ধর্মঘট করে কারখানা বন্ধ করা চলবে না: মমতা
সরকারের দু’মাসের মাথায় বড় আর্থিক সংস্কার করতে গিয়ে হোঁচট খেতে হচ্ছে নরেন্দ্র মোদীকে। বিমা ক্ষেত্রে বিদেশি লগ্নির পরিমাণ ২৬ শতাংশ থেকে বাড়িয়ে ৪৯ শতাংশ করানোর জন্য আজ রাজ্যসভায় বিমা বিলটি কার্যসূচিতে রাখা হয়েছিল। কিন্তু বিরোধীদের মধ্যে মতের মিল না হওয়ায় তা পেশ করাই যায়নি।
जो भी हो मलिकान और कंपनियों की मर्जी।वेतन दें न दें,उनकी इच्छा।नौकरी पर रखे या रखने के बाद जब चाहे निकाल दें,इसकी पूरी आजादी।कामगार अगर पगर मांगे तो सीधे औद्योगिक विवाद के बहाने वर्क सस्पेंशन और लाक आउट।
औद्योगिक विवाद निपटाने के लिए नौकरी,नौकरी की सुरक्षा,सेवाशर्तें,वेतनमान और मजदूरी,काम के घंटे, ओवरटाइम और कार्यस्थितियां मालिकान और विदेशी कंपनियों के मर्जी मुताबिक करने के लिए श्रमकानूनों में ये संशोधन किये जा रहे हैं।
এক্সকেলিভার স্টিভেন্স বিশ্বাস
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
বিমা, শ্রম সংস্কার নিয়ে উদ্বেগে কেন্দ্র
নিজস্ব সংবাদদাতা
সরকারের দু’মাসের মাথায় বড় আর্থিক সংস্কার করতে গিয়ে হোঁচট খেতে হচ্ছে নরেন্দ্র মোদীকে। বিমা ক্ষেত্রে বিদেশি লগ্নির পরিমাণ ২৬ শতাংশ থেকে বাড়িয়ে ৪৯ শতাংশ করানোর জন্য আজ রাজ্যসভায় বিমা বিলটি কার্যসূচিতে রাখা হয়েছিল। কিন্তু বিরোধীদের মধ্যে মতের মিল না হওয়ায় তা পেশ করাই যায়নি।
০১ অগস্ট, ২০১৪
ভারতের ‘না’ ভুল বার্তা দেবে বিশ্বকে
বিশ্ব বাণিজ্য সংস্থার (ডব্লিউটিও) অবাধ বাণিজ্য চুক্তিতে ভারতের সই না-করা বিশ্বজুড়ে ভুল বার্তা পাঠাবে। শুক্রবার প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদীর সঙ্গে দেখা করে এই কথাই বললেন ভারত সফররত মার্কিন বিদেশ সচিব জন কেরি। পাশাপাশি দিল্লির কাছে দ্রুত বিষয়টির সমাধানসূত্র বার করার আর্জিও জানিয়েছেন তিনি। পরে কেরি উপস্থিত সাংবাদিকদেরও বলেন, “আন্তর্জাতিক দুনিয়ার সামনে ভারতকে বিনিয়োগের আদর্শ ক্ষেত্র হিসেবে তুলে ধরার চেষ্টা করছেন প্রধানমন্ত্রী। এই পরিস্থিতিতে ভারতের কারণেই বাণিজ্য চুক্তি ব্যর্থ হওয়ার এই ঘটনায় ধাক্কা খাবে সেই ভাবমূর্তি।”
ধর্মঘট করে কারখানা বন্ধ করা চলবে না: মমতা
|
आर्थिक सुधारों का दूसरा चरण बेरहमी से लागू हो रहा है। संसद के भीतर या संसद के बाहर किसीतरह के विरोध का स्वर सिरे से अनुपस्थित है।
श्रम कानूनों में एकमुशत 54 संशोधनों को केबिनेट ने हरी झंडी दे दी है।
संसद,संविधान और भारतीय जनता को बायपास करके निजी क्षेत्रों के या पार्टीबद्ध लोगों की विशेषज्ञ समितियों की सिफारिश से ही सीधे तमाम कायदे कानून बदले जा रहे हैं,जो संविधान के मौजूदा प्रावधानों के खिलाफ हैं।
संसदीय कमिटी या संसद की कोई भूमिका नहीं रह गयी है।
दूसरी ओर, श्रम विवादों के बहाने एक के बाद एक औद्योगिक उत्पादन इकाइयां बंद की जा रही हैं।
मसलन बंगाल में एक के बाद एक चायबागान और जूट मिलें बंद ।हुगली नदी के आर पार चालू औद्योगिक उत्पादन इकाइयों का अता पता खोजना मुश्किल है।
उत्पादन सिर्फ निजी या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले है।जो देशभर में जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता नागरिक और मानवाधिकारों से जनगण की बेदखली के साथ साथ मौजूदा कायदे कानून और संविधान के भयानक उल्लंघन के तहत बनने वाले सेज महासेज औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट सिटीज,स्वर्णिम चतुर्भुज और हीरक चतुर्भुज के मध्य भारतीय कायदे कानून से बाहर हैं और जिन्हें टैक्स होलीडे के साथ साथ तमाम सुविधाओं,सहूलियतों,रियायतों और प्रोत्साहन का बंदोबस्त है।
मीडिया की नजर में मारुति सुजुकी के मजदूरों का आंदोलन श्रमिक असंतोष है।
कामगारों के हक हकूककी आवाज जहां भी बुलंद हो रही है,वहां वर्कसस्पेंशन और लाकआउट आम है।
विनिवेशमाध्यमे सरकारी उपक्रमों और देश के संसाधनों के बेच डालने के अभियान के तहत वैसे ही हायर फायर संस्कृति चालू है और स्थाई नियुक्ति अब सरकारी महकमों में भी असंभव है।
फैक्ट्री एक्ट के लंबे चौड़े प्रावधान है,उनमें बदलाव के बारे में कहा जा कहा है कि यह बदलाव रोजगार सृजन और उत्पादन वृद्धि के लिए हैं।
तीन कानूनों में 54 संशोधन हो रहे हैं।दो चार पंक्तियों के इस रोजगार वनसृजन के अलावा संशोधन के ब्यौरों पर सरकार और मीडिया दोनों खामोश हैं और ट्रेड यूनियनों में निंदा प्रस्ताव दो दिन बाद फिर भी जारी करने की सक्रियता देखी जा रही है,जबकि राजनीति गूंगी बहरी बनी हुई है और अरबपतियों की संसद के बजट सत्र में चीख पुाकर आरोप प्रत्यारोप के अलावा जनसरोकार का कुछ अता पता नहीं है।
बंगाल में हाल में ही हिंद मोटर और शालीमारपेंट्स जैसे अतिपुरातन कारखाने औद्योगिक विवाद के हवाले हैं।
कोयलांचलों में भी कोयलाखानों में इसी वजह से उत्पादन बार बार बाधित है।
बंगाल और असम के चायबागानों में कितने बंद हुए कोई हिसाब किताब नहीं है।
जूट मिलें तो कपडा उद्योग की तरह मरणासण्ण है।
बंगाल के परिवर्तन राज में गुजराती पीपीपी माडल की सबसे ज्यादा धूम है।
यहां सत्ता का दावा गुजराते से आगे निकलने का है।
और नजारा,ईद मुबारक के मौके पर ही बुधवार को हुगली के इसपार टीटागढ़ मे किनिसन जूट मिल बंद हो गयी तो उसपार श्रीरामपुर में इंडिया जूट मिल।
गुरुवार को 1899 से चालू शताब्दी प्राचीन जंगपना चायबागान बंद हो गया।
बाकी राज्यों में हाल हकीकत बंगाल से बेहतर हैं,ऐसा मान लेने की कोई वाजिब वजह भी नहीं है।
औद्योगिक विवाद निपटाने के लिए नौकरी,नौकरी की सुरक्षा,सेवाशर्तें,वेतनमान और मजदूरी,काम के घंटे, ओवरटाइम और कार्यस्थितियां मालिकान और विदेशी कंपनियों के मर्जी मुताबिक करने के लिए श्रमकानूनों में ये संशोधन किये जा रहे हैं।
इसे मीडिया वाले बेहतर समझ बूझ सकते हैं अपने साथियों की आपबीती से।
छंटनी और आटोमेशन से मीडिया प्रजाति प्रणाली विलुप्तप्राय है लेकिन बाकी लोग सरकारी उपक्रमों और महकमों में पांचवें छठें सातवें वेतनमान से चर्बीदार हुए लोगों की तरह ही ऐसे मुलम्मेबंधे ब्रांड हो गये,कि कौन कहां मर रहा है,सपरिवार आतमहत्या कर रहा है,किसी को कोई परवाह नहीं है।
हायरफायर के तहत भाड़े पर आये मीडियाकर्मी भी अपने वेतन और सुविधाओं में निरंतर वृद्धि से मुक्त बाजार के सबसे प्रलयंकर समर्थक हो गये है।
