खतरे में बूढ़े
तोते की जान
Govt to contest Gauhati High Court order declaring CBI as unconstitutional
সিবিআইকে অসাংবিধানিক বলায় গৌহাটি হাইকোর্টের বিরুদ্ধে সুপ্রিম কোর্টে যাবে কেন্দ্র
पलाश विश्वासClick to Expand & Play
पिंजड़े मे बंद तोते
की जान खतरे में है दोस्तों
तोते की जान खतरे में है
इसी तोते की बदौलत
हम लड़ रहे हैं युद्ध
भ्रष्टचार के खिलाफ
सीबीआई जांच के
फंदे में फंसकर
ओबीसी लालू
बन गये
महिषासुर
और वध
उनका हो गया
सन सैंतालिस से
जारी अनंत घोटालों
के मामलों में
अबतक हुई
नहीं कोई कार्रवाई
राष्ट्रपति और
प्रधानमंत्री भी
कटघरे में हैं
तमाम घोटालों में
जैसे उनके तमाम
महान पूर्ववर्ती
लोकतंत्र के पहरुये
महान राष्ट्रनेता
किसी के खिलाफ
सीबीआई करती
नहीं कोई मुकदमा
दर्ज कभी
लेकिन सीबआई जांच
की मांग होती रहती
चारों तरफ से
हर मामले में बार बार
अब भी तमाम
घोटालों की जांच
कर रही सीबीआई
सुप्रीम कोर्ट की
देखरेख में
जबभी अल्पमत
सरकार खतरे में
हो मैदान में
उतार दी जाती
सीबीआई
खतरा टल जाता
सीबीआई फंदे
में फंसे क्षत्रपों के
पाला बदलते ही
सारे कानून
बदल दिये इसीतरह
आर्थिक सुधारों
का निरंकुश
कारोबार इसी तरह
देश बेचने का
सिलसिला जारी
इसी तरह
सारे आर्थिक
सुधार लागू होते
दागियों के
बिना शर्त समर्थन में
बूढ़ा तोता बेबस
बेचारा,दर्ज
नहीं कर सकती
परमाणु खोरों
कोयलाचोरों
तेल लुटेरों
स्पेक्ट्रम, रेलगेट
के दिग्गजों
जल जमीन जंगल
आजीविका और
नागरिकता के
हत्यारों के खिलाफ
बूढ़ा तोता
मुकदमा तक
दर्ज नहीं कर सकता
रक्षा सौदौं के मार्फत
स्विस बैंक के
खाते जिनके
स्विस बैंक
उनके खिलाफ
कुछ उखाड़
नहीं सकता
बूढ़ा तोता
फिरभी गजब
की आस्था है
इस बूढ़े तोता में
अंध भक्त आस्तिकों
के धर्मांध समय में
बूढ़े तोते की साख
निराली है
केंद्रीय जांच ब्यूरो
यानी सीबीआई
के गठन को ही
असंवैधानिक
क़रार दिया
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने
और इस फ़ैसले के
एक दिन बाद
केंद्रीय क़ानून मंत्री
कपिल सिब्बल
ने कहा है कि
सरकार इस फ़ैसले
के ख़िलाफ़
अपील करेगी
यकीनन
अबकी दफा
गलत नहीं बोले
प्रधानमंत्रित्व के
दावेदार
नरेंद्र मोदी
कि राजनीतिक
बदला चुकाने को
खुला छोड़ दिया है
सीबीआई को
साथ में उनने
आईएम को
जोड़ दिया जो कि
जाहिर है
बेहद गलत है
क्योंकि सीबीआई
और आईएम
एक नहीं है
प्रधानमंत्री जिनको
देश ने मान लिया
और सत्ता वर्ग
के असली बाप
अमेरिका ने भी
मान लिया
मुद्दे को ऐसे हल्का
करेंगे,तो समझ
लीजिये जनाब
कि कैसा
लोकतंत्र जी
रहे हैं हम लोग
कोई मौका कोई
नहीं छोड़ता
बहिस्कृतों के
विरुद्ध
घृणा अभियान
छेड़ने को
সিবিআইকে
অসাংবিধানিক
বলায়
গৌহাটি হাইকোর্টের
বিরুদ্ধে সুপ্রিম কোর্টে
যাবে কেন্দ্র
বেনজির রায়ে গৌহাটি হাইকোর্ট সিবিআইকে 'অসাংবিধানিক' ঘোষণা করায় প্রবল আতান্তরে পড়তে চলেছে কেন্দ্র৷ এই রায়ের বিরুদ্ধে সুপ্রিম কোর্টে আপিল করা হবে বলে জানিয়েছেন আইনমন্ত্রী কপিল সিবাল৷ রায় অবৈধ, কোনওমতেই বহাল থাকতে পারে না, এমন সব মন্তব্যে নিজেদের ও জনগণকে আশ্বস্ত করার চেষ্টা চালিয়ে যাচ্ছেন জনপ্রতিনিধিরাও৷ কিন্ত্ত ঘটনা হল, এই রায়ে কেন্দ্রের ফাঁপরে পড়ার যথেষ্ট অবকাশ রয়েছে৷ কারণ প্রথমত, রায় বহাল থাকলে কয়লা দুর্নীতি, টু-জি দুর্নীতি, ২০০২ গুজরাট দাঙ্গার মামলাগুলি-সহ সারা দেশে অসংখ্য গুরুত্বপূর্ণ মামলা থমকে যাবে৷ দ্বিতীয়ত, দিল্লি স্পেশ্যাল পুলিশ এস্টাবলিশমেন্ট অ্যাক্ট (ডিএসপিই) অনুযায়ী সত্যিই সিবিআইয়ের কোনও আলাদা অস্তিত্ব নেই৷
কেন্দ্র ও সিবিআইয়ের হাতে এই মুহূর্তে একটাই অস্ত্র রয়েছে৷ সেটা সুপ্রিম কোর্ট৷ একাধিক মামলায় সিবিআই তদন্তকে বৈধ ও সাংবিধানিক বলে ম্যানতা দিয়েছে দেশের শীর্ষ আদালত৷ বহু ক্ষেত্রে অন্য তদন্ত সংস্থার হাত থেকে তদন্তভার সিবিআইয়ের হাতে দিয়েওছে সুপ্রিম কোর্ট৷ এই নিদর্শন দেখিয়েই সুপ্রিম কোর্টে গৌহাটি হাইকোর্টের রায় বাতিল করার আবেদন জানাতে চলেছে কেন্দ্র৷ প্রধানমন্ত্রীর দপ্তরের প্রতিমন্ত্রী ভি নারায়ণস্বামী এ দিন জানিয়েছেন, বিষয়টি নিয়ে প্রধানমন্ত্রীর সঙ্গে বৈঠক করে খুব দ্রুতই সুপ্রিম কোর্টে আপিলের দিন স্থির করবেন তাঁরা৷ অন্যদিকে অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেল পিপি মালহোত্রার কথায়, 'এই রায় পুরোপুরি অবৈধ৷ বাতিল হতে বাধ্য৷ সোমবারের মধ্যে সুপ্রিম কোর্টে আপিল করা হবে৷'
রায়ে বলা হয়েছে, ১৯৪৩ সালে ব্রিটিশ শাসিত ভারতে মূলত অর্থনৈতিক অপরাধ নিয়ে তদন্ত করার জন্য ডিএসপিই গঠনের প্রস্তাব আসে৷ ১৯৪৬ সাল থেকে অর্ডিন্যান্স হিসেবে কার্যকরী হয় সেটি৷ পরে আইন হিসেবে প্রণয়নের সময় এই আইনে একটি বিশেষ বিল আনা হয়, যাতে বলা হয় বিশেষ বিশেষ ক্ষেত্রে পুলিশ অফিসাররা যে কোনও রাজ্যে তদন্ত চালাতে পারবেন৷ তখনও কোথাও 'সেন্ট্রাল ব্যুরো অফ ইনভেস্টিগেশন' শব্দটির উল্লেখ ছিল না৷ ১৯৬৩ সালে ডিএসপিই-র অধীনে একটি বিশেষ প্রস্তাব এনে সিবিআই গঠন করা হয়৷ কিন্ত্ত তখনও সেটিকে আইন হিসেবে পাশ করানো হয়নি৷ যার ফলে এখন ঘোর বিপাকে সিবিআই ও কেন্দ্র দুইই৷ শুধু যে অসংখ্য গুরুত্বপূর্ণ মামলা আটকে যাওয়ার শঙ্কা রয়েছে তাই নয়, এই রায় নতুন করে অস্ত্র তুলে দিয়েছে বিরোধীদের হাতেও৷ এমনিতেই কেন্দ্রের বিরুদ্ধে সিবিআইকে রাজনৈতিক উদ্দেশ্যে ব্যবহার করার অভিযোগ প্রায় প্রতি জনসভাতেই আনছেন বিজেপির প্রধানমন্ত্রী পদপ্রার্থী নরেন্দ্র মোদী৷ এ দিন বাহরইচের জনসভাতেও এ প্রসঙ্গ তুলেছেন তিনি৷ বিজেপি মুখপাত্র মুখতার আব্বাস নাকভি এ দিন বলেন, 'বেশ কিছুদিন ধরেই সিবিআইয়ের কাজকর্ম নিয়ে সন্দেহের অবকাশ দেখা দিয়েছে৷ হাইকোর্টের সাম্প্রতিক রায় সেই সন্দেহকেই মান্যতা দিচ্ছে৷'
