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Monday, October 7, 2013

Fwd: महिषासुर : ब्राह्मणवादी संस्कृति के प्रतिकार का बढ़ता कारवां



---------- Forwarded message ----------
From: The Himalayan Voice <himalayanvoice@gmail.com>
Date: 2013/10/7
Subject: Re: महिषासुर : ब्राह्मणवादी संस्कृति के प्रतिकार का बढ़ता कारवां
To: Palash Biswas <palashbiswaskl@gmail.com>



October 7, 2013

DASHAIN THIS YEAR IN INDIA MAHISHASUR DECLARED MARTYR

Posted by The Himalayan Voice:
[This year some tribal, scheduled  or backward Indian people are celebrating Dashain or Durga Puja in a different way – so to say, protesting against Brahmanic cultural hegemony,  marking the death anniversary of 'Martyr' Mahishasur, a demon King in Hindu mythology, that had terrorized Hindu gods' world  and who later was slain by Goddess Durga. In Nepal, on the other hand, the disadvantaged groups of peoples oppose Dashain and launch boycott programmes each year. But, some Indian peoples' this years's declared celebration program is something very interesting  to take note about - a change defying the over 80 % Hindu people's age old cultural dominance. - Editor ]


2013/10/5 Palash Biswas <palashbiswaskl@gmail.com>

महिषासुर : ब्राह्मणवादी संस्कृति के प्रतिकार का बढ़ता कारवां


महिषासुर : ब्राह्मणवादी संस्कृति के प्रतिकार का बढ़ता कारवां

♦ अरुण कुमार

हिषासुर का मिथक बहुजन नायक के रूप में देश के विभिन्न हिस्सों में विमर्श के केंद्र में है। इस साल से उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में महिषासुर की शहादत पर नये आयोजन आरंभ हो रहे हैं, जिनका मुख्य उद्देश्‍य पिछड़े व आदिवासी समाज के लोगों को यह बताना है कि महिषासुर इस देश के बहुजन समुदाय के न्यायप्रिय राजा थे, जिनकी दुर्गा द्वारा छलपूर्वक हत्या की गयी थी। ज्ञातव्य है कि महिषासुर को लेकर बहुजनों के बीच दो तरह के मत हैं। एक धड़ा मासिक पत्रिका 'फारवर्ड प्रेस' के अक्टूबर, 2011 अंक में प्रकाशित प्रेमकुमार मणि द्वारा लिखित आवरण कथा 'किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन?' के आधार पर मानता है कि महिषासुर गोवंश पालक समुदाय के राजा थे, जबकि दूसरा धड़ा उन्हें असुर जनजाति से जोड़ते हुए आदिवासी समाज का राजा बताता है। 'फारवर्ड प्रेस' से पूर्व 'यादव शक्ति' पत्रिका ने भी इस विषय पर एक लंबा लेख प्रकाशित किया था, जिसमें महिषासुर को यादव राजा बताया गया था। लंबे समय तक अलक्षित रहने के बाद अब वह लेख भी इन दिनों चर्चा में है।

बहरहाल, इस वर्ष बिहार के कई जिलों में महिषासुर शहादत दिवस मनाया जा रहा है। दशहरा के दौरान ही मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर में महिषासुर की आदमकद मूर्ति लगा कर यह सामारोह मनाया जाएगा। समारोह के संयोजक हरेंद्र यादव ने बताया कि 'जब लोग वर्षों से चली आ रही उनकी झूठी परंपराओं के तहत दुर्गा पूजा में शामिल होंगे, उसी समय हम लोग भी अपने नायक महिषासुर की सच्चाई जानने के लिए इकट्ठा होंगे।' बिहार के ही नवादा में 23 अक्टूबर को महिषासुर शहादत दिवस मनाया जाएगा। कार्यक्रम के संयोजक रामफल पंडित ने कहा कि 'नवादा यादव बहुल क्षेत्र है और यदि हम यहां के यादवों को सच्चाई बताने में सफल हुए तो यह बहुजन सांस्कृतिक आंदोलन की बड़ी जीत होगी। ऐसा कैसे हो सकता है कि एक जाति अपने ही नायक की छलपूर्वक की गयी हत्या के जश्‍न मनाएं?' पटना में बहुजन समाज को महिषासुर के संदर्भ में जागृत करने का जिम्मा समाजसेवी उदयन राय ने उठाया है। उदयन राय कहते हैं कि 'मेरे घर के पास ही दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, जिसमें हमारे लोग शामिल होते हैं। इस बार हम लोगों को सच्चाई से अवगत कराएंगे।'

गिरीडीह (झारखंड) में 'प्रबुद्ध यादव संगम' द्वारा 12 अक्‍टूबर से 17 अक्टूबर तक 'महिषासुर शहादत सप्ताह' मनाया जाएगा। आयोजक दामोदर गोप ने बताया कि 'पूरे गिरीडीह में जनजागरण अभियान की शुरुआत की जा रही है। महिषासुर की शहादत को लोकगीतों द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा।'

उड़ीसा के कालाहांडी में नारायण बगर्थी तो पश्चिम बंगाल के माला वर्मा और डॉ दिनेश सिंह तथा पुरुलिया में 'पंचकूट महाराज' मंदिर के पास भेला घोड़ा गांव में नवमी के दिन महिषासुर शहादत दिवस मनाया जाएगा। जेएनयू, नयी दिल्ली में लगातार तीसरी बार आगामी 17 अक्टूबर को महिाषासुर शहादत दिवस पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 'ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंट्स फोरम' द्वारा किया जा रहा है। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र यादव ने बताया सम्मेलन का विषय 'बहुजन संस्कृति और हिंदू परंपराएं' होगा, जिसमें प्रेमकुमार मणि और कांचा इलैया, गेल ऑम्‍वेट समेत देश के अनेक बहुजन बुद्धिजीवी, पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे।

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भी इस बार 'यादव शक्ति' पत्रिका अन्य सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर इस दशहरा में बड़े पैमाने पर महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन कर रहा है। पत्रिका के संपादक राजवीर सिंह ने कहा कि 'शुरुआत में ऐसा लगता था कि लोग महिषासुर को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे। तीन हजार वर्षों से महिषासुर के प्रति नफरत का जो बीज बोया गया था, उसे आसानी से उखाड़ा नहीं जा सकता लेकिन जैसे-जैसे हम लोगों को बता रहे हैं, लोग आश्‍चर्यजनक ढंग से बहुत जल्दी ही हमारी बातें मान ले रहे हैं।' उत्तरप्रदेश में इस बार कौशांबी जिले में डॉ अशोकवर्द्धन, हरदोई में भिक्षु प्रियदर्शी, सीतापुर में राजवीर सिंह और देवरिया में चंद्रभूषण सिंह यादव द्वारा महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन किया जा रहा है।

गौरतलब है कि महिषासुर शहादत दिवस पर आयोजन की शुरुआत वर्ष 2011 में जेएनयू में फारवर्ड प्रेस के अक्टूबर, 2011 अंक में छपी प्रेमकुमार मणि द्वारा लिखित आवरण कथा 'किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन?' के प्रभाव में हुई थी। आलेख में दुर्गा और महिषासुर के मिथक की बहुजन परिप्रेक्ष्य में व्याख्या करते हुए बताया गया था कि महिषासुर बहुजन तबके के राजा थे, जिनका वध दुर्गा ने छलपूर्वक किया था। उस वर्ष इस लेख का पक्ष लेने पर जेएनयू में ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंटस फोरम से जुड़े छात्र-छात्राओं के साथ दक्षिणपंथी संगठनों के छात्रों ने विश्‍वविद्यालय परिसर में मारपीट की थी। उसके बाद से यह आयोजन देश के विभिन्न हिस्सों में फैलता जा रहा है। महिषासुर शहादत दिवस आयोजन की बढ़त को देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में यह उत्तर भारत में ब्राह्मणवादी संस्कृति के प्रतिकार के प्रमुख सांस्कृतिक हथियार के रूप में उभर सकता है लेकिन बहुजन बुद्धिजीवियों के सामने इसे हिंदूवादी कर्मकांडों से बचा कर रखना एक बड़ी चुनौती होगी। देखना यह है कि वे इस चुनौती से कैसे निपटते हैं?

[जेएनयू में शोध कर रहे अरुण कुमार विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में सामयिक विषयों पर लिखते हैं। उनसे 09430083588 और aruncrjd@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।]




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