Follow palashbiswaskl on Twitter

ArundhatiRay speaks

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Jyoti basu is dead

Dr.B.R.Ambedkar

Sunday, June 16, 2013

उत्तरकाशी में इस ध्वंस के जिम्मेवार प्रकृति नहीं, हम हैं!

उत्तरकाशी में इस ध्वंस के जिम्मेवार प्रकृति नहीं, हम हैं!


पलाश विश्वास



हिमालय से बहुत दूर हूं। पर भागीरथी के जलस्पर्श से अब भी हिमालय का स्पंदन महसूस कर सकता हूं।टीवी के परदे पर फिर उ्तरकाशी में तबाही का नजारा देखते हुए बिना लिखे नहीं रह गया। लिखकर हालांकि हालात बदले नहीं हैं। यह अरण्यरोदन जख्मी दिलदिमाग को मरहम लगाने का काम अवश्य करता है। हम सबका हिमालय लहूलुहान है और टूट फूट रहा है और उसकी भूमिगत अंतःस्थल में दहक रहे हैं हजारों परमाणु बम और हम इतने विकलांग हो चुके हैं, कि दौड़कर उसकी गोद में पहुंचकर उसके जख्मों पर हाथ भी फेर नहीं सकते। फिर आपदा से घिरने लगा है हिमालय और हमारे लोग, हमारे अपने असहाय पहाड़ के लोग विपर्यस्त हैं। जबकि मानसून की दस्तक के कारण पूरे उत्तर भारत में बारिश की फुहारों से लोगों को गर्मी से जबरदस्त राहत मिली है।पहाडो़ं में मानसून का मतलब है तबाही और हम हर साल इस तबाही का मंजर देखने को अभ्यस्त हैं। वाहां बरसात में फिल्मों जैसा कुछ नहीं होता। वही होता है जो उत्तरकाशी और बाकी पहाड़ों में हो रहा है। हिमालय से छेड़छाड़ का खामियाजा भुगत रहे हैं हिमालय के ही वाशिंदे। जिसका भारत उदय, भारत निर्माण और विकास गाथा से कोई संबंध नहीं है। आपदा प्रबंधन की कलई एक बार फिर खुलने लगी है।


पहाड़ी क्षेत्रों में हुई बरसात से हरियाणा स्थित हथनी कुंड बैराज का जलस्तर बढ़कर दो लाख 16 हजार क्यूसेक को गया। अगले 72 घंटे में यह पानी दिल्ली पहुंच जाएगा।वहीं, उत्तराखंड में पिछले 24 घंटों से हो रही मूसलाधार बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। देहरादून के न्यू मिट्टी बेरी इलाके में मकान ढहने से मलबे में दबकर एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत हो गई। पहाड़ों पर भी जगह-जगह भू-स्खलन की खबर है। बद्रीनाथ-केदारनाथ, गंगोत्री-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग क्षतिग्रस्त होने से यात्रा बाधित हो गई है। मार्ग में सैकड़ों यात्री फंसे हुए हैं। भागीरथी, अलगनंदा और असी गंगा नदियां उफान पर हैं। उत्तरकाशी में नदी किनारे रहने वालों के लिए प्रशासन ने अलर्ट जारी किया है।


किंतु इस विपर्यय के लिए, इस प्राकृतिक आपदा के लिए जिम्मेदार प्रकृति नही, हम स्वयं हैं।हम तकनीकी तौर पर इतने सुपरविकसित हैं कि भागीरथी में समाते मकान के गिरने के एक एक पल को न केवल गिरफ्तार कर सकते हैं, बल्कि उसे लाइव प्रसारित भी कर सकते हैं। फिर याद आ गयी भागीरथी घाटी में बसे उत्तराखंड की वाराणसी की।उत्तरकाशी ऋषिकेश से 155 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शहर है, जो उत्तरकाशी जिले का मुख्यालय है। यह शहर भागीरथी नदी के तट पर बसा हुआ है।उत्तरकाशी जिला हिमालय रेंज की ऊँचाई पर बसा हुआ है, और इस जिले में गंगा और यमुना दोनों नदियों का उद्गम है, जहाँ पर हज़ारों हिन्दू तीर्थयात्री प्रति वर्ष पधारते हैं।


