बहुजन एक्टिविज्म अब सर्कस का सौंदर्यशास्त्र है।धर्म निरपेक्ष खेमे को इसकी ज्यादा परवाह नहीं होनी चाहिए।क्योंकि उस तोते की जान भी तो आखिर सामाजिक क्षेत्र में रंग बिरंगे एफडीआई में है,जिसकी चर्चा अभीतक शुरु ही नहीं हुई है।
पलाश विश्वास
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आज का संवाद
उम्मीद हैं कि राजनीति के खिलाड़ी तमाम बहुजन मूलनिवासी दिग्गज और मूलनिवासी पुरोधा मसीहा और विद्वतजन मौका के मुताबिक बहुत जल्द संघी खेमे से फारिग होकर नये ईश्वरों की शरण लेंगे।वैसे देश के निनानब्वे फीसद जनता के वर्तमान और भविष्य पर इसका असर ठीक उतना ही होना है ,जितना धूम थ्री में आमीर खान और कैटरिना कैफ के सर्कसी करतब का।बहुजन एक्टिविज्म अब सर्कस का सौंदर्यशास्त्र है।धर्म निरपेक्ष खेमे को इसकी ज्यादा परवाह नहीं होनी चाहिए।क्योंकि उस तोते की जान भी तो आखिर सामाजिक क्षेत्र में रंग बिरंग एफडीआई में है,जिसकी चर्चा अभीतक शुरु ही नहीं हुई है।
आज का संवाद क्षेपक
Manish Kumar NeurosurgeonPalash Biswas
"मूल निवासी" में कौन नहीं है? कैसे पहचान करते हैं आप मूल निवासी का?
Palash Biswas यह वाकई बहुत बड़ा सवाल है। जाहिर है कि यह सार्वजनिक चर्चा का मसला होना चाहिए।आज के संवाद में इसे क्षेपक बतौर शामिल कर रहा हूं।
Manish Kumar Neurosurgeon जब मूल निवासी का मतलब हीं नहीं मालूम, तो फिर इस मुहावरे का प्रयोग आप जैसे अनुभवी (बूढ़ा या उम्र दराज़ जैसे शब्द मैं प्रयोग में नहीं लाता) व्यक्ति के लिए शोभा नहीं देता - छिछले लोग बहुत हैं ऐसी भाषा का प्रयोग करने के लिए . . .
याद कीजिये,पिछला शीतकालीन संसदीय सत्र जब प्रोन्नति में आरक्षण विधेयक के अलावा बाकी सारे कानून गिलोटिन हो गये थे और मायावती को यह विधेयक पास कर देने के वायदे के साथ अल्पमत केंद्र सरकार ने हर जनविरोधी कानून पास करा लिये थे ।चुपचाप गिलोटिन मार्फत सारे विधेयक पास हो गये। अभूतपूर्व हंगामा के मध्य संसदीय सत्र का अवसान हो गया और मायावती हाथ मलती रह गयी। बहुजन राजनीति का यह नजारा है। तब 16 दिसंबर को निर्भया से हुए बलात्कार के बाद राष्ट्रव्यापी जनांदोलन का मुख्य मुद्दा यौन उत्पीड़न हो गया। पुलिस और सेना के रक्षाकवच को जारी रखते हुए तुरत फुरत कानून भी पारित हो गया। लेकिन अब भी बलात्कार विमर्श में सारे मामले निष्णात हैं।यौन उत्पीड़न और बलात्कार का सिलसिला थमा ही नहीं है। अब अनवर खुरशीद की आत्महत्या के बाद तो पूरा का पूरा हिंदी समाज प्रगतिशील धर्मनिरपेक्षता बनाम स्त्री अस्मिता के गृहयुद्ध में फंस गया है। फिर हाशिये पर हैं सारे मुद्दे।
यही नहीं,एक छद्म भारत अमेरिकी राजनयिक युद्ध के जरिये धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद इसतरह भड़काया जा रहा है कि देवयानी प्रकरण को लेकर बहुजन समाज आंदोलित है। जबकि अमेरिकी हितों को सोधने के लिए चाकचौबंद इंतजामात हैं। भारत अमेरिकी परमाणु समझौता बदला नहीं है। बायोमेट्रिक डिजिटल रोबोटिक सीआईए निगरानी का सारा इंतजाम है। अमेरिकी आतंकविरोधी युद्ध में अब भी अमेरिका और इजराइल के साथ भारत साझेदार है। रक्षा से लेकर खुदरा कारोबार और सामाजिक क्षेत्र में खासकर जनांदोलनों में अमेरिकी पूंजी का बोलबाला है। हम न केवल जल जंगल जमीन नागरिकता आजीविका नागरिक और मानवाधिकार से बेदखल हैं बल्कि जन आंदोलनों से भी अब सारा भारतीय जनगण बेदखल है। कारपोरेट शिकंजे में है बहुजन आंदोलन।
आज के संवाद पर जो प्रतिक्रिया आयी है,उसमें यह मंतव्य गौरतलब है कि पहले आपसे में फरिया लें मूलनिवासी।कारपोरेट तो रहेंगे ही।
सत्तावर्ग के खेमे में तथकथित बहुजनों की ही बड़ी भूमिका है। प्रधानमंत्रित्व के सबसे पर्बल दावेदार नरेंद्र मोदी ओबीसी हैं और राज्यों के क्षत्रपों में,मुख्यमंत्रियों में भी ओबीसी ज्यादा हैं। लेकिन अभीतक ओबीसी की गिनती हुई नहीं है,हालांकि ओबीसी की गिनती करने की मांग उठाने वाले लोग नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए वैदिकी यज्ञ भी करा रहे हैं। मलाईदार तबके के लिए आरक्षण आंदोलन में भी कमान आखिरकार आरक्षणविरोधी संघियों के हाथ में हैं।
तो राहुलगांधी के सलाहकारों में भी बहुजन प्रतिभायें कम नहीं हैं। जो बाकायदा रणनीति के तहत काम कर रहे हैं और वे लोग ही कांग्रेस के जनविरोधी सरकार को बनाये रखने के लिए सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। हर खेमे में सामिल बहुजन नेतृत्व को आर्थिक सुधारों से कोई लेना देना नहीं है और न वे जिनके नाम पर वोट मांगते हैं,सत्ता में ्पना अपना हिस्सा बूझ लेते हैं, उनसे,उनके विचारों और आंदोलन से किसी का कुछ लेना देना है। अंबेडकर के जाति उन्मूलन एजंडे को कूड़ेदान में फेंककर रंग बिरगे मसीहा और सत्ता सौदागर जाति अस्मिता को मजबूत बना रहे हैं।
इसी के मध्य भारतीय नागरिकों को अमेरिकी कठपुतली बनाने वाल नंदन निलेकणि की निःशब्द ताजपोशी बतौर भारत भाग्य विधाता हो गयी है और एक के साथ एक फ्री ईश्वर भी मुक्त बाजार की उपभोक्ता संस्कृति मुताबिक मिल गया है,जो निःसंदेह अरविंद केजरीवाल है, जिनके लिए देश की एकमात्र समस्या भ्रष्टाचार हैं। बहुजनों के तमाम बुद्धिजीवी उनके साथ तेजी से शामिल हो रहे हैं।भगदड़ मच गयी है। यहां तक कि हम जिन्हें भारत में जायनवादी धर्मोन्मादी कारपोरेट राज के खिलाफ सबसे मुखर स्वरों में मानते रहे हैं, वे भी अरविंदं शरणं गच्छामि हो रहे हैं। आर्थिक अखबारों मे इन दोनों पर सबसे ज्यादा महिमामंडन का काम हो रहा है तो प्रचलित मीडिया में सर्वत्र अरविंद हैं ौर उनसे ज्यादा खतरनाक नंदन निलेकणि अदृश्य हैं जौसे अबतक के कारपोरेट राज में मंटेक सिंह आहलूवालिया की अगुवाई वाली असली नीति निर्धारक टीम ही अदृश्य है।
बहुजन आंदोलनों की पृष्ठभूमि में मेधा का कोई अस्तित्व ही नही ंहै जबकि सत्तावर्ग के हर खेमे में परदे के पीछे सर्वश्रेष्ठ मेधाओं की सेवा ली जी रही हैं और उनके सारे संगठन और कामकाज संस्थागत है। कांग्रेस या भाजपा भले ही चुनाव हार जाये,लेकिन उनका तंत्र बिखरता नहीं है।बहुजन समाज का तंत्र सिरे से मसीहा दूल्हा तंत्र है। मसीहा और दूल्हें के आगे पीछे कोई नहीं होता। सर्कस के खिलाड़ी की तरह नाना हरकतों से वे भक्तमंडली को साधे रहते हैं और जनमानस में चौबीसो घंटे लाइव हैं। कारपोरेट राज और अर्थ व्यवस्था के बारे में उनकी कोई राय नहीं है। राय और भाषण हों भी तो हालात बदलन का कोई यत्न नहीं है।
महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के तौर तरीके से देशभर में बहुजन आंदोलन चलाया नहीं जा सकता।अस्पृश्यता और सामाजिक संरचना देश के अलग अलग हिस्से में अलग अलग हैं।मसलन हिमालयी क्षेत्र, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत और यहां तक कि मध्य भारत के ज्यादातर हिस्सों में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र या दक्षिण भारत के नारे और समीकरणचल ही नहीं सकते। बहुजन आंदोलन की जो धूरी आरक्षण के इर्द गिर्द घूमती रही है, ग्लोबीकरण,तकनीक और निजीकरण के अलावा ठेके पर नियुक्ति ने उसे सिर से गैरप्रासंगिक बना दिया है।आरक्षण के पक्ष में तो क्या अब आरक्षण के विपक्ष में सवर्मों का राष्ट्रव्यापी आंदोलन ठीक वैसा चल ही नहीं सकता जो मंडल रपट जारी होने के बाद हुआ था और मंडल रपट भी लागू नहीं हुई है और न संविधान के तहत पांचवीं और छठीं अनुसीचियां भी लागू हुई नहीं है।
बहुजनों को इसी देश में अलगाव के और मुक्त बाजार सबसे ज्यादा शिकार आदिवासियों,अल्पसंख्यकों और हर जाति धर्म नस्ल समुदाय में आज भी तथाकथित सशक्तीकरण की खुशफहमी के बावजूद देवीरुपेण पूज्यते लेकिन हीकत में हद दर्जे की दासियों की तरह मालूम ही नहीं चल पा रहा है कि कारपोरेट राज ने न केवल उनके संसाधनों और अवसरों को खत्म कर दिया है,बल्कि उनके दिलोदिमाग पर भी अब कारपोरेट राज का कब्जा है। पुरुष हो या नारी वैचारिक स्वतंत्रता भी नहीं है किसी को। हम जो कह बोल रहे हैं,जो हम अलग अलग खेमों में विचारों और जनांदोलन के नाम पर आपसे में ही लहूलुहान हो रहे हैं, वह सारा का सारा सुनियोजित कारपोरेट आयोजन है। तिलिस्म मे ंकैद है हर शख्स और तिलिस्म तोड़ने के लिए बिना जाने समझे जब भी वह तलवार चलाता है या चलाती है, अपनों का ही वध करने को अभिशप्त है।
देश बदल गया है। समाज बदल गया है।अर्थशास्त्र बदल गयी है।मुक्त बाजार ने कुछ भी मुक्त नहीं छोड़ा है।नरेंद्र मोदी हो या राहुल गांधी,मायावती हो या ममता बनर्जी या फिर अरविंद केजरीवाल,उनके हर कदम रोबोटिक हैं और वे कारपोरेट नियंत्रित हैं और इसीतरह तमाम बहुजन मसीहा और प्रचलित सारे जनांदोलन।
इस समझ पर पहुंचे बिना हम कुछ नया शुरु कर ही नहीं सकते।सारे वाद विवाद, सारे मुहावरे,सारे नारे अब गैर प्रासंगिक हैं। पहचान ने पहचान को ही सबसे ज्यादा अविश्वसनीय बना दिया है।अस्मिताएं अब कारपोरेट राज के लिए सबसे कारगर हथियार है, जिनकी वजह से भारत में किसी भी मुद्दे पर किसी भी तरह के आंदोलन में सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी असंभव है,जिसके बिना हम इस रोज रोज बदल रहे महाविध्वंसकारी कारपोरेट राज के मुकाबले खड़े ही नहीं हो सकते।
हम एक दूसरे से फरियाते रहेंगे और कारपोरेट राज कायम रहेगा।कारपोरेट राज का खात्मे बिना न समता संभव है न सामजिक न्याय। न धर्मनिरपेक्षता संभव है न स्त्री अस्मिता। किसी भी तरह की अस्मिता के साथ अब मुक्तिकामी जनगण के ङक हकूक के हक में खड़े नहीं हो सकते।उन्हें बतौर क्रेडिट कार्ड अपनी अपनी बेइंतहा कामयाबी के लिए यूज और थ्रो ही कर सकते हैं। जो मुक्त बाजार के नियंत्रण और मुक्त बाजार के व्याकरणके मुताबिक हो रहा है।
हालत यह है कि हर हाथ में मेबाइल है रोजगार और आजीविका हो न हो।सारे मित्र परिजन रिश्तेदार परिचित समाज देश आनलाइन है।दुनिया मुट्ठी मैं है। जब चाहो जिससे चाहो बत कर लो।वीडियो कांफ्रेंस कर लो।हर कहीं मौजूद होना जरुरी नही है और दुनिया के किसी कोने में किसी से भी संवाद की संभावना है।सारे लोग सूचना तकनीक में दक्ष है। लेकिन किसी का किसी से संवाद है नहीं। न परिवार में,न देश में और न समाज में।किसीको सुनने की किसीको न फुरसत है और न धैर्य है।
जो कुछ परोसा जाता है ,बेहद स्वादिष्ट,मसालेदार और उत्तेजक है। हम चीजों को अब न देखते हैं और न समझते हैं।चैनलों और साइटों में भटकते रहते हैं।न दृष्टि और न मन कहीं चिकने की हालत में है।मनोरंजन और उत्तेजना के हम उपभोक्ता है।ज्ञान महज जानकारी है,जिसे आत्मसात करना आवश्यक नहीं है।जिस पर अमल करना अनिवार्य नहीं है।शिक्षा का मतलब मूल्यबोध और उत्कर्ष नहीं,डिग्रियां है,डिप्लोमा है और प्लेसमेंट है।चीजों को विश्लेषित करने,सार संक्षेप निकालने और पुनियादी अवधारमाओं को समझते हुए सोच बनाने की कवायद में हम अपने अपढ़ पूर्वजों के मुकाबले फीसड्डी तो हैं ही, सहमति का विवेक और असहमति का साहस भी नहीं है हममें।हम मौके के मुताबिक रिमोट संचालित जीव है जिसकी कोई आकत्मा और अस्तित्व है ही नहीं।
सूचना का अधिकार है,दक्षता है और तकनीक भी है,लेकिन देश के लोकतंत्र में हमारी कोई भागेदारी नहीं है और न कोई उत्तरदायित्व है। महज भोग है।भोग के आर पार कुछ भी नहीं है। इसलिए जो लाइव है, वही विशुद्ध नीली क्रांति है।बिग बास से बिग ब्रदर की सुनियोजित यात्रा है। आईपीएल कैसिनो है और रियेलिटी सेनसेक्स है,जिस शेयर पर दांव है,हमारी नजर बस वहीं टिकी है। जो प्रकाशित प्रसारित है, वह बाजार का खेल है,बाजार के माफिक है।या तो खरीद लो या क्विकर डाट काम पर बेच दो।नीलामीपर पल पल देश बिक रहा है।हमें कानोंकान खबर नहीं होती।पल पल हम खुद बिक रहे हैं,हमें खबर नहीं होती।हमारी गर्दन रेती जा रही है,हमें अहसास तक नहीं है।अपना खून पीते हुए हमे शीतल पेय का अहसास है।अपनी हड्डियां चबाते हुए हम डिस्कोथेक में राकस्टार हैं। न नीति निर्धारण की हमें खबर है और न राजकाज की।न हमें देश दुनिया की खबर होती है और न पास पड़ोस की।जो मुद्दा उछाला जाता है,जो सूचनाएं प्रायोजित हैं,जो आंदोलन प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है,हम जाने अनजाने उसी में उछलते कूदते जुगाली करते रहते हैं।
शिक्षा का अधिकार है और सर्वशिक्षा भी है।ऐसी शिक्षा जो हमें उपभोक्ता तो बनाती है लेकिन हमसे हमारी मनुष्यता छीन लेती है।
वनाधिकार है लेकिन हमारा कोई वन नहीं है।
सारे कानून बदल दिये गये हैं ताकि हमारा वध निर्बाध होऔर हम बिना राशन मंहगाई और मुद्रास्फीति में खाद्य सुरक्षा का जश्न मना रहे हैं।छनछनाते विकास के मध्य बाजार के विस्तार के लिए मध्यस्थों के लाभ के लिए शुरु सामाजिक योजनाओं का उत्सव मनाकर सीमाबद्ध क्रयशक्ति के सात बाजार में मारे जाने के लिए अभिशप्त हमारी तमाम पीढ़ियां।
हम भूल रहे हैं कि मौजीदा जायनवादी वैश्विक व्यवस्था में सारी सरकारें तमाम बाजारों और मुद्रा प्रणालियों की तरह रंगबिरंगी सत्ता और बड़बोली दगाबाज राजनीति विचारधारा समेत कारपोरेट राज के मातहत है।तमाम अस्मिताएं और तमाम करह के वर्चस्व इस एकाधिकारवादी आक्रामक विध्वंसक कारपोरेट राज में समाहित है।
हम यह समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं कि इस कारपोरेट राज में सचमुच विचारधारा का अंत है।विमर्श का अंत है।विधाओं का अंत है।माध्यमों का अंत है।मातृभाषाओं का अंत है।लोकसंस्कृति का अंत है।इतिहास का अंत है। मनुष्यता और प्रकृति का भी अंत है।देश,समाज, परिवार संस्थाओं का अंत है।विमर्श का अंत है।संयम का अंत है।संवाद का अंत है।अंतहीन अंत अंत है।
हम यह समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं कि इस कारपोरेट राज में इस कारपोरेट राज में पर्यावरण आखिर रिलायंस के तलमंत्री के मातहत ही होना है। पर्यावरण कानून का भी वही हश्र होना है।
हम यह समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं कि इस कारपोरेट राज में कोई जनादेश हो ही नहीं सकता।जो जनादेश है,वह बाजार का चक्रव्यूह है,जिसके दरवाजों ौर खिड़कियां बंद हैं और वहां जनता और जनपक्षधर लोकतंत्र निषिद्ध है।
हम यह समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं कि इस कारपोरेट राज में भूमि अधिग्रहण कानून बदलते रहेंगे।महासत्यानाशी गलियारे बनते रहेंगे।महानगर लीलते रहेंगे जनपद।शहर गांवों को खा जायेंगे।बाजार खत्म करेगा उद्योग धंधे। हम उत्पादक नहीं,बाजार के दल्ला हो गये हैं।भूमि सुधार का मुद्दा ठंडे बस्ते में ही रहेगा।
हम यह समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं कि इस कारपोरेट राज में खनन अधिनियम चाहे जो हो,सुप्रीम कोर्ट का आदेश चाहे जो हो, न पांचवी अनुसूची लागू होगी और न छठीं।विकास के नाम विनाश जारी रहेगा और मारे जाते रहेंगे भारत के नागरिक तमाम या बने रहेंगे अपने ही जनपदों में अपने ही घरों में युद्धबंदी।
हम यह समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं कि इस कारपोरेट राज में न समता संभव है और न सामाजिक न्याय। न अवसरों का न्यायपूर्ण बंटवारा संभव है और न संसाधनों का। नौकरियां हैं नहीं,लेकिन हम एक दूसरे के खिलाफ युद्ध में शामिल हैं ारक्षण के नाम पर।
हमें इस यथास्थिति को तोड़ने के लिए कुछ तो करना ही होगा।तुरंत करना होगा। कुछ नहीं कर सकते तो एक दूसरे को आवाज तो देही सकते हैं हम।
सीधा सा गणित है,सत्ता से दूर रहकर दलितों की राजनीति होती नहीं है।उदित राज जी पुरातन मित्र है इलाहाबाद जमाने के। लेकिन राजनीति में वे बहुत सयाने हो गये हैं। अब तक राहुल गांधी और सोनिया गांधी से सीधा कनेक्शन रहा है। लेकिन कांग्रेस का दुस्समय है और हवा नमोमय है।नरेद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए राजसूय यज्ञ कराकर ही नयी बहुजन पार्टियां बन रही हैं तो मैदान में जमे पुराने खिलाड़ी उदित राज जी पीछे कैसे रह सकते हैं,यह समझने की बात है।वे भी कारपोरेट राज को स्वर्णयुग मानते हैं और छनछनाते विकास के लिए मलाईदार तबके के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण की क्रांति के प्रति प्रतिबद्ध हैं।इस हिसाब से तो उन्हें अरविंद केजरीवाल और नंदन निलेकणि के साथ होने चाहिए। क्योंकि मुक्त बाजार के ईश्वर मनमोहन के पतन के बाद जुड़वां ईश्वर वे दोनों ही हैं।उम्मीद हैं कि राजनीति के खिलाड़ी तमाम बहुजन मूलनिवासी दिग्गज और मूलनिवासी पुरोधा मसीहा और विद्वतजन मौका के मुताबिक बहुत जल्द संघी खेमे से फारिग होकर नये ईश्वरों की शरण लेंगे।वैसे देश के निनानब्वे फीसद जनता के वर्तमान और भविष्य पर इसका असर ठीक उतना ही होना है ,जितना धूम थ्री में आमीर खान और कैटरिना कैफ के सर्कसी करतब का।बहुजन एक्टिविज्म अब सर्कस का सौंदर्यशास्त्र है।धर्म निरपेक्ष खेमे को इसकी ज्यादा परवाह नहीं होनी चाहिए।क्योंकि उस तोते की जान भी तो आखिर सामाजिक क्षेत्र में रंग बिरंग एफडीआई में है,जिसकी चर्चा अभीतक शुरु ही नहीं हुई है।
S.r. Darapuri with Udit Raj and Kanwal Bharti
दो दिन पहले दिल्ली में इंडियन जस्टिस पार्टी द्वारा एक रैली की गयी जिस में कुछ दलित मुद्दे उठाये गए. इस रैली को उदित राज के अलावा प्रमुखता से श्री नितिन गडकरी, बिजेन्द्र गुप्ता, लहरी गुरूजी (भाजपा) ने संबोधित किया. बेशक इस मौके पर कांग्रेस के के. राजू भी उपस्थित रहे परन्तु इस में अधिपत्य भाजपा के नेताओं का ही रहा. यह तथ्य विचारणीय है कि इस रैली में भाजपा नेतायों की प्रमुखता से उपस्थिति के क्या निहितार्थ हैं. भाजपा कब से दलित मुद्दों की हिमायती हो गयी?
इस रैली में जो भी मांगे उठाई गयी हैं उन को लागू करने में जब एनडीए की सरकार थी तो कितनी कार्रवाही की गयी? यह सभी मांगे तो उस समय भी उठाई जा रही थीं.
क्या उदित राज इस रैल्ली में भाजपा की प्रमुखता से भागीदारी पर कुछ प्रकाश डालेंगे?
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Surjeet Pratap Singh सर आपसे 100 % सहमत हु ....गोलमाल ही है सब कुछ
Arvind Gautam Yahi too badi vichitra vidambanaa hi jisay humaray sampurna samaaj ko samjhna evm phchanna hogaa sath he sath humaray in sammnniya natao ko bhi
Amar Deo Singh सटीक विचार हैं ,दलित राजनीति राह से भटक गई है । बाबासाहेब के मिशन को मान्यवर काशीराम जी ने आगे बढ़ाया था किन्तु उनके देहांत के उपरांत मिशन रुका हुआ है । मिशन के आधार पर व्यकतिगत राजनीति फलफूल रही है।
Jeengar Durga Shankar Gahlot दारापुरी जी, दरअसल दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों में शामिल बने हुए मुस्लिमों व ईसाईयों के हितों के नाम पर देश में चहुँ ओर ही लगभग सभी छोटे-बड़े दलों में गरजता-लरजता जो राजनैतिक प्रतिनिधित्व दिखाई-सुनाई दे रहा है, वही तो इन वर्गों-समुदायों के असली श...See More
Vikash Mogha https://www.facebook.com/photo.php?fbid=4241482649171&set=a.2413052819568.123684.1648728664&type=3&theater
05 Anti Reservation orders issued by Department of Personnel and Training on 30....See More
By: Vikash Mogha
You, Sunil Khobragade, Salman Rizvi, Laxman Singh Dev and 35 others like this.
Shraddhanshu Shekhar Tv me is rally ki koi khabar hi nahi dikhayi gai.
BJP (ya rss or eise ativaadi hindu sangathano) se Hindu samaj vyavastha virodhi siddhanto par karyasheel hone ki ummiid bekar hai.
12 hours ago via mobile · Like
Harnam Singh Verma Darapuri ji, Congress tow isse bhi gay gujri hai
11 hours ago via mobile · Like · 1
Kuldip Singh Sir baat yah hai...ki BJPkoi dalit mudda nahi utha rahi thi ya hai...balki usko mudde uthwane k liye ...aur yah dikhane k liye dekho mere munch p kaun kaun aaya aur kya pakad hai meri indian politics p...yah agenda Udit Raj ka hai ...wah individual apni setting aur platting kar raha hai
11 hours ago via mobile · Like
Anthony India wastvikta me Dalit kis jaaty ko jaana jata hai Samaj me?
Kuldip Singh Dalit duniya k sabse bewkoof jaati se sambandh rakhti hai...
11 hours ago via mobile · Like
Anthony India Mr. Kuldip Singh , Vo Bevakoof nahi hai, bas tumhare har dharm ke vahiyat manavata nami shastriya baato ko is bhool me dhote hain ki kabhi to santi ayegi.
aur issi liye unko bevakoof kaha jata hai.
magar Itihas me Hitler Bhi paida huya tha , aur sari samasya ki jad hi khattm ho gayee
Kuldip Singh Dear Anthony , why i said these community are most stupid than others..the sense of that " dalits are more clever than others" it was a taunt on dalit..because they maintain their caste identity with rituals and behaving each other like brahmins..mee...See More
11 hours ago via mobile · Like · 1
Anthony India Do You Know ? Why?
Kuldip Singh I know
11 hours ago via mobile · Like · 1
Anthony India tell ,,,,,why?
Kuldip Singh U know also then no need to explain
10 hours ago via mobile · Like · 1
Anthony India You don't Know any things , Untill You don't say him Foolish. mind it?
10 hours ago · Like · 1
Kuldip Singh Explain..
10 hours ago via mobile · Like
Anthony India not necessry for you.
10 hours ago · Like · 1
Dinesh Chandra Mughalsarai Desh ki sansad me kisi bhi raste se jaane ki betaabi ..........
9 hours ago · Like · 3
Rashid Hussain S.r. Darapuri Ji its really a big problem in Rajasthan also Dalits in big number voted BJP with no vision..difficult task ahead for both of us
9 hours ago · Like · 2
Kuldip Singh Dear Anthony u must b explain..because i will inlighten by ur good knwledge
8 hours ago via mobile · Like
Syed Quasim udit raj kabhi ambedkar ki vichaar dhara ke haami nahi rahe.
Anthony India thank You Mr. Kuldip .
We are Nazi and Dont Like To demand of help To any other .
We have Our Own Research Center to Know It, with Best Scientist.......
We know well the Problem and are also solving it.
Rajendra Prasad s.r. darapuri ji, udit raj was asked,why he is keeping mum on the violation of article 338 of the constitution under which national commission for sc/st is constituted ? govt of India had made this statutory commission as his congress party SC cell. his reply is awaited.perhaps he is hopeful to seat on this chair.
Kuldip Singh Give the solution
7 hours ago via mobile · Like
Anthony India Its only for NAZIEs..............
Kuldip Singh Oh...ha ha ha
7 hours ago via mobile · Like
Vikash Mogha December 17 · Edited
कल अनुसूचित जाति एवं जनजाति संगठनो के अखिल भारतीय परिसंघ की राष्ट्रीय रैली में लाखो एस० सी०/ एस० टी०/ओ० बी० सी० सरकारी कार्मिको, छात्रो और कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि तथा एस० सी०/ एस० टी० आयोग के प्रतिनिधि के सामने बी० जे० पी० नेता नितिन गडकरी जी कहे कि एस० सी०/ एस० टी०/ओ० बी० सी० के हितों को लेकर वह गम्भीर है और उनके चुनावी अजेंडे में संसद में लंबित एस० सी०/ एस० टी०/ओ० बी० सी० को प्रार्थमिकता देकर पास कराना भी है (पहले भी अनुसूचित जाति एवं जनजाति संगठनो के अखिल भारतीय परिसंघ की मांग पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई जी की सरकार ने संविधान में 03 संशोधन 81, 82 एवं 85वा कर तीसरे मोर्चे पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी और गुजराल जी के पापों को धोया, एस० सी०/ एस० टी०/ओ० बी० सी० को जानना चाहिए कि इन 03 संविधान संशोधनों से उनके कितना लाभ हुआ). राहुल गांधी जी भी आज कल एस० सी०/ एस० टी०/ओ० बी० सी० को कांग्रेस पार्टी की मुख्यधारा में जोड़ने में लगे हुए है लेकिन भाई जब भारतीय जनता पार्टी तैयार है तो आप प्रोन्नति में आरक्षण विधेयक को पास कराने का श्रेय क्यों नहीं लेते, जैसे आज तक 03 संविधान संशोधनों का श्रेय भारतीय जनता पार्टी से ताल्लुक रखने वाले प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपई जी को जाता है। भारतीय जनता पार्टी लोकपाल विधेयक की तरह 117 वे संविधान संशोधन विधेयक के समर्थन का एस० सी०/ एस० टी० सरकारी कार्मिको से वादा कर चुकी है।
Udit Raj दो दिन पहले हमने इंडियन जस्टिस पार्टी की कोई रैली दिल्ली में नहीं की। दारापुरी जी से किसने कह दिया ?
3 hours ago · Like · 2
Bauddh Priya Raj Udit Raj Ex Irs sir, darapuri ji ki umar 60 ke par ho gayi hai, pata nahi kaun si Indian Justice Party ki rally mei pahunch gaye
3 hours ago · Like · 1
Motilal Sharma ye rally to All India Confederation of SC/ST Organisations ki thi.
Kamal Kishore Katheria Good question
2 hours ago via mobile · Like
S.r. Darapuri क्या All India Confederation of SC/ST Organisations इंडियन जस्टिस पार्टी का ही फ्रंटल संघठन नहीं है? क्या दोनों के अध्यक्ष उदित राज नहीं हैं?
Lal Roop sir udit raj bhi to b j p ka hi to adami a is heranee ki kya batt e
Lal Roop udit raj ka dalit mudon me dimaz nahi sirf mayawati ko kosne me hi time nikall deta ham bi\ol rhe ake jab tak sare ralh ke kam nahi karde udo tak ida hi mar prhegi udit raj b j p ka chamcha a hh h hhhhh h h
Surjeet Pratap Singh आदरणीय एस.आर.दारापुरी जी (सेवानिवृत्त आइपीएस ) ,आपने आईपीएस सेवा में रहते आंबेडकर महासभा परिसर से दलित अधिकारों के समर्थन में गिरफ्तारी दी l आपकी सोच और मिशन जाति,धर्म और सम्प्रदायों से उठ कर है l आप बहुजनों को बिना कोई क्रेडिट लिए एक नयी दिशा दे रहें ...See More
about an hour ago · Like · 1
Bauddh Priya Raj https://www.facebook.com/photo.php?fbid=580044375417840&set=a.206439356111679.52704.205279489560999&type=1&theater
By: Udit Raj
Bauddh Priya Raj संविधान में 81, 82 एवं 85वें संशोधन में एनडीए की सरकार थी All India Confederation of SC/ST Organisations
पहली प्रतिक्रिया
जय भीम कुरुक्षेत्र भारत श्रीमान पलाश जी, मुझे नहीं लगता की जब तक हम सब एक होकर सभी वर्गों को अपने साथ लेकर नहीं चलेंगे या उन्हें अपनी ओर नहीं ले कर आयेंगे तब तक हमारा अंतिम लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता …
आभार
Manish Kumar Neurosurgeon पहले मूल निवासी फरिया लीजिये - कॉर्पोरट यहीं रहेंगे
Manish Kumar NeurosurgeonPalash Biswas
"मूल निवासी" में कौन नहीं है? कैसे पहचान करते हैं आप मूल निवासी का?
Manish Kumar NeurosurgeonPalash Biswas
"मूल निवासी" में कौन नहीं है? कैसे पहचान करते हैं आप मूल निवासी का?
Palash Biswas यह वाकई बहुत बड़ा सवाल है। जाहिर है कि यह सार्वजनिक चर्चा का मसला होना चाहिए।आज के संवाद में इसे क्षेपक बतौर शामिल कर रहा हूं।
PM puts foot down, Jayanthi gets boot
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D K Singh : New Delhi, Sat Dec 21 2013, 22:06 hrs
Jolted by the recent electoral drubbing that was attributed to the UPA government's non-performance and indecisiveness, Prime Minister Manmohan Singh Saturday cracked the whip, ensuring the resignation of Environment & Forest Minister (Independent charge) Jayanthi Natarajan.
The move, signalling the government's intent to remove bottlenecks in decision-making process, came ahead of Rahul Gandhi's address to India Inc. Sources said the Congress vice-president was instrumental in Natarajan's ouster and that several batches of industrialists had met Rahul in recent times and singled out the Environment Ministry for having vitiated the investment climate though "arbitrary objections" and "rent-seeking".
The PM was learnt to have summoned Natarajan on Friday evening and asked her to put in her papers, although it was projected on Saturday as her decision, to move from the government to the party ahead of general elections. Petroleum Minister Veerappa Moily was given additional charge of her portfolio.
At his India Inc address, Rahul seemed to echo, at least in spirit, their concerns about the "slow decision-making" process in the government.
In her resignation letter, Natarajan attributed her decision to her desire to do party work. In his response, the Prime Minister said, "You have been a valued colleague and I thank you for your contribution. I am sure that your work for our party, for which you are leaving the government, will also be of immense value. I wish you all success in your future endeavours."
However, Congress sources explained that while some ministers are likely to be drafted for party work in the next few weeks, Natarajan's case was "different" and unrelated to this plan.
In his maiden address to the Congress Parliamentary Party meeting last Wednesday, the Prime Minister had conceded the slow decision-making process in his government and hinted about a course correction. "We should also frankly accept that there have been domestic problems also (for economic slowdown). Clearances have slowed down, which has affected large infrastructure projects... We are trying to overcome these bottlenecks... We are beginning to have an impact, but it will take time to show. In retrospect, we should have done this one year earlier but let us recognise that correction is now underway," he had said.
Indian Express Report
Himanshu Kumar shared Manisha Bhalla's status.
यह हरियाणा का गांव मनाना है। दलित समाज की कोई लड़की यहां स्कूल नहीं जाती। क्योंकि रास्ते में दिल्लगी करने वाले लड़के इनका सीना दबाकर भाग जाते थे। उस दिन हद हुई जब स्कूल से घर आ रही एक लड़की को मोटरसाइकिल सवार खेतों में खींचकर ले गया।कुछ और घटिया हरकतों के लिए तमीजदार शब्द नहीं मिल रहे हैं। संतरो देवी कहती हैं जब लड़कियां स्कूल नहीं जाएंगी तो उन्हें छोटी उम्र में ब्याह देते हैं। उनकी रखवाली कौन करे? जिन्हें यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए अदालत के दरवाजों के रास्ते नहीं पता उनका क्या ?
यह हरियाणा का गांव मनाना है। दलित समाज की कोई लड़की यहां स्कूल नहीं जाती। क्योंकि रास्ते में दिल्लगी करने वाले लड़के इनका सीना दबाकर भाग जाते थे। उस दिन हद हुई जब स्कूल से घर आ रही एक लड़की को मोटरसाइकिल सवार खेतों में खींचकर ले गया।कुछ और घटिया हरकतों के लिए तमीजदार शब्द नहीं मिल रहे हैं। संतरो देवी कहती हैं जब लड़कियां स्कूल नहीं जाएंगी तो उन्हें छोटी उम्र में ब्याह देते हैं। उनकी रखवाली कौन करे? जिन्हें यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए अदालत के दरवाजों के रास्ते नहीं पता उनका क्या ?
Feroze Mithiborwala
Dear Friends, I have been away for the last few days and now do announce that I have formally joined the AAP - Aam Aadmi Party (Common People's Party, for those abroad.) Its basically a Left of Centre party that has emerged after a popular struggle over the course of the last 2 years, challenging the corrupt ruling political elite and has managed to capture the imagination of the masses, especially the youth. Many of our colleagues from the grassroot struggles, socialists, leftists, Gandhians, Phule-Ambedkarites, environmentalists, humanrights activists are all streaming towards the AAP. Those of you who wish to can contact me on 9029277751. Jai Hind! Inquilab Zindabad!
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Uday Prakash
दोस्तो, मैंने अभी-अभी दुख के साथ समर अनार्य उर्फ़ अविनाश पांडे को 'ब्लाक' किया है लेकिन इस विकल्प को अब भी खुला रखा है कि अगर उनमें 'अन्यों' के प्रति सम्मान और संवेदना का चरित्र कभी पैदा हो, तो इस ब्लाक को हटा दूं. ऐसा करते हुए मैं उनके साथियों-समर्थकों-सहयोगियों से अपील करता हूं कि बिना किसी आधार और तर्क के, किसी निजी, जातिगत, सांप्रदायिक, वर्गीय द्वेष के चलते किसी अकेले रचनाकार या नागरिक के विरुद्ध घृणा का अभियान न चलाएं, झूठ का प्रचार न करें. अपनी संकीर्णताओं से ऊपर उठें और अगर वे फेसबुक या अन्य सोशल माध्यमों में सक्रिय हैं तो निंदनीय आचरण न करें. इतना याद रखें कि सिर्फ़ घृणा और द्वेष किसी को अच्छा मनुष्य और अच्छा लेखक-रचनाकार या सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं बना सकता. ओहदे, पद, दौलत, ताकत और गिरोहबाज़ी तथा लगातार तिकड़म महान बनने का रास्ता नहीं है. उन सभी दोस्तों का आभार, जिन्होंने मुझे यह निर्णय लेने का सुझाव दिया.
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You, Avinash Das, Prem Chand Gandhi, Sanjoy Roy and 131 others like this.
Uday Prakash Satyendra Pratap Singh ji ... इन जैसों ने महान विचारधाराओं को दुह लिया और ताप लिया. वे सिर्फ़ 'ताकतवर' हैं और मुज़रिम गिरोहों की तरह संगठित ...! एक दिन आप सब इस पर यकीन करेंगे.
about an hour ago · Like · 2
Satyendra Pratap Singh mujhe yakin kya karnaa hai.. haan... is tarah ki ghoshnaon par aaschrya ho raha hai jo ap jaise log kr rahe hain sir ji!
about an hour ago via mobile · Like
Uday Prakash ??
about an hour ago · Like · 1
Anita Bharti
आप महिला या समाज के दलित-वंचित सामाजिक वर्गों के खिलाफ उत्पीड़न का सवाल उठाइए, आपके सामने "समाज के व्यापक हित" का जुमला परोस दिया जाएगा। आपको कहा जाएगा कि हमें पहले सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़नी है, धर्मनिरपेक्षता को बचाना है। आखिर हम किस धर्मनिरपेक्षता को बचाने की बात करते हैं। सांप्रदायिकता के सबसे बड़े शिकार वर्ग महिलाएं और दलित-वंचित जातियां ही रही हैं। अगर हमारी धर्मनिरपेक्षता की चादर के तले महिलाओं और दलित-वंचित जातियों के खिलाफ उत्पीड़न में कोई फर्क नहीं पड़ता, तो वैसी स्थिति में अगर कोई व्यक्ति सांप्रदायिकता की तरह की इस सांप्रदायिक-जातिवादी और सामंती धर्मनिरपेक्षता को पहचानने की मांग करता है, तो इसमें क्या गलत है। जहां तक धर्मनिरपेक्षता का सवाल है तो मेरा मानना है कि स्त्रियों और दलित-वंचित जातियों से ज्यादा धर्मनिरपेक्ष और कौन होगा। जिस धर्मनिरपेक्षता के दायरे में स्त्रियों और दलितों-वंचितों का अधिकार सुनिश्चित नहीं हो, हमें उस तरह की धर्मनिरपेक्षता से भी उतना ही सावधान रहने की जरूरत है, जितना कि सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़ा रहने की। साथियो, यह ध्यान रखिए कि सभी धर्मों के मठाधीश और "मालिक" वर्ग और जातियां दमन-शोषण के शिकार वर्गों की यथास्थिति को जैसे का तैसे बनाए रखने के लिए आपके सामने "व्यापक हित" का प्रश्न परोसते हैं। इससे उन सामंतों और सत्ताधारी लोगों-वर्गों का समाज पर "मालिकाना हक" तो बना रह जाता है। लेकिन दमन-शोषण के शिकार वर्गों, चाहे वे महिलाएं हों या समाज के दबी-कुचली जातियां, की त्रासदी बनी रह जाती है। न्याय की मांग में प्राथमिकता ही यह तय करती है कि किसी व्यक्ति की प्रतिबद्धता सामाजिक यथास्थितिवाद को जड़ों पर चोट करना है या यथास्थितिवाद को बचाए रखने के लिए अलग-अलग चेहरा ओढ़ कर लोगों को भ्रम में डालना है।
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Virendra Yadav, Sudhir Ambedkar, Sunil Sardar and 20 others like this.
Ujjwal Bhattacharya मुझे समझ में नहीं आता कि सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ संघर्ष कैसे दलितों और औरतों के लिये संघर्ष को कमज़ोर करता है.
2 hours ago · Like · 1
Pradyumna Yadav दो कौड़ी की मानसिकता रखने वाला इन्सान "समाज के व्यापक" हित की बात करता है। हद होती है लफ्फाजी की।
Pradyumna Yadav अच्छा डैलाग है!! तालियाँ! मगर उनके अपने समाज के लिए काम करने और उस पर गर्व होने वाली बात से आपने यह निष्कर्ष कैसे निकाल लिया कि वो केवल "...See More
32 minutes ago via mobile · Edited · Like
Pradyumna Yadav ये बेहूदा कहता है कि ये मुझे बिलकुल भी नहीं जानता, फिर कहता है कि मै साम्प्रदायिक और गधा हूँ। बिना किसी के बारे में जाने समझे ऐसा कहना कहा तक उचित है। क्या यह पूर्वाग्रही , सांप्रदायिक, जातिवादी , अहंकारी मानसिकता का परिचायक नहीं है?
27 minutes ago via mobile · Edited · Like
Pradyumna Yadav देख लीजिये , किसी जाति विशेष के लिए कितनी नफ़रत और ओछा भाव भरा है इसके मन में। ये समाज के व्यापक हित की बात कर रहा है। हद है दोगलेपन की।
25 minutes ago via mobile · Like
Surendra Grover
Mohan Shrotriya आप किसी की गिरोहबंदी और साजिशों से परेशान क्यों हो रहे हैं.. कुछ लोग जुम्मा जुम्मा कुछ दिनों से आपको जानते हैं.. आपका काम इन दुष्टों की बकवास की बलि नहीं चढ़ सकता.. आप शांत दिलो दिमाग से बिना किसी भावावेश के अपने कार्य में लगे रहें.. कुछ लफंगों के कारण आपका हम सबसे कट जाना बड़ा तकलीफदेह होगा..
Like · · Share · 6 hours ago near Ghaziabad ·
Ashok Kumar Pandey, Durgaprasad Agrawal and 26 others like this.
Mohan Shrotriya नहीं, मैं किसी से डर कर चुप नहीं हो जा रहा हूं. उद्विग्न तो हूं ही, बेशक. मित्रों से कट जाने की इच्छा हो भी कैसे सकती है, इस उम्र में? सहज-सामान्य होने में वक़्त तो लगता ही है. बहुत सारी चीज़ें हैं, आपस में गुंथी हुई. सुलझेंगी, जैसे अब तक सुलझती आई हैं.
6 hours ago · Like · 11
Surendra Grover Mohan Shrotriya किसी से डर भी नहीं सकते.. उद्विग्न होने से कोई इंकार नहीं कर सकता.. हाँ, इतना निवेदन है कि जुड़े रहिये.. साजिशों के इस दौर को भी अपने हिसाब से ढाल लेने की कुब्बत है हममें..
5 hours ago · Like · 5
Michael Rajat Humne to foolo ka haar maanga badle me kaanto ki kaliya milli
5 hours ago via mobile · Like · 1
Kumar Madhukar humne toh jab kaliya mangi,kanto ka har mila,jane ve kaise log the jinke pyar ko pyar mila..!
2 hours ago via mobile · Like
जनज्वार डॉटकॉम
घाटी व पहाड़ों में बर्फबारी होने के बाद से लगभग जनवरी के पहले पखवाड़े तक सर्दी इतनी तेज गति पकड़ेगी कि मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में खुले में रह रहे लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से असुरक्षित हो जायेंगे. गिरता पारा, विशेषकर नवजात बच्चों, गर्भवती महिलाओं, वृद्ध लोगों की जान जोखिम में डाल देगा...http://www.janjwar.com/society/1-society/4631-dange-ke-baad-ab-thand-se-machti-aafat-for-janjwar-by-sanjeev-chaudhary
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केजरीवाल: ग्लोबलाइजेशन के दौर का सबसे बड़ा भारतीय जादूगर
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मित्रों,अभी-अभी टीवी देखने बैठा.ज़ाहिर है कि टीवी देखने का मतलब मेरे जैसा शुष्क व्यक्ति डांस-फांस , नहीं न्यून ही देखेगा.अतः सबसे पहले रिमोट 'सबसे तेज़ चैनेल' पर किया.देखा उसकी एंकर लोगो का जमावड़ा इकठ्ठा कर यह जानने की कोशिश कर रही थी कि 'आप' को सरकार बनाने की कोशिश करनी चाहिए की नहीं?आर्यन कलर का एक आदमी जब आप की भूमिका को लेकर कुछ अप्रिय सवाल किया ,वह मॉडल टाइप की एंकर उसे डाँटते हुए सिर्फ 'हा' या 'ना' में जवाब देने के लिए मजबूर करने लगी.यह ड्रामा झेलना अपने लिए मुश्किल हो गया.रिमोट की बटन दबाया और आ गया वह 'इंडिया 'के नाम का बेशर्मी से इस्तेमल करनेवाला वह चैनेल जिसका संचालक एक शर्मा(बे-शर्मा) है.वहां भी वही ड्रामा.एक डेढ़ मिनट केजरीवाल का स्तुति गान सुनने के बाद अगले चैनेल की और बढा.वहां भी वही जानने की कोशिश हो रही थी.बोर होकर मैंने फ़िल्मी चैनलों की और रुख किया.संयोग से एक पर चेन्नई एक्सप्रेस दिखाई जा रही थी जिसकी तारीफ में मैंने कुछ माह पूर्व कुछ लाइनें आपको नज़र की थी.
मित्रों,मुझे एक अप्रिय सचाई कबूल करने में कोई कुंठा नहीं कि केजरीवाल भूमंडलीकरण के दौर का सबसे बड़ा भारतीय जादूगर है.यह जादू नहीं तो और क्या है कि मैं पिछले एक सप्ताह से केजरीवाल पर नियमित रूप से न चाहते हुए भी कुछ न कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ..यह उसका जादू ही है कि सारे चैनेल उसकी भाषा बोल रहे हैं.मित्रों,सॉरी केजरीवाल अब माननीय बन गया है,इसलिए उसका नाम लेते हुए मुझे सम्मान प्रकट करना चाहिए.किन्तु मैं यह सामान्य शिष्टचार पालन करने में विफल हूँ तो उसका कारण उसका जादू ही है.मुझपर भारतीय राजनीति में कुछ चेहरों के भाव का इतना स्थाई प्रभाव है की आंखे बंद करते ही उनकी छवि मानस पटल पर कौंध जाति है.मोरारजी देसाई के चेहरे पर छाये रहनेवाला अजीब सा भाव आज भी मेरा जायका ख़राब कर देता है .उस दौर में सम्पूर्ण भ्रान्ति(क्रांति) के महानायक जय प्रकाश नारायण अर्थात जेपी के चेहरे पर छाया इर्ष्या(इंदिरा जी के प्रति)का भाव आज भी नहीं भूलता.इसी तरह और कई चेहरे हैं जो मेरा मूड ख़राब कर देते हैं.किन्तु हाल के वर्षों में जिन दो चेहरों ने अमिट छाप छोड़ी वे हैं केजरीवाल और नरेंद्र मोदी.जहाँ नरेंद्र मोदी के चेहरे पर छाया अहंकार देखकर मिजाज़ बिगड़ जाता है वहीँ केजरीवाल के चेहरे पर छाया काइयांपन का गहरा भाव देख कर खुद पर झुंझलाहट होने लगती है.मै लाख कोशिश करके भी कहीं से भी उसके चेहरे पर सात्विक भाव नहीं ढूंढ पाया.बहरहाल मित्रों मैं केजरीवाल से कुछ ज्यदा ही प्रभावित हूँ और उसकी तारीफ में एक ही शब्द इस्तेमाल करना चाहूँगा 'जादूगर'.
जी हां मित्रों,मुझे केजरीवाल जादूगर ही लगता है.यह जादू सिर्फ आमजन ही नहीं देश के बुद्धिजीवी वर्ग के सर पर चढ़कर बोला.इसका एक बड़ा उदहारण योगेन्द्र यादव हैं.वैसे तो नब्बे के दशक में जिस योगेन्द्र यादव को 'सामाजिक न्याय के उभरते बौद्धिक नायक' के रूप में बहुजन समाज ने सम्मान दिया वह यादव परवर्तीकाल में में अपनी भूमिका एक 'सैफोलोजिस्ट' तक सीमित रखकर संकेत दे दिये थे कि बहुजन समाज उनसे ज्यादा उम्मीद न रखे.किन्तु योगेन्द्र यादव अपना बचा-खुचा स्वतंत्र व्यक्तित्व केजरीवाल जैसे काइयां एनजीओ बाज के समक्ष गिरवी रख देंगे ,इसकी उम्मीद अंततः दुसाध को तो नहीं थी .इसलिए इसे केज्रिवाल का जादू से भिन्न कुछ और नहीं मान सकता.किन्तु केजरीवाल का जादू सबसे अधिक मुख्यधारा के बुद्धिजीवियों पर चला.उसने तो उन्हें भेड़ में ही तब्दील कर दिया.उसने बताया भ्रष्टाचार भारत की सबसे बड़ी समस्या है,आर्थिक और सामाजिक विषमता को सबसे बड़ी समस्या माननेवाला भारत का बुद्धिजीवी वर्ग भेड़चाल की तरह उसकी 'हां' में 'हां' मिलाने लगा.काइयां केजरीवाल ने कहा सिर्फ जन लोकपाल द्वारा ही भ्रष्टाचार का खात्मा हो सकता है,बुद्धिजीवी वर्ग भेड़चाल की तरह जन लोकपाल-३ की रट लगाने लगा.केजरीवाल ने ड्रामा किया कि जनता से राय लेकर सरकार बनायेगे ,सारे चैनल भेड़चाल उसकी ही भाषा बोलते हुए तरह राय शुमारी में जुट गए.तो साथियों काइयां केजरीवाल को मैं तो जादूगर ही कहूँगा और आप?
Ashok Dusadh, Sudhir Ambedkar and 10 others like this.
Ashok Dusadh सर जी केजरीवाल जादूगर नहीं हैं बल्कि ये काईयाँ बुद्धिजीवी जादूगर हैं जो केजरीवाल को नेपथ्य से निर्देशित कर रहे है .वह भी संकेत और इशारों की भाषा में .अब आप खोज कीजिये की एनजीओवादी ,रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट या इस दशक में मास रिटायर्ड होनेवाले ब्यूरोक्रेट ...See More
4 hours ago · Edited · Like · 1
Shriniwas Rai Shankar जादू झूठा होता है ।पर सच्चा दिखता है ! यशपाल ने भी इसे देखा , अब हम भी देखने को मौजूद है कि झुठा सच एक रोमांटिक कथानक मात्र नहीं है , बल्कि यह छिपे हुये , अकलयाणकारी रूझान को आम आदमी के आक्रोश से जोड़कर करी गयी कारगुजारी है , जिसका उपसंहार लोकसभा चुनावों के बाद होगा ।
4 hours ago via mobile · Edited · Like · 2
H L Dusadh Dusadh हां श्रीनिवास जी जादूगर ने भ्रष्टाचार को भावनात्मक मुद्दा बनाकर गज़ब कर दिया.अब तो लोकसभा चुनाव में ही ...
4 hours ago · Like · 2
Shriniwas Rai Shankar एक- 2सीढी बनायी , और अब कांग्रेस पर पहले कमर के नीचे हमला और अब गर्दन पकड़ कर समर्थन! ए करिश्मा तो चमत्कारी ही कर सकता है ।पर मुठठी भर बालू से बनी आप पारटी के निरमाता ,उदारीकरण के नये गाँधी की आम आदमी नामक दीवार का ढहना वैसे ही तय है , जैसे जादू का असर शो से बाहर निकलते खत्म हो जाता है ।लेकिन अभी शो (शोर)जारी है !!!!!
4 hours ago via mobile · Like · 1
Ashok Dusadh सही बात कही आपने
4 hours ago · Like · 1
Sanjay Kumar sir g, kejriwal to jadugar (brahaminism) ka 1 naya kalakar hai, jitni chabi bharta hai uska ram (jadugar) utne chalta hai kejriwal. Kejriwal NEW BRAHMINISM ka ek awtar hai. Congress_bjp- sikke ke dono pahlu, ghisne lage the, ab kejriwal ke rup me naya sikka launch kiya gaya hai...abhi ye bedharak chalega.
3 hours ago via mobile · Like
Rajiv Nayan Bahuguna
आज फिर यत्र - तत्र ऐसी पोस्ट देख रहा हूँ की " शनि से प्रकोप से बचने के उपाय , या शनि शत्रु नहीं मित्र है ." यही अंध विश्वास हमें अंततः शनि से मोदी की और ले जाता है .शनि सिर्फ एक दिनांक सूचक संज्ञा है , और कुछ भी नहीं . वह न आपका कुछ बिगाड़ सकता है , न बना सकता है . उसी तरह मोदी भी एक सामान्य राज नेता है , वह न आपको गरीबी से बचा सकता है न भूख से . उससे डरना भी इसी तरह मिथ्या है , जैसे शनि से डरना . मनो वैज्ञानिक आश्वासनों और भयों से मुक्ति पायें . विज्ञान और यथार्थ का सहारा लेन .
Sunil Khobragade shared a link.
plz help devyani brave girl of india against unwarranted harsh action.bring her back in india.
to sign this petition click on create your actt option.you will ask for your email,first name,last name,country zip ,i.e.pin code of your area.after that you will get notification on your email address.link of this petition will get there in email.click it you will get option sign here.click on this your vote will be registered
जनज्वार डॉटकॉम
अमेरिका का भारतीय राजनयिकों और राजनीतिकों के साथ अपमानजनक बर्ताव नई बात नहीं है. हाल में घटित देवयानी खोबरागड़े प्रकरण से पहले 2011 में न्यूयॉर्क के ही महावाणिज्य दूत प्रभु दयाल और 2012 में दूतावास की प्रेस एंड कल्चरल काउंसलर नीना मल्होत्रा के साथ न्यूयॉर्क पुलिस ने अपमानजनक व्यवहार किया, मगर भारत चुप बैठा रहा...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/69-discourse/4626-america-ko-munhtod-javab-dene-kee-jarurat-for-janjwar-by-arvind-jaitilak
Like · · Share · about an hour ago ·
Immediately drop all charges against Indian diplomat Devyani Khobragade | We the People: Your...
Mohan Shrotriya
*अब और नहीं, फ़ेसबुक !*
कभी-कभी ज़रूरी हो जाता है
चुप रह जाना
अदृश्य हो जाना और
एक लंबी चुप्पी खींच जाना !
दुरभिसंधियां जब
आमादा हो जाएं
मुखर होकर जान ले लेने पर
और उनकी तह तक पहुंचना आसान न हो
तो अस्वाभाविक नहीं होता
अवसाद के चक्रव्यूह में फंस जाना
बाहर निकलने के तमाम रास्ते
जब कर दिए गए हों बंद !
लाचारी के नकार मात्र से ही
नहीं छुपाई जा सकती
भीतर की बेचैनी !
Like · · Share · 2 hours ago near Jaipur ·
Economic and Political Weekly
While the Supreme Court of India has reserved its judgement on the recognition of gender identity of transgender persons in India, the countries of Pakistan, Bangladesh and Nepal have, by according legal recognition, taken a crucial step to empower these persons by and enable them to live a life with dignity and without discrimination.
EPW commentary: A Comparison of the Legal Rights of Gender Non-Conforming Persons in South Asia
http://www.epw.in/commentary/comparison-legal-rights-gender-non-conforming-persons-south-asia.html
Ajay Prakash
जिसको देखो वही 'आप' पार्टी ज्वाइन करने की सोच रहा है. ऐसे लग रहा है आप पार्टी न हुई, रोजगार भर्ती केंद्र हो गयी. अरे भाइयों यह पार्टी है, कोई भंडारा नहीं जो लाइन लगाये पड़े हो. दिल्ली में जो 28 सीटों की चमक दिखायी दे रही है, वह बगैर कुर्बानी नहीं मिली है. हमें इन 28 सीटों के झुनझुने से नहीं संतोष करना है, हमें चाहिए सम्पूर्ण स्वराज और इस सपने को पूरा करने के लिए ऐसे युवाओं की फ़ौज खड़ी करनी है, जो स्वराज के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करें। - दिल्ली में लक्ष्मीनगर के 'आप' पार्टी विधायक विनोद कुमार 'बिन्नी' के दफ्तर के बाहर चल रही एक बहस का मजमून।
Like · · Share · 4684 · 19 hours ago ·
Ashok Kumar Pandey
मैत्रेयी पुष्पा मेरी अत्यंत आदरणीय और प्रिय लेखिका हैं लेकिन उनके कल के बयान से, कि पुरुष हर हाल में सहमत होता है, मैं एकदम असहमत हूँ.
उनका बयान पढ़कर ऐसा लगता है कि हर पुरुष हर समय हर किसी के साथ यौन क्रिया में संलग्न होने के लिए तैयार बैठा रहता है. ठीक है, पितृसत्तात्मक समाज ने स्त्री को दोयम दर्जे की नागरिक और भोग्या में तब्दील करने की पूरी कोशिश की है. लेकिन इस क़दर सामान्यीकृत बयान को निजी अनुभवों भर से खारिज किया जा सकता है.
क्या आपने ऐसे पुरुष नहीं देखे जिन्होंने प्रेम प्रस्ताव ठुकराए हों? जिन्होंने सहज उपलब्ध अवसर का "उपयोग" करने से इनकार कर दिया हो? जिनकी एकांत संगत में भी महिला सहज रही हो? जो यौन पशु न हों?
स्त्रीवाद को लेकर मुझे हमेशा लगता है कि हिंदी साहित्य में इसका झंडा बुलंद करने वालों ने शायद इसका ककहरा भी ठीक से नहीं पढ़ा और वायवीय उग्र मर्द विरोध तथा उग्रतर शाब्दिक प्रहार के भरोसे चलने वाले इस कथित विमर्श का सबसे मजेदार पहलू यह है कि इसके अधिकतर नायक/नायिका सुखी-सफल-परिवारों के सफल एवं अनुकूलित सदस्य हैं.
Like · · Share · 5 hours ago · Edited ·
Jayantibhai Manani
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आज हर दूसरा व्यक्ति नहीं लेकिन आज के हर 4 व्यक्ति में से 3 व्यक्ति किसी न किसी का सताया हुआ ही हैं ... सोनी सोरी एक ऐसी आदिवासी महिला है, जिसे लोकतंत्र के तिन स्तम्भ शासन, प्रशासन, न्यायतंत्र ने सताया और चौथे स्तम्भ मिडिया ने सदंतर उपेक्षा कियी है.
सोनी सोरी पिछले दिनों दिल्ली में महिला उत्पीडन के विरुद्ध हुए विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुई चित्र में सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी के साथ मेधा पाटेकर , प्रशांत भूषण ,, बिनायक सेन ,ए बी वर्धन , डी राजा , स्वामी अग्निवेश , वृंदा ग्रोवर , प्योली स्वतिजा और रेत माफिया के खिलाफ लड़ने वाली जजीरा के साथ .
Like · · Share · 2312 · 11 hours ago ·
खुर्शीद अनवर जी की आत्महत्या के बाद अनीता भारती जी द्वारा इस मामले में की गई एक अप्रत्यक्ष टिपण्णी पर घमासान मचा हुआ है. इस मामले में बिना किसी के प्रति द्वेष भाव के मेरी राय यह है कि समर अनार्य जी के द्वारा उनकी टिपण्णी को गलत तरीके से लिया गया है. और इसके बाद अनीता भारती जी के प्रति उनके द्वारा किया गया शब्दाचार नितांत निंदनीय और गैर-जिम्मेदाराना रहा है.सही बात तो ये है कि हमारे कई मार्क्सवादी मित्र(जो केवल मार्क्सवादी होने की वजह से ही हमें अज़ीज नहीं है) भी उसी रौ में बहते नजर आये हैं. ...ऐसी घटनाओं से भारतीय मार्क्सवाद के वास्तविक bourgeois character की हमारी धारणाओ को बल मिलता है।
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खैर, व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों के इस दौर में अनीता भारती जी की टिपण्णी की पृष्ठभूमि पर प्रकाश अवश्य डालना चाहूंगा। दरअसल उनकी कमेंट यह थी : "आज फेसबुक पर चल रही चर्चाओं से लगता है कि यौन उत्पीड़न से ज्यादा बड़ा मुद्दा धर्म निरपेक्षता है" हाँ चर्चाओं को देखकर मुझे भी ऐसा ही लगा था।
फेसबुक स्टेटस तो उलटे पीड़िता को लांछित करने पर आये थे..... मानाकि खुर्शीद अनवर जी फिरकापरस्ती के खिलाफ एक बुलंद आवाज थे और संभवतः निर्दोष भी रहे होंगे( जैसा कि मै खुद मानता हूँ) लेकिन इससे क्या? ऐसे तो तरुण तेजपाल भी साम्प्रदायिकता के खिलाफ जंग के लिए ही जाने जाते थे. और यदि कहीं खुर्शीद अनवर जी असल में दोषी होते ( और उनपर लगे आरोपों को खारिज करने का अधिकार सिर्फ भारत की न्यायपालिका को है, न हमें, न आपको) तो आप फिरकापरस्ती के खिलाफ उनके संघर्ष को न्यायलय में किस प्रकार यौन उत्पीड़न पर अधिमान दिलाते? अच्छा, खुर्शीद जी आपके इतने ही अजीज थे तो फिर इतने दिनों तक मीडिया ट्रायल चलते रहने के बावजूद आपने क्यों ये सलाह अनवर जी को नहीं दी कि वो फर्जी मीडिया ट्रायल करने वालो पर मान हानि का मुकददमा करें।
जब खुर्शीद अनवर सुसाइडल नजर आरहे थे तो क्यों आप उन्हें सम्भाल नहीं पाये? आपकी ही कमेंट "बहुत दिन से खुर्शीद सुसाइडल होने लगा था और हम डरने लगे थे. फिर तो अचानक उसे फोन करने लगा था, मैं ही नहीं हम कुछ लोग. खुर्शीद की रुंधी आवाज़ अन्दर से तोड़ देती थी मगर फिर भी उसके होने का यकीन तो हो जाता था. " एक बात और भाषा के मामले में तो आपने बिलकुल ही संयम तोड़ दिया। किसी को हत्यारा, किसी को हत्यारिन और भी बहुत कुछ. आपने तो खुर्शीद अनवर जी को भी नहीं छोड़ा अभी हाल की पोस्ट में देखिये "चार दिन हो गए हैं उस *हरामखोर* की आत्महत्या के जिसको बचाने में हमने तीन महीनो तक जान दे दी थी. मुझे पता है कि तुमने फेसबुक ट्रायल से मार दिया उसे, एक बार भी अदालत तक नहीं गए तुम. अब मुझे भी मार दो. क्योंकि मैं तो लडूंगा ज़िंदा रहने तक. मार दो मुझे घेर के हत्यारों। पर याद रखना मैं खुर्शीद नहीं हूँ. आत्महत्या नहीं करूँगा। तुम्हे क़त्ल करना पड़ेगा मुझे।
और कामरेडों, याद रखना, मुझे किसने मारा है."
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अरे भाई, जन संघर्षों की ओखली में अपना सिर डालकर आरोपों की चोट से इतना क्यों डरते हैं. अब अगर आपके इस पोस्ट को देखकर कोई ये कहे कि आप नाटकवाजी कर रहे हैं तो अभी आप आग-बबूला हो जायेंगे। खुर्शीद अनवर जी ने आत्महत्या की, दुःख हमें भी है. वैसे अफ़सोस है कि एक संघर्ष शील व्यक्ति इस तरह खुद से हार जाएगा। यह कोई अच्छी बात नहीं है. निश्चित रूप से उनको आरोपों का सामना करना चाहिए था. वैसे आपने जिन लोगों को सरे आम हत्यारे कहना शुरू कर दिया क्या वो भी आत्म-हत्या कर लें. एक गम्भीर और जुझारू व्यक्ति होने का परिचय देते हुए आपको चाहिए था कि उनको कोर्ट में ले जाते।खुर्शीद अनवर जी के प्रति पूरा सम्मान रखते हुए भी यही कहना चाहूंगा कि उनका यह कदम अफसोसनाक था. जन संघर्ष से जुड़े लोगों में खुद में भरोसा (self -conviction) बहुत आवश्यक होता है. काश उन्होंने अतीत के जन-संघर्ष के नायकों से प्रेरणा ली होती!
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Rakesh Srivastava Anita Bharti ख़ालिद असलम Shakil Ahmed Khan Ashutosh Kumar Shamshad Elahee Shams Tara Shanker Anil Kumar Gulzar Hussain Dilip C Mandal
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Palash Biswas सुधीर जी,मैं भी फेसबुक कामेंट से व्यथित ही रहा हूं और अनिता जी के मंतव्यपर अप्रत्य& तौर पर सभी प&ो की ओर से भाषा का बंधन टूटने पर अफसोस भी जता चुका हूं।हमने उन मंतव्यों को सिर्फ िसलिए उद्धृत नहीं किया कि इससे आग में घी का ही काम होगा।
सामाजिक बर्ताव को लेकर एक टिप्पणी करने के बाद पिछले दो दिनों के दौरान मेरे बारे में जिस तरह "दाम" लेकर "बिक जाने" से बहुत आगे बढ़ते हुए "हत्यारिन" "दलाल" तक कहा गया, गाली की भाषा में बात की गई, उससे मेरे सामने कई सवाल खड़े हुए हैं। इस भाषा में बात करने वाला समर अनार्य (मूल नाम- अविनाश पांडेय) खुद को हर बार जोर देकर कॉमरेड और कम्युनिस्ट-वामपंथी कहता है। इसके अतिरिक्त इसका चरित्र, व्यवहार और भाषा सभी के सामने है। इसकी हर बात से सामंती ब्राह्मणवाद का जहर बहता रहता है। व्यवहार के हर पहलू से यह प्रतिगामी संगठन का एजेंट लगता है जो प्रगतिशीलता और वामपंथ का चोला ओढ़ कर खुद वामपंथ को नुकसान पहुंचा रहा है। क्या ऐसे ही लोगों ने हर बार यथास्थितिवाद के विरुद्ध खड़ा होने वाले किसी आंदोलन में घुसपैठ कर उसे बर्बाद नहीं किया है? क्या ऐसे ही सामंती व्यवहार करने वाले लोगों के चलते कमजोर और वंचित जातियों के लोगों को समूचे वामपंथ को शक की नजर से देखने का आधार नहीं मिलता है? दलित-वंचित जातियों के लोग क्यों वामपंथ जैसी विचारधारा से दूर चले जाते हैं? जिस आक्रामक और बेलगाम भाषा-व्यवहार से इसने मेरे व्यक्तित्व, (मैं अपने महिला और सामाजिक पहचान को फिलहाल परे रखती हूं) मेरे मान-सम्मान पर हमला किया है, क्या यही इसका मूल चरित्र नहीं है, जो प्रगतिशीलता के चोले के पीछे छिपा हुआ है? क्या ऐसे ही लोगों के चलते समूचे वामपंथी आंदोलन को ही कुछ लोग संदिग्ध नहीं मानते हैं?
अब मैं अपने दायरे में सभी प्रगतिशील, वामपंथी और न्याय में विश्वास रखने वाले साथियों से पूछना चाहती हूं कि समर अनार्य (मूल नाम- अविनाश पांडेय) के चरित्र को वे कैसे देखते हैं। अगर वे इस व्यक्ति को वामपंथ का प्रतिनिधि चरित्र मानते हैं और उसका व्यवहार उन्हें आपत्तिजनक नहीं लगता है तो मैं ऐसे वामपंथ को खारिज करती हूं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि वामपंथ के ईमानदार साथी वामपंथ को बदनाम करने वाले इस अविनाश पांडेय उर्फ समर पांडेय का सार्वजनिक बहिष्कार करेंगे। क्योंकि इस तरह के चरित्र और व्यवहार का व्यक्ति अपने साथ-साथ एक समूची विचारधारा को गर्त में धकेलने के लिए जिम्मेदार होता है। यह ऐसे लोगों की साजिश भी हो सकती हो सकती है।
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Kumar Ranjeet यह कोई पहली बार नहीं है सो उसके आचरण पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ लेकिन बार बार उसके इस घटिया आचरण को नजरअंदाज करके उसे तथाकथित 'महान' क्रांतिकारी सोच का इंसान बताने वाले बुद्धिजीवीयो पर तरस आता है और भारी कोफ्त होती है ...!
21 hours ago via mobile · Like
Dheeresh Saini आपसे पूरी तरह सहमति है।
21 hours ago · Like · 1
ख़ालिद असलम अनिता जी , आप ने ग़लत टाइम पर कुछ टिप्पणी की थी जो उचित नहीं था इसलिए समर जी भड़क गए , आप भी भावनाओं को समझिए । एक काॅमरेड साज़िश का शिकार होकर जान से हाथ धो बैठा , उनके क़रिबीयों की पीड़ा वाजीब लगती है मुझे । बाकी आप भी सम्मानित है !!
21 hours ago via mobile · Like · 1
Upendra Prasad मैं अनिता जी से सहमत हूँ.
20 hours ago · Edited · Like
ख़ालिद असलम आज रात 11 बजे IBN 7 देखिए , शायद आपकी सोंच बदल जाए ।
Anita जी , आप भी !!
20 hours ago via mobile · Like
Upendra Prasad ख़ालिद असलम: मैं भी उन लोगों में शामिल हूं, जो खुर्शीद की मौत के लिए खुद खुर्शीद की कमजोरी को ही जिम्मेदार मानते हैं, मेरी भी सहानुभूति पूर्वोत्तर की गरीब परिवार की उस लड़की के साथ है, जिसके रेप का आरोप खुर्शीद पर लगा था. मैने इस तरह के पोस्ट भी जहाँ तहाँ डाले हैं. आलोचना मेरी भी हुई, लेकिन किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह मेरे साथ गाली गलौज पर उतर आए.
20 hours ago · Like · 4
Upendra Prasad मैं अनिता जी से सहमत हूँ.
Upendra Prasad टी वी चैनलों पर बताई गई सभी बातें सच ही नहीं होती. ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हमारी अपनी समझ क्या कहती है.
Sanjay Kumar अगर ये समर पाण्डेय वही जेएनयू वाले हैं जो वहां पी.ए़स यू नाम का संगठन चलाते थे, जिन्हें शोर्ट में वहां पाण्डेय स्टूडेंट यूनियन (PSU) कहा जाता था...जिसमे एक साथ 5 से ज्यादा सदस्य कभी नहीं नहीं पाये गये. ये बतकही में माहिर थे लेकिन किसी कार्यकर्म या ...See More
20 hours ago · Like · 3
Dheeresh Saini अनीता जी की उस पोस्ट पर आए कमेंट्स की तरह ही यहां मुझे दोबारा साफ करना पड़ेगा कि मैं अनीता भारती के साथ किए जा रहे अभद्र व्यवहार की आलोचना करता हूं और ऐसी से कमेंट्स की भी जो लड़की को कठघरे में खड़े करने पर उतारू हैं। लेकिन इस पोस्ट पर आई उन टिपण्णियों भी निंदनीय समझता हैं जो खुर्शीद को लेकर फैसले सुनाने को उतावले हैं।
20 hours ago · Like · 3
Ashok Moti Anita Bharti ..apka yah post jisme aapki soch ki Baam ka matlab Sawaran ko galiyana hai ..kya uchit ? Us din v jab ek itna bada hadsa hua aapki tippani kya sahi thi ..isiliye maine ek baar ek post par aaplogon ki gutwazi ke virudha tippani ki thi jise ...See More
Shri Dharam ऐसे लोगों की बातों को दरकिनार कीजिए, अनीता जी!
19 hours ago · Like · 1
Dalit Awaaz व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किये शब्द उसके चरित्र को बयां करते है जिसने ये शब्द इस्तेमाल किये उसने ये खुद जाता दिया की वो बिकाऊ ,दलाल और हत्यारा है तभी तो उसे इन शब्दों की खूबियों अची जानकारी है
Rising Rahul आपकी बात से सौ फीसद सहमत। वामपंथ तो जीने का सलीका सिखाता है, शब्द सिखाता है.. अपशब्द कभी नहीं सिखाता। यह अपराध अक्षम्य है। प्रायश्चित है पूर्ण परिवर्तन और आत्मावलोकन।
19 hours ago · Like · 3
Hemlata Mahishwar shame shame
Deepak Rajan वामपंथी विचारधारा मूलनिवासियों की विचारधारा कदापि नहीं थी और ना होगी बाबा साहेब ने इस विचारधारा को सिरे से ख़ारिज किया है ,और जो मूलनिवासी इस विचारधारा से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं उनको ये साइड इफ़ेक्ट का तो सामना करना ही होगा , क्योंकि भारत की वामपंथी विचारधार...See More
18 hours ago · Like · 1
Manoj Kumar beshak aise ngo chhap individualistic aur araajak elements ka bahishkar hona chahiye..
18 hours ago via mobile · Like
Sharwan Meena hame vishwash h aap par...
18 hours ago via mobile · Like
Deepak Rajan Sharwan Meena ji
Palash Biswas आदरणीया अनिता जी,यह जो गृहयुद्ध स्त्री अस्मिता और धर्मनिरपे&ता के बीज छिड़ गया है,उसकी आग दावानल की तरह हम सबको झुलसाकर रख देंगी।आपकी भूमिका के बारे में साफ हैं हम लोग।िसके बावजूद आरोप आप पर भी लगाये जा रहे हैं।भाषा का संयम सभी प&ों की ओर से तोड़...See More
15 hours ago · Like · 2
Palash Biswas आज रात मैंने बहुत दिनों बाद समयांतर के संपादक पंकज बिष्ट से बात की है।आनंद स्वरुप शर्मा जी से बात हुई नहीं है।हम लोग तो सोशल मीडिया को जनसरोकार के मुद्दों का वैकल्पिक मंच बना रहे थे।अब वह गंगाघाट पर बनारस का खुल्ल्मखुल्ला होली जलसा बनता जा रहा है...See More
15 hours ago · Like · 2
Palash Biswas और देखिये,लोगों ने तो ाप पर भी आरोप लगाने शुरु कर दिये हैं।
Palash Biswas क्या हमारी ऊर्जी,प्रतिभा,प्रतिबद्धता अब बस इस काम की रह गयी है कि अबाध कारपोरेट राज के लिए हम जो पहले से खंड विखंड हैं,साथ खड़े ही न हो सकें,सब मिलकर आपसी जूतम पैजार से ऎसी भयानक स्थितिका ही निर्माण करते रहेंगे,इस पर हम सबको सोचना चाहिए।
15 hours ago · Like · 1
Palash Biswas आज अगर अनिता जी के खिलाफ यह अभियान है तो कल हमारे ौर दूसरों के खिलाफ भी यही घमासान होगा।
Palash Biswas तो क्या हम लोग अबसे जन सरोकार के मुद्दे हाशिये पर ऱककर भारतीयजनता के वध अभियान का मददगार बनते हुए एक दूसरे को ही लहूलुहान करते रहेंगे,इस पर भी सौचें सारे लोग।
Palash Biswas जगदीश्वर जी का लिखा हमें प्रासंगिक लगा और मैंने उस पर लंबी प्रतिक्रिया भी देदी। जनसरोकार के मुद्दे पर तमाम समर्थ लोग खामोश हैं लेकिन दूसरों पर हमला करने से कोई चूक नहीं रहा है।
Palash Biswas यही है केकड़ाचरित्र हिंदी समाज।
14 hours ago · Like · 2
Palash Biswas संवाद के लिए कोई तैयार नहीं।हर कोई अलग अलग खाप है।
14 hours ago · Like · 1
Palash Biswas एकतरफा फतवे जारी हो रहे हैं।
Palash Biswas यही है तो दिल का सारा गुबार निकालकर जमकर गालियों की अंता&री ही हो जाये।लोक में तो गाली गीतों का भी रिवाज है।
14 hours ago · Like · 2
Palash Biswas इससे अगर मस्याएं सुलझती हो तो बस,अब यही कर लिया जाये।
Samar Anarya खुर्शीद की लाश ठंडी पड़ने के पहले ही कर दी गयी यह पोस्ट भी शेयर करिये Anita Bharti जी. इसमें आपका बहुतेरा सच दिख रहा है. निर्ममता के पार जाने वाला सच, मौत का मजाक उड़ाने वाला सच. आपके मुताबिक़ इसी पोस्ट पर मैंने आपत्तिजनक टिप्पणी की थी न. आपके बिक जाने वाली। बताइये लोगों को कि इसी पोस्ट पर क्यों की.
आज फेसबुक पर चल रही तमाम चर्चाओं से लग रहा है कि "स्त्री उत्पीडन" से ज्यादा बडा मुद्दा "धर्मनिरपेक्षता" है।
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10 hours ago · Like · 2
Surya Narayan Anita ji,ek lekhika aur samajik andolan ke pratinidhi ke roop me aapki pahachan adhik badi hai. Aap Anarya ki baat ko itana tavajjo kyon de rahi hain!ham sab aapke maan-samman aur stree-jati ke maan-samman ke sath hain.
10 hours ago · Like · 2
Nilambuj Jnu आदरणीय अनीता जी,
मैं 2004 से समर ( या अविनाश पांडे समर) को जानता हूँ। आपसे भी कुछ सभा-संगोष्ठी और धरनों पर मेरी मुलाक़ात है। विभूति नारायण राय के खिलाफ हम सब ने धरना दिया था शास्त्री भवन के आस पास, आप भूली न होंगी। सबसे पहले जातीय आग्रही लोगों को बता द...See More
10 hours ago · Like · 3
रजनीश के झा सामंती ब्राह्मणवादी कभी सामाजिक सरोकारी और वामपंथी नहीं होते हैं और ये चुलबुल पाण्डेय छंटा हुआ सामंती है, मुगालते में रखना और रहना शातिरों की कारिस्तानी होती है, अनीता जी आहत होने या या विचलन की आवश्यकता नहीं क्यूंकि शब्द भेद खोलते हैं, और अनीता भारती की पहचान वही शब्द हैं जो अविनाश पाण्डेय की भी पहचान करा रहे हैं
7 hours ago · Edited · Like · 1
Prashant Wanjare यह ऐसे लोगों की साजिश भी हो सकती हो सकती है।
Palash Biswas http://antahasthal.blogspot.in/2013/12/blog-post_5097.html
अंतःस्थल - कविताभूमि: जनसरोकार गये तेल लेने,पहले आपस में फरिया लें! आप हम जिन मुद्दों को लेकर.
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आप हम जिन मुद्दों को लेकर ,जो हक हकूक की लड़ाई इतने वर्षों से लड़ते रहे हैं,कार...See More
Mazkoor Alam comrade hona aur kahne me fark hota hai...
Madan Kashyap aise log hi left ke sabse bade dushman hain
about an hour ago · Like · 2
Pradyumna Yadav " पडरू " का व्यवहार निंदनीय है।
about an hour ago via mobile · Like
Prem Chand Gandhi एक सम्मानित लेखिका के बारे में इस तरह की ग़ैर जिम्मेदार बातें कहना, वामपंथ नहीं सिखाता... मदन कश्यप जी सही कह रहे हैं।
19 minutes ago · Like · 1
आडवाणी की तरह मोदी कभी नहीं बनेंगे प्रधानमंत्री : लालू..................
नई दिल्ली: चारा घोटाला मामले में हाल में जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद दिल्ली पहुंचे राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद ने आज इस बात पर जोर दिया कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को इच्छुक है। कांग्रेस नेतृत्व से मिलने के लिए राजधानी में लालू ने कहा कि दोनों दलों के बीच बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है।
उन्होंने कहा, ''हम हमेशा कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं।'' बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राज्य में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यू और भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस और अन्य छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाने को इच्छुक हैं। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए लालू ने कहा कि लाल कृष्ण आडवाणी की तरह मोदी भी कभी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। उनका यह भी कहना था कि बिहार में नीतीश कुमार कोई फैक्टर नहीं हैं।
Like · · Share · about a minute ago ·
Arindam Chaudhuri
Yes, I voted for AAP and proud that I wasn't alone!! Arvind Kejriwal is the real winner!! Finally the end of dynastic rule clearly in sight!!!! And yet, the bigger news is that Narendra Modi is almost surely our next PM and that is such a spectacular news for this country!!!! For the general elections this time, let every Indian come out and vote for BJP, and give them a clear mandate!!! We need Modi as our next PM and Kejriwal as the honest opposition to take keep the balance and be the future alternative!
