Follow palashbiswaskl on Twitter

ArundhatiRay speaks

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Jyoti basu is dead

Dr.B.R.Ambedkar

Wednesday, August 29, 2012

क्या हम हिंदू बंगाली शरणार्थियों को गले नहीं लगाएंगे…? (पार्ट-1)

हिंदू बंगाली शरणार्थियों का कांग्रेस और वाम दलों से मोहभंग

पलाश विश्वास

आयोजन/ संवाद

शरणार्थी समस्या पर राष्ट्रीय संगोष्ठी और हिंदू बंगाली शरणार्थियों का कांग्रेस और वाम दलों से मोहभंग

By  | August 29, 2012 at 10:00 am | No comments

पलाश विश्वास २९ अगस्त को नई दिल्ली में अखिल भारतीय बंगाली उद्वास्तु समिति की ओर से मावलंकर हाल, कांस्टीट्यूशन क्लब एरिया रफी मार्ग में बंगाली हिंदू विभाजन पीड़ित शरणार्थियों की समस्याओं पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। समिति के अध्यक्ष सुबोध विश्वास, महासचिव परमानंदघरामी और अन्यतम आयोजक सुप्रीम कोर्ट में वकील एटवोकेट [...]

http://hastakshep.com/

मुद्दा

शरणार्थी समस्या पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

  • PDF
alt

हिंदू बंगाली शरणार्थियों का कांग्रेस और वाम दलों से मोहभंग

http://bahujanindia.in/index.php?option=com_content&view=article&id=8724:2012-08-29-03-44-25&catid=130:2011-11-30-09-49-15&Itemid=535




क्या हम हिंदू बंगाली शरणार्थियों को गले नहीं लगाएंगे…? (पार्ट-1)

बांग्लादेशी घूसपैठियों की समस्या आज़ादी के कुछ समय बाद ही शुरू हो गई थी. दरअसल  इस समस्या के मूल में है वोटों की राजनीति. यही नहीं हमें इस समस्या की जड़ में जाने पर पता चलता है पूर्वी पाकिस्तान जो बांग्लादेश बन चुका है, से भारत में आने वाले सभी बांग्लादेशी मुस्लिम नहीं है, इनमें  बांग्लादेश में सताया गया हिंदू बंगाली भी हैं और अत्याचार का शिकार होने पर बड़ी उम्मीद से भारत में घुसता है. तो क्या हिंदू बंगाली को भी हम स्वीकार करने को तैयार नहीं? यदि हम पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं को अपने गले लगाने को उत्सुक रहते हैं तो बंगलादेश से आने वाले हिंदू भी हमारे उसी व्यवहार के पात्र होने चाहिए. हिंदू तो हिंदू है चाहे कहीं से आये उसे हमें गले लगाना ही होगा. पलाश विश्वास ने इस समस्या पर गहन अध्धयन किया है जिसे हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित कर रहे हैं.

-पलाश विश्वास||

२९ अगस्त को नई दिल्ली में अखिल भारतीय बंगाली उद्वास्तु समिति की ओर से मालव्यंकर हाल, कांस्टीट्यूशन क्लब एरिया रफी मार्ग में बंगाली हिंदू विभाजन पीड़ित शरणार्थियों की समस्याओं प एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। समिति के अध्यक्ष सुबोध विश्वास, महासचिव परमानंदघरामी और अन्यतम आयोजक सुप्रीम कोर्ट में वकील एटवोकेट अंबिका राय ने यह जानकारी दी है।

इस सिलसिले में खास बात यह है कि शरणार्थी नेता अब अपने हिंदुत्व पर जोर देकर संगोष्ठी में आने का वायदा करने वाले भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दूसरी हिंदुत्ववादी ताकतों से समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं। जबकि असम दंगों के बहाने संघ परिवार की ओर से नई दिल्ली, मुंबई , उत्तराखंड, हिमाचल और देश के दूसरे हिस्सों में बसाये गये बंगाली हिंदू शरणार्थियों को कदेड़ने की मुहिम इन्हीं हिंदुत्ववादी संगठनों की ओर से चलायी जा रही है। चूंकि घोषित तौर पर धरम निरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकते इन हिंदू बंगाली शरणार्थियों के नागरिक और मानव अधिकारों के मामले में मूक दर्शक बने हुए है, तो अब इस संगोष्ठी के जरिये शरणार्थियों के हिंदुत्व की पैदल सेना में बदल जाने की आशंका हो गयी है। वैसे भी बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में शरणार्थी समस्या के बारे में हिंदुत्ववादी नजरिया ही हावी है। इनके सामने उत्पन्न विकट परिस्थितियों के मद्देनजर कोई दूसरा विकल्प भी नहीं दीखता। सुबोध विश्वास के मुताबिक गडकरी समेत करीब दो दर्जन सांसदों ने संगोष्टी में शामिल होने के लिए सहमति दी है। बांग्लादेशियों के खिलाफ अथक अभियान चलाने वाले मीडिया को इस संगोष्टी के बारे में बताते हुए समिति का दस्तावेज व्यापक पैमाने पर भेजा गया है। सोशल मीडिया के अलाव न प्रिंट और न इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इनकी समस्या को कोई स्थान देना जरूरी समझा। जाहिर है कि अब शरणार्थियों के सामने हिंदुत्व का ही एकमात्र विकलप नजर आ रहा है। इस नजरिये से अब तक कांग्रेस और वामदलों के प्रभाव में रहने वाले शरणार्थी आंदोलन के भगवा ब्रिगेड में  शामिल होने की पूरी संभावना है और हम इसे रोकने में असमर्थ हैं।

हम शुरु से शरणार्थी समस्या को विभाजन और सत्ता हस्तांतरण के दौरान वर्चस्ववादी राजनीति और जनसंख्या समायोजन का परिणाम मानते रहे हैं। शरणार्थी नेताओं के दस्तावेज से भी साफ जाहिर है कि असम और देश के दूसरे हिस्से में फैल रही सांप्रदायिक हिंसा और धर्म के नाम पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण उसी वर्चस्ववादी राजनीति और अर्थ व्यवस्था की निरंतरता का परिणाम है। समिति के दस्तावेज में भी इसका खुलासा हुआ है। हम बार बार आगाह करते रहे हैं कि जहां संघ परिवार हिंदुत्व राष्ट्रवाद के नाम पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण से हिंदी वोट बैंक बनाते हए चुनावी समीकरण अपने हक में करने की कवायद में लगी है, वहीं अल्पसंख्योकों का संकट और घना करके खांग्रेस और र दूसरे दल, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने में थकते नहीं, अल्पसंख्यकों को बंधुआ वोट बैंक बनाये रखना चाहते हैं। इसीलिए असम की आग रोकने में किसी पक्ष का कोई हित नहीं है, राजनीति चाहती है कि देश को सांप्रदायिक आग के हवाले कर दिया जाये। हम असहाय यह सब देख रहे हैं और कोई प्रतिकार नहीं कर रहे हैं। विभाजन के तुरंत बाद से हिंदू बंगाली शरणार्थियों की समस्या की जो अनदेखी हुई है और आदिवासियों के साथ उन्ही की तरह उनका जो अलगाव और बहिष्कार हुआ है, देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी अगर ये असहाय लोग अंततः अपनी जान माल बचाने की गरज से हिंदुत्व की पैदल सेना में तब्दील हो गये।

कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के तहत धार्मिक व भाषाई अल्पसंख्यकों और शरणार्थियों को पिछले दशकों में जिस तरह बंधुआ बनाये रखा असुरक्षा बोध और भयादोहन के जरिये, वामदलों ने जैसे दंडकारण्य के शरणार्थियों को मरीचझांपी बुलाकर उनका नरसंहार किया, तो घटनाकरम की तार्किक परिणति यही हो सकती है, जबकि देश के सचेत नागरिकों और सुशील समाज की भी हिंदू बंगाली शरणार्थियों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं है। उत्तराखंड के एक भाजपा विधायक किरण मंडल के कांग्रेस में दलबदल, उनकी खाली सीट पर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की एकतरफा जीत और फिर किरण मंडल को कुमांयूं विकास मंडल का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद १९५२ से उधमसिंह नगर जिले में बसाये गये शरणार्थियों के खिलाफ शक्तिफार्म के कुछेक हजार परिवारों को भूमिधारी पट्टा दिये जाने के बहाने जो अभूतपूर्व घृणा अभियान चला , वह अब बांग्लादेशी भगाओ जिहाद में बदल चुका है। ऐसे में परंपरा मुताबिक शरणार्थी अपनी सुरक्षा के लिए उसी राजनीति का इसतेमाल करेंगे, जो उनकी बेदखली की वजह है, इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है?

समिति की ओर से मूलतः तीन मांगों पर फोकस किया गया है।

एकः  पंडित जवाहर लाल नेहरु  ने वायदा किया था,  `इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि ये विस्थापित, जो भारत में रहने आये हैं, उन्हें भारत की नागरिकता अवश्य मिलनी चाहिए।अगर इसके लिए कानून अपर्याप्त है, तो कानून बदल देना चाहिए।' हकीकत में कानून तो बदल गया लेकिन बंगाली विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए नहीं। तत्कालीन भारत सरकार ने सीमा पार करके भारत आने वाले पूर्वी पाकिस्तान के धार्मिक सामाजिक आर्थिक उत्पीड़न के शिकार शरणार्थियों को विबाजन पीड़ित नहीं माना और उन्हें पश्चिम पाकिस्तान से आये शरणार्थियों की तरह शरणार्थी पंजीकरण के साथ साथ नागरक बतौर पंजीकृत नहीं किया और न ही जनसंख्या स्थानांतरण और दो राष्ट्र के सिद्धांत के मुताबिक उन्हें कोई मुआवजा दिया। देशभर में उन्हें छितरा दिया गया। नागरिकता संसोधन कानून के जरिए विभाजन के तुरंत बाद आये पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों के खिलाफ जिन्हें भारत सरकार ने ही विभिन्न परियोजनाओं के तहत पुनर्वास दिया, अब छह – सात दशक बाद विदेशी बांग्लादेशी घुसपैठिया करार देकर उनके खिलाफ देश निकाला अभियान चालू किया गया है।

समिति ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को लिखे आवेदन में मांग की है कि  कानून में समुचित संशोधन करके पूर्वी पाकिस्तन बांग्लादेश से भारत आये वहां से विस्थापित अल्पसंखयक समुदायों को भारत की नागरिकता दी जाये। यही समिति की सबसे बड़ी मांग है।आवेदन पत्र में लिखा है,`हम पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश से वहां के करोड़ों अल्पसंख्यक हिंदू बंगाली शरणार्थियों जो किंन्हीं विशिष्ट परिस्थितयों में भारत में शरण लेने को विवश हुए, की नागरिकता के बारे में आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।हमारी स्थिति उन लोगों से कतई भिन्न है जो आर्थिक कारणों से या फिर आजीविका के प्रयोजन से भारत में आ गये।

हम आपको यह स्मरण कराना चाहते हैं कि ३ दिसंबर, २००३ में पेश नागरिकता संशोधन विधेयक २००३ पेश करते समय इसके प्रभाव में आने वाले समाज के विभिन्न वर्गों, समुदायों के बीच कोई फर्क नहीं किया गया।लेकिन यह आप ही थे जिन्होंने कहा था कि `… हमारे देश के विभाजन के बाद शरणार्थियों के मामले में यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश जैसे देशों में अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा,और हमारा यह नैतिक उत्तरदायित्व है कि अगर परिस्थितियां ऐसे अभागा लोगों को भारत में शरण लेने को विवश करती हों तो उन्हें नागरिकता देने के मामले में हमारा दृष्टिकोण अवश्य ही उदार होना चाहिए।..'और आपकी इस अपील के बाद ततकालीन उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि विपक्ष के नेता ने जो कहा है, मैं उस दृष्टिकोम से पूरी तरह सहमत हूं।'

इसका तार्किक नतीजा यह होना चाहिए था कि नागरिकता संशोधन विधेयक २००३ के Clause 2(i) (b) में पूर्वी पाकिस्तान/ बांग्लादेश से आये वहां के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के संदर्भ में समुचित संशोधन के जरिये नागरिकता हेतु प्रावधान किया जाता।विडंबना यह है कि सदन की सहमति के बावजूद ऐसा किया नहीं गया।लगभग एक दशक से यह प्रकरण लंबित है।इस बीच इन लाखों उत्पीड़ित विभाजन पीड़ितों में असुरक्षा की भावना प्रबल होती गयी क्योंकि उन्हें न केवल अवैध घुसपैठिया बताया जा रहा है , बल्कि कई राज्यों से उनके देश निकाले की कार्रवाई भी हो गयी।हम लज्जित हैं कि ऐतिहासिक परिस्थितियों के शिकार के बजाय हमसे अपराधियों जैसा सलूक किया जा रहा है।हमारे लोग बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार होकर अपने मूल मातृभूमि में शरण लेने के लिए पलायन करने को बाध्य हुए, लेकिन कैसी विडंबना है कि यहां भी उन्हें हजारों की तादाद में फिर नये सिरे से उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है।क्योंकि उन्हें अपनी मूल मातृभूमि में भी विदेशी घुसपैठिया बताया जा रहा है,फिर ढोर डंगरों की तरह हिरासत में लेकर देश से बाहर निकाला जा रहा है। यानी उत्पीड़न का वही दुश्चक्र यहां भी।हम लोग भारत में दशकों से रह रहे हैं और हमारी कई पीढ़ियों ने भारत भूमि पर ही जनम ग्रहण किया है, फिरभी हमें बारतीय नागरिक नहीं माना जाता।कब तक यह अन्याय होता रहेगा?

इस विमर्श के आधार पर हमारा आपसे सविनय निवेदन है कि नागरिकता संशोधन विधेयक २००३ के Clause 2(i) (b) में समुचित संशोधन हेतु आप हस्तक्षेप करें और पूर्वी पाकिस्तान/ बांग्लादेश से आये वहां के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के संदर्भ में संबंधित कानून और तमाम दूसरे कानूनों में जरूरी बदलाव करें।ताकि लाखों की तादाद में ये उत्पीड़ित करोड़ों हिंदू बंगाली शरणार्थी और उनके बच्चे भारत में गरिमा के साथ नागरिक जीवन निर्वाह कर सकें।'

दो:पुनर्वास योजनाओं में बसाये गये शरणार्थियों को कृषि भूमि और आवासीय प्लाट लीज पर मिले। अनेक पुनर्वास योजनाओं में लीज की अवखत्म हो गयी है।महाराष्ट्र के चंद्रपुर शरणार्थी शिविर जैसे अनेक जगह इस कारण लीज की अवधि खत्म होने के बाद पुनर्वासित शरणार्थियों की बेदखली शुरु हो गयी है। उधम सिंह नगर के दिनेशपुर इलाका और दंडकारण्य के कुछ इलाकों को छोड़कर ज्यादातर जगह इन्हें कृषि भूमि और आवासीय प्चाट का मालिकाना हक छह सात दशक के बाद भी नहीं मिला है। दबंग इकी जमीन दबाते जा रहे हैं और कारपोरेट विकास के कारण इनकी जमीन जाने वाली है।

समिति ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को लिखे आवेदन में मांग की है कि  भारत में विभिन्न पुनर्वास परियोजनाओं के तहत बसाये गये बंगाली शरणार्थियों को एलाट कृषि भूमि और आवासीय प्लाट का मालिकाना हक उन्हे दिये जाये।आवेदन पत्र में लिखा है,`भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास साक्षी है कि आजादी की लड़ाई में हजारों बंगालियों ने अपने जीवन का बलिदान इस आशा के साथ कर दिया कि स्वतंत्र भारत में कम से कम उनकी अगली पीढ़ियां सुख से रह सकेंगी। किसे मालूम था कि लाखों जिंदगियों( हमारे माता पिता, भाई- बहनों और रिश्तेदारों की) की कुर्बानी की बदौलत हासिल स्वतंत्रता हमारी मातृभूमि का विभाजन करके हमसे हमारी पुश्तैनी संपत्ति से हमें बेदखल करके हमें अपने ही गृहदेश में शरण लेने को मजबूर कर देगी!
(जारी)


No comments: