#कंडोम राष्ट्रवाद की यह #कंडोम अर्थव्यवस्था
अब हर नागरिक # मुकेश है और हर नागरिका # निर्भया।
समूची अर्थव्यवस्था # स्रीविरुद्धे और सेवा क्रयशक्ति निर्भर अनुत्पादक मेकिंग इन में स्त्री #द्रोपदी दुर्गति के सिवाय कुछ भी तो नहीं है।
#मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
पलाश विश्वास
सौजन्य से Jayanth Kumar Kumar
कल ही निवेशकों में संघ परिवार की आस्था और #द्रोपदी दुर्गति का अनंत विकास गाथा कंडोम सजी साड़ियों की बहार भारतीय हिंदुत्व अर्थव्यवस्था पर लिखा है।
हस्तक्षेप में इस संक्रांत तमाम पोस्ट टंग गये हैं।कृपया देख लें।
कंडोमकथा पर आज फिर लिखने का प्रयोजन निर्भया हत्याकांड में फांसी की सजा पाये बलात्कारी मुकेश,हत्यारे मुकेश के सनसनीखेज बयान के मद्देनजर बेहद जरुरी हो गया।
गौरतलब है कि रेपिस्ट को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है। आरोपी रेपिस्ट का कहना है कि निर्भया खुद इस घटना की जिम्मेदार है।
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के लिए दिए गए इंटरव्यू में रेपिस्ट मुकेश सिंह ने कहा, 'बलात्कार के लिए लड़के से ज्यादा लड़की जिम्मेदार होती है।'
इतना ही रेपिस्ट मुकेश ने यह भी कहा कि अगर अगर लड़की और उसके दोस्त ने इतना विरोध न किया होता, तो वे उन्हें इतनी बुरी तरह से न मारते। लड़की की मौत को एक दुर्घटना बताते हुए मुकेश ने कहा, 'रेप के वक्त उसे विरोध नहीं करना चाहिए था। उसे चुप रहना चाहिए था और बलात्कार होने देना चाहिए था, तब रेप के बाद उसे छोड़ दिया जाता और केवल लड़के को मारा जाता।'
मुकेश ने कहा, 'ताली एक हाथ से नहीं बजती, दोनों हाथों की जरूरत होती है। एक अच्छी लड़की 9 बजे रात को बाहर नहीं घूमती।'
कृपया इसे एक बेरहम बलात्कारी और हत्यारे की बहक समझने की भ न करें और बीच महाभारते रामायणे #द्रोपदी दुर्गति परिदृश्य में इस मंतव्य का विवेचन करते हुए आइने में अपना अपना चेहरा देख लें कि कहीं निर्भया की जख्मी ध्वस्त योनि से रिसते खून के कुछ छींटे पुरुष वर्चस्व के माननीय नागरिक नागरिका,आपके वजूद में तो शामिल नहीं हैं।
साड़ी पर कडोम लगे और कंडोम संग स्त्री बाजार में खड़ी हों तो उस परिप्रेक्ष्य में मुकेश का यह बयान सामाजिक यथार्थ का दूसरा पहलू बनकर खड़ा है।
वेद उपनिषद पुराण के आख्यान ते सत्ता राजनीति के झंडेवरदारों के होते हैं।मेनका की योनि में भारत निर्माण है तो द्रोपदी दुर्गति महाभारत है और सीता वनवास रामायण है।
हम कोई विद्वतजन नहीं है और न ही शास्त्र विशेषज्ञ।
सामाजिक यथार्थ से बात हमारी निकलती है जो सत्ता के खिलाप जनमोर्चे तक पहुंचनी चाहिए।पहुंचती है या नहीं,कहना मुश्किल है क्योंकि अपना बात कहने के लिए सोशल मीडिया के अलावा हमारे पास न कोई मंच है और न संगठन हैं।फिर कितने लोगों तक बात पहुंचती है,उसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है।
बलात्कारी और हत्यारों के दावे और उनके विमर्श की गूंज आकाश वातास में है,लेकिन जनता के हककी किसी आवाज की गूंज कहीं नहीं है।