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Mitron!Mera yah lekh aaj,21.12.13 ke deshbandhu me chhapa hai.
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लोकपाल के साथ जरुरी है डाइवर्सिटी
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एच एल दुसाध
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गत 45 सालों से लोकपाल की राह देख रहे राष्ट्र का सपना पूरा हो गया.15वीं लोकसभा के अंतिम शीतकालीन सत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर प्रावधानों वाला लोकपाल विधेयक राज्यसभा के बाद लोकसभा में भी पलक झपकते पास हो गया.अब इस पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होना बाकी है जो महज एक औपचारिकता है.सद्य पारित लोकपाल विधेयक के परिवर्तित स्वरूप पर संतोष प्रकट करते हुए इसके प्रमुख शिल्पी अन्ना हजारे ने सभी राजनीतिक दलों के प्रति आभार भी प्रकट किया है.इसे लेकर लोकपाल समर्थको में काफी हर्ष है, सिवाय 'आम आदमी पार्टी के.'आप' के नेता अरविन्द केजरीवाल ने इसे जोकपाल बताते हुए कहा है कि इससे चूहा भी पकड़ में नहीं आएगा जबकि उनके गुरु का दावा है कि इससे शेर भी पकड़ में आ जायेगा.
बहरहाल केजरीवाल और उनके साथियों का दावा हो सकता है कि गलत साबित हो जाय,पर इसमें कोई शक नहीं कि सद्य अनुष्ठित विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की दिल्ली में अचंभित करने वाली सफलता ही पिछले 44 सालों में आठ बार संसद में पेश हो चुके इस विधेयक को इस बार आनन फानन में पास करने के लिए राजनीतिक दलों को बाध्य की. इसे पास कराने की उनकी उत्सुकता का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि अतीत में इसके प्रति खासा बेरुखी का भाव प्रदशित करनेवाले कांग्रेस के राहुल गाँधी स्वयं मैदान में कूद पड़े जबकि मुख्य विपक्षी दल भाजपा इसे बिना चर्चा के ही पास कराने के लिए तैयार हो गयी.जिन बहुजनवादी दलों ने 2011 में इसके खिलाफ जमीन-आसमान एक कर दिया था ,वे भी इसका आसानी से समर्थन कर दिए.उनकी बेचारगी लोजपा के राम विलास पासवान और आरजेडी के राम कृपाल यादव के इन शब्दों में महसूस की जा सकती है-'हम मन से इसका समर्थन नहीं कर रहे हैं बल्कि इसलिए कर रहे हैं कि यदि इसका विरोध करेंगे तो जनता हमको बेईमान समझेगी'.
लोकसभा में इस विधेयक के पास होने के बाद भ्रष्टाचार के खात्मे में इसकी प्रभावकारिता का आकलन करते हुए हजारे ने कहा कि इससे भ्रष्टाचार में 40-50 प्रतिशत कमी आयेगी.ढेरों बुद्धिजीवी भी टीवी चैनलों पर उनकी ही बात का समर्थन करते नज़र आये.वैसे तो मेरा 2011 से ही मानना रहा है कि जनलोकपाल का लक्ष्य भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं बहुजन प्रधान राजनीति पर सुपर कंट्रोल स्थापित करना मात्र है.किन्तु आज के ऐतिहासिक दिन मैं भी लोकपालवादियों की ख़ुशी में शिरकत करते हुए यह मान लेता हूँ कि इससे भ्रष्टाचार में 40-50 प्रतिशत कमी आएगी.अब सवाल पैदा होता है और क्या किया जाय जिससे यह प्रतिशत बढ़कर 80-90 तक पहुँच जाये एवं 'भ्रष्टाचार-मुक्त भारत'का सपना साकार हो सकेइसके लिए मैं उस बात की ओर राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ जो लोकपालवादियों से अगोचर रह गयी या जिसकी उन्होंने इच्छाकृत रूप से अनदेखी कर दी.
प्रबुद्ध पाठको ने गौर किया होगा कि विगत वर्षों से भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए अन्ना-केजरीवाल और उनके समर्थक बुद्धिजीवियों का सारा जोर जनलोकपाल नामक कठोर कानून बनवाने पर रहा ,जो अब बनने जा रहा है.किन्तु उन्होंने भ्रष्टाचार के पृष्ठ में क्रियाशील धन-तृष्णा जैसे कारक की लगभग पूरी तरह उपेक्षा कर दी.अगर किया भी तो मात्र नेताओं और नौकरशाहों तक सीमित रखा.किन्तु जो धन-तृष्णा भ्रष्टाचार की जड़ है उसका संपर्क आकांक्षा-स्तर (लेवल ऑफ़ एस्पिरेशन)से है.और आकांक्षा-स्तर का नाभि=नाल का सम्बन्ध सामाजिक विपन्नता(सोशल-डिस्एडवांटेजेज) से है.विपन्नता और आकांक्षा-स्तर के परस्पर संबंधों का अध्ययन करते हुए दुनिया के तमाम समाज मनोविज्ञानियों ने साबित कर दिया है कि विपन्न लोगों का आकांक्षा –स्तर निम्न हुआ करता है.ऐसे लोग थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं.इनमे उपलब्धि –अभिप्रेरणा (एचीवमेंट –मोटिवेशन) भी निम्न हुआ करती है.विपरीत स्थित सामाजिक-सम्पन्नता वाले समूहों की होती है.ऐसे समूहों में आकांक्षा –स्तर और उपलब्धि-अभिप्रेरणा उच्च हुआ करती है.इनमें भी उच्च वर्गीय की तुलना में मध्यम वर्गीय लोगों की उपलब्धि –अभिप्रेरणा उच्चतम हुआ करती है.
उपरोक्त सामाजिक मनोविज्ञान के आईने में भारत के विभिन्न सामाजिक समूहों का अध्ययन करने पर पाते हैं कि वर्ण/जाति –व्यवस्था के अर्थशास्त्र के परिणतिस्वरूप दलित-पिछड़े व उनसे धर्मान्तरित तबके सामाजिक रूप से विपन्न श्रेणी में हैं.इस कारण इनका आकांक्षा स्तर और उपलब्धि –अभिप्रेरणा निम्न स्तर की है जिससे वे थोड़े से में संतुष्ट रहते हैं.यही कारण है इनकी धन-तृष्णा कम है जिससे बड़े पैमाने के घोटालों में इनकी संलिप्तता अपवाद रूप से दिखाई पड़ती है.वर्ण-व्यवस्थागत कारणों से सवर्ण वर्ग की प्रस्थिति सामाजिक –संपन्न समूह के रूप में है.इसलिए इनमें आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि अभिप्रेरणा उच्च है.इस कारण ही राष्ट्र को हिलाकर रख देने वाले बड़े-बड़े घोटालों में 80-90 प्रतिशत संलिप्तता सवर्णों की रहती है.सवर्णों के बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के पीछे एक और मनोवैज्ञानिक कारण है,सुरक्षाबोध .भ्रष्टाचारी किसी भी तबके का क्यों न हो,पकडे जाने का भय बराबर उनमें क्रियाशील रहता है.किन्तु भारत के संपन्न तबके के भ्रष्टाचारी कुछ हद तक यह सोच कर आश्वस्त रहते हैं कि न्यायपालिका,पुलिस-प्रशासन इत्यादि में छाये उनके सजाति उन्हें बचा लेंगे.यह सुरक्षाबोध उन्हें काफी हद तक घोटाले के लिए साहस पैदा करता है.उनके विपरीत शासन-प्रशासन में सवर्णों की जबरदस्त उपस्थिति बहुजनों के शिराओं में निरंतर भय का संचार करती रहती है,जिससे वे बड़े-बड़े घोटाले करने का जल्दी साहस नहीं जुटा पाते..
उपरोक्त सामाजिक मनोविज्ञानं के आईने में राष्ट्र को यह अप्रिय सचाई कबूल करनी होगी कि सवर्ण वर्ग ही देश का प्रधान भ्रष्टाचारी वर्ग है.ऐसे में अगर हम चिल्लर टाइप के भ्रष्टाचार से दृष्टि हटाकर हजारों-हजार करोड़ के घोटालों से राष्ट्र को निजात दिलाना चाहते हैं तो उसका सर्वोत्तम उपाय शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-धार्मिक) में सामाजिक और लैंगिक विविधता का प्रतिबिम्बन ही है.विविधता अर्थात डाइवर्सिटी सिद्धांत लागू होने पर तमाम अवसरों का बंटवारा सवर्ण,ओबीसी,एससी/एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों के संख्यानुपात में होगा..इससे भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेवार जिन सवर्णों का उद्योग-व्यापार ,मीडिया,मिलिट्री के उच्च पदों,न्यायपालिका,मंत्रालयों के सचिव इत्यादि पदों पर 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा है और जहां का भ्रष्टाचार ही राष्ट्र के समक्ष बड़ी समस्या है,वहां वे 7-8 प्रतिशत पर सिमटने के लिए बाध्य होंगे'कारण इन क्षेत्रों में लैंगिक विविधता लागू होने पर उनके कुल 15 प्रतिशत का आधा हिस्सा उनकी महिलाओं को चला जायेगा जिनका ऐतिहासिक कारणों से आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि –अभिप्रेरणा बहुजनों जैसी ही है.ऐसे में सवर्ण जब डाइवर्सिटी के रास्ते 7-8 प्रतिशत अवसरों पर सिमटेंगे तब भ्रष्टाचार में निश्चय ही मात्रात्मक रूप से कमी आएगी.क्या धन-तृष्णा से जुड़े सामाजिक मनोविज्ञानं को दृष्टिगत रखते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ विलाप करने वाले लोग हर क्षेत्र में डाइवर्सिटी लागू करवाने के लिए सामने आएंगे?लोकपाल के साथ डाइवर्सिटी लागू होने पर भ्रष्टाचार में कमी की सम्भावना 40-50 प्रतिशत से बढ़कर 80-90 प्रतिशत पर तो पहुंचेगी ही,राष्ट्र उस आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी की समस्या से भी मुक्त हो जायेगा जो मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या है एवं जिसके सामने भ्रष्टाचार एक पिद्दी सा मुद्दा है.मैं जानता हूँ मेरा यह सुझाव केजरीवाल और उनके भक्त बुद्धिजीवियों को रास नहीं आएगा क्योंकि उनका लक्ष्य भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं, कुछ और है.पर,क्या.राहुल गाँधी जैसे वे लोग डाइवर्सिटी के लिए सर्वशक्ति लगायेंगे जो यह मानते हैं कि भ्रष्टाचार रोकने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है ?
दिनांक:19दिसंबर,2013. (लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं). . .
Status Update
By चन्द्रशेखर करगेती
उत्तराखण्ड का समाज कल्याण विभाग, जहाँ फाईल दौडती नहीं उडती है !
कुछ महीने पहले ही शासन में तैनात एक अनुभाग अधिकारी ने सीधे मंत्री से फाइल पूरी करा ली तो राज्य सचिवालय में भूचाल आ गया । मंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक सब अनुभाग अधिकारी पर सवार हो गये और उन पर निलंबन की गाज गिरा दी गई । मगर ठीक इसी तरह के एक मामले में समीक्षा अधिकारी फाइल पूरी करा ले जाते हैं और कहीं एक पत्ता तक नहीं हिलता । आलम यह है कि विभाग से लेकर शासन तक के सारे आलाधिकारी या तो बुत बने हैं या फिर उन्होंने जानबूझकर आंखों पर पट्टी चढ़ा रखी है ।
ये कहानी भी समाज कल्याण विभाग से ही जुड़ी है । ये महकमे के ही एक चहेते अफसर को महिला कल्याण विभाग में प्रभारी मुख्य परिवीक्षा अधिकारी का अतिरिक्त कार्यभार दिये जाने से जुड़ा है । विभाग में जनाब संयुक्त निदेशक के पद पर तैनात हैं। मगर उनका जी सिर्फ एक ओहदे से नहीं भर रहा है । बताया तो ये जा रहा है कि तमाम नियम-कायदों को ताक पर रख कर जिस दिन से वह शिक्षक से संयुक्त निदेशक के ओहदे पर प्रतिनियुक्त हुये हैं, महकमे के तमाम अफसरों ने उनके पसीने छुटा रखे हैं । सूत्रों की मानें तो कुछ अफसर प्रतिनियुक्ति के खिलाफ अदालत तक पहुंचे तो शासन से लेकर मंत्री तक के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ गईं । आनन-फानन में चहेते अफसर के नये पुनर्वास की फाइल तैयार हुई और ये फाइल दौड़ी नहीं बल्कि ऐसी उड़ी कि विभाग के कारिंदे भी दांतों तले अंगुली दबा गए । चहेते अफसर को एडिशनल चार्ज दिलाने के लिये विभाग के एक छुटभैया अफसर ने पूरी ताकत झोंक दी । उनसे दो हाथ आगे शासन में तैनात समीक्षा अधिकारी निकले । समीक्षा अधिकारी को भी फाइल कराने की इतनी बेताबी थी कि अनुभाग अधिकारी, संयुक्त सचिव, अपर सचिव की गैर मौजूदगी में फाइल सीधे प्रमुख सचिव एस राजू तक पहुंचा दी ।
सूचना के अधिकार से प्राप्त पत्रावलियां समीक्षा अधिकारी की इस गुस्ताखी का भेद खोलती है । पत्रावली में समीक्षा अधिकारी की यह टिप्पणी एसओ अवकाश पर, संयुक्त सचिव एवं अपर सचिव मुख्यालय से बाहर, पत्रावली सीधे प्रमुख सचिव को प्रस्तुत यह भेद खोलती है कि इंट्रेस्ट वाली फाइलों में विभाग और शासन में बैठे अफसरों के बीच कितने गजब का तालमेल है ?
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि समाज कल्याण विभाग में करोड़ों रुपये के बजट को ठिकाने लगाने का जो खेल होता आया है, उसकी हिस्सेदारी कितने आगे और कहां-कहां तक है ?
सूत्र बताते है कि शासन से जिस अफसर की फाइल को ओके कराया गया, इसके पीछे भी उन्हीं छुटभैया अफसर का हाथ है जिन्होंने पूरे विभाग को अपने मोहपाश में जकड़ रखा है । इन्हीं अफसर ने शासन में बैठे अफसरों को अपने प्रभाव से मैनेज किया और आनन-फानन में फाइल ओके कराई । सवाल यह है कि इस अफसर की उक्त फाइल ओके कराने में ज्यादा दिलचस्पी क्यों थी ? बताते हैं कि शासन में जिस अफसर को मुख्य परिवीक्षा अधिकारी का अतिरिक्त प्रभार देने की फाइल कराई गई, वो समाज कल्याण विभाग में संयुक्त निदेशक हैं । हरिद्वार में हुये छात्रवृत्ति घोटाले की जांच इसी संयुक्त निदेशक के पास है । जांच के घेरे में छुटभैया अफसर फंसे हैं । ऐसे हालातों में सारे खेल से पर्दा उठ जाता है ।
साभार : दैनिक जनवाणी
भारतविरोधी भारतीय
December 21, 2013 at 9:47pm
राष्ट्रहित आणि स्वहित असा प्रश्न जेव्हा निर्माण होतो तेव्हा खरा देशभक्त स्वत:चे हित बाजूला ठेऊन राष्ट्राच्या हिताला प्राधान्य देत असतो, असे इतिहासातील अनेक उदाहरणांवरुन आपल्याला दिसून येईल. भारत नावाच्या राष्ट्राच्या जडणघडणीतील अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ती असलेल्या डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनी 13 डिसेंबर 1946 रोजीपंडित जवाहरलाल नेहरु यांनी देशातील राजेशाही संस्थानाचे अस्तित्व कायम ठेऊन भारताचे राष्ट्र तयार करावे या राष्ट्रनिर्मितीच्या संकल्पनेला विरोध करताना सांगितले होते की,`मी हे जाणतो की,आज आपण राजकीय,आर्थिक आणि सामजिकदृष्टया विभाजीत आहोत. एकमेकांशी संघर्षरत असलेल्या प्रतिस्पर्धी गटात आपण विभागलो गेलो आहोत. मी ही अशाच एका प्रतिस्पर्धी गटाचा नेता आहे.परंतु, हे सर्व असूनही विश्वातील कोणत्याही शक्तीला या देशाच्या एकात्मतेच्या आड मी येऊ देणार नाही.' अन्यत्र एके ठिकाणी ते म्हणतात, `मी पथमत: भारतीय आहे आणि अंतिमत:सुद्धा भारतीयच आहे.' इतके प्रखर राष्ट्रभक्त असलेल्या डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांना आपल्या जीवनाचे अधिष्ठान मानणाऱया संपूर्ण भारतीयांची हिच भावना आहे हे, डॉ. देवयानी खोबरागडे यांना अमेरिकेने दिलेल्या अपमानास्पद वागणुकी विरोधात संपूर्ण देश ज्यापमाणे एकवटला त्यावरुन सिद्ध झाले आहे. मात्र, तरीही काही पोटार्थी पत्रकार आणि सोशल मिडीयावर चहाटळकी करणारे बुणगे मात्र याला अपवाद ठरले आहेत.ज्यांना देशभक्ती, आंतरराष्ट्रीय करार, आंतरराष्ट्रीय संकेत आणि भू-राजनैतिक घडामोडींचे ज्ञान नाही अशा चिल्लरांचे असे वर्तन एकवेळा समजून घेता येईल.परंतु, या चिल्लरांच्या रांगेत जेव्हा लोकसत्ता, सकाळ, लोकमत यासारख्या धनकुबेर वर्तमानपत्रात कार्यरत असलेले संपादक व पत्रकार सामील होतात तेव्हा त्यांचे वर्गीकरण `भारतविरोधी भारतीय' या प्रजातीमध्ये करणे क्रमपाप्त ठरते.
डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्यावर अमेरिकन न्याय खात्याच्या दक्षिण न्यूयॉर्क विभागाचे वकील प्रीतेंदरसिंग भरारा यांनी, घरकामासाठी भारतातून आणलेल्या गृहसेविकेला अमेरिकन किमान वेतन कायद्यानुसार ठरविलेल्या वेतनापेक्षा कमी वेतन दिल्याचा आणि तिला अमेरिकेत आणण्यासाठी व्हिसा मिळावा म्हणून खोटी कागदपत्रे तयार केल्याचा आरोप ठेवला आहे. डॉ. देवयानी यांनी आपल्यावरील आरोप न्यायालयासमोर अमान्य केल्याने त्यांना 2 लाख50 हजार अमेरिकन डॉलर म्हणजेच सुमारे दीड कोटी रुपये इतक्या रक्कमेच्या कागदोपत्री हमीवर जामीन देऊन मुक्त करण्यात आले आहे. त्यांच्यावरील हे आरोप खरे आहेत अथवा खोटे हा न्यायालयीन प्रकियेचा भाग आहे. त्यामुळे यावर कोणतेही भाष्य करणे उचित होणार नाही.मात्र, या आरोपांसाठी त्यांच्याविरुद्ध गुन्हेगारी स्वरुपाची कारवाई करुन त्यांना त्यांच्या मुलींच्या शाळेच्या पुढे भररस्त्यात अटक करण्यात आली. अटकेनंतर त्यांची विवस्त्र करुन अंगझडती घेण्यात आली.सराईत गुन्हेगारापमाणे त्यांची कॅव्हिटी टेस्ट करुन डिएनए स्वॅबिंग्स घेण्यात आल्या. त्यांना हातकड्या घालून न्यायालयात उभे करण्यात आले. ही बाब केवळ डॉ.देवयानी यांचीच नव्हे तर संपूर्ण भारताची मानखंडणा करणारी आहे. भारत सरकारने, देशातील सर्व राजकीय पक्षांनी, विविध संस्था संघटनांनी अमेरिकेचा निषेध केला आहे तो याच मुद्यावर! मात्र अमेरिकेच्या चरणाला शेंडी टांगून असलेल्या काही नतद्रष्टांनी भारतीय अस्मितेची मानखंडणा करणाऱया या घृणास्पद घटनेची निंदा करण्याऐवजी गैरलागू मुद्दे उपस्थित करुन आपल्या कोत्या मनोवृत्तीचे दर्शन घडविले आहे.
हा तर भारतविरोधी कट
डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्या अटकेचे प्रकरण पथमदर्शनी दिसते तेवढे साधे आणि सरळ नाही. तर हा एका भयंकर भारतविरोधी कटाचा भाग आहे हे आपण समजून घेतले पाहिजे.मोलकरणीला कमी वेतन देण्याची प्रकरणे यापूर्वीही अमेरिकेत घडली आहेत. 2011 साली अमेरिकेत भारताचे महावाणिज्य दूत असलेले प्रभू दयाल यांची मोलकरीण संतोष भारद्वाज हिने प्रभू दयाल आणि त्यांच्या कुटूंबियांवर वेतन न देता काम करवून घेतल्याचा, बळजबरीने डांबून ठेवल्याचा आणि तिचे लैंगिक शोषण केल्याचा आरोप केला होता. मात्र, या आरोपावरुन प्रभू दयाल यांच्याविरुद्ध अमेरिकन न्याय खात्याने फौजदारी स्वरुपाचा गुन्हा नोंदविला नव्हता.हे प्रकरण दिवाणी स्वरुपाचे आहे म्हणून संतोष भारद्वाज हिने प्रभू दयाल यांच्यावर न्यायालयात नुकसान भरपाईसाठी खटला दाखल करावा अशी भूमिका त्यावेळी घेण्यात आली होती. त्यानंतर 2012 मध्ये अमेरिकन वाणिज्य दूतावासात कार्यरत असलेल्या नीना मल्होत्रा या उच्चपदस्थ महिला अधिकाऱयाची गृहसेविका शांती गुरंग हिनेही असेच आरोप केले. त्यावेळी अमेरिकन न्याय खात्याने फौजदारी स्वरुपाची कारवाई केली नव्हती. मॉरिशसचे उच्चायुक्त सोमदत्त सोबोरुन यांनी आपल्या मोलकरणीला कमी पगार दिल्याच्या कारणास्तव त्यांच्याविरुद्ध 2009 मध्ये दिवाणी दावा दाखल करण्यात आला होता. यामध्ये त्यांना 5 हजार डॉलरचा दंड व मोलकरणीला 25 हजार डॉलरची भरपाई देण्याचे आदेश अमेरिकन न्यायालयाने दिले. काही महिन्यांपूर्वीच रशियन दूतावासातील 49 अधिकाऱयांविरुद्ध वैद्यकीय मदत व सार्वजनिक आरोग्य निधीमध्ये अमेरिकन कायद्याचा भंग केल्याच्या आरोपाखाली फौजदारी कारवाई करण्यात आली. अमेरिकन कायद्याचा विविध देशांच्या दूतावासीय अधिकाऱयांकडून भंग केल्याबाबतची कितीतरी पकरणे यापूर्वी घडलेली आहेत.परंतु यापैकी कोणालाही अटक करुन बेड्या घालण्याची व त्यांना विवस्त्र करुन झडती घेण्याची कारवाई अमेरिकन न्याय खात्याने केलेली नव्हती.हे पाहता डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्याविरुद्ध अमेरिकन न्यायखात्याने केलेली कारवाई म्हणजे काहीतरी विशिष्ट हेतू ठेऊन केलेला कट आहे असा जो आरोप भारताने केला आहे त्यात निश्चितच तथ्य दिसून येते.
रिचर्डस् कुटूंबिय अमेरिकेचे हेर?
डॉ. देवयानी खोबरागडे यांची गृहसेविका संगीता रिचर्डस् आणि अमेरिकन न्यायखाते व परराष्ट्र व्यवहार खाते यांच्यातील व्यवहाराची सखोल तपासणी सरकारने केल्यास यामागील राष्ट्रविघातक कारवाया उघडकीस येण्याची मोठी शक्यता आहे. डॉ. देवयानी यांच्यासोबत अमेरिकेत गेल्यानंतर सुरुवातीच्या पाच महिन्यात संगीता रिचर्डस् हिने देवयानीचा व तिच्या मुलांचा विश्वास संपादन केला. ती स्थानिक चर्चच्या कार्यक्रमामध्ये नियमितपणे सहभागी होत असे.यातूनच मे 2013 मध्ये तीने स्थानिक चर्च संचालीत एका उपक्रमामध्ये अर्धवेळ काम करण्याची परवानगी डॉ. देवयानी यांच्याकडे मागितली. मात्र, डॉ. देवयानीने असे करणे बेकायदेशीर आहे असे सांगून तिला यासाठी परवानगी नाकारली.यानंतर संगीता 23 जून 2013 रोजी काहीही न सांगता घरातून निघून गेली.याबाबतची माहिती दुसऱया दिवशी भारतीय दूतावासाला देण्यात आली. त्याचपमाणे न्यूयॉर्क पोलिसांकडे संगीता रिचर्डस् हरविल्याची तकार करण्यात आली. मात्र, संगीता रिचर्डस् प्रौढ व्यक्ती असल्याने तिच्या हरविल्याची तक्रार तिच्या कुटूंबियाने करणे आवश्यक आहे असे सांगून न्यूयॉर्क पोलिसांनी ती तक्रार नोंदवून घेण्यास नकार दिला.यामुळे डॉ. देवयानी हिने 25 जून रोजी न्यूयॉर्क पोलिसांना लेखी तक्रार पाठविली.याबाबतची प्राथमिक चौकशी करुन न्यूयॉर्क पोलिसांनी संगीता रिचर्डस् हरविल्याची रितसर तक्रार त्याचदिवशी नोंदवून घेतली.पण या तक्रारीच्या अनुषंगाने कोणताही तपास केला नाही. 1 जुलै रोजी देवयानीला बेकायदा स्थलांतरीतासाठी काम करणाऱया एका संस्थेचे नाव सांगून एका अज्ञात व्यक्तीने दूरध्वनी केला.या व्यक्तीने देवयानीकडे दरदिवशी 19 तास काम केल्याबाबतचे वेतन देऊन संगीता रिचर्डस् हिला सर्वसाधारण व्हिसा मिळवून देण्यासाठी सहाय्य करण्याची मागणी केली. अन्यथा कायदेशीर कारवाई करण्याची धमकी दिली. याबाबतची लिखित तक्रार डॉ. देवयानीहिने भारताच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याला त्याचपमाणे न्यूयॉर्क पोलिसांना केली. दिनांक5 जुलै रोजी भारतातील अमेरिकन दूतावासाचे संबंधित अधिकारी मायकेल फिलीप्स् यांच्याकडे भारताच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याने संपूर्ण माहिती देवून संगीता रिचर्डस् हिचा ठावठिकाणा शोधून काढण्यासाठी अमेरिकन परराष्ट्र व्यवहार खात्याने मदत करावी असे पत्र त्यांना देण्यात आले. या पत्रावर केलेल्या कारवाईसंबंधाने भारताच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याने दोन वेळा पत्र पाठवून माहिती मागितली. परंतु अमेरिकेच्या परराष्ट्र व्यवहार खात्याने त्याचपमाणे न्यूयॉर्क पोलीस विभागाने याबाबत काहीही माहिती भारत सरकारला दिली नाही.त्यानंतर 8 जुलै रोजी बेकायदा स्थलांतरीतासाठी काम करणाऱया एका वकीलाच्या कार्यालयात डॉ. देवयानी, दूतावासातील तिचे दोन सहकारी, संगीता रिचर्डस् व तिचा वकील यांच्यात बैठक झाली.या बैठकीत संगीताने 10 हजार डॉलर व अमेरिकेत वास्तव्य करण्यासाठी कायमस्वरुपी व्हिसा मिळवून देण्याची मागणी केली. डॉ.देवयानी हिने 10 हजार डॉलर देण्याचे मान्य केले. परंतु, अमेरिकन व्हिसा मिळवून देण्याची बाब आपल्या आवाक्याबाहेर असल्याचे सांगितले.या बैठकीच्या लिखित वृत्तांतांसह डॉ. देवयानीने याबाबतची तकार न्यूयॉर्क पोलिसांकडे तसेच दिल्ली पोलिसांकडे केली.यानंतर संगीताचा पती फिलीप रिर्चडस् याने देवयानी व भारत सरकारविरुद्ध न्यायालयात याचिका दाखल केली, परंतु केवळ चारच दिवसात ही याचिका मागे घेतली. त्यानंतर भारतीय परराष्ट्र खाते व अमेरिकन परराष्ट्र खाते यांच्यामध्ये अनेकवेळा पत्रव्यवहार झाला. परंतु, अमेरिकेने अथवा न्यूयॉर्क पोलिसांनी या पत्रव्यवहारास उत्तर दिले नाही. यामुळे डॉ. देवयानी हिने दिल्ली उच्च न्यायालयात याचिका दाखल केली. न्यायालयाने यावर अंतरिम आदेश देवून संगीता रिचर्डस् व तीचा पती यांना डॉ. देवयानी हिच्याविरुद्ध भारताबाहेरील कोणत्याही न्यायालयात तकार करण्यास अथवा दाद मागण्यास तात्पुरती स्थगिती दिली. दिल्लीतील महानगर दंडाधिकाऱयांनी संगीता रिचर्डस् हिच्याविरुद्ध अटकेचे आदेश 19 नोव्हेंबर 2013 रोजी जारी केले. भारत सरकारने या आदेशाची प्रत 6 डिसेंबर 2013 रोजी भारतातील अमेरिकेच्या दूतावासाला, अमेरिकेच्या गृहखात्याला तसेच न्यूयॉर्क पोलिसांना देवून संगीता रिचर्डस् हिला शोधून भारताच्या हवाली करण्याची विनंती केली.मात्र, यापैकी कोणतीही विनंती मान्य न करता अमेरिकेने 12 डिसेंबर रोजी डॉ. देवयानी यांना अटक केली.त्यापूर्वी 10 डिसेंबर 2012 रोजी संगीता रिचर्डस् हिचा पती व मुलांना अमेरिकन सरकारने स्वत:च्या खर्चाने गुप्तपणे अमेरिकेत आणले. हा सर्व घटनाक्रम पाहता यामागे मोठ्या कटाची शक्यता भारत सरकारने व्यक्त केली आहे. संगीता रिचर्डस् हिचा पती फिलीप हा अमेरिकन अधिकाऱयासाठी ड्रायव्हर म्हणून काम करीत होता. सासरा भारतातील अमेरिकन दूतावासामध्ये खाजगी कर्मचारी म्हणून कार्यरत आहे. तिची सासू अमेरिकन दूतावासातील अधिकाऱयाकडे मोलकरणीचे काम करीत होती. ही वस्तुस्थिती आता उघड झाली आहे. यामुळे संगीता रिचर्डस् कुटूंब अमेरिकेसाठी हेरगिरी करीत होते किंवा काय या दिशेने तपास होण्याचीआवश्यकता भारतीय परराष्ट्र व्यवहार खात्याने व्यक्त केली आहे.वरील सर्व वस्तुस्थिती पाहिल्यास अमेरिकेने भारतातील कायद्यांना, भारतीय न्यायव्यवस्थेला त्याचप्रमाणे भारतीय प्रशासकीय पद्धतीला कस्पटासमान लेखले आहे. एखाद्या देशाच्या नागरिकावर सुरु असलेली कायदेशीर कारवाई त्याच्यावर अन्याय करणारी आहे हे परस्पर ठरवून त्या व्यक्तीला बेकायदेशीरपणे देशाबाहेर घेऊन जाणे हा त्या देशाविरुद्ध केलेला गुन्हा आहे. यासाठी फिलीप कुटूंबियांना व्हिसा देणारे अमेरिकन वकीलातीमधील अधिकारी तसेच त्यांना सहाय्य करणारे अमेरिकन नागरिक व अमेरिकन अधिकारी भारताविरुद्ध युद्ध पुकारल्याच्या गुह्यास पात्र ठरतात. ही बाजू लक्षात न घेता भारतातील प्रसारमाध्यमांचे संपादक, सोशल साईटस्वर संगीता रिचर्डस् व अमेरिकन अधिकाऱयांची बाजू घेणारे लोक या देशद्रोह्यांचे भारतातील पाठीराखे म्हणून कारवाईस पात्र ठरतात.
राजनैतिक अधिकाऱयांवरील कारवाई आणि व्हिएन्ना करार
डॉ. देवयानी या डिप्लोमॅट संवर्गातील अधिकारी नाहीत तर दूतावासीय अधिकारी आहेत. यामुळे त्यांना 1961 च्या व्हिएन्ना कराराप्रमाणे डिप्लोमॅटीक अधिकाऱयांना परदेशी कायद्यातंर्गत फौजदारी कारवाई करण्यापासून रोखणारे संरक्षणात्मक नियम लागू होत नाहीत.तर 1963 च्या करारापमाणे दूतावासीय कर्मचारी व अधिकारी यांना लागू असलेले मर्यादीत संरक्षणाचे नियम लागू होतात हा पवित्रा अमेरिकन परराष्ट्र खात्याने व न्यायखात्याने घेतला आहे.काही मराठी वृत्तपत्रांच्या संपादकीय उकीरड्यावर भक्ष्य शोधणारे कलमकसाई अमेरिकेच्या या दुटप्पी वागणुकीचा डमरु वाजविण्यात धन्यता मानत आहेत. याबाबतीतील नेमकी वस्तुस्थिती समजून घेतली पाहिजे.या करारातील अनुच्छेद 41(1) नुसार अत्यंत गंभीर स्वरुपाचा गुन्हा असल्याशिवाय दूतावासीय अधिकाऱयांना अटक करु नये अशी स्पष्ट तरतूद आहे. या कराराच्या अनुच्छेद 47 नुसार दूतावासात काम करणाऱया खाजगी कर्मचाऱयांना `वर्क परमिट'ची आवश्यकता नाही असे स्पष्ट करण्यात आले आहे. यामुळे दूतावासातील अधिकाऱयांचे खाजगी काम करणाऱया कर्मचाऱयांना एच-1(बी) व्हिसाऐवजी बी-3 (दूतावासीय कर्मचारी) व्हिसा देण्यात येतो. एच-1 (बी) व्हिसा अंतर्गत आवश्यक असलेली वर्क परमिटची अट लागू नसलेल्या कर्मचाऱयांना अमेरिकेतील किमान वेतन कायदा लागू होत नाही. भारत सरकारने ही बाब अमेरिकेच्या निदर्शनास वेळोवेळी आणून दिली आहे.परंतु अमेरिकन सरकार आंतरराष्ट्रीय कायदे केवळ स्वत:च्या सोयीप्रमाणे वापरत असते असे अनेकदा दिसून आले आहे. 1980 मध्ये निकारागुआ देशातील आंतकवाद्यांना शस्त्रपुरवठा केल्याच्या व त्या देशाच्या नाविक बंदरांचा बेकायदेशीर वापर केल्याच्याआरोपाखाली अमेरिकन सरकारवर आंतरराष्ट्रीय न्यायालयात खटला भरण्यात आला होता. न्यायालयाने यामध्ये अमेरिकेला दोषी ठरवून दंडाची व निकारगुआ सरकारला नुकसानभरपाई देण्याची शिक्षा अमेरिकेला सुनावली. मात्र, अमेरिकेने संयुक्त राष्ट्र संघाच्या सुरुक्षा समितीमध्ये हे प्रकरण आणून आपल्याकडे असलेल्या नकाराधिकाराचा वापर करून आंतरराष्ट्रीय न्यायालयाचा निर्णय मानण्यास नकार दिला. अमेरिकन गुप्तचर संस्था सीआयएचा पाकिस्तानातील हेर असलेल्या रेमंड डेव्हिस याने 2011 मध्ये लाहोरमध्ये दोन व्यक्तींचे खून केले. याबाबत त्यास अटक करण्यात आली. मात्र, अमेरिकेने त्याला राजनैतिकअधिकाऱयाचा दर्जा असल्याचा बहाणा करुन पाकिस्तानने त्यास बेकायदेशीररित्या अटक केल्याचा कांगावा केला. शेवटी मृतांच्या नातेवाईकांना नुकसानभरपाईची रक्कम देऊन त्याची सुटका करण्यात आली. अशी असंख्य प्रकरणे सांगता येतील की ज्यामध्ये अमेरिकेने दंडेलशाही करुन आंतरराष्ट्रीय करार व कायद्यांचा आपल्याला फायदेशीर पद्धतीने अर्थ लावला आहे.डॉ. देवयानी खोबरागडे यांना देण्यात आलेली अपमानास्पद वागणूक व मनमानी पद्धतीने केलेली कारवाई यापासून त्यांना संरक्षण देण्याच्या उद्देशाने भारताने त्यांची बदली संयुक्त राष्ट्र संघातील भारताच्या स्थायी मिशनमध्ये केली आहे. यामुळे त्या संपूर्ण राजनैतिक संरक्षणासाठी पात्र ठरतात. हे संरक्षण त्यांना पूर्वलक्षी प्रभावाने लागू होते.परंतु, अमेरिकन अधिकारी याबाबतीतही आडमुठी भूमिका घेत आहेत. परराष्ट्रांच्या राजनैतिक अधिकाऱयांना संरक्षण देण्याबाबतच्या 1961 च्या व्हिएन्ना करारानुसार असे संरक्षण पूर्वलक्षी प्रभावाने लागू करण्याचे स्पष्ट निर्देश आहेत.याबाबत सौदी अरेबियाचे राजकुमार तुर्की बीन अब्दुलअजीज यांचे पूर्वोदाहरण मार्गदर्शक ठरावे. या राजकुमाराने 1982 मध्ये एका इजिप्शियन महिलेला तिच्या इच्छेविरुद्ध आपल्या घरात डांबून ठेवल्याच्या आरोपावरुन मियामी पोलिसांनी त्याच्या घरावर छापा घातला.अब्दुलअजीज यांच्या खाजगी सुरक्षारक्षकांनी पोलिसांसोबत झटापट करुन त्यांना पळवून लावले. अब्दुल अजीज यांनी त्यांच्या नागरी अधिकाराचा भंग केल्याबाबत मियामी परगण्याविरुद्ध न्यायालयात खटला दाखल केला.तर पोलिसांनी अब्दुलअजीज यांच्याविरुद्ध खटला दाखल केला. यानंतर तीन आठवड्यांनी अब्दुलअजीज यांना त्याच्या देशाने संपूर्ण डिप्लोमॅटीक संरक्षण बहाल केले. अमेरिकन परराष्ट्र खात्याने हे असे संरक्षण पूर्वलक्षी प्रभावाने देता येणार नाही अशी भूमिका घेतली. मात्र, न्यायालयाने अमेरिकन परराष्ट्र व्यवहार खात्याचे म्हणणे फेटाळून लावले. एखादा राजनयीक अधिकारी गुन्हा नोंदविण्याच्या वेळी डिप्लोमॅटीक संरक्षणप्राप्त नसेल परंतु त्याचे पद डिप्लोमॅटीक संरक्षण मिळण्याच्या योग्यतेचे असेल तर त्याला पूर्वलक्षी प्रभावाने डिप्लोमॅटीक संरक्षण लागू करता येईल असा निवाडा न्यायालयाने दिला.रेमंड डेव्हिस याच्या प्रकरणात अमेरिकेने याच निवाड्याचा आधार घेऊन त्यास पूर्वलक्षी प्रभावाने राजनैतिक संरक्षण दिले व त्यास खूनाच्या गुह्यातून वाचविले होते हे येथे लक्षात घेतले पाहिजे.डॉ. देवयानी खोबरागडे यांच्यावरील आरोपाच्या अनुषंगाने त्या दोषीठरतील अथवा निर्दोष सुटतील हा न्यायालयाच्या कक्षेतील भाग आहे. परंतु या निमित्ताने निर्माण झालेले प्रश्न अमेरिकेची दुटप्पी भूमिका उघडी पाडणारे आहेत. अमेरिका सद्यस्थितीत भारताचा मित्र आहे,स्ट्रटेजिक पार्टनर आहे अशी कितीही मखलाशी करीत असला तरी अमेरिका भारताचा मित्र कधीच नव्हता.अमेरिकेच्या राजकारणाला नैतिक आणि मानवी चेहरा कधीच नव्हता.दुसरे महायुद्ध समाप्त झाल्याबरोबर ब्रिटनला शस्त्र पुरवठा आणि इतर मदत केल्याबाबतचे अवाढव्य कर्ज ब्रिटनने आताच द्यावे अन्यथा आपण ब्रिटनवर हल्ला करु अशी भूमिका अमेरिकेने त्यावेळी घेतली होती.इराकविरुध्द केलेला हल्ला,लिबीयामध्ये केलेला हस्तक्षेप पाकिस्तानवरील द्रोण हल्ले, अफगाणिस्तानमधील कारवाई अशा अनेक प्रकरणात अमेरिकेने आंतरराष्ट्रीय कायदे व संकेत पायदळी तुडविले आहेत. जगातील करोडो लोकांच्या मृत्यूचे कारण अमेरिका ठरली आहे.अमेरिकेने जी काही आर्थिक संपन्नता प्राप्त केली आहे ती युध्दखोरीतून आणि माणसे मारण्याचा उद्योग करुन प्राप्त केली आहे.यामुळे अमेरिका म्हणजे मानवी हक्कांची अंमलबजावणी करण्यासाठी पृथ्वीतलावर जन्म घेतलेला एकमेव देवदूत आहे असा भ्रम बाळगणे व्यर्थ आहे.
डॉ. देवयानी खोबरागडे यांना भारताच्या प्रतिनिधी अशा व्यापक दृष्टीकोनातून पाहणे आवश्यक आहे. परंतु असा विशाल दृष्टीकोन न ठेवता त्यांना वैयक्तिक जाती-धर्म आणि वर्गविषयक पूर्वग्रह ठेऊन पाहणाऱया आणि अमेरिकेची भलामण करणाऱया दै. सकाळ, दै.लोकसत्ता, दै. लोकमत, महाराष्ट्र टाईम्स इत्यादींसारख्या धनकुबेर वृत्तपत्रात कलम कामाठी म्हणून काम करणाऱया भारतविरोधी भारतीयांच्या प्रजातीमधील लोकांना आम्ही विचारु इच्छितो की, आदर्श घोटाळ्यात सामिल असणाऱया अशोक चव्हाण, जयराज फाटक, प्रदिप व्यास, सीमा व्यास,रामानंद तिवारी, सुभाष लाला, सुरेश जोशी अशा शेकडो भ्रष्टाचारी अधिकाऱयांविरुध्द तुमची भूमिका काय आहे? यांच्या व यांच्यासारख्या असंख्य भ्रष्टाचाऱयांचे पितळ उघडे पाडण्यासाठी तुमची लेखणी का सरसावत नाही? स्वतला निर्भिड आणि विद्वान संपादक म्हणत संपादकीय उकीरडे फुंकणाऱ्या संपादकांनी याची उत्तरे द्यावीत. अशा उकिरडे फुंकणाऱ्यांना आम्ही विचारु इच्छितो की, वृत्तपत्र समुहाच्या नावाने सरकारकडून मिळविलेल्या भुखंडावर एक्सपेस टॉवर्स नावाची गगनचुंबी इमारत उभारुन ती भाड्याने देऊन रामनाथ गोयंका यांनी प्रचंड नफा कमाविला. आता ही इमारत ब्लॉकस्टोन नावाची अमेरिकन कंपनी आणि ज्यामध्ये शरद पवारांची मुलगी सुपिया सुळे हिची गुंतवणुक आहे अशी पंचशील रियालीटी नावाची पुण्यातील कंपनी यांनी नऊशे कोटी रुपयांना 13 नोव्हेंबर 2013 रोजी विकत घेतली आहे. या व्यवहारात काय गोलमाल आहे हे लिहीताना लोकसत्ताकारांच्या लेखणीवर कांडोम चढविला जातो याचे कारण काय ? याची उत्तरे लोकसत्ताकारांनी व अमेरिकेच्या सांडपाण्यावर जगणाऱया बाजारबुणग्यांनी द्यावीत.
Rajubhau Gaikwad, Sanjay Samant, Kamal Babu and 35 others like this.
Sanjay Samant Sadetod Chaprakk.. !!
5 hours ago · Like · 1
Anil Sonawane We must share this article.
5 hours ago · Like · 1
Sanjay Samant List of other illegal flat owners in Adarsh Society.
5 hours ago · Like · 1
Anil Gajbhiye Bharatache paul ya prkarnat dirangaiche disat aahe .dr. Devyani la purn savralshan denyasathi tyanna bhartat aanne jaruri hote .tya evji tyanna Uno madhe posting kele . American power pudhe bharat natmastak jhala tar devyani yanna tethe nyay milane kathin aahe .
4 hours ago via mobile · Like · 1
Kshirsagar Rajendra इंसानियत का पहला उसूल है दूसरे व्यक्ति के प्रति सहानुभूति रखना, अपने वचनों और कर्मों से किसी को तकलीफ ना पहुंचाना लेकिन इस कसौटी पर शायद "देशभक्ति" ही खरी नहीं उतरती. मात्र अपने राजनीतिक हित साधने के लिए इंसानों को ...
Sunil Ghanmode kulkarni joshi asti tar aata paryant jantar matar var mothe aandolan zale aste
4 hours ago via mobile · Like · 3
Sunil Ghanmode eleectonics aani print media ne tila thor rashtabhakt mhanun declare kele asate v tichya sathi bharatratna chi magni keli asti
4 hours ago via mobile · Like · 2
Suraj Nikalje Lajawab khobragade sir
3 hours ago via mobile · Like · 1
M.d. Ramteke लेख माहितीपुर्ण व लिखाण नेहमी प्रमाणे अत्यंत प्रभावी आहे.
संगीताबाईच्या कुटूंबाला सुमळीत वीजा देणा-या अमेरीकन अधिका-यावर 'हेरगिकीस मदत व भारतीयांचे अवैध मार्गाने अमेरीकेत स्मगलींग' असा आरोप ठेवत तुरूंगात डांबणे अशी मुजोरी भारताने करावी.
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3 hours ago via mobile · Edited · Like · 3
Aatish Sakpal Nalayak america.......
3 hours ago via mobile · Like · 1
Sangesh Gangurde lekh atishay tarkshudh lihila ahe manuwadi midiyane bodh gheun desh abhiman thewa
Abhiram Dixit Sunil Khobragade sir Good article .. Liked
2 hours ago · Like · 1
Ashalata Kamble सत्याचा जागर करणारा अग्रलेख.ही इतकी माहिती सर्वसामान्यांना सांगितली जात नाही.दिशाभूल करणाऱ्या वृत्तपत्रांना चांगलीच चपराक आहे ही.दादा, हा लेख हिंदी आणि इंग्लिश भाषेतूनही अजून मोठ्या पातळीवरून प्रसिद्ध होउदे
2 hours ago · Like · 3
Abhiram Dixit हे सर्व खोब्रागडे प्रकरण वाटत त्यापेक्षा जास्त खोल आहे । हा काहीतरी आंतराष्ट्रीय राजकारण हेरगिरी वगैरे संबधातला … मुद्दा असावा । आणि सरळ अटक करता येत नाही म्हणुन अमेरिकेने काहीतरी चापलुसी केलेली असावी असाही एक मतप्रवाह आहे … तिची जात हा मुद्दा दोन्ही ब...See More
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2 hours ago · Like · 2
Sunil Khobragade Dr Abhiram Dixitji yamage amerikeche MV Seaman Guard Ohio ya nawache je jahaj pakadale gele aahe aani tya jahajache Captain Dudnik Valentyn sah 35 ameriki khalashyana atak karnyat aali aahe he prakaran asu shakate asa maza andaj aahe
2 hours ago · Like · 3
Sunil Khobragade Dr Abhiram Dixitji ya jahajawar 35 assault rifles aani 5,724 rounds sapadale hote.je bahudha dakshin bharatatil Islamik Terrorist groupla denyasathi hote jahaj adwun tyawaril khalashana atak kelya nantar dusaryach diwashi jahajachya mukhy engineer ne ...See More
2 hours ago · Edited · Like · 4
Abhiram Dixit Correct Sir, Its an international issue , And US is as always taking biased stands for there own interests. My sorrow is why we are complicating the issue by dragging her cast in. Indian government has taken a good and firm stand. Bravo ! Lets congratulate Government for a good stand after years !
2 hours ago · Like · 2
Suresh Shirsat RIGHT, SIR.
Hard Dee sunil ji, agdi sadetod mandani keli, aaple Bhimanandan.
Sunil Gajakosh As per Daniel Arshack - Attorney for Devyani Khobragade explains about two contracts...
Devyani Khobragade and Sangeeta Richards enter into contract for visa around $9 per hour submitted for visa, and she was paid for few months....See More
Daniel Arshack, attorney for Indian diplomat Devyani Khobragade, says she did not commit visa fraud.
Sunil Gajakosh देवयांनीच्या वकीलांनी केलेले स्पष्टीकरण... यात टाकलेली केस कीती फुसकी आहे... हे त्यांना सांगीतले आहे...
Sunil Gajakosh यामुळे खुप मोठे कारस्थान असल्याची शंका घेण्यास खूप जागा आहे...
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