इन्होंने न सिर्फ नमो सुनामी का सृजन किया,बल्कि केसरिया कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर माफिया बहुुराष्ट्रीय रकार की जनसंहारी नीतियों को महिमामंडित करने और कामगारों और किसानों को राष्ट्रद्रोही साबित करके जनगण के किलाफ राष्ट्र के सलवा जुड़ुम के भी वे प्रबल समर्थक हैं।
मीडिया के अंदरखाने जो वर्ण वर्चस्व सारस्वत है,जो चरण छू संस्कृति है और पोस्तों पेइड न्यूज के लिए ज मारामारी है,जो नस्ली भेदभाव है,वह तो सनातन वैदिकी परंपरा है ही।
लेकिन अब मजीठिया मालिकान की मर्जी मुताबिक,उनकी सुविधा के लिए लागू करने या न भी करने की जो छूट है,तेरह साल की अनंत प्रतीक्षा के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी,उससे साफ जाहिर है कि ऐसी ही परिस्थितियां बाकी क्षेत्रों में भी स्थाई बंदोबस्त बनाने के कवायद का आखिर मतलब क्या है।
कितने कल कारखाने बंद हो रहे है,कहां कहां किसानों की बदखली से विकास कामसूत्र का अखंड पाठ हो रहा है और पीपीपी गुजरात माडल के लागू होने पर किस कंपनी को कितना फायदा हो रहा है और औद्योगिक उत्पादन इकाइयों को बंद करने में सरकारें और राजीतिक दलों का कितना और कैसा सहयोग है,मीडिया इस पर श्रम कानूनों में 54 संशोधनों पर सन्नाटे की तरह मौन है।
उत्पादन इकाइयों में दिनपाली को छोड़ रात्रिपाली में काम लेने का हक जो मालिकान को मिल रहा है,उससे महिलाओं का कितना कल्याण होगा,आईटी सेक्टर के अंदर महल में या मीडिया के खास कमरों में ताक झांक करने से इस निरंकुश उत्पादन की तस्वीरें मिल सकती है।
अप्रेंटिस को अब नौकरी देने की मजबूरी नहीं है।
सस्ते दक्ष श्रम का कंपनियां अनंत काल तक खेप दर खेप इस्तेमाल करने को स्वतंत्र होंगी तो किसी भी महकमें में कर्मचारियों से संबंधित ब्यौरा दाखिल न करने की छूट मजीठिया के तहत ग्रेडिंग और प्रोमोशन के नजारे दाखिल करेगी।
जो भी हो मलिकान और कंपनियों की मर्जी।वेतन दें न दें,उनकी इच्छा।नौकरी पर रखे या रखने के बाद जब चाहे निकाल दें,इसकी पूरी आजादी।कामगार अगर पगर मांगे तो सीधे औद्योगिक विवाद के बहाने वर्क सस्पेंशन और लाक आउट।
कंपनियों की कानूनी बंदिसें चूकि हटायी जा रही हैं और उन्हें किसी को कोई ब्योरा भी नहीं देना है,श्रम आयोग संबंधी कानून का तो वैसे ही कबाड़ा हो गया।
लेबर कमिश्नर या तो बैठे बैठे कुर्सिया तोड़ेंगे और यूियन दादाओं दीदियों की तरह हफ्ता वसूली करेंगे या ज्यादा क्रांतिकारी हो गये तो दो बालिश्त छोटा कर दिये जायेंगे।
এখনও জট পেট্রোকেম খোলা নিয়ে
নিজস্ব সংবাদদাতা
৩১ জুলাই, ২০১৪
পরিবর্তনকে মানতে শিখিয়েই নেতৃত্ব দিতে হবে সংস্থায়
নিজস্ব সংবাদদাতা
কিছু দিন আগে পর্যন্তও রমরমা ছিল রেমিংটন টাইপরাইটারের। কম্পিউটার প্রযুক্তির ধাক্কায় তার দীর্ঘ ঐতিহ্য ধূলিসাত্। প্রতিযোগিতার বাজারে যাত্রী টানতে বিমান সংস্থাগুলি নানা কৌশল নিচ্ছে। এয়ার ইন্ডিয়া সেই মান্ধাতার আমলের কাঠামো নিয়ে ঋণভারে ধুঁকছে।
৩১ জুলাই, ২০১৪
ট্রাইয়ের নাম করে ফের ভুয়ো টাওয়ার সংস্থার প্রতারণা
দেবপ্রিয় সেনগুপ্ত
কৌশল বদলে নতুন ভাবে প্রতারণার জাল ফেলছে ভুয়ো মোবাইল টাওয়ার সংস্থা। আগে টাওয়ার বসানোর জন্য এ ধরনের সংস্থা আগাম করের টাকা দাবি করছিল জমি বা বাড়ির আগ্রহী মালিকদের কাছে। এ বার টাওয়ার বসানোর জন্য টেলিকম নিয়ন্ত্রক ট্রাই-এর ‘নো অবজেকশন সার্টিফিকেট’ (এনওসি) জোগাড় করতে অর্থ দাবি করছে ওই সব ভুয়ো সংস্থা। ট্রাই-এর পূর্বাঞ্চলীয় দফতরে এ ধরনের অভিযোগ এসেছে।
৩০ জুলাই, ২০১৪
আলিপুরে আবাসন টাটা-কেভেন্টারের
নিজস্ব সংবাদদাতা
কেভেন্টার গোষ্ঠীর সঙ্গে হাত মিলিয়ে কলকাতায় আলিপুরের কাছে বিলাসবহুল আবাসন প্রকল্প গড়তে চলেছে টাটা হাউসিং। সংশ্লিষ্ট সূত্রে খবর, তিন একর জমির উপর ওই আবাসন গড়তে যৌথ উদ্যোগে সামিল হয়েছে টাটা হাউসিং ও কেভেন্টার। প্রকল্পে তাদের অংশীদারি যথাক্রমে ৫১% এবং ৪৯%। সম্ভাব্য লগ্নির অঙ্ক ৫০০ কোটি টাকা। যার মধ্যে জমির দামই প্রায় ৩০০ কোটি। তবে পাঁচ লক্ষ বর্গ ফুটের নির্মাণ শেষ হওয়ার পর তা থেকে অন্তত হাজার কোটি টাকার ব্যবসা করা সম্ভব হবে বলে মনে করছে নির্মাণ
প্রায় বন্ধ মাসিক কিস্তিতে গয়না কেনার প্রকল্প
গার্গী গুহঠাকুরতা
২৯ জুলাই, ২০১৪
অবশেষে জামিনে মুক্ত অ্যামওয়ে কর্তা পিঙ্কনি
সংবাদ সংস্থা
দু’মাস ধরে জেলে থাকার পরে অবশেষে সোমবার জামিনে ছাড়া পেলেন প্রত্যক্ষ বিপণন (ডিরেক্ট সেলিং) সংস্থা অ্যামওয়ে ইন্ডিয়ার ম্যানেজিং ডিরেক্টর এবং চিফ এগ্জিকিউটিভ অফিসার উইলিয়াম এস পিঙ্কনি। বেআইনি অর্থলগ্নি সংক্রান্ত ‘চিট ফান্ড’ বন্ধের আইন না-মেনে ব্যবসা করা এবং প্রতারণার অভিযোগে গত ২৬ মে গুড়গাঁওয়ে অ্যামওয়ের সদর দফতর থেকে পিঙ্কনিকে গ্রেফতার করে অন্ধ্রপ্রদেশ পুলিশ।
২৯ জুলাই, ২০১৪
সারদায় সমালোচিত সেবি ঢের বেশি সক্রিয় এ বছর
নিজস্ব সংবাদদাতা
সারদা মামলায় সুপ্রিম কোর্টে প্রবল সমালোচনার মুখে পড়েছিল সেবি তথা সিকিউরিটিজ অ্যান্ড এক্সচেঞ্জ বোর্ড অব ইন্ডিয়া। লগ্নিকারীদের কাছ থেকে কোনও সংস্থা টাকা সংগ্রহ করলে, তা নিয়ম মাফিক হচ্ছে কি না সেটা সেবিরই দেখার দায়িত্ব। সারদা কেলেঙ্কারিতে সিবিআই তদন্তের নির্দেশ দিতে গিয়ে সুপ্রিম কোর্টের বিচারপতিরা প্রশ্ন তুলেছিলেন, সারদা যখন সাধারণ মানুষকে সর্বস্বান্ত করে লুঠ করছিল, তখন কি সেবির কর্তারা ঘুমোচ্ছিলেন?
২৮ জুলাই, ২০১৪
নিয়োগ বাড়ছে কর্পোরেট দুনিয়ায়, দাবি বণিকসভার
নিজস্ব সংবাদদাতা
বছরের প্রথমার্ধেই ভাল ইঙ্গিত। নতুন নিয়োগ বাড়ছে কর্পোরেট দুনিয়ায়। সমীক্ষায় দাবি বণিকসভা অ্যাসোচ্যামের। দেশের আর্থিক অবস্থার সঙ্গে তাল মিলিয়ে সার্বিক ভাবেই গত বছরে চাকরির ক্ষেত্র আশাব্যঞ্জক ছিল না। বিশেষত উৎপাদনমুখী শিল্পের মন্দা দশায় নতুন চাকরি তৈরি তো দূরস্থান, গাড়ির মতো বহু শিল্পেই কাজ খুইয়েছেন অনেকে।
২৮ জুলাই, ২০১৪
বর্ষার খামখেয়ালে চাষির হাসি উধাও
নিজস্ব সংবাদদাতা
যখন-তখন ঝমঝমিয়ে হাজির বৃষ্টি। আপাতদৃষ্টিতে ঘাটতি মিটেছে বর্ষার। কিন্তু সেটা শুধু খাতায়-কলমে। তাই খেতের খিদে মিটছে না। হাসিও নেই চাষির মুখে। মরসুমের মাঝামাঝি এসে বর্ষা কিছুটা সক্রিয় হয়েছে দক্ষিণবঙ্গে। আবহবিজ্ঞানের খাতায় তার ঘাটতি ২০ শতাংশ।
০২ অগস্ট, ২০১৪
বায়োমেট্রিক কার্ডে ফিরবে কি কর্মসংস্কৃতি
কাজল গুপ্ত
একেই বলে বজ্র-আঁটুনি ফস্কা গেরো। সরকারি দফতরে কর্মসংস্কৃতির হাল ফেরাতে কড়া পদক্ষেপের হুঁশিয়ারি দিয়েছিল রাজ্য সরকার। কর্মীদের যথাসময়ে হাজিরা সুনিশ্চিত করতে হাজিরা খাতার বদলে বিভিন্ন সরকারি অফিসে বসানো হয়েছে বায়োমেট্রিক কার্ড ব্যবস্থা। কিন্তু তার পরেও কি কর্মসংস্কৃতির গতানুগতিক ধারায় কিছু বদল এসেছে?
০২ অগস্ট, ২০১৪
শ্রমিক সংগঠনের শীর্ষে মন্ত্রীদের বসা নিয়ে রাজ্যের মত চাইল কেন্দ্র
প্রভাত ঘোষ
কোনও কারখানা বা শিল্প সংস্থার শ্রমিক সংগঠনের মাথায় মন্ত্রীদের বসা নিয়ে রাজ্যের মতামত চাইল কেন্দ্রীয় শ্রম মন্ত্রক। বহিরাগত কারও সংগঠনের পদাধিকারী হওয়া উচিত কিনা, জানতে চাওয়া হয়েছে তা-ও। যার কারণ গত ১১ অক্টোবর মাদ্রাজ হাইকোর্টের দেওয়া রায়। যেখানে কর্মী সংগঠনের কোনও পদে মন্ত্রী বা বহিরাগতদের বসার উপর নিষেধাজ্ঞা জারি করা হয়েছে।
০২ অগস্ট, ২০১৪
কমলো পেট্রোল, বাড়ল ডিজেলের দর
সংবাদ সংস্থা
ফের দাম বাড়ল ডিজেলের। রাষ্ট্রায়ত্ত তেল সংস্থা ইন্ডিয়ান অয়েল জানিয়েছে, কলকাতায় দর লিটারে ৫৮ পয়সা বেড়ে হচ্ছে ৬৩.২২ টাকা। তবে, দর কমছে পেট্রোলের। কলকাতায় লিটার পিছু তা কমানো হয়েছে ১.১৩ টাকা। নতুন দাম ৮০.৩০ টাকা। মধ্যরাত্রি থেকেই নয়া দর কার্যকর হয়েছে। গত দু’সপ্তাহে বিশ্ব বাজারে অশোধিত তেলের দাম কমেছে। একই সঙ্গে পরিবর্তন এসেছে টাকার দরেও। এর জেরেই পেট্রোলের দাম কমানোর সিদ্ধান্ত বলে এক বিবৃতিতে জানিয়েছে ইন্ডিয়ান অয়েল।
০১ অগস্ট, ২০১৪
ছোট ব্যবসা বাড়লেও কাজ কিন্তু বাড়ন্ত
প্রেমাংশু চৌধুরী
নয়াদিল্লি, ২ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:২৮:০১
বঙ্গ তৃতীয় স্থানে। উত্তরপ্রদেশ ও মহারাষ্ট্রের ঠিক পরেই। গত আট বছরে পশ্চিমবঙ্গে এই ধরনের সংস্থার সংখ্যা প্রায় ৪১ শতাংশ বেড়েছে। কিন্তু কর্মসংস্থান বেড়েছে মাত্র ২০ শতাংশ। কর্মসংস্থানের হিসেবে অনেক এগিয়ে অসম, সিকিম, হিমাচলপ্রদেশ, গুজরাত।
পশ্চিমবঙ্গের পিছিয়ে পড়ার কারণ, রাজ্যে এক-একটি সংস্থায় গড়ে দু’জনেরও রোজগারের বন্দোবস্ত না-হওয়া। যার অর্থ স্পষ্ট। পশ্চিমবঙ্গের মানুষ রোজগারের আশায় ছোটখাটো ব্যবসা করছেন, কারখানা চালাচ্ছেন, দোকান খুলছেন। সেখানে তাঁর, বা খুব বেশি হলে বাড়ির আর এক জনের কাজের সংস্থান হচ্ছে।
দশ বছর অন্তর যেমন জনগণনা হয়, তেমনই ২০০৫ সালে প্রথম বার আর্থিক শুমারি হয়েছিল। দ্বিতীয় আর্থিক শুমারির কাজ শুরু হয়েছে ২০১৩ থেকে। সম্প্রতি তার প্রাথমিক ফল প্রকাশ করেছে কেন্দ্রীয় সরকারের পরিসংখ্যান মন্ত্রক। এই শুমারিতে গোটা দেশে কতগুলি শিল্প বা ব্যবসায়িক সংস্থা রয়েছে, সেখানে কত জন কাজ করছেন, তার হিসেব করা হয়। পরিসংখ্যান মন্ত্রকের সচিব টি সি এ অনন্ত বলেন, “যে কোনও সংস্থা যদি কিছু উৎপাদন করে, বিক্রি করে বা পরিষেবা দেয়, তা হলে সেগুলি আমাদের গণনার আওতায় চলে আসে। সেটা বড় কারখানা হতে পারে, আবার কেউ ঘরেই মেশিন বসিয়ে বা হাতে কিছু তৈরি করছেন কিংবা বাড়ির বারান্দায় দোকান দিয়েছেন, সেটাও হতে পারে।”
আর্থিক শুমারি বলছে, পশ্চিমবঙ্গে এখন এই ধরনের শিল্প বা ব্যবসায়িক সংস্থার সংখ্যা ৫৯ লক্ষ ১ হাজার ৫২১টি। গোটা দেশের ১০ শতাংশের বেশি সংস্থা রয়েছে পশ্চিমবঙ্গে। গুজরাত, তামিলনাড়ু, অন্ধ্রপ্রদেশ, কর্নাটকের মতো রাজ্যকে পিছনে ফেলে দিয়েছে পশ্চিমবঙ্গ।
তার মানে কি রাজ্যে বিরাট অর্থনৈতিক কর্মকাণ্ড চলছে?
গোটা দেশে আর্থিক শুমারির পরিকল্পনা তৈরির জন্য পরিসংখ্যান মন্ত্রক একটি ওয়ার্কিং গ্রুপ তৈরি করেছে। তার চেয়ারম্যান শ্যামাপ্রসাদ মুখোপাধ্যায়ের ব্যাখ্যা, শিল্প বা ব্যবসায়িক সংস্থার সংখ্যা বেশি হওয়ার অর্থ হল বড় বা ভারী শিল্পের অভাব। যখন একটা বড় কারখানা বা ব্যবসায়িক প্রতিষ্ঠান বন্ধ হয়ে যায়, তখন তার শ্রমিকরা পেট চালাতে ছোটখাটো কারখানা, দোকান খুলে বসেন। তার ফলে এই ধরনের সংস্থার সংখ্যাও এক লাফে অনেকটাই বেড়ে যায়।
শিল্প বা ব্যবসায়িক সংস্থার মোট হিসেবে পশ্চিমবঙ্গ দেশের মধ্যে তৃতীয় স্থানে থাকলেও সেই তুলনায় কর্মসংস্থান কিন্তু হয়নি। পরিসংখ্যান মন্ত্রকের ডেপুটি ডিরেক্টর জেনারেল (আর্থিক শুমারি) সুনীল জৈন বলেন, “কর্মসংস্থান বৃদ্ধির হিসেবে পশ্চিমবঙ্গ পিছনের সারির রাজ্যগুলির অন্যতম।” ২০০৫ থেকে ২০১৩-র মধ্যে পশ্চিমবঙ্গে কর্মসংস্থান বৃদ্ধি হয়েছে মাত্র ২০.৩৫ শতাংশ। অথচ শিল্প বা ব্যবসায়িক সংস্থার সংখ্যা বেড়েছে ৪১ শতাংশ। গুজরাতে এই আট বছরে নতুন শিল্প বা ব্যবসায়িক সংস্থার সংখ্যা ৬৭ শতাংশ বেড়েছে। কর্মসংস্থানও বেড়েছে প্রায় ৫৬ শতাংশ। জাতীয় স্তরেও এই সময়ে ৩৪ শতাংশ কর্মসংস্থান বেড়েছে।
এর কারণ কী? আর্থিক শুমারি বলছে, পশ্চিমবঙ্গে ছোট মাপের কারখানা বা ব্যবসা হওয়ার ফলে সেগুলিতে কাজ পাওয়া মানুষের সংখ্যা কম। প্রায় ৫৯ লক্ষ শিল্প বা ব্যবসায়িক সংস্থায় কাজ করছেন ১ কোটি ১৫ লক্ষের মতো মানুষ। গড়ে একটি সংস্থায় কাজ করা মানুষের সংখ্যা দু’জনেরও কম-১.৯৬। মহিলা কর্মী-শ্রমিকের ক্ষেত্রেও পিছিয়ে বাংলা। জাতীয় স্তরে যার পরিমাণ ২৫%, রাজ্যে তা ২১%-র কাছাকাছি। শ্যামাবাবুর বক্তব্য, “আর্থিক শুমারির ফলের পর বোঝা যাবে, বাংলায় আগে ক’টি বড় কারখানা বা বাণিজ্য সংস্থা ছিল, এখন ক’টি ছোট সংস্থা হয়েছে।” আর্থিক শুমারির প্রাথমিক ফলেই ইঙ্গিত, রাজ্যে এখন ছোট কারখানা বেশি। স্থায়ী কাঠামোর মধ্যে কারখানা, ব্যবসা চলছে ৩৫% ক্ষেত্রে। ৫৯ লক্ষের বেশি শিল্প বা বাণিজ্য সংস্থার ৩৬% চলছে বসত বাড়িতে। প্রায় ২৯ % কারখানা বা ব্যবসা চলছে বাইরে, কিন্তু তার নির্দিষ্ট কাঠামো নেই।
ঘাটতির নাগপাশে রাজ্য রাজস্ব নেই, ঢালাও খরচ
জগন্নাথ চট্টোপাধ্যায়
কলকাতা, ২ অগস্ট, ২০১৪,
মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় সরকারের তৃতীয় আর্থিক বছরের (২০১৩-’১৪) বাজেট পেশ করে অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র জানিয়েছিলেন, রাজস্ব ঘাটতির পরিমাণ ৩ হাজার ৪৮৮ কোটি টাকার মধ্যে বেঁধে রাখা হবে। কিন্তু বছর শেষে ঘাটতির পরিমাণ প্রায় পাঁচ গুণ বেড়ে হয়েছে ১৬ হাজার ৪৭০ কোটি টাকা! দিন কয়েক আগে ২০১৩-’১৪ আর্থিক বছরের আয়-ব্যয়ের যে হিসেব (প্রভিশনাল) পেশ করেছে প্রিন্সিপাল অ্যাকাউন্ট্যান্ট জেনারেল (পিএজি), সেখানেই এই তথ্য তুলে ধরা হয়েছে। অর্থ দফতরের কর্তারাই বলছেন, এমন লাগামছাড়া রাজস্ব ঘাটতি স্মরণকালের মধ্যে হয়নি।
অর্থনীতির সাধারণ নিয়ম বলে, রাজস্ব ঘাটতি কমাতে এক দিকে আয় বাড়াতে হয়, অন্য দিকে জোর দিতে হয় খরচ কমানোর দিকে। কিন্তু শিল্পহীন রাজ্যে আয় যেমন বাড়েনি, তেমনই অহেতুক খরচ কমানোর দিকেও মোটেই নজর দেয়নি সরকার। বাজার থেকে ধার করে তারা কোনও রকমে অবস্থা সামাল দিয়েছে। এখন আর্থিক পরিস্থিতি এমন জায়গায় পৌঁছেছে যে, ঘাটতি কমানোর কোনও পথই খুঁজে পাচ্ছেন না অর্থ দফতরের কর্তারা।
আয়তন বা জনসংখ্যার বিচারে পশ্চিমবঙ্গের সঙ্গে তুল্যমূল্য বেশ কিছু রাজ্য কিন্তু এই দুই পথে হেঁটে আর্থিক স্বাস্থ্য ফেরাতে শুরু করেছে। ইতিমধ্যেই হয় তাদের রাজস্ব উদ্বৃত্ত হয়েছে, নয়তো রাজস্ব ঘাটতি নিয়ন্ত্রণে এসেছে। ফলে স্বাভাবিক ভাবেই বাজার থেকে নেওয়া ঋ
ণের পরিমাণও কমাতে পেরেছে তারা।
যেমন, গুজরাত। পিএজি বলছে, গত আর্থিক বছরে সে রাজ্যে রাজস্ব উদ্বৃত্ত হয়েছে ৫ হাজার ৬২৯ কোটি টাকা। অন্ধ্রপ্রদেশেও উদ্বৃত্ত ১ হাজার ৬৬৯ কোটি। এমনকী, পড়শি বিহারেও উদ্বৃত্ত রাজস্বের পরিমাণ ৭ হাজার ৬৩ কোটি টাকা। মহারাষ্ট্র সরকার বাজেট পেশের সময় ১৫ হাজার ১৬৪ কোটি টাকা রাজস্ব ঘাটতির কথা জানালেও বছর শেষে তা ৬ হাজার ২১৯ কোটি টাকায় আটকে রাখতে সক্ষম হয়েছে।
পশ্চিমবঙ্গের হাল এ রকম কেন?