उत्तरकाशी में बादल फटने के बाद असिगंगा और भागीरथी में जलस्तर बढ़ गया है। वहीं लगातार हो रही बारिश की वजह से गंगा और यमुना का जलस्तर भी तेजी से बढ़ा है। नतीजा नदी के किनारे बसे लोगों की शामत आ गई है। उत्तरकाशी में बारिश है कि थम नहीं रही। पिछले 24 घंटे से यहां लगातार बारिश हो रही है। यहां कई घर बारिश और तेज बहाव की भेंट चढ़ चुके हैं। ऐसे में लोगों को और नुकसान का डर सता रहा है। पूरे उत्तराखंड में रात भर हुई भारी बारिश के चलते एक मकान ढहने से तीन लोगों की मौत हो गयी जबकि चार धाम यात्रा के हजारों तीर्थयात्री गंगोत्री और यमुनोत्री मार्गों पर फंसे हुए हैं। भारी बारिश के कारण उत्तरकाशी जिले में भूस्खलन हुआ है तथा नदियां उफान पर हैं।


कुमाउं हो या गढ़वाल मंडल बारिश हर जगह बेतरह हो रही है। नतीजा जनजीवन ठहर सा गया है। पहाड़ों पर बसे सैकड़ों गांवों का संपर्क देश-दुनिया से कट गया है। चार धाम यात्रा मार्ग भी बंद हो गया है। करीब बीस हजार से ज्यादा लोग इस समय राज्य में अलग-अलग राष्ट्रीय राजमार्गों पर फंसे हैं। चार धाम यात्रियों को ऋषिकेश से आगे नहीं जाने दिया जा रहा। सेना और आईटीबीपी राहत के काम में जुटी हैं।


हरिद्वार में भी गंगा खतरे के निशान के करीब पहुंच गई है जिसके चलते गंगा तट पर बसे सैकड़ों गांवों में बाढ़ का खतरा अभी से मंडराने लगा है। दो दिन से लगातार हो रही बारिश के चलते गंगा का जलस्तर खतरे के निशान तक पहुंच गया है लेकिन बारिश का जो आलम है उससे हालात और खराब होने की पूरी आशंका बनी हुई है।सिंचाई विभाग ने कई जिलों में अभी से अलर्ट जारी कर दिया है। हरिद्वार हो या फिर राजधानी देहरादून। सब जगह बारिश से जनजीवन बेहाल है। मौसम विभाग से भी अच्छी खबर नहीं मिल रही। मौसम विभाग की मानें तो अगले 72 घंटे तक बारिश उत्तराखंड में यों ही कहर बरपाएगी।


फिर 1978 की प्रलयंकारी बाढ़ की स्मृति ताजा हो गयी!


तब उत्ताराखंड यूपी का हिस्सा था और हम लोग चीख चीखकर कहते थे कि मैदानों के शासक को पहाड़ों की परवाह नहीं है।


अब उत्तराखंड अलग प्रदेश ही नहीं, ऊर्जा प्रदेश है। हिमालय पुत्र विजय बहुगुणा गढ़वाल से ही हैं।


तब चिपको आंदोलन नामक कोई पर्यावरण आंदोलन था जो अब फकत इतिहास है। हालात वहीं हैं, दृश्य वहीं हैं।


1978 से लेकर अब तक इस पीर के पिघलते पिघलते अनवरत बह रही है गंगा, अवरुद्ध जलधारा के बावजूद। तब हम पुरानी टिहरी के रास्ते बस से और पैदल पहुंचे थे उत्तरकाशी और वहीं से निकल पड़े थे गंगोत्री की ओर, जहां जलधाराएं अवरुद्ध होने से ग्लेशियरों के रोष से बाढ़ग्रस्त हो गया था वह बंगाल भी, जहां मैं हूं फिलहाल, अपने हिमालय से दूर, सुरक्षित और सकुशल। पर हमारे लोग सुरक्षित नहीं हैं और न सकुशल है।


