फूलमतिया कहां किसके साथ राथ बिताइली,हंगामा इसीपर है!
बिहारे फेर नीतीश कुमार,समोसा हुई गवा लक्जरी!
अब सवाल है कि क्या विधर्मियों के सफाये से किसी देश के तमाम बुनियादी मसले हल हो जाते हैं जबकि तेल पीज जानेवालों के हवाले देश है।दुनिया है।
पलाश विश्वास
अकबका गये तो कुछ दोष नाहिं गुसाई।दिमाग का फलुदा हो गया।
बिहारे नीतीश कुमार फेर,जनादेश पुराना भी नहीं हुआ रहा कि मिठाई पर लक्जरी टैक्स लगा दिया।
अब जी का जंजाल हुआ जाये बिहारियों की भैंसोलाजी कि जबतक समोसे में रहेगा लालू,राज करेगा लालू।
लालू की भैंस तो गई पानी में।
बहरहाल लालू का जलवा ते वहींच ह। राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर बीजेपी और आरएसएस पर हमला बोला है. लालू प्रसाद यादव ने बीजेपी और आरएसएस पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस वाले खटमल हैं। ये लोग खटमल की तरह निकलकर लोगों को काटते रहते हैं. ।
यही नहीं लालू ने आरएसएस पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि सांप्रदायिकता ही इन दोनों संगठनों की पूंजी है।
लालू ने नसीहत की अंदाज में कहा कि इन्हें बाकी सब बातों पर ध्यान देने की जगह देश की समस्या और आतंकवाद की समस्या पर ध्यान देना चाहिए।
जो हो सो हो ,बिहार का जलेबी सिंघाढ़ा वाला नास्ता तो गया।
सामने बजट है।
होशियार हो जाओ भाया।
बजट से पहले सामाजिक न्याय का ई नजारा ह तो आगे आगे का होई।
निवेशक पहले से ही कच्चे तेल के अत्यधिक उत्पादन और रिफाइंड उत्पादों के बढ़ते भंडार से चिंतित थे, इसी बीच चीनी शेयर बाजारों में भारी गिरावट की वजह से तेल की कीमत गुरुवार को 33 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच गई। अप्रैल, 2004 के बाद यह तेल की न्यूनतम कीमत है।
वर्ष 2014 के मध्य से तेल की कीमतों में करीब 70 फीसदी गिरावट आई है, जिसके चलते उन तेल कंपनियों और सरकारों को नुकसान हुआ है जो कच्चे तेल की कमाई पर भरोसा करती हैं।
ब्रेंट की कीमतें करीब 5 फीसदी गिरकर 32.16 डॉलर के निचले स्तर पर पहुंच गईं, हालांकि कारोबार बढऩे के साथ कीमतों में कुछ सुधार देखने को मिला।
अमेरिकी क्रूड वायदा 32.10 डॉलर प्रति बैरल के निचले स्तर तक गिर गया। हालांकि तेल की कीमतों में आई इस गिरावट से गोल्डमैन सैक्स का वह अनुमान सच साबित होता दिख रहा है जिसमें कहा गया था कि वर्ष 2016 में कच्चे तेल की कीमत 20 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं।
विश्लेषकों का अनुमान है कि दुनिया भर में तेल के भंडार में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है जिससे कीमतों पर दबाव और भी बढ़ सकता है।
तकनीकी विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में भी कीमतों को थामने वाले कारकों की भारी कमी देखने को मिल रही है। एशिया और खास तौर पर चीन में मांग कमजोर होने की वजह से तेल बाजार को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जो इन दिनों मंदी के दौर से गुजर रहा है। गुरुवार को युआन में आई भारी गिरावट से क्षेत्रीय मुद्राएं और शेयर बाजारों में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई।
सीधा हिसाब है कि जब कच्चा तेल 160 डालर बिक रहा था,तब आटा चावल दाल तेल सब्जी मछली मांस वगैरह बगैरह किचन की जरुरी चीजों का भाव किराने का बही खाता रखे हों,तो जोड़कर देख लें।अब का का भाव है,आप सगरे जानत हो।
घरेलू बजट की छो़ड़िये।रुपया डांवाडोल है। डॉलर के मुकाबले रुपये में आज भारी गिरावट आई है।
रुपया 28 महीने के निचले स्तर पर लुढ़क गया है। 1 डॉलर की कीमत 67.30 रुपये के करीब पहुंच गई है। आज डॉलर के मुकाबले रुपया 44 पैसे यानि करीब 0.75 फीसदी की भारी गिरावट के साथ 67.29 के स्तर पर बंद हुआ है। आज डॉलर के मुकाबले रुपया 66.98 के स्तर पर खुला था, जबकि कल के कारोबार में रुपया 66.85 पर बंद हुआ था।
गौर करने वाली बात ये है कि डॉलर में गिरावट के बावजूद रुपये में कमजोरी आई है। दरअसल शेयर बाजारों में गिरावट से रुपये पर दबाव बढ़ता जा रहा है। बाजार में विदेशी निवेश घटने से रुपये पर दबाव बन रहा है।
चिकित्सा और शिक्षा का बजटभी तनिको चेक कर लीजिये।
परिवहन बिजली वगैरह अलग से।घरेलू बजट में राहत कितनी मिली है।जबकि आंकडे़ कुछ और कहते हैं। मसलन सरकार भले ही थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति को काबू कर शून्य से नीचे रखने में कामयाब रही हो लेकिन खाद्य वस्तुओं की बढ़ती महंगाई दर बड़ी चुनौती बनी हुई है।
मसलन खाद्य महंगाई दर लगातार बढ़ते हुए दिसंबर में 8.17 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
खास बात यह है कि केंद्र की तमाम कोशिशों के बावजूद दलहन की महंगाई दर थमने का नाम नहीं ले रही है। वहीं प्याज सहित विभिन्न सब्जियों की कीमतें भी चुनौतियां पेश कर रही हैं।
बहरहाल सरकार ने गुरुवार को थोक महंगाई दर के आंकड़े जारी किए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2015 में थोक महंगाई दर मामूली चढ़कर -0.73 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
देश की अर्थव्यवस्था का हाल बुलेट ट्रेनवा ह तो घरेलू बजट क्यों डांवाडोल होना चाहिए और अच्छे दिन का नजारा ई कि समोसे और मिठाई पर भी लक्जरी टैक्स।
कल अगर खुदा न खस्ता फिर हवा पानी खाने पीने और जीने पर बी टैक्स लग जाये तो अजब गजब न कहियेगा।
अब इसे बी समझ लें।केंद्र सरकार की नजर अब छोटी बचतों पर ब्याज दर घटाने की है। सरकार का इरादा आने वाले समय में पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) और नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी) पर दी जा रही मौजूदा ब्याज दरों में कटौती करने का है। 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती हालांकि यह कटौती कितने फीसदी की होगी इस बारे में अभी को भी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। एक अंग्रेजी अखबार की खबर के मुताबिक, आरबीआई 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती कर सकता है।
इतना ही नहीं ऐसा अनुमान है कि फिक्स डिपॉजिट पर मिलने वाली ब्याज दर में भी कमी की जा सकती है।
इसीतरह सरकार ने 6,050 करोड़ रुपये के पांच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रस्तावों को आज मंजूरी दे दी है। इसमें कैडिला में 5,000 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव भी शामिल है। कैडिला पात्र संस्थागत निवेशकों को शेयर बेचकर यह पूंजी जुटा रही है। इस पूंजी को कंपनी विस्तार कार्यक्रम में लगाएगी। एक आधिकारिक बयान के अनुसार, 'विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की 21 दिसंबर को हुई बैठक की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने कुल 6,050.10 करोड़ रुपये के एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी दी है।
बहरहाल रेटिंग एजेन्सी मूडीज ने कहा है कि लक्षित राजकोषीय घाटे में मामूली घटबढ़ का निकट भविष्य में भारत की सावरेन रेटिंग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मूडीज की सहायक प्रबंध निदेशक (सावरेन रेटिंग्स) अत्सी सेठ ने यहां कहा कि भारत की राजकोषीय स्थिति बहुत कमजोर है। भले ही राजकोषीय लक्ष्य हासिल कर लिया जाए, राजकोषीय स्थिति कमजोर रहेगी। इसलिए, लक्ष्य हासिल कर लेने से भी रेटिंग पर कोई खास असर पड़ने नहीं जा रहा है और मामूली चूक का भी कोई असर नहीं होगा। वैश्विक रेटिंग एजेन्सी ने देश पर सकारात्मक परिदृश्य के साथ 'बीएए3' की रेटिंग दे रखी है।
तेल युद्ध और अरब वसंत का नजारा है कि सारा तेल चूं चूं कर वाया आईसिस अमेरिका और इजराइल पहुंच रहा है और ओपेक देशों का तोल बाजार पर कोई नियंत्रण है ही नहीं।
तो कच्चा तेल का भाव हो गया तीस डालर प्रति बैरल।
जो कभी भी बीस डालर हो सकता है।
संभावना दस डालर प्रति बैरल होजाने की है।
गौरतलब है कि कच्चे तेल का भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता है और भारतीयअर्थव्यवस्था की हालत सत्तर के दशक से तेल पर खर्च हो रहे विदेशी मुद्रा की वजह से खस्ता हाल है,यह जगजाहिरे है।
गौरतलब है कि बजट घाटा में योगदान सबसे ज्यादा कच्चे तेल के आयात की वजह से है।रही सही कसर बांग्लादेश विजय के बाद निरंतर हथियारों का सुरसा मुखी आयात है,जिससे अब परमाणु चूल्हा नत्थी हो गया।
रोजे रक्षा सौदा।दलाली की बात हम उठा नहीं रहे हैं।उठाते हुए कितने लोग उठ गये.अभी कुछो साबित नहीं हुआ है जैसे कि शारदा चिटफंडवा का मामला है।
फिर बाकी सारी सेवाओं और प्रतिष्टानों की तरह,हरचीज मय भारत सरकार और राज्यसरकारों और समूची राजनीति से लेकर अपराध तक एफोडीआई ग्रीक त्रासदी है।
फूलमतिया कहां किसके साथ राथ बिताइली,हंगामा इसीपर है।
तेल पर खर्च अगर 160 डालर के पैमाने पर तीस डालर भी है तो इस हिसाब से अर्थव्यवस्था पर दबाव में कमी भी होनी चाहिए।मंहगाई और मुद्रास्फीति की चर्चा होते ही अर्थशास्त्री कल तक कच्चा तेल का रोना रोते रहते थे।
अब सारे लोग इस मुद्दे पर चुप्पा मार गये कि तेल अगर सस्ता हुआ है तो मंहगाई औरमुद्रास्फीति इतनी बेलगाम क्यों है जबति अर्थव्यवस्था की सेहत बाबुलंद बतायी जा रही है।
इस हिसाब से चीजों और सेवाओं की कीमतें तो एक चौथाई रह जानी है।लेकिन हो इसका उलत रहा है कि लंगोट और लुंगी भी खतरे में हैं कि राष्ट्रहित के मुक्त बाजार में में कब छीन जाई।
बजट बनाते हुए जनसुनवाई कभी हुई हो,ऐसा भारतीय इतिहास में कोई वाकया हो,तो हमें जरुर जानकारी दें।
बहरहाल नयका फंडा ई ह कि 2016-17 के बजट निर्माण के लिए सरकार ने आम लोगों से भी राय मांगी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा सुझावों को बजट में शामिल किया जा सके। बजट से जुड़े कोई सुझाव आपके पास भी हैं, तो आप कहीं क्लिक कर अपनी राय से सरकार को अवगत करा सकते हैं ...मौका ह तो क्लिकवा बी कर दें।
सुनवाई पूंजीपतियों की हो रही है।
मसलन सरकार वित्त वर्ष 2016-17 के लिए 29 फरवरी को वार्षिक बजट पेश करेगी। यह जानकारी गुरुवार को वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने दी। मोदी सरकार के लिए यह दूसरा पूर्णकालिक बजट है। वित्त मंत्री बजट पूर्व विचार-विमर्श के लिए 4 जनवरी से ही इंडस्ट्री, ट्रेड यूनियंस और अर्थशास्त्रियों समेत विभिन्न पक्षों से बात कर रहे हैं। बजट से पहले विचार-विमर्श की यह परंपरा इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इससे सरकार को उचित नीतियां बनाने में मदद मिलती है। 2016-17 के बजट निर्माण के लिए सरकार ने आम लोगों से भी राय मांगी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा सुझावों को बजट में शामिल किया जा सके।
यह भी समझ लें कि भारत के आधार डिजिटल पहचान पत्र की प्रशंसा करते हुए विश्व बैंक ने कहा है कि इस पहल से भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के मद्देनजर भारत सरकार को करीब एक अरब डालर की बचत हो रही है।
बहुपक्षीय संस्था ने कहा कि डिजिटल प्रौद्योगिकियां समावेश, दक्षता और नवोन्मेष को बढावा दे सकती हैं। विश्वबैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने डिजिटल लाभ पर रपट जारी करते हुए संवाददाताओं से कहा, ''हमारा अनुमान है कि आधार डिजिटल पहचान पत्र से भ्रष्टाचार कम होने के कारण भारत सरकार के लिए सालाना करीब एक अरब डालर (650 करोड रुपए) की बचत हुई।
जो फुक्का फाड़े रो चिंघाड़ रहे हैं कि कारोबार के लिए टैक्स बहुते जियादा है।अरुण जेटली उन्हें धाड़स दे रहे हैं कि थमके,टैक्स का इंतजाम कर देते हैं।
फिर वही सवाल कि तेल का बचत कहां गायब है।160-30 यानी 150 डालर की बचत का हिसाब किताब क्या है।किस किसके जेब में यह खजाना गया है।
राजनीति यह सवाल नहीं पूछ रही है।सामाजिक न्याय के चितेरे भी राजस्व घाटा पाटने के लिए मुखर्जी चिदंबरम और जेटली के चरण चिन्हों को चूम चूमकर आगे बढ़ते जा रहे हैं।
कारपोरेट टैक्स में लगातार कटौती होती रही है।अब उसका टंटा ही खत्म करने की तैयारी है।
टैक्स जो आखेर माफ होता है,कर्ज जो आखेर माफ होता है,कर्ज जो हजारों करोड़ का बकाया है,उसका कोई हिसाब किताब है नहीं।
विदेशी निवेशक के चेहरे हमेशा परदे के पीछे हैं।
मारीशस,दुबई और सिंगापुर से जो धुआंधार निवेश हो रहा है और शेयर बाजार से हमें नत्थी करके जो मुनाफावसूली का सांढ़ बनाम भालू खेल है,वह धर्मांध सुनामी में डिजिटल इंडिया के पढ़े लिखे नागरिकों को बी नजर नहीं आवै,तो तेल का हिसाब किताब पूछने के बजाये समोसे और मिठाई तक पर लक्जरी चैक्स लगाने के राजकाज पर बल्ले बल्ले होना चाहिए।
अब टैक्स के मामले में तो समानता भरपूर है।जो अरबपति हैं,उनके मत्थ पर बोझ जाहिरे है कि सबसे जियादा है,तो उसे उतारने में केंद्र और राज्यसरकारों की सरदर्द कुछ जियादा ही है।
आम जनता तो जो टैक्स भर सकती है,उनकी फटीचर औकात के मुताबिक वह बहुतै कम है और देश की अर्थव्यवस्था उसे चल नहीं सकती।इसलिए वित्तीय प्रबंधकों और बगुलाभगत विशेषज्ञ निनानब्वे फीसद जनता का टैक्स बढ़ाकर राजस्व घाटा और वित्तीयघाटा दूर करना चाहते हैं तो उनसे अलग नहीं है समता और सामाजिक बदलाव के चितेरे भी।
हिंदुत्ववादियों के लिए खुशखबरी है कि मैडम हिलेरी को अब इजराइल का कोई समर्थन नहीं है और रिपब्लिकन ट्रंप के हक में डेमोक्रेट वोट बीस फीसद के करीब टूट जाने की खबर है।
ट्रंप भाया लगता है कि नागपुर से दीक्षा ली हुई है और उन्होंने अमेरिका को मुसलमानों से वैसे ही रिहा करने पर आमादा हैं जैसे हमारे भाग्यविधाता हिंदू राष्ट्र के लिए गैर हिंदुओं का सफाया करना चाहते हैं।
इसका आलम यह है कि अमेरिका के पड़ोसी देश यूरोप की तरह घबड़ा गया है कि जैसे अफ्रीका और मध्यपूर्व के शरमार्ती सैलाब ने उनका कबाड़ा कर दिया है वैसे ही अमेरिका से शरणार्थी सुनामी कनाडा का सूपड़ा साफ कर देगी।
नतीजतन कनाडा ने ऐहतियाती तौर पर अमेरिका से लगी सीमाओं पर फेस लगा दी है।
अमेरिका राष्ट्रपति ने जो अपने आखिरी भाषण में धर्म और नस्ल के प्रति विद्वेष और घृणा के खिलाफ मनुष्यता के लिए गुहार लगाई है,उसके बाद वे बिरंची बाबा टायटैनिक बाबा के कितने मित्र बने रहेंगे ,अब यह भी देखना है।
अब सवाल है कि क्या विधर्मियों के सफाये से किसी देश के तमाम बुनियादी मसले हल हो जाते हैं जबकि तेल पीज जानेवालों के हवाले देश है।दुनिया है।
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