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Wednesday, October 9, 2013

बदलाव का तूफान खड़ा करने वाले साहेब कांसीराम Bahujan Samaj Party

बदलाव का तूफान खड़ा करने वाले  साहेब कांसीराम

Bahujan Samaj Party




बसपा संस्थापक कांसीराम सामाजिक व राजनीति के पुरोधा थे। जिन्होंने 15 और 85 का नारा बुलंद करके देश की राजनीति की दिशा को बदल दिया था और सामाजिक समरसता व अधिकार हासिल करके नई इबारत लिख दी थी।


बाबा साहब डा. भीमराव अंबेडकर के मिशन को मंजिल तक पहुंचाने का काम बसपा संस्थापक कांसीराम ने किया। वह सच्चे मायने में दलितों के साथ पिछड़े व अल्पसंख्यकों के मसीहा थे।


Kanshi Ram

From Wikipedia, the free encyclopedia

*

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Kanshi Ram


Personal details


Born

March 15, 1934

Khawas Pur village of Ropar District of Punjab (India)

Died

October 9, 2006

Political party

Bahujan Samaj Party

Kanshi Ram (March 15, 1934 – October 9, 2006) was an Indian politician. He founded theBahujan Samaj Party (BSP), a political party with the stated goal of serving the traditionally lower castes of Indian society (that historically also included untouchables). He transferred the BSP's leadership to Mayawati. His leadership brought the party to power in India's most populous state, Uttar Pradesh in 1995, at that point Mayawatibecame the state's Chief Minister.

Contents

 [hide]

Early life[edit]

Kanshi Ram was born to Bishan Kaur and Hari Singh in Ramdassia (Ad Dharmi/Mulnivasi) community of the Scheduled Caste group, which is the largest group in Punjab, at Khawaspur village in Ropar district of Punjab

He completed his Bachelor's degree in Science (B.Sc) from the Government College at Ropar affiliated to The Punjab University.[citation needed]

Career[edit]

Kanshi Ram joined the offices of the High Energy Materials Research Laboratory (HEMRL), then became part of the Defence Research and Development Organisation (DRDO), in Pune.

During his tenure in the DRDO in 1965 he joined the agitation started by SCEWASTAMB(All India Federation of Scheduled Caste/Tribes Backward Class & Minorities Employees Welfare Associations) of Government of India to prevent the abolition of a holiday commemorating B.R. Ambedkar's birthday.

Political career[edit]

In 1978 he formed the, BAMCEF-Backward(SC/ST & OBC) and Minority Community Employees Federation. The BAMCEF was purely non political,Non Religious & Non Agitional organisation. Later on he formed another Social organisation known as DS4. He started his attempt of unifying the Dalit vote bank in 1981 and by 1984 he founded the Bahujan Samaj Party. The BSP found success in Uttar Pradesh but struggled to bridge the divide between Dalits and Other Backward classes.[1]


He represented the 11th Lok Sabha from Hoshiarpur Constituency, Kanshiram was also elected as member of Lok Sabha from Etawah in Uttar Pradesh . In 2001 he publicly announced Kumari Mayawati as his successor.

Illness[edit]

He was already a diabetic and he suffered from a heart attack in 1994 followed by the formation of a clot in the brain artery in 1995. He has suffered a brain stroke in 2003.[2] From around 2004 or so, Kanshi Ram stopped appearing publicly as he was suffering from various health problems. He convalesced at the home of Mayawati.

On October 9, 2006, he died of a severe heart attack in New Delhi. Kanshi Ram, who suffered from multiple ailments such as stroke, diabetes and hypertension, was virtually bed-ridden for more than two years.

According to his wish,[3] last ritual were performed as per buddhist tradition, the pyre of Kanshi Ram was lit by his soul heir Kumari Mayawati.[2] His ashes were placed in Urn and kept at Prerna Sthal, with huge procession accompanied by lakhs of supports.,[4][5]

Author[edit]

As an author Kanshiram wrote two books

  • "An Era of the Stooges" (Chamcha Age)[6]

  • "New Hope"

References[edit]

External links[edit]

http://www.ambedkartimes.com/sahib_kanshi_ram.htm

Categories:

बहुजन समाज पार्टी

http://hi.wikipedia.org/s/w7a

मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से

*

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बहुजन समाज पार्टी


200px


दल अध्यक्ष

मायावती

महासचिव

सतीश चन्द्र मिश्र

संसदीय दल अध्यक्ष

मायावती

नेता लोकसभा

राजेश वर्मा

नेता राज्यसभा

उर्मिलेश कुमारी भारती

गठन

1984

मुख्यालय

11, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड,

नई दिल्ली - 110001

लोकसभा मे सीटों की संख्या

21

राज्यसभा मे सीटों की संख्या

6

विचारधारा

सार्वभौमिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सर्वोच्च सिद्धांतों की सोच वाला मानवतावादी बौद्ध दर्शन

प्रकाशन

आदिल जाफरी, मायायुग

जालस्थल

[1]

भारत की राजनीति

राजनैतिक दल

चुनाव



बहुजन समाज पार्टी (अंग्रेजी: Bahujan Samaj Party) सार्वभौमिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सर्वोच्च सिद्धांतों की सोच वाला, भारत का एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल है। इसका गठन मुख्यत: एक क्रांतिकारी सामाजिक और आर्थिक आंदोलन के रूप में काम करने के लिए किया गया है जो भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता दिलाने, उनमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए कार्य करती है जैसा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित है. इसका गठन मुख्यत: भारतीय जाति व्यवस्था के अन्तर्गत सबसे नीचे माने जाने वाले बहुजन , जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक शामिल हैं, ऐसे समाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया था, जिनकी जनसंख्या भारत देश में 85% है। दल का दर्शन बाबा साहेब अम्बेडकर के मानवतावादी बौद्ध दर्शन से प्रेरित है। Source :http://www.ironladykumarimayawati.org

संक्षिप्त इतिहास[संपादित करें]

बसपा का गठन उच्च प्रोफ़ाइल वाले करिश्माई लोकप्रिय नेता कांशीराम द्वारा 14 अप्रैल 1984 में किया गया था। इस पार्टी का राजनीतिक प्रतीक (चुनाव चिन्ह) एक हाथी है। 13 वीं लोकसभा (1999-2004) में पार्टी के 14 सदस्य थे। 14 वीं लोक सभा में यह संख्या 17 और वर्तमान यानी 15 वीं लोक सभा में यह संख्या 21 है। बसपा का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश है और पार्टी ने इस प्रदेश में कई बार अन्य पार्टियों के समर्थन से सरकार भी बनाई है। मायावतीकई वर्षों से पार्टी की अध्यक्ष हैं।

बहुजन शब्द का इतिहास[संपादित करें]

बहुजन शब्द तथागत बुद्ध के धर्मोपदेशों (त्रिपिटक) से लिया गया है, तथागत बुद्ध ने कहा था बहुजन हिताय बहुजन सुखाय उनका धर्म बहुत बड़े जन-समुदाय के हित और सुख के लिए है।

उ०प्र० में पूर्ण बहुमत[संपादित करें]

11 मई 2007 को घोषित विधान सभा चुनाव परिणामों के पश्चात् उत्तर प्रदेश राज्य में 1991 से 15 वर्षों तक त्रिशंकु विधान सभा का परिणाम भुगतने के बाद भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य में स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर सत्ता में आयी। बसपा अध्यक्ष मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश में अपने चौथा कार्यकाल शुरू करते हुए 13 मई 2007 को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 50 अन्य मन्त्रियों के साथ मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। बहुजन शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल गौतम बुध ने किया था |

This is totally wrong. When Nehru gandhi family makes so many murty tab koi aalochana nahi hoti. Modi to lohe ki murti banane wala hai== पार्टी की आलोचना == जहाँ एक ओर उत्तर प्रदेश की जनता ने बसपा को सरकार बनाकर काम करने का मौका दिया वहीं दूसरी ओर मुख्यमन्त्री मायावती की इस बात के लिये दबी जुबान में आलोचना भी हो रही है कि जनता के टैक्स के पैसे से अपनी, कांशीराम एवम् अनेकों दलित समाज सुधारकों की बडी-बडी मूर्तियों पर अरबों-खरबों रुपया पानी की तरह बहाने में मुगल बादशाह शाहजहां को भी काफी पीछे छोड दिया। यह लोकतन्त्र है कोई सामन्तशाही नहीं, जनता इसका हिसाब चुकाना भी जानती है।

  1. Kanshi Ram - YouTube► 4:16► 4:16

  2. www.youtube.com/watch?v=qIKSuORQTa4

  3. Mar 2, 2010 - Uploaded by Modi Inqalab Da Bahujan Samaj

  4. 1:39:10. Watch Later Sahab Kanshiram's speech on PAY BACK TO SOCIETYby Sanjay Khobaragade ...

  5. More by Modi Inqalab Da Bahujan Samaj

  6. Important speech of Saheb Kanshi Ram Ji - Part 1 - YouTube► 42:14► 42:14

  7. www.youtube.com/watch?v=xYDxdnSwfao

  8. Oct 21, 2011 - Uploaded by Fight Club

  9. Super speech....Sab ki pol khol diya saab...Jai bhim! Jaikanshiram!

  10. News for kanshiram




Sunday, August 4, 2013

कांशीराम का प्रयोग फेल, बामसेफ को अंबेडकर के आंदोलन में लौटना होगा

कांशीराम का प्रयोग फेल, बामसेफ को अंबेडकर के आंदोलन में लौटना होगा


बहुजन समाज का निर्माण ही नहीं होने दिया जाति अस्मिता ने

कारपोरेट राज में तब्दील है मनुस्मृति व्यवस्था!

कार्यकर्ताओं ने उठायी एकीकरण के हक में आवाज

बोरकर भी एकीकरण के पक्ष में

पलाश विश्वास

पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना ।

इसी साल मार्च में मुंबई में हम लोगों ने बामसेफ के विभिन्न धड़ो के एकीकरण की मुहिम शुरु की। उस सम्मेलन में दो धड़ो के बड़े नेता हाजिर हुये, बाकी नहीं। हांलांकि कार्यकर्ता सभी धड़ों से आये। जो दो बड़े नेता हाजिर हुये उनमें एक ताराराम मैना, भील आदिवासी हैं तो दूसरे बीडी बोरकर साहब कांशीराम खापर्डे के साथ काम करने वाले संगठनात्मक अनुभव के सबसे बड़ दक्ष नेता। जिन्होंने कम से कम बामसेफ के एक धड़े को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में डाला हुआ है, जहाँ मनोनयन नहीं, बाकायदा निर्वाचन होता है। खुद बोरकर पाँच साल तक इस बामसेफ के अध्यक्ष रहने के बाद अब दूसरे चुने हुये अध्यक्षों के मातहत पुरानी निष्ठा के साथ काम कर रहे हैं। अंबेडकरवादी संगठनों में वे एकमात्र अपवाद हैं जो नेतृत्व से हटने के बावजूद संगठन उन्हीं के नाम से जाना जाता है। हम लोगों के आग्रह के बाद बाकायदा संगठन में प्रस्ताव पारित कराकर वे सम्मेलन में हाजिर हुये और एकीकरण के लिये लोकतांत्रिक संगठनात्मक ढाँचा बनाने का वायदा उन्होंने किया। हम लोग उसी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और आगामी आठ सितंबर को नागपुर में कार्यकर्ताओं की महासभा में एकीकृत बामसेफ को अमली जामा पहनाया जायेगा।

