वाम समर्थन से बंगाल विधानसभा में आधार नकद सब्सिडी के खिलाफ प्रस्ताव पास
पक्ष विपक्ष में परिवर्तन के बाद पहली बार सहमति,बाकी मुद्दों पर,खासतौर पर राज्य के हित में भी आम जनता को इसी सर्वदलीय सहमति का इंतजार रहेगा
आधार कार्ड प्रॉजेक्ट से जुड़ेगी सीआईए फंडेड कंपनी!
Aadhaar and UPA govt's obsession for private sector benefits–Part XII
আধারে ভর্তুকি, বিচার্য ডিস্ট্রিবিউটরের ঠিকানা
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
अनिवार्य सेवाओं से आधार योजना को नकद सब्सिडी से जोड़ने के खिलाफ देशभर में शायद किसी विधानसभा में पहलीबार सर्वसम्मति से प्रसातव पारित हुआ है।कम से कम एक मुद्दे पर बंगाल विधानसभा में आखिरकार पक्ष विपक्ष में परिवर्तन के बाद पहली बार सहमति हो गयी है।बाकी मुद्दों पर,खासतौर पर राज्य के हित में भी आम जनता को इसी सर्वदलीय सहमति का इंतजार रहेगा।बाकी भारत के लिए सबक यह है कि राज्य विधानसभाएं चाहे तो आम सहमति से इस जनविरोधी योजना का विरोध कर सकती हैं। अब इससे यह साबित हुआ है कि दीदी सिर्फ हवाई फायर नहीं कर रही थी। फिरभी ध्यान देने लायक बात यह है कि इस प्रस्ताव में आधार योजना का विरोध नहीं किया गया है।विरोध आधार से नकद सब्सिडी को जोड़ने का हुआ है।बाकी राज्यों में इतना विरोध भी अभी तक नहीं हुआ है।पक्ष विपक्ष की सहमति की वजह से ही बंगाल विधानसभा के लिए ऐसी पहल करना संभव हुआ है।दोनों पक्ष बाकी मसलों पर भी ऐसा विवेक का परिचय दें तो बंगाल की आधी समस्याएं बिना केंद्रीय मदद के हल हो जायेंगी। राजनीति बखूब हो,लेकिन राज्यऔर आम जनता के हित में सहमति की परंपरा का स्वागत भी होना चाहिए।खास बात तो यह है कि मां माटी मानुष की सरकार ने सरकारी प्रस्ताव में वाम नेता सूर्यकांत मिश्र के संशोधन को भी जोड़ लिया है।परिवर्तन जमाने में यह निश्चय ही निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
इसके साथ ही इकानामिक टािम्स की खबर से खिलासा हुआ है कि आधार कार्ड योजना से जुड़ी यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) न्यूयॉर्क की ऐसी टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप से करार करने वाली है, जिसे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए से फंड मिलता है। अमेरिकी कंपनी मोंगोडीबी के सीईओ मैक्स शाइरेसन दो सप्ताह पहले इसी काम के लिए नई दिल्ली आए थे। अभी इस कॉन्ट्रैक्ट का ऐलान नहीं किया गया है। बताया जा रहा है कि मोंगोडीबी डेटा लेने और उसकी एनालिसिस में यूआईडीए को मदद देगी।
बंगाल विधानसभा में पारित इस प्रस्ताव में दो टुक शब्दों में मांग की गयी है कि केंद्र सरकार नकद सब्सिडी योजना से आधार को नत्थी करने के पैसले को तुरंत वापस लें।गौरतलब है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार को आदेश दिया हुआ है कि आधार कार्ड की वजह से नागरिकों को बुनियादी सेवाओं से किसी भी परस्थिति में वंचित न किया जाये।केंद्र सरकार ने भी बाकायदा अपने स्पष्टीकरण में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि आधार योजना अनिवार्य नहीं,ऐच्छिक है।इस सिलसिले में तेल कंपनियों की याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट का नजरिया बदला नहीं है।लेकिन देश भर में और बंगाल में भी रसोई गैस के लिए नकद सब्सिडी को आधार नंबर से जोड़ दिया गया है।बंगाल विधान सभा में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के इस कदम के विरुद्ध यह ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ है। देश भर में किसी राज्य विधानसभा की योर से न्यायपालिका और नागरिक अधिकारों के पक्ष में पारित आधार कार्ड के खिलाफ परस्परविरोधी दलों की सहमति से पारित पहला प्रस्ताव है यह।
विधानसभा में यह प्रस्ताव पेश करते हुए विधायी मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा है कि राज्य में अबतक सिर्फ पंद्रह प्रतिशत लोगों के ही आधार कार्ड बने हैं। मंत्री के बयान से साफ है कि अगर तुरंत आधार नंबर से नत्थी नकद सब्सिडी योजना लागू कर दी जाये तो बंगाल में पचासी फीसद लोगों को रसोई गैस बाजर दर पर खरीदनी होगी। बाकी राज्यों में भी जाहिर है कि शत प्रतिशत लोगों के आधार कार्ड बने नहीं हैं।इने गिने राज्यों में ही आधारकार्ड बनाने का काम पूरा होने के करीब है।जाहिर है कि देशभर में जिनके आधार नंबर नहीं बने हैं,उनके लिए नकद सब्सिडी के आधार से नत्थी हो जाने पर बुनियादी सेवाएं बाधित होने का खतरा है।अब देखना है कि किस किस राज्य में इस तरह का प्रस्ताव विधानसभा से पारित हो पाता है।
पार्थ चटर्जी ने अपने बयान में आम जनता को होने वाली दिक्कतों का खुलासा भी किया है,जिसकी गूंज वाम नेता सूर्यकांत मिश्र के वक्तव्य में भी सुनायी दी। मिश्र ने कहा कि आधार योजना से जुड़ी तमाम समस्याएं अभीतक अनसुलझी हैं।
मिश्र ने आधार योजना को गैरकानूनी करार देते हुए कहा कि कानूनी तौर पर केंद्र सरकार बायोमेट्रिक पंजीकरण को अनिवार्य नहीं कर सकती क्योंकि यह योजना सर्वथा अवैज्ञानिक है और इसमें बीस फीसद तक गलती की आशंका है जो नागरिकों के लिए अत्यंत घातक साबित हो सकती है।
इकानामिक टाइम्स के मुताबिक इकनॉमिक टाइम्स ने सवाल पूछा था कि समझौते पर आगे बढ़ने से पहले सीआईए वाले पहलू पर सोचा गया था या नहीं? इस पर न तो यूआईडीएआई और न ही मोंगोडीबी ने जवाब दिया।
यूआईडीएआई के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि मोंगोडीबी के साथ एग्रीमेंट किया गया है और कंपनी के डेटाबेस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल लोगों के रजिस्ट्रेशन की रफ्तार जांचने में पहले ही किया जा रहा है। यह अभी साफ नहीं है कि मोंगोडीबी की वेंडर रिलेशनशिप सीधे यूआईडी से होगी या यूआईडी के साथ काम करने वाले किसी सिस्टम इंटीग्रेटर से। बड़े डेटाबेस को मैनेज करने वाले सॉफ्टवेयर बनाने वाली मोंगोडीबी ने साल 2007 में काम शुरू किया था। इसने अब तक करीब 1400 करोड़ रुपये जुटाए हैं। इसे कुछ फंडिंग इन-क्यू-टेल से मिलती है, जो सीआईए की वेंचर कैपिटल इकाई है।
मोंगोडीबी यह तो बताती है कि उसके इनवेस्टर्स में इन-क्यू-टेल शामिल है, लेकिन इस बात का खुलासा नहीं करती है कि उसे इससे कितनी रकम मिली है। इन-क्यू-टेल के मिशन में कहा गया है कि वह सीआईए के अभियानों को सपोर्ट करने के लिए इनोवेटिव टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस को बढ़ावा देगी।
इसकी वेबसाइट पर कहा गया है कि इनवेस्टमेंट करने के बाद आईक्यूटी कंपनी और इंटेलिजेंस कम्युनिटी पार्टनर एजेंसी के साथ मिलकर काम करती है ताकि सॉल्यूशन की डिलीवरी की जा सके। एनएसए के साथ कॉन्ट्रैक्टर रह चुके और बाद में गड़बड़ियों का खुलासा करने वाले एडवर्ड स्नोडेन ने कहा था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियां यूरोप और एशिया में कम्युनिकेशंस पर नजर रखती हैं। भारत ने अब तक इस मामले पर चुप है। अभी यह साफ नहीं है कि भारत सरकारी एजेंसियों की ओर से होने वाली इंटरनेशनल साइबर स्नूपिंग पर अंकुश की मांग वाले यूनाइटेड नेशंस के प्रस्ताव पर हामी भरेगा या नहीं।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि यूआईडी की सेंट्रलाइज्ड डिजाइन को देखते हुए जोखिम है। सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर सुनील अब्राहम ने कहा कि सीआईए के जुड़ाव को देखते हुए जोखिम दो स्तरों पर है। पहला, अगर मोंगोडीबी डेटा कंट्रोलर है तो सीक्रेट कोड्स का इस्तेमाल डेटा तक पहुंच बनाने में हो सकता है। दूसरी बात यह है कि अगर मोंगोडीबी को यूआईडीएआई के डेटा सेंटर्स में एडमिनिस्ट्रेटर का दर्जा हासिल हो तो वह कुछ भी कर सकती है, यहां तक कि कभी भी पूरा सिस्टम ध्वस्त कर सकती है। उन्होंने कहा कि अगर यूआईडीएआई मोंगोडीबी से कमर्शियल रिलेशनशिप बनाए बगैर केवल सोर्स कोड का उपयोग करे तो भी उसे सोर्स कोड का ऑडिट करना चाहिए कि इसे बैक डोर से सीआईए ने तो पेश नहीं किया है। अब्राहम ने कहा कि स्नोडेन के खुलासे को देखते हुए यह जरूरी है।
इसी बीच, आधार कार्ड तैयार करने को लेकर कोलकाता महानगर में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। महानगर के लाखों लोगों को आधार कार्ड उपलब्ध कराने के लिए कोलकाता नगर निगम ने एलपीजी डीलरों की सहायता लेने का फैसला किया था।
गैस डीलरों के साथ सब कुछ तय भी हो गया था, पर अचानक केंद्र सरकार के एक निर्देश ने निगम की इस योजना पर पानी फेर दिया।
केंद्रीय गृह मंत्रलय ने कोलकाता नगर निगम को गैस डीलरों के यहां आधार कार्ड नहीं तैयार करने के लिए कहा है। अब ऐसे में निगम प्रशासन को समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे।
कोलकाता महानगर में आधार कार्ड तैयार करने की जिम्मेवारी निगम पर है। लेकिन वह इस सिलसिले में प्रगति न होने की वजह से गैस एजंसियों की मदद ले रहा है।
इस मामले में निगम आयुक्त खलील अहमद तक ने हाथ खड़े कर दिये हैं। उनका कहना है कि आधार कार्ड के कैंप लगाने के बारे में उन्हें फिलहाल कोई जानकारी नहीं है। आधार कार्ड नहीं तैयार होने पर लोगों को बाजार दर पर ही गैस सिलेंडर खरीदना पड़ेगा। सब्सिडी मिलने के बावजूद वह आधार कार्ड नहीं होने पर इसका लाभ नहीं उठा पायेंगे।
दूसरी तरफ पेट्रोलियम मंत्रालय ने आधार कार्ड तैयार करने की समय-सीमा 31 जनवरी 2014 निर्धारित की है।
अब किसी को यह नहीं पता चला है कि पेट्रोलियम मंत्रालय इस समय-सीमा को बढ़ा रहा है या नहीं। गैस डीलरों के पास आधार कार्ड तैयार कराने पर हुई मनाही के बाद अब नगर निगम पहले की तरह ही आधार कार्ड तैयार करने के लिए अपने कैंप लगायेगा।
आधार कार्ड तैयार करने के काम में लगे निगम के कई अधिकारियों का मानना है कि अगले छह महीने के अंदर भी आधार कार्ड तैयार करने का काम बेहद मुश्किल है। निगम के लिए अपना नियमित काम करने के साथ-साथ आधार कार्ड तैयार करना बेहद मुश्किल है।
गौरतलब है कि यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी आधार योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को पहले ही नोटिस जारी किया हुआ है। एक जनहित याचिका में आधार योजना को बंद करने की मांग की गई है। इसके विपरीत,सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय लगातार अपने मंत्रालयों और राज्य सरकारों पर दबाव बढ़ा रहा है कि वे नकद सब्सिडी योजना को जल्द लागू करने के लिए तेजी दिखाएं। ये योजना आधार कार्ड पर ही आधारित है।कारपोर्टव बहुराष्ट्रीय कंपनियां,रेटिंग एजंसिया भी बायोमेट्रिक डिजिटल नागरिकता लागू करने की मुहिम अलग से चला रहीं हैं।
आधार कार्ड, एक ऐसा कार्ड है जिसमें किसी नागरिक का सारा लेखा-जोखा होता है- नाम, पता से लेकर फिंगर प्रिंट और आंखों की पुतलियों की तस्वीर तक। सरकार इस आधार कार्ड को गरीबों के लिए बनाई जाने वाली तमाम योजनाओं पर अमल का आधार बनाना चाहती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बाकायदा नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों ना आधार योजना को बंद कर दिया जाए।
बंगाल विधानसभा में पारित प्रस्ताव सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत पूरी तहत कानूनी व संवैधानिक है।सर्वदलीयप्रस्ताव होने की वजह से इसका लोकतांत्रिक मूल्य अमूल्य है।
गौरतलब है कि सरकार सब्सिडी की जगह उसका पैसा सीधे लोगों के खाते में भेजना चाहती है। इसके लिए आधार जरूरी है लेकिन विपक्ष इसे मतदाताओं को लालच देने की योजना बता रहा है। बीजेपी ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से भी की है। हालांकि कांग्रेस आरोप को खारिज कर रही है।
यूपीए इसे 2014 का गेम चेंजर बता रही है। पर अगर कानूनी अड़चनों में पड़ गया तो सीधा असर देश की राजनीति पर पड़ेगा।
इसी बीच आधार योजना पर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल में सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि योजना असंवैधानिक है क्योंकि इसके तहत लिया जा रहा बायोमिट्रिक आंकड़ा व्यक्ति की निजता पर गुप्त प्रहार और अतिक्रमण है। अदालत ने यह बताए जाने के बाद कि कई राज्यों ने समाज कल्याण और आर्थिक कल्याण से संबंधित योजनाओं की पात्रता को आधार योजना से जोड़ दिया है, राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया।
विभिन्न राज्यों के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने अदालत को बताया कि हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह पंजीकरण, विवाह तय करने, स्कूल में नामांकन, वेतन लेने और आवश्यक सेवा लेने, रसोई गैस, ग्रामीण रोजगार योजना, रियायती खाद्यान्न और कई कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड जरूरी हो गया है।
वकील ने न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की पीठ को बताया कि आधार योजना के लिए हालांकि कोई वैधानिक समर्थन नहीं है, लेकिन उसके बावजूद उंगलियों के निशान, चेहरे की तस्वीर और आंख की पुतलियों जैसे बायोमेट्रिक डिजिटल आंकड़े जमा किए जा रहे हैं जो एक सर्वर पर नहीं रखे जा सकते।
जनहित याचिका के मुख्य याची न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) के एस पुट्टास्वामी की ओर से पेश दीवान ने कहा कि यहां तक कि आधार योजना स्वैच्छिक है और यहां तक कि सरकार किसी नागरिक के ऐसे आंकड़े नहीं रख सकती, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा। दीवान ने अदालत से योजना के तहत जमा किए जा रहे आंकड़ों का दुरुपयोग किए जाने की आशंका जाहिर की।
আধারে ভর্তুকি, বিচার্য ডিস্ট্রিবিউটরের ঠিকানা
এই সময়: পাতিপুকুরে থাকেন সঞ্জয় দেবনাথ৷ তাঁর রান্নার গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটর পাইকপাড়ার৷ এক অদ্ভুত সমস্যায় পড়েছেন সঞ্জয়বাবু৷ বাড়ির ঠিকানা অনুযায়ী তিনি থাকেন উত্তর ২৪ পরগনা জেলায়৷ অথচ গ্যাসের ডিস্ট্রিবিউটরের ঠিকানা কলকাতা৷ ১ নভেম্বর থেকে কলকাতা, হাওড়া ও কোচবিহারে রান্নার গ্যাসের ভর্তুকিতে আধার চালু হয়েছে৷ উত্তর ২৪ পরগনায় তা এখনও চালু হয়নি৷ আধার নম্বরও পাননি সঞ্জয়বাবু৷ এমতাবস্থায় কী করণীয় বুঝতে পারছেন না তিনি৷ গিয়েছিলেন ডিস্ট্রিবিউটরের কাছে৷ সেখানেও কোনও সদুত্তর পাননি৷ সঞ্জয়বাবু একা নন৷ তাঁর মতো বিভ্রান্তির শিকার বহু মানুষ৷
কলকাতা, হাওড়া, কোচবিহার লাগোয়া পাশ্ববর্তী জেলায় কয়েক হাজার গ্যাস গ্রাহক রয়েছেন, যাঁদের ডিস্ট্রিবিউটর ওই তিন জেলায়৷ রাষ্ট্রায়ত্ত তেল সংস্থাগুলির তরফে জানানো হয়েছে, এই গ্রাহকরাও আধারের মাধ্যমে তাঁদের ব্যাঙ্ক অ্যাকাউন্টে সরাসরি ভর্তুকির টাকা পাবেন৷ কলকাতা, হাওড়া ও কোচবিহারের গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটরদের কাছে সমস্ত নথিভুক্ত গ্রাহক এই সুবিধা পাবেন৷ কারণ, আধারের মাধ্যমে ভর্তুকি দেওয়ার ক্ষেত্রে গ্রাহকের ঠিকানা নয়, বিচার্য হল সংশ্লিষ্ট ডিস্ট্রিবিউটর কোন জেলায়৷ ফলে এই তিন জেলার বাসিন্দা নন, এমন অনেক মানুষও সুবিধা পেতে পারেন৷
ইন্ডিয়ান অয়েলের পূর্বাঞ্চলের দায়িত্বপ্রান্ত এগজিকিউটিভ ডিরেক্টর ইন্দ্রজিত্ বসু বলেন, 'গ্রাহকের ঠিকানা নয়, আধারের মাধ্যমে ভর্তুকি দেওয়ার ক্ষেত্রে ক্ষেত্রে বিচার্য হল ডিস্ট্রিবিউটর কোন জেলায়৷ কোচবিহারে আমাদের গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটরদের সব মিলিয়ে প্রায় আড়াই হাজার গ্রাহক রয়েছেন, যাঁদের বাড়ি জলপাইগুড়িতে৷ এই সমস্ত গ্রাহকের ক্ষেত্রে আধার চালু হয়ে গিয়েছে৷ অর্থাত্, তাঁরা গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটরের কাছে তাঁদের আধার নম্বর ও ব্যাঙ্ক অ্যাকাউন্টের তথ্য দিলে ভর্তুকির টাকা সরাসরি অ্যাকাউন্টে পেঁৗছে যাবে৷'
কেন্দ্রীয় পেট্রোলিয়ম মন্ত্রক এই সিদ্ধান্ত নিলেও, এ ব্যাপারে অবহিত নন বহু গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটর এবং গ্রাহক৷ গড়িয়ার এক গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটর সংস্থার কর্তা সায়ন মুখোপাধ্যায়ের কথায়, 'আমার এখানে প্রায় ২২ হাজার গ্রাহকের মধ্যে হাজার খানেক গ্রাহকের ঠিকানা কলকাতা পুরসভার এলাকার বাইরে, দক্ষিণ ২৪ পরগনায়৷ তাঁদের অধিকাংশই আধার নম্বর হাতে পাননি৷ রোজই খোঁজ নিতে আমাদের কাছে আসছেন৷ কিন্ত্ত আমাদের কাছে কোনও সুস্পষ্ট নির্দেশিকা না-থাকায় তাঁদের কোনও সদুত্তর দিতে পারছি না৷' নরেন্দ্রপুরে বহু মানুষ রয়েছেন, যাঁদের গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটর গড়িয়ায়, কলকাতা পুরসভার এলাকার মধ্যে৷ তেমনই সিঁথি বা দমদমের গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটরদের অনেক গ্রাহক রয়েছেন, যাঁদের বাড়ির ঠিকানা কলকাতা পুরসভার এলাকার বাইরে, উত্তর ২৪ পরগনায়৷
পেট্রোলিয়ম মন্ত্রক সূত্রের খবর, এ ব্যাপারে গ্রাহকদের বিভ্রান্তি কাটাতে দ্রুত ডিস্ট্রিবিউটরদের কাছে নির্দেশিকা পাঠানো হবে৷ তাতে এ-ও জানানো হবে, গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটরের অফিসে যখন আধারের ক্যাম্প হবে, তখন গ্রাহকরা ঠিকানার প্রমাণ এবং সচিত্র পরিচয়পত্র সঙ্গে নিয়ে এলে তাঁদের ছবি তোলার পাশাপাশি বায়োমেট্রিক তথ্যও নেওয়া হবে৷ ৩ ডিসেম্বর থেকে কোচবিহারে ডিস্ট্রিবিউটর অফিসে ক্যাম্প চালু হওয়ার সিদ্ধান্ত হলেও, কলকাতা-হাওড়ায় আপাতত তা হচ্ছে না৷ তা হলে এই দুই জেলায় যে সমস্ত গ্যাস গ্রাহক আধার নম্বর পাননি, তাঁদের কী হবে? রাজ্যে আধারের কাজ যারা করছে, সেই ন্যাশনাল পপুলেশন রেজিস্টারের (এনপিআর) এক কর্তা জানান, কোচবিহারের পর কলকাতা, হাওড়া ও হুগলিতে গ্যাস ডিস্ট্রিবিউটরদের অফিসে ক্যাম্প চালু হবে৷ কিন্ত্ত কবে তা চালু হবে, সে ব্যাপারে এখনও পর্যন্ত সিদ্ধান্ত হয়নি৷
গ্যাসের দোকানে আধারের ছবি তোলা আপাতত বন্ধ |
নিজস্ব সংবাদদাতা |
শেষ মুহূর্তে অনির্দিষ্ট কালের জন্য পিছিয়ে গেল কলকাতায় রান্নার গ্যাস ডিলারদের কাছে গ্রাহকদের আধারের জন্য ছবি তোলা এবং তথ্য সংগ্রহের প্রক্রিয়া। আজ, সোমবার থেকে কলকাতা পুলিশ এলাকায় এ জন্য শিবির চালুর কথা ছিল। কিন্তু সরকারি সূত্রে খবর, প্রস্তুতি পর্ব এখনও সম্পূর্ণ হয়নি। শহরে কত জন গ্যাস গ্রাহকের ইতিমধ্যেই আধার কার্ডের জন্য ছবি তোলা ও বায়োমেট্রিক তথ্য সংগ্রহ করা হয়েছে, সেই ছবিটা এখনও পুরোপুরি স্পষ্ট নয়। সে কারণেই এই সিদ্ধান্ত।গত মাসের শুরুতে কলকাতা পুরসভা, গ্যাস ডিলার, তেল সংস্থা এবং জাতীয় জনগণনা দফতরের বৈঠকের পর ২১ নভেম্বর থেকেই শুধুমাত্র রান্নার গ্যাস গ্রাহকদের জন্য দোকানে এই ব্যবস্থা চালুর কথা জানিয়েছিলেন কলকাতা পুর কর্তৃপক্ষ। তার পর তা পিছিয়ে হয় ২ ডিসেম্বর। কথা ছিল, কত জন গ্রাহকের আধার কার্ড তৈরি বাকি রয়েছে, তা খতিয়ে দেখবে পুরসভা এবং জনগণনা দফতর।এ দিকে অল ইন্ডিয়া এলপিজি ডিস্ট্রিবিউটর্স অ্যাসোসিয়েশনের কর্তা বিজন বিশ্বাস জানান, কলকাতায় শিবির কবে চালু হবে বা আদৌ হবে কি না, এ নিয়ে কোনও তথ্য তাঁদের কাছে নেই। তিনি বলেন, "এই বিভ্রান্তির জেরে অনেক গ্রাহকই দোকানে এসে প্রশ্ন করলেও আমরা কিছুই জানাতে পারছি না।" এরই মধ্যে সম্প্রতি নয়াদিল্লিতে পেট্রোলিয়াম মন্ত্রক এবং জাতীয় জনগণনা দফতরের বৈঠকে সিদ্ধান্ত হয়, আপাতত কলকাতায় ডিলারদের কাছে শিবির চালু হচ্ছে না। ডিসেম্বরের মাঝামাঝি তা প্রথম চালু হবে কোচবিহারে। কারণ সেখানে সামগ্রিক ভাবে আধারের জন্য নাগরিকদের বায়োমেট্রিক তথ্য সংগ্রহ ও ছবি তোলার কাজ অন্যান্য জেলার থেকে অনেকটা এগিয়ে। সেখানকার ফলাফল দেখেই পরে কলকাতা বা হাওড়ায় একই ব্যবস্থা চালুর কথা ভেবেছে তারা। তবে কোনও ক্ষেত্রেই গ্রাহকদের পরিবারের অন্য সদস্যরা ওই শিবিরে গিয়ে ছবি তোলা বা বায়োমেট্রিক তথ্য জানাতে পারবেন না।দেশে ১৫০টিরও বেশি জেলায় পর্যায়ক্রমে আধারের ভিত্তিতে ভর্তুকির গ্যাস বণ্টন ব্যবস্থা শুরু করেছে কেন্দ্র। গত ১ নভেম্বর থেকে কলকাতা (পুলিশ কমিশনারেট এলাকা), হাওড়া এবং কোচবিহারেও তা চালু হয়েছে। ১ ডিসেম্বর, রবিবার থেকে তা চালু হয়েছে হুগলিতেও। তেল সংস্থাগুলি জানিয়েছে, ভর্তুকির গ্যাস (যদি না একটি অর্থবর্ষে ন'টির কোটা শেষ হয়ে যায়) পেতে হলে সর্বত্রই যে-জেলায় যে দিন এই ব্যবস্থা চালু হয়েছে, তার পর থেকে তিন মাসের মধ্যে সেখানকার গ্রাহকদের তাঁদের ব্যাঙ্কের কাছে আধার নম্বর, তেল সংস্থার নাম জানাতে হবে। না-হলে তিন মাস পর থেকে তাঁদের বাজার দরেই গ্যাস কিনতে হবে। কোথাওই এখনও এই সময়সীমার কোনও পরিবর্তন হয়নি।