Sunday, 31 March 2013 11:57 |
सय्यद मुबीन ज़ेहरा दिल्ली देश की राजधानी है और विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है भारत। सूचनाधिकार के अंतर्गत मांगी गई जानकारी से तथ्य सामने आए हैं कि दिल्ली में प्रतिदिन औसतन सौ गर्भपात हो रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में यहां गर्भपात के एक लाख अस्सी हजार तीन सौ एक मामले सामने आए हैं। सरकार को बड़ी गंभीरता से जांच करनी चाहिए और पता लगाना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में किए जा रहे गर्भपात के कारण क्या हैं? कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए गर्भ में लिंग परीक्षण के विरुद्ध कानून हैं, लेकिन सरकार इसे रोक पाने में नाकाम है। जब वह बाहर सुरक्षा नहीं दे पा रही तो घर के अंधेरे में, मां की कोख में फैलते अंधेरों को कैसे रोक सकती है? इसके लिए तो समाज को ही पहल करनी होगी और अपने ऊपर लगी हत्यारे समाज की छाप हटानी होगी। बच्चियों के गिरते आंकड़े केवल सरकारी प्रयासों से नहीं, समाज की संरचना से भी कम किए जा सकते हैं। हमें समाज में बेटियों की इज्जत का पाठ पढ़ाना होगा और सबसे बड़ी बात यह कि बेटी पराया धन है का सोच बदलना होगा। बेटी जब इस समाज का धन बनेगी तब यह समाज धनी कहा जा सकता है। बेटियों की उपेक्षा करने वाला समाज निर्धन और निर्गुण हो जाता है। सरकार को बेटियों के लिए अधिक से अधिक ऐसी योजनाओं की घोषणा करनी होगी, जहां मां-बाप सामाजिक दबाव से ऊपर उठ कर बेटियों को जन्म दे सकें, जिससे समाज की समांतर दुनिया मजबूत बनी रहे। ऐसे में 'मंजर' भोपाली का यह शेर मौजूं है। क्या हत्यारा समाज इस बारे में कुछ सोच पाएगा? बेटियों के लिए भी हाथ उठाओ 'मंजर' सिर्फ अल्लाह से बेटा नहीं मांगा करते। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/41586-2013-03-31-06-35-11 |
Sunday, March 31, 2013
दफ्न होती बेटियां
दफ्न होती बेटियां
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