परसों बोरकर साहब ने फोन किया कि वे कोलकाता आयेंगे और उन्होंने पूछा कि क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ। उन्होंने बताया कि शनिवार को शाम साढ़े तीन बजे कालेज स्ट्रीट के त्रिपुरा हितसाधनी सभा के हॉल में उनका कार्यक्रम है। मेरे रोजमर्रे की ज़िन्दगी से महानगर कोलकाता एकदम बाहर है। मैं अमूमन कोलकाता की उठपटक से दूर रहता हूँ। अपने लोगों के मुद्दों को उठाने के अलावा मेरे एजेण्डा में अब कुछ नहीं है। इसलिये किसी कार्यक्रम में मैं जाता नहीं। वर्षों बाद अपने अग्रज पत्रकार पी साईनाथ से मिलने के लिये मैंने यह नियम तोड़ा और हफ्ते भर में बोरकर साहेब का फोन आया। वे जिस तरह हमारे मतामत को तरजीह देते हैं और खास तरह जैसे वे हमारे सम्मेलन में चले आये, फिर एकीकरण का उनके संगठन ने बाकायदा कार्यकारिणी और आम सभा में स्वागत किया,उनसे मिलने न जाते तो यह कतई भारी अभद्रता होती। चूँकि हम एकीकरण प्रक्रिया में हैं तो किसी एक धड़े के खुले कार्यक्रम में शामिल होने पर दूसरे धड़ों से सवाल उठ सकते हैं, यह जोखिम उठाकर भी मैं बोरकर साहेब से मिलने त्रिपुरा हित साधनी सभा में चला गया।

सोदपुर से कालेज स्ट्रीट को बस से ही सीधे पहुँच सकते हैं। ट्रेन या मेट्रो का सहारा लेने पर भी फिर बस यात्रा करनी होती है। रास्ते में मेरी चप्पल फट गयी। तो मैं कार्यक्रम शुरु होने के करीब आधा घंटा बाद पहुँचा। मेरे दाखिल होते ही बोरकर साहब ने मुझे मंच पर बुला लिया। तब वे बोल रहे थे। वे कोई चमत्कारी वक्ता हैं नहीं। तथ्यों और विश्लेषण से भरा होता है उनका वक्तव्य। वे सनसनीखेज कुछ नहीं कहते और न भावनाओं से खेलते हैं। इसलिये आम मसखरों की तरह उनका भाषण किसी को मंत्रमुग्ध नहीं कर सकता। लेकिन इस दिन उन्होंने जो कहा, उससे हमारी आँखें खुल गयीं।

पहली बार उन्होंने बामसेफ के मंच से माना कि मान्यवर कांशीराम जी का प्रयोग फेल कर गया है। बामसेफ कार्यकर्ताओं के बीच बामसेफ के किसी नेता का ऐसा कहना कितना खतरनाक है, जो लोग बामसेफ और कम से कम अंबेडकरवादियों के जड़ मतामत को जानते हैं, वे ही समझ सकते हैं। लेकिन बोरकर साहब ने इसका सिलसिलेवार खुलासा किया और कहा कि जिसकी संख्या जितनी भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी के तहत सत्ता में हिस्सेदारी से बहुजनों का कोई कल्याण नहीं हुआ है। मजे की बात तो यह है कि इस संदर्भ में उन्होंने पुणे समझौते के बहु उल्लेखित तर्क का हवाला नहीं दिया। बल्कि सीधे सत्ता समीकरण के गणित को खोलते हुये कहा कि यह विचार अब जाति अस्मिता में तब्दील हो गया है और जाति पहचान के आधार पर सत्ता में भागेदारी के लिये जो सोशल इंजीनियरिंग की जाती है, उससे मान्यवर कांशीराम के रास्ते पर चलते हुये सत्ता के लिये जातियाँ उन्हीं वर्चस्ववादी तत्वों के ही हाथ मजबूत कर रही हैं, जिसके खिलाफ पचासी फीसद का यह नारा है।

बोरकार साहब ने चुनिंदा श्रोताओं से सीधे पूछा, आपकी समस्याएं अगर जाति के कारण है और मनुस्मृति व्यवस्था की वजह से अगर आप गुलाम हैं तो मनुस्मृति व्यवस्था को तोड़ने के लिये आप जाति तोड़ने के बजाये जाति से चिपके हुये उसे मजबूत से मजबूत बनाने के लिये हरसंभव कोशिश क्यों कर रहे हैं? इससे अंततः मनुस्मृति व्यवस्था ही बहाल नहीं रहती, बल्कि वह दिनों दिन और मजबूत होती है।

उनका कहा खत्म होने पर कायदे से सभा खत्म हो जानी थी, लेकिन उन्होंने मुझसे वक्तव्य रखने को कहा। मैंने उन्हीं के तर्क को आगे बढ़ाते हुये यह सवाल उठाया कि हमअंबेडकर के अवसान के बाद उनकी जाति उन्मूलन की परिकल्पना को पीछे छोड़कर उनके आर्थिक सिद्धान्तो को किनारे रखकर सत्ता में हिस्सेदारी के लिये बाबा साहेब के सिद्धान्तों की तिलांजलि दे रहे हैं। मनुस्मृति व्यवस्था आज कारपोरेट राज है और जिनकी वजह से देश के निनानब्वे फीसद लोग अर्थव्यवस्था से बाहर है, हमारी सत्ता में भागेदारी की जाति अस्मिता ने उन्हे खुले बाजार में एकाधिकरवादी वर्चस्व का हकदार बना दिया। राजनीति दरअसल अर्थ व्यवस्था है और इसे बाबा साहेब ने अपने लिखे से सिलसिलेवार तरीके से साबित कर चुके हैं लेकिन बहुजनों ने उस पर ध्यान न देकर अस्मिताओं के पचड़े में पड़कर खुद को हिदुत्व की पैदल सेना में तब्दील कर लिया है और बाबा साहब की जयंती का सालाना कर्मकांड करके उन्हें ईश्वरतुल्य बनाकर उनके विचार और आंदोलन को हमने कबाड़ के मोल बेच दिया है। बाबासाहेब का नाम लेकर तीस साल की अवधि से खंड-खंड-विखंडित बामसेफ ने उन आर्थिक मुद्दों को कभी स्पर्श करने की भी चेष्टा नहीं कि जो अंबेडकर आंदोलन के आधार और प्रस्थान बिंदु हैं। बामसेफ कर्मचारियों का संगठन है लेकिन कर्मचारी जिन समस्याओं से रूबरू होते हैं, उनसे बमसेफ का कोई सरोकार नहीं है। बाबासाहेब ने अपनी सीमित क्षमता और समर्थन के बावजूद प्राकृतिक संसाधनों पर वंचित जनसमुदाय के हक हकूक बहाल करने के लिये पांचवी और छठी अनुसूची, दारा 3बी व सी के तहत जो रक्षा कवच दे गये, उसे लागू करने में हमने कोई पहल नहीं की। संविधान की जो रोजना हत्या हो रही है, एक- एक करके जीवन के हर क्षेत्र को जो सांड़ों से नियंत्रित शेयकर बाजार से जिस तरह नत्थी किया जा रहा है, जैसे निजीकरण की आंधी में आरक्षण को बेमतलब किया जा रहा है, उसके खिलाफ हम प्रतिरोध की कोई जमीन बना नहीं सके। जो सामाजिक सास्कृतिक आंदोलन बामसेफ का चरित्र है, वह सत्ता में भागेदारी और निजी महात्वाकांक्षाएं साधने का साधन बनकर रह गया। बहुजनों से उसका कोई सरोकार ही न रहा।

बीच बीच में हस्तक्षेप करके बोरकर साहब ने खुलकर कहा कि तानाशाही से चलने वाले संगठन, जहाँ बाकी लोग संगठन में सहभागी नही होते, सिर्फ अंध भक्त होते हैं, वहाँ लोकतंत्र की कोई गुंजाइश होती नहीं है और ऐसे संगठन से किसी बदलाव की कोई उम्मीद नहीं है। उनका कहना है कि बाबा साहेब के विचारों से बहुजन को नौकरियों में आरक्षण के जरिये निजी फायदे जरूर हुये, बामसेफ आंदोलन की वजह से सत्ता में भी हिस्सेदारी मिल गयी, लेकिन बहुजन समाज आज भी बहिष्कृत है। आज भी अस्पृश्य है। हम लोग एक दूसरे को अस्पृश्य बनाये हुये हैं। हमारी सामूहिक पहचान हमारी मूलनिवासी विरासत की कोई अभिव्यक्ति है ही नहीं। जिस जाति के कारण हमारी यह दुर्गति है, उसी को बनाये रखने में हम जी तोड़ कोशिश में लगे हैं। नतीजतन अंबेडकर आंदोलन से मिलने वाले लाभों से बहुजन समाज वंचित ही रहा और सही मायने में बहुजन समाज का निर्माण हमारी जाति पहचान की वजह से हुआ ही नहीं है।

हम लोग बोल चुके तो बोरकर साहब ने सभा में मौजूद हर शख्स को लाइन से बोलने का मौका दिया। असली बवंडर तब सामने आया।

कई कार्यकर्ताओं ने पूछा कि अगर हमारा उद्देश्य और विचार एक हैं तो बामसेफ के इतने धड़े क्यों हैं?

अलग अलग धड़े एक ही रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तमाल क्यों करते हैं?

हम जब फील्ड में जाते हैं तो लोग पूछते हैं कि आप किस बामसेफ से हो!

अंबेडकर, कांशीराम और खापर्डे साहब के विचारों का हवाला देते रहने के बावजूद आप लोग अलग- अलग क्यों हैं?

बामसेफ के सारे कार्यकर्ता एकता चाहते हैं तो नेतागण अलग- अलग दुकान क्यों चलाते हैं?

जब बहुजन समाज जल जंगल जमीन से बेदखल हो रहा है, जब खुले बाजार में उसकी नौकरियाँ, आजीविका छीनी जा रही है, जब उसकी नागरिकता डिजिटल बायोमेट्रिक षड्यंत्र में खत्म हो रही है, जब रोजाना संविधान की हत्या हो रही है, तब समता और सामाजिक न्याय का नारा लगाकर आप लोग सत्ता की भाषा क्यों बोल रहे हैं?

बहुजन आंदोलन कब निजी महत्वाकाँक्षाओं, निहित हित, संसाधनों के निजी इस्तेमाल और सर्वव्यापी तानाशाही से मुक्त होगा?

बोरकर साहब बोलते इससे पहले मैंने हस्तक्षेप करके कार्यकर्ताओं को यह जानकारी दी कि ये सवाल सिर्फ उनके नहीं हैं, इस देश के निनानब्वे फीसद जनता के सवाल हैं, जिनके हित में कोई नही खड़ा है, जिनके निरंकुश दमन और कॉरपोरेट अश्वमेध, नरसंहार संस्कृति के विरुद्द प्रतिरोध के बजाय निरंतर विश्वासघात का सिलसिला है विचारधारा और आंदोलन के नाम पर। हर ईमानदार कार्यकर्ता ऐसे सवाल पूछ रहा है और कोई नेता इसे सुनने को तैयार नहीं है। मैंने बोरकर साहब से कहा कि आप अब जवाब दें।

इसके बाद तो पूरी सभा एकीकरण सभा में तब्दील हो गयी।

बोरकर साहब ने फिर दोहराया कि एकीकरण के प्रयासों का वे और उनका संगठन स्वागत करता है। फिर उन्होंने अंबेडकरवादी एक राजनीतिक दल के बारह धड़ों का उदाहरण देकर समझाया कि संगठन क्यों टूटता है। उन्होंने कहा हिसाब मांगने या सवाल खड़ा करने पर अगर किसी भी कार्यकर्ता को कभी भी कहीं भी दरवाजा दिखा दिया जाता हो तो संगठनों के धड़े बनना कोई रोक नहीं सकता। सबके अपने विचार मतामत हो सकते हैं, संगठन, उद्देश्य और मिसन के मद्देनजर उनका समायोजन करके ही संगठन आगे बढ़ता है। आप मजमा चाहे कितना बड़ा खड़ा कर ले, लेकिन जन सरोकार के मुद्दों पर आपकी कोई हलचल न हो और नेता के अलावा किसी की कोई स्वतंत्र आवाज न हो, तो ऐसे संगठन के जरिये पुरखों की विरासत, उनके विचारों और आंदोलन के दोहन से निजी हित तो सध सकते हैं, बहुजनों का कोई हित नहीं सधता।

बोरकर ने खुलकर कहा कि निजी स्वार्थ के कारण ही, नेताओं की तानाशाही के कारण ही संगठन टूटता है। एकीकरण के नाम पर हम स्वार्थी तत्वों के जमावड़े के खिलाफ हैं। एकीकरण संगठनात्मक लोकतांत्रिक तौर तरीके से ही संभव है और उसके लिये बाकायदा ढाँचा बनाना होगा ताकि निरंकुश तानाशाहों पर अँकुश लगाया जा सके और कोई संगठन और आंदोलन का दुरुपयोग न कर सके।

कुल मिलाकर सहमति इस पर हुई कि बामसेफ को अंबेडकर के विचार और आंदोलन के तहत ही पुनर्गठित किया जाना चाहिए।


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वामन मेश्राम के FULLTIMER को कुछ सवाल???


(1) क्या वामन ने अपनी नैतिक हार से कुछ सीखा है?


(2) क्या वामन और उसके अंधभक्तों को अपने शत्रु और मित्र की पहचान है?


(3) क्या वामन मेश्राम अंधभक्तों को ही अपना गुलाम रखेगा?


(4) क्या सम्राट अशोका का बौध्द मय भारत बनाने का सपना वामन के अंदर छुपा ब्राह्मण पुरा होने देगा?


(5) क्या वामन अपने मूवमेंट को ब्राह्मणवादियोँ से धोका है, यह बाबासाहब ने दिया हुआ संदेश भुल चुका है और क्या यह भूल चुका है की ब्राह्मणवादी केवल ब्राह्मण नहीं होते, बल्कि वह किसी भी जाती, धर्म के हो सकते है?


(6) क्या वामन को सत्ता मे आने केलिए बौद्ध समाज पर सदियो से अन्याय अत्याचार करनेवाले मराठा, लिंगायत कुछ मदद कर सकते है?


(7) क्या वामन की अबतक की असफलता उसकी गद्दारी से मिली है यह बात वामन स्वीकार करता है? (8) खापर्डे ने बामसेफ फोड़ी उसवक्त के कितने साथी वामन के साथ है?


(9) क्या मा. खापर्डे वामन को देखकर चिढते थे यह बात वामन के अंधभक्तों को पता है? (10) क्या वामन द्वेष और छल कपट के सहारे बाबासाहब का हमे ईस देश का हुक्मरान बनना है यह संकल्प पुरा कर सकता है?


(11) कया अधभक्त वामनका ईस्तेमाल कर रहे है? वामन का ईस्तेमाल तो दुर की बात है. बल्की खुद्द वामन ही इन अंधभक्तों का इस्तेमाल कर रहा है ऐसा इन अंधभक्त / पंडीतोँ को लगता नही है?


(12) क्या वामन के कैडर को उन्हे वे वामन के गुलाम है ईसका एहसास है?


(13) वामन बाबासाहब की "रीडल्स इन हिंदूइज़्म" किताब जलानेवाले प्रवीण गायकवाड को बिन माँगे बिन पुछे समर्थन क्योँ देता हैं?


(14) क्या वामन के अंधभक्त चरित्रयहीन वामन को पूजना उचित समझते हैं?


(15) क्यो वामन ने करोड़ो की प्रॉपर्टी जमा करके रखी है और हिसाब नहीं देता है?


(16) क्या वामन के अंधभक्तों के होते हुये वामन को एसी हौलों में 20-50 रक्षको के साये मे रहेने की कोई आवश्यकता हैं?


(17) क्या वामन के साथ रहकर उसके अंधभक्त हमेशा केलिए कामवासना मे लिप्त रहना चाहते है?


(18) क्या नकली बामसेफ ने वामन को अपने संगठन मे लेकर गलती नही कि है? जैसे कि कांशीरामजी ने केवल एक गलती की थी । कुछ ब्राह्मणवादी महारो पर विश्वास किया था । उनके खूनपसीने से सींचकर बनाए गए संगठन "बामसेफ" का क्या हुआ? उन्होने दिये हुये बामसेफ मे कुछ ब्राह्मणवादी महारों ने घुँसपेठ कर बामसेफ को तोड़ा था क्या यह बात वामन के अंधभक्त जानते है? मा.कांशीरामजी ने बामसेफ को विसर्जित घोषित किया था फिर भी लालच मे वामन ने उसी नाम से काम करना शुरू रखा क्या यह बात वामन के अंधभक्त जानते है? मा.कांशीरामजी के संगठन को खापर्डे, गंगावणे, बोरकर, वामन मेश्राम इन ब्राह्मणवादी महारो ने तोड़ा क्या यह बात वामन के अंधभक्त जानते है? जिनके आरक्षण के लिए वामन आज मरा जा रहा है उन मराठा लोगो ने मराठवाडा की बौद्ध जनता पर कितने बलात्कार, घर जलाना हत्याए आदि की है क्या यह बात वामन के अंधभक्त जानते है?


(19) मा. कांशीराम जी साहब को बामसेफ खत्म घोषित करनी पड़ी क्यूंकी वामन जैसे गद्दारो ने राजीव गांधी से पैसे लेकर उसमे फुट डलवाई क्या यह बात वामन के अंधभक्त जानते है? मा. कांशीराम जी साहब द्वारा बामसेफ को खत्म करने की घोषणा के बावजूद भी वामन ने उसे जिंदा रखा है ताकि काँग्रेस से पैसा लेकर बीएसपी को कम करने के लिए काम किया जाए यह बात आज उजागर होने लगी है क्या इसलिए वामन और उसके अंधभक्त डरने लगे है?


(20) मा. कांशीराम जी साहब ने बामसेफ बनाई थी उसमे मा.दिनभानाजी और डी के खापर्डे को साथ मे लिया था, साइकिल से पूरा देश घूमकर बामसेफ को खूनपसीने से सींचा था। मै पुछता हुँ कि किसके कहने पर खापर्डे और वामन मेश्राम जैसे गद्दारो ने बामसेफ मे फुट डलवाई? क्या आज के वामन की नकली बामसेफ कमसेकम अपना आदर्श माननेवाले खापर्डे के आदर्शो पर चलती है? वर्तमान नकली बामसेफ वामन के आदेश के अनुसार क्योँ चलती है?


(21) वामन के अंधभक्त आजतक देश मे एक भी सामाजिक या राजनैतिक सफलता क्यूँ हासिल नहीं कर पाए है? क्या नकली बामसेफ के कैडर वामन के अंधभक्त बन गये है?


(22) नकली बामसेफ बाबासाहब और मा. कांशीरामजी साहब के विचारधारा पर वाकई चल रही है तो बाबासाहब द्वारा जानबूझकर ब्राह्मण महिला से की गई दूसरी शादी, मनुस्मृति जलाने मे ब्राह्मण सहयोगी रखना, अपने अलग अलग आंदोलनो मे ब्राह्मणो को साथ लेना इन बातों को को वामन के अंधभक्त भूल क्योँ गए है?


(23) असली बामसेफ जैसे संघटन से उभरकर आए पैसे खानेवाले नकली संगठन का केवल ब्राह्मण को विरोध कर जनआंदोलन की बाते करना क्या यही नकली बामसेफ का मकसद है?


(24) 2003 से वामनने नकली बामसेफ पूरी तरह अपने कंट्रोल में कर ली है । खापर्डे और वामन की निर्णय प्रक्रिया में क्या फर्क है?


(25) नकली बामसेफ राष्ट्रीय लेवलपर खास कर महाराष्ट्र में आंबेडकरी विचारधाराँके और बामसेफ और बाकी संगठनो मे अपना विलय करने के बारें में क्या भूमिका रखती है?


(26) नकली बामसेफ मे जबसे वामन का एकछत्र राज आया है नकली बामसेफ केवल जनांदोलन की नकली बाते ही करती आ रही है, पहले यह 2013 मे होने वाला था अब 2017 की बात करने लगे है, ऐसा क्यूँ ?


(27) बुद्ध ने बहुजन कहा पर सर्वजनों को अपने संघ मे प्रवेश दिया, तो क्या बुद्ध गलत थे या सही थे?


(28) नकली बामसेफ जो इतिहास से सबक नही सिखते उसे इतिहास सबक सिखाता है क्या यह भुल गयी है?


(29) बाबासाहब ने कहा था की, शिक्षण ये बाघिन का दूध है .जो उसे एक बार पिएगा वो गुर गुर्रायेगा वामन के अंधभक्तोँ ने शिक्षण तो लिया लेकिन गुरगुराना छोड दिया । क्योँकी हमारे शिक्षा मे और उनकी शिक्षा मे जमीन और आसमान का फर्क है । हम पहले बहुजन महापुरुषोँ का इतिहास पढते है । उनके विचारोँ का अंमल और संशोधन करते है और उनका इतिहास दुनिया के सामने लाते है । किँतू नकली बामसेफ की सोच अलग है । वह वामन द्वारा रचा गया झूठा इतिहास पढते है । उनके विचारोँ का अंमल करते है और उनकी जो भी विकृत बाते है उसे दुनिया के सामने नही लाते। वामन जैसे बहुजन समाज के गद्दारो कि तरफ उँगली करणेवाला इतिहास नकली बामसेफ के अंधभक्त मिटाना चाहते है एवं उस पर चर्चा करणा भी पसंद नही करते ! वामन ने बहुजन इतिहास को मूलनिवासी बकरी के दूध में परिवर्तित कर दिया है क्या यह बात नकली बामसेफ के कार्यकर्ता जानते है?


शायद इसलिए ही नकली बामसेफ के अंधभक्तों की भाषा शेर जैसी नही बल्की बकरी जैसी है हमे बाबासाहब और मा. कांशीरामजी ने, हमे शेर होने का अहसास करा दिया है. अगली बार नकली बामसेफ के नकली कैडर हमारे साथ चर्चा करते वक्त अधुरी ट्रेनिंग लेकर नही बल्की पुरी स्टडी करके आये. – जय भीम — with Indranil Prabhakar Khaire and 13 others.

Bahujan Samaj Party

From Wikipedia, the free encyclopedia

For the Nepalese party, see Bahujan Samaj Party, Nepal.

*

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Bahujan Samaj Party


*

Chairperson

Mayawati

Secretary-General

Satish Chandra MishraDr. Suresh Mane, Naseem Uddin Siddiqui, Swami Prasad Maurya

Leader in Lok Sabha

Rajesh Verma

Leader in Rajya Sabha

Mayawati

Founded

1984

Headquarters

12, Gurudwara Rakabganj Road,

New Delhi - 110001

Newspaper

Adil Jafri, Mayayug

Ideology

Dalit Socialism

Secularism

Social Engineering

Political position

Centre-left

Colours

Blue

Seats in Lok Sabha

21 / 545

Seats in Rajya Sabha

15 / 245

Seats in UP Legislative Assembly

80 / 403

Website


bspindia.org


Politics of India

Political parties

Elections


The Bahujan Samaj Party (BSP) (Hindi: बहुजन समाज पार्टी) is a centrist national political party in India with socialist leanings. It was formed mainly to represent Bahujans (literally meaning "People in majority"), referring to people from the Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Other Backward Castes (OBC) as well as minorities. The party claims to be inspired by the philosophy of B. R. Ambedkar. The BSP was founded by a Dalit charismatic leader Kanshi Ram in 1984, who was succeeded by Mayawati in 2003. The party's political symbol is an Elephant. In the 15th Lok Sabha the party has 21 members, making it the 4th-largest party. The BSP has its main base in the Indian state of Uttar Pradesh.

Contents

 [hide]

Origin of the word "Bahujan"[edit]

The Pali word Bahujan is popularly found in the literature of Buddhism. Lord Buddha used this word to guide his disciples to work for the "Bahujan Hitay Bahujan Sukhay" (Meaning: Benefit and prosperity of majority people). Another meaning of the word Bahujan is people in majority. The BSP has historically drawn a loyal base of voters from India's lowest caste (Dalit). It has attempted to grow nationally as well, but has met limited success so far. Its current majority government in Uttar Pradesh was in large part due to a reach-out towards other castes, even some members of the upper castes.

History[edit]

Bahujan Samaj Party claims to represent the low and lowly. A man carrying the BSP flag.

The party was founded in 1984 by Kanshi Ram . Due to his deteriorating health in the 1990s, former school teacher Mayawati became the party's de facto leader. The party's power grew quickly with seats in the Uttar Pradesh Legislative Assembly and India's Lower House of Parliament. In 1993, following the assembly elections, Mayawati formed a coalition with Samajwadi Party President Mulayam Yadav as Chief Minister. In mid-1995, she withdrew support from his government, which led to a major incident where Mulayam Singh Yadav was accused of keeping her party legislators hostage to try to break her party. Since this, they have regarded each other publicly as chief rivals. Mayawati then sought the support of theBharatiya Janata Party (BJP) to become Chief Minister on June 3, 1995. In October 1995 the BJP withdrew support to her and fresh elections were called after President's Rule.

Success in 2007 UP assembly elections[edit]

The May 11, 2007, the Uttar Pradesh state assembly election results saw the BSP emerge as a single majority party, the first to do so since 1991. The BSP President Ms. Mayawati began her fourth term as Chief Minister of UP and took her oath of office along with 50 ministers of cabinet and state rank on May 13, 2007, at Rajbhawan in the state capital ofLucknow. Most importantly, the majority achieved in large part was due to the party's ability to take away majority of upper castes votes from their traditional party, the BJP.

BSP is now the third largest national party of India in terms of vote percentages as per 2009 Lok Sabha Elections, having more than 10% vote share across the country.

2012 UP assembly elections[edit]

The party could manage only 80seats (against 206 in 2007 assembly elections) due to anti-incumbency factor. BSP government was the first in the history of Uttar Pradesh to complete its full five-year term.[1] On 11 July 2012, the party in a major revamp, replaced Swami Prasad Maurya by R A Rajbhar as President of UP Unit.[2]

Secret successor of Mayawati[edit]

On 9 August 2009, Mayawati declared that she had chosen a successor from the 'jatav' community who is 18–20 years her junior. She has penned down his name in a sealed packet left in the safe custody of two of her close confidantes. The name of the successor will be disclosed on her death.[3]

Lok Sabha (Lower House)[edit]

Lok Sabha Term

Indian

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

State ( seats )

09 th Lok Sabha

1989

245

03

2.07

4.53

Punjab ( 01 )

Uttar Pradesh ( 02 )

10 th Lok Sabha

1991

231

02

1.61

3.64

Madhya Pradesh ( 01 )

Uttar Pradesh ( 01 )

11 th Lok Sabha

1996

210

11

4.02

11.21

Madhya Pradesh ( 02 )

Punjab ( 03 )

Uttar Pradesh ( 06 )

12 th Lok Sabha

1998

251

05

4.67

9.84

Haryana ( 01 )

Uttar Pradesh ( 04 )

13 th Lok Sabha

1999

225

14

4.16

9.97

Uttar Pradesh ( 14 )

14 th Lok Sabha

2004

435

19

5.33

6.66

Uttar Pradesh ( 19 )

15 th Lok Sabha

2009

500

21

6.17

6.56

Madhya Pradesh ( 01 )

Uttar Pradesh ( 20 )


Vidhan Sabha Term

UP

Elections

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

12 th Vidhan Sabha

1993

164

67

11.12

28.52

13 th Vidhan Sabha

1996

296

67

19.64

27.73

14 th Vidhan Sabha

2002

401

98

23.06

23.19

15 th Vidhan Sabha

2007

403

203

30.43

30.43

16 th Vidhan Sabha

2012

403

80

25.95

25.95

Other states where BSP has a presence[edit]

Bihar Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Bihar

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

10 th Vidhan Sabha

1990

164

0

0.73

1.41

11 th Vidhan Sabha

1995

161

2

1.34

2.66

12 th Vidhan Sabha

2000

249

5

1.89

2.47

13 th Vidhan Sabha

Feb. 2005

238

2

4.41

4.50

14 th Vidhan Sabha

Oct. 2005

212

4

4.17

4.75

15 th Vidhan Sabha

2010

243

0

3.21

3.27

Chhattisgarh Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Chhattisgarh

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

2 nd Vidhan Sabha

2003

54

2

4.45

9.4

3 rd Vidhan Sabha

2008

90

2

6.11

6.11

Delhi Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Delhi

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

1 st Vidhan Sabha

1993

55

0

1.88

2.42

2 nd Vidhan Sabha

1998

58

0

3.09

3.63

3 rd Vidhan Sabha

2003

40

0

5.76

8.96

4 th Vidhan Sabha

2008

69

2

14.05

14.05

Haryana Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Haryana

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

8 th Vidhan Sabha

1991

26

1

2.32

7.67

9 th Vidhan Sabha

1996

67

0

5.44

7.2

10 th Vidhan Sabha

2000

83

1

5.74

6.22

11 th Vidhan Sabha

2005

84

1

3.22

3.44

12 th Vidhan Sabha

2009

86

1

6.73

7.05

Himachal Pradesh Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Himachal Pradesh

General Election]

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

7 th Vidhan Sabha

1990

35

0

0.94

1.76

8 th Vidhan Sabha

1993

49

0

2.25

3.0

9 th Vidhan Sabha

1998

28

0

1.41

3.28

10 th Vidhan Sabha

2003

23

0

0.7

2.02

11 th Vidhan Sabha

2007

67

1

7.40

7.37

12 th Vidhan Sabha

2012

67

0

1.7

2.02

Madhya Pradesh Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Madhya Pradesh

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

9 th Vidhan Sabha

1990

183

2

3.54

5.89

10 th Vidhan Sabha

1993

286

11

7.05

7.86

11 th Vidhan Sabha

1998

170

11

6.15

11.39

12 th Vidhan Sabha

2003

157

2

7.26

10.62

13 th Vidhan Sabha

2008

230

7

8.97

9.29

Maharashtra Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Maharashtra

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

8 th Vidhan Sabha

1990

122

0

0.42

0.98

9 th Vidhan Sabha

1995

145

0

1.49

2.82

10 th Vidhan Sabha

1999

83

0

0.39

1.24

11 th Vidhan Sabha

2004

272

0

4.0

4.18

12 th Vidhan Sabha

2009

287

0

2.35

2.42

Punjab Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Punjab

General Election

Seats

Contested

Seats

won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

10 th Vidhan Sabha

1992

105

9

16.32

17.59

11 th Vidhan Sabha

1997

67

1

7.48

13.28

12 th Vidhan Sabha

2002

100

0

5.69

6.61

13 th Vidhan Sabha

2007

115

0

4.13

4.17

14 th Vidhan Sabha

2012

117

0

4.28

4.28

Rajasthan Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Rajasthan

General Election

Seats

Contested

Seats

Won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

9 th Vidhan Sabha

1990

57

0

0.79

2.54

10 th Vidhan Sabha

1993

50

0

0.56

2.01

11 th Vidhan Sabha

1998

108

2

2.17

3.81

12 th Vidhan Sabha

2003

124

2

3.97

6.40

13 th Vidhan Sabha

2008

199

6

7.60

7.66

Uttarakhand Vidhan Sabha[edit]

Vidhan Sabha Term

Uttarakhand

General Election

Seats

Contested

Seats

Won

% of

Votes

% of Votes in

seats contested

1 st Vidhan Sabha

2002

68

7

10.93

11.20

2 nd Vidhan Sabha

2007

69

8

11.76

11.76

3 rd Vidhan Sabha

2012

70

3

12.19

12.19

See also[edit]

References[edit]

External links[edit]

*

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