बीबीसी से हमारा कोई इंटरव्यू कभी प्रसारित नहीं हो सकता क्योंकि मीडिया का सुपरआइकन वही बलात्कारी और हत्यारा है।उसके चेहरे सिर्फ मौके के मुताबिक बदलते रहते हैं।
अर्थव्यवस्था यही है बहिस्कार की कि जल जंगल जमीन आजीविका रोजगार और रोटी बेटी बहू पत्नी ,पर्यावरण,नागरिक मानवाधिकारों से बेदखली के खिलाफ कहीं कोी सूचना दर्ज नहीं होती और यही कुल मिलाकर हमारे कुल जमा मौलिक अधिकार है,हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है,आस्था की स्वतंत्रता और कानून का रोज,लोकतंत्र वगैरह वगैरह है।
#HOKKOLOROB #HOKCHUMBAN जैसे आंदोलन स्त्री उत्पीड़न के विरुद्ध युवाजनों का प्रतिरोध जरुर है ,लेकिन इस प्रतिरोध के शहबाग बनने के आसार नहीं है।सत्ता विमर्श के पुरुष वर्चस्व और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के चक्रव्यूह से ऐसे अवसर भी जनांदोलन बन नहीं पाते और युवा आक्रोश जैसे सत्तर के दशक में अमेरिका परस्ती का दरवाजा कोल गया,अस्सी के दशक में य़ूथ फार इक्वलिटी बन गया या फिर कंमडल से बजरंगी रंगा हो गया और हाल पिलहाल वह आप है जो हिंदुत्व का विकल्प है।शुरुआत बहुत चामात्कारिक होकर भी चक्रव्यूह आखिरकार टूटता नहीं है और अकेला अभिमन्यु मारा जाता है।
निर्भया हत्याकांड से विचलित देश में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून या सलवा जुड़ुम के तहत होनेवाली हत्याओं और स्त्री उत्पीड़न अबाध,देश के कोने कोने में दलितों,पिछड़ों और आदिवासियों के गांवों में,नगरों महानगरों में विस्थापितों की गरीब बस्तियों में पैदा होने वाली चीखों के जवाब में कोई मोमबत्ती लेकिन होती नहीं है।
कामदुनी में अंततः सत्ता जीतती है जैसे सत्ता जीतती है हरियाणा के दलितों के खिलाफ या सत्ता की जयजयकार है निजी सेनाओं के हाथों कत्लेआम के शिकार मध्यबिहार के दलित गांवों में बहती खून की नदियों में।सत्ता की बोली अंततः खैरांजलि है।आनरकिलिंग और भ्रूण हत्या,दहेज हत्या तो बहरहाल शास्त्रसम्मत धर्म कर्म है।
न जाने वे कौन लोग हैं,जो रोज नया मीडिया पैदा कर रहे हैं और जिनके यहां तमाम थैलियां खुल जाती हैं और उस संसाधन का हश्र वहीं अनंत स्त्रीआखेट का मुक्तबाजार संवर्द्धन है।
हम गलियों,बाजारों में भीख मांगने निकलें तो धेलाभर कोई देगा नहीं।जो हमारे पक्ष में होने का दावा करते हैं,वैकल्पिक मीडिया खड़ा करने के सवाल पर उन्हें भी सांप सूंघ जाता है क्योंकि उनके कृतित्व व्यक्तित्व की सारी सुगंध आखिरकार प्रचलित बाजारु मीडिया से ही संप्रेषित होती है जहां मुकेश जैसों का प्रवचन धाराप्रवाह,लाइव है।
देश बेचने वालों के बाइट के लिए जहां मारामारी है वहां कास्टिंग काउच भी है और लिफ्ट,सीढ़ी,लाल नीली बत्तियों के अंधेरे में स्त्री देह के लिए घात लगाये खूखार भेड़िये भी तमाम है और इस आखेट में कोई रक्तपात तब तक नहीं होता जबतक मीडिया लीकेज ,मीडिया आंखों देखा हाल प्रसारित न हो।
इस मुश्किल समय में आम जनता धर्मनिरपेक्ष हो न हो यथार्थ निरपेक्ष है और हनुमान चालीसा के तंत्र मंत्र यंत्र भरोसे है।
हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने हमें चेताया था सत्तर के दशक में कि सेस्स से वंचित बहुसंख्य जनता कुंठित है और जब ये कुंठाएं टूटेंगी तो समाज बचेगा नहीं और न परिवार बचेगा।इस देश में न सेक्स की स्वतंत्रता है और न सेक्स की समानता है।सेक्स जहां सत्तावर्ग का विशेषाधिकार है,सेक्स जहां जाति और नस्ल के दायरे में निषिद्ध है,वहां फ्रीसेक्स हो जाये तो कयामत ही समझो।
हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने हमें हमारे कैशोर्य में सेक्स की आंधी से बचने के गुर सिखाये थे,जो तकनीक के वर्चुअल डिजिटल देश में कोई गुरु किसी शिष्य को अब समझा ही नहीं सकता और न मां बाप का कोई नियंत्रण है भटकती भूखी पीढ़ियों पर,जिन्हें कुछ भी अवसर कहीं नहीं मिल रहा है.लेकिन अबाध पूूंजी के मुक्त बाजार में अबाध सेक्स और अबाध बलात्कार का समाजवाद है।
बहरहाल,सेक्स का भूखा जनगण सेनसेक्स समय में समाज और परिवार के बिखराव की परवाह नहीं कर रहा और न अर्थव्यवस्था या उत्पादन प्रणाली और न जीवन और आजीविका से बेदखल होते जाने के भवितव्य के विरुद्ध उसकी इंद्रियां जवाबदेह हैं।
अजब गजब तिलिस्म यह धर्मोन्माद का, मुक्तबाजार का,अबाध पूंजी प्रवाह का,बिजनेस फ्रेंडली कन्या बचाओ पीपीपी उपक्रम का कि सत्ता का समूचा विमर्श स्त्री विरुद्धे है।
क्योंकि पराजित जनता की स्त्रियां वेजेताओं की संपत्ति है जो उनने तलवारों की धार पर जीत ली है।
वह तलवार अब मुक्त बाजार की क्रयशक्ति है।
वह युद्धस्थल अब मुक्तबाजार पर है।
और शतरंज की हर बाजी में दांव पर स्त्री अस्मिता है।
क्योंकि स्त्री उत्पीड़न से वंचितों,गैरनस्ली समूहों,कृषि समुदायों, दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का हौसला पस्त कर भगवा झंडा फहराना हिंदू साम्राज्यवाद का मनुस्मृति अनुशासन है।
साड़ी पर कंडोम और कंडोम के साथ बाजार में खड़ी स्त्री हमारी मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था जो है सो तो है ही,यह सनातन शाश्वत हिंदू राष्ट्रवाद की रघुकुल रीति है जो चौषठ प्राविधि आसन माध्यमे स्त्री उत्पीड़न रति रप्रसंग के रतिशास्त्र की गंगोत्री भी है।
मुक्त बाजार का अगला चरण अवैध धन को वैध सफेद बनाने के सुधार एजंडा पर परोसे जा रहे शत प्रतिशत हिंदुत्व की तर्ज पर,दस दस बच्चे पैदा करने के कुंवारों के क्लब के खाप फतवे की तर्ज पर,बहुविवाह की वकालत की तर्ज पर फ्री सेनसेक्स की तरह फ्री सेक्स है,जो स्त्री को देहमुक्ति की मंजिल तक तो पहुंचा देगी,लेकिन अंततः वह फिर वही नगरवधू आम्रपाली या हिंदुत्व की देवदासी बनी रहने को अभिशप्त है।
भारत से काफी पहले अमेरिका बन चुके दक्षिण कोरिया में अवैध संबंध केखिलाफ कानूनी पाबंदी हटा दी गयी है और वहां कंडोम का बाजार दिन दूना रात चौगुणा है।
हमारे यहां यह कंडोम बाजार मैनफोर्स है।
अश्वमेधी घोड़े का लिंग यहां शिवलिंग है और कंडोमलैस बिंदास सनी लिओन साक्षात उर्वशी हैं जो नमोमहाराज से ज्यादा लोकप्रिय है।
गोरा बनाने का उद्योग यहां जिस तेजी से फलफूल रहा है और भारत की काली कन्याओं की कामयाबी के लिए गोरा बनाने का जो कामकला उद्योग है,वह इसी कंडोम अर्थव्यवस्था की सौंदर्य प्रतियोगिता है.जहां सौदर्यशास्त्र खास अंगों की गोलाइययों, गहराइयों और नापों का अर्थशास्त्र है।
मुक्त बाजार की उत्पत्ति और सुपरामाडलों और विश्वसुंदरियों का आविर्भाव सुधार नरमेध महोत्सव है।अश्वमेधी हिंदुत्व राजसूयहै।
#मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
अब गुलाब और गुलमोहर लाल न होंगे और न बहारों का कोई आवाहन होगा ।
न प्रेमपत्र लिखा जायेगा और न पढ़ा जायेगा।
न मुऎशायरा होगा और न कव्वाली होगी।
फिल्मों और सीरियल में प्रेम प्रसंग शाकाहारी न होंगे न भौरे कली कली चूमने की जहमत उठाएंगे और न मछलियां बिन पानी तड़पेंगी।
किसी प्रतीक और बिंब की कोई जरुरत नहीं है।
सेक्स कारोबार खुल्लमखुल्ला है।
#मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
कोई नायक अब नहीं कहेगा,मेरे पास मां है।
नायक कहेगा ,मेरे पास कंडोम है न।
मैं हूं न के बजाय,कहा जायेगा कि कंडोम है न।
चलती क्या खंडाला कहने के बजाय सीधे कंडोम दिखाकर कहा जायेगी ,चलती क्या।
स्त्री अब बागों में सज धजकर गाना गाते हुए रिझायेगी नहीं किसी को या फिर नयनों के वाण से कोई जख्मी होगा नहीं फिर।
साक्षात कंडोम कवच कुंडल है।
#मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
सती सावित्री नायिकाओं का महाप्रयाण हो चुका है।
बिंदास नायिकाएं खलनायिकाएं बन गयी हैं।
प्रेमदृश्यों की जगह बेजरूम सीन और मर्डर है।
बाथरूम के जलवे की जगह ,कैबरे की जगह आइटम है।
यही आइटम फिर सांप्रतिक भारतीय साहित्य,पत्रकारिता,कला कौशल,मीडिया और माध्यम,विधायें है।साहित्यमहोत्सव है।
जहां न सामाजिक यथार्थ की कोई माटी है और न गोबर की कोई बदबू है।सिर्फ गोवंश संरक्षण है,हनुमान चालीसा है और अखंड हिंदुत्व का यह अर्थशास्त्र कंडोम है।शत प्रतिशत हिंदुत्व है।
अब दक्षिण कोरिया की तरह हम जो अमेरिका बन रहे हैं,तमाम आर्डिनेंस जो जारी हो रहे हैं,तमाम कानून जो बदल रहे हैं,तो अवैध संबंधों को जायज कर दें तो छूट जाएंगे तमामो आइकन,बापू इत्यादि समाजसुधारक स्त्री शिकारी क्योंकि इस वधस्थल पर स्त्री आखेट कंडोम अर्थव्यवस्था का अनिवार्य आख्यान है।
#मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
जहां निर्भया का अपना कोई पक्ष नहीं है।
बलात्कारी का पक्ष है।
बलात्कार लाइव है।
बलात्कार का आंखो देखा हाल है।
बलात्कारी कंडोम साथ लिये घूम रहे हैं जो सांढ़ भी हैं और अश्वमेधी घोड़े भी है।
भारत अब महाभारत है।
कुरुक्षेत्र में द्रोपदी दुर्गति कर्मफल सिद्धांत है।
जाति व्यवस्था है तो रंगभेद भी है।
शूद्र दासियों से बलात्कार की वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।
गैर नस्ली स्त्रियां युद्ध में जीतने लायक वस्तुएं हैं तो मुक्त बाजार में तब्दील परिवार और समाज में धर्म कर्म उसी स्त्री योनि के अखंड रक्तपात का पुण्यप्रताप है।
जो नरकद्वार है।
फिर भीमुक्त बाजार है।
#मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
अब कंडोम संग जब चलेंगी स्त्रियां खुल्ला बाजार में तो सीना ठोंककर कोई बलात्कारी और हत्यारा हल स्त्री को द्रोपदी बनाने की युद्ध घोषणा करने को स्वतंत्र है।
वह सच भी बोल रहा है कि बलात्कार की शिकार कोई स्त्री अब किसी बलात्कारी से रहम की उम्मीद न करें।
क्योंकि उस उत्पीड़ित स्त्री की जिंदगी का मतलब है,उसकी मौत।
इस पर ठंडे दिमाग से सोचें कि क्या हो रहा है और यह कैसा हिंदुत्व का मुक्तबाजार है जो घुंघट से मुक्त तो करता है,स्वच्छ शौचालय का बंदोबस्त तो करता है,स्त्री सशक्तीकरण के दावे तो करता है,भ्रूण हत्या जारी रहने के बावजूद,दहेज प्रथा कोयला और स्पेक्ट्रम नीलामी की तरह जायज होने के बावजूद कन्या बचाओ अभियान तो चलाता है,लेकिन फिर वहीं अगों की निखार,बालों को झटककर बाजार लूट लेने के तेवर और गोरा बनाकर बाजार में धकेलने के तौर तरीके से कितना बेहया चकलाघर बना रहा है दसदिगंत व्यापी इस देश को।
#मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
स्त्री को बलात्कार के लिए बाजार में आखिर खड़ा करने वाले हिंदुत्व के झंडेवरदार कैसे स्त्री सुरक्षा के पहरुए बनेंगे,यह बात समझ में नहीं आ रही है।
समूची अर्थव्यवस्था स्रीविरुद्धेऔर सेवा क्रयशक्ति निर्भर अनुत्पादक मेकिंग इन में स्त्री #द्रोपदी दुर्गति के सिवाय कुछ भी तो नहीं है।
अब हर नागरिक मुकेश है और हर नागरिका निर्भया।
आज मन बनाकर बैठा था कि अंग्रेजी में लिखना है।क्योंकि हर साल की तरह इस बार रेल बजट और आम बजट पर अंग्रेजी में मैंने लिखा नहीं है।ऐसा जानबूझकर किया है।अव्वल तो देशभर में अंग्रेजी जिनकी मातृभाषा है,वे एक फीसद से कम लोग हैं।अंग्रेजी सीखने की तकलीफ जिनने उठायी,वे लोग मजे में हैं।
अर्थ व्यवस्था वे हमसे बेहतर समझते हैं और उनका पक्ष बाजार का पक्ष है क्योंकि वे बाजार से अपना हिस्सा वसूलने के काबिल लोग है।
बजट और रेलबजट,कारपोरेट राज,आर्थिक सुधार और जनसंहारी नीतियों से उनके वहां बाबुलंद सावन है ते उनका मजा बेमजा करने की बदतमीजी न करना ही बेहतर है।
आज जो कुछ अंग्रेजी में सुबह से पढ़ना हुआ,हिंदी में ठीक ठीक संप्रेषित करना असंभव सा लगा।
मसलन करढांचे में फेरबदल के नतीजे क्या हो रहे हैं।
मसलन बाजार से कंपनियों को विदेशी निवेशकों की मुनाफावसूली और जनता की जमा पूंजी लूटने के सही सही परिदृश्य क्या हैं,वगैरह वगैरह।
बांग्ला के अखबार खोले तो मुकुल के सीबीआई मुक्त केसरिया शिविर में होने का खुलासा होते देखा और अचानक कबीर सुमन की तर्ज पर शारदा फर्जीवाड़े में सीधे दीदी को कठघरे में खड़ा करने वाले तृणमूल सांसद कुणाल घोष को अचानक दीदी के पक्ष में और मुकुल के खिलाफ खड़ा होते देखा।इस बीच खबर है कि दीदी नई दिल्ली तीन दिनों के लिए जायेंगी और बजट में दिये बंगाल पैकेज पर नाखुशी जतायेंगी।
इनसे निबटा ही था कि देश विदेश और खासतौर पर बांग्लादेश में एक ब्लागर की शहादत पर उमड़ रहे प्रतिरोध की ज्वाला से मुखातिब हो गया।
यथासंभव इन्हें यानी इन सूचनाओं को विविध भाषाओं में अपने ब्लागों पर हमने शेयर किया है।
मुकेश का इंटरव्यू ने हमें फिर हिंदी में लिखने को मजबूर कर गया क्योंकि अर्थ शास्त्र पर बातें तब तक बेमायने हैं जब तक हम यह समझ न लें कि #मातृभूमि #स्त्रीयोनिमध्ये रंग बिरंगे झंडे गाड़ने का #बलात्कार कार्निवाल है #मुक्तबाजारी #अर्थशास्त्र।
वह मुझसे पूछती है कि मेरी जैसी दूसरी लड़कियों को कैसे इंसाफ मिलेगा?
नई दिल्ली: दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए सामूहिक बलात्कार एवं हत्याकांड के दो साल पूरे होने से पहले पीड़िता के पिता ने अपनी बेटी को याद करते हुए और अपना दर्द जाहिर करते हुए सवाल किया है, ''वे कहते हैं कि वह (नरेंद्र मोदी) निडर हैं . क्या वह हमें इंसाफ दिलाने में मदद करेंगे ?''
'उबर' कैब के एक ड्राइवर द्वारा हाल ही में एक युवती से बलात्कार की घटना के बाबत 16 दिसंबर कांड की पीड़िता के पिता ने कहा, ''16 दिसंबर 2012 के बाद भारत में कुछ भी नहीं बदला है . हमारे नेताओं और मंत्रियों की ओर से किए गए सारे वादे खोखले साबित हुए हैं . हमारे दुख से उन्हें चर्चा में आने का मौका मिलता है .''
उन्होंने कहा, ''मेरी बेटी मुझसे पूछती है कि मैंने उसे इंसाफ दिलाने के लिए क्या किया है . वह पूछती है कि मैं क्या कर रहा हूं जिससे उस जैसी कई और लड़कियों को इंसाफ मिले . फिर मुझे असहाय होने का अहसास होता है और लगता है कि मैं कितना मामूली आदमी हूं .'' उन्होंने कहा कि वह 16 दिसंबर 2012 की रात से लेकर आज तक कभी भी शांति से नहीं सो सके हैं .
16 दिसंबर कांड के सिलसिले में चार वयस्क आरोपियों - अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश - पर एक त्वरित अदालत में मुकदमा चला था . त्वरित अदालत ने 13 सितंबर 2013 को उन्हें मौत की सजा सुनाई . दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस साल मार्च में उन्हें सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखी . अब परिवार दोषियों की अपील पर उच्चतम न्यायालय की सुनवाई का इंतजार कर रहा है .
पिता ने कहा कि उनकी बेटी से बलात्कार और उसकी हत्या के आरोपी चार लोगों को दोषी करार दिए जाने के बावजूद जब अभी तक सजा नहीं मिली है तो हालात कैसे बदलेंगे . उन्होंने निराशा जाहिर करते हुए कहा, ''उन बलात्कारियों और हत्यारों को सूली पर लटकाने से भला कौन सी चीज अधिकारियों को रोक रही है, जबकि सारे सबूत सामने हैं ?'' 16 दिसंबर 2012 की रात एक चलती बस में एक नाबालिग लड़के सहित छह लोगों ने 23 साल की एक फिजियोथेरेपी इंटर्न से सामूहिक बलात्कार किया . आरोपियों ने पीड़िता और उसके एक दोस्त को भी बस से बाहर फेंक दिया था .
विशेष इलाज के लिए पीड़िता को सिंगापुर के एक अस्पताल भेजा गया था जहां उसने 29 दिसंबर 2012 को दम तोड़ दिया. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे पीड़िता के माता-पिता ने प्रधानमंत्री से मिलने की अपनी इच्छा जताई .
पिता ने कहा, ''वे कहते हैं कि वह :नरेंद्र मोदी: बड़े निडर हैं . वे यह भी कहते हैं कि वह फैसले लेने वाले नेता हैं . तो क्या वह इंसाफ दिलाने में हमारी मदद करेंगे ?'' पीड़िता के पिता ने कहा कि उन्होंने निर्भया ज्योति ट्रस्ट की शुरूआत का अपना वादा निभाया लेकिन सरकार और अधिकारी अपना वादा निभाने में नाकाम रहे .
इस साल 10 मई को गैर-लाभकारी संगठन की शुरूआत की गई ताकि यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को कानूनी सहायता मुहैया कराई जाए और उनका पुनर्वास हो . परिवार अपनी बहादुर बेटी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आईटीओ स्थित ट्रस्ट के दफ्तर में एक कार्यक्रम का अयोजन करेगा .
इस मामले के एक आरोपी ने दिल्ली के तिहाड़ जेल में कथित तौर पर खुदकुशी कर ली थी . नाबालिग आरोपी को दोषी ठहराने के बाद किशोर न्याय बोर्ड ने उसे तीन साल की सजा सुनाई थी .
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