मौत का जिम्मेदार कौन? ये सरकार/ वो सरकार?
सरबजीत को शराब के नशे की लत थी। उसके परिजनों का कहना कि वह नशे की हालत में सीमा पार कर गया। पाकिस्तान ने उसे गिरफ्तार किया और बम विस्फोट के आरोप और उसमें बीस लोगों के मारे जाने का आरोप लगाया। हर अदालत से हारते हुये दया याचिकाओं और दोनों देशों के बीच उसका केस झूलता रहा। इस बीच दोनों देशों के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उसकी फाँसी टालने की बहुत कोशिशें की लेकिन वे असफल रहे। सरबजीत की बहन ने काबिले तारीफ़ प्रयास किये। किसी परिजन के इस तरह जूझने के बिरले ही उदाहरण मिलते हैं।
जिस बेदर्दी से साथी कैदियों ने सरबजीत को मारा और उसकी पिटाई के जो कारण बताये गये उससे यह मुद्दा अब अधिक विचारणीय हो गया कि फाँसी की सज़ा कितनी माकूल है। यदि कसाब और अफजल को फाँसी देना ही सरबजीत की मौत का कारण बना तो देश के विपक्षी राजनीतिक दलों को भी उसकी मौत का जिम्मेवार माना जाना चाहिये।
अफजल और कसाब को फाँसी पर लटकाने के लिये भाजपा जितनी उत्सुक थी, जितनी बैचेन थी यह किसी से छुपी बात नहीं है।
आज सरबजीत की मौत पर भाजपा नेता सुषमा स्वराज देश की विदेश नीति की असफलता का कारण बताकर सरबजीत की मौत के दोष मुक्त नहीं हो सकती। उन्हें भी सोचना होगा कि भविष्य में इस तरह की माँग किस हद तक की जाये ताकि निर्दोष भारतीय नागरिकों की जान पर कोई बात न आने पाये। देश की कूटनीतिक हार की वजह से और भी कई मामले मौत में तब्दील हुये हैं।
सैनिकों के सिर काटना, चमेल सिंह के शरीर से जरूरी अवयव निकाल लेना इसके ताज़ा उदाहरण हैं। बहुत से मछुआरे भी पाकिस्तानी समुद्र में पहुँच जाते हैं। सरबजीत पर लगाये आरोपों को पाकिस्तान यदि भारतीय मछुआरों या अन्य सीमावर्ती नागरिकों पर लगाने लगे तो बेमौत मारे जाने के सिलसिले को रोका नहीं जा सकेगा जबकि भारत कभी इतना निर्दयी हो नहीं सकता कि भारतीय जेलों में बन्द पाकिस्तानियों पर वैसा ही जुल्म ढाये जैसा जुल्म पाकिस्तान भारतीयों पर करता आया है।
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