नैनी झील के सूखते  जाने का मामला हो या फिर पहाड़ों के दरकने , धसकने और खिसकने, बाढ़, भूस्खलन और भूकंप की अनिवार्य नियति ही पहाड़ की जिंदगी है। जो सूरत बदलनी चाहिए थी, हमारे जीते जी वह बदल नहीं रही और हम कुछ कर नहीं सकते।


पुरानी टिहरी अब डूब है । डूब में शामिल हैं टिहरी औरर उत्तरकाशी के सैकड़ों गांव। जिनका न पुनर्वास हुआ है और न कभी हो सकता है।नयी टिहरी बस चुकी है। पिछलीबार 1991 में आये भूकंप पर हमने अपना भड़ास जब लघु उपन्यास `नयी टिहरी और पुरानी टिहरी' के जरिये निकाली थी, तब भी जिंदा थी पुरानी टिहरी आहिस्ते आहिस्ते डूब में दाखिल होती हुई।


अब उत्तरकाशी तक पहुंचने का रास्ता बदल गया है। टिहरी बांध परिपूर्ण है और गंगा की जलधारी पूरी तरह अवरुद्ध। मुक्तकेशी गंगा ने तब जो तबाही मचायी थी प्राकृतिक अवरोध के खिलाफ,अब कृत्तिम अवरोध को कब तक वह सह पायेगी, इसे लेकर आतंकित है मन। 1978 में मैं डीएसबी कालेज में एमएए अंग्रेजी प्रथम वर्ष का छात्र था और वार्षिक परीक्षाएं देर से चल रही थीं। त्रासदी की खबर मिलते ही हमारे प्रिय गिरदा  और शेखर पाठक उत्तरकाशी होकर भटवाड़ी तक पहुंच चुके थे। गंगणानी तक पहुंचे थे वे और आगे रास्ता बंद था। हम लोग नैनीताल से स्थानीय तल्लीताल थाना के मार्फत वायरलैस के जरिये उनके संपर्क में थे। तब फोन भी काम नहीं करता था।


गिरदा और शेखर के लौटते लौटते हम परीक्षाओं से फारिग हो गये थे और चल पड़े उत्तरकाशी की तरफ। गिरदा ने तो उत्तरकाशी के डीएम से यहां तक कह दिया था, `तेरे मुंह पर थूकता हूं'!


लीलाधर जगूड़ी तब युवा आंदोलनकारी थे।उत्तरकाशी में सक्रिय थे सुंदर लाल बहुगुणा, कमलाराम नौटियाल और सुरेंद्र भट्ट। जीवित और सक्रिय थे कुंवर प्रसून और प्रताप शिखर।


पहाड़ का चेहरा तब आंदोलन का चेहरा था। प्रतिरोध का चेहरा भी।


हम लोग नैनीताल समाचार निकाल चुके थे। नैनीताल में हमारी पूरी टीम और अल्मोड़े में शमशेर सिंह बिष्ट, पीसी तिवारी, बालम सिंह जनौटी, चंद्रशेखर भट्ट, कपिलेश भोज जैसे तमाम लोग कहीं से भी कोई खबर मिलते ही दौड़ पड़ते थे। उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी और उमा भट्ट के नेतृत्व में उत्तराखंड महिला आंदोलन की साथिने और उत्तरा टीम, इसके अलावा दिवंगत विपिन चचा त्रिपाठी, दिवंगत निर्मल जोशी, दिवंगत षष्ठीदत्त भट्ट अपना झोला उठाये कहीं से भी कहीं भी और कभी भी निकल पड़ते थे।


गढ़वाल और कुमायूं ही नहीं,तराई और पहाड़ एकाकार थे तब। 1988 में महतोष मोड़ बलात्कार बंगाली दलित शरणार्थियों के साथ हुआ तो प्रतिवाद में सबसे ज्यादा मुखर था पहाड़।


पहाड़ का वह एकताबद्ध चेहरा अब कहीं नहीं है। लोग भूमाफिया और बहुराष्ट्रीय कंपनिं के बिचौलिया में तब्दील हो गये हैं। विकास के नाम पर विनाश की हरिकथा अनंत जारी है।


जिस वन आंदोलन के जरिए पहाड़ की नई अस्मिता का नवजन्म हुआ, उसका चिपको माता गौरा पंत के निधन से पहले ही अवसान हो गया है।


पहाड़ में न वानाधिकार कानून लागू है कहीं , न पांचवी छठी अनुसूचियों की कोई चेतना है, न पर्यावरण आंदोलन है और ढिमरी ब्लाक आंदोलन की धरती पर भूमि सुधार को लेकर भी कोई हलचल नहीं है।


पर्यटन आज भी आजीविका का मुख्य आधार है बाकी फिर वहीं मनीआर्डर अर्थव्यवस्था और स्थाई नौकरियां सिv गढ़लवाल और कुमाऊं रेजीमेंट में।


सिडकुल का गठन हुआ, पर वहां श्रम कानून लागू नहीं है और न ही भूमिपुत्रों को नौकरियां मिलती हैं।


श्रमिकों के हकहकूक  हो या किसानों और आदिवासियों की जमीन का मामला, या फिर तराई में बसाये गये बंगाली और पंजाबी शरणार्थियों की समस्या, सारे मसले पर्यावरण आंदोलन से जुड़े हुए थे। आज पर्यावरण आंदोलन नहीं है तो पहाड़ में कुछ भी नहीं है।


अलग राज्य बन गया पर न पहाड़ की वह अस्मिता है और न वह जनचेतना और न बहुाकांक्षित स्वायत्तता।


भागीरथी और असीगंगा सहित सहायक जलधाराओं के उफान से उत्तरकाशी में फिर तबाही शुरू हो गई है। लगातार हो रही बारिश से दोनों नदियों ने बाढ़ जैसा मंजर पैदा कर दिया है, इसके चलते संगमचट्टी क्षेत्र में अस्थायी पुल व संपर्क मार्ग ध्वस्त हो गए। उत्तरकाशी में एक छात्रावास व एक मकान बह गए। यमुना घाटी में यमुना नदी के जलप्रवाह में खरादी में पटवारी चौकी व एक आवासीय भवन बह गए। जिला प्रशासन ने हालात को को देखते हुए अलर्ट घोषित कर दिया।


शनिवार की रात से हो रही बारिश के चलते उत्तरकाशी पर रविवार भारी बीता। असीगंगा व भागीरथी के जलागम क्षेत्रों में अतिवृष्टि के कारण दोनों नदियों ने बाढ़ जैसे हालात पैदा कर दिए। असीगंगा के प्रवाह से संगमचट्टी क्षेत्र के सात गांवों को जोड़ने वाली सड़क रवाड़ा से आगे ध्वस्त हो गई है, जबकि डिगिला, संगमचट्टी व सेकू गांव के संपर्क मार्ग पर बने अस्थाई पुल बह गए हैं। इससे क्षेत्र के सात गांवों का संपर्क जिला मुख्यालय से पूरी तरह कट गया है।


गंगोरी में बाढ़ सुरक्षा कार्यो में लगी तीन जेसीबी मशीनें व एक ट्रक भी असीगंगा के उफान में डूब गए। भागीरथी के जलप्रवाह से उजेली में संस्कृत महाविद्यालय छात्रावास और तिलोथ में शाहनवाज कुरैशी का दो मंजिला भवन ढह गए, जबकि तिलोथ पुल की ऐप्रोच के नीचे कटाव होने से पुल पर खतरा पैदा हो गया। इसके अलावा उत्तरकाशी व गंगोरी में हो रहे बाढ़ सुरक्षा कार्यो को भी नुकसान पहुंचा है। जिला प्रशासन ने तिलोथ पुल व जोशियाड़ा मोटर पुल से आवाजाही बंद करा दी है। दूसरी ओर यमुना घाटी में यमुना नदी के जल प्रवाह से खरादी कस्बे पर खतरा पैदा हो गया है। यमुना के उफान से कस्बे में पटवारी चौकी और शैलेंद्र सिंह के भवन बह गए। कस्बे के सात और मकान खतरे की जद में हैं।


शालिनी जोशी

देहरादून से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए


जी डी अग्रवाल हरिद्वार के मातसदन आश्रम में आमरण अनशन पर हैं और उनकी मांग है कि गंगा, भागीरथी,मंदाकिनी और अलकनंदा पर सभी निर्माणाधीन और प्रस्तावित बांधों पर तत्काल रोक लगा दी जाए.

संबंधित समाचार

इससे जुड़ी ख़बरें

गौरतलब है कि कुछ वर्ष पहले अग्रवाल के विरोध के बाद ही उत्तरकाशी इलाके की तीन बड़ी परियोजनाओं पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी जिनपर 80 करोड़ रू खर्च हो चुके थे.

78 साल के प्रोफेसर अग्रवाल आईआईटी कानपुर में सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष रहे हैं.

क्लिक करेंदेखिए: गंगा तोहार हाल कैसा

अविरल बहे गंगा

इन दिनों हरिद्वार के मातसदन आश्रम में आमरण अनशन पर बैठे जी डी अग्रवाल एक लंबे समय से उत्तराखंड में गंगा को अवरिल बहने देने की मांग करते रहे हैं.

ये वही आश्रम है जहां दो साल पहले स्वामी निगमानंद ने गंगा में अवैध खनन के विरोध में आमरण अनशन करते हुए अपनी जान दे दी थी."इस हिमालयी प्रदेश में गंगा का गला घोंटा जा रहा है.टिहरी में बांध बनाकर विनाशकारी गलती की जा चुकी है लेकिन उसके बाद भी सरकार सभी नदियों को बैराज बनाकर बांध रही है."

जी डी अग्रवाल, पर्यावरणविद

जी डी अग्रवाल कहते हैं, "इस हिमालयी प्रदेश में गंगा का गला घोंटा जा रहा है.टिहरी में बांध बनाकर विनाशकारी गलती की जा चुकी है लेकिन उसके बाद भी सरकार सभी नदियों को बैराज बनाकर बांध रही है."

गौरतलब है कि उत्तराखंड की 14 नदी घाटियों में 220 से ज्यादा छोटी बड़ी परियोजनाएं बन रही हैं.इस वजह से नदियों को 10 से 15 किमी तक सुरंग में डाला जा रहा है.

नदिंयों का अस्तित्व संकट में

अग्रवाल कहते हैं कि इन बांधों के कारण नदियों की अविरलता पर खतरा मंढरा रहा है.इसके अलावा नदियों में लगातार खनन से भी नदियों के अस्तित्व पर संकट है.

गंगा यमुना की स्वच्छता और अवरिलता को लेकर विरोध और अनशन करने वाले जी डी अग्रवाल अकेले नहीं हैं बल्कि उमा भारती,स्वामी रामदेव और स्वामी शिवानंद और राजेंद्र सिंह जैसे पर्यावरणवादी भी उनका समर्थन करते रहे हैं.

मूल रूप से ये विरोध तीन बातों को लेकर है –बड़े पैमाने पर विस्थापन,पारिस्थितिकी पर संकट और धार्मिक आस्था.

लेकिन स्थानीय लोग और कई प्रगतिशील लोग भी इस मत के विरोध में हैं.पिछले वर्ष इसी विवाद की वजह से उत्तराखंड के श्रीनगर में जी डी अग्रवाल को काले झंडे दिखाए गये थे और उत्तरकाशी से भी उन्हें अपना आंदोलन समेटना पड़ा था.

ऊर्जा संकट का हल

उत्तरकाशी के मूल निवासी मशहूर लेखक लीलाधर जगूड़ी कहते हैं कि अगर बांध बनने से प्रदेश में ऊर्जा का संकट हल होगा और विकास का लाभ होगा तो गंगा यमुना सुरंग में बहे या अपने प्रवाह में उससे क्या फर्क पड़ता है.

गंगा सिर्फ कूड़ा और अस्थियां बहाने के लिये नहीं बल्कि मनुष्य के उद्धार के लिये ही धरती पर आई है.

जी डी अग्रवाल के अनशन पर अभी तक सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है .

ये मामला स्थानीय सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार का भी है क्योंकि केंद्र में इसीलिए गंगा प्राधिकरण बनाया गया है और सुप्रीम कोर्ट में भी जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है.

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/06/130614_ganga_haridwar_ml.shtml


No comments: