कानून और संविधान की धज्जी उड़ाते हुए सरकार ने की "लैंड पुलिंग"
-संपादक "हस्तक्षेप"
लैंड पुलिंग स्कीम-फार्मर्स किलिंग स्कीम -3
चंद्रबाबू नायडू की कैपिटल सिटी परियोजना से गांव में एक तरफ ज्यादातर लोग भयाक्रांत हैं तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस परियोजना को "सिंगापुर-नायडू कैपिटल सिटी" तो कुछ लोग सी० आर० डी० ए० को "चंद्रबाबू रियल स्टेट डेवलपमेंट ऑथोरिटी" कहकर अपनी पीड़ा एक पल के लिए कम कर लेना चाहते हैं। रायपुरी ग्राम की 2 हजार एकड़ जमीन अधिग्रहण में जा रही है। 500 कृषक परिवार के पास खेती के अलावा जीवन जीने के लिए दूसरा वैकल्पिक स्रोत नहीं है। एक किसान के घर पर पुलिस का पहरा है और सैकड़ों लोग जमा हैं। यह तेलुगू देशम के मंडल प्रभारी का आवास है। किसानों को भूदस्तावेजों की प्राथमिकता की जांच के लिए भू राजस्व अधिकारी ने बुलवाया था। अब पुलिस और तेलुगू देशम का दबाव कायम कर लैंड पुलिंग के फॉर्म पर सहमति हस्ताक्षर लिया जा रहा है। इस गांव के तीन किसानों को पुलिस कल घर से उठा कर ले गयी थी। गहन – पूछताछ के बाद इन्हें आज सुबह वापस भेज दिया गया है।
ठुल्लुर मंडल में एक स्कूल के सामने आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी की पाषाण – प्रतिमा खड़ी है। यहां दलितों की आबादी ज्यादा है। उदनायपालम के सुरेश नंदीगम को पुलिस घर से क्यों उठा ले गर्यी थी। सुरेश ने पिछले माह "लैंड पुलिंग" के खिलाफ मीडिया में बयान दिया था। सुरेश ने तेलुगू देशम के स्थानीय विधायक श्रवण कुमार से सवाल पूछा था। लैंड पुलिंग के खिलाफ विधायक से सवाल पूछना इतना बुरा हो गया कि पुलिस अपराधियों की तरह घर से उठा ले गयी। मंगलगिरी पुलिस स्टेशन में 20 घंटो से ज्यादा देर तक सुरेश को रोके रखा गया और मानसिक तौर से प्रताड़ित किया गया। इस तरह जनवरी माह के प्रथम सप्ताह तक 300 से ज्यादा युवाओं को पुलिस ने थाने बुलाकर मानसिक यंत्रणा दी है।
अम्मा नागरतनम् कहती हैं कि हम भूस्वामी नहीं हैं, बावजूद पट्टे की खेती से खुशहाल तो हैं। क्या राजधानी के लिए हम अपनी जिंदगी की तिलांजलि दे दें।
एन० टी० रामाराव, राजशेखर रेड्डी और बाबा साहब अंबेडकर की प्रस्तर – प्रतिमाऐं एक ही चौराहे पर खड़ी है। ईश्वर और नेताओं की प्रतिमाओं के मायने में आंध्र प्रदेश प० बंगाल को पीछे छोड़ चुका है। ठुल्लुर पुलिस स्टेशन के आजू-बाजू 20 से ज्यादा पुलिस की गाड़ियां खड़ी हैं। आंध्र प्रदेश स्पेशल पुलिस फोर्स और पारा मिलिट्री की कई कंपनियां कैपिटल सिटी के निर्माण के निमित्त भू-अधिग्रहण की प्रक्रिया में भूराजस्व अधिकारियों और क्षेत्रीय विकास अधिकारियों को ताकत प्रदान कर रही है।
अनुमोलू वेंकटेश गांधी की चमकती हुई मंहगी गाड़ी और विजयवाडा़ में अपने पसीने की कमाई से निर्मित अपार्टमेंट के बाहरी विन्यास से अगर आप इन्हें अमीरों की श्रेणी में रखेंगे तो बड़ी चूक होगी। गांधी से एक मेहनती आदर्श कृषक के रूप में परिचित होना ज्यादा जरूरी हैं कैपिटल सिटी से विस्थापित हो रहे किसानों की समृद्धि के आकलन में अनुमोलू गांधी एक प्रतीक हो सकते हैं। मैंने म० प्र०, बिहार, उ० प्र०, राजस्थान, महाराष्ट्र में 100 एकड़ की खेती करने वाले कृषक को अभावग्रस्त देखा है। अनुमोलू गांधी अगर 50 एकड़ खेती की कृषि पैदावार की ताकत से संपन्न कृषक रूप में हमारे सामन उपस्थित हैं तो जाहिर है कि गुंटूंर, कृष्णा, मंगलगिरी इलाके का एक भी किसान बिहार, उ० प्र० के किसानो की तरह विपन्न अभावग्रस्त और कर्जों में नहीं डूबा है। गांधी ने स्पष्ट कहा कि हमारी अमीरी खेती-किसानी पर टिकी है, खेती हमारे हाथ से गयी तो हमारी अमीरी तो खत्म होगी ही हमारी रगों के भीतर दौड़ता हुआ रक्त का प्रवाह भी अचानक ठहर जाये तो आश्चर्य नहीं। मेरी मुलाकात एक ऐसे कृषक से हुई, जो अपनी खेत की एक – एक फसल के साथ संतानों की तरह जुड़ाव महसूस करता है। अनुमोलू गांधी अपनी जमीन को अपनी मां मानते हैं और कहते हैं कि हमारी जमीन का हमसे छीनने का मतलब है, मेरी मां का मुझसे छीन जाना। "लैंड पुलिंग स्कीम" के तहत "सी० आर० डी० ए०" ने खेती की जमीन के बदले विकसित नगरीय क्षेत्र में एक चैथाई से भी कम जमीन उपलब्ध कराने और दस बर्ष तक वार्षिक पेंशन की जो शर्त रखी है, इसे अनुमोलू गांधी धोखा, छल और फरेब से ज्यादा कुछ नहीं मानते हैं।
अनुमोलू गांधी की संपन्नता की वजह यह है कि वे अपनी खेती से माटी को सोना बनाने की तरकीब जानते हैं। यह क्षेत्र देश का सबसे ज्यादा उपजाऊ क्षेत्र है, जिसकी तुलना पंजाब के इंडोगेगेटिक क्षेत्र और गोदावरी क्षेत्र से की जा सकती है। कृष्णा नदी के किनारे वाला इलाका बहुत ज्यादा उपजाऊ है। नदी के द्वारा बहाकर लायी गयी माटी में बहुत ज्यादा पैदावार होती है। रायपुरी, पेनामाका, लिंगायपालम, वेंकटापालम, बुंदावल्ली, अब्बू राजू पालम गांव के लोग किसी कीमत पर जमीन नहीं देना चाहते हैं। फूल, शब्जी, धान इस इलाके की मुख्य फसल है। फूल की खेती पर हजारों कृषक मजदूरों के जिंदगी आश्रित है। किसानों और कृषक मजदूरों के बीच शिक्षा का अभाव है। इसलिए अधिग्रहण, लैंड पुलिंग और कैपिटल डेवलपमेंट प्लान के बारे में किसान अनभिज्ञ हैं।
इस इलाके की खेती मिश्रित, बहुफसली और वैज्ञानिक समझ पर आधारित होने के कारण अति लाभकर है। नीरमरू और बेंतापेरू गांव के किसानों के पास 2000 एकड़ में फूल के बगान हैं। चार प्रकार के जासमीन, अलग – अलग किस्म के केले, मिर्च के बगान हैं। अमरूद, संतरा, आंवला, चीकू की खेती भी सैकड़ों एकड़ में है। नीरमरू और बेंतापेरू के फूल के बगानों पर 10 हजार मजदूरों की जिंदगी आश्रित है। अकुशल मजदूर को 250 रू० और कुशल मजदूर को 800 से 1000 रू० प्रति दिन की मजदूरी दी जाती है। हमारे पास 122 तरह के फसलों की सूची उनके वैज्ञानिक नामों के साथ उपलब्ध है। पुलिस की सख्ती की वजह से हम अधिग्रहण से प्रभावित तमाम गांवों की यात्रा नहीं कर पाये तो अनुमोलू गांधी ने सभी तरह की पैदावार की जो रंगीन तस्वीरें पोस्टर की तरह सहेज रखी हैं, इन तस्वीरों से रूबरू होकर उन्नत कृषि के उस स्वरूप से वाकिफ हुए, जिसे अब यथार्थ में देख पाना, शायद मुमकिन ना हो। संभव है कि आने वाली पीढ़ियों को उन्नत कृषक जीवन के इतिहास से वाकिफ कराने के लिये ये तस्वीरें भारतीय कृषि संग्रहालय के काम आ जायें। अगर भूमिहीन कृषक एक से सवा लाख रूपये प्रति एकड़ की दर पर जमीन लीज पर लेकर खेती कर रहे हैं तो अनुमान लगायें कि खेती से आमदनी का औसत क्या है?
7 जनवरी को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री विजयवाड़ा पहुंचे। मुख्यमंत्री ने प्री-बजट कैबिनेट की बैठक विजयवाड़ा में बुलायी थी पर प्री – बजट बैठक को कैपिटल सिटी बैठक में बदल दिया गया। नायडू ने राज्य के पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक और आरक्षी अधीक्षकों को खास सतर्कता और सूझबूझ के साथ लैंड पुलिंग स्कीम को सफल बनाने का निर्देश दिया। वाई० एस० आर० कांग्रेस ने मुख्यमंत्री की इस विजयवाड़ा यात्रा के उद्धेश्य का खुलासा करते हुए अखबारों में बयान जरूर दिये पर कैपिटल सिटी के उन्नायक नायडू के विरोध में विपक्ष ने विजयवाड़ा की सड़क पर सांकेतिक प्रतिरोध मार्च तक आयोजित नहीं किया। जाहिर है कि आंध्र प्रदेश में कैपिटल सिटी के मुद्दे पर विपक्ष ने नायडू सरकार के विरूद्ध बयानबाजी के अलावा अब तक सड़क पर जमीनी विरोध प्रकट करने के लिए किसी तरह का प्रतिरोध नहीं किया। विपक्ष की यह भूमिका स्पष्ट करती है कि आंध्र प्रदेश में सत्ता पक्ष और विपक्ष उसी पूंजीवादी विकास के पक्षधर है, जिस पूंजीवाद की बुनियाद खेती-किसानी को नष्ट करने से ही शुरू होती है।
आंध्र प्रदेश सरकार के सी० आर० डी० ए० एक्ट के अनुसार "पीपुल्स-कैपिटल " की स्थापना के लिए जमीन जुटाने की प्रक्रिया में स्वेच्छा और आपसी सहमति के आधार पर "लैंड पुलिंग" की प्रक्रिया अपनायी जायेगी। "लैंड पुलिंग स्कीम 2015" को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि लैंड पुलिंग का मतलब है कि भूस्वामी के द्वारा ऑथोरिटी के पास अपनी जमीन का समर्पण कर देना ताकि उन्हें विकसित नगरीय क्षेत्र में जमीन प्राप्ति की गारंटी प्राप्त हो सके। भारत सरकार के भूअधिग्रहण कानून 2013 के सेक्शन 100 के अंतर्गत "लैंड पुलिंग" वह प्रक्रिया है, जिसमें शहर या शहर के पास के छोटे -छोटे टुकड़ों वाली जमीन को एक जगह इकट्ठा किया जाता है और भूस्वामी को जमीन का नगद भुगतान न कर विनिमय के तौर पर विकसित भूखंड का कुछ हिस्सा आवंटित किया जाता है। "लैंड पुलिंग" के तहत मूलस्वामी अपनी स्वेच्छा से जमीन समर्पित करे। मूलस्वामी से जमीन प्राप्त करने के लिए अधिग्रहण, भूअर्जन की प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए। आंध्र प्रदेश सरकार ने "लैंड पुलिंग स्कीम" को अपने अनुकूल बनाने के लिए जहां मूल भूस्वामियों के हित को नजरअंदाज किया है, वहीं भारत सरकार के 2013 के भू अधिग्रहण कानून के सेक्शन 10 में दिए गए निर्देश की अनदेखी की गयी है। इस एक्ट के तहत सख्त हिदायत दिया गया है कि सिंचित और बहुफसली फसल वाली जमीन को किसी भी स्थिति में अधिग्रहित नहीं किया जा सकता है। इस सेक्शन में स्पष्ट किया गया है कि "सिटी प्रोजेक्ट" को "पब्लिक पर्पस" नहीं माना जा सकता है इसलिए किसी भी सूरत में खाद्य सुरक्षा के सेफगार्ड में सेक्सन 10 का उलंघन नहीं होना चाहिए।
भारत सरकार के भूअधिग्रहण की नीतियों का उलंघन करते हुए आंध्र प्रदेश सरकार ने "लैंड पुलिंग" के लिए जो विधान तैयार किये हैं, यह भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सहज और आसान बना देता है। भारत में पहली बार इतने बडे पैमाने पर कानून और संविधान की धज्जी उड़ाते हुए किसी सरकार ने "लैंड पुलिंग" की हिम्मत जुटायी है। कैपिटल सिटी के लिए "लैंड पुलिंग" में लाखों परिवार अपनी जमीन अपने पट्टे की खेती मजदूरी और कृषिगत व्यवसाय से विस्थापित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने डॉ० बी० डी० शर्मा की याचिका सं० 1201/1990 पर फैसला सुनाते हुए स्पष्ट निर्देश दिया था कि "विस्थापन से 6 माह पूर्व पुनर्वास की गांरंटी तय होनी चाहिए। पुनर्वास की अनदेखी कर किसी भी स्थिति में विकास परियोजना का निर्माण संभव नहीं होगा।" "लैंड पुलिंग" से विस्थापित हो रहे कृष्णा नदी के तटीय ठुल्लुर इलाके के किसानों को अति उर्वर एक एकड़ अधिग्रहित भूमि के ऐवज में 9 हजार वर्ग फीट आवासीय भूमि और 2700 वर्ग फीट व्यवसायिक भूमि 5 वर्ष उपरांत विकसित कैपिटल क्षेत्र में दिया जायेगा। इन किसानों को 10 वर्ष तक 10 फीसद की वार्षिक बढोतरी के साथ 50 हजार रू० प्रति वर्ष पेंशन दिया जायेगा। उर्वर भूमि वाले किसानों को एक एकड़ जमीन के बदले 9 हजार वर्ग फीट आवासीय भूमि और 1800 वर्ग फीट व्यवसायिक भूमि उपलब्ध कराया जायेगा। उर्वर और अति उर्वर क्षेत्र वाले किसानों के वार्षिक पेंशन में कोई अंतर नहीं होगा। असिंचित क्षेत्र के कृषकों को विकसित क्षेत्र में उर्वर क्षेत्र के किसानों की अपेक्षा कम जमीन दी जायेगी। इन्हें वार्षिक पेंशन 10 फीसद वृद्धि की दर से 30 हजार रू० प्राप्त होगा। कृषि पर निर्भर करने वाले भूमिहीन पट्टेदार किसानों और कृषक मजदूरों को 10 वर्ष तक 2500 रू० पं्रति माह का पेंशन दिया जायेगा। बड़े-छोटे बाग-बगीचे 50 हजार रू० मात्र के भुगतान पर किसानों से छीन लिये जायेंगे। कृषि जमीन के ऐवज में कैपिटल सिटी में आवासीय भूमि एवं व्यवसायिक भूमि का इस्तेमाल किसान किस तरह करेेंगे। क्या खेती से विस्थापित होने के बाद नयी राजधानी में वे सिंगापुर के रियल स्टेट व्यापारियों के समक्ष व्यापार का साहस जुटा पायेंगे या नगर में मिले छोटे-छोटे टुकड़ों को बेचकर फकीर हो जायेंगे। जाहिर है कि किसानों, बटाईदार किसानों, कृषक मजदूरों को नायडू सरकार उस तरह की खुशहाली की गारंटी कैपिटल सिटी में नहीं दिला सकती, जो खुशहाली उन्हें इस समय अपने गांवों में उपलब्ध है। समाज-शास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों को "लैंड पुलिंग" से विस्थापित हो रहे 2 लाख से बड़ी आबादी के लिए गांव से नगर में पुर्नवसित होने पर जीवन में आने वाले आर्थिक हाहाकार का आकलन सार्वजनिक करना चाहिए। न्यू कैपिटल सिटी में खेती से उजाड़ दिये गए किसान सफाई मजदूर का रोजगार तलाशेंगे और हजारों-हजार कृषक मजदूर, बटाईदार किसान अपने अस्तित्व को बचाने के लिए दिल्ली – मुंबई के स्लम में अपना ठौर – ढूंढेगे, और वहां भी ठौर ना मिला तो नगरों में भिक्षाटन करते हुए कहीं फुटपाथ पर प्राण त्याग देंगे।
जारी….
गुंटूर-विजयवाड़ा से लौटकर – पुष्पराज
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