Follow palashbiswaskl on Twitter

ArundhatiRay speaks

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Jyoti basu is dead

Dr.B.R.Ambedkar

Thursday, March 14, 2013

Mau Film Festival: शहादत को सिनेमा का सलाम

Mau Film Festival: शहादत को सिनेमा का सलाम





दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इरोम शर्मिला पिछले 12 साल से भूख हड़ताल पर है। शर्मिला मणिपुर में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ्सपा) को हटाने की मांग को लेकर 2001 से अनशन पर बैठी हैं और छह साल से ज्यादा समय से पुलिस हिरासत में हैं। बात इंफाल घाटी के मालोम में 2 नवंबर 2000 को हुई एक घटना की है जिसमें असम रायफल्स के जवानों ने दस लोगों को उग्रवादी बताकर गोली मार दी थी। जिन लोगों को गोली मारी गई, उनमें एक गर्भवती महिला भी थी। इसी घटना के बाद से इरोम भूख हड़ताल पर बैठी हैं। बावजूद इसके, आफ्सपा की आड़ में दमन जारी रहा और असम रायफल्स ने 2004 में मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता थांगजाम मनोरमा देवी को गिरफ्तार कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया, फिर उसकी गोली मारकर हत्या कर दी। सुरक्षाबलों पर इस कानून का दुरुपयोग करने के आरोप लगातार लगते रहे हैं।

इरोम की भूख हड़ताल को 12 साल हो गए, लेकिन उसकी सुध लेने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। एक दर्जन से ज्यादा महिलाएं निर्वस्त्र होकर असम रायफल्स के हेडक्वार्टर के बाहर 2004 की घटना के विरोध में प्रदर्शन करती हैं, लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगती। इरोम का कहना है कि जब तक भारत सरकार आफ्सपा नहीं हटा देती तब तक उनका अनशन जारी रहेगा। आज उनका एकल सत्याग्रह सम्पूर्ण विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए किए जा रहे आंदोलनों का अगुवा प्रतीक बन चुका है।

''शहादत से शहादत तक'' के नाम से 23-25 मार्च के बीच रखा जा रहा पांचवां मऊ फिल्‍म उत्‍सव इस बार उन्‍हीं इरोम शर्मिला को समर्पित है। यह आयोजन पिछले चार साल से लगातार शहीद-ए-आजम भगत सिंह के शहादत दिवस से गणेश शंकर विद्यार्थी के शहादत दिवस के बीच होता रहा है। मऊ फिल्म उत्सव का यह पांचवां संस्करण इरोम शर्मिला के अथक संघर्ष को समर्पित है। तीन दिन तक चलने वाला यह आयोजन मऊ जिले में चार स्थानों पर किया जाएगा।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। गणेश शंकर विद्यार्थी का ''प्रताप'' ही वह पत्र था जिसमें भगत सिंह अपने फरारी के दिनों में बलवंत सिंह के नाम से लिखते थे। पत्रकारिता के पुरोधा विद्यार्थी जी साम्प्रदायिकता के घोर विरोधी थे। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी सुनाए जाने पर देश भर में भड़के साम्प्रदायिक दंगों को रोकने में विद्यार्थी जी ने अपना जीवन दांव पर लगा दिया और ऐसे ही एक दंगे के दौरान मासूमों को बचाते हुए वे कानपुर में शहीद हो गए।

यह फिल्म उत्सव एक ऐसे वक्‍त में हो रहा है जब भारत के सत्ता तंत्र ने आम लोगों के सामने नई और कठिन चुनौतियां पेश कर रखी हैं और उनका जीना मुहाल कर दिया है। सत्‍ता के खिलाफ प्रतिरोध के स्वर को या तो दबा दिया जा रहा है या फिर सत्ता अपना गुलाम बना ले रही है। संस्‍कृति के मोर्चे पर हालत यह है कि कॉरपोरेट पूंजी और मुनाफे से चलने वाला मीडिया व सिनेमा जनता की चेतना को और कुंद किए दे रहा है। किसान, मजदूर, आम मेहनतकश के बीच चौतरफा पस्‍तहिम्‍मती का आलम तो है ही, साथ में आम चुनाव नज़दीक आने के चलते जनता की नसों में एक बार फिर मज़हबी ज़हर घोलने की कोशिश की जा रही है। नए दौर की इस सांप्रदायिकता, अंधराष्‍ट्रवाद और फासीवाद के सबसे बड़े वाहक हमारे अखबार और टीवी चैनल बने हैं जिनका काम सिर्फ अपने राजनीतिक आकाओं के हितों को पूरा करना है, भले ही उसकी कीमत मासूम जनता को चुकानी पड़े। बीते दिनों देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में हुए सांप्रदायिक तनाव, दंगे, सीमा पर अतिरेकपूर्ण तरीके से खड़ा किया गया हमले का हौव्‍वा, सेना से जुड़ा भ्रष्‍टाचार और गुजरात में नरेंद्र मोदी की जीत से पैदा हुआ माहौल साक्षात गवाह है कि आने वाले दिनों में देश की तस्‍वीर कैसी होने जा रही है।

मऊ फिल्‍म उत्‍सव ऐसे में एक सांस्‍कृतिक विकल्‍प के तौर पर सामने आता है जिसमें फिल्मों, डाक्यूमेंटरी, पोस्टर और कला के विभिन्न माध्यमों के जरिये मौजूदा ज्वलंत सवालों को समझने-समझाने की कोशिश होगी। मुख्‍यधारा के किसी भी माध्‍यम से भ्रमभंग का और उसके परदाफाश का यह सबसे सही वक्‍त है। हमें नई चुनौतियों से निपटने के लिए प्रतिरोध के नए-नए तरीके विकसित करने और मेहनतकश जनता को सांस्‍कृतिक विकल्‍प भी मुहैया कराने की ज़रूरत है ताकि वह सत्‍ता के टुच्‍चे सांप्रदायिक हथकंडों को समझते हुए अपने जीवन और समाज की बेहतरी के संघर्षों को आगे बढ़ा सके। हमारी उम्‍मीद है कि पांचवां मऊ फिल्‍म उत्‍सव ऐसे ही एक विकल्‍प का बायस बनेगा।

No comments: