Wednesday, 26 June 2013 09:15 |
अपूर्व जोशी हिमालय का निर्माण लगभग चार करोड़ वर्ष पहले हुआ। निर्माण की यह जटिल प्रक्रिया अभी जारी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती के अंदर किसी भी निर्माण प्रक्रिया के चलते रहने के कारण जो घर्षण उत्पन्न होता है उसके कारण भूकम्प आते हैं। हमारा हिमालयी क्षेत्र इस दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। यहां भू-हलचल के लगातार चलते रहने के कारण भूकम्प आने की तीव्र आशंका है। पिछले पैंसठ बरसों में पांच बड़े भूकम्प यहां आ चुके हैं जिनमें से दो उत्तराखंड में आए थे। 29 मार्च 1999 को चमोली जिले में आया मात्र चालीस सेकंड का भूकम्प कितना भयानक था इसे अभी तक हम भूले नहीं हैं। रिक्टर पैमाने पर 6.8 की तीव्रता वाले इस भूकम्प से लेकिन हमने कोई सबक नहीं लिया। और असल डर इसी बात का है कि केदारनाथ में आई वर्तमान आपदा से भी हम शायद ही कुछ सीखें। आने वाले समय में सबसे बड़े संकट का कारण टिहरी की झील बन सकती है। 260.5 मीटर की ऊंचाई वाला टिहरी बांध विश्व का पांचवें नंबर का सबसे ऊंचा बांध है। जिस भागीरथी के प्रकोप को इस आपदा के दौरान उत्तराखंड ने झेला है, यह बांध उसी भागीरथी को बांध कर बनाया गया है। यह भूकम्प की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील इलाका है। 1991 में यहां रिक्टर पैमाने पर 6.8 की तीव्रता वाला भूकम्प आ चुका है। हालांकि बांध की क्षमता 8.4 की तीव्रता वाले भूकम्प को झेलने की बताई जाती है लेकिन पर्यावरणविद मानते हैं कि इस इलाके में कभी भी इससे ज्यादा तीव्रता का भूकम्प आ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो जो होगा वह प्रलय से किसी भी प्रकार कम नहीं होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बांध के टूटने की अवस्था में अस्सी किलोमीटर दूर ऋषिकेश तक मात्र तिरसठ मिनटों में पानी पहुंच जाएगा जिसकी गहराई होगी दो सौ साठ मीटर। यह पानी हरिद्वार अस्सी मिनटों में पहुंच जाएगा और गहराई होगी दो सौ बत्तीस मीटर। उत्तर प्रदेश के बिजनौर, मेरठ और हापुड़ को जलमग्न करते हुए इसका पानी नोएडा-दिल्ली के मुहाने, बुलंदशहर तक बांध टूटने के मात्र बानबे घंटों में दो सौ पचासी किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंच जाएगा। और इसकी अनुमानित गहराई होगी साढ़े आठ मीटर। सोचिए क्या होगा तब। और क्या हमें इस कीमत पर विकास चाहिए? बिजली चाहिए? सरकार की मानें तो लगभग सभी फंसे हुए यात्रियों को सुरक्षित बचा लिया गया है। सरकार और मीडिया, सभी की निगाहें इस समय इन यात्रियों, सैलानियों पर टिकी हैं। पर सवाल उन पहाड़वासियों का भी है जिन्होंने अपना सब कुछ इस आपदा में खो दिया। उन्हें पुनर्स्थापित करना बड़ी चुनौती है। वे न सिर्फ आर्थिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी टूट चुके हैं। यों खोने को बहुत कुछ था नहीं। पर जो भी था, वह उमा भारती की धारीदेवी मां के कोप ने लील लिया। अगर उमा भारती सही हैं तो नहीं चाहिए ऐसा ईश्वर जो अपने बच्चों से इतना कुपित हो सकता है कि उनको स्वयं दिया जीवन ही हर ले। रही बात बाबा नागार्जुन की कविता की, तो यह सच है कि बाढ़ हो या भूकम्प, मरता आम आदमी ही है और इन आपदाओं और विपदाओं के सहारे अकूत संपदा बनाने वालों की हमारे देश में कमी नहीं है। 2010 में उत्तराखंड ने ऐसी ही तबाही को झेला था। तब आपदा से संपदा बनाने वालों की बन आई थी। कई मामले मीडिया की सक्रियता के चलते प्रकाश में आए। मुकदमे भी दर्ज हुए। फिर सब कुछ शांत पड़ गया। अभी तो प्रधानमंत्री ने एक हजार करोड़ की आर्थिक सहायता की घोषणा मात्र की है, और देहरादून से लेकर दिल्ली तक गिद्धों की जमात सक्रिय हो गई है। |
Wednesday, June 26, 2013
उत्तराखंड की चेतावनी
उत्तराखंड की चेतावनी
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