जनसरोकार गये तेल लेने,पहले आपस में फरिया लें!
आप हम जिन मुद्दों को लेकर ,जो हक हकूक की लड़ाई इतने वर्षों से लड़ते रहे हैं,कारपोरेट तंत्र उसे एक झटके से बिखेरकर ऐसा वैमनस्य का माहौल पैदा कर रहा है,कि बदलाव की ताकतों और सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी असंभव सी होती जा रही है।
पलाश विश्वास
आज का संवाद
जनसरोकार गये तेल लेने,पहले आपस में फरिया लें।
विशिष्ट लेखिका अनिता भारती के फेसबुक पोस्ट पर इतनी देर रात प्रतिक्रिया देनी पड़ रही है क्यंकि यह एक बेहद खतरनाक मुद्दा है,जिसपर तत्काल अपनी बात रखनी जरुरी है।अनिता जी के पोस्ट पर फेसबुक पर हमने अपनी प्रतिक्रिया दे दी है।उनकी हालत किसी की भी हो सकती है।इसलिए इस मुद्दे को गंबीरता से लिये जाने की जरुरत है। हम लोगों को जैसे कि मुक्तिबोध ने कहा था कि पहले तय करो कि किस ओर हो तुम,इस प्रस्थानबिंदू पर लौटकर सबसे पहले यह तो तय करना ही होगा कि आखिर हम लोग चाहते क्या हैं।किसकी लड़ाई में शामिल हैं हम।जनता की लड़ाई में या कारपोरेट हितों की लड़ाई में।
Anita Bharti
सामाजिक बर्ताव को लेकर एक टिप्पणी करने के बाद पिछले दो दिनों के दौरान मेरे बारे में जिस तरह "दाम" लेकर "बिक जाने" से बहुत आगे बढ़ते हुए "हत्यारिन" "दलाल" तक कहा गया, गाली की भाषा में बात की गई, उससे मेरे सामने कई सवाल खड़े हुए हैं। इस भाषा में बात करने वाला समर अनार्य (मूल नाम- अविनाश पांडेय) खुद को हर बार जोर देकर कॉमरेड और कम्युनिस्ट-वामपंथी कहता है। इसके अतिरिक्त इसका चरित्र, व्यवहार और भाषा सभी के सामने है। इसकी हर बात से सामंती ब्राह्मणवाद का जहर बहता रहता है। व्यवहार के हर पहलू से यह प्रतिगामी संगठन का एजेंट लगता है जो प्रगतिशीलता और वामपंथ का चोला ओढ़ कर खुद वामपंथ को नुकसान पहुंचा रहा है। क्या ऐसे ही लोगों ने हर बार यथास्थितिवाद के विरुद्ध खड़ा होने वाले किसी आंदोलन में घुसपैठ कर उसे बर्बाद नहीं किया है? क्या ऐसे ही सामंती व्यवहार करने वाले लोगों के चलते कमजोर और वंचित जातियों के लोगों को समूचे वामपंथ को शक की नजर से देखने का आधार नहीं मिलता है? दलित-वंचित जातियों के लोग क्यों वामपंथ जैसी विचारधारा से दूर चले जाते हैं? जिस आक्रामक और बेलगाम भाषा-व्यवहार से इसने मेरे व्यक्तित्व, (मैं अपने महिला और सामाजिक पहचान को फिलहाल परे रखती हूं) मेरे मान-सम्मान पर हमला किया है, क्या यही इसका मूल चरित्र नहीं है, जो प्रगतिशीलता के चोले के पीछे छिपा हुआ है? क्या ऐसे ही लोगों के चलते समूचे वामपंथी आंदोलन को ही कुछ लोग संदिग्ध नहीं मानते हैं?
अब मैं अपने दायरे में सभी प्रगतिशील, वामपंथी और न्याय में विश्वास रखने वाले साथियों से पूछना चाहती हूं कि समर अनार्य (मूल नाम- अविनाश पांडेय) के चरित्र को वे कैसे देखते हैं। अगर वे इस व्यक्ति को वामपंथ का प्रतिनिधि चरित्र मानते हैं और उसका व्यवहार उन्हें आपत्तिजनक नहीं लगता है तो मैं ऐसे वामपंथ को खारिज करती हूं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि वामपंथ के ईमानदार साथी वामपंथ को बदनाम करने वाले इस अविनाश पांडेय उर्फ समर पांडेय का सार्वजनिक बहिष्कार करेंगे। क्योंकि इस तरह के चरित्र और व्यवहार का व्यक्ति अपने साथ-साथ एक समूची विचारधारा को गर्त में धकेलने के लिए जिम्मेदार होता है। यह ऐसे लोगों की साजिश भी हो सकती हो सकती है।
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Anuradha Mandal, Sunil Sardar, Vikash Mogha and 35 others like this.
Deepak Rajan वामपंथी विचारधारा मूलनिवासियों की विचारधारा कदापि नहीं थी और ना होगी बाबा साहेब ने इस विचारधारा को सिरे से ख़ारिज किया है ,और जो मूलनिवासी इस विचारधारा से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं उनको ये साइड इफ़ेक्ट का तो सामना करना ही होगा , क्योंकि भारत की वामपंथी विचारधारा तताकथित सवर्णों के हाँथ की कठपुतली मात्र है, इसमें लेबल भले ही साम्यवाद का हो पर अन्दर की शराब वही पुरानी जातिवादी ही है। आज -कल एक और ब्राण्ड नया आया है बाज़ार में पर इसका भी सिधान्त वही पुराना वामपंथ का ही है जिसका नाम है AAP /जातिवाद।
Manoj Kumar beshak aise ngo chhap individualistic aur araajak elements ka bahishkar hona chahiye..
3 hours ago via mobile · Like
Sharwan Meena hame vishwash h aap par...
3 hours ago via mobile · Like
Deepak Rajan Sharwan Meena ji
Palash Biswas आदरणीया अनिता जी,यह जो गृहयुद्ध स्त्री अस्मिता और धर्मनिरपेक्षता के बीच छिड़ गया है,उसकी आग दावानल की तरह हम सबको झुलसाकर रख देगी।आपकी भूमिका के बारे में साफ हैं हम लोग।इसके बावजूद आरोप आप पर भी लगाये जा रहे हैं।भाषा का संयम सभी पक्षों की ओर से तोड़ा जा रहा है।विमर्श का माहौल खत्म होने को है। आप हम जिन मुद्दों को लेकर ,जो हक हकूक की लड़ाई इतने वर्षों से लड़ते रहे हैं,कारपोरेट तंत्र उसे एक झटके से बिखेरकर ऐसा वैमनस्य का माहौल पैदा कर रहा है,कि बदलाव की ताकतों और सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी असंभव सी होती जा रही है।इसके भयावह परिणाम निकलेंगे।अनवर खुरशीद को अभियुक्त बताने या बरी करने का काम हमारा नहीं है।लेकिन इसकी आड़ में जो भयानक युद्ध छिड़ गया है,किसी की छवि साबूत बचेगी या नहीं, मुझे शक है।महज फेसबुक पर नहीं,मैं यथासंभव देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ लगातार संपर्क में हूं।बयानबाजी और जवाबी बयानबाजी से,गाली गलौज और जवाबी गाली गलौज से हम किसे सजा दे रहे हैं,यह समझने की जरुरत है।हमने अपनी कुछ आदरणीया महिलाओं की टिप्पणियां भी देखी हैं,जो उनकी प्रतिष्ठा के मुताबिक नहीं हैं।हम समर के बर्ताव की निंदा करते हैं।लेकिन मधु किश्वर की भूमिका सिरे से संदिग्ध है,इसे माने बिना हम इस झंझावात से निकल ही नहीं सकते।ऐसी परिस्थितियां जिन लगों की वजह से तैयार हुई हैं,उन्हें भी चिन्हित किये बिना हम इस कुरुक्षेत्र के महाभारत से बच नहीं सकते।
Palash Biswas आज रात मैंने बहुत दिनों बाद समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट से बात की है।आनंद स्वरुप वर्मा जी से बात हुई नहीं है।ये लोग दशकों से वैकल्पिक मीडिया की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम लोग स्पेस बनाने की कोशिश में हैं और हमारे ही लोग उपलब्ध स्पेस पर आपस में ही मारामारी में उलझ गये हैं। हम लोग तो सोशल मीडिया को जनसरोकार के मुद्दों का वैकल्पिक मंच बना रहे थे।अब वह गंगाघाट पर बनारस का खुल्ल्मखुल्ला होली जलसा बनता जा रहा है।आज अगर किसी पर आरोप लगता है तो हम लोग उसे बचाव का मौका दे ही नहीं रहे हैं।लोकतंत्र में तो सभी पक्षों की सुनवाई का मौका होना ही चाहिये।यह हालत हममें से किसी की होगी तो हम अपना बचाव तक नहीं कर सकते।दशकों से जो लोग सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय हैं,अचानक उनके संदिग्ध हो जाने से उनपर अवांछित आरोप लगने से हम उन्हें बचाव का मौका भी न दें तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।एकतरफा फतवाबाजी का शिकार फतवा जारी करने वाले लोग भी हो सकते हैं।
क्या पूरा देश अब खाप संस्कृति के शिकंजे में है?क्या गोत्र देखकर ही क्या हम लोग सामाजिक आचरण करेंगे? minutes ago · Like
Palash Biswas और देखिये,लोगों ने तो आप पर भी आरोप लगाने शुरु कर दिये हैं।
Palash Biswas क्या हमारी ऊर्जा,प्रतिभा,प्रतिबद्धता अब बस इस काम की रह गयी है कि अबाध कारपोरेट राज के लिए हम जो पहले से खंड विखंड हैं,साथ खड़े ही न हो सकें,सब मिलकर आपसी जूतम पैजार से ऎसी भयानक स्थिति का ही निर्माण करते रहेंगे,इस पर हम सबको सोचना चाहिए।
Palash Biswas आज अगर अनिता जी के खिलाफ यह अभियान है तो कल हमारे और दूसरों के खिलाफ भी यही घमासान होगा।
Palash Biswas तो क्या हम लोग अबसे जन सरोकार के मुद्दे हाशिये पर रखकर भारतीय जनता के वध अभियान का मददगार बनते हुए एक दूसरे को ही लहूलुहान करते रहेंगे,इस पर भी सौचें सारे लोग।
Palash Biswas जगदीश्वर जी का लिखा हमें प्रासंगिक लगा और मैंने उस पर लंबी प्रतिक्रिया भी देदी। जनसरोकार के मुद्दे पर तमाम समर्थ लोग खामोश हैं लेकिन दूसरों पर हमला करने से कोई चूक नहीं रहा है।
Palash Biswas यही है केकड़ा चरित्र हिंदी समाज।
Palash Biswas संवाद के लिए कोई तैयार नहीं।हर कोई अलग अलग खाप है।
Palash Biswas एकतरफा फतवे जारी हो रहे हैं।
Palash Biswas यही है तो दिल का सारा गुबार निकालकर जमकर गालियों की अंताक्षरी ही हो जाये।लोक में तो गाली गीतों का भी रिवाज है।
Palash Biswas इससे अगर समस्याएं सुलझती हों तो बस,अब यही कर लिया जाये।
Panini Anand
जनला हो मर्दे, इ जेतना बार यूपी आइहैं, बलंडर जरूर होई. मफलर देख के लगत रहल कि कउनो रबड़ के जाकिट पहरले हुअन. कुल भाषण गड़बड़ाए गल. पता नाई लाग कवन बतिया केहर चेपत पेलत जात हौं. अ मिसटेक ई कर देहलेन कि- उत्तर प्रदेश भारत का भाग्य विधाता बन सकता है, उत्तर प्रदेश समृद्ध भारत की धरोहर बन सकता है, उत्तर प्रदेश नई उंचाइयों के लिए एक ताकतवर इंजन के रूप में उभर सकता है.... संकट ये है कि आपने सही सरकारें चुनी नहीं हैं. आपको सही नेता मिले नहीं हैं.- अब लीजिए. मतलब मंच पे राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोसी, सब फरजियै चुनि चुनि जात रहें. अउर इन मोडी बाबू के केऊ बतावौ कि हमनी के खेते में नेता पैदा होवेला. ससुर, बौकड़ी कहै हाथी से कि तुम बड़ा हो सकते हो जी. मजाक करै आवा रहैं. सबसे बड़ा मिसटेक जानत हुआ का भल- याकौ दांई हर हर महादेव न कहलेन. मने बिला काल भैरव, दंडपाणि अउर हर हर महादेव के भाषण सूरू और खतम हो गल. हाहाहहा... जात जात कहिन के बनारस मरण के भूमि है. ससुर, बनारस सर्व विद्या के राजधानी हो. तहार सांस फूल गल. रजातलाब में आंय सांय भाषण देहला. लक्खन ठीक नाहीं हैं तहार.... अरे, टिबिया कम कर बुजरौवाले... ढेर उंचा बाजत हौ.
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TaraChandra Tripathi
जब समाज और पुलिस की सोच सामन्ती हो और संपन्न और प्रभावशाली वर्ग सारे मूल्यों को ताक पर रख कर क्लबों और सड़्कों मे कामुक और भड़्काऊ प्रदर्शन करने में अपनी शान समझता हो, उसे सत्ता के प्रतिष्ठान से ' काहू ते मरहिं न मारे, का अभयदान हो, टी.वी. और फिल्में सैक्स और स्केंड्लों से भरी हों, पूँजीवादी व्यवस्था नारी की देह को मात्र अपना सामान बेचने का साधन बना रही हो, तो नारी के प्रति समाज की सोच कैसे बदलेगी?
हमारे समाज ने नारी को कभी मानवी समझा ही नहीं. यदि समझा होता तो विवाह के बाद लड़्की को विदा करते समय माता-पिता उसके ससुराल वालों से 'अब यह तुम्हारी चीज हुई क्यों कहते'.
सज्जनो ' चीज ' शब्द पर ध्यान दीजिये. यह 'ची" धारणा ही नारी के उत्पीड़्न का मुख्य कारण है.
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Virendra Yadav
"गंगा की याद के बिना हिन्दुस्तान अधूरा है ".
"जो गंगा नहीं बचा सकते वे देश क्या बचायेंगें?"
"गंगा ,गंगा, गंगा"
गंगा की उपरोक्त दुहाई सुनकर याद आता है प्रेमचंद का वह निम्न कथन जिसमें उन्होंने कहा था--
"साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है .उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्जा आती है ,इसलिए वह गधे की भांति जो सिंह की खाल ओढ़कर जंगल में जानवरों पर रोब जमाता फिरता था ,संस्कृति की खाल ओढ़कर आती है ."--प्रेमचंद.
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Udit Raj
अगर दलितों और पिछड़ों को सम्मान से जीना है तो इस मनुवादी मीडिया का बहिष्कार करें। हम क्या बहिष्कार करेगें, मनुवादी मीडिया ने हमें पहले से ही बहिष्कृत कर रखा है। 16 दिसंबर, 2013 को अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ की जंतर मंतर, नई दिल्ली पर विशाल रैली को मीडिया ने नहीं के बराबर कवर किया, जबकि ठीक हमारे मंच के आगे एवं पीछे निर्भया कांड की वर्षगांठ पर 10-20 महिलाएं धरने पर बैठी थीं, उन्हें देश के सारे प्रमुख चैनलों ने न केवल लाइव कवरेज दिया बल्कि पूरे अखबार उसी से रंगे थे। जंतर मंतर पर हमारी महा रैली जैसी शायद ही कोई और हुई हो। टी.वी. चैनलों पर बहस में मिश्रा, दुबे, सिंह, अग्रवाल, मित्तल, गोयल, राजपूत आदि ही चर्चा में देखे जाते हैं और इन्हीं के समाज पर चर्चा भी होती है। शायद कभी भूलकर दलित और पिछड़ों की बात हो जाती है, जो नहीं के बराबर है। उदाहरण के लिए जिस प्रकार दूरदर्शन पर चित्रहार कार्यक्रम भूले-बिसरे गीतों को सुनाया जाता है। हाल में सम्पन्न हुए चार राज्यों के विधान सभा चुनावों में एक बार भी दलित मुद्दों पर चर्चा नहीं हुई, जैसे कि हमारा कोई अस्तित्व ही न हो। इस सवर्ण मानसिकता के खिलाफ यदि खड़ा होना है तो अपना मीडिया खड़ा करो। चाहे जो तकलीफ आए, बर्दाश्त कर लो लेकिन कम्प्यूटर और मोबाइल पर इंटरनेट, फेसबुक, ट्यूटर, यूट्यूब, वाट्सअप, एसएमएस आदि के द्वारा अपना मीडिया खड़ा कर लो। आम आदमी पार्टी मीडिया के द्वारा पैदा की गयी। संकल्प कर लो कि अब यह आपके जरूरी कामों में से एक होगा। इस संदेश को इतना फैलाओ कि देश के सारे दलित और पिछड़ों तक पहुंच जाए। कुछ फोटो रैली की देखें तो अपने आप पता लग जाएगा कि सवर्ण मीडिया, कितना पक्षपाती है।
डॉ0 नाहर सिंह
अध्यक्ष, दिल्ली प्रदेश परिसंघ
मो. 9312255381
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स्वर्णमंदिर में कुछ पल
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स्वर्णिम आभा से युक्त जन-जन का स्वर्णमंदिर. मूल नाम हरमंदर साहब. विशाल परिसर. मध्य में नीलाभ अमृत सरोवर. शबद कीर्तन से निनादित परिवेश. पाँचवें गुरु अर्जुनदेव की परिकल्पना का साकार रूप. शिलान्यास किया था लाहौर के मुस्लिम सन्त हजरत मियाँ मीर जी ने. अभिलेख बताते हैं कि शिलान्यास की तिथि संवत् 1645 वि. के माघ की प्रथम तिथि, संभवतः मकर संक्रान्ति थी. तीसरे गुरु अमरदास की करुणा का अमृत सरोवर, जिसे गुरु रामदास ने बाबा बूढ़ा की देखरेख में बनवाया था. अमृतकुंड और दरबार साहिब का उदय क्या हुआ, अमृतसर उभरने लगा।
श्वेताभ प्रांगण में कहीं भी मलिनता न आने देने के लिए अनवरत सन्नद्ध सिख श्रद्धालु. जाति भेद, रंगभेद, प्रजाति-भेद, देश-भेद से मुक्त सबको गले लगाता आध्यात्मिक संसार.
