हिंदुत्व के एकाधिकारवादी वर्ण वर्चस्वी
आक्रामक कारपोरेट चेहरे पर भी गौर कीजिये और पैसा बनाने के खेल पर भी
The floodgates have just opened, but India needs more than just hot money. How can the Government woo dollars that will stay?
पलाश विश्वास
हिंदुत्व के एकाधिकारवादी
वर्ण वर्चस्वी
आक्रामक
कारपोरेट चेहरे
पर भी
गौर कीजिये
और पैसा
बनाने के
खेल पर भी!
The floodgates
have just
opened
but India
needs
more than
just hot money
How can
the Government
woo dollars
that will stay?
बाबरी विध्वंस
की एक और
वर्षी मनाने
की तैयारी है
राममंदिर नहीं
बना संघी एजंडा
के मुताबिक
अबतक,लोकिन
रामजन्मभूमि
थाना बना दिया
समाजवाद ने
धर्मनिरपेक्षता का
हिंदुत्व यह
अनोखा है
ठीक वैसा ही
जैसा हिंदुत्व का
कारोबार और
लोक गणराज्य
भारतमध्ये
कानून का राज
राष्ट्रनेता वे हैं
जो मनुष्यता के
विरुद्ध युद्ध अपराधी
धर्म वह है
जो धर्म विरुद्ध
अपसंस्कृति
कारपोरेट
आक्रमण का
विशुद्ध पर्याय
इस समीकरण
की बारीकियां
चुनाव सर्वेक्षण
से कहीं ज्यादा
जटिल है
कि कैसे
धर्म राष्ट्रीयता
कारपोरेट राज
के लिए
अविराम
जनसंहार का
निमित्त मात्र
यह समझना
भी जरुरी है कि
वर्ण वर्चस्व
किस किस
मोड में है
इन दिनों
कैसे होता है
धर्म के नाम पर
ध्रूवीकरण
बेहद अनायास
कैसे बाजार
का चोली दामन
साथ है धर्मोन्मादी
राष्ट्रवाद से और
जनसंहार अभियान में
कारपोरेट नरमेध
को कैसे वैदिकी
विशुद्धता से
संपन्न कर
रहा है राष्ट्र
अस्पृश्यता का
चरित्र इस देश
में कभी एक सा
रहा ही नहीं है
बंगाल और पूरे
पूर्व पूर्वोत्तर भारत
में अस्पृश्यता
उस तरह
रही नहीं कभी
जैसा पंजाब हरियाणा में
गायपट्टी में अस्पृश्यता
की तुलना ही
नहीं की जा सकती
महाराष्ट्र,गुजरात
और दक्षिण भारत
की अस्पृश्यता से
बौद्धमय बंगाल
में हिदुत्व
का संगठन
हुआ भक्ति मार्ग से
चैतन्य महाप्रभु के
वैष्णव आंदोलन से
इससे पहले जयदेव
थे महाकवि अंतिम
संस्कृत के
जिनके
गीत गोविंदम
में लोक भरपूर
समाज में
बाउल संस्कृति
थी जाति के खिलाफ
सूफी संतों का
आंदोलन था अलग
बौद्धमय बंगाल के
पतन के साथ
ही सेन वंश के
ब्राह्मणी राज में ही
इस्लाम को
अपनाने लगे थे
बौद्ध हिंदुत्व
अपनाने के बजाय
फिर किसान
आंदोलनों और
आदिवासी विद्रोहों
के मार्फत
कृषि समाज
की एकता
बनी रही
दो राष्ट्रों के
सिद्धांत से
पहले तक
और यह
बंगाल आज
का खंडित
बंगाल भी न था
कभी,तब
बंगाल का मायने
था पूरा पूर्व
भारत और पूर्वोत्तर
मतुआ आंदोलन
की जड़ें भी थीं
नील विद्रोह में
जिसकी मुख्य
मांग थी
भूमि सुधार
अस्पृश्यता के
विरुद्ध हुआ जो
चंडाल आंदोलन
वह भी भूमि
सुधार की मांग
पर था केंद्रित
तेभागा से लेकर
नक्सलबाड़ी
तक किसान
आंदोलनों की
साझा विरासत
ही मुख्यधारा थी
बंगाल के किसान
जाति अस्मिता को
लेकर कभी इतने
उत्तेजित नहीं थे
बाकी भारत की
तरह,कभी नहीं
इसीवजह से
बहुजन आंदोलन
का कोई असर नहीं
रहा कभी बंगाल में
अस्पृश्यता के
बजाय भेदभाव
और वर्ण वर्चस्व
बंगाल में मुद्दा
बना रहा,आज भी है
अस्पृश्यता नही है
वर्ण वर्चस्व है आज भी
अस्पृश्यता नहीं
लेकिन शत प्रतिशत
भेद भाव है आज भी
बंगाल में अनुसूचित
जातियां तय
करने के लिए
अस्पृयता का
मानदंड लागू
नहीं हुआ
बाकी भारत
की तरह
इसीलिए बाबा साहेब
डा. अंबेडकर ने
पैमाने में शामिल
किया भेदभाव
आम तौर पर
अस्पृश्यता की
अनुपस्थिति की
वजह से लेकिन
लोग आम तौर
पर बंगाल को
मुक्त समझते हैं
जाति व्यवस्था से
जो भ्रामक है
और सामाजिक
यथार्थ से विपरीत है
महारों की तरह
मटका गले में
बांधकर या
पिछवाड़े पर
झाड़ू टांगकर
बंगाल के अछूत
कभी नहीं घूमे
इसके विपरीत
आजादी से पहले
तक राजबंशी और नमोशूद्र
जैसी जातियां
उतनी ही लड़ाकू
और दबंग रही हैं
जैसी कि पंजाब के सिख
सिखों की तरह
पुरोहिती कर्मकांड
से नाता तोड़
दिया था मतुआ
धर्म ने भी
ब्राह्ममवाद को
पूरी तरह
खारिज करके
तमाम धर्म ग्रंथों
और आध्यात्मिकता
को हाशिये पर
रखकर
जाति व्यवस्था
की वजह से नहीं
बल्कि जमींदारी
पर वर्ण व जाति
वर्चस्व की वजह
से भेदभाव के साथ
जबर्दस्त था उत्पीड़न
जिसके शिकार थे
हिंदू मुसलमान
सारे प्रजाजन
और उसी उत्पीड़न
के खिलाफ
दलित किसान
और मुसलमान हो
गये लामबंद
भारत में सबसे
पहले बहुजनों के लिए
विभाजन से पहले तक
निरंतर सत्ता पर
उनका था दखल
तीनों अंतरिम
सरकारों में
वर्ण वर्चस्व को
किनारे रखा गया
विभाजन के बाद
बंगाल का भूगोल
बदल गया
इतिहास बदल गया
जनसंख्या विन्यास
बदल गया
कृषिसमाज की
एकता हो गयी खंडित
किसान हुए
सत्ता से बाहर
और जीवन के
हर क्षेत्र से बहिस्कृत
जबकि बाकी भारत
जैसी अस्पृश्यता नहीं है
बंगाल में हमेशा की तरह
यह बौद्धमय बंगाल
की गौरवशाली परंपरा है
भेदभाव की जमीन
भी बौद्धमय बंगाल
के पतन में नही ंहै
मित्रों,औपनिवेशिक
सासन काल में
नये उत्पादन संबंधों
स्थायी बंदोबस्त के
तहत निर्मित
नये सामंती समाज
की अवैध संतान है
भेदभाव
रवींद्र नाथ टैगोर
बहिस्कृत ब्राह्मण थे
अछूत थे बाकी
ब्राह्ममों के लिए
मंदिरों को द्वार बंद
थे उनके लिए
निरीश्वरवादी
ब्राह्म समाज के
नेता थे देवर्षि
देवेंद्र नाथ टैगोर
टैगोर के नोबेल
पुरस्कार से पहले
तक उनका
परिवार था अस्पृश्य
पूर्वी बंगाल में
जमींदारी थी
टैगोर परिवार की
उस जमींदारी में
प्रजा पर निर्मम
अत्याचारों के
लिए कुख्यात थे
देवर्षि देवेंद्र
कंगाल हरिनाथ
ने पूरा ब्यौरा लिखा
तब अपने अखबार में
बंगाल में जितने
जमींदार थे
ब्राह्मण, उससे कहीं
ज्यादा जमींदार थे
कायस्थ, जो वर्ण
व्यवस्था के मुताबिक
शूद्र हैं
कामरेड ज्योति बसु
भी थे जमींदार संतान
इससे समझे कि
अस्पृश्यता
की वजह
अगर जाति
व्यवस्था है तो
उत्पीड़न और
अत्याचारो के
पीछे हैं भूमि संबंध
मध्य बिहार
के नरसंहारों का
मामला लीजिये
मारे गये लोग
यकीनन दलित थे
लेकिन हत्यारों
में शूद्र जातियों की
ही भूमिका थी
सबसे ज्यादा
भूमि सुधार को
लागू न करके
भारत में
जारी है
वही सामंती
उत्पादन संबंध
उन्हीं उत्पादन संबंधों
की बहाली के लिए
हिंदुत्व का यह
महासंग्राम
फिर हरित क्रांति से
जो शुरु हुआ
अबाध विदेशी पूंजी
का खेल और रक्षा सौदों
से जो जमा होता रहा
कालाधन का जखीरा
देशभक्ति के उन्माद
को धर्मोन्मादी
बनाने की अनिवार्यता
थी सबसे ज्यादा
आजाद भारत में
वर्ण वर्चस्व के
भीष्म पितामह
का नाम गोवलकर
या सावरकर नहीं
जवाहर लाल नेहरु है
इसे भूलिये नहीं
इंदिरा गांधी ने
सिख संहार के
लिए किया
हिदुत्व का
बखूब इस्तेमाल
नवउदारवाद
ग्लोबीकरण
और निजीकरण
के महाउन्माद
भारतीय कृषि और
कृषि समाज की
तबाही, ध्वस्त
उत्पादन प्रणाली के
मध्य मंडल के
खिलाफ कमंडल बतौर
हुआ हिंदुत्व का
पुनरुत्थान
मनमोहनी अवतार
के बाद नरसिम्हा
अवतार के वक्त
फिर आत्मघाती
दंगों में उत्पादन
संबंधों का ताना बाना
तोड़कर देश
बना अमेरिकी उपनिवेश
सारे देशी उद्योग धंधे
जलकर हुए खाक
उत्तर प्रदेश के
शहर ही नहीं जले
हैदराबाद और अमदाबाद
जलता रहा बार बार
आग कर्नाटक में भी लगी
आग लगी बंगाल में भी
फिर हर राज्य में
अलगाववादी नारे गूंजे
सीआईए की जद
में आ गया पूरा देश
जाति व्यवस्था से
बाहर हैं आदिवासी
अस्पृश्ता का
अभिशाप नही है
आदिवासियों पर
पुरुष तांत्रिक भी
नहीं हैं आदिवासी
सामाजिक समानता
और सामाजिक लोकतंत्र
अगर कही हैं भारत में
तो सिर्फ आदिलावासी
समाज में
लेकिन नस्ली भेदभाव
की वजह से
एकाधिकारवादी
कारपोरेट साम्राज्यवादी
आक्रमण की वजह से
देश बेचो अभियान
की वजह से
संविधान लागू न
होने की वजह से
कानून का राज
न होने की वजह से
भारतीय लोकतंत्र
से बाहर होने की वजह
से सर्वत्र उन्हीं के खिलाफ
जारी है सलवा जुड़ुम
जल जंगल जमीन
आजीविका और नागरिकता
से बेदखल हर
आदिवासी इलाका
जिनके विरुद्ध जारी
है राष्ट्र का युद्ध अनवरत
क्योंकि प्रकृति से
निरंतर बलात्कार के लिए
संसाधनों की खुली
लूट के लिए
आदिवासियों का
कत्लेआम जरुरी है
इसीलिए बाकी देश
बाकी देशवासियों से
हमेशा अलगाव में
रखे गये आदिवासी
यह अस्पृश्यता नही ंहै
न यह जाति व्यवस्था है
इसलिए जाति विमर्श
से आदिवासी भूगोल को
समझा ही नहीं जा सकता
जाति अंध भारत
ने कभी नहीं सुनी
आदिवासी आवाज
बहुजनों में नारे बतौर
शामिल किये जाते हैं
आदिवासी यकीनन
जैसे संवैधानिक
रक्षाकवच सारे
छिन लिये
आदिवासियों के
जैसे कभी लागू
नहीं हुई पांचवीं
और छठीं अनुसूचियां
वैसे ही भारतीय राष्ट्र
में, भारतीय लोकतंत्र में,
भारतीय समाज में
भारतीय विमर्श में
भारतीय अर्थ व्यवस्था में
विकास गाथा में
कारपोरेट राज में
मारे जाने के लिए
ही हैं आदिवासी
सरासर नस्ली
भेदभाव है यह
इसीतरह नस्ली
भेदभाव है बदस्तूर
समूचे हिमालय
के खिलाफ
ऊर्जा प्रदेश
उत्तराखंड और
हिमाचल में लोग
खुद को देवों से
कमतर नहीं समझते
कभी,लेकिन हालत
उनकी अस्पृश्यों
से बदतर हैं
कश्मीर और मणिपुर
की तरह सशस्त्र सैन्य बल
विसेषाधिकार कानून
की जद में नहीं हैं वे
लेकिन भूबेदखली
विस्थापन, कारपोरेट
राज के मामले में
उत्तराखंड और हिमाचल
कहीं पीछे नही ंहैं
किसी भी आदिवासी
इलाके से
हिंदुत्व ही
यहां अचूक हथियार है
पर्यटन और
धार्मिक पर्यटन
आधारित अर्थ व्यवस्था में
वहां भी नस्ली भेदभाव है
जैसे है समूचे
पूर्वोत्तर के खिलाफ
हमारे शहरी वातनुकूलित
दलित कारपोरेट
मैनेजर तमाम
यह घोषित करते
अघाते नहीं कि
भूमंडलीकरण
स्वर्ण युग है
दलितों के लिए
ठीक वैसा ही जैसे
वामपंथी मानते रहे
कि पूंजीवादी उत्पादन
संबंधों के गर्भ में है
जाति उन्मूलन
शहरीकरण और
औद्योगीकरण
सत्यानाशी
इंफ्रा महाविस्फोट
और सूचना महाक्रांति
की वजह से
एक चक्षु हिरण
बन गये तमाम लोग
वे शहरों में
जाति अनुपस्थित
देखते हैं
जाति अनुपस्थित देखते हैं
औद्यगिक संकुल में
जो कहीं दरअसल
अनुपस्थित होती नहीं है
शहरीकरण और
औद्योगीकरण की नींव ही है
जाति व्यवस्था
कारपोरेट राज धर्मोन्मादी
राष्ट्रीयता में ही
टेस्ट ट्यूब बेबी की
तरह हुआ कारपोरेट
राज का गर्भ संचार
नौकरीपेशा लोगों की
सशक्तीकरण
आरक्षण जरिये
सत्ता में भागेदारी
और आरक्षण बजरिये
सरकारी नौकरियां
इसीको कारपोरेट राज
का स्वर्ण युग मानते हैं
