उनका क्या जो छोड़ नहीं सकते पहाड़?
देहरादून/ब्यूरो | अंतिम अपडेट 24 जून 2013 4:09 PM IST पर
उत्तराखंड की आपदा का दर्द देशभर में लंबे समय तक महसूस किया जाएगा। लेकिन इस तबाही के बाद यहां के 60 से अधिक गांवों की हालत का अंदाजा अभी शायद ही किसी को हो रहा होगा।
आपदा से प्रभावित गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और कुमाऊं मंडल के पिथौरगढ़ की आबादी करीब एक लाख है। इनमे से अभी कितने लोग बचे हैं इसका आंकड़ा अभी नहीं है।
माना जा रहा है कि करीब 70 हजार लोग इन जगहों पर हैं। आपदा से प्रभावित लोगों को मैदानी इलाकों में लाया जा रहा है लेकिन ये सभी लोग पहाड़ नहीं छोड़ सकते। क्योंकि यहीं उनकी जमीन और यही उनकी पहचान है।
उत्तराखंड आपदा की विशेष कवरेज
इन सभी के घर पूरी तरह तबाह हो चुके हैं। युवाओं से लेकर बुजुर्ग और महिलाओं तक के लिए घर चला पाना मुश्किल हो गया है। क्योंकि, इन गांवों की पूरी अर्थव्यवस्था केदारनाथ यात्रा पर ही टिकी थी।
बूढ़ाकेदार से लेकर बालगंगा और भिलंगना के संगम तक नदी की लहरों ने भारी तबाही मचाई है। बालगंगा किनारे बसे संराश गांव के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगा है। गांव का आधा हिस्सा 17 तारीख की रात भूस्खलन की चपेट में आकर नदी में बह गया है। अब नदी का किनारा आवासीय भवनों को अपनी चपेट में लेने को आतुर है।
टिहरी जिले के भिलंगना ब्लाक में पड़ने वाले घनसाली के संराश गांव से जगदीश प्रसाद पेटवाल, सुंदर लाल पेटवाल, रामानंद पेटवाल, मुकेश पेटवाल, सुंदरलाल रतूड़ी, राजेंद्र प्रसाद रतूड़ी आदि ने फोन पर अपनी व्यथा व्यक्त की।
ग्रामीणों ने बताया कि 17 तारीख की रात बूढ़ाकेदार के आसपास कहीं बादल फटा। जिससे मध्यम गति से बहने वाली बालगंगा नदी में एकाएक उफान आ गया। नदी किनारे ऊंचाई पर बसे गांव में आधी रात को पत्थरों की गड़गड़ाहट की तेज आवाजें आने लगी।
पिछली बारिशों में गांव का एक बड़ा भू-भाग पहले ही नदी में समा चुका है। इसलिए इस बार लोग पहले से सतर्क थे। सभी ने आधी रात में बारिश में भीगते हुए ऊंची पहाड़ी पर शरण ली। सुबह जब बारिश रुकी और लोग गांव में पहुंचे तो ग्रामीणों के अधिकतर खेत भूस्खलन की चपेट में आकार नदी में बह चुके थे। गनीमत रही कि बारिश रुक गई नहीं तो आवासीय भवन भी भूस्खलन की चपेट में आकर नदी में घुल जाते।
जनहानि के अलावा खेत-खलिहान, घर सबकुछ बह गया था। सैंदुल गांव निवासी और बदरी-केदार मंदिर समिति के सदस्य चंद्र किशोर मैठानी बताते हैं कि 17 जून को जब बूढ़ाकेदार में कहीं बादल फटने की सूचना आई तो उन्होंने सबसे पहले सभी लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए आगाह किया।
आपदा से प्रभावित गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और कुमाऊं मंडल के पिथौरगढ़ की आबादी करीब एक लाख है। इनमे से अभी कितने लोग बचे हैं इसका आंकड़ा अभी नहीं है।
माना जा रहा है कि करीब 70 हजार लोग इन जगहों पर हैं। आपदा से प्रभावित लोगों को मैदानी इलाकों में लाया जा रहा है लेकिन ये सभी लोग पहाड़ नहीं छोड़ सकते। क्योंकि यहीं उनकी जमीन और यही उनकी पहचान है।
उत्तराखंड आपदा की विशेष कवरेज
इन सभी के घर पूरी तरह तबाह हो चुके हैं। युवाओं से लेकर बुजुर्ग और महिलाओं तक के लिए घर चला पाना मुश्किल हो गया है। क्योंकि, इन गांवों की पूरी अर्थव्यवस्था केदारनाथ यात्रा पर ही टिकी थी।
बूढ़ाकेदार से लेकर बालगंगा और भिलंगना के संगम तक नदी की लहरों ने भारी तबाही मचाई है। बालगंगा किनारे बसे संराश गांव के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगा है। गांव का आधा हिस्सा 17 तारीख की रात भूस्खलन की चपेट में आकर नदी में बह गया है। अब नदी का किनारा आवासीय भवनों को अपनी चपेट में लेने को आतुर है।
टिहरी जिले के भिलंगना ब्लाक में पड़ने वाले घनसाली के संराश गांव से जगदीश प्रसाद पेटवाल, सुंदर लाल पेटवाल, रामानंद पेटवाल, मुकेश पेटवाल, सुंदरलाल रतूड़ी, राजेंद्र प्रसाद रतूड़ी आदि ने फोन पर अपनी व्यथा व्यक्त की।
ग्रामीणों ने बताया कि 17 तारीख की रात बूढ़ाकेदार के आसपास कहीं बादल फटा। जिससे मध्यम गति से बहने वाली बालगंगा नदी में एकाएक उफान आ गया। नदी किनारे ऊंचाई पर बसे गांव में आधी रात को पत्थरों की गड़गड़ाहट की तेज आवाजें आने लगी।
पिछली बारिशों में गांव का एक बड़ा भू-भाग पहले ही नदी में समा चुका है। इसलिए इस बार लोग पहले से सतर्क थे। सभी ने आधी रात में बारिश में भीगते हुए ऊंची पहाड़ी पर शरण ली। सुबह जब बारिश रुकी और लोग गांव में पहुंचे तो ग्रामीणों के अधिकतर खेत भूस्खलन की चपेट में आकार नदी में बह चुके थे। गनीमत रही कि बारिश रुक गई नहीं तो आवासीय भवन भी भूस्खलन की चपेट में आकर नदी में घुल जाते।
जनहानि के अलावा खेत-खलिहान, घर सबकुछ बह गया था। सैंदुल गांव निवासी और बदरी-केदार मंदिर समिति के सदस्य चंद्र किशोर मैठानी बताते हैं कि 17 जून को जब बूढ़ाकेदार में कहीं बादल फटने की सूचना आई तो उन्होंने सबसे पहले सभी लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए आगाह किया।
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