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Sunday, January 12, 2014

इस बाजारु राजनीति की आखिरी मंजिल भुखमरी Ref:Status of Amartya Sen's Economics prize আকালের সন্ধানে চার্চিলের বর্ণবিদ্বেষও দায়ী ছিল

इस बाजारु राजनीति की आखिरी मंजिल भुखमरी

Ref:Status of Amartya Sen's Economics prize

আকালের সন্ধানে

চার্চিলের বর্ণবিদ্বেষও দায়ী ছিল


पलाश विश्वास

The Economic Times

Is AAP turning out to be Narendra Modi's biggest threat? Read the full story here http://ow.ly/suKNo

Like ·  · Share · 973124252 · 7 hours ago ·


नोबेल विजेता विश्वविख्यात अर्थशास्त्री दो है इस महादेश में।डा.  अमर्त्य सेन और डा.मोहम्मद युनूस। दोनों जायनवादी युद्धक  विश्व व्यवस्था के डा. मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह आहलूवालिया और आनंद शर्मा से बड़े कारिंदे हैं।उनका करिश्मा किसी पास्को,वेदांत,रिलायंस मंत्री मुख्यमंत्री से कम हैरतअंगेज नहीं है।छनछनाते विकास के दोनों सबसे बड़े प्रवक्ता बाकी अर्थशास्त्री दोहराव के कीर्तनिया है। युनूस तो बांग्लादेश में एक मुश्त सहकारिता ,एनजीओ और संचार क्रांति के मुखिया हैं तो अमर्त्य बाबू बंगाल और भारत सरकारों के मानविक प्रवक्ता हैं।अमर्त्यबाबू की वैश्विक ख्याति भारत और चीन की भुखमरी के अध्ययन के लिए है,जिस अध्ययन में उन्होंने देशज उत्पादन प्रणाली को ध्वस्त करने वाली साम्राज्यवादी व्यवस्था पर कहीं आघात नहीं किया है।महामना युद्धक मसीहा नोबेल महाशय के नाम से अर्थशास्त्र का कोई पुरस्कार चालू नहीं किया,लेकिन मुक्त बाजार के अर्थशास्त्र को महिमामंडित करने के लिए काला धन के जखीरे के लिए कुख्यात स्वीडिश बैंक ने नोबेल के नाम पर पुरस्कार शुरु कर दिये।संजोग देखिये कि भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े बाजारु अर्थशास्त्री अमर्त्य बाबू को स्वीडिश बैंक के पुरस्कार से नवाजा गया हैऔर इसी पुरस्कार के लिए ही सर्वजन स्वीकृत हैं।


नोबेल विशेषज्ञ डा. सुबोध राय से आज भी बात हुई है और उन्होंने बताया कि युनूस को नोबल फाउंडेशन का ही पुरस्कार मिला है लेकिन अमर्त्य बाबू तो सीधे बैंक आफ स्वीडन के नोबेल विजयी हैं।


आप मंटेक बाबू या फिर अश्वमेध ईश्वर मनमोहन बाबू को जो चाहे कह लें लेकिन अमर्त्य बाबू के अध्ययन और उनके सिद्धांतों के खिलाफ एक शब्द का उच्चारण भी नहीं कर सकते।बंगाल में तो युनूस और अमर्त्य टैगोर के बराबर पुज्यनीय चरित्र हैं।जबकि उनकी स्थापनाओं और विवेक देवराय,रंगराजन,राजन,तेंदुलकर और सब्सिडी खत्म करने वाले देव देवियों की विकासगाथा स्थापनाओं में कोई बुनियादी फर्क नहीं है।अपने क्रांतिकारी अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक की भी बोलती बंद है।


बंगाल के ही एक सिरफिरे हमारे परम मित्र डा.सुबोध राय ने इस फर्जी नोबेल पुरस्कार के खिलाफ न केवल बांग्ला और अंग्रेजी में ग्रंथ की रचना की है बल्कि उन्होंने खुद परमाणु वैज्ञानिक होने के बावजूद बांग्ला के सबसे बड़े अखबार समूह के उनके निरंतर महिमांडन के विरुद्ध और अमर्त्यबाबू के विरुद्ध हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा हारने के बाद खुद बूढापे में वकालत की सर्वोच्च परीक्षा पास करके अपनी लड़ाई जारी रखी हुई है।बंगाल में इंद्र देवता की तरह विराजमान हैं अमर्त्यबाबू और सत्ता से हमेशा की तरह सुगंधित ,लेकिन महज अमर्त्य के विरोध की वजह से हमारे मित्र की महिषासुर दशा है।वे इतने भरे हुए हैं कि मैं चूंकि जनता में सूचनाओं के प्रसार में अविराम लगा रहता हूं,उनसे फोन पर बात नहीं करता,क्योंकि वे घंटो बात करते हैं।उनका फोन आने पर मैं सीधे सविता को फोन थमा देता हूं और वे घंटों बतियाते रहते हैं। बंगाल में सविता उनकी सबसे बड़ी प्रशंसक है।


आज चूंकि टाइम्स के बांग्ला अखबार में भुखमरी पर बांग्ला में प्रकाशित पुस्तक क्षुधार्त बांग्ला की समीक्षा छपी है।बंगाल में महायुद्ध के दौरान हुई छिटपुट बम वर्षा से जान माल की कोई क्षति न होने के कारण साम्राज्यवादी उत्पादन प्रणाली की वजह से पैंतीस लाख लोगों की भूख से हुई मौत का एक और आख्यान प्रकाशित हुआ है।इसी के साथ चर्चिल की रंगभेदी नीतियों को इस महाविध्वंस का जिम्मेदार ठहराते हुए एक आलेख भी छपा है,इसलिए हमने आज संवाद के लिए यह विषय चुना है। आप की राय आमंत्रित है।अगर नेट पर उपलब्ध हुआ तो दोने बांग्ला आलेख इस संवाद में आपकी राय मिलने के बाद नत्थी कर दूंगा।जिन्हें बांग्ला आती है,वे पत्र सकते हैं।


मैं बार बार लिख रहा हूं,कह रहा हूं कि भारत में अस्पृश्यता और जातिव्यवस्था दरअसल नस्ली भेदभाव की फसल है।जाति व्यवस्था हिंदुओं में है लेकिन आदिवासियों और मुसलमान समेत गैरहिंदुओं ,जो जाति व्यवस्था से बाहर हैं,और देवभूमि समेत समूचे हिमालय में ,पूर्वोत्तर में जो सवर्ण हिंदू हैं,जो तरह तरह के बस्ती वाशिंदा हैं,विकास की वजह से जो विस्थापित हैं,या डूब में हैं,जो देश विभाजन के शिकार लोग हैं और निरंतर जारी विकास गृहयुद्ध के शिकार हैं,उन सबकी दुर्गति की मूल वजह यह रंगभेदी व्यवस्था है। खास बात तो यह है कि वैश्विक जायनवादी व्यवस्था के मुक्त बाजार में जो मुख्य हथियार बायोमेट्रिक,डिजिटल,रोबोटिक नागरिकता खुफिया निगरानी तंत्र ड्रोन और प्रिज्म है और उन्हें अमली जामा पहुंचाने का जो अचूक कारपोरेट धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रवाद है,उसका असली महादुर्ग यह रंगभेद है।अर्थशास्त्री और डा. आशीष नंदी जैसे कारपोरेट समाजशास्त्री जिस कारपोरेट सामाजिक सरोकार के तहत समावेशी विकास के जरिये सामाजिक कार्यक्रमं का विमर्श चलाते हैं,वह मुक्त बाजार की प्रबंधकीय दक्षता और युद्धक मार्केटिंग के तहत मुक्त बाजार के विस्तार के लिए अनिवार्य क्रयशक्ति निर्माण की जुगत हैं।क्योंकि बहिस्कृत मारे जाने वाले बहुसंख्य भारतीय को उपबोक्ता बनाये बिना मुक्त बाजार का तंत्र शहरों के अलावा जनपदों में कहर बरपा ही नहीं सकता,इसलिए रंग बिरंगी सामाजिक योजनाओं,सशक्तीकरण और समावेशी विकास की लोकलुभावन अवधारमाओं के साथ बाजार के महाअमृत का स्वाद चाखने के लिए उनकी न्यूनतम क्रयशक्ति की अनिवार्यता है और इसी क्रयशक्ति के आत्मघाती रामवाण से उनका वध भी होना है।क्योंकि यह क्रयशक्ति पूंजी के एकाधिकारवादी जनसंहारी अश्वमेध को न्यायपूरण बनाता है।


हमने इतिहास और अर्थशास्त्र सिर्फ इंटरमीडियट तक पढ़ा है क्योंकि जन्मजात आंदोलनों के मध्य होने के बावजूद हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि कहीं से न अकादमिक और न पेशेवर थी और  इन विषयों की अनिवार्यता के बारे में हमें मालूम हुआ विश्वविद्यालय से निकलने के बहुत बाद।छात्र जीवन में तो हम कला विधाओं के सौंदर्यशास्त्री दिवास्वप्न में निष्णात थे,समूत सत्तर दशक में अपनी निरंतर सामाजिक सक्रियता के बावजूद।


डा. सुबोध राय ने अम्र्तय बाबू को पूरा पढ़ा है।आज उन्होने हमारी धारणा की पुष्टि भी कर दी कि महामना अमरत्य बाबू ने अपने समूचे अध्ययन और विमर्श में न कभी साम्राज्यवाद या कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ और न ही धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के सभी पक्षों के खिलाफ कुछ लिखा है।जैसे वे मोदी के फासिस्टचेहरे को पर्धानमंत्री के रुप में न देखने की चाहत बताकर सुर्खियों में रहे और कांग्रेस वाम समाजवादी अंबेडकरी धर्मोन्माद के बारे में एकतरफा चुप्पी साध गये,वैसे ही जाति विमर्श को अर्थसशास्त्र से जोड़ने गे गैरसरकारी उपक्रम चालू करने के बावजूद भारत की रंगभेदी नस्ली मुक्त बाजार व्यवस्था के खिला फ या औपनिवेशिक ब्रिटिश या अमेरिकी रंगभेद के बारे में भी वे अपने समूचे अध्ययन और विमर्श में खामोश रहे हैं।


डा.सुबोध राय परमाणु वैज्ञानिक भी हैं और सोवियत संघ में दस साल रहे भी हैं।सोवियत विघटन के बाद वे भारत आये हैं।आप के बारे में कारपोरेट कायाकल्प के बारे में हम जैसे अपढ़ व्यक्ति के आकलन से वे सहमत हैं।उनका आभार ।आप को वे कोई विकल्प नहीं मानते और न आप के साथ वे कोई समझौता करना चाहते हैं।जबकि बंगाल में ममता पक्ष और वामपक्ष दोनों आप जहाज में सवार होने को बेताब है।इसके बदले अपनी आर्थिक सामाजिक अवधारणाओं को रुप देने के लिए इसी बीच उन्होंन एक राजनीतिक पार्टी भी बना ली है ,जिसका मकसद बंगाल में एकाधिकारवादी वर्चस्व को तोड़ना है।उनको शुभकामनाएं और कम से कम इस मामले में हम उनके साथ खड़े नहीं हो सकते क्योंकि हमारा मानना है कि राज्यतंत्र को जस का तस रखकर हर विकल्प ,हर जनादेश की कारपोरेट विकल्प बन जाने से भिन्न कोई नियति है ही नहीं।


शैतानी गलियारों के निर्माण बजरिये सैकड़ों महासेजों और सैकड़ों अत्याधुनिक महानगरों के जरिये अगले चुनावों के बाद महाविध्वंस का शंखनाद है जिसकी सिंहगर्जना की गूंज समूचे परिवेश में हैं।चूंकि हमारी इंद्रियां विकलांग हैं और हम इस महाविध्वंस की पदचाप सुनने में असमर्थ हैं।अभी तो सिर्फ कृषि का विनाश हुआ है ।सुधारों के अगले चरण में भारतीय जनपदों और देहात के दिग्दिगंतव्यापी सर्वनाश की तैयारी में है कायाकल्पित कारपोरेट राजनीति,जिसकी आखिरी मंजिल भुखमरी है।


यूरोप और अमेरिका में महाविकास के लिए आंधी और तूफान में बेघरों की तस्वीरें अब भारत में सार्वजनिक यथार्थ बनने वाला ही है।ब्राजील की तापलहरी की आंच और आस्ट्रेलिया का दावानल की पहुंच की जद में हैं हम। हमारे मित्र पीसी जोशी ने अल्मोड़ा से गलत इलाज की वजह से अपनी पत्नी के निधन के एक दिन पहले हमें ग्राफिक ब्यौरे के साथ बताया कि खेती के विनाश और एकाधिकार वादी भूमाफिया की वजह से पहाड़ों और तराई में,समूचे उत्तराखंड में कैसा आजीविका संकट है और किस तेजी से लोग पहाड़ों से पलायन कर रहे हैं।गनीमत है कि प्रतिकूल परिस्थितियो के बावजूद हिमालयी भूकंप,भूस्खलन,बाढ़,डूब प्रदेशों में तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद इजाएं और वैणियां साक्षात अन्नपूर्णा हैं,उनकी वजह से ही पहाड़ को अब भी दो जून की रोटी मिल पाती है।मैदानों में तो पुरुषतंत्र के एकाधिकारवादी वर्चस्व की वजह से मातृशक्ति भी हमें इस अमोघ दुर्भिक्ष से बचा नहीं सकती।


Amalendu Upadhyaya

खास आदमी की धुआँधार बढ़त के साथ राष्ट्रद्रोह की भूमिका में अर्थशास्त्र

nblo.gs

जो लोग भ्रष्टाचार और कालाधन के विरुद्ध जिहादी झंडावरदार हैं, वहीं लोग अप्रतिरोध्य भ्रष्ट कालेधन का सैन्य राष्ट्रतंत्र का निर्माण कर रहे हैं। पलाश विश्वास शायद यह अब तक का सबसे खतरनाक राजनीतिक समीकरण है। सीधे विश्व बैंक, यूरोपीय समुदाय, अंतरराष्ट्रीय चर्च संगठन, विश्व व्यापार संगठन, यूनेस्को, अंतर्र

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Status of Amartya Sen's Economics prize

Dr. S. C. Roy, M.Sc., Ph.D., LL.B.



1


The documents relating to Prof. Amartya Sen's prize awarded by the Bank of


Sweden, which is falsely described as the 'Nobel Prize in Economics'


Dr. S. C. Roy, M.Sc., Ph.D., LL.B.


Email: drscroy@vsnl.com; Cell: 94338 57240 / 98304 31430


1. The relevant portion of Dr. Alfred Nobel's last will and testament desiring to institute


prizes, in which no mention has been made about 'Economics' as a domain for his


"The whole of my remaining realizable estate shall be dealt with in the following way: the capital,


invested in safe securities by my executors, shall constitute a fund, the interest on which shall


be annually distributed in the form of prizes to those who, during the preceding year, shall have


conferred the greatest benefit on mankind. The said interest shall be divided into five equal


parts, which shall be apportioned as follows: one part to the person who shall have made the


most important discovery or invention within the field of physics; one part to the person who


shall have made the most important chemical discovery or improvement; one part to the person


who shall have made the most important discovery within the domain of physiology or medicine;


one part to the person who shall have produced in the field of literature the most outstanding


work of an idealistic tendency; and one part to the person who shall have done the most or the


best work for fraternity between nations, for the abolition or reduction of standing armies and


for the holding and promotion of peace congresses. The prizes for physics and chemistry shall


be awarded by the Swedish Academy of Sciences; that for physiological or medical work by


the Caroline Institute in Stockholm; that for literature by the Academy in Stockholm, and that for


champions of peace by a committee of five persons to be elected by the Norwegian Storting. It


is my express wish that in awarding the prizes no consideration whatever shall be given to the


nationality of the candidates, but that the most worthy shall receive the prize, whether he be a


2. E-mail from Nobel Foundation confirming the fact that the 'Economics Prize' is


referred to as the Memorial Prize rather than the Nobel Prize:


From: Info<info@nobelchannel.com>


To: Subodh<roytech@cal.vsnl.net.in>


Subject: Re: Nobel Prize in Economics


Date: Tuesday, October 20, 1998 3:04 AM


You are correct, there is a technical difference between the prizes in name.


The name of the economics prize is technically The Sveriges Riksbank (Bank of


Sweden) Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel, and it is generally


referred to as the Memorial Prize, rather than the Nobel Prize. For additional


information on this topic you can refer to either our site or the (site of the) awarding


foundation, The Royal Swedish Academy of Sciences (http://www.kva.se/eng/


index.html). You could also look at the official Web site of the Nobel Foundation


(http://www.nobel.se) for further clarification. I hope these are helpful, and as always


please feel free to contact us here for further information.


Thank you for your interest in our site and we hope you continue to enjoy it.


3. E-mail confirming the fact that the Economics Prize winner is not a 'Nobel Laureate':


From: Nobel Foundation WWW Server


<nobelsrv@www.nobel.se>


To: Subodh<roytech@cal.vsnl.net.in>


Date:Wednesday, October 21, 1998 6:56 PM


Regarding a confusion which has occurred in my mind, I am sending you this


e-mail. Apart from the five Nobel Prizes, the Central Bank of Sweden prize for


Economics in memory of Alfred Nobel is also awarded by the Nobel Foundation. My


question is, if the receivers of the Nobel Prizes are called Nobel Laureates, how to


describe the person who is awarded the Central Bank of Sweden Prize in memory


of Alfred Nobel? Also, is there any distinction in the medals which are presented


to the recipients of the Nobel Prizes and the Central Bank of Sweden Prize for


2


— No they are not called Nobel Laureates. You should call them Prize winners


of the Bank of Sweden Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel.


There are different medals for the different prizes. You'll find information on all


medals on http://www.nobel.se/prize/medal.html.


The Webmaster of the Nobel Foundation


webmaster@www.nobel.se


4. E-mail confirming the fact that the Economics Prize is not funded by the Nobel


Foundation but by the Bank of Sweden:


From: Nobel Foundation WWW Server


To: Subodh<roytech@cal.vsnl.net.in>


Date: Thursday, October 22, 1998 2:16 PM


I'm glad to be able to assist you.


It is the Bank of Sweden. The Nobel Foundation decides the prize amount and


then the Bank of Sweden donates the money annually.


The webmaster of the Nobel Foundation webmaster@www.nobel.se


5. The 1998 Press Release of the Royal Swedish Academy of Sciences announcing the


award of the prize to Prof. Amartya Sen:


<nobelsrv@www.nobel.se>


The Royal Swedish Academy of Sciences has decided to award


The 1998 Bank of Sweden Prize in Economic Sciences in Memory of Alfred


Professor Amartya Sen, Trinity College, Cambridge,


U.K. (Citizen of India)


for his contributions to welfare economics.


6. E-mail from the Chief Legal Counsellor of Bank of Sweden clarifying the


status of the Economics Prize:


From: Matheou, Helena<Helena.Matheou@riksbank.se>


To: roytech@cal.vsnl.net.in


<roytech@cal.vsnl.net.in>


Date: Tuesday, November 03, 1998 4:21 PM


Subject: Letter from Chief Legal Counsellor R. Sparve


In regard to your message forwarded to the Governor of Sveriges Riksbank on


October 27, 1998, I am pleased to inform you the following.


The Bank of Sweden (Sveriges Riksbank) Prize in Economic Sciences in Memory of


Alfred Nobel was inaugurated at the Bank's tercenary celebration in 1968. Thus, it is


not one of the prizes mentioned in Mr. Alfred Nobel's last will and testament.


This difference between the Bank of Sweden prize and the others is, in my opinion,


evident from its name and the authorities in Sweden responsible for the selection


of the laureates consistently repeat it. Furthermore, the information is, as you have


been able to ascertain, open by different media to the public, and thereby to anyone


Considering the above, I fail to see that any reasonable ground for confusion


exists. If some news media omit the difference in every report about the prize in


economics, it is not, in my opinion, an omission for which Swedish authorities should


You are, of course, free to make this letter available to any person or news network


7. E-mail from the Chief Legal Counsellor of Bank of Sweden commenting on Prof.


3


<Helena.Matheou@riksbank.se>


To: Subodh<roytech@cal.vsnl.net.in>


Date: Monday, December 07, 1998 6:04 PM


Subject: From Mr. R. Sparve


Many thanks for your kind e-mail message of today.


In your message you have brought to my attention that Professor Amartya Sen, the


1998 laureate, has been cited in the Indian press saying he had been awarded the


Nobel Prize in Economics.


Sveriges Riksbank does not intend to take any initiative because of his statement.


If you would like to contact the prize committee responsible for the selection of the


prizewinner, you may contact:


Academy of Sciences 'prize committee for Sveriges Riksbank's prize in economics


in memory of Alfred Nobel, P.O. Box 50005, S-104 05 Stockholm.


Fax: +46 8 15 56 70; phone: +46 8 673 95 00


8. An important judgment of the Supreme Court of India on the function of the citizen:


Gajanan Visheshwar Birjur V Union of India & Ors., (JT 1994 (5) SC. Writ Petition (c) No. 598 of


"thought control is a copyright of totalitarianism, and we have no claim to it. It is not the


function of our Government to keep the citizen from falling into error; it is the function of the


citizen to keep the Government from falling into error. We could justify any censorship only


when the censors are better shielded against error than the censored."


This important function of the citizen is actually a direct consequence of the provision


enshrined in the Constitution under Article 51-A:


51-A. Fundamental duties.—It shall be the duty of every citizen of India—


(h) to develop the scientific temper, humanism and the spirit of inquiry and reform.


9. A copy of Lok Sabha debate wrongly and illegally felicitating Prof. Amartya Sen as a


Nobel Laureate and Nobel Prize winner:


XII LOK SABHA DEBATES, Session III, (Winter) Wednesday, December 2, 1998/


Type of Debate: FELICITATION IN THE HOUSE


Title: Felicitation of Prof. Amartya Sen on his winning 1998 Nobel Prize for economics.


Agrahayana 11, 1920 (Saka)


MR. SPEAKER: Hon. Members are aware that a son of India, Prof. Amartya Sen, outstanding


economist and thinker has been awarded the 1998 Nobel Prize for Economics for his path


breaking work in the field of welfare and development economics. Prof. Sen is the sixth Indian to


achieve this rare distinction. Prof. Sen has made all of us feel proud by his achievement.


Prof. Sen's academic work has been both vast and varied. His key contributions are his


research on fundamental problems in welfare economics, axiomatic theory of social choice,


definitions of welfare and poverty and human development indices, and empirical studies of


famine. The Royal Swedish Academy of Sciences has paid tribute to Prof. Sen by saying,


"..Amartya Sen has made a number of noteworthy contributions to central fields of economic


science and opened up new fields of study for subsequent generations of researchers. By


combining tools for economics and philosophy, he has restored an ethical dimension to the


discussion of vital economic problems."


Prof. Sen has over the years many major works in Economics and Philosophy to his credit


which has earned him many awards.


I hope the whole House joins me in congratulating Nobel Laureate Prof. Amartya Sen on his


singular achievement. We all wish him many years of creative success.


10. Reply received from the Govt. of India to my letter to the Prime Minister requesting to


correct the Lok Sabha resolution mentioned above:


4


F.No.3-1/99-INC June 16, 1999.


Subvject: Correction of Parliament's Resolution concerning Prof. Amartya Sen's


Nobel Prize in Economic Science - reg.


I am directed to refer to your letter dated the 17th December, 1998 addressed to


the Hon'ble Prime Minister on the subject mentioned above and to inform you that


the matter has been examined in consultation with the Indian Embassy, Sweden


and found that the achievements of the recipients of the Economics Prize is at par


with those of the recipients of the Nobel Prizes. Hence, there is no need to correct


Yours faithfully,


[D. P. Singh]


Director (UU)


11. A true copy of the text that is printed on the Air India free pass purportedly issued to


Prof. Amartya Sen describing him as a Nobel Laureate, making use of or travelling on


which is tantamount to criminal offence under the laws of the land:


Air India


Card of Distinction


PROF. AMARTYA K. SEN


Nobel Laureate for Economics, 1998


First Class


12. A true copy of a webpage of the Official Website of the Nobel Foundation


announcing that the "Economics Prize is not a Nobel Prize."


The Nominators – The Bank of Sweden Prize in Economic Sciences


Right to submit proposals for the award of the Bank of Sweden Prize in


Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel, based on the principle of


competence and universality, shall by statute be enjoyed by:


1. Swedish and foreign members of the Royal Swedish Academy of


2. Members of the Prize Committee for the Bank of Sweden Prize in


Economic Sciences in Memory of Alfred Nobel;


3. Prize winners in Economic Sciences;


4. Permanent professors in relevant subjects at the universities and


colleges in Sweden, Denmark, Finland, Iceland and Norway;


5. Holders of corresponding chairs in at least six universities or colleges,


selected for the relevant year by the Academy of Sciences with a view


to ensuring the appropriate distribution between different countries and


6. Other scientists from whom the Academy may see fit to invite


Decisions as to the selection of the teachers and scientists referred to in


paragraphs 5 and 6 above shall be taken each year before the end of the


The Economics Prize is not a Nobel Prize. In 1968, the Bank of Sweden


(Sveriges Riksbank) instituted the "Bank of Sweden Prize in Economic


Sciences in Memory of Alfred Nobel", and it has since been awarded by the


Royal Swedish Academy of Sciences, Stockholm.


भूमि सुधार मुद्दा नहीं है और शरणार्थी, राजनीति के चँगुल में हैं किसानों की तरह

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विचारधाराएं एटीएम मशीनें और उनमें भी सबसे बड़ा एटीएम अंबेडकर का ऐसा रास्ता निकालें जिसमें वोट बैंक की आत्मघाती विरासत से निकलकर हम राज्यतंत्र में बदलाव करके समता और सामाजिक न्याय का लक्ष्य हासिल कर सकें पलाश विश्वास उत्तराखंड की तराई में उधमसिंह नगर जिला मुख्यालय रुद्रपुर से सोलह किमी दूर दिनेशपुर म...



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Amalendu Upadhyaya

मीडिया स्वतंत्र नहीं है और जनता का मीडिया गायब है

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मीडिया जिस सत्यता का दावा करता है वह सत्य किसका पक्षधर है हाशिये के लोग मीडिया की चिंता में क्यों नहीं हैं? सवर्ण मध्यवर्ग की ताबेदारी को छोड़कर बहुजन समाज के लिये काम करने पर भारतीय मीडिया सच्ची विश्वसनीयता अर्जित कर सकेगा.. मीडिया और जपक्षधरता पर हिन्दू कालेज में परिसंवाद डॉ. अरविन्द कुमार सम्बल द

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Amalendu Upadhyaya

भूमि सुधार मुद्दा नहीं है और शरणार्थी, राजनीति के चँगुल में हैं किसानों की तरह

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विचारधाराएं एटीएम मशीनें और उनमें भी सबसे बड़ा एटीएम अंबेडकर का ऐसा रास्ता निकालें जिसमें वोट बैंक की आत्मघाती विरासत से निकलकर हम राज्यतंत्र में बदलाव करके समता और सामाजिक न्याय का लक्ष्य हासिल कर सकें पलाश विश्वास उत्तराखंड की तराई में उधमसिंह नगर जिला मुख्यालय रुद्रपुर से सोलह किमी दूर दिनेशपुर म

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Amalendu Upadhyaya

What a way to murder revolution!

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Opportunism : Kiran Bedi falls! K K Singh Finally Kiran Bedi has openly supported Modi; One sitting on mass murder of 2002, ditched his wife for his political ambitions and followed another with all his state apparatus, doesn't mind bullying Tharoor's wife for personal pleasure, murdered JLPB after

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बुनियादी मुद्दों पर वंचितों को सम्बोधित करने के रास्ते पर सबसे बड़ी बाधा बहुजन राजनीति के झण्डावरदार और आरक्षण-समृद्ध पढ़े लिखे लोग हैं...

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देशद्रोही पंचमवाहिनी में शामिल हैं आधार समर्थक !

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खास आदमियों की आम आदमी पार्टी बड़ी तेजी से एकमात्र राजनीतिक विकल्प बतौर तेजी से उभर रहा है। पलाश विश्वास जान माल से कितने सुरक्षित हैं भारत के नागरिक जिनकी गोपनीयता और निजता भारत सरकार भंग कर रही है! जाने अनजाने जो लोग सीआईए और नाटो की असम्वैधानिक कॉरपोरेट आधार परियोजना के पैरोकार हैं, वे…

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तो क्या भारत में अमीर भी आम आदमी है, कॉमरेडों की नजर में ?

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वर्ग संघर्ष की विचारधारा छनछनाते विकास में निष्णात हो गयी है ? संघी हिंदुत्व का विरोध करने को कटिबद्ध धर्मनिरपेक्ष कॉमरेडों को काँग्रेस के हिंदुत्व की तरह केजरीवाल के अमेरिकी हिंदुत्व से भी कोई परहेज है नहीं। सांप्रदायिकता बड़ा खतरा है लेकिन जनसंहार की आर्थिक नीतियों का खतरा उससे कहीं ज्यादा है। पला...

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আকালের সন্ধানে

Jan 12, 2014, 12.45PM IST


মারা গিয়েছিলেন অন্তত পঁয়ত্রিশ লক্ষ মানুষ৷ কিন্ত্ত নিতান্তই প্রাকৃতিক রোষে নয়৷ ভয়াবহ এই মৃত্যুতাণ্ডবের পিছনে আসলে ছিল এক শ্রেণির মানুষের সক্রিয় হাত৷ বাংলায় পঞ্চাশের মন্বন্তরের বিভিন্ন ব্যাখ্যা ও বর্ণনা পড়ে দেখলেন দীপাঞ্জন রায়চৌধুরী


রাষ্ট্রপুঞ্জের এফ এ ও সংস্থার সিদ্ধান্ত, কারও এক দিনের খাবার ১৮০০ ক্যালোরির কম শক্তি জোগালে তাঁকে বলা হবে বুভুক্ষু৷ বছরে পৃথিবীতে এ রকম বুভুক্ষু মানুষের সংখ্যা বাড়ছে ১০ কোটি করে৷ এখন পৃথিবীতে ১০০ কোটি মানুষ বুভুক্ষু৷ অপুষ্টির শিকার এই মানুষদের তিন ভাগের এক ভাগই প্রায় ভারতের বাসিন্দা৷


এই দেশে ১৯৪৭ সালের পরে ঘোষিত দুর্ভিক্ষের খবর নেই, কিন্ত্ত রাষ্ট্রীয় কৃষি বিকাশ যোজনা, ন্যাশনাল ফুড সিকিউরিটি মিশন ইত্যাদি নামধারী গোটা পঞ্চাশেক টাকা আর যাদেরই সমৃদ্ধ করুক না কেন, ক্ষুধায় অবসন্ন দেশবাসীর পেট ভরানোর কাজে লাগেনি৷ তাই সদ্যপ্রসূত খাদ্য সুরক্ষা আইনের দশাও অনুমেয়৷


মধুময় পাল সম্পাদিত 'ক্ষুধার্ত বাংলা' বইটির কেন্দ্রে যদিও পঞ্চাশের (১৯৪৩) মন্বন্তর, ১৯৪৭-এর পরের বাস্তব ছবি ক্রমান্বয়ে উজ্জ্বলতর হয়নি, ফলে বইটি কেবল ইতিহাস নয়, সমসাময়িক দলিল হিসাবেও যে প্রাসঙ্গিক তা বোঝাবার জন্য ক্ষুধার বর্তমান ব্যাপ্তি ও গভীরতার দিকে তাকাতে হয়৷ জঙ্গলমহলের আমলাশোলে ২০০৪ সালে আট জনের মৃত্যু ঘটে অনাহারে৷ ২০০৫-এও এ রকম মৃত্যুর খবর পাওয়া যায়৷ সি পি আই (এম) পরিচালিত সরকার অনাহারে মৃত্যু স্বীকার করেনি৷ সম্পাদক তো লিখেছেনই, 'ক্ষুধায় গরিব মানুষের মৃত্যুর খবর অস্বীকার করা বা চেপে যাওয়া রাষ্ট্রের বরাবরের ধর্ম৷' ২০০৬ সালে দিল্লি থেকে সর্বোচ্চ আদালত এই অঞ্চলে খাদ্যের অধিকারের অবস্থা অনুসন্ধানের জন্য কমিশনার পাঠান৷ বেলপাহাড়িতে সাত দিন অনাহারের পর মৃত্যুর ঘটনা তাঁরা লিপিবদ্ধ করেন৷ তাঁদের মতে ডোমপাড়ায় শতকরা ৯৯ ভাগ লোক একবেলা খাচ্ছেন৷ বাংলা আজও ক্ষুধার্ত৷


সম্পাদকের প্রশ্ন, 'মানুষের তৈরি দুর্ভিক্ষে ৩০ বা ৩৫ লক্ষ প্রান্তিক বাঙালির নিহত হওয়ার ঘটনা ভুলে যাব?' যাতে না ভুলি তাই বহু যত্নে দুষ্প্রাপ্য লেখা ও দলিল সব জোগাড় করা হয়েছে৷ শুরু সুকুমারী ভট্টাচার্যের সাক্ষ্য দিয়ে৷ 'ক্ষুধার মুখোমুখি হতে গেলে খাদ্যসংস্থান দিয়েই তা সম্ভব, নীতিকথা, ধর্মাচরণ, তত্ত্ব উপদেশ সেখানে সম্পূর্ণ অপ্রাসঙ্গিক৷ এই যে সরাসরি খাদ্য দিয়ে ক্ষুধার মোকাবিলা করা, তা বেদের যুগেও হয়নি, আজও হয় না৷' ঋগ্বেদে ব্রাহ্মণ ঋষি উপায়হীন চণ্ডালের মতো কুকুরের নাড়িভুঁড়ি রান্না করে খেয়েছেন৷


বইটি সাজানো হয়েছে চারটি বিভাগে --- 'সম্পাদকের কৈফিয়ত ' 'ক্ষুুধার বেদ এবং ' সুকুমারী ভট্টাচার্যের লেখা থেকে উদ্ধৃতির পর প্রথম বিভাগে আছে ছ 'টি প্রতিবেদন৷ এর মধ্যে পি সি যোশীর লেখা একটি ইস্তাহার , যার দু'টি অংশ৷ সুভাষ মুখোপাধ্যায় বিক্রমপুর পরগনার কাহিনি বলছেন , 'আমতলি গ্রামের অধিকাংশ জমিজমার মালিক আজ মনাই মাঝি৷ সংকটের আগে তার আড়তদারির ব্যবসা ছিল৷ দুর্ভিক্ষের সময় ধানচালের কারবারে দু'হাতে টাকা লুটিয়াছে৷ ' চট্টগ্রামে মেয়ে বিক্রি নিয়ে লিখেছেন ভবানী সেন৷


দ্বিতীয় বিভাগে আছে বারোজন উল্লেখযোগ্য মানুষের নিজস্ব স্মৃতি ও ভাবনায় পঞ্চাশের মন্বন্তর৷ এঁদের মধ্যে আছেন জ্যোতিরিন্দ্র মৈত্র, সোমনাথ হোর, সুবোধ ঘোষ, হীরেন্দ্রনাথ মুখোপাধ্যায়, আনিসুজ্জামান ও মার্কিন বামপন্থী লেখক হাওয়ার্ড ফাস্ট৷ তখনকার বিখ্যাত গীতি আলেখ্য 'নবজীবনের গান'-এর রচয়িতা জ্যোতিরিন্দ্র মৈত্র বলছেন, রোজই রাস্তায় মরণ দেখতাম ... মৃত্যুকে পেরিয়ে বাঁচবই ... এই ছিল 'নবজীবনের গান'-এর মূল সুর৷ ১৯৪৩-এর ৪ঠা ফেব্রুয়ারি অশোক মিত্র মুনশিগঞ্জ মহকুমার এসডিও পদে যোগ দেন৷ তাঁর মত, '১৯৪৩ -এর দুর্ভিক্ষ মূলত যে মানুষের হাতের তৈরি, মুখ্যত সরকারের তৈরি, এ বিষয়ে সন্দেহের কোনও কারণ থাকতে পারে না৷' মজুতদারির গল্প তাঁর নজরে অতিরঞ্জিত৷ তিনি দায়ী করেছেন --- (১) সম্ভাব্য জাপানি আক্রমণের পরিপ্রেক্ষিতে ব্রিটিশ সরকারের পোড়ামাটি বা 'ডিনায়াল' নীতি --- গ্রামে গ্রামে ঘরে ঘরে পুলিশ দিয়ে ধানচাল নষ্ট বা অপসারণ, নৌকা ও গরুর গাড়ি ধ্বংস, (২) গ্রাম থেকে চাল সরবরাহ ১৯৪৩-এর প্রথম তিন মাসে প্রায় বন্ধ, '৪২-এর ফেব্রুয়ারির মনপিছু চালের ৩-৪ টাকা দর, '৪৩-এর সেপ্টেম্বরে ৯০-১০০ হওয়া সত্ত্বেও অন্যান্য প্রদেশ থেকে চাল আনার কোনও তাগিদ ছিল না বাংলার লাট হার্বার্ট বা বড়লাট লিনলিথগোর, (৩) হার্বার্ট তথা ব্রিটিশ সরকার চেয়েছিলেন জাপানিদের প্রতিরোধে অনিচ্ছুক হতে পারে বাংলার যে মানুষ তাদের দেহমন ভাঙুক৷ মার্কিন কমিউনিস্ট লেখক হাওয়ার্ড ফাস্ট কলকাতার কমিউনিস্টদের সঙ্গে ঘুরে ক্ষুধা, রোগ, মৃত্যু ও জাপানের সঙ্গে যুদ্ধের অজুহাতে সরকারি মজুতদারির যে অবস্থা দেখেন তা জেনেও মার্কিন পার্টির সম্পাদক অনড় থাকেন এবং রাশিয়ার তখনকার মিত্র ব্রিটেনের বিরুদ্ধে ফাস্টকে লিখতে পর্যন্ত দেওয়া হয় না৷ বিপরীতে 'ক্ষুধার্ত বাংলা'র বিকল্প নাম 'রাষ্ট্র ও বেনিয়াতন্ত্রের গণহত্যার দলিল'৷ সম্পাদক লুকোছাপা না করে বলে দিচ্ছেন তাঁর দৃষ্টিভঙ্গি৷


তৃতীয় বিভাগে মন্বন্তরের কারণ অনুসন্ধানে সংকলিত হয়েছে বিতর্কমূলক, মূল্যবান কয়েকটি লেখা৷ শ্যামাপ্রসাদ মুখোপাধ্যায় ও আবদুল্লা রসুল সরকারি উডহেড কমিশনের রিপোর্টের উপর ভিত্তি স্থাপন করার ফলে তাঁরা জোর দিয়েছেন ১৯৪২-এর আমন ফসলে ঘাটতি, ধানচালের চড়া বাজার দর ও মজুতদারির উপর৷ হিন্দুবাদী শ্যামাপ্রসাদ আঙুল উঁচান মুসলমান ব্যবসারদের দিকে, নাজিমুদ্দিন -সুরাবর্দির লিগ সরকার যাদের পৃষ্ঠপোষক৷ কিন্ত্ত অন্য সম্প্রদায়ের হাঙরের অস্তিত্বই তিনি এড়িয়ে গিয়েছেন৷ 'ক্রেসিডা' এনজিও-র ডিরেক্টর বৌধায়ন চট্টোপাধ্যায়ের লেখাটিতে বাংলার কৃষি সম্পর্কে তাত্ত্বিক গবেষণা প্রসঙ্গে তথ্যের বহুবৃক্ষে অলক্ষ্যপ্রায় অরণ্যের মতো এসেছে পঞ্চাশের মন্বন্তর, তাও মার্কসের 'চরম উদ্বৃত্ত জনসংখ্যা তত্ত্বের' উদাহরণ রূপে৷ ওই সংস্থার তরফে অনুসন্ধানকারী নিরঞ্জন সেনগুপ্ত বরং দুর্ভিক্ষ কমিশনের সদস্য নানাবতী সংগৃহীত বিভিন্ন সাক্ষ্যের গ্যালি প্রুফ ও গোপন নোট থেকে ব্রিটিশ লাটদের ষড়যন্ত্রের ধরনটা সহজ ভাবে দেখাতে পেরেছেন: একদিকে 'ডিনায়াল', কলকাতার বড়ো মালিকদের কারখানার শ্রমিক, মার্চেন্ট অফিসের কর্মচারী ও ব্রিটিশ ও মার্কিন সেনাকে খাওয়ানোর আবশ্যিকতা, সামরিক প্রয়োজনে চাল রপ্তানি, আর অন্য দিকে চালের বাজারে মজুতদারদের সর্দার ইস্পাহানি, এইচ দত্তদের সরকারের এজেন্ট হিসাবে নিয়োগ৷


বৌধায়ন চট্টোপাধ্যায় ও সোমেশলাল মুখোপাধ্যায় লক্ষ করেন যে, অমর্ত্য সেন দেখিয়েছেন চালের চলতি সরবরাহ ১৯৪৩ সালে ১৯৪১-এর চেয়ে বেশি ছিল৷ সেনের সার্বিক বিশ্লেষণের সমালোচক বৌধায়নের মতে '১৯৪৩ -এ বাংলায় শস্য ঘাটতির কোনও ভিত্তি খুঁজে পাওয়া যায় না৷' সন্দীপ বন্দ্যোপাধ্যায়ের প্রবন্ধের সওয়াল শহরের বাজারের এত চাল এল, রেশন চালু হল, অনাহারে মৃত্যু কেন ঠেকানো গেল না? চুরি আর মজুতদারি ছাড়াও কারণ, লোকের ক্রয়ক্ষমতা ছিল না, সেনের ভাষায় কারণ 'ক্যাপাসিটি ডেপ্রিভেশন'৷ দুঃসাহসে বুক বেঁধে সেনের তত্ত্বকে ইতরজনের সামনে পরিবেশন করেছেন সোমেশলাল: খাদ্য-প্রাপ্যতা-হ্রাস নয়, দুর্ভিক্ষের প্রধান কারণ মানুষের কিছু অংশের সাপেক্ষে অন্য বড়ো বড়ো অংশের খাদ্যের ব্যবহার সত্ত্বেও ('এনটাইটলমেন্ট') বিপর্যয়, 'এনটাইটলমেন্ট ফেলিয়ার'৷ সেন ১৯৪৩-এ কৃষিশ্রমিকের মজুরির হার, খাদ্যশস্যের দাম ও খাদ্যশস্য বনাম কৃষিশ্রমের বিনিময় হার কষে পেলেন যথাক্রমে ১২৫, ৩৮৫, ৩২ (যদি ১৯৩৯-এ এই রাশি তিনটি 'কেই ১০০ ধরা হয়)৷ খাদ্যাধিকার সত্ত্বে বিপর্যয়ের দৃশ্য পরিষ্কার দেখা যাচ্ছে৷


বইয়ের লেখকদের প্রেক্ষিত বামপন্থী৷ তাই দুর্ভিক্ষ ও তার রাজনীতির কবিতায় সুভাষ মুখোপাধ্যায়, বিষ্ণু দে, সমর সেন কিরণশঙ্কর সেনগুপ্ত, দিনেশ দাস, সুকান্ত ; গল্প উপন্যাসে সতীনাথ ভাদুড়ি, মানিকবাবু, নারায়ণ গঙ্গোপাধ্যায়, মনোজ বসু, গোপাল হালদার, সোমনাথ লাহিড়ির নাম তো আসবেই৷ তবে উপেক্ষিত হননি বুদ্ধদেব বসু, অমিয় চক্রবর্তী বা জীবনানন্দ; তারাশংকর, অচিন্ত্যকুমার, সুবোধ ঘোষ, বিভূতিভূষণ ('অশনি সংকেত')৷ হেমাঙ্গ বিশ্বাস, সলিল চৌধুরী ('কোনও এক গাঁয়ের বধূ') ও লোকে কবিদের গান, যাত্রা পালা, সর্বত্রই যুদ্ধ আর দুর্ভিক্ষের পাঞ্জার দাগ (পরিশিষ্ট ৯)৷ বাউল সহজিয়ারা কি এই বৃত্তের বাইরে ছিলেন?