विद्वतजन कामयाब
और कारपोरेट
कृषि समाज का
ध्वंस उन्हें नजर
नहीं आता
उत्पादन संबंधों की
लाशें उन्हें नजर
नहीं आती
नजर नही ंआता
जल जंगल जमीन
आजीविका और नागरिकता से
बेदखली बजरिये
अनंत वध स्थल बना
यह देश मृत्यु उपत्यका
बाबरी विध्वंस और
गुजरात नरसंहार
भी ठीक उतने
ही कारपोरेट
आयोजन हैं
जैसे हरित क्रांति
संकट में विदेशी पूंजी
की अबाध श्रृंखला
के लिए अस्सी के
दशक में सिखों
का नरसंहार
या भोपाल
गैस त्रासदी
या पूर्वोत्तर में
फिर महाराष्ट्र में
बाकी भारतीयों
के खिलाफ
भूमिपुत्रों की हिंसा
राष्ट्र के कारपोरेट
चरित्र को समझे बिना
समाज के अवक्षय को
बांचे बिना
एकाधिकारवादी
कारपोरेट आक्रमण
के प्रतिरोध बिना
अस्पृश्य भूगोल
की मुक्ति बिना
नस्ली भेदभाव के
खिलाफ गोलबंदी बिना
उत्पादन संबंधों के
जरिये सामाजिक
गोलबंदी बिना
हम दरअसल
हिंदुत्व की ही
पैदल सेनाएं हैं
ठीक उतने ही
जितने की इस
अनंत वधस्थल में
बलि प्रदत्त
आधार पहचान वजूद के
बायोमेट्रिक
डिजिटल
रोबोटिक
बेनागरिक
पूरा का पूरा अमानुष
बाबरी विध्वंस की
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उन्होंने कहा कि देश और राज्यों की सरकारों से हमारा अनुरोध है कि वे इन मागों पर तुरंत कारवाई करें। आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र हमारा सभी राजनीतिक पार्टियों से भी अनुरोध है कि वे अपने घोषणा पत्रों में इन मागों को प्रमुखता से स्थान दें और इन्हें पूरा करने का वादा करें। बृहस्पतिवार की देर शाम देश भर से आए कार्यकर्ताओं ने कैंडिल मार्च निकाल मांगों का समर्थन किया।
कंफेडरेशन की प्रमुख मांगें
1. देश में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत, सामाजिक भेदभाव, वर्ग आधारित शोषण तथा पितृसत्ता के हर स्वरुप को तुरंत खत्म किया जाए। देश के हर संसाधन में 'जिसकी जितनी है आबादी, उतनी उसकी हिस्सेदारी' के सिद्धात को लागू किया जाए।
2. दलितों और आदिवासियों के लिए पृथक निर्वाचक मंडलों की व्यवस्था की जाए।
3. देश में दोहरी शिक्षा प्रणाली और दोहरी स्वास्थ्य प्रणाली को खत्म किया जाए। देश के हर नागरिक के लिए एक जैसी ही शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली हो। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी क्षेत्र का हस्तक्षेप बंद किया जाए।
4. निजी क्षेत्र में रोजगार, माल की आपूर्ति और उत्पादित वस्तुओं के वितरकों की श्रृंखला में दलितों और आदिवासियों को देश में उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण दिया जाए।
5. निजी क्षेत्र की कंपनिया दलितों और आदिवासियों को आगे बढ़ाने के लिए खुद की बनाई आचार संहिताओं और घोषणाओं का पालन करें और नियमित तौर पर देश की जनता के सामने पारदर्शी तरीके से इनके पालन की रिपोर्ट दिया करें।
'बाबरी विध्वंस के लिए राजीव थे जिम्मेदार'
पीटीआई | Sep 16, 2010, 08.19AM IST
नई दिल्ली।। एक फ्रेंच लेखक ने आरोप लगाया है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए राजीव गांधी परोक्ष रूप से जिम्मेदार थे, क्योंकि उन्होंने हिंदू और मुस्लिम समुदाय को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की। शाहबानो केस से लेकर विश्व हिन्दू परिषद के आग्रह पर बाबरी मस्जिद का गेट खोलने और फैजाबाद को राम की भूमि बताकर वहां से चुनाव अभियान शुरू करने तक उन्होंने हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ और मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की।
इस फ्रेंच लेखक का नाम है डॉ. क्रिस्टोफे जैफरलॉट, जो पैरिस में साउथ एशियन पॉलिटिक्स पढ़ाते हैं। लेखक ने अयोध्या मामले पर कोर्ट का फैसला आने के पूर्व कहा है कि देश के मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने का यह एक अहम क्षण होगा। भारत के इतिहास में 24 सितंबर का दिन एक नया मोड़ साबित होगा। मुझे उम्मीद है कि जज इस बात से वाकिफ होंगे।
डॉ जैफरलॉट का कहना है कि सुलह की कोशिश होनी चाहिए और यह पहल हिंदुत्व बलों की ओर से होनी चाहिए। अगर उन्होंने विजयी रवैया अपनाया तो इससे मुसीबत खड़ी होगी।
लेखक की राय है कि भगवा ब्रिगेड को मुसलमानों के खिलाफ मुहिम छेड़ने पर दोबारा सोचना पड़ेगा, क्योंकि 2009 के लोकसभा चुनावों में देश के मध्य वर्ग ने अपना रवैया स्पष्ट कर दिया है।
मुसलमानों के बारे में लेखक का कहना है कि कोर्ट का प्रतिकूल फैसला उनके लिए दुधारी तलवार की तरह होगा, क्योंकि वे इसे बार-बार अपनी हार के रूप में देख सकते हैं। यही वक्त यह दिखाने का है कि मुस्लिम देश का हिस्सा हैं और उन्हें भयमुक्त करने का भी यही मौका है।
अपनी पुस्तक 'रिलिजियन, कास्ट एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया' नामक अपनी पुस्तक को लॉन्च किए जाने के मौके पर डॉ जैफरलॉट ने कहा कि मैंने और मेरी रिसर्च टीम ने भारत के 12 शहरों का सर्वे किया था। हमने पाया कि अधिकतर मुसलमान बाबरी मस्जिद ध्वंस किए जाने को एक निर्णायक मोड़ मानते हैं।
अंबेडकर की तुलना मार्टिन लूथर किंग से
इंदौर, बुधवार, 17 फरवरी 2010( 18:05 IST )
ND
कांग्रेस से दस फीसदी वोटों से पिछड़ने और उसके युवा नेता राहुल गाँधी द्वारा दलितों में पैठ बनाने की कोशिश से घबराई भाजपा ने बुधवार को दलितों में अपना प्रभाव बढ़ाने के प्रयास में दलित आईकॉन डॉ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का गुणगान करते हुए उनकी तुलना मार्टिन लूथर किंग से की।
अधिवेशन की शुरुआत करते हुए गडकरी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि जिस तरह मार्टिन लूथर किंग ने अमेरिका में अश्वेतों को गरिमापूर्ण स्थान दिलाने के लिए संघर्ष किया था, उसी तरह भारत में डॉ. अंबेडकर ने दलितों को सम्मानपूर्ण स्थान दिलाने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि अंबेडकर का समतावादी समाज बनाने में बहुत बड़ा योगदान है।
गडकरी ने अगले तीन सालों में भाजपा के वोट प्रतिशत में दस फीसदी की वृद्धि करने का लक्ष्य रखा है और उसमें दलितों का प्रमुख स्थान है।
दलितों में अपनी पैठ बढ़ाने की रणनीति के तहत गडकरी ने कहा कि समाज में अभी भी छुआछूत कायम है और हमें इसके खिलाफ खड़े होने की जरूरत है। पार्टी को छुआछूत के खिलाफ लड़ने के लिए आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि पार्टी ऐसा केवल वोट के लिए नहीं करेगी बल्कि यह उसकी राजनीतिक निष्ठा का प्रश्न है और दलितों को समाज में उसका उचित स्थान दिलाने के लिए भाजपा को आगे आना ही होगा।
अध्यक्ष के भाषण की जानकारी पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने दी। यह पूछे जाने पर कि क्या राहुल के दलित एजेंडे की काट में भाजपा अंबेडकर का गुणगान और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की बात कर रही है, प्रसार ने कहा कि यह एकदम गलत बात है और पार्टी शुरू से ही दलितों और आदिवासियों के उत्थान की बात करती रही है। (भाषा)
बाबरी विध्वंस की बरसी पर धार्मिक उत्सवों और सभाओं पर रहेगी पाबंदी
लखनऊ: बाबरी विध्वंस की 21वीं बरसी पर शुक्रवार को समूचे उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू रहेगी और जिलों में किसी भी तरह के धार्मिक उत्सव, रैली तथा सभा के आयोजन पर रोक लगाई जाएगी।
अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) मुकुल गोयल ने शुक्रवार को इस आशय की जानकारी देते हुए बताया कि अगर कोई संगठन 6 दिसम्बर को लेकर ज्ञापन देना चाहे तो उसे कचहरी अथवा तहसील परिसर में जुलूस बनाकर आने की इजाजत नहीं दी जाए, बल्कि जुलूस के उद्गम स्थल पर मजिस्ट्रेट खुद जाकर उनका ज्ञापन प्राप्त करेंगे।
उन्होंने कहा कि सभी जिला पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिए गए हैं कि वे साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले तत्वों को चिह्नित करके उन पर पैनी निगाह रखें और जरूरत पड़ने पर उनके खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई करें। शांति समितियों की बैठक करके उनका सहयोग प्राप्त किया जाए तथा शहरों में सेक्टर योजना लागू की जाए।
गोयल ने कहा कि मिश्रित आबादी वाले तथा साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से संवेदनशील स्थानों पर दंगा निरोधक उपकरणों से लैस अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया जाए। अफवाहों को रोका जाए।
गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने बाबरी विध्वंस की बरसी पर प्रदेश भर में शांतिपूर्ण पदयात्रा निकालने का एलान किया है।
बाबरी विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सरकार को फटकार
Bhasha, Last Updated: अप्रैल 2, 2013 02:47 PM ISTClick to Expand & Play
नई दिल्ली: च्चतम न्यायालय ने अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना के सिलसिले में आपराधिक साजिश के आरोपों से भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और अन्य आरोपियों को मुक्त करने के उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील दाखिल करने में विलंब पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो से मंगलवार को स्पष्टीकरण मांगा।
न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपील दाखिल करने में 167 दिन के विलंब के बारे में केन्द्र सरकार के वरिष्ठ विधि अधिकारी को दो सप्ताह के भीतर इस संबंध में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि विधि अधिकारी की वजह से अपील दायर करने में 167 दिन का विलंब हुआ।
इससे पहले, केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने न्यायालय के आदेश पर अमल करते हुए अपील दायर करने में हुए विलंब से संबंधित विवरण आज पेश किया। इसमे जांच एजेन्सी ने कहा है कि उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल के पास और फिर मंजूरी और राय के लिए सॉलिसीटर जनरल के पास लंबित था।
न्यायाधीशों ने कहा, ''चूंकि सालिसीटर जनरल के कारण यह विलंब हुआ है, इसलिए संबंधित व्यक्ति का हलफनामा इस विलंब को बेहतर तरीके से समझने में मददगार होगा।'' न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो को दो सप्ताह का वक्त देते हुए कहा, इस बारे में हलफनामा दाखिल करना आपके ही हित में होगा। लेकिन न्यायालय ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र नहीं किया कि कौन सा विधि अधिकारी यह हलफनामा दाखिल करेगा। न्यायालय ने कहा कि यह वरिष्ठ विधि अधिकारी का होना चाहिए।
भाजपा ने अंबेडकर जयंती को सामाजिक समरसता दिवस के रूप मनाया
By Vishnu Baranwal - Posted on 15 अप्रैल 2013
लखनऊ, भारतीय जनता पार्टी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती को सामाजिक समरसता दिवस के रूप में पूरे प्रदेश में धूमधाम से मनाया। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. मनोज मिश्र ने बताया कि पार्टी ने प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों, प्रदेश मुख्यालय पर सामाजिक समरसता दिवस पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के व्यक्तित्व, कृतित्व तथा जीवन दर्शन पर व्यापक प्रकाश डाला गया। डॉ. अंबेडकर जयंती पर सोनभद्र में आदिवासी जनजातियों, किसानों के शोषण, भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी के विरोध में विशाल आदिवासी गिरिवासी किसान महासम्मेलन का आयोजन भारतीय जनता पार्टी की सोनभद्र ईकाई द्वारा किया गया। इस सम्मेलन पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने आदिवासी गिरवासी एवं जनजातियों के उत्थान के विषय पर प्रदेश एवं केन्द्र सरकार को घेरा। उन्होनें कहा कि न तो केन्द्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार के पास दलितों, पीडि़तों उपेक्षितों, आदिवासियों, जनजातियों के विकास का कोई चिंता है और न ही भविष्य में उनके उत्थान के रोडमैप। भाजपा उत्तर प्रदेश में जनाजाति विकास एवं किसानों के हित की लड़ाई लड़ने को सदैव तत्पर रहेगी। कार्यक्रम में काशी क्षेत्र के अध्यक्ष श्री लक्ष्मण आचार्य, पूर्व विधान परिषद सदस्य श्री जय प्रकाश चतुर्वेदी तथा जिलाध्यक्ष भूपेष चैबे समेत कई वरिष्ठ नेता उपस्थित रहे।
डॉ. मिश्र ने बताया कि पार्टी के मुख्यालय पर सामाजिक समरसता दिवस मनाया गया। इसमें मुख्य अतिथि श्री अनूप गुप्ता ने बाबा साहब अंबेडकर के महान कार्यों का विस्तार से वर्णन किया। अनुसूचित मोर्चा के निवर्तमान राष्ट्रीय महासचिव दिवाकर सेठ ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर शेष पार्टियां डॉ. साहब के कृत्यों का राजनैतिक लाभ उठा रही है जबकि भारतीय जनता पार्टी उसने जुड़े जन्म स्थान, दीक्षा स्थान मृत्यु स्थान, अंतिम संस्कार स्वयं का विकास किया तथा उनको अमर करने का कार्य किया। इस कार्यक्रम में पूर्व महामंत्री श्री विध्यवासिनी कुमार भी उपस्थित थे।
प्रदेश प्रवक्ता डॉ. मिश्र ने बताया कि सामाजिक समरसता दिवस पर देवरिया में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री सूर्य प्रताप शाही, औरैया के यूसफपुर में प्रदेश उपाध्यक्ष राजवीर सिंह (राजू भैया), अशोक दुबे व गीता शाक्य, गोरखपुर में प्रदेश उपाध्यक्ष श्री शिव प्रताप शुक्ला, बस्ती में राजेन्द्र गौड़ ने कार्यक्रमों में भाग लिया। प्रदेश भर में गोण्डा, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, कानपुर नगर, मथुरा, आगरा, अलीगढ़ एटा, आदि स्थानों पर सामाजिक समरसता दिवस पर पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने डॉ. साहब का जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ मनाया।
अंबेडकर के साथ न्याय नहीं किया कांग्रेस ने
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नई दिल्ली। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने डा. भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर मंगलवार को दलित कार्ड खेलते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने बाबा साहब के साथ 'न्याय' नहीं किया और वर्षो तक सत्ता में रहने के बावजूद उन्हें 'भारत रत्न' से वंचित रखा। भाजपा मुख्यालय पर आयोजित अंबेडकर जयंती समारोह में आडवाणी ने कहा कि कांग्रेस ने जिन लोगों को पहली बार संविधान सभा का सदस्य बनाया उनमें संविधान निर्माता का नाम ही शामिल नहीं था। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल के एक व्यक्ति द्वारा उनके लिए अपना स्थान छोड़े जाने पर वह वहां के कोटे से चुने गए। उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश की पहली मंत्रिपरिषद में महात्मा गांधी के सुझाव पर पंडित जवाहर लाल नेहरु को उन्हें उसमें शामिल करना पड़ा था। आडवाणी व्यंग्य करते हुए कहा 'मैं अनुमान ही लगा सकता हूं कि पंडित नेहरु की उस समय क्या प्रतिक्रिया रही होगी।' अंबेडकर जयंती के अवसर पर आडवाणी ने पार्टी के दलित चेतना रथ को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस ने 1952 के लोकसभा चुनाव में उन्हें एक रणनीति के तहत हराया। उन्होंने कहा कि देश के संविधान निर्माण और दलितों के उत्थान में इतनी बड़ी भूमिका निभाने के बावजूद कांग्रेस ने अपना शासन रहने तक बाबा साहब को 'भारत रत्न' से वंचित रखा। |
Economic and Political Weekly
Special Articles: Making It in India: Examining Social Mobility in Three Walks of Life
http://www.epw.in/special-articles/making-it-india.html
Making It in India
Examining Social Mobility in Three Walks of Life
Vol - XLVIII No. 49, December 07, 2013 | Anirudh Krishna
Inequality is rising in India alongside rapid economic growth, reinforcing the need to investigate social mobility. Are children from less well-off sections also able to rise to higher paying positions, or are these positions going mainly to established elites? This survey of more than 1,500 recent entrants to a variety of engineering colleges, business schools, and higher civil services finds that class and caste continue to make an important difference. Factors that stand out as significant barriers to entry include rural upbringing and parents' lack of education. Individuals who have succeeded in surmounting these obstacles have almost invariably been assisted by a teacher, relative, or friend who motivated and inspired them. A way out of the conundrum can be explored by investing in role models and information provision.
Anirudh Krishna (ak30@duke.edu) is with Duke University, North Carolina.
The author wishes to thank the director and faculty of Lal Bahadur Shastri National Academy of Administration, Mussoorie, and the organisation, Aspiring Minds, without whose help this research would not have been possible. I would also like to thank the administration of each of the other participating institutions that must, of necessity, remain unnamed. Thanks are also due to the following individuals who contributed helpfully to the research process or commented on early drafts: Varun Aggarwal, Kripa Ananthpur, Sunil Arora, Moana Bhagabati, Anil Chaplot, Philip Cook, Milton Esman, Barbara Harriss-White, Vegard Iversen, Mary Katzenstein, Sripad Motiram, S Rajagopalan, Aishwarya Ratan, S Sadagopan, Ankur Sarin, Alakh Sharma, M S Sriram, and Kentaro Toyama. The usual disclaimers apply.
http://www.epw.in/special-articles/making-it-india.html
Amalendu Upadhyaya
"रामलला हम आएंगे/ मंदिर वहीं बनाएंगे" का नारा लगाने वाले लोग तो पता नहीं कब मंदिर बनाएंगे लेकिन अपने नेता जी ने तो बाकायदा श्रीरामजन्मभूमि थाना बनवा दिया।........Read More
श्रीरामभक्त कारसेवक श्री मुलायम सिंह यादव
नेता जी ने बनवा दिया श्रीरामजन्मभूमि…
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Xavier Dias shared Hardnews Magazine's photo.
Hardnews turns 10. Watch out the anniversary edition, now on stands....
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marxistindia
news from the cpi(m)
December 5, 2013
Press Statement
The Polit Bureau of the Communist Party of India (Marxist) has issued the following statement:
Aadhar Compromised
The report that the Unique Identification Authority of India (UIDAI) has tied up with a US company with CIA links is a matter of deep concern. According to a report in the Economic Times, a US company, MongoDB, is providing the software to manage the data base for the registration of Aadhar. One of the investors in this company is the CIA.
Earlier too, the UIDAI had entered into contracts with the US based company, L-1 Identity Solutions, and another French company for the Aadhar project. The collection of personal data and biometrics of all Indian citizens through the Aadhar programme has been made available to the United State's agencies through the employment of these companies. It is now known through the Snowden files that the US authorities have been suborning all data through US telecom and internet companies. The Indian government and the UIDAI has compromised the vital data collected of Indian citizens by such tie-ups.
The UIDAI collection of data has no legal basis. It is also being used illegally to make the Aadhar number compulsory for delivery of social services and subsidies.
The Polit Bureau demands the cancellation of the tie-up with foreign companies and a suspension of the Aadhar scheme till Parliament deliberates and decides on its future and, if required, a legislative enactment.
eom
_______________________________________________
Marxistindia mailing list
http://cpim.org/mailman/listinfo/marxistindia_cpim.org
Reuters India
The BJP is perceived by many investors as being more business-friendly, and investors say expectations of its wins could spark additional gains in Indian indices that are already near record highs.
BSE Sensex hits one-month closing high, banks surge
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Navbharat Times Online
एग्जिट पोल्स में बीजेपी की चौतरफा जीत से उत्साहित शेयर बाजार झूम उठे!
5 नवंबर के बाद सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया निफ्टी। पढ़ें कैसे झूम रहा है बाजार:http://navbharattimes.indiatimes.com/business/share-market/share-news/sensex-above-21000-bankscapital-goods-rally/businessarticleshow/26884721.cms
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Navbharat Times Online
सिक्यॉरिटी एक्सपर्ट ने चुराकर एक जगह रखे गए करीब 20 लाख पासवर्ड का पता लगाया है। पढ़ें और शेयर करें यह खबर:
#Facebook #Google #PasswordLeak
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ET NOW
The floodgates have just opened, but India needs more than just hot money. How can the Government woo dollars that will stay?
Watch industry leaders debate and discuss 'FDI in Industry', today at 7:30 pm, only on ET NOW
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CNBC Awaaz - India's No.1 Business Channel
स्टॉक टॉक स्पेशलः बाजार गुलजार, किन शेयरों में आएगी धार
http://hindi.moneycontrol.com/mccode/news/article.php?id=91710
एक्जिट पोल के परिणाम जो कहानी बयां कर रहे हैं उससे बीजेपी का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। बीजेपी के आने की उम्मीदों से भारतीय बाजार दिवाली मनाते दिखाई दे रहे हैं।
भारतीय बाजारों में तेजी के माहौल और बीजेपी के सत्ता में काबिज होने की उम्मीदों में निवेशक कहां पैसा लगाएं, बता रहे हैं ग्लोब कैपिटल के आशीष माहेश्वरी और अल्टामाउंट कैपिटल के प्रकाश दीवान।
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ET NOW
Breaking the Infrastructure Jinx
Montek Singh Ahluwalia – Dy Chairman, Planning Commission: "Infrastructure is the key thing we should be focusing on, all the different stakeholders that have different views should come forward. To my mind, what we need is clarity."
Naina Lal Kidwai – President, FICCI: "Actually, the basic building blocks for financing the sector are not yet in place at a scale, which tells me that we can finance what we require going forward and I do believe that deserves attention."
Watch institutional investors discuss ways of breaking the Infrastructure Jinx the country is under, today at 7:30 pm, only on ET NOW.
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Navbharat Times Online
थोड़ा सा जोखिम, लेकिन कमाई ज्यादा।
आम FD से कैसे अलग है फ्लोटिंग रेट वाली FD, कौन उठा सकता है इनसे फायदा, क्या करें औऱ कैसे करें इसमें निवेश... लें खास सलाह: http://nbt.in/WGilpb
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Feroze Mithiborwala
The "Aadhar Card", Nilenkani, US Company and the CIA.
The Unique Identification Authority of India headed by Nandan Nilekani which is issuing 'Aadhar' ID cards for 1.1 billion Indians, tied up with a US company to provide software to manage the data base, with which CIA reportedly has links. In sum, personal data and biometrics of Indian citizens collected through Aadhar programme has been compromised by the government.
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BBC World News
Is #Google's secret plan to build real robots?
The tech giant has taken over seven robotics companies in the last 6 months.
A spokesman confirmed the effort was being headed up by Andy Rubin....See More
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'बाबरी विध्वंस की नैतिक ज़िम्मेदारी लेती हूं ...
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Nov 25, 2009 - पूर्व बीजेपी नेता उमा भारती ने कहा है कि वह बाबरी मस्जिद गिराए जाने की नैतिक ज़िम्मेदारी लेती हैं, लेकिन क़ानूनी लड़ाई से साबित करेंगी कि इसमें उनका कोई हाथ नहीं था. लिब्रहान रिपोर्ट में उमा भारती भी दोषियों में शामिल ...
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राष्ट्रपति को थी बाबरी विध्वंस की जानकारी ...
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Aug 6, 2013 - समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सोमवार को दावा किया कि तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को गिराये जाने की जानकारी थी और उन्होंने इसकी जानकारी उन्हें तब दी थी जब वह अपने ...
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visfot.com - बाबरी विध्वंस मामले में बरी न हों आडवाणी
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visfot.com/.../3770-बाबरी-विध्वंस-मामले-म...
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Feb 18, 2011 - कांग्रेस ने अब सीबीआई को अब आडवाणी सहित अन्य नेताओं के पीछे छोड़ दिया है. शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल करके सीबीआई ने कहा है कि बाबरी विध्वंसमामले में निचली अदालत और हाईकोर्ट द्वारा भले ही ...
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बाबरी विध्वंस पर हंगामा लोकसभा स्थगित - Punjab Kesari
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उच्चतम न्यायालय ने आज रायबरेली की अदालत को निर्देश दिया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड में भाजपा नेता लाल कृष्ण अडवानी और 19 अन्य अभियुक्तों के खिलाफ लंबित मुकद्दमे की तेजी से सुनवाई की जाए। इन सभी के खिलाफ अदालत ने आपराधिक ...
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गुलाम नबी के भाई ने बाबरी विध्वंस को सही ठह [Archive ...
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Apr 13, 2009 - [Archive] गुलाम नबी के भाई ने बाबरी विध्वंस को सही ठह Politics & Current Affairs.
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Latest Bilara News 22/10/2013: बाबरी विध्वंस मामले की ...
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Oct 22, 2013 - नई दिल्ली-!- बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और 19 अन्य से साजिश के आरोप हटाने के.
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BBC Hindi - भारत - 'बाबरी विध्वंस मामले पर असर नहीं'
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Oct 1, 2010 - गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि गुरुवार के फ़ैसले से बाबरी विध्वंस आपराधिक मामले पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
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बाबरी विध्वंस पर आडवाणी के खिलाफ सुनवाई अक्टूबर ...
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Sep 3, 2013 - नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट अयोध्या ढांचा ढहाने के मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित 19 नेताओं के खिलाफ साजिश रचने का मुकदमा चलाने जाने...
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बाबरी विध्वंस के 20 साल [Archive] - My Hindi Forum
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myhindiforum.com › ... › Knowledge Zone
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Dec 28, 2012 - 67 posts - 1 author
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[Archive] बाबरी विध्वंस के 20 साल Knowledge Zone.
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बाबरी विध्वंस पर कल्याण सिंह का बड़ा खुलासा
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Oct 27, 2012 - बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर कल्याण सिंह से पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद तोड़ रहे कार्यसेवकों पर गोली चलाने से मैंने मना किया था। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के जहर बुझे तीर ...
बाबरी विध्वंस के 20 साल
सोमवार, 25 मार्च, 2013 को 20:43 IST तक के समाचार
बाबरी-राम जन्मभूमि झगड़े पर एक सहमति भी
फिलहाल कोई भी पक्ष विवादित स्थान पर पहले की तरह जबरन कब्जे का अभियान नही चला रहा है. देश में लगभग आम सहमति है कि अदालत ही इसके स्वामित्व का फैसला करे. लेकिन फैसला कब आएगा, यह बात शायद अदालत को भी मालूम नही.
मस्जिद तोड़े जाने से समाज में दरार पैदा हुई
बाबरी मस्जिद तोड़े जाने ने समाज में ऐसी दरार पैदा की जिसे भरना मस्जिद को दोबारा तामीर करने से ज्यादा मुश्किल हो गया. यह दरार ऊपर नहीं दिखती लेकिन अंदरूनी घाव की तरह है.
अयोध्या में कब-कब क्या हुआ?
अयोध्या विवाद भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का एक प्रमुख मुद्दा रहा है और देश की राजनीति को एक लंबे अरसे से प्रभावित करता रहा है. जानिए अयोध्या में कैसे घूमा समय का पहिया बीती पाँच सदियों में.
लोगों को भड़काया जाता है: जस्टिस श्रीकृष्ण
बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद मुंबई में भड़के दंगो की जाँच रिपोर्ट तैयार करने वाले जस्टिस श्रीकृष्ण ने दो वर्ष पहले बीबीसी के साथ अपने अनुभव बांटे थे. वे कहते हैं कि पढ़े-लिखे लोग भी दूसरी कौम को सबक सिखाने के पक्ष में थे.
बाबरी मस्जिद विध्वंस के पांच 'सूत्रधार'
'बाबरी विध्वंस के समय मैं एक साल की थी...'
'राम की जन्मभूमि हमारे लिए नई जगह थी'
एक इंच भी ज़मीन नहीं छोड़ेंगे: ओवैसी
क़ुदरत की रहमत के गवाह
इतिहास के बहुत से भ्रमों में से एक यह भी है कि महमूद ग़ज़नवी लौट गया था. लौटा नहीं था वह, यहीं था. वर्षों बाद वह अयोध्या में प्रकट हुआ.
बाबरी मुकदमे: देर भी, अंधेर भी
अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद इमारत को तोड़ने से जुड़े मुकदमे पिछले बीस वर्षों से कानूनी दांव पेंच में.
तस्वीरें
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तस्वीरों में: बाबरी मस्जिद विध्वंस
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बाबरी मस्जिद छह दिसंबर 1992 को गिराई गई थी.
फीचर/विश्लेषण
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और मस्जिद का ढांचा गिर चुका था...
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फ़ैज़ाबाद और अयोध्या में आमतौर पर साल भर रहने वाली चहल-पहल छह दिसंबर, 1992 को थम सी गई थी. पढ़िए बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव की आँखों-देखी.
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मल्टीमीडिया
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बाबरी मामले के पैरोकार हाशिम अंसारी
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साठ साल से बाबरी मस्जिद की क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं अंसारी
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निर्मोही अखाड़े के प्रमुख भास्कर दास
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राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में हिंदुओं की तरफ़ से मुख्य दावेदार
सेवाएँhttp://www.bbc.co.uk/hindi/indepth/babri_demolition_20yrs_ns.shtml
श्रीरामभक्त कारसेवक श्री मुलायम सिंह यादव !
नेता जी ने बनवा दिया श्रीरामजन्मभूमि थाना
इसका मतलब एक दिन जब हम सोकर उठेंगे तो
सपा भावी राममंदिर भी बना देगी ?- शाह आलमनई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव आजकल अतीत में की गई अपनी गल्तियों पर कुछ ज्यादा ही शर्मिन्दा होते हुए माफीनामे जारी कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने पिछले दिनों एक बयान में 30 अक्टूबर 1990 के अयोध्या में बाबरी मस्जिद पर कथित कारसेवकों पर गोली चलवाने के लिए क्षमा प्रार्थना की थी। यहां तक तो ठीक है कि गोली चलवाने का फैसला बहुत ही नाजुक समय में लिया गया होगा लेकिन कभी खुद को मुल्ला मुलायम सिंह कहलवाने में सुखानुभूति करने वाले नेता जी तो सच्चे कारसेवक निकले।
अयोध्या (फैजाबाद) के सामाजिक कार्यकर्ता और डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर शाह आलम को सरकारी स्तर पर जो सूचनाएं प्राप्त हुई हैं वह काफी चौंकाने वाली हैं। "रामलला हम आएंगे/ मंदिर वहीं बनाएंगे" का नारा लगाने वाले लोग तो पता नहीं कब मंदिर बनाएंगे लेकिन अपने नेता जी ने तो बाकायदा श्रीरामजन्मभूमि थाना बनवा दिया।
जी हाँ, सरकारी दस्तावेजों के अनुसार अयोध्या में टेढ़ीबाजार पुलिस चौकी हुआ करती थी लेकिन शासन के आदेशानुसार इस पुलिस चौकी को थाने में परिवर्तित कर दिया गया और शासन के आदेशानुसार इसका नाम थाना श्री रामजन्म भूमि कर दिया गया। दस्तावेज बताते हैं कि शासन के आदेशानुसार यह कार्रवाई दिनाँक 03 अक्टूबर 1990 को की गई। गौर करने वाली बात यह है कि 03 अक्टूबर 1990 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे और बाबरी मस्जिद के गुम्बद पर चढ़े तथाकथित कारसेवकों पर 30 अक्टूबर 1990 को गोली चलवाई गई थी।
यह सरकारी दस्तावेज तो यही साबित करते हैं कि नेता जी सच्चे कारसेवक और श्रीरामभक्त हैं।मामला ऐसे खुला कि जब थाना श्रीरामजन्मभूमि बनाया गया तो कुछ स्थानीय नागरिकों ने इसके नाम पर आपत्ति की थी। लिहाजा आपत्ति के मद्दे नजर थाने के बोर्ड पर "श्री" मिटाकर"थाना रामजन्मभूमि" कर दिया गया। इस पर हाल ही में जब शाह आलम ने जांच पड़ताल की तो तथ्य सामने आया कि सरकारी दस्तावेजों में तो अभी भी थाना श्री राम जन्मभूमि ही है और यह 03-10-1990 को शासन के आदेशानुसार किया गया है। अब सवाल यह है कि जब शासकीय दस्तावेजों में यह थाना श्री राम जन्मभूमि ही है तब सार्वजनिक रूप से इसका "श्री" किसने हटा दिया और जनता के सामने यह "थाना राम जन्मभूमि" क्यों है?
मामला इसलिए और गंभीर है कि क्या नेता जी पहले ही तय कर चुके थे कि अयोध्या में रामजन्मभूमि भी है और वह भी बाबरी मस्जिद के स्थान पर ही ?अन्यथा एक विवादित नाम पर थाने का नामकरण क्यों किया गया? क्या यह थाना बाबरी मस्जिद भी किया जा सकता था? यदि नहीं तो थाना श्रीराम जन्म भूमि किस आधार पर कर दिया गया?
अपेक्षा की जा सकती है कि उत्तर प्रदेश सरकार एवं समाजवादी पार्टी इस पर अपना स्पष्टीकरण अवश्य देगी कि क्या थाना श्रीरामजन्मभूमि के निर्माण सम्बंधी शासन के आदेश की जानकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री को थी।
अक्टूबर का महीना है ही कुछ ऐसा ही कि नेता जी के लिए परेशानियां खड़ा कर देता है। इसी अक्टूबर 2013 में यूपी सरकार के गृह विभाग की एक चिट्ठी में वरिष्ठ पुलिस अफसरों और फैजाबाद के डीएम को बैठक के लिए बुलाया गया था। इस चिट्ठी में लिखा था कि 14 अक्टूबर को अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए चर्चा में शामिल हों। भाजपा और कांग्रेस के विरोध करने के बाद
शाह आलम सिनेमा एक्टिविस्ट
समाजवादी पार्टी ने इस मामले पर सफाई दी थी। पार्टी के मुताबिक चिट्ठी में भाषाई गलती थी और ये बैठक दशहरा को लेकर बुलाई गई थी।
उप्र सरकार के गृह विभाग ने विश्व हिन्दू परिषद के संकल्प दिवस के मद्देनजर 14 अक्टूबर को बुलाई गई बैठक के लिए अधिकारियों को जारी चिट्ठी में 'सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर संसदीय कानून बनाकर अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण' कराने का जिक्र किया था। हालांकि सरकार ने फौरन सफाई पेश कर इसे भूलवश हुई गलती करार देकर मामला संभालने की कोशिश की थी गृह विभाग के सचिव सर्वेश चंद्र मिश्र को निलंबित करते हुए सारा दोष मिश्र के ऊपर मढ़ दिया था। लेकिन अब लगता है कि दाल में कुछ काला जरूर था।
शाह आलम कहते हैं कि अभी बाबरी मस्जिद/श्रीराम जन्मभूमि का विवाद सुलझा ही नहीं था कि सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने तीन अक्टूबर 1990 कोतवाली अयोध्या अंतर्गत टेढ़ी बाज़ार पुलिस चौकी का नाम बदल कर थाना श्रीरामजन्म भूमि कर दिया। 30 अक्टूबर 1990 कारसेवकों पर गोली चलवाने के हीरो बने मुलायम हाल में ही इस घटना पर अफ़सोस जता चुके हैं इससे पहले वोटों कि छीना झपटी में बहुत सारे खेल खेले जा चुके हैं खैर एक पुरानी घटना 1986 में कांग्रेस ने ताले खुलवाये इतना ही नहीं 1989 में राजीव गाँधी ने फिर वही गलती दोहराई मस्जिद की जमीन मन्दिर निर्माण के लिए शिलान्यास करा दिया। इसका अंज़ाम यह हुआ कि लोकसभा चुनाव में राजीव गाँधी का अयोध्या आकर प्रचार करने व रामराज्य लाने का वादा भी कुछ काम नहीं आया… और यह सीट भी हार गयी। ठीक ही कहता है रामदीन 'बाबूजी श्रीराम जन्भूमि से डर लगता है 'वैसे भी आम आदमी थाने से दूर रहने में भलाई समझता है।
शाह आलम कहते हैं कि मंदिर आंदोलन के दौर में अचानक यह नाम क्यों सूझा ?अभी फैजाबाद में सपा के चार मंत्री हैं…. इसका मतलब वोटों की छानाझपटी में एक दिन जब हम सोकर उठेंगे तो समाजवादी पार्टी भावी राममंदिर भी बना देगी ? यह विचारधाराओं के अंत का दौर है।
जानिए सांप्रदायिक हिंसा निरोधक बिल पर किसने क्या कहा
सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निरोधक विधेयक का नरेन्द्र मोदी द्वारा विरोध किये जाने के बीच सरकार और कांग्रेस पार्टी ने आज कहा कि यह विभाजनकारी विधेयक नहीं है और इस विषय पर आमसहमति बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री क़े रहमान खान ने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा कि इस विधेयक को संसद के वर्तमान सत्र में लाने के लिए विचार विमर्श किया जा रहा है। गृह मंत्रालय इस विषय पर अन्य राज्यों के विचार जानने के लिये उनके साथ बातचीत कर रहा है। मसौदा विधेयक पर अन्य दलों के विचार के बारे में पूछे जाने पर रहमान ने कहा कि इस विधेयक पर असहमति की कोई जरूरत नहीं है। हमारा प्रयास आमसहमति बनाने का है।
गुजरात के मुख्यमंत्री के विरोध के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि शायद वह ऐसा कोई कानून नहीं चाहते हैं। गुजरात में अब तक की सबसे बड़ी साम्प्रदायिक हिंसा हुई और वे इस पर काबू पाने में असफल रहे। केंद्र का दायित्व है कि वह कानून लाये। उन्होंने कहा कि मोदी वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। हम इस विषय पर 2005 से ही राज्यों से विचार विमर्श कर रहे हैं।
संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने आरोप लगाया कि मोदी हर चीज को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं, लोकहित की बात नहीं करते है और विवाद पैदा करते हैं। शुक्ला ने कहा कि वह राजनीतिक फायदे के लिए इसका विरोध कर रहे हैं।
बहरहाल, नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आज पत्र लिख कर सांप्रदायिक हिंसा निरोधक विधेयक का विरोध किया और कहा कि प्रस्तावित विधेयक तबाही का नुस्खा है। मोदी ने विधेयक को राज्यों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण बताते हुए कहा है कि इस संबंध में आगे कोई कदम उठाने से पहले इस पर राज्य सरकारों, राजनीतिक पार्टियों, पुलिस और सुरक्षा एजेंसी जैसे साक्षेदारों से व्यापक विचार विमर्श किया जाना चाहिए। मोदी का यह पत्र आज संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत पर सुबह आया है।
विधेयक का विरोध करने पर मोदी पर तीखा प्रहार करते हुए जदयू के नेता के सी त्यागी ने कहा कि मोदी के विधेयक का विरोध करने का कारण स्पष्ट है। गोधरा बाद दंगे के लिए गुजरात सरकार जिम्मेदार थी। मोदी का इसका विरोध करना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि इस पर चर्चा हो सकती है लेकिन हम उन लोगों को राहत प्रदान करने के पक्ष में नहीं हैं जो दंगों के लिए जिम्मेदार हैं। हमारी पार्टी चाहती है कि इसी सत्र में विधेयक लाया जाए।
समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने हालांकि साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निरोधक विधेयक पर टिप्पणी करने से इंकार करते हुए कहा कि ऐसे किसी विधेयक को पेश किये जाने की इस बार संभावना नहीं है। इस बार कोई विवादास्पद विधेयक नहीं आयेगा। विधेयक पर रूख के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह काल्पिनक सवाल है, इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं। बाबरी मस्जिद विध्वंस को शर्मनाक करार देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी कल संसद में इस मुद्दे को उठायेगी और कामकाज नहीं होने देगी।
संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन आज लोकसभा ने छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र से अपने वर्तमान सदस्य मुराली लाल सिंह को श्रद्धांजलि देने के बाद आज सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई।
अयोध्या में बरती जा रही है विशेष सतर्कता
नवभारत टाइम्स | Dec 2, 2013, 11.24PM IST
फैजाबाद
अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के 21वें साल पर वीएचपी और बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी ने किसी बड़े कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है, फिर भी प्रशासन विशेष सतर्कता बरत रहा है। हालांकि, बताया जा रहा है कि दोनों पक्ष इस साल भी रस्मी कार्यक्रमों का आयोजन कर बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना को याद करेंगे।
वीएचपी के नैशनल ऑर्गेनाइजेशन सेक्रेट्री पी.एन. सिंह ने बताया कि बाबरी मस्जिद कांड को कारसेवकपुरम में शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस मौके पर छह दिसंबर को संत सम्मेलन का भी आयोजन किया जाएगा, जिसमें राम मंदिर के बारे में चर्चा की जाएगी। दूसरी ओर, बाबरी मस्जिद व अन्य मुस्लिम संगठन छह दिसंबर को काला दिवस के रूप में याद करेंगे। प्रमुख मस्जिदों और अयोध्या की टेढ़ी बाजार पर बंद बैठकें होंगी और मंदिर-मस्जिद के मुकदमे व कानूनी पहलुओं पर भी चर्चा की जाएगी।
मोदी को पीएम बनाने का मुद्दा भी उठेगाः वीएचपी के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने बताया कि कारसेवकपुरम में आयोजित होने वाले संत सम्मेलन में विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना को विजय का प्रतीक मानकर हिन्दू शक्ति को मजबूत करने पर चर्चा होगी।
उन्होंने बताया कि इस मौके पर संत मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली अखिलेश व दिल्ली की यूपीए सरकारों को भी निशाने पर लेंगे। साथ ही हिंदू फेस वाले पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के लिए जनजागरण करने की रणनीति पर भी चर्चा होगी। शर्मा ने बताया कि 84 कोसी परिक्रमा व संकल्प दिवस कार्यक्रमों पर संतों के साथ प्रदेश सरकार की दमनकारी कार्रवाई की भी निंदा की जाएगी।