'नानक दुखिया सब संसार'। 'संसार'. हिन्दू नहीं, मुस्लिम नहीं, स्वदेशी नहीं, विदेशी नहीं, गरीब नहीं, अमीर नहीं... 'सब संसार'। एक अद्भुत आध्यात्मिक दुनिया. मन प्रसन्न हो गया। लगा जैसे मंदिर के छोटे से अँधेरे कोने से निकल कर ईश्वर को भी खुली हवा में श्वास लेने का अवसर मिल गया हो. आकार से निकल कर निराकार होकर, पाषाणी मूर्ति से 'सबद' में ढल कर वह ब्रह्मत्व को प्राप्त हो गया हो. बिगबैंग हो या ओ3म् या आमीन। शब्द ही तो ब्रह्म है। शब्दं ब्रह्म।
दरबार साहब का पूरा परिसर वर्गाकार वेदी पर निर्मित है. इस परिसर के मध्य में स्थित अमृत सरोवर भी वर्गाकृति में निर्मित है. अमृत सरोवर के मध्य में स्थित हरमंदर साहब का भवन भी वर्गाकृति है. वर्ग या चारों दिशाएँ समान. इस वर्गाकृति के भीतर दिग्, काल और उसमें विकसित संसृति, सबके प्रति सत्गुरु का समत्व-संदेश निहित है।
दर्शनी ड्योढ़ी से मंदिर तक 21 फीट चौड़ा और 202 फीट लम्बा सेतु है. यह सेतु अमृत सरोवर से होता हुआ उपासक को मंदिर के परिक्रमा पथ तक पहुँचाता है. परिक्रमा पथ में चारों दिशाओं की ओर खुलते मंदिर के प्रवेश द्वार गुरु की शरण में आने वाले हर उपासक को अंगीकार करते हुए से प्रतीत होते हैं. किसी के भी प्रवेश का निषेध यहाँ नहीं है।
मंदिर में तीन तल हैं. जो क्रमशः छोटे होते जाते हैं. भूतल पर स्थित कक्ष, जिसे हर की पौरी भी कहा जाता है, अपेक्षाकृत बड़ा है. प्रथम तल का कक्ष भूतल के कक्ष से छोटा है. उसकी छत पर चारों ओर किनारों पर चार छोटी छतरियाँ हैं. दूसरे तल पर स्थित कक्ष प्रथम तल के कक्ष से भी छोटा है. इसमें तीन द्वार हैं. तीनों तलों में गुरुग्रन्थ साहब का अनाहत वाचन, होता रहता है. एक-एक तल से होता हुआ उपासक जैसे साधना के तीसरे सोपान पर पहुँच कर अपने जीवन की साध पा जाता है.
स्वर्णमंदिर सिखों की सामूहिकता का प्रतीक होने के साथ-साथ उनकी निश्छल आस्था का भी प्रतीक भी है. परिसर की स्वच्छता में आत्मभाव से अनवरत लगे सिख सेवकों का समर्पण भाव स्पृहणीय है. प्रसाद और चढ़ावा भी हलवे का है, जो द्वार पर स्वयंसेवक आपसे प्राप्त कर लेते हैं और बदले में हलवे का ही प्रसाद प्रदान करते है. गुरुग्रन्थ साहब का पाठ ही नहीं अखंड लंगर भी दरबार साहब की अनूठी परंपरा है। हर रोज हजारों-हजार दर्शक इसमें भोजन ग्रहण कर कृतार्थ होते हैं।
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मैं सोच रहा था कि नानक देव के वचनों में कौन सी महाशक्ति थी जिसने इस्लाम को छोड़ कर पूर्ववर्ती सारे धार्मिक अभ्युदयों को आत्मसात् कर चुके हिन्दू धर्म के नाम से अभिहित अनेक उपासना और दर्शन पद्धतियों के समुच्चय की रक्षा करते हुए भी उसके प्रभाव से अपने पन्थ के स्वतंत्र अस्तित्व को अक्षुण्ण रखा. मेरी दृष्टि में यह महाशक्ति है, जीवन के हर समारंभ को, हर संस्कार को, पन्थियों के दैनिक जीवन से जुड़े उपाकर्म को पंडिताई के चक्रव्यूह से मुक्त कर गुरुवाणी में समाहित कर देना. पहली बार हम एक ऐसे पन्थ को पाते हैं जो हिन्दू परंपरा से विकसित होता हुआ भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रख सका. यह वह पन्थ है, जो अध्यात्म के साथ अपने समाज को भी परिपुष्ट करता है। जहाँ सेवा और समता का साम्राज्य है. सब से महत्वपूर्ण तो यह है कि भले ही संसार के किसी भी देश में किसी भी व्यक्ति को कहीं राह न मिले, आसरा न मिले, आहार न मिले, गुरु का द्वार उसके लिए सदा खुला मिलता है।
Emergence of AAP and Consequences
K K Singh
AAP victory in Delhi, though not sufficient to form government, has made history. This fact in itself is not sufficient to justify reasons for making history but its manifesto, thousands of volunteers from across the country, selection of its candidates independent of their religion, caste etc., fighting election with common man's donations etc. are but few reasons for starting a new epoch and creating fear in existing parties who hitherto had been doing politics without second thought of the people!
And another angle of this history is the effort to find solution of hung assembly in Delhi is to approach people on 17 Dec, 20 13 and find out what they want? In the meantime, on this date, Rajya Sabha passed Sarkari Lokpal Bill supported by Anna brokered by open agents of Congress and BJP! On 18th Dec, 2013 Lokpal Bill is passed in LS as well, this in itself is history, but will be remembered as treachery to people and their dream of corruption free India through JLPB!
Lokpal Bill had been pending since 45 years, but the way it was passed, like Congress, BJP, RJD etc. supporting its enactment, who had been dead opposed to it earlier and even calling Anna by all names, crates suspicion on their integrity and of course the effect of AAP victory and restlessness in all these old and corrupt parties to contain this rising "monster" against corruption and crimes!
AAP Manifesto: In addition to making electricity 50% cheap, certain amount of water to be provided free, making special force with help of Retired Army Officer to protect women, other emphasis was on rehabilitation of rag pickers, contract labours, hawkers, parking facility for vehicles adjacent to societies, making tax payment etc. simpler to cut corruption etc. were added jewels in this newly emerged party's manifesto.
Yet, there was enacting of un-diluted Delhi Lokayukta, and that also implied RTI on political parties once in power in Centre!
NOTA: Another astounding phenomenon was 14 lakhs vote to NOTA in 5 states!! This implies that voter did come out of their cosy residents, went to polling booth, determined and voted to None Of The Above(NOTA), knowing well that even if it gets maximum votes, there will be a winner, the one who gets second maximum votes, the runner! Democracy, if it exists in India on the shoulders of 10 Crore child labours, 9 Crore homeless Indians and 2 Crore prostitutes, must change in form and content to survive! This incident is not due AAP as NOTA was voted in Delhi as well, though in small percentage, but due people's anger on existing system, whatever, one may call it- democracy or Loot Tantra or Dalal Tantra!
Effecton Foreign Policy Difficult to foresee at present, what is the foreign policy of AAP, even though economic policy is abundantly clear from its Delhi manifesto, which has sent shivers among the agents of Ambani, Adani; only yesterday BJP ex-President Gadkari said AAP is "Right Maoist"! If you talk of controlling national wealth in favour of common man, peasants, workers, you become Maoist?
Well, as well as foreign policy is concerned, remember Snowden, American whistle-blower, incident, where only one to support his asylum request in India was Arvind Kejriwal and AAP. Congress and BJP treacherously kept mum on this huge criminal spying through PRISM, US network against India and its people! Recent episode of our lady diplomat in US being harassed found echo in Indian political parties, where Mayavati too opened her mouth supporting diplomat in name of Dalit, is nothing but drama by US agents at the time of election and not to let AAP hog the national sentiments!
So here is the glimpse of AAP's foreign policy- independent outlook with respect of our Sovereignty and maintaining our economic and military interest, be it US, Russia or our neighbours!
Conclusion: Emergence of AAP has changed the way politics was "played" in India that is to loot mass for their masters, the corporates and for themselves and the state machinery including judiciary was for them and not for people.
Side effect of AAP can be seen in strengthening of unity among parasite political parties and state machinery to safe guard Corporates' interest and their profit, which was evident in passing a fake Lokpal Bill, 'strong' stance against US hegemony, abruptly dropping of vegetable prices after election, and very positive effect is dramatic votes to NOTA and a cold rage rising in voters to oust existing rogue political parties!
Revolution is in making!
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Capton K K Sngh (Krishna Kant Singh) is defence expert.He Worked at Indian Air Force, now he is active with Aam Admi Party.
13 hours ago near New Delhi ·
I salute the activists of Aam Aadmi Party and Manish Sisodia for standing up for the poor in the slums in Mayur Vihar Area. They have stopped the bulldozers gone to demolish slums.
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You, Uday Prakash, Avinash Das, गंगा सहाय मीणा and 79 others like this.
Uday Prakash sometime it comes in the mind as if Arvind Kejariwal is a dreamer, an utopian while Anna Hazare is a clever 'politician' ...equipped with sneaky tactics. Wonder, if Kejariwal fails in spite his rising popularity amongst common people, Anna succeeds becoming a 'gobar ganesh' worshipped by all political outfits...
13 hours ago · Like · 4
Pooja Singh It is a revolution
Prakash K Ray A map of the world that does not include Utopia is not worth even glancing at, for it leaves out the one country at which Humanity is always landing. And when Humanity lands there, it looks out, and, seeing a better country, sets sail. Progress is the realisation of Utopias. -Oscar Wilde
13 hours ago · Like · 3
Saurabh Shekhar Uday Prakash And what if Kejriwal succeeds sir?
Uday Prakash It would be closer to what Pooja Singh ji had said above...!
Saurabh Shekhar Thanx!
Uday Prakash Prakash K Ray ji ...but a few post-modernists say that we are now living in the age of dystopia ..!
Prakash K Ray They are right to an extent. But the term 'living' is also there and that is the result as well as the base for Utopia.
12 hours ago · Like · 1
Saurabh Shekhar There are dystopian times..is nt it the reason enough to give a push to it?
Girish Nikam was there media frenzy like we saw with the campa cola society?
Palash Biswas सलूट।
Uday Prakash I've just seen strikingly similar trend of elections, as with AAP, in Seattle elections where A teacher Community member , Khsama Savant (an Indian) running as a 'socialist' candidate, has brought an amazing result with her unexpected victory. In no time she had collected 1000,000$ in 'chandaa' from workers with a devoted team of volunteers campaigning for her. She is now most popular labor leader in Seattle, US. Things are changing world wide and financial inequality, low wages, poor conditions of working people in different fields are asserting politically. AAP ke saath dilli me aisaa hi huaa thaa. ye phir se hogaa, general elections me bhi.
6 hours ago · Edited · Like · 3
मीडिया में दलित मुददो के लिये स्पेस हो
2013.12.20
अरुण खोटे । "मीडिया में दलित" के होने से फर्क तभी पड़ सकता है जब मीडिया में दलित मुददो के लिये स्पेस हो। क्योंकि मीडिया पूर्णरूप से निजी और ब्राह्मणवादी मानसिकता वाले पारम्परिक उद्योगपति वर्ग के हाथो में है। इसलिये मीडिया के सामने यह लेकर आने की जरुरत है कि आज दलित वर्ग भी बाजार में योगदान कर रहा है।
समाचार पत्र /पत्रिकाओ के ग्राहक और टीवी दर्शक के रूप में दलितो का सीधे योगदान है और उनमें प्रकाशित / प्रसारित विज्ञापन आदि उपभोक्ता वस्तुओं के ग्राहक के रूप में दलित प्रायोजक और विज्ञापनदाता को लाभ दे रहे हैं। और इसी आधार पर दलितो के मुद्दे पर मीडिया में "स्पेस " का दावा किया जा सकता है। क्योंकि दलितो का एक छोटा सा 3 % से 4 % वर्ग मध्य या निम्न मध्य वर्ग के रूप में पैदा हो चूका है। शहरों ने अपने दायरे में गांवों को व्यापक तरीके से प्रभावित किया है। और उसका एक बड़ा हिस्सा बाज़ारवाद कि चपेट में आ चूका है। दलितो का एक छोटा सा हिस्सा इसमें शामिल है जो बाजार में योगदान कर रहा है।
आज मीडिया लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कि भूमिका से बहुत दूर जा चूका है, समाचार जगत एक इंडस्ट्री में बदल चूका है और समाचार एक "उत्पाद" का स्वरूप ग्रहण कर चुके हैं। जिसके चलते उससे उसकी सामाजिक सरोकारिता की भूमिका पर सवाल करना या आपेक्षा करना कितना तार्किक हो सकता है ? मैं ऐसे तमाम दिल्ली से लेकर लखनऊ तक के दलित पत्रकारो को जानता हुँ जो अपनी पहचान को छिपाकर सामान्य विषयो पर पत्रकारिता कर रहे हैं। यह सभी जानते हैं कि इनकी जाति खुलते ही या फिर दलित मुद्दे को उठाते ही येनकेन प्रकारेण इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जायगा। और जो जाति की पहचान के साथ काम कर रहे हैं उनके लिये चुप रहना उनकी मज़बूरी है। इसलिये वह दलित मुद्दों के अलावा अन्य विषयों पर पूरी बेबाकी से पत्रकारिता करते हैं। लेकिन तादाद में इनकी संख्या इतनी कम है कि इसे प्रतिशत में आंकना अन्याय होगा। ऐसा भी होता देखा जाता है कि अंततः समाचार समूह के भेदभावपूर्ण रवैये के चलते दलित वर्ग के पत्रकार अन्य क्षेत्रो में स्थानांतरित हो जाते हैं।
बाज़ारवाद का एक दूसरा पक्ष यह भी है कि यह लाभ हानि कि परिभाषा समझाता है और अगर दलितो को मीडिया में स्पेस और प्रतिनिधित्व चाहिये तो बाज़ार से उसकी ही भाषा में संवाद करना पड़ेगा। जरुरत इस बात कि है कि शोधो और अध्ययन के माधयम से बाज़ार में उप्भोक्ता के रूप में दलितो के योगदान और समाचारो पत्र / पत्रिकाओ के ग्राहक के रूप में और TV के दर्शक के रूप में दलितो के योगदान को चिन्हित करने कि आवशयकता है। और मेडिया इंडस्ट्री को चुनौती दे कर दलितो के मुद्दे पर स्पेस और उनके प्रतिनिधित्व का दावा किया जा सकता है।
न्यूज़रूम में दलितो की भागीदारी और समाचारो के सभी वर्गों मैं दलितो से जुड़े विषयो कि सुनिश्चतता के लिए सरकार के द्वारा अफर्मेटिव एक्शन लिये जेन कि व्यापक आवशयकता है। अमेरिका में काले लोगों के प्रतिनिधित्व को न्यूज़ रूम में सुनिश्चित करने के लिए उठाये गये इस प्रकार के कदमो के नतीज़े काफी हद तक सकारात्मक रहे हैं। सरकारी विज्ञापन पाने वाले और सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम वाले संचार माध्यमो को दलितों के प्रतिनिधित्व और स्पेस के लिये बाध्य किया जा सकता है।
आज लगभग सभी मीडिया समूह के पास अपने खुद के मीडिया प्रशिक्षण संस्थान हैं जहाँ दलित वर्ग के लिये कुछ स्थान आरक्षित किये जाने की अति आवशयकता है। डॉ अम्बेडकर दलितो के अपने मीडिया के प्रबल समर्थक थे और अपने समय में उन्होंने सफल प्रयास भी किये। आज़ादी के बाद भी महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में कुछ सफल प्रयास हुऐ है। कुछ एक प्रयास अभी हाल फिलहाल में भी हो रहे हैं जो काफी हद तक उम्मीद पैदा करते हैँ। हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी उन्हें प्रोत्साहन और सहयोग देने की है। उनके अनुभवों को भी शामिल किया जाता तो और बेहतर रहता।
वैसे समय आ गया है जब सरकार लोकसभा - राज्यसभा चैनल कि तर्ज़ पर दलितों और अन्य दबे कुचले वर्ग पर केंद्रित एक नये और स्वतन्त्र "सामाजिक चैनल और सामाजिक समाचार पत्र" की शुरुवात करे जो इन वर्गों के मुददो पर एक साकारत्मक बहस के माध्यम से अन्य समाजो को दलितों और अन्य उपेक्षित वर्गों के प्रति जवाबदेह और संवेदनशील बनाने कि भूमिका अदा करे। जहाँ तक दलितो के अपने मीडिया को लेकर अबतक जीतने भी प्रयास हो रहे हैं या अतीत में हुये हैं अधिकतर के असफल होने के पीछे महत्वपूर्ण कारण पाठकवर्ग के चयन और प्रकाशित सामग्री में जुड़ाव की कमी बड़ा कारण नज़र आता है।(अरुण खोटे के फेसबुक से )।
अरुण खोटे---Former Cheif Executive, Peoples Media Advocacy & Resource Centre-PMARC at Human Rights Campaign
Amit Kumar Mishra
मोदी जी की विजय संखनाद रैली वाराणसी के कुछ द्रश्य ----जय श्री राम जय भाजपा
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