Wednesday, 26 June 2013 08:59 |
जनसत्ता संवाददाता, श्रीनगर (गढ़वाल)। उत्तराखंड में आई आपदा के बाद जहां कई जगहों पर फंसे तीर्थयात्रियों को निकालने का काम तेजी से किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इस हादसे के शिकार स्थानीय नागरिकों और उन्हें हुए नुकसान की सुध लेने वाला कोई नही है। सड़क और पुल टूट जाने से सैकड़ों गांवों में लोग मुसीबत में हैं। बीते दस दिनों से उनका संपर्क विभिन्न कस्बों और जिला मुख्यालयों से नहीं हो पा रहा है। इन गांवोें में अनाज का संकट पैदा हो गया है। सरकारी राहत दूर-दराज के गांवों में नहीं पहुंच रही है। इन गांवों के लोगों को आलू उबाल कर गुजर बसर करना पड़ रहा है। पिंडर नदी में कर्णप्रयाग से आगे गांव और कस्बों को जोड़ने वाला पुल ढह जाने से इस क्षेत्र के दर्जन भर गांवों का संपर्क टूट गया है। इस क्षेत्र के लोग घर का जरूरी सामान लेने कर्णप्रयाग आते थे। यहां से संपर्क टूट जाने पर इन गांवों में अनाज नहीं बचा है। सेना के हेलिकॉप्टरों ने खाने पीने का जो सामान गिराया था, उसका काफी हिस्सा गाद में गिर गया और बहुत कम सामान ही लोगों को मिल पाया। कर्णप्रयाग से नारायण बगड़, देवाल, थराली और गवालदम तक की कहानी एक जैसी है। हर कस्बे और गांवों में रहने वाले लोग प्राकृतिक आपदा की मार से पीड़ित है। स्थानीय प्रशासन कुछ भी नहीं कर पा रहा है। ध्यान सिंह रावत बताते है कि भारी बारिश के कारण यहां काम-धाम बंद हो गया है। पहाड़ का जीवन पहले से ही मुश्किलों भरा था। अब प्राकृतिक आपदा ने उनके सामने पहाड़ जैसी मुसीबतों के ढेर लगा दिए हैं। कर्णप्रयाग कुमाऊं और गढ़वाल को जोड़ने वाला कस्बा है। अलकनंदा, पिंडर और मंदाकिनी नदियों के किनारे बसे गांवों में मकान मलबे के ढेर में बदल गए हैं। अब इन गांवों को फिर से बसाना एक बड़ी चुनौती है। |
Wednesday, June 26, 2013
किसी ने सुध नहीं ली आपदा से उजड़े गांवों की
किसी ने सुध नहीं ली आपदा से उजड़े गांवों की
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment