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Saturday, November 19, 2016

पचास घंटे तक भांजे की लाश का इंतजार नोटबंदी के आलम में रामचंद्रपुर के लोगों ने नोटबंदी की फिजां में जिसतरह तीस हजार रुपये बिना किसी हलचल के पैदा कर दिये,उससे हमारे भारतीय कृषि समाज की शक्ति का परिचय मिलता है जहां राजनीति और खून के रिश्ते सिरे से बेमायने हैं। सारा खर्च निकालने के लिए उनने हमसे कतई कुछ नहीं पूछा। बाकी बचा वक्त हमने जिस परिवार के साथ बिताया,उस परिवार ने हमें खुल्ला न्

पचास घंटे तक भांजे की लाश का इंतजार
नोटबंदी के आलम में रामचंद्रपुर के लोगों ने नोटबंदी की फिजां में जिसतरह तीस हजार रुपये बिना किसी हलचल के पैदा कर दिये,उससे हमारे भारतीय कृषि समाज की शक्ति का परिचय मिलता है जहां राजनीति और खून के रिश्ते सिरे से बेमायने हैं।
सारा खर्च निकालने के लिए उनने हमसे कतई कुछ नहीं पूछा।
बाकी बचा वक्त हमने जिस परिवार के साथ बिताया,उस परिवार ने हमें खुल्ला न्यौता दे दिया की मकान किराया गिनते रहने के बजाय हम तुरंत उनके घर शिफ्ट हो जायें।वे हमारे कुछ नहीं लगते।जो लगते हैं,उन्होंने हमसे कुछ नहीं पूछा।
घनघोर निजी त्रासदी की इस घड़ी में लंबे अरसे से देहात से कटे होने के बावजूद मुझे राहत मिली है कि देहात के लोग दिलोदिमाग से अभी खच्चर नहीं बने हैं।वे घोड़े या गधे तो कभी नहीं थे।एबीपी न्यूज ने वाइरल वीडियो में नये नोट में चस्पां वीडियो को सही दिखाकर हिंदुत्व के जिस नोटबंदी एजंडा को जगजाहिर कर दिया है,वह देहात के इसी इंसानियत के भूगोल की वजह से कभी कामयाब हो नहीं सकता,17 नवंबर की रात मुझे पक्का यकीन हो गया है।

पलाश विश्वास
पिछले कई दिनों से लिखना नहीं हो पाया।अगले कई दिनों तक भी लिखना मुश्किल लग रहा है।इस बीच नोटबंदी के आलम में छत्तीसगढ़ के जगदलपुर इलाके के बीजापुर में निर्माणकार्य में लगे भांजे प्रदीप की पीलिया से किडनी और लीवर खराब होने से 15 नवंबर को रात ग्यारह बजे रायपुर के एक निजी नर्सिंगहोम में निधन हो गया।सोलह को शाम तक हमें खबर मिली और हम अपने फुफेरी दीदी के घर वनगाव के गोपालनगर कस्बे के पास रामचंद्रपुर पहुंच गये,जहां अठारह नवंबर को रात एक बजे लाश लेकर एंबुलेंस पहुंचा।
प्रदीप मेरी फुफेरी बहन का इकलौता बेटा था और जब वह सिर्फ 30 दिन का था,उसके पिता का निधन हो गया।उसकी बड़ी बहन छाई साल की थी।
चालीस साल के प्रदीप के बेटे चार पांच साल का है और उसकी बेटी तेरह चौदह साल की है और वह इस साल माध्यमिक परीक्षा देने वाली है।
बहू के बैंकखाते में कुल दो सौ रुपये जमा हैं।घर अपना है लेकिन जमीन दो तीन बिघा से ज्यादा नहीं है।वह पूरे इलाके में बेहद लोकप्रिय है।गोपाल नगर से लेकर वनगांव तक।
गोपाल नगर में किसी चायवाले पान वाले ने हमसे पैसा नहीं लिया क्योंकि उन्हें मालूम था कि हम अपने प्रिय भांजे का इंतजार कर रहे हैं।
इससे पहले वह मध्यप्रदेश में दंतचिकित्सा का चैंबर खोलकर बैठा था।उससे भी पहले वह कोलकाता में दंत चिकित्सा का काम ही कर रहा था।तब बिना नोटिस वह जब तब आ धमकता था और आपातकालीन परिस्थितियों में तो वह बिना बुलावे पता नहीं कहां से आकर हाजिर हो जाता था।
प्रदीप को जगदलपुर मिशनरी अस्पताल से रायपरु के नर्सिंग होम में रिफर किया गया था।हालत इतनी खराब थी कि उसे उसके सहकर्मी कोलकाता नहीं ला पाये और न घरवालों से संपर्क साध पाये।बहरहाल नोटबंदी के आलम में उन लोगों ने न जाने कैसे एक लाख रुपये इलाज में खर्च कर दिये।
एंबुलेंस आधीरात बाद रायपुर से रांची हजारीबाग धनबाद के रास्ते भटकते भटकते गोपालनगर पहुंचा वर्दवान होकर।उसी वक्त बिना एटीएम के गांव के लोगों ने न जाने कहां से तीस हजार के करीब रुपये पैदा कर दिये,जिससे एंबुलेंस के 27 हजार का भुगतान हो गया और बाकी तीन हजार रुपये से अंतिम संस्कार हो गया।
वे हर फैसला हमसे पूछ कर कर रहे थे जबकि हमने कहा कि गांववाले जो भी फैसला करेंगे हम उनके साथ हैं।
सारा खर्च निकालने के लिए उनने हमसे कतई कुछ नहीं पूछा।
बाकी बचा वक्त हमने जिस परिवार के साथ बिताया,उस परिवार ने हमें खुल्ला न्यौता दे दिया की मकान किराया गिनते रहने के बजाय हम तुरंत उनके घर शिफ्ट हो जायें।वे हमारे कुछ नहीं लगते।जो लगते हैं,उन्होंने हमसे कुछ नहीं पूछा।
यह मौत जाहिर है कि नोटबंदी की वजह से नहीं हुई।लेकिन हम निजी इस त्रासदी की कथा आपसे इसलिए शेयर कर रहे हैं कि भारत के शहर और कस्बे भले बदल गये हों,लेकिन गांवों में साझा चूल्हा अभी खूब सुलग रहा है। बैंको में कैश नहीं है।एटीएम कंगाल है।रोज नये नये आदेश जारी हो रहे हैं।
रोजमर्रे की जरुरतों और सेवाओं के लोग दर दर भटक रहे हैं।दम तोड़ रहे हैं।लेकिन भारत के गांवों का देहाती मिजाज अभी सही सलामत है।
नोटबंदी के आलम में रामचंद्रपुर के लोगों ने नोटबंदी की फिजां में जिसतरह तीस हजार रुपये बिना किसी हलचल के पैदा कर दिये,उससे हमारे भारतीय कृषि समाज की शक्ति का परिचय मिलता है जहां राजनीति और खून के रिश्ते सिरे से बेमायने हैं।
घनघोर निजी त्रासदी की इस घड़ी में लंबे अरसे से देहात से कटे होने के बावजूद मुझे राहत मिली है कि देहात के लोग दिलोदिमाग से अभी खच्चर नहीं बने हैं।वे घोड़े या गधे तो कभी नहीं थे।एबीपी न्यूज ने वाइरल वीडियो में नये नोट में चस्पां वीडियो दिखाकर हिंदुत्व के जिस नोटबंदी एजंडा को जगजाहिर कर दिया है,वह देहात के इसी इंसानियत के भूगोल की वजह से कभी कामयाब हो नहीं सकता,17 नवंबर की रात मुझे पक्का यकीन हो गया है।
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