এই ডামাডোলের মধ্যেই আগামী ১০ ডিসেম্বর ফের রান্নার গ্যাসের ভর্তুকিতে আধার নম্বর ব্যবহার করা নিয়ে মামলার শুনানি রয়েছে সুপ্রিম কোর্টে। রান্নার গ্যাসের ক্ষেত্রে আধার বাধ্যতামূলক হতে পারে না বলে আগে এক রায়ে জানায় শীর্ষ আদালত। সরকারি সূত্রে খবর, আগামী শুনানিতে বিষয়টি নিয়ে নিজেদের মতামত জানাতে পারবে রাজ্যগুলিও। কিন্তু রাজ্যের আপত্তি থাকলেও, কেন্দ্রের এখনও পিছু হটার কোনও লক্ষণ দেখা যাচ্ছে না। যার প্রমাণ, রবিবার থেকে হুগলিতেও ভর্তুকিতে রান্নার গ্যাস পেতে চালু হয়েছে আধার নম্বর ব্যবহার। |
পুরনো খবর: গ্যাস গ্রাহকদের আধার-শিবির ডিস্ট্রিবিউটরের কাছে |
http://www.anandabazar.com/2cal2.html
Bengal Assembly passes resolution on Aadhar
Monday, Dec 2, 2013, 17:04 IST | Place: Kolkata | Agency: PTI
The resolution, moved by Parliamentary Affairs Minister Partha Chatterjee, mentioned that only 15 per cent people of the state had got the Aadhar cards.
The West Bengal Assembly today passed a resolution on Aadhar cards, that said the Centre should immediately withdraw its decision to link the cards with Direct Benefit Transfer scheme.
The resolution, moved by Parliamentary Affairs Minister Partha Chatterjee, mentioned that only 15 per cent people of the state had got the Aadhar cards.
In such a scenario, 85 per cent of the people would not be able to get nine subsidised LPG cylinders as the Centre had linked the Aadhar card to the direct cash transfer to the respective bank accounts.
The decision of the Centre would put the common people into tremendous hardship, according to the resolution.
Leader of the Opposition and CPI(M) member Surya Kanta Mishra supported the resolution moved by the ruling party, saying a lot of issues relating to Aadhar cards were still unresolved.
Mishra said that the Centre legally cannot make biometric enrolment mandatory and that the entire process was unscientific as there was a scope for margin of error to the extent of 20 per cent.
Aadhaar and UPA govt's obsession for private sector benefits–Part XII
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19 comments
GOPAL KRISHNA | 02/12/2013 01:10 PM |
The vision statement of Aadhaar states: "use of UID to speed up certain businesses, especially in the insurance and credit sectors, may eliminate the need for private sector to set-up parallel identification systems leading to improved efficiency in delivery of their services and a reduction in identity-related frauds in the service delivery"
Supreme Court bench of Dr Justice BS Chauhan and Justice SA Bobde heard the case against 12-digit Aadhaar/ unique identification (UID) number for biometric profiling on 26 November 2013. The next date of hearing is on 10 December 2013. Raj Pal Singh, director, Planning Commission has filed the counter affidavit in the Writ Petition (Civil) No. 833 of 2013 (Aruna Roy Vs Union of India providing the backdrop of the establishment of Unique Identification Authority of India (UIDAI). It is evident from the counter affidavit that it is directed towards the Bharatiya Janata Party (BJP) and attempts to underline in the Court that there is bipartisan support for UID/ Aadhaar number project.
The counter affidavit argues that UIDAI was set up in furtherance of the recommendations of the Group of Ministers (GoM) on Reforming the National Security System were accepted by the BJP-led government besides the recommendations of the Kargil Review Committee and the amendment to the Citizenship Act, 1955 notified on 7 January 2004. GoM under the chairmanship of LK Advani also included the Defence Minister, External Affairs Minister and Finance Minister. The report was submitted to PM on 26 February 2001. The Cabinet Committee on Security (CCS) had considered the GOM report on 11 May 2001.
The counter affidavit based on inputs from Census Commissioner-cum-Registrar General of India, National Population Register (NPR), Ministry of Home Affairs (MHA) underlines that "the need for creation of a credible citizen database having a system secure form of personal identification of individuals has acquired importance due to a variety of reasons which include:
a) changing security scenario in the country, (b) realisation for better targeting of services and benefits under different schemes of government, and c) increasing identity frauds."
It refers to the 'provision for a secure "cyber-space" for creation of NPR, handling and transmission of data between the local service centers and national data centers" which was presented to the Committee of Secretaries (COS) in October 2006. The studied silence of the counter affidavit about how "secure cyber-space" has turned out to be a myth in the post Wikileaks and in post-Snowden era is quite stark.
Chronologically, it is revealed that "the concept of a unique identification was first discussed in 2006 when administrative approval for the project – 'Unique ID for Below Poverty Line (BPL) families" was given on 3 March 2006 by the Department of Information Technology, Ministry of Communications and Information Technology." A Processes Committee under Planning Commission was set up on 3 July 2006 to suggest processes for creation for the "core database".
The counter affidavit states that COS was "apprised about the Unique Identification Number (UID) scheme of the Department of Information Technology (DIT) for creation of a residents' database based on the electoral rolls database of Election Commission of India...". It adds that the rest of the population (was to) be covered during Census 2011 to prepare National Population Register (NPR).
The fourth meeting of EGoM to collate two schemes- National Population Register (NPR/MNC) under the Citizenship Act, 1955 and the Unique Identification Number(UID) project of the Department of Information Technology (DIT) held on 4 November 2008 at 162, Committee Room, South Block. MNC stands for Multi-purpose National Identity Card based on NPR, which was envisaged during the tenure of BJP-led government. As per the minutes of the meeting, chairman of the EGoM, Pranab Mukherjee, the then Minister of External Affairs concluded that "It also needs to be appreciated that the whole exercise being technology based and system driven, there is immense scope far outsourcing the data collation and validation work and other tasks to expert agencies in the public or private sector through a transparent process while retaining requisite control over sovereign functions."
In the context, he mentioned the Passport Seva Project where retaining the sovereign functions within government (MEA) rest of the infrastructure, management and software development functions have been outsourced through a transparent process to private sector. Mukherjee stated that the UID project is unique in that the organization (UIDAI) has to work in close collaboration with large number of institutions and agencies both within and outside the government and will take at least five years to stabilize. The government at that time may need to take a fresh view particularly in light of further advancements in technology. This keeps the door open for DNA based identification.
A 14-page long document titled 'Strategic Vision: Unique Identification of Residents' prepared by Wipro Ltd and submitted to the Processes Committee has finally emerged. Its vision statement reads: "Creating a unique identification system of all residents in the country for efficient, transparent, reliable and effective delivery of various welfare and private services to the common person." The cover page of the document mentions National Institute for Smart Government, DIT and Wipro Consulting. The 'Strategic Vision on the UIDAI Project' of Wipro Ltd, the consultant for the design phase and program management phase of the pilot UIDAI project. It envisaged the close linkage that the UIDAI would have to the electoral database. On 4 December 2006, the Prime Minister constituted an E-GoM comprising of Shivraj V Patil, Minister of Home Affairs, A Raja, Minister of Communications & Information Technology under the Chairmanship of Pranab Mukherjee, the then Minister of External Affairs. Doesn't the presence of Raja as a member of EGoM and as the minister-in-charge of DIT which is/ was responsible for UID make the entire exercise tainted and create a rationale for re-visiting DIT's proposal advanced in 2006 before the COS?
At the first meeting of the EGoM on 7 November 2007, "the need for creating an identity related resident database and identify and establish and institutional mechanism that will "own" the database and will be responsible for its maintenance and updating on an ongoing basis post its creation was recognized." The proposal of UIDAI was approved on 28 January 2008. Pursuant to a meeting held on 25 January 2012 under the chairmanship of the Prime Minister, "UIDAI was allowed to enroll 60 crore number by EFC which was formally approved by the Cabinet Committee on UIDAI in its meeting on 27 January 2012." The fact remains Prime Minister is yet to reveal whether he and his family members have enrolled for biometric UID/ Aadhaar number.
