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Wednesday, June 26, 2013

किसी ने सुध नहीं ली आपदा से उजड़े गांवों की

किसी ने सुध नहीं ली आपदा से उजड़े गांवों की

Wednesday, 26 June 2013 08:59

जनसत्ता संवाददाता, श्रीनगर (गढ़वाल)। उत्तराखंड में आई आपदा के बाद जहां कई जगहों पर फंसे तीर्थयात्रियों को निकालने का काम तेजी से किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इस हादसे के शिकार स्थानीय नागरिकों और उन्हें हुए नुकसान की सुध लेने वाला कोई नही है। सड़क और पुल टूट जाने से सैकड़ों गांवों में लोग मुसीबत में हैं। बीते दस दिनों से उनका संपर्क विभिन्न कस्बों और जिला मुख्यालयों से नहीं हो पा रहा है। इन गांवोें में अनाज का संकट पैदा हो गया है। 
राज्य के प्रमुख सचिव राकेश शर्मा के मुताबिक करीब सवा सौ गांव आपदा से प्रभावित हैं। कई गांवों में तो मकान ही बह गए। लापता लोगों की कोई जानकारी नहीं मिल रही है। ऋषिकेश से केदारनाथ-बद्रीनाथ जाने वाले सड़क मार्ग पर सबसे ज्यादा तबाही श्रीनगर से ही शुरू हो जाती है। श्रीनगर के आसपास के गांवों में भारी तबाही हुई है। श्रीनगर में 16-17 जून को सड़कों पर पानी भर गया था। श्रीनगर के रहने वाले प्रो रमेश चंद्र शर्मा के मुताबिक उस दिन जम कर पानी बरसा। श्रीनगर में अलकनंदा ने तबाही मचाई। उत्तराखंड की हर नदी तबाही मचा रही थी। मंदाकिनी नदी ने केदारघाटी में और अलकनंदा नदी ने बदरीनाथ से श्रीनगर और उससे आगे तक भारी तबाही मचाई। 
पिंडरघाटी में पिंडर नदी ने कर्णप्रयाग के कई गांवों में तबाही मचाई। कर्णप्रयाग के नारायण बगड़ और देवाल सहित पूरे क्षेत्र में कई गांव तबाह हो गए। नारायण बगड़ में पांच दुकानें और दर्जन भर मकानों को बरिश ने मलबे में बदल दिया। कर्णप्रयाग क्षेत्र में थराली क्षेत्र का तो नक्शा ही प्राकृतिक आपदा ने बदल डाला। थराली में तीन दर्जन मकान और कई दुकानें बह कर पिंडर नदी में समा गई। यहां लोग शिविरों में शरण लिए हुए हैं। उनके घरों का कोई अता-पता नहीं है।
प्रेम सिंह रावत और भोपाल दत्त का जीवन कर्णप्रयाग में बीता है। वे कहते हैं कि सरकार का ध्यान तो आपदा से उजडेÞ गांव की ओर अभी तक गया ही नहीं है। गांवों में खाने पीने के सामान की किल्लत हो गई है। इन इलाकों में गंदगी फैल रही है। कर्णप्रयाग के रहने वाले दानू भाई कहते हैं कि पिंडर नदी में अभी भी शव बह कर आ रहे है। कर्णप्रयाग के आसपास के गांवों में जानवरों के जो शव मलबे में दबे हैं, उनसे बदबू आ रही है। कर्णप्रयाग से एक रास्ता बदरीनाथ और केदारनाथ की ओर जाता है। दूसरा रास्ता नारायण बगड़ को जाता है। 

नारायण बगड़ के संदीप रावत कहते हैं कि इस क्षेत्र में विकास के नाम पर जिस तरह डायनामाइट का प्रयोग चट्टान तोड़ने में किया जाता है, उससे पहाड़ कच्चे हो गए हैं। और भारी बारिश से ही भरभरा कर गिर जाते हैं और भारी तबाही का कारण बनते हैं। नारायण बगड़ की मंजू बताती हैं कि सवा सौ परिवार बेघर हो गए हैं। दर्जन भर मकान टूट गए हैं। दुकानें टूट जाने से कई लोग बेरोजगार हो गए हैं। राज्य सरकार द्वारा राहत के नाम पर केवल दो ढाई हजार रुपए नकद दिए जा रहे हैं। जिला प्रशासन ने इन गांवों की अब तक सुध नहीं ली है।  
सरकारी राहत दूर-दराज के गांवों में नहीं पहुंच रही है। इन गांवों के लोगों को आलू उबाल कर गुजर बसर करना पड़ रहा है। पिंडर नदी में कर्णप्रयाग से आगे गांव और कस्बों को जोड़ने वाला पुल ढह जाने से इस क्षेत्र के दर्जन भर गांवों का संपर्क टूट गया है। इस क्षेत्र के लोग घर का जरूरी सामान लेने कर्णप्रयाग आते थे। यहां से संपर्क टूट जाने पर इन गांवों में अनाज नहीं बचा है। सेना के हेलिकॉप्टरों ने खाने पीने का जो सामान गिराया था, उसका काफी हिस्सा गाद में गिर गया और बहुत कम सामान ही लोगों को मिल पाया। 
कर्णप्रयाग से नारायण बगड़, देवाल, थराली और गवालदम तक की कहानी एक जैसी है। हर कस्बे और गांवों में रहने वाले लोग प्राकृतिक आपदा की मार से पीड़ित है। स्थानीय प्रशासन कुछ भी नहीं कर पा रहा है। ध्यान सिंह रावत बताते है कि भारी बारिश के कारण यहां काम-धाम बंद हो गया है। पहाड़ का जीवन पहले से ही मुश्किलों भरा था। 
अब प्राकृतिक आपदा ने उनके सामने पहाड़ जैसी मुसीबतों के ढेर लगा दिए हैं। कर्णप्रयाग कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ने वाला कस्बा है।
अलकनंदा, पिंडर और मंदाकिनी नदियों के किनारे बसे गांवों में मकान मलबे के ढेर में बदल गए हैं। अब इन गांवों को फिर से बसाना एक बड़ी चुनौती है।

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