सुरक्षा के कड़े प्रबंधः एसएसपी ने बताया कि गत वर्षों की तरह इस साल भी 6 दिसंबर को जिले में बेहद सतर्कता बरती जाएगी। बैरियर पर चेकिंग और विवादित परिसर की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इस दिन होने वाले कार्यक्रम स्थलों पर भी सुरक्षा सख्त रहेगी।
मोदी को पीएम बनाने का मुद्दा भी उठेगाः वीएचपी के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने बताया कि कारसेवकपुरम में आयोजित होने वाले संत सम्मेलन में विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना को विजय का प्रतीक मानकर हिन्दू शक्ति को मजबूत करने पर चर्चा होगी।
उन्होंने बताया कि इस मौके पर संत मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली अखिलेश व दिल्ली की यूपीए सरकारों को भी निशाने पर लेंगे। साथ ही हिंदू फेस वाले पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के लिए जनजागरण करने की रणनीति पर भी चर्चा होगी। शर्मा ने बताया कि 84 कोसी परिक्रमा व संकल्प दिवस कार्यक्रमों पर संतों के साथ प्रदेश सरकार की दमनकारी कार्रवाई की भी निंदा की जाएगी।
सुरक्षा के कड़े प्रबंधः एसएसपी ने बताया कि गत वर्षों की तरह इस साल भी 6 दिसंबर को जिले में बेहद सतर्कता बरती जाएगी। बैरियर पर चेकिंग और विवादित परिसर की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इस दिन होने वाले कार्यक्रम स्थलों पर भी सुरक्षा सख्त रहेगी।
अस्सलामुआलैकुम के साथ दस्तक देंगे भाजपाई
आसिफ अली, अमरोहा।
बाबरी विध्वंस और गुजरात दंगे के बाद भारतीय जनता पार्टी व देश के मुसलमानों के बीच छत्तीस का आंकड़ा माना जाता है। लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने मुस्लिम समुदाय में बनी इस छवि को साफ करने की जोरदार पहल की है। संवाद प्रकोष्ठ के माध्यम से भाजपा मुसलमानों में पैठ बनाने का काम कर रही है। नौगावां सादात के रियाज अब्बास आब्दी व गुजरात की असमा पठान को यह जिम्मेदारी दी गई है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी की निगरानी में दोनों मुसलमानों में भाजपा की छवि सुधारने का काम करेंगे।
गुजरात के मुख्यमंत्री व भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में इसी वर्ष अगस्त में पार्टी के संवाद प्रकोष्ठ का विस्तार किया गया था। नरेंद्र मोदी ने गुजरात की असमा पठान के साथ यूपी के लिए नौगावां सादात निवासी रियाज अब्बास आब्दी को राष्ट्रीय सदस्य बनाया। इतना ही नहीं पार्टी की बैठक में दो महीने पहले दोनों को उनके राज्य में मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी दी गई। रियाज अब्बास आब्दी पार्टी के संवाद प्रकोष्ठ में यूपी के अकेले सदस्य हैं। पार्टी ने मुसलमान होने के नाते उन्हें यूपी के मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी दी है।
इस क्रम में रियाज आब्दी ने इलाहाबाद में मुस्लिम मोदी क्लब बनाया तथा उनका जन्मदिन मनाया। नौगावां सादात में उनके साथ मुस्लिम महिलाओं ने रक्षा बंधन पर नरेंद्र मोदी को राखी भेज कर भाई-बहन का रिश्ता कायम किया। इस जिम्मेदारी के बारे में श्री आब्दी बताते हैं कि कांग्रेस द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार से मुसलमानों में भाजपा की छवि बिगाड़ी जा रही है। हालांकि, मुसलमानों को भाजपा से जोड़ने में दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन कामयाबी भी मिल रही है। वह सोशल नेटवर्किग साइट पर दस हजार मुसलमानों को भाजपा से जोड़ चुके हैं। साथ ही सूबे के प्रत्येक जिले में संवाद सेल के माध्यम से मुसलमानों को पार्टी से जोड़ा जा रहा है।
वर्तमान में जिले में चल रहे पार्टी के गन्ना आंदोलन में मुसलमानों की मौजूदगी इसका प्रमाण है। कहते हैं कि चुनाव से पूर्व वह राष्ट्रीय सुरक्षा व कांग्रेस द्वारा एफडीआई लागू करने से बंद होने वाले कुटीर उद्योग का मुद्दा लेकर मुसलमान बस्तियों में जाएंगे। क्योंकि प्रदेश में सबसे ज्यादा मुसलमान कुटीर उद्योग से जुड़े हैं तथा कांग्रेस ने उन्हें बेरोजगार करने की शुरूआत कर दी है। वह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी के नेतृत्व में मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने का काम कर रहे हैं।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/jyotiba-phule-nagar-10909257.html
'बांटो और राज करो' का कांग्रेसी पैंतरा
THURSDAY, 05 DECEMBER 2013 17:45
जिस विधेयक को मुस्लिमों का हितैषी बताकर प्रचारित किया जा रहा है, यदि वह लागू होता है, तो क्या बहुसंख्यक समुदाय में अल्पसंख्यकों के प्रति असंतोष नहीं बढ़ेगा. केंद्र की मंशा भी यही है, ताकि 'बांटों और राज करो' की नीति के तहत दोनों समुदायों को लड़ाकर देश पर राज किया जा सके...
सिद्धार्थ शंकर गौतम
भारतीय संविधान धर्म के आधार पर देश के सभी नागरिकों को एक समान मानता है, पर लगता है केंद्र सरकार नागरिकों को हिंदू और मुस्लिम धर्म के नाम पर पूर्वाग्रह से ग्रसित सांप्रदायिकता के चश्मे से ही देखती है. तभी तो वह दोनों धर्मों में शत्रुता के मापदंड पर आपसी वैमनस्य फैलाना चाहती है.
फाइल फोटो
सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने 2011 में जिस सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक का मसौदा तैयार किया था, वह निश्चित ही समाज को दोफाड़ करने वाला है. अब मनमोहन सरकार उसे कुछ आंशिक संशोधनों के साथ संसद से पास करवाना चाहती है, जिसका भाजपा समेत कई दल विरोध कर रहे हैं.
इस विधेयक का पूर्व में भी काफी विरोध हुआ था, जिस कारण सरकार को इसे ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था. अब एक बार फिर लोकसभा चुनाव आते ही सरकार वोटों के ध्रुवीकरण के चलते सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक का जिन्न बाहर निकाल लाई है.
हालांकि विधेयक को लेकर जिस तरह का विरोध हो रहा है उससे इसके संसद से पास होने के आसार कम ही हैं, पर यह विधेयक किसी भी तरह से कानून का रूप ले लेता है, तो इससे समाज में वैमनस्यता का जो जहर फैलेगा, वह देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को नुकसान ही पहुंचाएगा.
इस विधेयक में अनेक ऐसे आपत्तिजनक प्रावधान हैं, जो देश के संघीय ढांचे को नकारते हुए उसे चुनौती देते प्रतीत होते हैं. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इस विधेयक को इस ढंग से तैयार किया है कि यह संसद, कानून और संविधान की सर्वोच्चता को नगण्य करता है.
कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की मंशा भी इस विधेयक को जल्द से जल्द लागू करने की है. तभी तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस विधेयक पर सर्वदलीय बैठक के दौरान पूरे लाव-लश्कर के साथ मौजूद रहे थे. कितनी अजीब बात है कि जो सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रभावी जन लोकपाल विधेयक को संसद की सर्वोच्चता को खतरा बताती है, उसी सरकार के मुखिया सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 को सर्वसम्मति से लागू कराने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं.
इस विधेयक में कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक प्रेम खुलकर सामने आ जाता है. काबिलेगौर तथ्य तो यह है कि इस विधेयक को तैयार करने में तीस्ता सीतलवाड़ और सैयद शाहबुद्दीन ने भी प्रमुख भूमिका निभाई है, जिनकी धर्मनिरपेक्षता संदिग्ध है.
विधेयक के अनुसार सांप्रदायिक दंगों की स्थिति में बहुसंख्यक समुदाय को प्रथमदृष्टया दोषी मान कार्रवाई की जाएगी. यानी, अल्पसंख्यक समुदाय अगर दंगों में सहभागी भी है, तब भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. केंद्र सरकार सांप्रदायिक दंगों के मामलों को खुद देखेगी. यानी, जो काम राज्य सरकार को करना चाहिए, वह केंद्र सरकार के नियंत्रण में होगा.
केंद्र को यदि लगता है कि राज्य ने सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए, तो केंद्र सरकार राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकती है. यह कानून केंद्र को राज्यों के खिलाफ धारा 355 का इस्तेमाल करने का यथेष्ठ मौका देता है. यह तो सरासर राज्य सरकारों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है.
इस तरह तो गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारों के कामकाज में हस्तक्षेप करने का केंद्र सरकार को बहाना मिल ही जाएगा. तभी, अधिकतर राज्य सरकारें विधेयक के इस प्रारूप का विरोध कर रही हैं. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इस कानून के मसौदे को यकायक नहीं बनाया है, बल्कि यह वर्ष-2004 में गठित रंगनाथ मिश्र आयोग और वर्ष-2005 में गठित सच्चर कमेटी की अगली कड़ी है.
इस देश में धर्म और जाति को लेकर हमेशा से ही देश के प्राय: सभी राजनीतिक दलों के मन में पूर्वाग्रह की स्थिति रही है. इस कानून के मसौदे को देखकर कहा जा सकता है कि यह कथित सेक्युलरिज्म की राजनीति करने वाले दलों के लिए लाभदायक है.
चूंकि देश में हिंदू-मुस्लिम वैमनस्यता को राजनीति के तहत जान-बूझकर बढ़ावा दिया जाता है, इसलिए यह विधेयक दोनों ही समुदायों के हितों के खिलाफ है, मगर केंद्र सरकार द्वारा इसे यूं प्रचारित किया जा रहा है, मानो इसके अस्तित्व में आने के बाद सांप्रदायिक दंगों पर रोक लग ही जाएगी.
सोनिया गांधी की अगुवाई वाली जिस राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इस कानून के मसौदे को तैयार किया है, अव्वल तो वह खुद ही असंवैधानिक है, मगर नए-नए कानूनों के मसौदे सरकार पर थोपती रहती है और हमारे प्रधानमंत्री इन कानूनों को लागू कराने के लिए तत्पर रहते हैं.
सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक 2011 के अनुसार, सांप्रदायिक दंगों की स्थिति में यदि राज्य सरकार तथा उसके किसी भी अधिकारी की भूमिका संदिग्ध रहती है, तो केंद्र सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है. इस विधेयक की धारा 13 के अंतर्गत सिविल सर्वेंट को दंगों में उसकी भूमिका के लिए सजा का प्रावधान है और यह सजा दो से पांच वर्ष तक की हो सकती है.
यह विधेयक दंगों की पूर्व स्थिति पर मौन है, मगर दंगा होने की स्थिति में बहुसंख्यक समुदाय को दोषी ठहरा देता है. मसलन, विधेयक के अनुसार, 2002 में गुजरात में भड़के दंगों में गुजरात सरकार तथा वहां का बहुसंख्यक समुदाय (जो हिंदू है) दोषी है, मगर दंगों के पूर्व गोधरा में हुए सामूहिक हत्याकांड पर इसमें कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है. इस विधेयक की धारा 15 के तहत अगर अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति बहुसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति के खिलाफ सांप्रदायिक भावना से ग्रसित होकर शिकायत करता है, तो शिकायतकर्ता को कोई साक्ष्य देने की आवश्यकता नहीं है.
शिकायत के बाद कथित आरोपी व्यक्ति के खिलाफ मामला पंजीकृत कर लिया जाएगा. केंद्र सरकार की ओर से इस कानून को जो समिति अमलीजामा पहनाएगी, उसमें सात सदस्य होंगे, जिनमें से चार अल्पसंख्यक होंगे, जबकि अधिकतर शिकायतें बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ होंगी. तब क्या यह समिति भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम नहीं करेगी? यानी, आरोपी को निष्पक्ष न्याय मिलने की उम्मीद कुल मिलाकर नहीं करनी चाहिए.
दरअसल, इस विधेयक का पूरा मसौदा ही सांप्रदायिक है और हिंदू-मुस्लिमों में वैमनस्यता को बढ़ाने वाला. केंद्र सरकार का कहना है कि संघ परिवार सहित उसके सहयोगी संगठन बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद आदि इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं और आंदोलनों के माध्यम से लोगों की भावनाओं को भड़का रहे हैं, जबकि सच यह है कि केंद्र सरकार ही इस कानून के बारे में लोगों को भ्रामक जानकारी दे रही है.
जिस विधेयक् को मुस्लिमों का हितैषी बताकर प्रचारित किया जा रहा है, यदि वह लागू होता है, तो क्या बहुसंख्यक समुदाय में अल्पसंख्यकों के प्रति असंतोष नहीं बढ़ेगा. केंद्र की मंशा भी यही है, ताकि 'बांटों और राज करो' की नीति के तहत दोनों समुदायों को लड़ाकर देश पर राज किया जा सके.
यदि केन्द्र की मंशा सांप्रदायिक दंगों को रोकने की है, तो उसे ऐसे उपाय करने चाहिए, ताकि गोधरा व सिख विरोधी दंगों की पुनरावृत्ति न हो, मगर उसने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की मंशा के अनुरूप इस कानून को लागू कराने का जो बीड़ा उठाया है, वह गलत है. लोगों को कांग्रेस की असली मंशा को भांपकर इस कानून का पुरजोर विरोध करना चाहिए. यही देशहित में ठीक होगा.सिद्धार्थ शंकर गौतम उज्जैन में पत्रकार हैं.
कांग्रेस के समर्थन से तीसरे मोर्चे की सरकार संभव:पासवान
26 Nov 2013 05:13:30 PM IST
लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान ने कहा कि अगले साल आम चुनाव के बाद तीसरे मोर्चे की सरकार सिर्फ कांग्रेस के समर्थन से ही संभव है.
पासवान ने कहा, '' चूंकि गठबंधन धर्मनिरपेक्ष होगा तो तीसरा मोर्चा भाजपा का समर्थन नहीं ले सकता, उसे कांग्रेस का समर्थन लेना होगा . इसलिए मैंने कहा है कि मुख्य मुद्दा कांग्रेस है और लोजपा कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाये रखना चाहती है .''
चारा घोटाला के सिलसिले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद के जेल में रहने के बीच पासवान ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भविष्य की रणनीति तय करने के लिए मौजूदा घटक दलों के बीच गंभीर विचार विमर्श की जरूरत है .
पूर्व केन्द्रीय मंत्री ने 'प्रेस ट्रस्ट' को दिये एक इंटरव्यू में कहा कि लोजपा कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाये रखना चाहती है लेकिन अपने सहयोगियों के बारे में फैसला करने का दायित्व कांग्रेस पर है .
उन्होंने कहा, ''हम चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ हमारा गठबंधन बना रहे लेकिन गठबंधन के भविष्य की रणनीति के बारे में उन्हें तय करना है . फिलहाल हम राजद के साथ हैं लेकिन अब चूंकि लालू जी जेल में हैं और चुनाव नजदीक आ रहा है तो इसलिए दलों के बीच गंभीर विचार विमर्श की जरूरत है .''
किसी समय भाजपा नेतृत्व वाले राजग मोच्रे के साथी रहे राज्यसभा सदस्य पासवान ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस उनकी पार्टी की संभावनाओं के खिलाफ गया.
उन्होंने कहा कि अगर बाबरी मस्जिद न गिरी होती तो भाजपा की हालत इतनी खराब नहीं होती. उस मामले पर मतदाताओं ने उसका साथ दिया होता.''यह भाजपा की गलती थी. अगर बाबरी मस्जिद नहीं गिरी होती तो भाजपा के सत्ता में आने का सिलसिला बना रहता.
विश्व बाजार में वर्चस्व जमाता पूंजीवाद
THURSDAY, 05 DECEMBER 2013 19:46
पिछले दो दशकों में देश का विकास भी बेतरतीब हुआ है. देश की आधी से ज्यादा जनता जो गाँवों में रहती है, उसका जीडीपी में योगदान केवल 15 प्रतिशत है. भयंकर बेरोजगारी तथा शहरों की ओर माइग्रेशन रोकने के लिए बहुत जरूरी कि गाँवों में ही कृषि आधारित व्यवसाय लगाए जाएँ...
कन्हैया झा
पिछले दो दशकों के नव-उदारवाद ने विकासशील देशों को लगभग उपनिवेश बनाकर रख दिया है. उपनिवेश पूंजीपतियों के लिए कई महत्वपूर्ण संसाधन जैसे सस्ते मजदूर, जमीन, जंगल आदि उपलब्ध कराते थे. साथ ही पूंजी के लिए निवेश तथा बहु संख्या उत्पादन (mass production) के लिए बाज़ार भी उपलब्ध कराते थे.
फाइल फोटो
आज पूंजीवाद बड़ा पैसा लगाकर पूरे विश्व बाज़ार पर अपना वर्चस्व बनाने में लगा है, जिससे की वह मनचाहा लाभ कमा सके. खाद्यान वस्तुओं के मामले में आज विदेशी बीज कम्पनियों ने उन्नत बीजों के नाम पर विश्व में वर्चस्व बनाया हुआ है. Friends of Earth की अप्रैल 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व बैंक युगांडा सरकार को पाम ऑयल की खेती के लिए पूंजी तथा तकनीकी मदद दे रहा है.
यह कार्यक्रम एक घने जंगल वाले द्वीप में चलाया जा रहा है, जिसके एक चौथाई क्षेत्र के जंगलों को इसी काम के लिए साफ़ कर दिया गया है. हालांकि वहां के स्थानीय लोगों को रोज़गार का आश्वासन दिया गया था, मगर खेती के अत्याधिक मशीनीकरण से आज उन्हें जीवनयापन में भी कठिनाई आ रही है.
बाज़ारों के वैश्वीकरण से खाद्य पदार्थों के प्रत्यक्ष व्यापार तथा सट्टाबाजारी से विदेशी कम्पनियां अपनी पूंजी के बल पर पूरे विश्व पर अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं. 1973 में शुमाखर ने अपनी एक थीसिस Small is Beautiful प्रकाशित की. विकसित देशों ने उसको खारिज कर नव-उदारवाद को अपनाया, क्योंकि उन्हें केवल अधिक लाभ कमाना था.
गरीबी एवं बेरोज़गारी से जूझ रहे विकासशील देशों के लिए यह एक आशा की किरण साबित हो सकती है. आज उत्पादन में automation अर्थात स्वचालन का अधिक उपयोग हो रहा है, जो एक capital intensive अर्थात पूँजी सघन तकनीक है. हम भारत में labor intensive अर्थात 'रोजगार सघन' तकनीक का उपयोग करें, जो पुरानी होने से आसानी से उपलब्ध भी है.
हम mass production की जगह production by masses कर उतना ही उत्पादन कर सकते हैं. आज विश्व में स्वचालित मशीनों से बनी उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुओं की आवश्यकता केवल विकसित देशों में ही है. हम पूंजी के स्थान पर विकसित देशों से स्पर्धा के लिए अपनी युवा जनसंख्या का उपयोग करें, जो पिछले कुछ वर्षों के प्रयास से आज तकनीकी तथा प्रबंधन विषयों में शिक्षित भी है.
शुमाखर बड़ी पूँजी, बड़ी योजनाओं के स्थान पर छोटी पूँजी तथा छोटी योजनाओं के पक्षधर हैं. हाल में प्रकाशित एक लेख में (TOI 9 Nov 2013) 2005 से लागू अस्सी हज़ार करोड़ रुपये की एक योजना (JNURM) की समीक्षा की गयी. इस योजना के अंतर्गत देश के 8000 में से केवल 467 छोटे शहरों की बुनियादी सुविधाओं को ठीक करना था.
यदि यह मान भी लिया जाए कि खर्च किये गये पैसे का पूरा सदुपयोग हुआ, तो भी बजट घाटे को नियंत्रित करते हुए इन बड़ी योजनाओं के लिए हर वर्ष जरूरी पैसे की व्यवस्था करना मुश्किल होता है. यह उसी तरह से है जैसे की एक हाथी को खरीदा तो सही, मगर यदि उसके रोजाना के भोजन की व्यवस्था नहीं की तो बड़ी पूंजी भी गड्ढे में गयी.
पिछले दो दशकों में देश का विकास भी बेतरतीब हुआ है. देश की आधी से ज्यादा जनता जो गाँवों में रहती है, उसका जीडीपी में योगदान केवल 15 प्रतिशत है. भयंकर बेरोजगारी तथा शहरों की ओर माइग्रेशन रोकने के लिए बहुत जरूरी कि गाँवों में ही कृषि आधारित व्यवसाय लगाए जाएँ.
इन उत्पादों की खपत के लिए ग्रामीण क्षेत्र की 'खरीद शक्ति' भी बढानी होगी. पिछले कई वर्षों से चल रही मनरेगा जैसी बड़ी योजनाओं ने ग्रामीण क्षेत्र की खरीद शक्ति तो जरूर बढ़ाई, लेकिन साथ ही उद्योग भी स्थापित किये जाते तो बेहतर नतीजे आते.
शुमाखर ने एक नए अर्थशास्त्र का विचार दिया जिसे उन्होंने 'बुद्ध का अर्थशास्त्र' कहा. पारंपरिक अर्थशास्त्र लाभ की गणना में पर्यावरण के नुक्सान अथवा मूल्य को नज़रअंदाज़ करता है. बढती आबादी तथा सीमित क्षेत्रफल के कारण भारत कटते हुए जंगल, विदूषित पानी एवं जमीन आदि को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.
एडम स्मिथ की किताब Wealth of Nations में पिन बनाने वाली एक ऐसी फैक्ट्री की कल्पना दी है, जिसमें बहु-संख्यक उत्पादन के लिए कारीगर के लिए कुछ खास करने का नहीं होता. शुमाखर के अनुसार कारीगरों से इस तरह के निरर्थक तथा उबाऊ काम कराना आपराधिक होता है.
यदि कोई व्यक्ति रोजाना ऐसे उबाऊ काम करता रहे, तो निराशा से उसमें भी आपराधिक प्रवृत्तियों का जन्म हो सकता है. बेरोज़गारी से परेशान किसी व्यक्ति को यदि घर बैठे पैसे मिलने लग जाएँ तो भो वो अपने अहम् की संतुष्टि के लिए काम करना चाहेगा, जहां उसकी अपेक्षा काम के एक स्वस्थ वातावरण की होगी.
पूंजीवाद के मुकाबले शुमाखर की Small is Beautiful कल्पना में जीडीपी बेशक कम हो, पर जीएचपी अर्थात Gross Happiness Product कहीं ज्यादा है. साथ ही उस खुशी के 'उत्पादन' तथा भोग दोनों में ही जड़ एवं चेतन सभी की सहभागिता है. इस कल्पना को साकार करने में शिक्षा के नए आयामों का विस्तार से वर्णन किया है. पूंजीवाद के विपरीत शुमाखर की विकास योजना में जनता सहर्ष सहयोग करे, इसमें मीडिया का भी एक महत्वपूर्ण दायित्व बन जाता है.कन्हैया झा शोध छात्र हैं.
सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा विरोधी कानून क्यों?
निर्मल रानी भारत ही नहीं लगभग पूरा विश्व कभी न कभी सांप्रदायिक, जातीय, भाषाई अथवा वर्गवाद सम्बंधी हिंसा का शिकार होता रहा है। और यह सिलसिला अभी तक जारी है। पूरे विश्व में घटने वाली इस प्रकार की वर्ग भेदपूर्ण हिंसक घटनाओं में प्राय: यह देखा गया है कि अधिकांशत: बहुसंख्य समुदाय अथवा वर्ग से सम्बंध रखने वाले लोगों द्वारा ही अल्पसंख्यक समाज अथवा समुदाय के लोगों को जान व माल का नुक़सान पहुँचाया जाता रहा है। इतना ही नहीं बल्कि ऐसी घटनाओं में यह भी देखा गया है कि आमतौर पर सरकार व प्रशासन भी प्राय: हिंसक बहुसंख्य समाज के विरुद्ध किसी प्रकार की सख़्त कार्रवाई करने अथवा ऐसी हिंसा को रोकने में नाकाम दिखाई दिया। उदाहरण के तौर पर पड़ोसी देशों पाकिस्तान व बंगलादेश में रहने वाले हिंदू, सिख, शिया व अहमदिया, इसाई व बौद्ध धर्म के अनुयाईयों को समय-समय पर वहाँ के बहुसंख्यक कट्टरपंथी मुसलमानों की हिंसा का शिकार होना पड़ता है। पाक सरकार इसे रोकने में असहाय दिखायी देती है। पिछले दिनों बर्मा से समाचार प्राप्त हुये कि किस प्रकार बहुसंख्य बौद्धों द्वारा वहाँ के रोहंगिया मुस्लिम समुदाय के लोगों को हिंसा का शिकार बनाया गया। श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान तथा कई अमेरिकी व अफ्ऱीकी देश इसी प्रकार की हिंसा का शिकार रह चुके हैं जिसमें कि स्थानीय बहुसंख्यकों द्वारा वहाँ के अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म ढाये गये और सरकार व प्रशासन या तो बहुसंख्य समाज के पक्ष में खड़ा दिखायी दिया या फिर मूकदर्शक बना रहकर स्थानीय अल्पसंख्यकों को ज़ुल्म सहने के लिये मजबूर देखता रहा।
हमारा देश भी कभी-कभी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से रूबरू होता रहा है। कभी कश्मीर घाटी के बहुसंख्य मुस्लिम समाज तथा अलगाववादी शक्तियों की हिंसा का निशाना घाटी के अल्पसंख्यक हिन्दुओं व सिखों को बनना पड़ता है तो कभी कई पूर्वोत्तर राज्यों में बहुसंख्य इसाई व इनसे संबद्ध आतंकी स्थानीय अल्पसंख्यक हिंदू समाज को अपनी हिंसा का शिकार बनाते हैं। कभी उड़ीसा के कंधमाल जैसी घटना में बहुसंख्य हिंदू समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक ईसाईयों को जान व माल की भारी क्षति पहुँचाई जाती है तो कभी दिल्ली सहित देश के कई स्थानों पर 1984 में हुये सिख विरोधी दंगों के दौरान बहुसंख्य हिंदू समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक सिखों को निशाना बनाया जाता है। कभी गुजरात, भागलपुर, मेरठ व मलियाना जैसी सांप्रदायिक हिंसक घटनाओं में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोग बहुसंख्य समाज से सम्बंध रखने वाले सांप्रदायिक लोगों की हिंसा का
निर्मल रानी, लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
शिकार होते दिखायी देते हैं। उपरोक्त सभी सांप्रदायिक दंगों अथवा सांप्रदायिक हिंसा में एक बात साफतौर पर देखी गयी है कि प्रशासन की ओर से या तो इस हिंसा से निपटने की ईमानदाराना कोशिश नहीं की जाती या फिर परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से प्रशासन स्वयं ऐसी हिंसा को अपनी मूक सहमति प्रदान करता है। परिणामस्वरूप दंगाई हिंसा का ऐसा तांडव दिखाते हैं गोया सरकार,पुलिस अथवा प्रशासन नाम की कोई चीज़ ही न हो और सडक़ों पर केवल दंगाईयों का ही राज हो। कश्मीर, पंजाब, गुजरात, दिल्ली(सिख नरसंहार), उड़ीसा से लेकर पूर्वोत्तर तक यह नज़ारा देखा जाता रहा है।
प्रश्र यह है कि यदि इस प्रकार के सांप्रदायिक हिंसापूर्ण तांडव को रोकने के उपाय किये जायें तो इसमें आख़िर क्या हर्ज है?कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद द्वारा इस विषय पर एक विधेयक की रूपरेखा तैयार की गयी है जिसे सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक का नाम दिया गया है। अपने 2004 के चुनाव घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने देश के धार्मिक, जातीय, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातिय व भाषाई अल्पसंख्यकों पर होने वाले ज़ुल्म को रोकने के लिये क़ानून बनाने का वादा किया था। उसी के तहत इस विधेयक का मसौदा देश के जाने-माने विधि विशेषज्ञों व सामाजिक कार्यकर्ताओं के सुझावों, सहमति व सलाह के साथ तैयार किया गया है। परन्तु लगता है इस विधेयक को भी अमन, शांति तथा न्याय का प्रतीक बनाने के बजाये उलटे सांप्रदायिकता तथा वैमनस्य फैलाने का माध्यम बनाया जा रहा है। इस विधेयक के विरोध में भारतीय जनता पार्टी तथा संघ परिवार के संगठन जहाँ खुलकर सामने हैं वहीं आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस तथा एआईएडीएमके व अकाली दल,शिवसेना जैसे राजनैतिक संगठन भी सोनिया गांधी द्वारा तैयार कराये गये इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। संघ परिवार व भाजपा इस विधेयक के विरुद्ध इस प्रकार का प्रचार कर रहे हैं कि 'यह विधेयक देश के प्रशासन व संघीय ढाँचे के बिल्कुल विपरीत है। इस क़ानून के तहत यदि कोई अल्पसंख्यक किसी बहुसंख्यक के विरुद्ध कोई आरोप लगाता है तो यह मान लिया जायेगा कि यह आरोप सत्य है और उसे जेल भेज दिया जायेगा।' आरजेडी व तृणमूल कांग्रेस जैसे दलों का मत है कि 'यदि यह विधेयक पारित हुआ तो देश बँट जायेगा। यह दिलों को बाँटने वाला क़ानून है व देश की एकता व अखण्डता के लिये ख़तरा भी है।' कुछ प्रशासनिक अधिकारी भी इस विधेयक की यह कहते हुये आलोचना कर रहे हैं कि 'ऐसा क़ानून अधिकारियों व पुलिस कर्मियों को सामान्य डयूटी निभाने में अवरोधक का काम करेगा।'
विधेयक की इन आलोचनाओं के मध्य सबसे बड़ा प्रश्र यह है कि किसी भी धर्म व जाति के व्यक्ति के जान व माल को सांप्रदायिक हिंसा से बचाना ज़रूरी है अथवा नहीं? क्या यह तथ्यपूर्ण सत्य नहीं है कि प्राय: अलपसंख्यक समाज ही बहुसंख्यक समाज द्वारा हिंसा का शिकार बनाया जाता है? ऐसे विधेयक को कुछ उचित संशोधनों के साथ पारित कराये जाने के लिये देश के सभी राजनैतिक दलों को ईमानदारी से एकजुट होना चाहिए अथवा इस विधेयक को भी सांप्रदायिकता फैलाने का हथियार बना लेना चाहिए? जैसा कि कोशिश भी की जा रही है। पूर्व में हुयी राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडू, बिहार तथा पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों द्वारा इस विधेयक का विरोध किया जा चुका है। यूपीए सरकार भी इस प्रस्तावित विधेयक के व्यापक विरोध से घबराई हुयी नज़र आ रही है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रहमान खां ने पिछले दिनों यह कहा था कि संसद के शीतकालीन सत्र में यह विधेयक पेश किया जा सकता है। परन्तु गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का कहना है कि वे इस विषय पर पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कह सकते। गोया यूपीए सरकार स्वयं ही अपने ही विधेयक को क़ानून की शक्ल देने से या तो कतराने लगी है या फिर घबरा रही है। परन्तु इन सबके बीच इस विधेयक को पारित करने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर बुद्धिजीवी वर्ग का दबाव केन्द्र सरकार पर बढ़ता जा रहा है।
गत् 23 व 24 नवंबर को देश के प्रमुख राजनैतिक नगर इलाहाबाद में इस विषय पर 14 संगठनों के सहयोग से दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें रैली, सेमिनार,जनसभा व गोष्ठी आदि के माध्यम से सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा (न्याय और क्षतिपूर्ति तक पहुंच) विरोधी क़ानून 2011 बिना किसी देरी के संसद के शीत सत्र में पारित कराये जाने का सरकार पर दबाव डाला गया। देश के जाने-माने विधिवेत्ता न्यायमूर्ति पीवी सावंत पूर्व न्यायधीश सर्वोच्च न्यायालय, न्यायमूर्ति हुस्बत सुरेश पूर्व जज मुंबई उच्च न्यायालय,जस्टिस फखरूद्दीन पूर्व जज मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट तथा जस्टिस बीजी कल्से पाटिल पूर्व जज मुंबई उच्च न्यायालय आदि का इस आयोजन को समर्थन व सहयोग प्राप्त था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फ़रमान अली नक़वी के संयोजकत्व में आयोजित इस कार्यक्रम मेंपीयूसीएल, आज़ादी बचाओ आंदोलन, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ, इंस्टीच्यूट फ़ॉर सोशल डेमोक्रेसी, अखिल भारतीय एससीएसटी परिसंघ,ह्यूमैन राईटस लॉ नेटवर्क, अवामी कौंसिल फ़ार पीस एंड डेमोक्रेसी, इतिहास बौद्ध मंच, सोशलिस्ट इनिशियेटिव, जागृत समाज,ग़रीबी संघर्ष मोर्चा, समानांतर, शहरी ग़रीब संघर्ष मोर्चा तथा जोश ऐंड फ़िराक़ लिटरेरी सोसाईटी जैसे सामाजिक व साहित्यिक संगठन इस आयोजन में प्रमुख सहभागी थे। वहीं देश की जानी-मानी हस्तियों जैसे तीस्ता सीतलवाड़ सामाजिक कार्यकर्ता, आर बी श्रीकुमार पूर्व डीजीपी गुजरात, लेखक अली जावेद, 1984 सिख विरोधी दंगों के प्रमुख वकील एच एस फुलका, फ़ादर सैंड्रिक प्रकाश, डीपी त्रिपाठी राज्यसभा सदस्य, अपूर्व नंदा, सुमन गुप्ता, प्रोफेसर इरफ़ान अली,आलोक राय, ललित जोशी(इतिहासकार), पत्रकार एसएमए काज़मी, शीतला सिंह, डा०एस एल हरदेनिया, लाल बहादुर वर्मा,कमल कृष्ण राय, डा० गिारीश वर्मा, रवि किरण जैन तथा एस डी जेएस प्रसाद जैसे बुद्धिजीवियों द्वारा इलाहाबाद में आयोजित दो दिवसीय आयोजन के माध्यम से केन्द्र सरकार पर यह दबाव डाला गया कि वह संसद के शीतकालीन सत्र में राज्य सभा में इस विधेयक को अविलंब पारित कराये। कार्यक्रम संयोजक फ़रमान अली नक़वी के अनुसार विधेयक के समर्थन में उपराष्ट्रपति को एक लाख नागरिकों द्वारा लिखा गया पत्र भेजा जायेगा तथा सभी सांसदों से इस विधेयक पर सहयोग देने के लिये सम्पर्क स्थापित किया जायेगा। इसकी शुरुआत इलाहाबाद के सांसद रेवती रमण सिंह से मुलाकात कर उन्हें विधेयक के समर्थन में ज्ञापन सौंपकर की जा चुकी है। निश्चित रूप से देश को ऐसे क़ानून की सख़्त ज़रूरत है जो देश के किसी भी क्षेत्र में रहने वाले किसी भी धर्म, जाति व भाषा से संबद्ध अल्पसंख्यक समाज के लोगों को किसी भी बहुसंख्य समाज की हिंसा से बचा सके। ऐसे विधेयक पर राजनीति करने के बजाये इस का समर्थन किया जाना चाहिए।
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