আজকের লেখকদের মধ্যে সম্পাদক ছাড়া পুলক চন্দ ও অনুরাধা রায় দুর্ভিক্ষবিলাপের পার্টি লাইনের সরাসরি সমালোচনা পেশ করেছেন চতুর্থ বিভাগে৷ শান্তনু চক্রবর্তী মৃণাল সেনের 'বাইশে শ্রাবণ' ও সত্যজিত্ রায়ের 'অশনি সংকেত'কে জড়িয়ে দুই পরিচালকের তুলনার একটা চেষ্টা করেছেন৷ ছাপা, বাঁধাই ভালো৷ গ্রন্থপঞ্জী এবং 'লেখক ও লেখা প্রসঙ্গ' অধ্যায়টি পাঠকের শ্রম লাঘব করবে৷ বাংলার জীবনের এক সংকটকালের প্রামাণিক গ্রন্থ হিসাবে গণ্য হওয়ার দাবি জানাচ্ছে এই বই৷


ক্ষুধার্ত বাংলা: রাষ্ট্র ও বেনিয়াতন্ত্রের গণহত্যার দলিল

সম্পাদক: মধুময় পাল

প্রকাশক : দীপ প্রকাশনী৷ মূল্য : ৪০০ টাকা৷

http://eisamay.indiatimes.com/editorial/post-editorial/book-review/articleshow/28702401.cms

চার্চিলের বর্ণবিদ্বেষও দায়ী ছিল

চিত্তপ্রসাদের স্কেচে ব্রিটিশ শাসন

চার্চিল ত্রাণ পাঠাননি স্রেফ ব্যক্তিগত ঘৃণায়৷ বললেন মধুশ্রী মুখোপাধ্যায়৷ শুনলেন নীলাঞ্জন হাজরা


নীলাঞ্জন হাজরা: মধুশ্রীদি, ১৯৪২-৪৩ এর মন্বন্তরের পিছনে উইনস্টন চার্চিলের ব্যক্তিগত বর্ণবিদ্বেষ কী ভাবে কাজ করেছিল তা আপনি আপনার বই 'চার্চিল্স সিক্রেট ওয়ার'-এ দেখিয়েছেন৷ কিন্ত্ত সেই প্রসঙ্গে আপনি বলেছেন যে কমিউনিস্টরা এই দুর্ভিক্ষের পিছনে ব্রিটিশদের হাত কিছুতেই দেখতে পাচ্ছিলেন না৷ 'ক্ষুধার্ত বাংলা' নামক একটি সংকলনে গ্রন্থিত পিসি যোশীর একটি প্রবন্ধে কিন্ত্ত দেখা যাচ্ছে তিনি সরাসরি ব্রিটিশ প্রশাসনকে কাঠগড়ায় দাঁড় করিয়েছেন৷ তা হলে আপনি এই সিদ্ধান্তে এলেন কেন?


মধুশ্রী মুখোপাধ্যায়: আমি এইটুকুনিই বলতে চাই যে এটা কেবল আমিই বলিনি, অনুরাধা রায় নামে গৌতম ভদ্রর একজন অ্যাসোসিয়েট তাঁর এক প্রবন্ধে সেই সময়কার অনেক রিপোর্ট ব্যাখ্যা করে দেখিয়েছেন, কমিউনিস্টরা নিশ্চয়ই দারুণ কাজ করেছেন মন্বন্তর 'ডকুমেন্টেশনের' ক্ষেত্রে৷ যেমন মানিক বন্দ্যোপাধ্যায় বা সুনীল জানা৷ আবার মহাশ্বেতা দেবী রাস্তায় রাস্তায় গান গেয়ে মন্বন্তরে আক্রান্ত মানুষদের সাহায্যের জন্য টাকা তুলেছেন৷ আমি নিজে দুঃখহরণবাবু বলে একজন প্রাক্তন কমিউনিস্টের কাছে শুনেছি উনি কী ভাবে কমিউনিস্ট ছাত্রদের সঙ্গে মিলে রিলিফ বিতরণ করতেন৷ কাজেই অনেক ভালো কাজ কমিউনিস্টরা করেছেন৷ কিন্ত্ত কমিউনিস্ট পার্টির অফিসিয়াল স্ট্যান্ড ছিল ব্রিটিশ যুদ্ধপ্রস্ত্ততিকে (ওয়ার এফর্ট) সমর্থন করা৷ সেটা নথিবদ্ধ৷ এক ধরনের 'সেল্ফ সেন্সরশিপ' ছিল৷ সব দোষ হচ্ছে মজুতদারদের, জমির মালিকদের৷ ব্রিটিশদের নাম উল্লেখ নেই৷ আমরা সবই বলতে পারি, কিন্ত্ত ব্রিটিশদের কোনও দোষ দেব না৷ কংগ্রেস পার্টির এক পুরনো কর্মী আমায় বলেন, সেটা আমার বইয়ে আছে, তিনি জেল থেকে বেরিয়ে দেখেন যে মন্বন্তর চলছে৷ একদিন উনি গভর্নরের বাড়ির সামনে দিয়ে মিছিল করে যাচ্ছিলেন, এবং ওঁর যা মনে আছে, কমিউনিস্ট পার্টির সমর্থকরা সেই মিছিলের উপর লাঠি দিয়ে আক্রমণ করেন৷ এমনকী, (সে সময় মন্বন্তরের কারণ খতিয়ে দেখতে তৈরি কমিশনের সদস্য মণিলাল নানাবতীর দ্বারা গোপনে রক্ষিত কমিশনের নথি ) 'নানাবতী পেপার্স' পড়লেও দেখা যাবে যে ওঁরা কমিউনিস্ট পার্টির কয়েকজনের সাক্ষাত্কার নেন৷ তাতে একজন বলেছিলেন, চার্চিল এবং স্তালিন যখন উল্টো দিকে, তখন আমরা নিশ্চয়ই চার্চিলের বিরুদ্ধে, কিন্ত্ত যখন দুজনে একই দিকে , তখন আমরা কী করে চার্চিলের বিরোধিতা করি?


কিন্ত্ত বিশেষত মন্বন্তরের বিষয়ে আমরা দেখছি, পি সি যোশী ব্রিটিশদের দায়ী করছেন সরাসরি৷ এমনকী, মন্বন্তরের উপর প্রশাসক অশোক মিত্রর একটি প্রবন্ধের উনি নামই দিচ্ছেন, 'চার্চিল থেকে হার্বার্ট: সব শেয়ালের এক রা'৷ তাঁর সঙ্গে কমিউনিস্ট পার্টির যোগাযোগের কথা আমরা সবাই জানি৷ আমার মনে হয়েছে যে আপনি হয়তো কমিউনিস্ট পার্টিকে একটু বেশি আক্রমণ করেছেন৷


তা হতে পারে৷


এ বারে বলুন, এই মন্বন্তর কি সত্যিই আটকানো যেত? অনেকে বলেছেন যে সে সময় ফসল খুবই ভাল হয়েছিল৷ তবু কেন এটা হল ?


এই ফসল হওয়ার ব্যাপারটায় বিতর্ক আছে৷ এবং তা নিয়েই আমার অমর্ত্য সেনের সঙ্গে একটা মতপার্থক্য আছে৷ 'ফ্যামিন কমিশন' রিপোর্ট বলছে যে খাদ্যের অভাব ছিল, কিন্ত্ত এতটাই কম অভাব ছিল যে, আমরা বুঝতেই পারিনি যে মন্বন্তর হতে পারে৷ আর মন্বন্তর হয়েছে মজুতদারদের জন্যে৷ কিন্ত্ত ব্রিটিশ প্রশাসনের নিজেদের যে সব নথি, তা দেখলে বোঝা যায়, মন্বন্তরের অনেক পূর্বাভাস ছিল৷ আসলে, ব্রিটিশদের এই 'ফ্যামিন কমিশনের' রিপোর্টগুলি সবসময় মন্বন্তরের পিছনে একটা ম্যালথুসিয় ব্যখ্যা দিয়েছে৷ একদিকে খরা হয়েছে, ভালো ফসল হয়নি৷ অন্য দিকে, জনসংখ্যা খুব বেড়েছে৷ ফলে অনেক মারা গিয়ে একটা সামঞ্জস্য তৈরি হয়ে গিয়েছে৷ এ রকম একটা ব্যখ্যা৷ এটা একটা প্যাটার্ন৷ কিন্ত্ত প্রশাসন খুব ভাল করে মুদ্রাস্ফীতি, মূল্যবৃদ্ধি বা আমদানি-রফতানির সঙ্গে দুর্ভিক্ষের যোগাযোগটা বুঝত৷ কেবল সাধারণ মানুষকে খাওয়ানোর জন্যে ওরা এই 'ফ্যামিন কমিশনের' রিপোর্টগুলো প্রকাশ করত৷ যুদ্ধের সময়কার কমিশনও ওই একই কাজ করেছিল --- একটা খাদ্য সঙ্কটের কথা বলা হল, কিন্ত্ত এতটাও সঙ্কট দেখানো হল না যাতে ওদের উপর দোষ পড়ে৷


তুমি যদি নানাবতী পেপার্স বা অন্যান্য দলিল দেখো, যেমন কৃষি দপ্তরের যে স্টেশনগুলো ছিল তারা তাদের রিপোর্টে বলেছিল যে প্রায় ৫০ শতাংশ ফসল কম হয়েছে৷ অমর্ত্য সেন এই রিপোর্টগুলিকে গুরুত্ব দেন না৷ একজন মার্কিন গবেষক মার্ক টাউগার দেখিয়েছেন, অধ্যাপক সেন ফ্যামিন কমিশনের যে তথ্য ব্যবহার করেছেন সেটা কিন্ত্ত পূর্বাভাস, আসলে ঠিক কী পরিমাণ ফসল হয়েছিল তার সঠিক হিসাব নয়৷ আবার আমার সঙ্গে অধ্যাপক সেনের যে মতবিনিময় হল, তাতে উনি বললেন, ঠিক আছে, পূর্বাভাস হলেও পরে ফ্যামিন কমিশন তাতে কিছু কারেকশন করেছিল৷ আর ফ্যামিন কমিশন নিশ্চয়ই ইচ্ছে করে কিছু বদমাইশি করবে না৷ কিন্ত্ত কমিশনের যে প্রকাশিত রিপোর্ট আর নানাবতী পেপার্স (যেটা গোপনে রক্ষিত আসল দলিল কমিশনের কাজের), এ দুটোর মধ্যে বিস্তর তফাত্‍৷


একটা উদাহরণ দিন৷


যেমন পিনেল বলে এক সাহেবের সাক্ষাত্কার নেয় কমিশন৷ মনে রেখো, সে সময় বিশেষত বাংলাদেশে জাপানিদের ভয়ে, তারা যাতে ব্যবহার করতে না পারে, প্রচুর নৌকো আর চাল ধ্বংস করা হয়৷ এই চাল ধ্বংসের ব্যাপারটা অশোক মিত্রও লিখেছেন৷ সাংবাদিক নাজেস আফরোজ একবার এ নিয়ে কাজ করার সময় একজন বাংলাদেশীর রেডিও সাক্ষাত্কার নিয়েছিলেন৷ তাতে ভদ্রলোক দাবি করেছেন যে তিনি নিজে দেখেছেন ব্রিটিশ সেনারা চালের বস্তায় আগুন ধরিয়ে দিচ্ছে৷ তো, পিনেলকে জিজ্ঞাসা করা হল, তোমরা কটা নৌকো ধ্বংস করলে? তিনি উত্তর দেন, তা তো ঠিক বলতে পারি না, তবে দশটা পেলে তার মধ্যে নটাই ধ্বংস করেছি৷ তুমি ফ্যামিন কমিশনের রিপোর্ট দেখো, সেখানে এই নৌকোর ব্যাপারে খুবই একটা সুনির্দিষ্ট তথ্য দেওয়া হচ্ছে৷


আবার নানাবতী পেপার্স-এ খাদ্য সঙ্কটের অনেকগুলো এস্টিমেট আছে --- কৃষি দপ্তরের এস্টিমেট আছে, অসামরিক সরবরাহ দপ্তরের একটা এস্টিমেট আছে৷ ফ্যামিন কমিশন যে এস্টিমেটটা প্রকাশ করেছে, সেটা সবকটা এস্টিমেটের সব থেকে কমটা৷ অমর্ত্য সেন বলেন ১৯৪৩-এ খাদ্য সরবরাহ ১৯৪১-এর থেকে বেশি ছিল৷ তবু মন্বন্তর হল৷ ফ্যামিন কমিশন যে অভাবটা দেখিয়েছে সেটা হল ২০ শতাংশ অভাব৷ আমি মন্ত্রকের যে সব দলিল দেখেছি তাতে স্পষ্ট যে খাদ্য সরবরাহে অন্তত ৩০ শতাংশ অভাব ছিল৷ ১৯৪৩-এ মন্বন্তর হবে কী না তুমি যদি বুঝতে চাও তা হলে কী করবে? তুমি দেখবে ১৯৪৩-এর শুরুতে খাদ্যের অভাব কত শতাংশ৷ সেটা ছিল ২০ শতাংশ৷ অধ্যাপক সেন মন্বন্তর শুরু হওয়ার পর, ত্রাণ আসার পর, সব মিলিয়ে খাদ্য সরবরাহের হিসেবটা ধরে বলেছেন অভাব ছিল মাত্র ৭ শতাংশ৷ বুঝেছো? এই যে এতগুলো হিসেব, ৩০ শতাংশ থেকে ৭ শতাংশ, আমার মনে হয় আমরা সঠিক বলতে পারি না কতটা অভাব ছিল৷ নানা মুনির নানা মত৷ সে ক্ষেত্রে বলা যায় না যে চালের কত অভাব ছিল৷


আপনার বইয়ে আপনি এই মন্বন্তরের জন্য সরাসরি চার্চিলের দিকে আঙুল তুলেছেন৷ তাতে অনেক ইতিহাসকার ভারি চটেছেন৷ প্রশ্ন হল, মনে রাখতে হবে চার্চিলকে সে সময় খুব কঠিন কিছু সিদ্ধান্ত নিতে হচ্ছিল যুদ্ধের জন্য৷ উনি বাংলার পরিস্থিতি সম্পর্কে কতটা ওয়াকিবহাল ছিলেন ?


চার্চিল মোটামুটি এমন সিদ্ধান্ত নিয়েছিলেন যার ফলে যদি কোনও বিপদ হয় তার চাপ ইংল্যান্ডের ঘাড়ে পড়বে না৷ পড়বে ভারত ও অন্যান্য উপনিবেশগুলোর হাতে৷


কিন্ত্ত এটা তো উপনিবেশবাদের স্বাভাবিক যুক্তি৷ তার বাইরে কি ব্রিটেনের নীতি নির্ধারকদের বর্ণবৈষম্যবাদ তাদের নীতিকে প্রভাবিত করেছিল ?


দুটোই ছিল৷ ঔপনিবেশিক শোষণ যে হবে সেটা জানা কথা৷ তার উপর চার্চিলের একটা ব্যক্তিগত বর্ণবৈষম্যবাদী বিদ্বেষ ছিল৷ বিশেষ করে বাঙালিদের উপর৷ চার্চিল এমন কথাও বলেছেন যে ওদের খাবার পাঠিয়ে কোনও লাভ নেই, They are breeding like rabbits anyway. এগুলো সব এমেরির ডায়েরিতে আছে৷ এই সব শুনে এমেরি খুব রেগেমেগে এসে ডায়েরিতে লিখত৷ যুদ্ধ শেষ হওয়ার পর এই চার্চিলই তো তাঁর সেক্রেটারিকে বলেছিলেন, Hindus are a foul race protected by their pullulation from the doom that is there. মানে বড্ড বাচ্চা হয়, ধ্বংস করতে পারলাম না৷ ব্রিটিশ সেনাবাহিনীতে যে সব বাঙালি ছিলেন তাদের চার্চিল বাদ দেওয়ার নির্দেশ দিয়েছিলেন৷ অবশ্য ব্রিটিশ জেনারেলরা রাজি হয়নি৷ আর একটা জিনিস আমার মনে হয়, যদিও আমি সরাসরি তার কোনও প্রমাণ পাইনি৷ চার্চিলের বাঙালিদের প্রতি বিদ্বেষের একটা কারণ হতে পারে যে সুভাষচন্দ্র বসু বাঙালি ছিলেন৷ চার্চিল তাঁকে হত্যা করার নির্দেশ দিয়েছিলেন৷


মন্বন্তর হয়তো হত, যুদ্ধের কারণে৷ কিন্ত্ত ত্রাণ যে পাঠানো হল না এটা চার্চিলের সিদ্ধান্ত ছিল৷ সে ক্ষমতা ওদের ছিল৷ আঠোরোটা গম ভর্তি জাহাজ অস্ট্রেলিয়া থেকে ভারত পেরিয়ে যাচ্ছে৷ মুম্বইতে জ্বালানি ভরছে৷ কিন্ত্ত সেই গম নামানো হচ্ছে না৷ ভারতে তখন মন্বন্তর চলছে৷ এটা বিদ্বেষ ছাড়া আর কী হতে পারে?

http://eisamay.indiatimes.com/editorial/interviews/interview-of-madhusree-mukhopadhya/articleshow/28702819.cms

Sheeba Aslam Fehmi Kahin kahin sakht hindi ke bawajood padhne layaq lekh hai. Shukriya.


धन्यवाद शीबा।

धन्याद शीबा।आप मुकम्मल रायदें।खुद लिखें।हो स‌कें तो उर्दू में भी।मैं उर्दू स‌ीख नहीं स‌का,इसका अफसोस है।उर्दू में भी हमारे स‌ाथी इन मुद्दों को उठाये तो यह मुहिम तेज की जा स‌कती है।

Uday Prakash

बस अभी-अभी सब्जी खरीदने मंडी में जाने के पहले ऐसा कुछ लिख डाला गया. कविता ही मान लिया जाये. पेस्ट कर रहा हूं, दोस्तो :


॥ कैदख़ाना ॥


कई सालों से

उस आरामदेह कमरे में

वे आपस में ही बातें करने में व्यस्त थे

आपस में ही खाते-गाते

सोते-हंसते

छींकते-पादते


सिर्फ़ एक बार बोला मैं

कई सालों के बाद

मुझे भूख लगी है

कपड़े मेरे फट चुके हैं

अब नहीं धोई जातीं आपकी थालियां-कटोरियां


लगता है

यह मियादी बुखार है

जो अक्सर लौट आता है

कई सालों से बार बार


उन्होंने मुझे बाहर निकाल कर

अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया


बाहर बिल्कुल बाहर जैसा ही था

बाहर रात थी या बारिश हो रही थी

आंधियां धूल के साथ थीं या सड़कें दुर्घटनाओं से भरी

वहां कोई रोता था या कोई गा रहा था

लोग बिक रहे थे या बेच रहे थे कुछ


हो सकता है वसंत ही रहा हो

फूलों और चिड़ियों से किसी हिंदी कविता जैसा भरा पूरा


बाहर मैं हंसा

क्योंकि वे नहीं जानते थे

कि बाहर ने उन्हें ही निकाल दिया है बाहर से


और कर दिया है उन्हें

उनके कमरे में

कैद।


----- उदय प्रकाश

१२ जनवरी, २०१४

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प्रयाग पाण्डे

नैनीताल में शनिवार को तड़के हल्की बर्फवारी हुई । बर्फवारी के चलते नैनीताल की पहाड़ियां बर्फ की सफेद चादर से ढक गई है । बर्फ से ढकी पहाड़ियों ने सैलानी नगरी की रौनक ही बदल दी है । नैनीताल में यह इस साल ठंड के मौसम का पहला हिमपात है । बर्फ गिरने के बाद यहाँ तापमान गिर गया है । नतीजन ठंड का प्रकोप एकाएक बढ़ गया है ।बर्फवारी की वजह से नगर के अनेक इलाकों में पानी और बिजली की सप्लाई बाधित हो गई है । हाड़ कंपा देने वाली ठंड से गरीब लोगों की मुसीबतें बढ़ गई हैं । जबकि पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों के चेहरे खिल उठे हैं । अगर मौसम का मौजूदा मिजाज कायम रहा तो आज - कल में यहाँ अच्छी बर्फवारी होने का अनुमान है ।

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Aam Aadmi Party

Political power is concentrated in the hands of few families and 65% parliament members between 31 to 40 and 36.8% members between 41 and 50 are from political families.

Now it's time to put an end to this dynastic politics. Are you a part of this revolution?

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सत्ता कुछ परिवारों की मुट्ठी में है, जिनका हर पुत्र खुद को युवराज और पुत्री तथा कभी-कभी बहूरानी भी युवराज्ञी या भावी महारानी मानती हैं. 545 सदस्यों की लोकसभा में आज भी 156 सदस्य राजनैतिक परिवारों से हैं. यह अनुपात 29 ...See More

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Pankaj Chaturvedi

शायद अब समझ आ गई होगी कि सरकार चलाना भीड तंत्र का काम नहीं हैा पूरे 28 वधिायक है, अच्‍छा खासा अमला है, उत्‍साही कार्यकर्ता हैं, सभी को निकम्‍मा सोच कर खुद सडक पर कुरसी रख कर बैठना भले ही लोकप्रिय कदम दखिे लेकिन कारगर नहीं हैा चीन में कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के लोग पैकिंग में कोई जलसे धरने नहीं करते, लेकिन यदि कोई सरकारी कर्मचारी महंगी घडी पहले भी दखि जा तऐ उसका फोटो खींच कर उसको रगड देते हैंा हालांकि वहां सिसटम में नए तरीके से भ्रष्‍टाचार आ रहा है और कह सकते हैं कि वहां का प्रयोग असफल है, लेकिन वहां पार्टी के लोग लाईन(आर्डर, ट्राफिक, स्‍वास्‍थ्‍य, स्‍कूल सभी में वालेंटियर रहते हैं सो सरकारी व्‍यवस्‍था ठीक ठाक रहती हैा केजरीवाल जी चिरकुटों की तरह आम लोगों को स्‍टींग आपरेशन करने की फिजूल सलाह दे रहे हैं , जब तक सिस्‍टम में लूप होल्‍स होंगे, तब तक कसम के लिए सुवधिा शुल्‍क लगता रहेगाा जरा ड्रायविंग लाइसेसं, अाधारा काड जैसी व्‍यवस्‍थआों को देखें, आपको समय बचाना है तो किसी दलाल की शरण लेना ही होगाा केजरीवाल जी ऐसी पारदर्श व्‍यवस्‍था बनाएं ताकि किसी को शिकायत का माौका नहीं मिलेा लेकिन अभी तक आप के लोग आपे 'एनजीओ' मोड से उबर नहीं रहे हैंा उनके वायदे फाईलों में ही बिलबिला रहे हैं, हर रोज टीवी पर खबर बनने के लिए राखी बिडला, सेामनाथ भारती और आज कुमार विश्‍वास की नौटंकिया जारी हैा इससे आप खबर में तो है लेकिन जनाधार खिसक रहा हैा बाबा भारती वाली कहानी याद रखना, विश्‍वास मत तोड.ना चाहे घोडे को ले जाना

सता का जब तक विकेंद्रीकरण, ताकत का लोगों के हाथो में जाने की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की जाएगी, बिंतवारों की ऐसी ही भीड जुडेगी, इसके साथ चापलूस आएंगे, अवसरवादी आएंगे और फिर अफसर राज करेंगे

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Anil Baluni shared Aam Aadmi Party's photo.

AAM ADMI JNDABAAD.............

Today 12th January, on the birth anniversary of Swami Vivekananda "National Youth Day", Dr. Kumar Vishwas's Jan Vishwas rally in Amethi, Uttar Pradesh. Time:...See More

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Dalit Mat shared Ambedkar Mahasabha's photo.

घर घर में बाबा साहेब डा.अम्बेडकर का सन्देश पहुचाने वाले भीम प्रिय मान.घासीराम का लखनऊ में निधन हो गया |वर्ष १९२० में जन्मे घासीराम गीत गा गा कर लोगो को भीम मय बनाते थे |अम्बेडकर महासभा ने मुद्राराक्षस के साथ उन्हें भी अम्बेडकर सम्मान से सम्मानित किया था |

कोई साथी इनके बारे में ज्यादा जानकारी दे सकता है क्या?? दलित दस्तक के लिए न्यूज के रूप में एक श्रद्धांजलि देनी है इनको। प्लीज मेल करिए। dalitdastak@gmail.com

घर घर में बाबा साहेब डा.अम्बेडकर का सन्देश पहुचाने वाले भीम प्रिय मान.घासीराम का आज लखनऊ में निधन हो गया |वर्ष १९२० में जन्मे घासीराम गीत गा गा कर लोगो को भीम ...See More

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Nomad's Hermitage

21 hours ago ·

  • दुखद है कि खुद को बहुत जागरूक माननें वाले और खुद को सामाजिक चेतनशील माननें वाले अधिसंख्य सवर्ण लोगों का अहंकार इतना अधिक है कि वे शूद्रों के प्रति सिर्फ इसलिये घृणा का भाव रखते हैं क्योंकि शूद्र सत्ता में दावेदारी की बात करनें लगा है और सवर्णों की महानता, ज्ञान और योग्यता में सवाल खड़े करना लगा है।
  • अब मुश्किल तो यह है कि भारत में जो अधिकतर ज्ञान है वह "सापेक्षिक" है और "वंशानुगत-भ्रष्टाचार और शोषण" पर आधारित है। (मुझ जैसे गवांर-जाहिल की यह पंक्ति समझनें के लिये कुछ मेहनत लगेगी)
  • हजारों सालों तक कुचला है जिन्हें और उसी कुचले जानें के परिणाम स्वरूप आज संसाधन और मजे ले रहे हैं। जिनकी मेहनत का हजारों साल माल खाया है वह भी पूरी शिद्दत के साथ पारंपरिक व सामाजिक भ्रष्टाचार स्थापित करके थोड़ी सी अंदर की इमानदारी और प्रेम उनके साथ भी साझा करनें की मानवीयता दिखा दीजिये।
  • या सारी परिभाषायें, सारा दर्शन, सारा ज्ञान, सारी ईमानदारी, सारी महानता व सारी मानवीयता केवल आपके खुद के स्वार्थ व अहंकार तक ही सीमित है।
  • .
  • . — with Vidya Bhushan Rawat and 23 others.
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    • Anita Bharti, Ashok Dusadh, Papu Bauri and 44 others like this.

    • विभांशु दिव्याल आपका ज्ञान प्रैक्टिकल है, थ्योरी पढ़कर विद्वान बन जाने वालों का ज्ञान कचरा ही रहेगा हमेशा

    • 21 hours ago · Like · 2

    • Nomad's Hermitage विभांशु दिव्याल जी मैंने अपनें ज्ञान की बात नहीं की है। मैंनें जो समाज में जो मानसिकता देखी व समझी है उसके आधार पर अपनीं बात रखी है। सहमत या असहमत होना आपका अधिकार है। सादर

    • 21 hours ago · Like · 2

    • विभांशु दिव्याल प्रैक्टिकल और थ्योरी वालों का मतलब नहीं समझे का दद्दा

    • 21 hours ago · Like · 2

    • Pushpandra Kumar Pandey चुनाव पास में हे कहे नहीं इन सवर्णों को निपटा देते ..... आखिर गिनती में भी दलित ज्यादा हे

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage पांडे जी हो सकता है कि शूद्र सवर्णों के इतना क्रूर, बर्बर और शातिर नहीं हों। तभी आपके शानदार सुझाव का आइडिया न आया हो दिमाग में, लेकिन आपके सुझाव का पालन सवर्णों नें हजारों साल तक पूरीर शिद्दत से लागू किया है। सादर

    • 21 hours ago · Like · 4

    • Pushpandra Kumar Pandey फिर केसे ख़तम होंगे ये स्वर्ण ........