Earlier, Prime Minister's Council on UIDAI constituted on 30 July 2009 under the chairmanship of the Prime Minister held its first meeting on 12 August 2009 after Nandan Nilekani assumed charge as the chairperson in the rank and status of a cabinet minister. After that a Cabinet Committee on UIDAI was constituted on 22 October 2009. In a related development, Goolam E Vahanavati, Attorney General for India gave his written opinion on 6 August 2011 stating, "I do not consider the issuance of Aadhaar numbers to be a violation of right to privacy contained in Article 21 of the Constitution." Wipro Ltd, Consultant of Planning Commission as part of a section titled 'Implementation challenges' refers to the issue of Transparency vs. right to privacy. The basic premise for the success of UID is the concept of "one owner, many users", according to the document. But as of now the fact is that there are multiple owners of the database both inside and outside the government.
Notably, Wipro, the Consultant of Planning Commission states that "It is envisaged that, in the long term, UID would transform into being a de facto identifier for all residents of the country." Its document states that "Importantly, statutory backing would be required for the adoption of UID by residents, Government departments, its agencies and the private sector in the long term. But as of now UID is conceptualized as de facto identifier and not a de jure identifier. This document has a section "Benefits to private/NGO Sector" wherein it states that "Private sector would be able to leverage the resident identification infrastructure and in turn, contribute to effective development activities, Use UID to speed up certain businesses, especially in the insurance and credit sectors, may eliminate the need for private sector to set-up parallel identification systems leading to improved efficiency in delivery of their services and a reduction in identity-related frauds in the service delivery." Why this Congress led Government so obsessed with ensuring benefits for private/NGO sector using citizens' personal sensitive information?
Ravi Shankar Prasad, member of Parliament, (MP), general secretary and chief spokesperson, BJP issued a statement on behalf of the party dated 21 January 2012 on the subject of "UID & National Security"? The question is did he carefully read the report of the Yashwant Sinha headed Parliamentary Standing Committee (PSC) on Finance that was submitted to both the Houses of Parliament in December 2011. It appears that he and his party has not done so. Had it done so it would have realized that "preparation of Unique Identification Number (UID) (Aadhaar) being prepared by the Unique Identification Authority of India (UIDAI)" itself is legally and constitutionally questionable. BJP maintains a deafening silence over the issue of illegal and illegitimate biometric data collection. This was an issue categorically raised by the Parliamentary Standing Committee and its Prime Ministerial candidate. Arun Jaitely also raised deep concerns about privacy in Aadhaar era in writing.
BJP has asked the Indian National Congress led Government as to 'What is the "Sanctity and integrity of the data" being collected by the UIDAI?' Will a solemn reply by the Government stating that the "sanctity and integrity" of data in general and biometric data in particular being collected is being taken care assure and satisfy the principal opposition party? Is it looking for merely an assurance? Why is it choosing to be complicit about the illegality of biometric profiling as has been pointed out by the Parliamentary Committee? Will it continue with the illegality if it wins the 2014 elections? Its silence in this regard is quite glaring.
Why is BJP mixing up the issue of "National Register of Indian Citizens" and the identification of residents of India as proposed by biometric Aadhaar/ UID? The principal opposition party appears convinced about a need for a centralized database of citizens' sensitive personal for "National Security".
In its affidavit on UID/ Aadhaar number based biometric identification, the Congress-led Government has trapped the main opposition party in a political trap by paraphrasing what BJP- led government had articulated and undertaken when they were in power. This affidavit is also an attempt to give a political message to the Parliamentary Committee in question that both BJP and Congress essentially have similar position on biometric profiling of Indians and BJP's opposition is merely a token opposition to justify its role as the principal opposition party. Notably, BJP is yet to take a position that if it wins 2014 elections it will dismantle the Aadhaar project as it suffers from democracy deficit.
Meanwhile, on 26 November 2013, the Supreme Court gave an order that reads: "After hearing the matter at length, we are of the view that all the States and Union Territories have to be impleaded as respondents to give effective directions. In view of these notices to be issued to all the states and union territories through standing counsel. The advocates who have already entered appearance must file their replies within a period of three days from today. Learned standing counsel for the states who were not represented may take instructions from their respective states and file their response within one week."
The Court refused to modify its order its order of 23 September 2013 stating that Aadhaar cannot be made mandatory. Its modification was sought by the central government implying that it wanted to make it mandatory. This is contrary to the written opinion of Attorney General for India dated 6 August 2011 wherein he stated, because "…participation in the Scheme is voluntary", it is not a violation of right to privacy.
Citizens and states must note that it is not a question of Aadhaar number being voluntary or mandatory, which seems to be the focus of the proposed resolution in the West Bengal State Assembly. It is a question of citizens being turned into subjects using illegal and illegitimate biometric Aadhaar number.
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Is Nandan Nilekani acting as an agent of non-state actors? –Part XI
(Gopal Krishna is member of Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL), which is campaigning against surveillance technologies since 2010)
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