |
चिकित्सीय मानवाधिकार की टीम पहुंची शाहपुरदैनिक जागरण-04-12-2013 एक प्रतिनिधि, शाहपुर (भोजपुर) : भू-गर्भीय पेयजल में आर्सेनिक रूपी जहर के खतरे के बीच जूझती एक बड़ी आबादी की त्रासदी को देखने एवं उसे महसूस करने मानवाधिकार आयोग की चिकित्सकीय दल एवं शोधकर्ता भोजपुर जनपद के शाहपुर प्रखंड ... |
* | अधिकार के प्रति करें जागरूकदैनिक जागरण-6 घंटे पहले जाटी, पाकुड़/महेशपुर/पाकुडिया : स्थानीय डीएवी पब्लिक स्कूल में मंगलवार कोमानवाधिकार दिवस के मौके पर जिला विधिक सेवा प्राधिकार की आर से लिगल अवयरनेस कैप लगा। इसका उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि परिवार कोर्ट व कुटुंब ... |
* | पुलिस कार्रवाई पर मानवाधिकार आयोग से जांच के ...Live हिन्दुस्तान-19-11-2013 उच्चतम न्यायालय ने इस साल जून में बलात्कार के एक मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कथित पुलिस अत्याचार की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से जांच कराने ... + और अधिक दिखाएं |
* | श्रीलंका के मानवाधिकार मसले पर कैमरन का कड़ा रुखIn.com Hindi-16-11-2013 मार्च तक अगर जांच नहीं हुई तब मैं संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त के साथ काम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अपने पद का इस्तेमाल करूंगा और पूर्ण, विश्वसनीय व अंतर्राष्ट्रीय जांच की मांग करूंगा।". + और अधिक दिखाएं |
सभी राज्य मानवाधिकार आयोग का करें गठन : एनएचआरसीABP News-16-11-2013 अगरतला: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन ने शनिवार को कहा कि बार-बार आग्रह करने के बावजूद कई राज्यों ने अभी तक मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों से निपटने के लिए प्रदेशों में आयोग ... |
* | पुलिस-पब्लिक में सीधा संवाद जरूरीदैनिक जागरण-5 घंटे पहले जाटी, राजमहल/साहिबगंज: पुलिस का सीधा संवाद पब्लिक से होना चाहिए। पुलिस को हमेशा अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति सजग रहना चाहिए। ये बातें मंगलवार को अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी कार्यालय में अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस ... |
* | अधिकारो की सजगता से ही मिलेगा मानवीय हकदैनिक जागरण-3 घंटे पहले कुशीनगर : मंगलवार को मानवाधिकार दिवस पर संविधान प्रदत्त मानवीय हक को जानने, समझने व उनके प्रति सतर्क होने के लिए जनपद में हुए विविध आयोजनों में छात्रों, आम लोगों को जागरूक किया गया। छात्रों ने शपथ लेकर मानवाधिकारों की ... |
वाराणसी में मानवाधिकार कार्यकर्ता को पहले ...Bhadas4Media-15-11-2013 वाराणसी में मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता को पहले पुलिस चौकी के सामने पिटवाया और जब वह कम्प्लेन लिखाने चौकी में गया तो वहां से भी चौकी इंचार्ज ने गाली देकर भगा दिया. घटना कल रात 10:40 की है जब अधिवक्ता और ... |
* | मानवाधिकार दिवस पर निबंध प्रतियोगितादैनिक जागरण-9 मिनट पहले फैजाबाद : मानवाधिकार दिवस पर रोटरी क्लब के तत्वावधान में मंगलवार को अयोध्या के शिवदयाल जायसवाल सरस्वती विद्यामंदिर परिसर में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कक्षा 11 व 12 के लगभग डेढ़ सौ छात्र-छात्राओं ने भाग ... |
* | मीडिया तथ्यान्वेषण पर ध्यान दे : कोकजेWebdunia Hindi-3 घंटे पहले विश्व मानवाधिकार दिवस पर श्रीमती संतोष शरण की स्मृति में 'मानवाधिकार की रक्षा में मीडिया का योगदान' पर विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए जस्टिस कोकजे ने कहा कि सभी क्षेत्रों में बाजारीकरण हुआ है ... |
चीन ने कहा-मानवाधिकारों का संरक्षण करे श्रीलंकाZee News हिन्दी-18-11-2013 बीजिंग : चीन ने सोमवार को एक आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए श्रीलंका से मानवाधिकारों का संरक्षण करने और इसे बढ़ावा देने की कोशिश करने को कहा। इस तरह से उसने श्रीलंका में अल्पसंख्यक तमिलों के मानवाधिकार हनन के आरोपों पर गौर ... |
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग करेगा सुनवाईदैनिक जागरण-23-11-2013 जागरण संवाददाता, वाराणसी : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की फुल बेंच द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के प्रकरणों की जन सुनवाई 26 व 27 नवम्बर को आयुक्त सभागार में की जाएगी। मंडल के वाराणसी, चन्दौली, गाजीपुर व जौनपुर ... |
* | अधिकार पाने को प्रत्येक व्यक्ति को सजग रहना जरूरीदैनिक जागरण-4 घंटे पहले मैनपुरी: मानवाधिकार दिवस पर इमरजेंसी हेल्प लाइन एसोसिएशन के तत्वावधान में कचहरी रोड स्थित जिला कार्यालय पर आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि एसपी श्रीकांत सिंह ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकार पाने का हक है। |
57 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकारदैनिक जागरण-15 घंटे पहले रांची : राज्य में मानवाधिकार का संरक्षण एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। झारखंड ह्यूमन राइट्स मूवमेंट ने कहा है कि यहां 57 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। वहीं, समाज कल्याण विभाग के आंकड़ों में यह संख्या 5.5 लाख है। राइट्स ... |
* | आयोग को मजबूत बनाएंदैनिक जागरण-20 घंटे पहलेसाझा करें आदित्य राज, गुड़गांव : मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर अंकुश लगाने के लिएमानवाधिकार आयोग को जिला स्तर पर मजबूत बनाना होगा। जांच में न केवल तेजी लानी होगी बल्कि जांच दूसरों से कराने की बजाय खुद करनी होगी। साथ ही लोगों ... |
झारखंड में भी हो जनजातीय आयोग का गठनदैनिक जागरण-2 घंटे पहले रांची : अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर मंगलवार को एचआरडीसी सभागार में आदिवासियों की स्थिति पर कार्यशाला हुई। आयोजन नेटवर्क ऑफ एडवोकेट्स फॉर राइट्स एंड एक्शन के सहयोग से किया गया। जेवियर कुजूर ने कहा कि आदिवासी ... |
* | जस्टिस गांगुली को हटाओ, ममता ने राष्ट्रपति से की ...नवभारत टाइम्स-06-12-2013 सूत्रों ने बताया कि पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस गांगुली गुरुवार से ही दफ्तर नहीं आ रहे हैं। जब जस्टिस गांगुली से पूछा गया था कि क्या वह इस्तीफा देंगे, इस पर उन्होंने कहा था, 'मैंने फैसला नहीं किया है। |
अपने इस्तीफे पर गांगुली ने कहा, 'मुझे...पंजाब केसरी-7 घंटे पहले नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफे को लेकर बढ़ते दबाव के बीच उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अशोक कुमार गांगुली ने आज कहा कि वह जो भी करना होगा, करेंगे। यौन उत्पीडऩ के एक मामले की जांच के ... |
* | इस्तीफे के लिए बढ़ते दबाव के बीच जस्टिस गांगुली ...प्रभात खबर-10 घंटे पहले बनर्जी ने गांगुली के खिलाफ तत्काल उचित कार्रवाई की मांग करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दोबारा चिट्ठी लिख चुकी हैं, वहीं तृणमूल कंाग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने ट्विटर पर आज विश्व मानवाधिकार दिवस के मौके पर ... |
जारी है जुल्म, कब तक इंसाफ का इंतजार?अमर उजाला-6 घंटे पहले देश में मानवाधिकार हनन के मामलों में से आधे यूपी में दर्ज होते हैं लेकिन इनके निस्तारण की रफ्तार इतनी धीमी है कि हर साल 10 हजार से ज्यादा मामले बकाया रह जाते हैं। स्थिति यह है कि वर्तमान में यूपी मानवाधिकार आयोग ... |
* | मुखर हुआ मृत्यु दंड का विरोधदैनिक जागरण-2 घंटे पहले यह विचार प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता व बॉम्बे हाईकोर्ट की जानी-मानी वकील माहरुख आदेनवाला ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मंगलवार की शाम यहां मित्र सम्मिलनी हॉल में आयोजित एक परिचर्चा में व्यक्त किए। |
* | श्रीलंका पर मानवाधिकारों को लेकर दबाव बनाएं ...Zee News हिन्दी-13-11-2013 वाशिंगटन : मानवाधिकार मामलों से जुड़े एक प्रतिष्ठित समूह ने कहा है कि राष्ट्रमंडल देशों के शासनाध्यक्षों की बैठक (चोगम) में भाग ले रहे नेताओं को मेजबान देश श्रीलंका पर मानवाधिकार मामलों में उसके इतिहास को लेकर दबाव ... |
* | फिल्में, जो बनीं आम आदमी की आवाजदैनिक जागरण-10 घंटे पहलेसाझा करें इसी साल आई फिल्म शाहिद मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील शाहिद आजमी की जिंदगी पर आधारित थी, जिनकी 2010 में मुंबई में हत्या कर दी गई थी। बेशक यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर पाई, लेकिन फिल्म से बहुत लोगों को प्रेरणा ... |
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