Sunday, 26 August 2012 12:32 |
मुंबई, 26 अगस्त (एजेंसी) एक समय थियेटर की दुनिया के बेताज बादशाह ए के हंगल को फिल्मों में अभिनय करना कुछ खास पसंद नहीं था, लेकिन धीरे धीरे रूपहले पर्दे की यह दिलफरेब दुनिया उन्हें इतनी रास आई कि वह बहुत सी फिल्मों में कभी पिता, कभी दादा तो कभी नौकर का किरदार निभाते नजर आए। हंगल इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन से जुड़ गए और शुरू में बलराज साहनी और कैफी आजमी जैसे अभिनेताओं के साथ मंच साझा किया। वर्ष 1966 में फिल्म ''तीसरी कसम'' में हंगल को राजकपूर के बड़े भाई की भूमिका निभाने का मौका मिला। बासु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित इस फिल्म में कुछ कारणों से हंगल के दृश्यों को फिल्म से निकाल दिया गया। इसके बाद हंगल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 200 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में पिता, चाचा, दादा, नौकर आदि की भूमिकाएं निभाईं। उन्हें आम तौर पर बेबस और लाचार व्यक्ति की भूमिकाओं के लिए चुना गया और अपनी इस छवि से वह कभी निजात नहीं पा सके। वैसे उनकी कद काठी और चेहरे मोहरे के कारण उनपर इसी तरह की सहज सरल भूमिकाएं फबती भी थीं। फिल्मी दुनिया के इस बुजुर्ग अभिनेता को 1993 में राजनीतिक विवाद का कारण भी बनना पड़ा। दरअसल उन्होंने अपने जन्मस्थल की यात्रा करने के लिए पाकिस्तान का वीजा मांगा। उन्हें मुंबई स्थित पाकिस्तानी वाणिज्य दूतावास से पाकिस्तानी दिवस समारोहों में भाग लेने का निमंत्रण मिला और उन्होंने इसमें भाग लेकर शिव सेना के गुस्से को निमंत्रण दे डाला। शिवसेना प्रमुख ने उन्हें देशद्रोही तक कह डाला। इनमें पुतले फूंके गए और इनकी फिल्मों के बहिष्कार की बात कही गई। हालात ऐसे बने कि फिल्मों से उनके दृश्य काट डाले गए। दो वर्ष बाद वह अमिताभ बच्चन की कंपनी द्वारा बनाई गई फिल्म ''तेरे मेरे सपने'' और आमिर खान की ''लगान'' से दोबारा रूपहले पर्दे पर उतरे। शाहरूख खान की 2005 में आई फिल्म ''पहेली'' उनकी अंतिम फिल्म थी। उन्हें वर्ष 2006 में हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। हालांकि अंतिम दिनों में हंगल ने मुफलिसी में दिन गुजारे और उनके पुत्र विजय ने उनके इलाज के लिए मदद मांगी। अमिताभ बच्चन, विपुल शाह, मिथुन चक्रवर्ती, आमिर खान और सलमान खान जैसी बॉलीवुड की कई हस्तियों ने उनके इलाज के योगदान दिया। करीब सात वर्ष के अंतराल के बाद उन्होंने टेलीविजन धारावाहिक ''मधुबाला'' के लिए एक बार फिर कैमरे का सामना किया, जो उनके जीवन की अंतिम कड़ी साबित हुआ। |
Tuesday, August 28, 2012
हंगल का निधन: इतना ‘सन्नाटा’ क्यों है, भाई
हंगल का निधन: इतना 'सन्नाटा' क्यों है, भाई
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