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage पांडे जी गंभीर पोस्ट में मस्ती की पाठशाला नहीं चलाई जानी चाहिये। थोड़ी सी सामाजिक इमानदारी लाईये तब बहस कीजिये। और हां हर सामाजिक इमानदार आदमी या सामाजिक न्याय की बात करनें वाला शूद्र ही हो ऐसा जरूरी भी नहीं है। जब आपमें गंभीरता आ जाये और कुछ मानवीय संवेदनशीलता आ जाये और अपने महान होनें का अहंकार घट जाये तो बहस कीजियेगा तब तक विदा। सादर

    • 21 hours ago · Like · 3

    • Pushpandra Kumar Pandey सुनिये भाई आप के पास उत्तर नहीं हे .... मे मस्ती की पाठशाला नही सिर्फ पूछ रहा हूँ .... इस लिए आप ये कह रहे हे क्यों की मे स्वर्ण हूँ अगर कोई दुसरा पूछता तो आप जवाव देते ...... आप जो लिखे हे वही पूछ रहा हूँ

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Awanish Sharma "सापेक्षिक" यह एक शब्द ढंग से इस्तेमाल हो तो हर अर्थ साफ़ कर सकता है

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage पांडे जी, बेहतर है कि आप अपनें दिव्य ज्ञान से यह गंभीर पोस्ट को दिशाहीन न करें। आपके ज्ञान के अहंकार को तुष्ट करनें के लिये पोस्टें आती रहेंगीं। मेरा निवेदन स्वीकारें। सादर प्रणाम

    • 21 hours ago · Like · 2

    • Pushpandra Kumar Pandey भाई आप नाराज क्यों हो जाते हे ... क्या वाट विवाद नहीं हो सकता क्या

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage मैंनें यह नहीं कहा कि मैं सवर्ण हूं पांडे जी। मैं फिर कह रहा हूं कि यह पोस्ट आपके लिये नहीं है। फालतू की जिद करनें की जरूरत नहीं है।

    • मैं पहले भी कई बार बता चुका हूं, फिर से बता रहा हूं कि मैंनें फेसबुक से चुनावी राजनीति से खुद को अलग कर लिया है। इसलिये मेरी जो पोस्ट खालिस सामाजिक भाव लिये रहतीं हैं उनमें दिशाहीनता न ही जाये तो बेहतर। मेरा निवेदन स्वीकारिये। सादर

    • 21 hours ago · Like · 4

    • Nomad's Hermitage पांडे जी, आपकी कमेंट्स का स्तर देख कर मुझे बिलकुल ही नहीं लग रहा है कि आप सार्थक बातचीत को प्रधानता देना चाहते हैं। गंभीर पोस्ट्स में गंभीर बात। हलकी पोस्ट में हलकी बात। आप अपनी कमेंट्स का स्तर खुद ही देख लीजिये। सादर प्रणाम

    • 21 hours ago · Edited · Like · 1

    • Pushpandra Kumar Pandey पहले आप नाराज हो जाते हे तो बात आगे बड़े .... मेने सिर्फ ये पुछा क्यसे / अगर मे नहीं पुचुन्गा तो कोई दूसरा पोछेगा पर सब्दो को बदल कर ..... या कोई पूछेगा ही नाही आखिर समस्या हे तो समाधान केसे

    • 2 hours ago · Edited · Like · 1

    • Nomad's Hermitage पांडे जी आप कभी तो निवेदन स्वीकार कर लिया करें। सादर

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Pushpandra Kumar Pandey ओके भाई ...... धन्यवाद

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage  पांडे जी को साधुवाद

    • 21 hours ago · Like · 1

    • कुशवाहा गोविन्द (मुझ जैसे गवांर-जाहिल की यह पंक्ति समझनें और समझाने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ेगी ) ---- अंहकार क्या मनुष्य का ऐसा रूप जो कभी भी सही नहीं माना जायेगा और इसी अहंकार ने हजारों सालों तक कुचला है जिन्हें और उसी कुचले जानें के परिणाम स्वरूप आज संसाधन और म...See More

    • 21 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage कुशवाहा गोविन्द दा, बहुत बार बुद्धिमान लोगों को गवांरों की बेतरतीब बात समझनें के लिये अतिरिक्त मेहनत करनीं पड़ जाती है।  सादर

    • 20 hours ago · Like · 1

    • Keshav Krantikari ksam se dhansu! Avi copy paste karat hain

    • 20 hours ago via mobile · Like · 1

    • Ranbir Singh Raman सही सच्ची बात ।

    • 20 hours ago via mobile · Like · 1

    • कुशवाहा गोविन्द बुद्धिमान लोग कभी मेहनत नहीं करते --- अगर बुद्धिमान लोग मेहनत करने लग जाएँ तो वो बुद्धिमान नहीं होते ---

    • 20 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage  कुशवाहा गोविन्द दा

    • 20 hours ago · Like · 1

    • Madan Rohatgi Dost aap lagbhag 50yr's purani choch air vastivika ko dekhrahe hei naki badaley Bharat ko

    • 10 hours ago via mobile · Like · 1

    • Nomad's Hermitage Madan Rohatgi जी आप सही हो सकते हैं, किंतु मैंनें जो लिखा है वह अभी की बात लिखी है। सादर

    • 6 hours ago via mobile · Like

    • Kamlesh Chandra Tiwari we should talk about equality and unity ur on truth im agree

    • 6 hours ago via mobile · Like · 1

    • कुशवाहा गोविन्द Nomad's Hermitage जी हम गवारों कहाँ हाक दिये।

    • 6 hours ago · Like · 1

    • Nomad's Hermitage हा हा हा

    • 5 hours ago via mobile · Like

    • Ayan Arshad हजारों सालों तक कुचला है जिन्हें और उसी कुचले जानें के परिणाम स्वरूप आज संसाधन और मजे ले रहे हैं। जिनकी मेहनत का हजारों साल माल खाया है वह भी पूरी शिद्दत के साथ पारंपरिक व सामाजिक भ्रष्टाचार स्थापित करके थोड़ी सी अंदर की इमानदारी और प्रेम उनके साथ भी साझा करनें की मानवीयता दिखा दीजिये।....इसे पचाने और करने के लिए बहोत बड़े एहसास जज़्बात व भावना की ज़रुरत पड़ेगी इंसानी मूल्यों को समझना और महसूस करना भी यहाँ शर्त है तभी जो विवेक भाई अपने विचार रखे हैं यहाँ वो सम्भव हो पायेगा, ज़मीनी और सार्थक बात कही अपने ! सटीक !

    • 5 hours ago · Like · 1

    • Keshav Krantikari और एक बात शुद्रोँ के भले के लिए द्विजोँ ने जितना काम व चिँतन किया उतना शुद्रोँ ने खुद नही किया राहुल सँक्रतायण डॉ लोहिया जनेश्वर मिश्र राजनारायण वि पी सिँह चँद्रशेखर और भी ढेरोँ क्राँतिकारी जो ज्यादा फेमश नही हुवे लेकिन शुद्रोँ के लिए चिँतन करते हैँ और काम भी

    • 5 hours ago via mobile · Like · 2

    • Madan Rohatgi Nomadji,As I came to know by print also from eletronic media some s/c's have established SME medium and small size and they managing them.They have established s/c chaimbarof commerce and industry.Many upper cast proff.are working with them.

    • 50 minutes ago via mobile · Like · 1

    • Nomad's Hermitage Madan Rohatgi दा, आपके कामों को सलाम। किंतु इसका हजारों सालों की जातिवाद रूपी सामाजिक भ्रष्टाचार और बर्बरता को समझनें या न समझनें से क्या रिश्ता है। सादर

    • 47 minutes ago · Like

H L Dusadh Dusadh

मित्रो! मैं आनन-फानन में पटना पहुंचा हूँ.आने का मकसद स्वाधीन भारत में बहुजनों के खिलाफ सबसे बड़ी साजिश के रूप में उभरे 'आम आदमी पार्टी' के खिलाफ रणनीति बनाने की परिकल्पना पर चर्चा करनी है.मित्रों आज देश की राजनीति उन एनजीओ वालों के हाथ में जा रही है जो सारी दुनिया में बुनियादी सामाजिक बदलाव के खिलाफ सेफ्टी वाल्व के रूप में काम करने के लिए जाने जाते हैं.अगर भारत के सवर्णवादी एनजीओ वालों को आप लोकतंत्र के लिए खतरा मानते हैं तो आज पटना के दरोगा राय पाथ अवस्थित आंबेडकर भवन में आयें.वहां हम मिलजुलकर आप की सुनामी से भारतीय लोकतंत्र को बचने की रणनीति पर विचार करेंगे.बैठक ठीक दोपहर २ बजे शुरू होगी और ५ बजे तक चलेगी.

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Ram Puniyani

All India Secular Forum


The UP police arrested Yugal Kishore Sharan Shstri on 11th January. He had planned to organize a People's Panchayat on the issue of attack on Shrine of Sheesh Paighambar, which was attacked on 20 December 13. In this attack a student Zeeshan was killed. The police arrest of Shastriji has been made on the ground that he is 'threat to peace and order' in the city.

We understand that the arrest is the result of his sustained campaign to expose the commu...See More

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Dilip C Mandal

केजरीवाल तो आरक्षण विरोधी फासीवादी संगठन यूथ फॉर इक्वेलिटी (YFE) के समारोह में आते-जाते रहे हैं और आशुतोष दो दशक पहले मंडल कमीशन विरोधी आंदोलन के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अग्रणी नेता रहे हैं. योगेंद्र यादव जातिवार जनगणना के घनघोर विरोधी रहे हैं. उन्होंने 2006 में संवैधानिक आरक्षण के खिलाफ यादव-देशमुख फॉर्मूला लाया था. अरविंद को सबसे पहले फंड करने वाले इंफोसिस के नारायणमूर्ति आरक्षण के सबसे मुखर विरोधी रहे हैं.


यह किन लोगों का महागठबंधन बन रहा है?


आम आदमी यानी "जनरल लोगों" का जो गठबंधन बन रहा है, उनके नेताओं को संविधान, जातिवाद, आरक्षण, जातिवार जनगणना जैसी सोशल पॉलिटिक्स की कसौटी पर कस कर देखिए. इन मुद्दों पर इन लोगों ने अब तक जो लिखा-बोला है, उसकी समीक्षा इस आंदोलन को समझने के लिए अनिवार्य है.

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Avinash Das with Uday Prakash and 19 others

ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के

अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के


यह गीत समाजवादी आंदोलनों का परचम गीत रहा है और इसके गीतकार बल्‍ली सिंह चीमा का पूरा जीवन आंदोलनों की रानाइयों में गुजरा है। मौजूदा हालात में उन्‍होंनेAam Aadmi Party के साथ होने का फ़ैसला लिया है। कम्‍युनिस्‍ट आंदोलनों के कम-असर और कांग्रेस के छद्म-सांप्रदायिकता विरोध के बीच आम जन के प्रति "आप" की प्रतिबद्धताओं को फिलहाल भरोसे के साथ देखा जा सकता है। उसका मेनिफेस्‍टो भी उसकी प्रतिबद्धताओं का प्रतिबिंब है। देश के कई नाजुक मसलों पर उसका रैडिकल स्‍टैंड भी हम सबको इस पार्टी में उम्‍मीद की एक रोशनी दिखा रहा है। तो जाहिर है, बल्‍ली सिंह चीमा जैसे साथियों का यह फैसला हमारी अपनी समझदारी के प्रति भी एक विश्‍वास पैदा करता है। जो चीमा पर चीख रहे हैं, उन सबके प्रति हमदर्द होने की जरूरत है। इतिहास सबको निर्णायक होने का अवसर देता है।


[मैं आम आदमी पार्टी का प्राथमिक मेंबर भी नहीं हूं, इस जरूरी तथ्‍य की शेयरिंग के साथ मैं बल्‍ली सिंह चीमा को क्रांतिकारी सलाम पेश करता हूं...]

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  • Uday Prakash, Aalok Shrivastav, Prakash K Ray and 79 others like this.

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  • View 14 more comments

  • Samar Anarya एक तरफ मार्क्सवादी लेनिनवादी पार्टियों के महासचिव आप को सफलता की बधाई देते ट्वीट करते नहीं थक रहे, उसकी जीत को बुनियादी सवालों को राजनीति के केन्द्रीय एजेंडे में लाने वाली जीत बता रहे हैं, उसके उदय को आन्दोलन आधारित राजनीति के महत्व को पुनर्स्थापित करन...See More

  • 2 hours ago · Like · 3

  • Prashant Singh bachpan me yah geet bahut suan tha... aaj fir se puraaani yadeen taza ho gayi ..

  • about an hour ago · Edited · Like

  • Atul Anand "देश के कई नाजुक मसलों पर उसका रैडिकल स्‍टैंड" ???

  • आरक्षण और आफ्सपा के मुद्दे पर हमें उसका "रैडिकल स्टैंड" पता है...

  • 30 minutes ago · Like · 1

  • Rupesh Kumar Singh रेडिकल से क्या लेना - देना , जहाँ अपना वर्ग स्वार्थ , वहाँ हम . . . . . .

  • 22 minutes ago via mobile · Like

  • Avinash Das आरक्षण और अफ्सपा पर "आप" का स्टैंड क्या है?

  • about a minute ago via mobile · Like

Himanshu Kumar

राहुल गांधी ने कहा कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई मुज़फ्फर नगर दंगा पीड़ित मुसलमान लड़कों के संपर्क में है . सारे भारत में इस बयान की खिल्ली उडाई गयी . तो युवराज की इज्ज़त वापिस पाने के लिए सिपाहियों को दौड़ा दिया गया .तो दिल्ली की पुलिस ने मुज़फ्फर नगर में सक्रिय तो मुसलमान आतंकवादियों को पकड़ने का दावा किया . इसके बाद बाकायदा दिल्ली पुलिस मुसलमान दंगा पीड़ितों को धमकाने मुज़फ्फर नगर पहुँच भी गयी .


मजेदार बात ये है कि यहाँ जो कुछ मैंने लिखा है ठीक वही बात यूपी पुलिस का स्थानीय आईजी भी कह रहा है . मेरठ रेंज के आई जी आशुतोष पाण्डेय ने खुद कबूला है कि राहुल की बात को सच साबित करने के लिए दिल्ली पुलिस ड्रामा कर रही है .


अब पुलिस के अफसर को तो पता ही होता है अपने डिपार्टमेंट की नाटकबाजी के तरीकों का . हम तो पब्लिक हैं सब देख रहे हैं बस .


इस पुलिसिया नाटक के बाद अब दंगा पीड़ितों को मदद देने वाले भी डर कर फुर्र हो गए हैं . सब घबराए हुए हैं कि क्या पता हमें भी पुलिस अंदर कर दे कि चलो मियाँ आप भी इन आतंकवादियों को बहुत कम्बल और आटा बांटते थे अब चलो जेल में .


इधर दंगा करवाने वाले , फर्ज़ी पाकिस्तानी सीडी को मुज़फ्फर नगर की सीडी बताने वाले अभी भी ज़हर उगलने के लिए आज़ाद घूम रहे हैं . मोदी और राजनाथ सिंह उन्हें मंच से सम्मान दे चुके हैं .


मुज्ज़फ्फर नगर के दंगा पीड़ित लोग अपना कैम्प छोड़ कर अपनी खरीदी हुई ज़मीन में जाकर बसना चाहते थे . लेकिन भाजपा के नेता उछल कूद कर रहे हैं कि जी इन मुसलमानों के यहाँ बसने से शांति भंग हो जायेगी . इन नेताओं से कोई पूछे कि भय्या दंगा करो तुम खुद और इलज़ाम डाल दो पीड़ितों पर . ये हिटलर वाली चालाकी किसने सिखाई . हिटलर भी यहूदियों को मारता था और उन्हें ही दोषी बताता था .


हो रहा भारत निर्माण .

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Reyazul Haque

Indian secularism is Hindu confessionalism by another name. - Perry Anderson

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Amalendu Upadhyaya

An open letter to Mr. Akhilesh Yadav, Chief Minister of U.P. (India)

Dear Akhilesh Yadav, you must review your acts

hastakshep.com

An open letter to Mr. Akhilesh Yadav, Chief Minister of U.P. (India) Dear Sh. Akhilesh Yadav, We are writing this letter to you as a common citizen of this country. Our country is famous for its values, for its belief in unity in diversity and harmonious bonds among people. It is widely held that we...

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Dilip C Mandal

बलात्कार की खबरें सिगल कॉलम में छप रही है, इसका मतलब नहीं है कि दिल्ली में बलात्कार नहीं हो रहे हैं. आप ने वादा किया था महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा बल बनाएंगे. काम पर चलिए.

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Virendra Yadav

याद है तिरंगा लहराता किरण बेदी का चेहरा ! ..बरास्ते तिरंगा इसे भगवा में तब्दील होकर मोदी के राजसूय यज्ञं में बदलना ही था .रामदेव की पुरोहिताई और जनरल वी की सिंह की राष्ट्र रक्षा के मंसूबे का भगवा चेहरा देर सबेर उजागर होना ही था ...और दूसरे गांधी और दूसरी आजादी का मिथक इस तरह टूटना ही था ...तब क्या गलत कहा था हमने कि " हम अन्ना नहीं हैं."

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Anita Bharti shared her photo.

मेरी दलित फेमिनिज्म पर आलोचनात्मक पुस्तक "समकालीन नारीवाद और दलित स्त्री का प्रतिरोध" बी बी सी हिन्दी भारत के साल 2013 की हिन्दी किताबें, आलोचकों की पसंद में शामिल हुई है। पुस्तक पसंद करने वाले सभी दोस्तों और बीबीसी हिन्दी का बहुत बहुत शुक्रिया।


http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/01/140102_hindi_booklist_nonfiction_rns.shtml

मैं अपनी एक खुशी आपसे शेयर कर रही हूँ। मेरी बहुप्रतीक्षित किताब "समकालीन नारीवाद और दलित स्त्री का प्रतिरोध" छप कर आ गई है। यह मेरे लेखों का संग्रह है। यह स्वराज प्रकाशन से छपी है।

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Dilip C Mandal

"पटना की गलियों से ये आवाज आती है, जिसको चरानी है भैंस वो सरकार चलाते हैं"


यह जातिवादी टिप्पणी किसने की. वही राष्ट्रकवि कुमार विश्वास. और कौन. ईमानदारी के पाखंड के पीछे सड़ता हुआ घनघोर जातिवाद छिपा है, जो अक्सर बाहर आ जाता है.


स्थान-रामलीला मैदान, नई दिल्ली, अण्णा आंदोलन के दौरान.


http://aajtak.intoday.in/story/Anna-movement-made-%E2%80%8B%E2%80%8Bhim-most-expensive-poet-1-705705.html

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Yashwant Singh

सौ, दौ सौ, चार सौ, हजार रुपये लेने वाला घूसखोर चपरासी, सफाई वाला, मीटर रीडर, सिपाही इस देश के लिए खतरा नहीं हैं. ये छोटे पदों के लोग इन पैसों को स्विटजरलैंड में जमा करने नहीं ले जाते बल्कि इन पैसों का चलन देश में ही होता रहता है.. वे इनसे सब्जी या फल या दूध या दारू या दवा या साड़ी या कपड़ा या कुछ ऐसा ही खरीदते व घर ले जाते हैं.. खतरा उन बड़े पदों पर बैठे रिश्वतखोरों से है जो रिश्वत लेते हुए कभी नहीं दिखते और न ही कभी कोई उनका स्टिंग कर सकता है.. उन्हें रिश्वत के पैसे हवाला से मिल जाते हैं... उन्हें रिश्वत के पैसे फ्लैट गिफ्ट के रूप में मिल जाते हैं.. उन्हें रिश्वत के पैसे किसी उनके नजदीकी मिडिलमैन के जरिए मिलते हैं... ये लोग ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि इनका पैसा अमूमन भारत से बाहर के बैंकों में जमा होता है और ब्लैकमनी में तब्दील हो जाता है.. वो पैसा भारत में प्रवाह में नहीं रहता, इसलिए उस पैसे की कमी से भारत को व आम जन को झेलना पड़ता है.. दुखद ये है कि केजरीवाल के करप्शन विरोधी हेल्पलाइन से जो पकड़ में आ रहे हैं वो सफाई वाले, चपरासी टाइप के निरीह निचले पदों वाले लोग ही आ रहे हैं...

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Ak Pankaj

गोवा के Canacona तालुका में 5 मंजिला इमारत रूबी रेसिडेंसी के गिर जाने से झारखंड के 10 मजदूर मारे गए हैं. यहां झारखंड के करीब 45 मजदूर निर्माण कार्य में लगे थे. किन्हीं सज्जन ने मेल पर ये सूचना और फोटो उपलब्ध कराई है. कृपया इस सूचना को संबंधित परिवारों तक पहुंचाने में मदद करें.


1)- Name ------------Munna Vaidhyanath Goswami (20 Years old) 2) Name-- ---------- Dinesh ...See More

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Rajiv Lochan Sah

भावना, वह शोक की ही क्यों न हो, व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ती है. पी सी तिवारी की पत्नी मंजू की असामयिक मृत्यु पर संवेदना व्यक्त करने उसके गाँव बसभीड़ा गये तो लगभग दस साल बाद उससे इंसान की तरह दिल खोल कर बातचीत हुई. अच्छा लगा...

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Vidya Bhushan Rawat

An excellent opinion piece by Prabhat Patnaik. Dangerous days are ahead when people are trying to settle and impose new agendas on India. It is time of Hindu resurgence in the form of AAP, side tracking the spaces that Dalits, Aadivasis and minorities want in the power structure. We do not discuss socio economic inequalities hence all the highly paid 'honest' people are welcome while action would be taken against small petty workers. Kejriwal has already said that the businessmen in India are too honest and no action can be taken against them. It is over simplification of issues that we face today.


http://indianexpress.com/article/opinion/columns/rule-by-messiahs/

Rule by messiahs | The Indian Express

indianexpress.com

I do not doubt that the leaders of the Aam Aadmi Party are honest, well-meaning persons who may even bring some small material benefits to the people of Delhi, as the Dravidian parties have done in Tamil Nadu despite their

Bhaskar Upreti

ग्रीन बोनस का पैसा सड़क और भवनों पर खर्च न हो. सबसे पहले गांवों में सब्सिडी पर गैस मुहैया कराने में हो. ग्रामीण जंगल बचाकर महँगी गैस खरीद रहे हैं. यह प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहन की तरह होगा. सरकार ऐसा न करे तो ग्रामीण गैस न खरीदकर खूब सारे पेड़ काटें. दूसरी वरीयता गाँव में कृषि प्रणाली को दुरुस्त करने में हो. गाँव वालों का अतिरिक्त कृषि उत्पाद बाजार तक पहुँचाने का तंत्र विकसित हो. ग्रामीणों की आय बढ़ेगी तो उनका जीवन स्तर अपने आप ऊपर उठेगा.

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Bhaskar Upreti

हिमालय बचाओ आन्दोलन: देहरादून बैठक : समीर रतूड़ी

देहरादून में आयोजित आन्दोलन की बैठक में गाँव बसाओ-हिमालय बचाओ, हिमालाय बचाओ- देश बचाओ के तहत 23 मार्च से मलेथा से गैरसैण की पद यात्रा करने का निर्णय लिया गया है ।

नागेन्द्र सकलानी व मोलू भरदारी को याद करते हुए आन्दोलन के विस्तार पर भी चर्चा हुई।

आन्दोलन की कोर कमिटी के विस्तार पर सर्व सम्मिति से प्रस्ताव पारित किया गया।

पद यात्रा में नए मुद्दों को भी प्राथमिकता से उठाने की बात की गयी; जिसमें संविधान संसोधन 73 व 74 के अनुपालन व ग्रामीणों के हक हकूक पर भी बात की जायेगी।

ग्रीन बोनस के नाम पर मिल रहे धन का पर्वतीय विकाद में इस्तेमाल होना चाहिए जिसके लिए सरकार ब्लू प्रिंट तैयार करें ।

बैठक अभी जारी है :

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Amalendu Upadhyaya and hastakshep.com shared a link.

मुज़फ्फरनगर के बाद अब अयोध्या में समाजवाद का तांडव जारी है

hastakshep.com

सांप्रदायिकता के खिलाफ अग्रदूत युगलकिशोर शरण शास्त्री की अयोध्या में गिरफ्तारी अभी आज ही झाँसी में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव कह रहे थे कि कुछ लोग उत्तर प्रदेश को गुजरात बनाना चाहते हैं। अब पता नहीं कि वे कुछ लोग कौन हैं लेकिन इतना अवश्य है कि नेता जी का प्रशासन पूरी तरह…

  • Amalendu Upadhyaya
  • झाँसी में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव कह रहे थे कि कुछ लोग उत्तर प्रदेश को गुजरात बनाना चाहते हैं। अब पता नहीं कि वे कुछ लोग कौन हैं लेकिन इतना अवश्य है कि नेता जी का प्रशासन पूरी तरह से गुजरात मॉडल पर काम कर रहा है और नेता जी के बेटा जी भी गुजरात की तर्ज पर पत्रकारों को हड़का रहे हैं। बहरहाल ताजा खबर यह है कि बाबरी मस्जिद विध्वँस षडयंत्र केस में सीबीआई के गवाह और सांप्रदायिकता के खिलाफ पूरी शिद्दत के साथ आवाज़ उठाने वाले अयोध्या के गांधी के नाम से मशहूर महंत युगलकिशोर शरण शास्त्री को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है....

  • Like ·  · Share · 31 · 5 hours ago ·

  • hastakshep.com
  • झाँसी में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव कह रहे थे कि कुछ लोग उत्तर प्रदेश को गुजरात बनाना चाहते हैं। अब पता नहीं कि वे कुछ लोग कौन हैं लेकिन इतना अवश्य है कि नेता जी का प्रशासन पूरी तरह से गुजरात मॉडल पर काम कर रहा है और नेता जी के बेटा जी भी गुजरात की तर्ज पर पत्रकारों को हड़का रहे हैं।... Read More

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Jagadishwar Chaturvedi

टाइम्स नाउ टीवी

चैनल पर इलेक्शन डिबेट में माकपा के सीताराम येचुरी कांग्रेस और भाजपा को जमकर नंगा कर रहे हैं । देखें।

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Palash Biswas ऎसा क्या

Bhaskar Upreti

Mount Rainier, snowfall, highest snowfall North America

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Shabnam Hashmi via Mehmood Uz Zafar

A very good interview.


When you hear Yogendra Yadav you find a new hope but for every Yogendra they have 5 like Kumar Vishwases too.


Oont kis karwat baithega pata nahin?

Modi just filling vacuum, opposed to idea of India, says AAP's Yogendra Yadav

youtube.com

AAP hopes to give people "clean politics" and make a mark in the forthcoming Lok Sabha elections for which the countdown has already started.

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Anita Bharti shared Udit Raj's photo.

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Ak Pankaj shared Artist Against All Odd (AAAO)'s photo.

साथी तुम्ही बताओ

आर्यावर्त में आखिर मजदूर की परिभाषा

कैसे बदल गई

और इस परिभाषा से बहिष्कृत लोगों ने

जब मुक्ति की बात की

तो वे अस्मितावादी कैसे हो गए

तुमने कहा था साथी दुनिया के मजदूरों एक हो मजदूर की तुम्हारी इस परिभाषा में शामिल थे सभी कमजोर अगड़े पिछड़े दलित आदिवासी और स्त्रियां कारीगर किसान सब के सब पर आर्यावर्त में साथी आर्यों ने अनार्यों को मजदूर नहीं माना उन्हें राक्षस जंगली असभ्य बर्बर जाने क्या क्या कहा स्त्रियों को उन्होंने नरक का द्वार घोषित किया साथी दलितों के साथ आज तक बेटी-भात का मजदूर रिश्ता नहीं जोड़ा तुम्ही कहो साथी क्या तुम्हारी सोवियत में भी जंगली अछूत और नरक के द्वार थे आर्यावर्त में तो हैं साथी तुम्ही बताओ चीन के दीवार की लिंग क्या है क्या उस पर चढ़ने से पहले नारियल फोड़ते थे माओ आर्यावर्त के तो हर मजदूर के घर में गणेश की पूजा होती है उनकी स्त्रियां करवा चौथ करती हैं और मजदूर एकता की राजनीति करने वाले किसी मजदूर से प्रेम करने पर अपनी बेटियों का ऑनर किलिंग करते हैं साथी तुम्ही बताओ आर्यावर्त में आखिर मजदूर की परिभाषा कैसे बदल गई और इस परिभाषा से बहिष्कृत लोगों ने जब मुक्ति की बात की तो वे अस्मितावादी कैसे हो गए

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Prakash K Ray

खरमास में मैं कोई शुभ काम नहीं करता … मैंने अभी Aam Aadmi Party की सदस्यता नहीं ली है लेकिन उनका समर्थक हूँ.

(जिज्ञासु और अफ़वाही मित्रों के लिए)

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Pramod Ranjan

मुझे अगर ब्राह्मणवाद और बनियावाद में एक को चुनना हो तो मैं बनियावाद को चुनना चाहूंगा। जाहिर है यह बात मैं उत्‍तर भारत की मौजूदा राजनीति में चल रहे शोरगुल के संदर्भ में कह रहा हूं। बनियावाद के पास दो रास्‍ते हैं। एक ओर से ब्राह्मणों की लॉबी उसे घेर रही है, दूसरी ओर फूले और आम्‍बेडकर का रास्‍ता है। सामाजिक युद्ध में अपनी हार देख रहे ब्राह्मण तो बनियों पर दांव खेलना ही चाहेंगे। लेकिन, देखना यह है कि क्‍या भारत के बनियों में इतनी दूरदर्शिता है कि वे दलित-बहुजनों के साथ आएं। भविष्‍य का बाजार बहुजनों का है। लोकतंत्र ने उन्‍हें अपने श्रम को शिक्षा से जोडने का अवसर दिया है।

'आप' इस रथ की गति को कुछ समय के लिए धीमा कर सकता है। रोक नहीं सकता।

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Ashok Kumar Pandey shared Azhar Khan's photo.

अब आपको कोई शक है कि नेहरु का असली नाम कैसे पैदा हुआ था?

आरएसएसबीजेपी के लोग किस तरह अपनी मूर्खता का प्रमाण देते हैं सोशल मीडिया पर यह लोग इसी तरह की हरकत करते हैं की राजीव गाँधी के पिता मुसलमान थे,ताज महल के शिव मंदिर है,क़ुतुब मीनार विष्णु स्तम्भ हैं भगवा ब्रिगेड वालों की मूर्खता की परकाष्ठा मैं तो देख ही रहा हूँ आप लोग भी देखिये

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Dilip Khan

भीड़ की गिनती का नया पाठ मीडिया को सीखना होगा। इस मामले में एक ही घटना पर अलग-अलग अख़बारों में भयानक अंतर देखने को मिलता है। जनसत्ता ने पुलिस के हवाले से अरविंद केजरीवाल के जनता दरबार में पहुंचे लोगों की संख्या 50,000 बताई है, द हिंदू ने अरविंद केजरीवाल के हवाले से 7000 ...माने 7 गुना अंतर! मोदी की रोहिणी- रैली में मीडिया '5 लाख से ऊपर' की संख्या बता रहा था। भूपिंदर हुड्डा ने सोनीपत में रैली की और मंच से हर दस मिनट बाद उनके राजनीतिक सलाहकार हवाई घोषणा करते-करते अपनी दावेदारी 2 लाख से शुरू कर 14 लाख तक पहुंचा दी। अगले दिन कुछ अख़बारों ने 10 तो कुछ ने 14 लाख छाप भी दिया। मीडिया का अपना कोई एस्टिमेट ही नहीं है और पक्षधरता से संख्या भी तय कर लेते हैं मीडिया वाले।

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  • Abhishek Srivastava, Subhash Gautam, दुर्गाप्रसाद अग्रवाल and 26 others like this.

  • Athar Imam Khan जी और इलेक्टोनिक वाले भीड़ को इडिट कर के दिखाते हैं। जनसभा किसी नेता का और भीड़ कहीं और की!!

  • 4 hours ago · Like · 2

  • Dilip Khan एंगल भी तलाश लेते हैं। स्टिल वाले मंच पर पीछे से खड़े होकर नेताजी को चेहरा घुमाने कहते हैं और फ्रेम सेट कर 'खचाखच' भीड़ दिखा देते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले लो एंगल और ज़िप मूवमेंट में महारथी हैं।

  • 4 hours ago · Like · 4

  • Manoj Singh it depends who is favoring whom

  • about an hour ago · Like

Vidya Bhushan Rawat

What do you speak of this ? The nature of our political leadership, its insensitivity and idiotic statements. Will they keep their mouth shut and ask only designated people to speak. It is not surprising to see politicians speaking like this as they have to save their masters. Mujjafarnagar riots also reflect how 'secular' parties in India are not 'secular' but just want Muslims to be their 'bank', for elections.


http://indianexpress.com/article/india/india-others/people-die-in-palaces-too-says-up-minister/

People die in palaces too, says UP minister | The Indian Express

indianexpress.com

Uttar Pradesh Minister Narad Rai Saturday stoked a potential controversy over deaths in relief camps for riot-hit victims in Muzaffarnagar, saying deaths occur everywhere, including in palaces.

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Pramod Ranjan

पूरी दुनिया के व्‍यापरी भारत को एक बडे अनएक्‍सप्‍लोरड बाजार के रूप में देखते हैं। जानते हैं क्‍यों? सिर्फ इसलिए नहीं कि यहां बहुत बडी आबादी है। बल्कि इसलिए भी कि यहां व्‍यापार करने वाला सामाजिक रूप से बहुत छोटा सा तबका है। जिन्‍हें हम वैश्‍य जातियों के रूप में जानते हैं। अर्थव्‍यवस्‍था की बढती हुई गतिविधियों को यह छोटा सा तबका चाह कर भी सिर्फ अपने कब्‍जे में नहीं रख सकता। दूसरी ओर भारत के अन्‍य सामाजिक समूहों की आंतरिक रूचि ही इस दिशा में नहीं रही है। इसलिए, इस मैदान का अधिकांश हिस्‍सा खाली है, जहां अपनी जमीन तलाशी जा सकती है। ब्राह्मण इस खाली जमीन पर तेजी से कब्‍जा कर रहे हैं।

बहुजन साथियों, बाजार से मत डरिए। शेयर मार्केट में उतरिए, एनजीओ बनाइए, ठेकों में आइए, अनेक प्रकार के सेवा क्षेत्रों में पूरा का पूरा मैदान खाली है, अपने श्रम को उद्यमिता से जोडिए। नौकरी करना, नौकर होना बुरा नहीं है, लेकिन यह आपका आदर्श नहीं हो।

आप शिक्षा में आए तभी तो नौकरियों में आरक्षण की मांग आयी। आप जब व्‍यापार में आएंगे, तभी तो जीवन के सभी क्षेत्रों में आधिकारिक डायवर्सिटी की मांग पूरी करवा सकेंगे।

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  • Faqir Jay and 26 others like this.

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  • Nitin सही कहा बहुजन को व्यापार में आ वैश्य वर्ण के वर्चस्व को भी समाप्त करना होगा।

  • 2 hours ago via mobile · Like · 2

  • Masao Masao बहुजन साथियों, बाजार से मत डरिए। अनेक प्रकार के सेवा क्षेत्रों में पूरा का पूरा मैदान खाली है, अपने श्रम को उद्यमिता से जोडिए। नौकरी करना, नौकर होना बुरा नहीं है, लेकिन यह आपका आदर्श नहीं हो।

  • 2 hours ago · Like

  • Devraj Rawat आपकी बात मे दम है लेकिन सरकारी मशीनरी बहुजनोँ की मदद ना के बराबर करती है। जहाँ करोडो - अरबो रुपये सब्सिडी के रुप औधोगिक घरानो की सहायता होती है वहाँ बहुजनो को निराशा ही हाथ लगती है.

  • about an hour ago · Like

  • Pramod Ranjan Devraj Rawat जी, आपकी बात सही है। जैसे एक उदाहरण लीजिए। पता नहीं कितने खरब रूपये इस देश में विभिन्‍न विभागों के जरिए एनजीओ को दिये जा रहे हैं। 99 फीसदी एनजीओ द्विजों के हाथ में हैं। लेकिन बहुजन तभी अपना भी दावा ठोक पाएंगे, जब वे इस क्षेत्र में उतरेंगे।...See More

  • about a minute ago · Like

Bhargava Chandola with Rajiv Lochan Sah and 19 others

शुभ:प्रभात पिथौरागढ़,

आम आदमी पार्टी उत्तराखंड के जनपद सम्मेलन लगातार 5 तारीख से जारी हैं | 5 तारीख पौड़ी जनपद, 6 तारीख रुद्रप्रयाग, 7 तारीख चमोली, 8 तारीख टिहरी, 9 तारीख उत्तरकाशी, 10 तारीख हरिद्वार, 11 तारीख को बाजपुर में बाजपुर ब्लाक, एवं नगर कार्यकारिणी के गठन के बाद अभी-अभी जनपद पिथौरागढ़ के पिथौरागढ़ में जिला सम्मेलन के लिए पहुंचे हैं आज होने वाले सम्मेलन में सभी व्यवस्था परिवर्तन चाहने वाले देशवाशियों का तहेदिल से स्वागत है | आज सम्मेलन में प्रदेश संयोजक श्री हरीश आर्य जी, प्रदेश संगठन के सुनील शर्मा जी, जगदीश जोशी जी, भार्गव चन्दोला एवं वरिष्ठ पत्रकार दीप पाठक मौजूद रहेंगे |

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"निकलो बाहर मकानों से, जंग लड़ो बेमानों से"

आम आदमी पार्टी उत्तराखंड |

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Amalendu Upadhyaya shared a link.

What is the politics of AAP?

hastakshep.com

Contemporary Political Ferment : Aam Aadmi Party Ram Puniyani The spectacular performance of Aam Aadmi Party in Delhi Assembly elections (November 2013) has changed the perceptions and anticipations about the forthcoming general elections to be held in 2014. It has also led to rethink about the equa...

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Sanjay Kumar

काहे का आम आदमी और काहे का आम पार्टी ...................................


आरक्षण विरोधी बड़कु पत्रकार आशुतोष को आज केजरीवाल ने आम आदमी की टोपी पहनाई.........सुना है कि 2 लाख से ज्यादा प्रति माह तनख्वाह लेते थे पत्रकार आशुतोष.....आज इनके पास सब कुछ बड़ों वाला है ..... ऐसे में ये "आम" हो ही नहीं सकते ?

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  • Firoz Mansuri, Diwakar Ghosh, Jitendra Verma and 21 others like this.

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  • Ashok Yadav ye log lac aur 2 lacs salory nahi lete sir jee.... inki is label ke patrkar mahaj 1 2 3 4 5 hi hai jinki 8 - 18 karod ki salana pkg hai...

  • 15 hours ago · Like · 1

  • Nisha Mukesh are sir ab to 2 lakh nahin milenge na to huye na aam aadmi sochne ka nazaria change kijiye .....kejriwal to history create kar gaya............\

  • 15 hours ago · Like · 1

  • Kumari Komal Sayad ab 2 Lakh se jyda mile...

  • 5 hours ago · Like · 1

  • Sanjay Kumar निशा जी..... आम आदमी की परिभाषा को ही आम ने बदल दिया है .....गरीब -गुरबे को आम आदमी कहा जाता है ...जिसके पास वोट के अलावे कुछ नहीं होता है ...कोई खास ताकत नहीं होती ...कोई पहुँच नहीं होती .....जिसकी कोई पहचान नहीं होती .....यहाँ सब उल्टा है ।

  • 2 hours ago · Like

Ashok Dusadh

Night knowledge --- कैडर बेस भाजपा /संघ गाँवों में २८ से ३५ प्रतिशत निर्णायक वोट के लिए पसीना बहा रही है , आप मीडिया 'क्रांति ' के सर पर चढ़कर शहरी मतदाताओं को घेर लेने को बेताब है ,उसने अश्वमेध यज्ञ में सारे आधुनिक तंत्र और मंत्र छोड़ दिए है .दूसरी कैडर बेस पार्टी बहुजन समाज पार्टी - 'सावधान रैली 'की तैयारी कर रही है ,बाकी कैडर विहीन पार्टी भगवान् भरोसे मनुवादी 'उद्धारको ' का मुंह ढूंड रही है .दो हज़ार चौदह का नजारा का आनंद लीजिये ,खुश रहिये .

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  • Sudhir Ambedkar, Jayantibhai Manani, Er Dasharath Baitha and 25 otherslike this.

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  • Rajesh Kumar Ravi लालू, मुलायम, पासवान, उदित राज, नितीश इत्यादि बाकी बहुजन नेता पता नहीं अभी किस पशोपेश में हैं या फिर ये बहुजन समाज के प्रति किंकर्तव्यविमूढ़/रणनीतिविहीन होकर जैसे सो रहे हैं जबकि लोकसभा चुनाव अब एकदम सिर पर हैं और षड्यंत्रकारी विरोधी राजनीतिज्ञ तो जैसे सोते में भी जाग रहे (सक्रिय) हैं...

  • 14 hours ago via mobile · Edited · Like

  • Dinesh Sant Bahujan samaj ke netaa bhagwaan ke bharose baith gaye hain

  • 7 hours ago via mobile · Like · 1

  • Dinesh Sant Sawarna hindu netaa apne media kaa istemaal kar rahe hain

  • 7 hours ago via mobile · Like · 1

Ashok Kumar Pandey

जो चाहिए कह लीजिये लेकिन अगर मुझे कभी विश्वास और राहुल के बीच किसी एक को चुनना ही पड़ गया तो मैं सौ बार राहुल को ही चुनूँगा.

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Prakash K Ray

लोकप्रिय जनकवि Balli Singh Cheema के बाद अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जुड़े और Avinash Das के करीबी मित्र Khush Hal S Lagdhiyan तथा प्रसिद्ध लेखिका और अर्थशास्त्री लॉर्ड Meghnad Desai की पत्नी Kishwar Desai भी Aam Aadmi Party में शामिल हो गए हैं.

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Harsh Vardhan

भारत में तीसरे मोर्चे को गायब करने की मीडिआ और कॉर्पोरेट्स की साज़िश का नाम है 'आप' पार्टी !

संसदीय वाम को इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए समान नीतियों वाले क्षेत्रीय दलों के साथ नवउदारवाद और फासीवाद के विरुद्ध संयुक्त मोर्चे का निर्माण करना होगा | भारतीय जनता को इन खतरों के विरुद्ध जागरूक करने का कार्य चुनाव प्रचार के समय कारगर ढंग से किया जा सकता है !

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  • Rajesh Tyagi दूसरी बात, कॉर्पोरेट को तीसरे मोर्चे या वाम मोर्चे से कोई खतरा नहीं है! बंगाल और केरल में उनकी सरकारों ने जिस भक्ति के साथ पूँजी के एजेंडा को लागू किया है, उसकी दूसरी मिसाल नहीं मिलती. इसलिए कॉर्पोरेट तीसरे मोर्चे को ब्लाक करने के लिए AAP को सामने नहीं लाये, बल्कि कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले इस तीसरे बूर्ज्वा मोर्चे की अपनी विश्वसनीयता ही इतनी ख़राब है कि मेहनतकश जनता इसमें कोई विकल्प नहीं देखती.

  • 9 hours ago · Edited · Like

  • Rajesh Tyagi "सामान नीतियों वाले क्षेत्रीय दल"??? अब ये कौन से दल हैं? क्षेत्रीय छोटी बूर्ज्वाजी?? तो क्या स्तालिनवादी वाम और इन क्षेत्रीय पार्टियों के बीच मोर्चा, राजनीतिक विकल्प है? और "सर्वहारा की तानाशाही", "मजदूर-किसानो की सरकार" वह सब गया कुँए में????

  • 9 hours ago · Like

  • Rajesh Tyagi http://workersocialist.blogspot.in/.../the-third-front-is...

  • 9 hours ago · Like

  • Rajesh Tyagi इसे भी देखें: http://workersocialist.blogspot.in/.../20th-party...

  • 9 hours ago · Like

Jayantibhai Manani

देश की 125 करोड़ की जनसँख्या में से JNU में 40 को PHD में एड्मिसन का मतलब है की 3.12 करोड़ में से 1 को एडमिशन.

1. 10 करोड़ आदिवासिओ में से 1 को भी एडमिशन नहीं.

2. 67.5 करोड़ ओबीसी में से 1 को एडमिशन यानि 67.5 करोड़ पर 1 एडमिशन.

3. 20 करोड़ एससी में से 4 को एडमिशन यानि 5 करोड़ पर 1 एडमिशन

4. 27.5 करोड़ उच्च जातियों को 35 एडमिशन यानि की 78 लाख पर 1 एडमिशन. जय हो आदिवासी.. जय हो ओबीसी....

Anil Kumar with Anita Bharti and 18 others

JNU का जातिवाद: Admission in Direct Ph.D. कुल 40, वर्गवार विवरण 35 (नोट बाकि के 5 सवर्ण हैं लेकिन बताया नहीं) सवर्ण 35 = 87% दलित 4 = 10% आदिवासी 0 = 0% OBC 1 =...See More

Like ·  · Share · Yesterday at 7:24am ·

Aam Aadmi Party

Ashutosh, a prominent Indian TV journalist officially joined AAP today. Previously associated with IBN7, of TV18 group, as Managing Editor.


जाने-माने टीवी पत्रकार और आईबीएन-7 के पूर्व संपादक आशुतोष भी आज आम आदमी पार्टी में शामिल हुए। एक प्रेस कांफ्रेस में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आप की टोपी पहनाकर आशुतोष का स्वागत किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि अच्छे लोगों का हमेशा ही पार्टी में स्वागत है। जो लोग सुनहरे भारत का सपना देखते हैं उन्हें पार्टी में अवश्य शामिल होना चाहिए।


जय हिन्द|

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