অর্থমন্ত্রী এর দায় চাপিয়েছেন পূর্ববর্তী বাম সরকারের উপর। অমিত মিত্রের কথায়, “বাম জমানার ৩৪ বছরে এ রাজ্যে ৫৮ হাজার কল-কারখানা বন্ধ হয়েছে। শ্মশানে পরিণত হয়েছে শিল্পক্ষেত্র। তাই কর আদায়ের কাঠামোটাই ভেঙে পড়েছিল। গত তিন বছরে নতুন সরকার সেই অবস্থার পরিবর্তন করতে নেমেছে।”
কিন্তু পরিস্থিতির যে বিশেষ পরিবর্তন হয়নি, তা জানাচ্ছেন অর্থ দফতরের কর্তারাই। ২০১৩-’১৪ সালে ৩৯ হাজার ১০০ কোটি টাকা নিজস্ব কর সংগ্রহের লক্ষ্যমাত্রা নিয়েছিল রাজ্য। বছর শেষে সেটা দাঁড়িয়েছে ৩৪ হাজার কোটিতে। রাজ্যের নিজস্ব আয়ের ৭৫% আসে মূল্যযুক্ত কর বা ভ্যাট থেকে। স্বাভাবিক ভাবেই, যে রাজ্যে যত বেশি আর্থিক কারবার চলে, সেই রাজ্যে ভ্যাট আদায়ের পরিমাণ তত বেশি হয়। কিন্তু রাজ্যে নতুন কল-কারখানা প্রায় হয়নি। নতুন-পুরনো মিলিয়ে বিনিয়োগও নগণ্য। গত বছর বড় মাপের ব্যবসা, বাণিজ্য-সহ অন্যান্য অর্থনৈতিক কর্মকাণ্ডও তেমন কিছু ছিল না। ফলে গত বছর ১ এপ্রিল বাণিজ্য করের হার বৃদ্ধি সত্ত্বেও কর আদায়ের লক্ষ্যমাত্রা ছোঁয়া যায়নি।
শিল্প না-থাকার কারণে ভ্যাট আদায়ের নিরিখে সমতুল রাজ্যগুলির থেকে অনেকটাই পিছনে পড়ে রয়েছে পশ্চিমবঙ্গ। গত আর্থিক বছরে অন্ধ্রপ্রদেশে ভ্যাট আদায়ের পরিমাণ ছিল ৪৮ হাজার ৭৩৭ কোটি টাকা, গুজরাতে ৪০ হাজার ৯৭৬ কোটি টাকা, আর মহারাষ্ট্রে ৬২ হাজার ৫৩০ কোটি টাকা। এর বিপরীতে এ রাজ্যের ছবিটা অনেকটাই বিবর্ণ, ২১ হাজার ৯৩১ কোটি টাকা। নবান্নের এক কর্তার কথায়, “এই ছবিটাই চোখে আঙুল দিয়ে দেখিয়ে দিচ্ছে রাজ্যে কলকারখানা, ব্যবসা-বাণিজ্যের ক্ষেত্রে গতি না-আসায় ভ্যাট আদায়ও বাড়েনি। আদায় বাড়েনি বলে নিজস্ব আয়ও বাড়েনি। অন্যান্য রাজ্য এখানেই আমাদের টেক্কা দিয়ে বেরিয়ে যাচ্ছে।”
এই অবস্থার জন্য বাম জমানাকেই দায়ী করে অর্থমন্ত্রী বলছেন, “গত ৪০ বছরে মহারাষ্ট্র, অন্ধ্র, গুজরাতে নতুন নতুন শিল্প এসেছে। আর এ রাজ্যে বাম আমলে শিল্প অন্যত্র চলে গিয়েছে। এর পরেও কর আদায় বাড়বে কোথা থেকে?” যার জবাবে বিরোধী দলনেতা সূর্যকান্ত মিশ্র বলছেন, “আমরা শিল্প আনার চেষ্টা করেছিলাম। অনেক শিল্প এসেওছিল। কিন্তু এরা তাদের তাড়িয়ে দিচ্ছে। শিল্প না-হলে তো রাজ্যের রোজগার বাড়তে পারে না।”
কর আদায় না-বাড়লেও খরচে রাশ টানেনি মমতা-সরকার। উল্টে বছরভর নানা মেলা, উৎসব, পুরস্কার বিতরণ করে বা ক্লাবগুলিকে অনুদান দিয়ে কোটি কোটি টাকা খরচ করেছে। বেঙ্গল চেম্বার অব কমার্সের সভাপতি কল্লোল দত্তের কথায়, “যে রাজ্যে কলকারখানা নেই, সেখানে সরকারের রাজকোষ ভরবে কীসে? এত ‘শ্রী’ দেওয়ার পিছনে টাকা খরচ করে সরকার রাজ্যের হতশ্রী অবস্থা করে ছেড়েছে। খরচে লাগাম না-টানলে কখনও রাজস্ব উদ্বৃত্ত হতে পারে না।” পরিকল্পনা বহির্ভূত খাতে ব্যয়বৃদ্ধির ঠেলায় পরিকল্পনা খাতে খরচ কমেছে। যার জেরে বিভিন্ন প্রকল্পে কেন্দ্রীয় অনুদান কম এসেছে প্রায় দশ হাজার কোটি টাকা। যা বাড়িয়েছে রাজস্ব ঘাটতি। অর্থ দফতরের এক কর্তা অবশ্য বলছেন, “গত বছর কেন্দ্রের হাঁড়ির হাল ছিল। তাই বছরের শেষের দিকে রাজ্যগুলিকে প্রায় কোনও অর্থই দেননি তৎকালীন অর্থমন্ত্রী পি চিদম্বরম। কেন্দ্রীয় করের অংশ কম মিলেছে। রাজ্যের বেহাল আর্থিক দশার অন্যতম কারণ এটাও।”
সাড়ে ১৬ হাজার কোটি টাকার রাজস্ব ঘাটতির জন্য শিল্পের অভাবকে অংশত দায়ী করছেন রাজ্য চতুর্থ অর্থ কমিশন এবং পশ্চিমবঙ্গ পরিকাঠামো ও বিত্ত উন্নয়ন নিগমের চেয়ারম্যান অভিরূপ সরকারও। তাঁর কথায়, “একে শিল্প-কারখানা নেই, তার উপর বাঙালি স্বভাব সঞ্চয়ী। খরচ করলে তারা গাড়ি কেনে না, ইলিশ কেনে। ইলিশের উপরে তো আর ভ্যাট নেই! সরকারের আয় বাড়বে কী করে!” এই অবস্থায় সরকার খরচ বাড়ালে ঘাটতি বাড়তে বাধ্য, বলছেন অভিরূপবাবু।
তবে কোষাগারের বেহাল দশার জন্য আগের বাম সরকারকে দুষছেন অর্থনীতির এই শিক্ষকও। তাঁর মতে, “বাম জমানাতেই রাজ্যের আর্থিক বিশৃঙ্খলা মারাত্মক আকার নেয়। এর সঙ্গে যুক্ত হয়েছিল ধার করার প্রবণতা। এই সরকার আসার পরে কর আদায়ে বিশেষ জোর দেওয়া হয়েছে। তার সুফলও ফলতে শুরু করেছে।”
অর্থমন্ত্রীও বলছেন, “বাম জমানার শেষ বছরে রাজ্যের নিজস্ব কর আদায় হয়েছিল ২১ হাজার কোটি টাকা। তিন বছর পর ২০১৩-’১৪ সালে তা বেড়ে হয়েছে ৩৪ হাজার কোটি। রাজ্য জুড়ে নতুন নতুন কারখানা তৈরির কাজ শুরু হওয়াতেই এই বৃদ্ধি।”
অমিতবাবুর এই যুক্তিই রাজ্যসভায় তুলে ধরেন তৃণমূলের সাংসদ ডেরেক ও’ব্রায়েন। তিনি বলেছেন, “মাননীয় অর্থমন্ত্রী, অনুসরণের মতো একটাই মডেল, বেঙ্গল মডেল। ২০১২ থেকে ২০১৪-র মধ্যে রাজ্যের রাজস্ব আদায় বেড়েছে ৮৭%।” এই ‘বিপুল’ বৃদ্ধিতেও শ্লাঘা বোধ করার পরিবর্তে শঙ্কিতই অর্থ দফতরের কর্তারা। এক জনের মন্তব্য, “রেকর্ড রাজস্ব ঘাটতির সঙ্গে চলতি অর্থবর্ষের শেষে ঋণের বোঝা দাঁড়াবে প্রায় ২ লক্ষ ৭৫ হাজার কোটি টাকা। ২০১৬-’১৭ নাগাদ রাজ্যের পুরো আয়ই সম্ভবত ঋণ ও সুদ মেটাতে চলে যাবে।”
হার্ডওয়্যার শিল্পে লগ্নি নয়া দিশা দেখাবে: মমতা
নিজস্ব প্রতিবেদন
২ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:২৫:১০
কোরিয়া ও তাইওয়ানের একাধিক সংস্থা পশ্চিমবঙ্গে কম্পিউটার হার্ডওয়্যার এবং বৈদ্যুতিন পণ্য তৈরির শিল্পে বিনিয়োগে আগ্রহী বলে জানালেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। শুক্রবার বাঁকুড়ার বেলিয়াতোড়ে এক সভায় তিনি এ কথা জানান। এ দিন ফেসবুকেও মুখ্যমন্ত্রী লেখেন, ‘এই বিনিয়োগে শিল্প এবং যুবক-যুবতীদের রোজগারে নতুন দিশা দেখা যাবে।’
কিছু দিন আগেই বণিকসভা আইসিসি-র এক অনুষ্ঠানে দক্ষিণ কোরিয়ার শিল্প ও লগ্নি উন্নয়নের ভারপ্রাপ্ত সরকারি সংস্থা কোটরা-কে (কোরিয়া ট্রেড ইনভেস্টমেন্ট প্রোমোশন এজেন্সি) জমি দেওয়ার প্রস্তাব দেন অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র। কোটরা-ও রাজ্যের প্রথম ‘ইলেকট্রনিক্স ম্যানুফ্যাকচারিং ক্লাস্টার’ প্রকল্প সম্পর্কে আগ্রহী। নৈহাটি শিল্পতালুকে গড়ে উঠতে চলা এই প্রকল্প বৈদ্যুতিন পণ্য উৎপাদনে লগ্নি টানতে এই মুহূর্তে রাজ্যের অন্যতম বড় বাজি। ফেসবুকে মমতার দাবি, কোরিয়ার হার্ডওয়্যার শিল্পমহল ভবিষ্যতে রাজ্যেই বিনিয়োগ করবে। বাংলাদেশ, মায়ানমার, চিন ও এশিয়ার অন্য দেশে হার্ডওয়্যার ও বৈদ্যুতিন যন্ত্র রফতানির জন্য বাংলাকে দরজা হিসেবে ভাবছেন ওঁরা।
মুখ্যমন্ত্রীর কথায়, ‘বিনিয়োগের এই সম্ভাবনাকে কাজে লাগিয়ে আমাদের রাজ্যও চেষ্টা করবে হার্ডওয়্যার ও ইলেকট্রনিক্স যন্ত্রের বাজার বাড়িয়ে নিতে।’ বিশেষজ্ঞদের মতে, ’১৫-এর মধ্যে দেশের বৈদ্যুতিন পণ্যের বাজার দাঁড়াবে ৩৬ হাজার ৩০০ কোটি ডলারের। সেই বাজার রাজ্যের অধরা। নৈহাটির ক্লাস্টার সেই পরিস্থিতি কিছুটা হলেও বদলাতে পারে বলে সংশ্লিষ্ট মহল মনে করছে।
মমতা জানান, ‘ইউনাইটেড নেশনস ইন্ডাস্ট্রি ডেভেলপমেন্ট অর্গানাইজেশন’ বা ‘ইউনিডো’ কলকাতায় একটি ‘স্কিল ডেভেলপমেন্ট ইনস্টিটিউশন’ চালু করতে চলেছে। এ ছাড়াও রাজ্যে রেমন্ডস, স্যামসাং-এর মতো সংস্থা প্রশিক্ষণ কেন্দ্র খুলবে। মুখ্যমন্ত্রীর দাবি, কাটোয়ায় যে জমি জটে এনটিপিসি-র বিদ্যুৎ প্রকল্পের কাজ আটকে ছিল, তার সমাধান হয়েছে। রাজ্য উদ্যোগী হয়ে ১০০ একর জমি দিয়ে সমাধান করেছে। রঘুনাথপুরে ডিভিসি-র তাপবিদ্যুৎ কেন্দ্র গড়া নিয়ে সমস্যাও মিটে গিয়েছে বলেও তিনি দাবি করেছেন।
বেলিয়াতোড়ের সভা সেরে বড়জোড়া শিল্পাঞ্চলের ঘুটগোড়িয়ায় ‘এক্সপ্রো-ইন্ডিয়া’ নামে এক শিল্পসংস্থার কারখানার নতুন ইউনিট উদ্বোধন করতে যান মুখ্যমন্ত্রী। সেখানে তিনি জানিয়ে দেন, কারখানা বন্ধ করে কোনও আন্দোলন রাজ্য সরকার মেনে নেবে না।
গনি বুঝেছিলেন বেকারি দূর করতে চাই উপযোগী শিক্ষা: রাষ্ট্রপতি
অভিজিৎ চৌধুরি, মালদা
| |
|
পাটজাত দ্রব্যের বহুমুখী ব্যবহার বাড়ানোর ওপর জোর রাষ্ট্রপতির
আজকালের প্রতিবেদন: রোজকার জীবনে পাটজাত দ্রব্যের ব্যবহার, পণ্যবৈচিত্র্য বাড়ানোর ওপর জোর দিলেন রাষ্ট্রপতি প্রণব মুখার্জি৷ কলকাতার ন্যাশনাল লাইব্রেরি অডিটোরিয়ামে ইন্টারন্যাশনাল কনফারেন্স অন ন্যাচারাল ফাইবার বিষয়ক তিনদিনের এক আলোচনাচক্রের উদ্বোধন করেন তিনি৷ সেখানে রাষ্ট্রপতি বলেন, পূর্ব ভারতেই পাট বেশি উৎপাদিত হয়৷ স্বাধীনতার পর পাট উৎপাদন অঞ্চলের বেশির ভাগটাই বাংলাদেশে চলে গেছে৷ তারপরও ভারত বিশ্বে পাট উৎপাদনে প্রথম স্হানে রয়েছে৷ সত্তর দশকে ভারত পাটজাত দ্রব্য উৎপাদনে এতটাই এগিয়ে গিয়েছিল যে পাটকে সোনালি তন্তু বলা শুরু হয়৷ এখন সিম্হেটিক তন্তু পাটজাত দ্রব্যকে প্রতিদ্বন্দ্বিতার মুখে দাঁড় করিয়েছে৷ পাশাপাশি আধুনিক প্রযুক্তি গ্রহণে এই শিল্পের উদাসীনতাও পাটজাত পণ্যের গুরুত্ব কমার বড় কারণ৷ এই পরিস্হিতির মোকাবিলা করতে হলে পাটজাত পণ্যের বৈচিত্র্য ও ব্যবহার বাড়াতে হবে৷ কমাতে হবে খরচ৷ তিনি বলেন, প্রয়োজন উন্নত কারিগরি ও প্রযুক্তির মাধ্যমে আরও উন্নত পাটজাত নিত্যপ্রয়োজনীয় দ্রব্য উৎপাদন করা৷ পাশাপাশি বিপণনের ওপরেও জোর দিতে হবে৷ ইউরোপ, আমেরিকায় পাটজাত দ্রব্যের বিরাট বাজার রয়েছে৷ সেখানে বাজার করার জন্য পাটের ব্যাগের ব্যবহার বেড়েছে৷ রাজ্যের পুর ও নগরোন্নয়নমন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম বলেন, এ রাজ্যেই দেশের ৭০ থেকে ৭৫ শতাংশ পাট উৎপাদন হয়৷ ৪০ লক্ষ পরিবার যুক্ত৷ প্রচুর সমস্যা, প্রতিযোগিতা রয়েছে৷ কেন্দ্র সরকার পাটের কুইন্টাল-প্রতি ক্রয়মূল্য ধার্য করেছে ২৪০০ টাকা৷ অথচ উৎপাদন খরচ ৩ হাজার টাকা! তাই চাষীরা পাটচাষে আগ্রহ হারাচ্ছেন৷ উপস্হিত ছিলেন রাজ্যপাল কেশরীনাথ ত্রিপাঠী, জুট কমিশনার সুব্রত গুপ্ত প্রমুখ৷
গণসংগঠনকে চাঙ্গা করতে তরুণদের সদস্য করবে সি পি এম
আজকালের প্রতিবেদন: গণসংগঠনে কর্মরত অপেক্ষাকৃত তরুণদের পার্টিতে অম্তর্ভুক্ত করার দিকে এবার বিশেষ নজর দেবে সি পি এম৷ পাশাপাশি সন্ত্রাস, আক্রমণের এই কঠিন সময়ে যে নতুন কর্মীরা ঝুঁকি নিয়েও পার্টির কাজ করছেন তাঁদের রাজনৈতিক শিক্ষা বাড়াতে বাড়তি উদ্যোগ নেবে দল৷ প্রতিবাদ প্রতিরোধের সামনের সারিতে আরও বেশি করে মহিলাদের নিয়ে আসা প্রয়োজন বলেও মনে করছে সি পি এম৷ শুক্রবার দলের রাজ্য কমিটির বৈঠকে এই সিদ্ধাম্ত নেওয়া হয়েছে৷ ঠিক হয়েছে কিছু ক্ষেত্রে পার্টি কর্মীদের নিষ্ক্রিয়তা কাটিয়ে তুলতে একেবারে শাখাস্তর পর্যম্ত ধারাবাহিকভাবে নজরদারি ও লালন-পালন করা হবে৷ এদিন সন্ধেয় শেষ হয়েছে সি পি এম রাজ্য কমিটির দু’দিনের বৈঠক৷ এবার মূলত আলোচনার বিষয় ছিল গণসংগঠন নিয়ে৷ বৃহস্পতিবারই গণসংগঠন নিয়ে সদস্যরা তাঁদের মতামত জানিয়েছেন৷ পাশাপাশি ২০টি জেলার সাংগঠনিক রিপোর্টও পেশ হয়৷ দু’দিনই উপস্হিত ছিলেন সাধারণ সম্পাদক প্রকাশ কারাত৷ এদিন দুপুরে প্রকাশ কারাত সভায় গণসংগঠন ও পার্টি সংগঠনকে শক্তিশালী করার ব্যাপারে যেমন বলেছেন, তেমনি জানিয়েছেন সাম্প্রদায়িক শক্তির মোকাবিলাতে পার্টি ও বামপম্হী সংগঠনকে অগ্রণী ভূমিকা নিতে হবে৷ আর এস এসের বিপদ সম্পর্কে মানুষকে সজাগ করার ব্যাপারে বামপম্হীদেরই সবচেয়ে বেশি সরব হতে হবে৷ পাশাপাশি একটি গুরুত্বপূর্ণ ব্যাপারে তিনি দিকনির্দেশ করেছেন৷ বলেছেন, মতপার্থক্য থাকলেও বামপম্হী শক্তিকেই যথাসাধ্য প্রয়াস নিতে হবে, যাতে বিভিন্ন বামপম্হী দল, শক্তি ও বাম মনোভাবাপন্ন ব্যক্তিকে এক জায়গায় আনা যায়৷ এদিন রাজ্য সম্পাদক বিমান বসু আলোচনার উপসংহারে বলেছেন, শ্রমিক, কৃষক, ছাত্র, যুব, মহিলা সংগঠনের প্রসার ঘটানোর জন্য সুনির্দিষ্ট কর্মসূচি নিতে হবে৷ পাশাপাশি সাক্ষরতা, বিজ্ঞান, জনস্বাস্হ্য, বস্তিবাসী মানুষ এবং আদিবাসী মানুষের স্বার্থবাহী কাজে বিশেষ নজর দিতে হবে৷ সমাজের সমস্ত অংশের মানুষের সঙ্গে সম্পর্ক গড়ে তোলার উদ্যোগ নিতে হবে৷ দু’দিনের আলোচনায় যে গুরুত্বপূর্ণ নির্যাস উঠে এসেছে তা হল: | গণসংগঠনগুলির স্বাধীন কাজকর্ম বাড়িয়ে তোলা৷ শ্রগণসংগঠনের মধ্যে অপেক্ষাকৃত তরুণ অংশকে পার্টিতে অম্তর্ভুক্ত করার প্রয়াস নিতে হবে৷ এদের রাজনৈতিক শিক্ষা দিতে হবে৷ | গণতান্ত্রিক পদ্ধতি অনুসরণ করেই গণসংগঠনগুলিকে আরও কর্মতৎপর করে তোলা৷ | সমস্ত প্রতিবাদ, প্রতিরোধের সামনের সারিতে বেশি বেশি মহিলাকে নিয়ে আসতে হবে৷ | মহিলাদের আরও বেশি সংখ্যায় পার্টিতে নিয়ে আসতে হবে৷ | শাসকদলের আক্রমণ, সন্ত্রাস সত্ত্বেও যে নতুন কর্মীরা পার্টির কাজ করছেন, তাঁদের গুরুত্ব দিয়ে রাজনৈতিক শিক্ষা দিতে হবে এবং পার্টিতে অম্তর্ভুক্ত করতে হবে৷ | বিপুল অংশের মানুষের কাছে পৌঁছনোর জন্য শ্রেণী ও গণসংগঠনের কর্মতৎপরতা বৃদ্ধিকেই সর্বোচ্চ গুরুত্ব দিয়ে দেখতে হবে৷ | পার্টিসংগঠনকে মজবুত করে তুলতে একেবারে শাখাস্তর পর্যম্ত নিয়মিত নজরদারি ও লালন-পালনের উদ্যোগ নিতে হবে৷ এদিন পূর্ব মেদিনীপুরের পার্টির একাংশ নেতা-কর্মীর বিপথগামিতা নিয়েও আলোচনা হয়৷ তবে যাঁরা বিতাড়িত লক্ষ্মণ শেঠের সঙ্গে ঘনিষ্ঠতা রেখে দলবিরোধী কাজ করছেন, তাঁদের বিরুদ্ধে এখনই কোনও ব্যবস্হা নিচ্ছে না দল৷ তবে নজর রাখা হচ্ছে. এদিন গণসংগঠন নিয়ে আলোচনার পাশাপাশি সাম্প্রদায়িক মতাদর্শের বিরুদ্ধে মতাদর্শগত সংগ্রামকে বিশেষ গুরুত্ব দিয়ে বিচার করতে বলেছেন সাধারণ সম্পাদক প্রকাশ কারাত৷ তিনি বলেছেন, দেশব্যাপী কয়েকটি বিষয় নিয়ে বিশ্ব হিন্দু পরিষদ সাম্প্রদায়িক প্রচার চালানোর প্রস্তুতি নিচ্ছে৷ ধর্মীয় মেরুকরণের বাতাবরণ তৈরির চেষ্টা চালাচ্ছে৷ এর বিরুদ্ধে লড়াইতে বামপম্হীদেরই অগ্রণী ভূমিকা নিতে হবে৷ এদিন রাজ্য কমিটির সভায় সিদ্ধাম্ত হয়েছে, রাজ্যের সর্বত্র মূল্যবৃদ্ধির বিরুদ্ধে প্রচার আন্দোলন গড়ে তোলা হবে৷ ১৫ আগস্ট রাজ্য জুড়ে পালিত হবে জাতীয় সংহতি, ঐক্য ও সাম্প্রদায়িক সম্প্রীতি দিবস৷ সমস্ত জনবহুল এলাকায় ওইদিন পালিত হবে মানববন্ধন৷ ৩১ আগস্ট শহিদ দিবস পালিত হবে৷
মোর্চার জঙ্গিপনায় বন্ধ হল জঙ্গপানা চা-বাগান
নিজস্ব সংবাদদাতা
কলকাতা ও দার্জিলিং, ১ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:২৭:০৩
হিন্দ মোটর, শালিমারের পরে জঙ্গপানা। এ রাজ্যে তালা ঝোলানো শিল্প সংস্থার তালিকায় নবতম সংযোজন। দার্জিলিঙের ১১৫ বছরের পুরনো চা-বাগানে বৃহস্পতিবার অনির্দিষ্ট কালের কর্মবিরতির নোটিস লটকে দেওয়াটা আরও তাৎপর্যপূর্ণ এই কারণে যে, এই সংস্থার গায়ে রুগ্ণ তকমা তো পড়েইনি, বরং তার চায়ের খ্যাতি বিশ্বজোড়া!
জঙ্গপানায় কাজ বন্ধের পিছনে অভিযোগের আঙুল গোর্খা জনমুক্তি মোর্চার শ্রমিক সংগঠনের দিকে। চা-বাগান কর্তৃপক্ষের অভিযোগ, এক জন কর্মী নিয়োগকে কেন্দ্র করে ইউনিয়নের নেতারা বেশ কিছু দিন ধরেই চাপ সৃষ্টি করছিলেন এবং আধিকারিকদের হুমকি দিচ্ছিলেন। বাগানের কাজেরও ক্ষতি করছিলেন তাঁরা। সমস্যা মেটাতে বুধবার কর্তৃপক্ষের তরফে যে বৈঠক ডাকা হয়, তাতেও আসেননি ইউনিয়নের নেতারা। তাই নিরাপত্তার স্বার্থে বাগান বন্ধ করার সিদ্ধান্ত নেওয়া হল।
মোর্চা সমর্থিত দার্জিলিং তরাই ডুয়ার্স প্লান্টেশন লেবার ইউনিয়নই জঙ্গপানা চা-বাগানের একমাত্র শ্রমিক সংগঠন। তবে ‘বহিরাগত এক কর্মীকে নিয়োগের প্রতিবাদে আন্দোলন’ করার সময় ইউনিয়ন নেতারা তাঁদের কেন্দ্রীয় নেতাদের কথাও শুনছেন না বলে অভিযোগ। মোর্চা প্রধান বিমল গুরুঙ্গ অবশ্য বৃহস্পতিবারই সন্ধ্যায় স্থানীয় বাসিন্দা এবং ইউনিয়নের নেতাদের সঙ্গে বৈঠক করে অবিলম্বে বাগান খোলার ব্যবস্থা করতে নির্দেশ দিয়েছেন। তিনি বলেছেন, আগে কর্তৃপক্ষের সঙ্গে আলোচনা করে বাগান খুলতে হবে। ইউনিয়নের দাবিদাওয়া নিয়ে কথা হবে তার পরে।
সমতলে শাসক তৃণমূলের বিরুদ্ধে সিন্ডিকেট বা তোলাবাজির যে অভিযোগ বারবার উঠছে, পাহাড়ে সেই একই অভিযোগ উঠছে মোর্চার বিরুদ্ধে। বিভিন্ন চা-বাগান মালিক সংগঠনের অভিযোগ, মোর্চা প্রভাবিত সংগঠনের সদস্য না-হলে কাউকে কাজে নেওয়া যাবে না বলে ফতোয়া জারি করা হয়েছে। জঙ্গপানা কর্তৃপক্ষ সম্প্রতি এক জনকে নিয়োগের সিদ্ধান্ত নেওয়ার পরেই লিখিত ভাবে এবং ফোনে হুমকি দেওয়া শুরু হয়। গত ১৮, ১৯ জুলাই কাজও হয়নি বাগানে।
বাগান মালিক শান্তনু কেজরিওয়াল বৃহস্পতিবার বলেন, “এই আন্দোলন সম্পূর্ণ বেআইনি। ইউনিয়ন যে সব দাবি করছে তা-ও বেআইনি।” বহিরাগতকে কাজ দেওয়ার প্রতিবাদে আন্দোলন হলেও তাতে যোগ দিতে অনেক বহিরাগত বাগানে আসছে বলেও শান্তনুবাবুর অভিযোগ।
দার্জিলিং টি অ্যাসোসিয়েশনের মুখ উপদেষ্টা সন্দীপ মুখোপাধ্যায় এ দিন বলেন, “বাগান পরিচালনায় ইউনিয়নের অবাঞ্ছিত হস্তক্ষেপ কোনও ভাবেই বরদাস্ত করা হবে না। কর্তৃপক্ষকে সুষ্ঠু ভাবে বাগান পরিচালনা করতে দিতে হবে।”
এই সব অভিযোগই অস্বীকার করে শ্রমিক সংগঠনের সাধারণ সম্পাদক সুরজ সুব্বা অবশ্য দাবি করেন, “কোনও হুমকি বা চাপ দেওয়া হয়নি। বাগানের অস্থায়ী শ্রমিকদের বঞ্চিত করে এক জন বহিরাগতকে কর্মী নিয়োগে আপত্তি জানানো হয়েছিল মাত্র। সংগঠনের প্যাডে কোনও চিঠিও দেওয়া হয়নি।”
কার্যকারণ যা-ই হোক, তার জেরে ১১৫ বছরে এই প্রথম বন্ধ হল জঙ্গপানা চা-বাগান। যে বাগানের চায়ের কদর ব্রিটেন-ফ্রান্সে বিস্তর। বস্তুত, লন্ডনের বিখ্যাত ডিপার্টমেন্টাল স্টোর ফোর্টনাম অ্যান্ড ম্যাসন, বা হ্যারডসের চায়ের তালিকায় অগ্রগণ্য জঙ্গপানাই। দেশের বাজারে তার দেখা প্রায় মেলে না বললেই চলে। সুতরাং জঙ্গপানায় তালা পড়ার অর্থ বিদেশি মুদ্রার আমদানিও কমে যাওয়া।
চা-বিশেষজ্ঞরা অনেকেই বলেন, দার্জিলিং চায়ে সেরার শিরোপার লড়াইটা মূলত গুডরিকের কাসলটন আর কেজরিওয়ালদের জঙ্গপানা বাগানের মধ্যে। ১৮৬৫ সালে চার্লস গ্রাহামের হাতে গড়ে ওঠা কাসলটন যদি ধ্রুপদী শিল্পী হয়, ৩৪ বছর পরে হেনরি মন্টোগোমারি লেনক্সের পত্তন করা জঙ্গপানা তা হলে আধুনিক বিস্ময়। স্বাদ আর গন্ধের নিরিখে জঙ্গপানা ইদানীং কাসলটনকেও কড়া চ্যালেঞ্জ ছুড়ে দিচ্ছে বলেই অভিমত অভিজ্ঞ টি-টেস্টারদের। তবে মকাইবাড়ি, হ্যাপি ভ্যালি বা থুরবোকেও তালিকার বাইরে রাখতে নারাজ অনেকে।
জনশ্রুতি বলে, বহু বছর আগে এক ব্রিটিশ শিকারি ঘুরে বেড়াচ্ছিলেন দার্জিলিং হিমালয়ের গহন জঙ্গলে। সঙ্গে গোর্খা পরিচারক জঙ্গ বাহাদুর। আচমকাই একটি বাঘ আক্রমণ করে জনশ্রুতি বলে, বহু বছর আগে এক ব্রিটিশ শিকারি ঘুরে বেড়াচ্ছিলেন দার্জিলিং হিমালয়ের গহন জঙ্গলে। সঙ্গে গোর্খা পরিচারক জঙ্গ বাহাদুর। আচমকাই একটি বাঘ আক্রমণ করে ওই শিকারিকে। নিজের জীবন তুচ্ছ করে মনিবকে বাঁচান জঙ্গ বাহাদুর। গুরুতর আহত হয়ে মনিবের কাছে ‘পানা’ (জল) চেয়েছিলেন তিনি। কাছের একটি ঝরনা থেকে তাঁকে জল খাওয়ান ওই শিকারি। জঙ্গ বাহাদুর বাঁচেননি। কিন্তু ওই ঝোরা আর তার আশপাশের এলাকায় থেকে গিয়েছে তাঁর নাম।
এর বেশ কিছু বছর পরে জঙ্গপানায় প্রথম চা গাছটি পুঁতেছিলেন লেনক্স। অনতিবিলম্বে সেটি চলে আসে আর এক ব্রিটিশ জি ডব্লিউ ও’ব্রায়েনের হাতে। তার পর নেপালের তৎকালীন শাসক রানা পরিবারের হাত ঘুরে ১৯৫৬ সালে বাগানের মালিকানা যায় কেজরিওয়ালদের দখলে। তার পর ধীরে ধীরে চায়ের বাজারে প্রথম সারিতে উঠে এসেছে জঙ্গপানা। এখন তার কদর এতটাই যে, আর পাঁচটা সাধারণ বাগানের মতো নিলামের পথ ধরে দেশের পাইকারি বাজারে বলতে গেলে আসেই না সে।
জঙ্গপানার সেরা চা সরাসরি চলে যায় রফতানি সংস্থার হাতে। সেই চায়ের দাম কত, তা স্পষ্ট করে বলার উপায় নেই। তবে ওয়াকিবহাল মহল জানাচ্ছে, বেশ কয়েক হাজার টাকা কেজি দরে হাত বদল হয়ে জঙ্গপানার চা পাড়ি দেয় বিলেতে। এ দেশের বাজারে জঙ্গপানার যে চা নিলাম হয়, তা অপেক্ষাকৃত নিচু মানের আর পরিমাণেও কম। তবু বুধবারই কলকাতার নিলাম কেন্দ্রে ওই বাগানের যে ১১টি লট চা বিক্রি হয়েছে তার একটি লটের দাম উঠেছে কেজি-পিছু ১৮৬০ টাকা। স্বাভাবিক ভাবেই খুচরো বাজারে আসার সময় তার দাম আরও অনেকটাই চড়বে।
বছরের প্রথম বার তোলা পাতা (ফার্স্ট ফ্লাশ) না দ্বিতীয় বার তোলা পাতা (সেকেন্ড ফ্লাশ) কোন চা সেরা, তা নিয়ে চা-মহলে বিতর্ক রয়েছে। বিশেষজ্ঞদের মতে সবটাই নির্ভর করে আবহাওয়ার উপরে।
তবে দুই মরসুমের চায়ের স্বাদ-গন্ধ আলাদা। ফার্স্ট ফ্লাশের লিকার হাল্কা সোনালি, অল্প ঝাঁঝাল আর মিঠে সুগন্ধে ভরা। সেকেন্ড ফ্লাশে লিকারের রং হয়ে যায় গাঢ় সোনালি। স্বাদ-গন্ধও আরও তীব্র।
সেকেন্ড ফ্লাশের মরসুম পেরিয়ে গেলেও বর্ষা এবং শরতেও জঙ্গপানায় বেশ ভাল চা হয় বলে খবর। ফলে এই সময় বাগান বন্ধ হয়ে যাওয়াটা ভালই ধাক্কা। বিশেষ করে পুজোর আগেই যখন দেশের বাজারে টি-ব্যাগ চালু করার পরিকল্পনা নিয়েছিলেন সংস্থা কর্তৃপক্ষ। জঙ্গি শ্রমিক আন্দোলন সে সব তো অনিশ্চিত করে দিলই। আরও অনিশ্চিত হয়ে পড়ল এ রাজ্যের শিল্প-ভাগ্য।
পঞ্জাবের ভাঁড়ারে টান, বিপন্ন বাংলার চটকল
নিজস্ব সংবাদদাতা
০১ অগস্ট, ২০১৪
পিএফ বকেয়া, বেতনেও কাঁচি নিগম-কর্মীদের
অত্রি মিত্র
ভাঁড়ারের এমনই হাল, যে এ বার কর্মীদের বেতনেও হাত দিয়েছে রাজ্যের প্রধান তিন পরিবহণ নিগম। ধাক্কা সামলাতে কখনও কর্মীদের কো-অপারেটিভ তহবিলে টাকা জমা দেওয়া হচ্ছে না, কখনও আবার টাকা জমা পড়ছে না কর্মীদের প্রভিডেন্ট ফান্ডে।
০১ অগস্ট, ২০১৪
কৃষি ক্ষেত্রে চাই নয়া সংগঠন, বিতর্ক সিপিএমে
নিজস্ব সংবাদদাতা
বাংলার বাইরে সারা দেশেই সিপিএমের ক্ষেতমজুর সংগঠন রয়েছে। বাকি দেশের মতো এ বার এ রাজ্যেও কৃষক সভার বাইরে ক্ষেতমজুরদের জন্য পৃথক সংগঠন গড়তে চাইছে আলিমুদ্দিন। তবে বাংলার পরিস্থিতির কথা মাথায় রেখে পৃথক সংগঠন করা উচিত কি না, দলের মধ্যেই সেই প্রশ্নে তৈরি হয়েছে বিতর্ক।
০১ অগস্ট, ২০১৪
সাহসের অভাবই ভোগাচ্ছে অন্য তিন নিগমকে
অত্রি মিত্র
পড়শি-নিগমের কৃতিত্বের গল্প শুনে ঝাঁঝিয়ে ওঠেন কলকাতা রাষ্ট্রীয় পরিবহণ সংস্থা (সিএসটিসি)-র এক কর্তা। তাঁর সাফ কথা, “এসবিএসটিসি করতে পারে, কারণ ৩০০ বাস দিয়ে ওদের হাজার দুয়েক কর্মীর সংসার চালাতে হয়। সিএসটিসি-র ক্ষেত্রে ৩৫০টি বাসে ৫০০০ কর্মী-পরিবারের পেট চলে।”
৩১ জুলাই, ২০১৪
কপ্টার তো আছে, চড়বে কে
সুনন্দ ঘোষ ও অত্রি মিত্র
কলকাতা, ২ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:২৪:২৮
কলকাতা থেকে হেলিকপ্টারে শিল্পশহর দুর্গাপুর যাওয়ার ভাড়া ছিল ৪২০০ টাকা। আট আসনের কপ্টারে যাত্রী মিলছিল উড়ান-পিছু কুল্লে ২-৩ জন। সম্প্রতি ভাড়া কমিয়ে ১৫০০ টাকা করেছে রাজ্য সরকার। তাতেও বাড়েনি যাত্রিসংখ্যা!
আর এক শিল্পশহর হলদিয়ার দশা আরও খারাপ। গত দু’সপ্তাহে এক জনও যাত্রী পাওয়া যায়নি বলে সেখানে কপ্টার পরিষেবা আপাতত বন্ধ।
এ রাজ্যে শিল্পের দশা কী, সেটা এই ছবিই দেখিয়ে দিচ্ছে চোখে আঙুল দিয়ে। গুজরাত, মহারাষ্ট্রের মতো রাজ্যে যখন ক্রমেই ফুলেফেঁপে উঠছে কপ্টার ও বিমান পরিষেবা, সেখানে বিপুল পরিমাণ সরকারি ভর্তুকি দিয়েও যাত্রী জুটছে না পশ্চিমবঙ্গে।
কেন্দ্রীয় সংস্থা পবন হংসের কাছ থেকে ৫০ লক্ষ টাকায় মাসে ৪০ ঘণ্টার জন্য দু’ইঞ্জিনের একটি কপ্টার ভাড়া নিয়েছে রাজ্য সরকার। সাধারণ ভাবে ৮০ ঘণ্টার কম সময়ের জন্য কপ্টার তারা ভাড়া দেয় না। কিন্তু মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের অনুরোধে পশ্চিমবঙ্গের জন্য নিয়ম শিথিল করেছিল তারা। গোড়ায় ঠিক হয়েছিল, মুখ্যমন্ত্রী ও অন্য মন্ত্রী-আমলাদের জন্য ব্যবহার করা হবে এই কপ্টার। বিপর্যয় মোকাবিলার কাজেও লাগানো হবে। কিন্তু কয়েক মাস পরে দেখা যায়, সরকারি কাজে কপ্টারের ব্যবহার হচ্ছে নামমাত্র। অথচ মাসে ৪০ ঘণ্টার ভাড়া দিতেই হচ্ছে।
এই অবস্থায় কলকাতা থেকে রাজ্যের বিভিন্ন শহরে কপ্টার পরিষেবা চালু করার সিদ্ধান্ত নেওয়া হয়। তাতে দুর্গাপুর, হলদিয়ার মতো শিল্পশহর যেমন আছে, তেমনই আছে মালদহ, গঙ্গাসাগর, শান্তিনিকেতনের মতো পর্যটন কেন্দ্র। এ ছাড়া রয়েছে উত্তরবঙ্গের বালুরঘাট। মালদহ-বালুরঘাট-গঙ্গাসাগর-শান্তিনিকেতনে সপ্তাহে এক দিন, দুর্গাপুরে দু’দিন, হলদিয়ায় দু’সপ্তাহে এক দিন করে পরিষেবা চালু হয়। ভাড়ায় বিপুল ভর্তুকিই দিচ্ছে সরকার। বেহালা থেকে মালদহ যেতে খরচ ১৩০০ টাকা। অন্যত্র ১৫০০। শুধু দুর্গাপুরে কপ্টারের চাহিদা বেশি হবে এই আশায় ভাড়া রাখা হয়েছিল ৪২০০ টাকা। তবু প্রতিটি উড়ানে সব টিকিট বিক্রি হলেও রাজ্যের খরচের ১০ শতাংশও উঠত না। কিন্তু তার পরেও যাত্রী নেই অর্ধেক রুটে। মালদহ, বালুরঘাট ও গঙ্গাসাগরে লোক হচ্ছে মন্দের ভাল। উত্তরবঙ্গের কিছু ব্যবসায়ী কপ্টারে মালদহ ও বালুরঘাট যান সময় বাঁচাতে। আর গঙ্গাসাগরে কপিলমুনির আশ্রমে সারা বছরই কিছু না কিছু পুণ্যার্থী আসেন। বারবার বাস-ভেস্ল বদল করে সেখানে যাওয়ার বদলে সরাসরি কপ্টারে যাওয়া পছন্দ করেন কেউ কেউ।
কিন্তু অন্যত্র যাত্রীর আকাল কেন? এ প্রশ্নের কোনও সদুত্তর নেই নবান্নের কর্তাদের কাছে। তবে রাজ্যের শিল্পমহল বিস্মিত নয়। তাঁদের বক্তব্য, কী শিল্পে, কী পর্যটনে এ রাজ্য ক্রমশ পিছিয়ে পড়ছে। যাত্রী মিলবে কোথা থেকে! লগ্নিকারীদের একাংশের মতে, রাজ্য জুড়ে শিল্পাঞ্চলে হুমকি, তোলাবাজির ঘটনা ঘটছে। বন্ধ হয়ে যাচ্ছে একের পর এক কারখানা। হলদিয়া ও দুর্গাপুরে শিল্পের এক সময়ের রমরমা এখন প্রায় অস্তমিত। নতুন শিল্প দূরের কথা, ওই শহরে ঐতিহ্যশালী কারখানা-সহ অনেক বড় ও মাঝারি শিল্প হয় বন্ধ, অথবা রুগ্ণ। হলদিয়া পেট্রোকেমিক্যালস ঘিরেও ঘোর অনিশ্চয়তা। এ দিকে পর্যটন কেন্দ্র হিসেবে শান্তিনিকেতন পড়ে রয়েছে সেই মান্ধাতা আমলেই।
হলদিয়ায় শিল্পনগরী গড়ে তোলার পরিকল্পনা যখন হয়, তখন কলকাতা থেকে জলপথে দ্রুত সেখানে পৌঁছতে ‘সিলভার জেট’ নামে দ্রুতগামী জলযান (ক্যাটামারান) চালানো শুরু হয়েছিল। কিন্তু হলদিয়ার অবস্থা খারাপ হওয়ার সঙ্গে সঙ্গে সেই পরিষেবাও বন্ধ হয়ে গিয়েছে। তারই পুনরাবৃত্তি হচ্ছে কপ্টারে। শিল্পপতিদের মতে, শিল্পায়নের প্রক্রিয়ায় এক শহর থেকে অন্য শহরে দ্রুত পৌঁছতে কপ্টার পরিষেবা খুবই জরুরি। সাধারণ ভাবে কোনও রাজ্যের কপ্টার পরিষেবার হালহকিকৎ দেখে সেখানকার শিল্প পরিস্থিতি সম্পর্কে আঁচ পাওয়া যায়।
মহারাষ্ট্র, গুজরাতের মতো শিল্পোন্নত রাজ্যে শুধু শিল্পকে কেন্দ্র করেই কপ্টার ও বিমান পরিষেবা ফুলে ফেঁপে উঠেছে। ওই সব রাজ্যের বিমান পরিবহণ কর্তাদের কথায়, কপ্টার চালাতে তাঁদের ভর্তুকি দিতে হয় না। সরকারের নিজস্ব বিমান ও হেলিকপ্টার রয়েছে। বিমান পরিবহণের জন্য ওই সব রাজ্যে সুনির্দিষ্ট পরিকল্পনাও আছে। যেমন, গুজরাতে প্রতিটি প্রত্যন্ত তালুকে স্থায়ী হেলিপ্যাড তৈরির পরিকল্পনা রয়েছে। সে রাজ্যে পাইলট প্রশিক্ষণ কেন্দ্র খোলার কথাও ভাবা হচ্ছে। পশ্চিমবঙ্গে বিমান পরিবহণ দেখভালের জন্য আলাদা কোনও দফতরই নেই।
শিল্পোন্নত রাজ্যে ব্যক্তিগত প্রয়োজনেও ব্যবহার হয় হেলিকপ্টার। এক শহর থেকে অন্য শহরে নিয়মিত উড়ে যান শিল্পপতিরা। ব্যবহার করা হয় এয়ার-অ্যাম্বুল্যান্স। বিয়েতে আকাশ থেকে ফুল ফেলার জন্যও কপ্টার ভাড়া নেওয়া হয়। পশ্চিমবঙ্গে আসার সময় পবন হংস কর্তাদের আশা ছিল, ব্যক্তিগত কারণে অনেকে কপ্টার ভাড়া নেবেন। কিন্তু গত এক বছরে ভাড়া হয়েছে মাত্র দু’তিনটি।
বেঙ্গল চেম্বার এবং সিআইআই-এর প্রাক্তন সভাপতি অলক মুখোপাধ্যায় বলেন, “হায়দরাবাদের মতো দ্বিতীয় শ্রেণির শহর থেকেও সরাসরি ইউরোপের বিমান সংযোগ রয়েছে। অথচ মেট্রো শহর কলকাতা থেকে নেই। কারণ তো একই। শিল্প নেই বলেই এই অবস্থা।” বেঙ্গল ন্যশনাল চেম্বারের প্রাক্তন সভাপতি তেজময় চৌধুরী বলেন, “আমাদের রাজ্যে সে ভাবে শিল্প আসেনি। যা ছিল, তার বেশির ভাগ ধুঁকছে। তা হলে হেলিকপ্টার ভাড়া নেবেন কে?”
সরকারি সূত্রের খবর, কপ্টারের ভাড়া মেটাতে গিয়ে পরিবহণ দফতরের ভাঁড়ারেও টান পড়েছে। বাকি রয়েছে কয়েক মাসের ভাড়া। বকেয়া মেটাতে অর্থ দফতরের কাছে বরাদ্দ বৃদ্ধির আর্জি জানিয়েছে পরিবহণ দফতর। অর্থ দফতর বলছে, সরকারের নুন আনতে ভাতে টান পড়ছে। ফলে বরাদ্দ পাওয়া অনিশ্চিত।
যাত্রী পরিষেবার পরিকল্পনা কার্যত লাটে ওঠার পরে এখন কপ্টারের ভাড়া মেটাতে অন্য উপায় খুঁজছে রাজ্য। পরিবহণ দফতরের এক কর্তা জানিয়েছেন, এখন থেকে কোনও ব্যবসায়ী বা সংস্থা চাইলে কপ্টারটি রাজ্য সরকারের কাছ থেকেও ভাড়া নিতে পারবেন। পরিবহণ দফতরের এক কর্তা জানান, কপ্টারের জন্য রাজ্য সরকার ঘণ্টা প্রতি ১ লক্ষ ২৫ হাজার টাকা ভাড়া দিচ্ছে পবন হংসকে। সেই কপ্টারই রাজ্য এখন ঘণ্টা পিছু ২ লক্ষ টাকায় ভাড়া দিতে চায়। সরকারের এই ঘোষণার পরেও কেউ কপ্টারটি ভাড়া নিতে এগিয়ে আসেননি। উল্টে প্রশ্ন উঠেছে, কোনও সরকার কম টাকায় ভাড়া নিয়ে বেশি টাকায় তা ‘সাব-লেট’ করতে পারে কি?
গত বছরের এপ্রিলে প্রয়াগ নামে এক সংস্থা এক ইঞ্জিনের কপ্টার নিয়ে এসেছিল রাজ্যে। নিয়মিত দুর্গাপুর ও হলদিয়ায় হেলিকপ্টার চালানোর প্রতিশ্রুতিও দিয়েছিল। কিন্তু, দু’মাসে যাত্রী পাওয়া গিয়েছিল মাত্র দু’বার। তাই সেই কপ্টার কলকাতা থেকে তুলে নিয়ে এখন কেদারবদ্রী-তে চালানো হচ্ছে। তারও আগে কলকাতা থেকে দু’বার কপ্টার পরিষেবা চালাতে গিয়ে চরম ব্যর্থ কার্ট-এয়ার নামে আর এক সংস্থাও। হাতে গোনা কয়েক জন যাত্রী হয়েছিল কপ্টারে। তাদের কপ্টারও এখন অন্যত্র উড়ছে।
No comments:
Post a Comment