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दिल्ली के शासकों ने अंगेजों की तरह मचाई लूट http://hastakshep.com/view_info.php?id=181 नीलेकनी के नंबर पर विवाद Posted on September 29, 2010, 10:50 am Posted By प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री पी चिदम्बरम और नंदन नीलेकनी की देश के हर नागरिको को एक विशिष्ट पहचान नंबर देने की महत्वाकांक्षी योजना का देश के बुद्धिजीवियों, कानूनविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विरोध किया है. हर निवासी को एक पहचान संख्या 'देने के प्रस्ताव का खाद्य सुरक्षा, नरेगा, प्रवास, प्रौद्योगिकी, विकेन्द्रीकरण, संविधानवाद, नागरिक स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के मुद्दों पर काम कर रहे लोगों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है. एक बयान में देश की जानी मानी हस्तियों ने इस योजना पर गंभीर सवाल उठाये हैं. इनका कहना है की यह योजना केंद्र- राज्य संबंधों पर प्रतिकूल असर डालेगी और राज्यों के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है. यहाँ हम पूरा वक्तव्य दे रहे हैं. STATEMENT Before it goes any further, we consider it imperative that the following be done: National IDs have been abandoned in the US, Australia and the newly-elected British government. The reasons have predominantly been: costs and privacy. If it is too expensive for the US with a population of 308 million, and the UK with 61 million people, and Australia with 21 million people, it is being asked why India thinks it can prioritise its spending in this direction. In the UK, the Home Secretary explained that they were abandoning the project because it would otherwise be `intrusive bullying' by the state, and that the government intended to be the `servant' of the people, and not their `master'. Is there a lesson in it for us? In the late nineties, the Supreme Court of Philippines struck down the President's Executive Order A.O 308 which instituted a biometric based national ID system calling it unconstitutional on two grounds – the overreach of the executive over the legislative powers of the congress and invasion of privacy. The same is applicable in India – UIDAI has been constituted on the basis of a GoI notification and there is a fundamental risk to civil liberties with the convergence of UID, NATGRID etc. The UIDAI is still at the stage of conducting pilot studies. The biometric pilot study has reportedly already thrown up problems especially among the poor whose fingerprints are not stable, and whose iris scans suffer from malnourishment related cataract and among whom the incidence of corneal scars is often found. The project is clearly still in its inception. The project should be halted before it goes any further and the prelude to the project be attended to, the public informed and consulted, and the wisdom of the project determined. The Draft Bill too needs to be publicly debated. This is a project that could change the status of the people in this country, with effects on our security and constitutional rights, and a consideration of all aspects of the project should be undertaken with this in mind. We, therefore, ask that:
• The project be halted
Justice VR Krishna Iyer, Retd Judge, Supreme Court of India Posted on September 29, 2010, 8:35 pm Posted By दिल्ली में कामनवेल्थ खेलों के नाम पर जम कर लूट हुई और ऐसे काम के लिए हुई जिसका खेलों से कोई लेना देना नहीं था. खेल गाँव के ठेके में ही दिल्ली के बहुत ताक़तवर लोगों के एक रिश्तेदार को आर्थिक रूप से खस्ता हाल डी डी ए से करीब नौ सौ करोड़ रूपये दिलवा दिया गया . अब खेल गाँव बन कर तैयार है . वहां के फ़्लैट करोड़ों में बेचे जायेगें और उसका फायदा इसी ताक़तवर नेता के मामा को होगा. दिलचस्प बात यह है कि इस खेल में ज़रूरी नहीं कि कांग्रेसी को ही फायदा हुआ हो . इस बार की लूट में सभी शामिल हैं . दिल्ली दरबार में आजकल बड़े बड़े खेल हो रहे हैं . सबसे बड़ा खेल तो खेल के मैदानों में होना है लेकिन उसके पहले के खेल भी कम दिलचस्प नहीं हैं. जैसा कि आदि काल से होता रहा है किसी भी आयोजन में राजा के दरबारी अपनी नियमित आमदनी से दो पैसे ज्यादा खींचने के चक्कर में रहते हैं . दिल्ली में आजकल दरबारियों की संख्या में भी खासी वृद्धि हुई है . जवाहरलाल नेहरू के टाइम में तो इंदिरा गाँधी की सहेलियां ही लूटमार के खेल की मुख्य ड्राइविंग फ़ोर्स हुआ करती थीं. वैसे लूटमार होती भी कम थी . दिल्ली में जब १९५६ में संयुक्त राष्ट्र की यूनिसेफ की कान्फरेन्स हुई तो एक आलीशान होटल की ज़रूरत थी . जवाहरलाल नेहरू जहां अशोका होटल बन रहा था ,उस जगह पर खुद ही अपनी मार्निंग वाक में जाकर खड़े हो जाते थे. ज़ाहिर है लूटमार की संभावना बहुत कम होती थी .सरकारी प्रोजेक्ट में लूटमार का सिलसिला सही मायनों में तब शुरू हुआ, जब संजय गाँधी दिल्ली की सडकों पर सक्रिय हुए. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से लेकर अर्जुन दास तक जो भी दिल्ली वाले सरकारी धन की लूट में शामिल हुए ,उन्होंने इसी रास्ते को अपनाया. मोरारजी देसाई के काल में लूट के कई दरबार खुल गए थे. उनका अपना अधेड़ बेटा भी इसी धंधे में था और भी कई दरबार थे . लेकिन सरकारी खजाने की लूट का सबसे बड़ा खेल तब शुरू हुआ जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुवाई में गठबंधन सरकार बनी जिसमें भ्रष्टाचार के भांति भांति के शिरोमणि शामिल हुए . उसके बाद देवगौड़ा आये जिनका खुद का रिकार्ड ही एक मामूली ठेकेदार का था . जब १९९८ में बी जे पी वाले सत्ता में आये उसके बाद से खजाने की लूट की विधा को एक ललित कला के रूप में विकसित किया गया. कोई बम्बई का ठग था तो कुछ लोग दिल्ली की सडकों पर पत्रकार बन कर टहल रहे थे. कोई दामाद का अभिनय कर रहा था तो कोई दक्षिण की रानी की सहेली का भतीजा था . कोई किसी साहूकार का दलाल था तो कोई खुद ही दलाल भी था और साहूकार भी. कम्युनिस्ट पार्टियों के अलावा बाकी सभी पार्टियों के नेताओं ने अपने घर वालों को लूट का साम्राज्य सौंप दिया. जिनके तन पर कपड़ा नहीं था वे कपड़ा मंत्री बन गए और लूट के नए नए आयाम तलाशे गए. कामनवेल्थ खेलों के नाम पर जो लूट हो रही है उसमें कोई भी दोषी नहीं पाया जाएगा क्योंकि जैन हवाला काण्ड की तरह सभी पार्टियों के नेताओं के रिश्तेदारों को पूना से आये बांके ने बाकायदा हिस्सा दिया है . उस बेचारे से ग़लती केवल यह हुई कि उसने एक बड़े मीडिया ग्रुप की बात को गंभीरता से नईं लिया और उसे ठेका नहीं दिया और उसने पोल खोल दी . वरना सारे लोग मिलजुल कर खेल कर जाते और देशवासी टापते रह जाते. बहर हाल पूरी उम्मीद है कि खेलों के ख़त्म होने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा और एक आयोग बैठाया जाएगा जिसका काम यह यह होगा कि वह पता लगाए कि क्या वास्तव में लूट हुए है लेकिन उसको हिदायत दे दी जायेगी कि उसे यह साबित करना होगा कि कहीं कोई लूट हुई ही नहीं है. ऐसा इसलिए संभव होगा कि आजकल कांग्रेस और बी जे पी में बहुत अच्छी जुगलबंदी चल रही है . चाहे अमरीकी हुक्म से परमाणु समझौता हो या भोपाल काण्ड , दोनों पार्टियां एक ही राग गा रही हैं . इसकी वजह शायद यह है कि कांग्रेसी मालिकों को तो पूना वाला शेख बाकायदा हफ्ता पंहुचा रहा है और विपक्ष के हाकिमों के रिश्तेदार ठेके का लुत्फ़ उठा रहे हैं ..
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शेष नारायण सिंह : शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार है. इतिहास के वैज्ञानिक विश्लेषण के एक्सपर्ट. सामाजिक मुद्दों के साथ राजनीति को जनोन्मुखी बनाने का प्रयास करते हैं. उन्हें पढ़ते हुए नए पत्रकार बहुत कुछ सीख सकते हैं.संपर्क |
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
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