নবেন্দ্র কুমার নামে শিলচরের এক বিএসএনএল কর্মীর আপিলের ভিত্তিতে বৃহস্পতিবার গৌহাটি হাইকোর্ট রায় দিয়েছে, তদন্ত চালানো, চার্জশিট দেওয়া বা গ্রেপ্তার করার কোনও সাংবিধানিক অধিকার নেই সিবিআইয়ের৷ নবেন্দ্র কুমারকে ২০০১ সালে তহবিল তছরুপের মামলায় দোষী সাব্যস্ত করেছিল সিবিআই আদালত৷ ২০০৫ সালে সিবিআইয়ের গঠন প্রক্রিয়া অসাংবিধানিক দাবি করে হাইকোর্টে আপিল করেছিলেন তিনি৷ ২০০৭ সালে তা খারিজ হওয়ার পর ফের আপিল করেন৷ সেই দ্বিতীয় আপিলের ভিত্তিতেই এল রায়৷
বিচারপতি ইকবাল আহমেদ আনসারি ও ইন্দিরা শাহের বেঞ্চ জানায়, ১৯৬৩ সালে দিল্লি পুলিশ এস্টাবলিশমেন্ট অ্যাক্টের অঙ্গ হিসেবে কেন্দ্রের এক প্রস্তাবের মাধ্যমে সিবিআইয়ের জন্ম হয়৷ এই প্রস্তাবে রাষ্ট্রপতির স্বাক্ষর ছিল না, সই করেন শুধুমাত্র তত্কালীন স্বরাষ্ট্রসচিব ভি বিশ্বনাথন৷ ফলে এই প্রস্তাবকে আইন বলে গণ্য করা যায় না৷ আদালতের আরও বক্তব্য, ডিএসপিই আইন শুধুমাত্র কেন্দ্রশাসিত অঞ্চলগুলির জন্যই প্রযোয্য৷ ফলে অন্যান্য রাজ্যে সিবিআইয়ের কাজকর্ম প্রাথমিকভাবেই অবৈধ৷
Govt to contest Gauhati High Court order declaring CBI as unconstitutional!
Taking a tough stand on the observation of the Gauhati High Court on the Central Bureau of Investigation (CBI), the government has decided to file an appeal against the order that declared the central investigating body as unconstitutional.Indian Express reports.
The decision was conveyed to the media on Friday by Union Law Minister Kapil Sibal.
A division bench of the Gauhati High Court had quashed a Ministry of Home Affairs resolution of April 1, 1963 through which the CBI was constituted.
An 89-page judgment passed by the division bench of Justice Iqbal Ahmed Ansari and Justice Indira Shah, while disposing of a writ application and writ petition filed by one Navendra Kumar, said that the CBI was neither established under the DSPE Act, 1946, nor was it an organ or part of the DSPE.
"We hold that CBI is neither an organ nor a part of the DSPE and that the CBI cannot be treated as a 'police force' constituted under the DSPE Act, 1946. We hereby also set aside and quash the impugned resolution (of the Union Home ministry) dated 01.04.1963, whereby CBI has been constituted," the judgment and order passed on Wednesday said. A copy of the judgment was available only on Thursday.
Going by the judgment, the CBI ceases to be a constitutionally valid organisation which is empowered to probe crimes, and that all CBI cases now stand to become null and void. In the instant case of Navendra Kumar, the division bench, however, said that the judgment would not bar the police from conducting further investigation into the case against him.
The petitioner, against whom the CBI had submitted a chargesheet in November 2007, had contended that the CBI was not a statutory body because it was not constituted under any statute, but under an executive order/resolution No 4/31/61-T, dated 01.04.1963 of the Ministry of Home Affairs.Click to Expand & Play
बहराइच: नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया कि सीबीआई का दुरुपयोग किया जा रहा है तथा उनके साथ राजनीतिक बदला चुकाने और कांग्रेस का किला बचाने के लिए आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन को खुला छोड़ दिया गया है क्योंकि पार्टी का मानना है कि वह उन्हें एवं भाजपा को लोकतांत्रिक तरीकों से नहीं रोक सकती है।
मोदी ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा 'मुझे लगता है कि अगले चुनाव में सपा, बसपा और कांग्रेस की तिकड़ी चुनाव के मैदान में नहीं आएगी। अगले चुनाव में तो मुझे लगता है कि सीबीआई, आईएम, यही लोग चुनाव का मोर्चा सम्भालेंगे ताकि वे कांग्रेस का मोर्चा बचा सकें।' भाजपा के प्रधानमंत्री प्रत्याशी ने आरोप लगाया कि उनके विरोधी कायरों की तरह पीछे से हमला कर रहे हैं। मोदी ने उन्हें लोकतांत्रिक रूप से लड़ने की चुनौती दी।
मोदी ने कहा कि एक के बाद एक जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं, ऐसा लगता है कि जो लोग मोदी को गुजरात में परास्त नहीं कर पाए और जिन्हें लगता है कि लोकतांत्रिक तरीके से तो भाजपा और मोदी को अब रोका नहीं जा सकता, उन्होंने दूसरे तौर-तरीके अपनाए हैं। कभी सीबीआई को पीछे लगा दो, कभी इंडियन मुजाहिदीन को खुली छूट दे दो।' मोदी ने आईएम का उल्लेख 27 अक्टूबर को उनकी पटना रैली के दौरान हुए सिलसिलेवार धमाकों को ध्यान में रखते हुए किया जिसमें सात लोग मारे गए और कई घायल हो गए। इन हमलों के पीछे आईएम को संदिग्ध माना जा रहा है।
भाजपा का आरोप रहा है कि केन्द्र मोदी को सुरक्षा मुहैया कराने में शिथिलता बरत रहा है।
मोदी ने चेतावनी के अंदाज में कहा 'बम, बंदूक और पिस्तौल के सहारे राजनीति करने वाले कान खोलकर सुन लें, हम दूसरी मिट्टी की पैदावार हैं। न हम आतंकवादियों से झुके हैं, न झुकने वाले हैं। हम आतंकवादियों को झुकाकर रहेंगे, जड़ से साफ करके रहेंगे।'
मोदी ने मजाकिया अंदाज में कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक मौसम बदल रहा है। जो लोग सत्ता के नशे में डूबे हुए हैं, उनके लिए सत्ता एक मौज का साधन बन गया। इन्होंने सत्ता के उपयोग अपने सुख और एशो-आराम के लिए किया है। ऐसे सब लोगों को भारी संकट का एहसास हो गया है। हमारा इतना विरोध इसलिए हो रहा है कि उनकी सत्ता जाने वाली है। आने वाले चुनावों में उनकी पराजय निश्चित है। उन्हें पता है कि दिल्ली में भाजपा की सरकार बन गई तो इस देश को तबाह करने वालों का ठिकाना कहां होगा, उन्हें पता है। इस देश को तबाह करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जाएगा।
मोदी ने कहा, जिस तरह वोट बैंक की राजनीति की जा रही है, इसके लिए मैं यूपी के उन नेताओं से पूछना चाहता हूं कि क्या कारण है कि आपने वोट बैंक की राजनीति के लिए हमारे दो विधायकों को जेल में बंद क्यों किया। वोट बैंक की राजनीति के कारण ये लोग गुनाहगारों को जेल में बंद नहीं करते।
मोदी ने अपने तीखे तेवर बरकरार रखते हुए कहा, जो लोग मोदी को गुजरात में परास्त नहीं कर पाए, तीन चुनावों में उन्हें मुंह की खानी पड़ी,जो अपनी इज्जत नहीं बचा पाए, जिन्हें लगता है कि लोकतांत्रिक तरीके से तो भाजपा को रोका नहीं जा सकता, उन्होंने दूसरे तरीके अपनाए हैं। कभी सीबीआई को पीछे लगा दो, कभी इंडियन मुजाहिदीन को छूट दे दो।... तो कान खोलकर सुन लें, कि हम दूसरी मिट्टी की पैदाइश है, हम आतंकवादियों से झुकने वाले नहीं है। हम आतंकवाद को साफ करके रहेंगे।
मोदी ने कहा, हिम्मत है तो लोकतात्रिक तरीके से मुकाबला करो, जनता के बीच जाओ पीछे से वार क्यों करते हो। हिन्दुस्तान के लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ हो रहा है। हमारे बिहार के भाई-बहन छठ पूजा मनाते हैं, लेकिन उसी छठ पूजा से पहले आतंकवादियों ने निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया। उन लोगों का यही गुनाह था कि वे भारत मां की जय बोलते थे। क्या लोकतंत्र में हिंसा को जगह होती है, बंदूक की राजनीति को जगह होती है, लोकतंत्र में हरेक को अपनी आवाज उठाने का अधिकार होता है। लेकिन इस देश में लोकतंत्र पर हमले हो रहे हैं।
मोदी ने केंद्र सरकार पर हमला जारी रखते हुए कहा, सूचना मंत्रालय ने एक एडवाइजरी जारी की है कि प्रधानमंत्री लालकिले से भाषण कर रहे थे, तो मीडिया वालों ने नरेंद्र मोदी को लाइव क्यों दिखाया। 15 अगस्त की घटना पर ये लोग आज आदेश कर रहे हैं। उन्हें प्रधानमंत्री की गरिमा की चिंता नहीं है। उन्हें चिंता इस बात की थी 27 अक्टूबर को मोदी पटना में और दिल्ली में 'शहजादे' भाषण दे रहे थे, लेकिन टीवी पर दिखाई भी मोदी दे रहे थे और सुनाई भी मोदी दे रहे थे। इससे कांग्रेस बौखला गई।
मोदी ने कहा कि दिल्ली के शहंशाह चाहे न चाहें, हम टीवी के स्क्रीन पर दिखाई दें या न दें, लेकिन हिन्दुस्तान के लोगों के दिलों में जगह बना चुका हूं। 60 साल में कोई बदलाव आया है? मोदी ने सवाल किया कि 60 साल में कांग्रेस ने क्या दिया। जनता ने बार-बार उन्हें चुनकर भेजा है, आपकी भलाई के लिए उन्होंने कुछ किया... बहुत हो चुका अब उनके जाने का वक्त आ चुका है।
मोदी ने कहा कि इन 60 सालों में उत्तर प्रदेश ने कई प्रधानमंत्री दिए, लेकिन राज्य का विकास नहीं हुआ। अकेला यूपी का ही विकास किया होता, तो देश अपने आप आगे बढ़ चुका है। इन्हें सिर्फ वोट बैंक की राजनीति में रुचि है। उन्हें और किसी काम में रुचि नहीं है। उन्होंने कहा कि गुजरात के गांवों में भी 24 घंटे बिजली आती है, लेकिन यूपी में बिजली का आना एक खबर है। यहां इंसान इंतजार कर रहा है कि बिजली कब आएगी। अखिलेश और आजम खान पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि बस इन्हीं दोनों के क्षेत्रों में बिजली आती है, बाकी यूपी में नहीं। शासक वह होता है, जो पहले जनता को देता है, फिर बचे तो खुद के लिए इस्तेमाल करता है।
यूपी ने हमसे लॉयन मांगे, काश वे हमसे बिजली मांगते, गिर की गाय मांगते, वे हमसे अमूल जैसे डेयरी नेटवर्क की समझ मांगते, लेकिन नहीं मांगा। इसके लिए समझ चाहिए कि जनता के हितों के लिए क्या होना चाहिए। यूपी में प्रतिस्पर्धा चलती है कि सबसे ज्यादा क्रिमिनल किसके खेमे में है, करप्शन की स्पर्धा चल रही है, आपकी समस्याओं के समाधान में इनकी रुचि नहीं है।
मोदी ने कहा, सपा-बसपा दोनों दिल्ली की सरकार को बचा रहे हैं। उनको पता है कि उनके समर्थन के बिना दिल्ली की सरकार नहीं चल सकती। इनके पास इतनी ताकत है कि दिल्ली की सरकार को झुका सकते हैं। वे बहराइच के लिए रेल मांगें, एयरपोर्ट मांगें, रोजगार मांगें तो मिल सकते हैं, लेकिन इन्होंने नहीं मांगा। सपा और बसपा इतना समर्थन के बावजूद भी कुछ नहीं मांग रहे हैं, बंगाल के लिए ममता दीदी दिल्ली सरकार से लड़ती हैं, ये सीबीआई से छुटकारा मांगते हैं। वे अपने बचाव के लिए मांग रहे हैं, प्रदेश की भलाई के लिए नहीं मांग रहे।
समाजवादी पार्टी पर अपना हमला जारी रखते हुए मोदी ने कहा कि हिन्दुस्तान के महान कलाकार (उनका इशारा अमिताभ बच्चन की ओर था) का प्रयोग उन्होंने 'यूपी में है दम.... ' के लिए किया और उसी महान कलाकार का प्रयोग हमने गुजरात पर्यटन के लिए किया। हमें व्यक्ति का सही उपयोग मालूम है।
मध्य प्रदेश की भी बीमारू राज्य में गिनती होती है, वहां की जनता ने बीजेपी को मौका दिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वहां किसानों तक सिंचाई का पानी पहुंचाया है। शिवराज ने कृषि क्षेत्र में क्रांति ला दी, जितनी 50 साल में बिजली बनी, उससे ज्यादा उन्होंने 10 साल में बनाई। उत्तर प्रदेश भी कठिनाइयों से बाहर निकल सकता है।
http://khabar.ndtv.com/news/india/i-have-made-places-in-peoples-heart-narendra-modi-371654
जेल में बंद लालू प्रसाद यादव नहीं मना रहे हैं छठ का पर्व
जेल में बंद बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी के मुखिया लालू यादव संभवत: वर्षों बाद पवित्र पर्व छठ नहीं मना रहे हैं, दूसरी ओर पटना में उनकी पत्नी राबड़ी देवी भी अकेले ही छठ का व्रत कर रही हैं।
गुवाहाटी, नई दिल्ली : गुवाहाटी हाई कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) पुलिस फोर्स नहीं है, इसलिए वह न तो अपराधों की जांच कर सकती है और न ही चार्जशीट दायर कर सकती है। कोर्ट के इस फैसले के बाद कई अहम मामलों को लेकर जारी जांच सवालों के घेरे में आ गए हैं। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने हाई कोर्ट द्वारा सीबीआई को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि केंद्र सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेगी। सीबीआई ने कहा है कि वह फैसले की स्टडी करने के बाद ही कुछ कह सकती है। फिलहाल कानूनी राय ली जा रही है।
असम में बीएसएनएल के कमर्चारी नवेंद्र कुमार के खिलाफ 2001 में सीबीआई ने आपराधिक षड्यंत्र रचने और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था, जिसके बाद उन्होंने संविधान के तहत सीबीआई के गठन को चुनौती देते हुए अपने खिलाफ दायर एफआईआर को खारिज करने की मांग की थी। हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने डिविजन बेच में याचिका दायर की।
जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी और जस्टिस इंदिरा शाह की बेंच सीबीआई के गठन को असंवैधानिक करार दिया और नवेंद्र के खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट को खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआई का गठन निश्चित जरूरत को पूरा करने के लिए 'कुछ समय' के लिए ही गृह मंत्रालय के संकल्प के जरिए किया गया था। वह प्रस्ताव न तो केंद्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही उसके साथ राष्ट्रपति की स्वीकृति का कोई आदेश था। लिहाजा, विवादित संकल्प विभागीय आदेश के अलावा कुछ भी नहीं है।
बेंच ने कहा कि एक अप्रैल 1963 को सीबीआई गठन के नियमों के अनुसार यह न तो दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिशमेंट (डीएसपीई) का अंग है और न ही हिस्सा। इसके अलावा डीएसपीई ऐक्ट 1946 के तहत सीबीआई पुलिस फोर्स की तरह व्यवहार नहीं कर सकती है। इन परिस्थितियों में सीबीआई द्वारा किसी युवक के खिलाफ मामला दर्ज करना और उसे गिरफ्तार करना अपराध है।
केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि इस फैसले के खिलाफ वह अपील करेगी। सिब्बल ने कहा कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने मुद्दे पर उनके साथ चर्चा की है और अपील दायर करने का फैसला किया गया है। इसके पहले कार्मिक राज्य मंत्री वी. नारायणसामी ने फैसले के नतीजे पर चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की।
अडिशनल सॉलीसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने कहा था, 'फैसला साफ तौर पर गलत है। इसे दरकिनार कर दिया जाना चाहिए। हम निश्चित तौर पर इसे चुनौती देने जा रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट में संभवत: सोमवार तक अपील दायर कर दी जाएगी।' नारायणसामी ने भी कहा कि हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ निश्चित तौर पर अपील की जाएगी। मंत्री ने कहा कि वह फैसले पर कोई टिप्पणी करने से पहले इसका अध्ययन करेंगे।
गुवाहाटी: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक चौंकाने वाले फैसले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को गैरकानूनी ठहरा दिया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में उस प्रस्ताव को रद्द कर दिया, जिसके तहत सीबीआई का गठन किया गया था। हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी की सभी कार्रवाइयों को भी असंवैधानिक करार दिया है। केंद्र सरकार जल्दी ही सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देगी।
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि सीबीआई का गठन निश्चित जरूरत को पूरा करने के लिए 'कुछ समय' के लिए ही किया गया था और गृह मंत्रालय का वह प्रस्ताव न केंद्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही उसके साथ राष्ट्रपति की स्वीकृति का कोई कार्यकारी आदेश है। कोर्ट ने कहा है कि अपराध की जांच करने वाली ऐसी एजेंसी, जिसके पास पुलिस बल की शक्तियां हों, उसकी स्थापना केवल एक कार्यकारी निर्देश के जरिये नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने कहा कि मामला दर्ज करने, आरोपियों को गिरफ्तार करने, तलाशी लेने जैसी सीबीआई की कार्रवाई संविधान की धारा-21 का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने कहा कि हम 1 अप्रैल, 1963 के उस प्रस्ताव को खारिज करते हैं, जिसके तहत सीबीआई की स्थापना की गई। सीबीआई, दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट यानी डीएसपीई का अंग नहीं है। कोर्ट ने कहा कि डीएसपीई कानून 1946 के तहत गठित एक पुलिस बल के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में इस प्रस्ताव को सिर्फ विभागीय निर्देश ही माना जा सकता है और उसे कानून के रूप में नहीं बदला जा सकता है।
किस बाबत आया यह फैसला
असम में बीएसएनएल के कमर्चारी नवेंद्र कुमार के खिलाफ 2001 में सीबीआई ने आपराधिक षडयंत्र रचने और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था, जिसके बाद नवेंद्र ने संविधान के तहत सीबीआई के गठन को चुनौती देते हुए अपने खिलाफ दायर एफआईआर को खारिज करने की मांग की। हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने उसकी याचिका खारिज कर दी।
नवेंद्र ने इसके बाद हाईकोर्ट की डबल जज बेंच में याचिका दायर की, जिसके बाद जस्टिस इकबाल अहमद तथा जस्टिस इंदिरा शाह ने यह फैसला सुनाते हुए सीबीआई के गठन को असंवैधानिक करार दिया। हाईकोर्ट ने नवेंद्र के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर की गई चार्जशीट तथा मामले की सुनवाई को खारिज कर दिया।
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The accused, including former telecom minister A Raja and top corporate executives, referred to the Gauhati HC holding as 'unconstitutional' ...
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Central Bureau of Investigation (CBI)
cbi.nic.in/
The national investigation agency for investigation and collection of criminal intelligence information.
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The Central Bureau of Investigation (CBI) is the foremost investigating police agency in India, an elite force which plays a role in public life and ensuring the ...
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Centre to challenge High Court verdict on CBI formation - The Hindu
www.thehindu.com › News › National
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2 days ago - 6: Gauhati High Court today ruled that the very process of setting up the Central Bureau of Investigation (CBI) was invalid. The high court said ...
Gauhati High Court rules CBI is 'unconstitutional' : India, News ...
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HC's verdict on CBI will have disastrous implications, says experts
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केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो
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केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) या सीबीआई भारत सरकार की प्रमुख जाँच एजेन्सी है। यह आपराधिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के मामलों की जाँच करने के लिये लगायी जाती है।
यह कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अधीन कार्य करती है। यद्यपि इसका संगठन फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन से मिलता-जुलता है किन्तु इसके अधिकार एवं कार्य-क्षेत्र एफ् बीआई कीतुलना में बहुत सीमित हैं। इसके अधिकार एवं कार्य दिल्ली विशेष पुलिस संस्थापन अधिनियम (Delhi Special Police Establishment Act), १९४६ से परिभाषित हैं। भारत के लिये सीबीआई ही इन्टरपोल की आधिकारिक इकाई है।
इतिहास[संपादित करें]
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की उत्पत्ति भारत सरकार द्वारा 1941 में स्थापित विशेष पुलिस प्रतिष्ठान से हुई है । उस समय विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का कार्य द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग में लेन-देन में घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करना था । विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का अधीक्षण युद्ध विभाग के जिम्मे था ।
युद्ध समाप्ति के बाद भी, केन्द्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने हेतु एक केन्द्रीय सरकारी एजेंसी की जरूरत महसूस की गई । इसीलिए 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम लागू किया गया । इस अधिनियम के द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का अधीक्षण गृह विभाग को हस्तांतरित हो गया और इसके कामकाज को विस्तार करके भारत सरकार के सभी विभागों को कवर कर लिया गया । विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का क्षेत्राधिकार सभी संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्तृत कर दिया गया और सम्बन्धित राज्य सरकार की सहमति से राज्यों तक भी इसका विस्तार किया जा सकता था । दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान को इसका लोकप्रिय नाम 'केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो' गृह मंत्रालय संकल्प दिनांक 1.4.1963 द्वारा मिला । आरम्भ में केन्द्र सरकार द्वारा सूचित अपराध केवल केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों द्वारा भ्रष्टाचार से ही सम्बन्धित था । धीरे-धीरे, बड़ी संख्या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के साथ ही इन उपक्रमों के कर्मचारियों को भी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन लाया गया । इसी प्रकार, 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन आ गए ।
संगठन और रैंक संरचना अधिक जानकारी: सीबीआई संगठनात्मक चार्ट और भारत में पुलिस रैंकों की सूची
सीबीआई ने एक निदेशक, पुलिस महानिदेशक या पुलिस (राज्य) के आयुक्त के रैंक के एक आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व में है. निदेशक सीवीसी अधिनियम 2003 के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के आधार पर चुना जाता है और 2 साल की अवधि है. सीबीआई में अन्य महत्वपूर्ण रैंकों आईआरएस द्वारा भी किया जा सकता है के रूप में आईपीएस अधिकारियों के रूप में अच्छी तरह से संभाला विशेष निदेशक, अतिरिक्त निदेशक, संयुक्त निदेशक, पुलिस उपमहानिरीक्षक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, उप अधीक्षक पुलिस. बाकी सीधे सीबीआई, उप निरीक्षक, सहायक उप निरीक्षक, हेड कांस्टेबल, वरिष्ठ कांस्टेबल और कांस्टेबल भर्ती कर रहे हैं.
सीबीआई की वार्षिक रिपोर्ट कर्मचारी के अनुसार आमतौर पर अनुसचिवीय कर्मचारी, पूर्व संवर्ग पदों है जो तकनीकी प्रकृति, कार्यकारी स्टाफ और ईडीपी स्टाफ के आम तौर पर कर रहे हैं के बीच विभाजित है. हिन्दी भाषा स्टाफ आधिकारिक भाषाओं में से विभाग के अंतर्गत आता है.
अनुसचिवीय कर्मचारी एलडीसी, UDC, अपराध आदि सहायकों कार्यकारी कर्मचारी कांस्टेबल, एएसआई, उप निरीक्षक, निरीक्षकों आदि ईडीपी कर्मचारी डाटा एंट्री ऑपरेटर, डाटा प्रोसेसिंग सहायकों, सहायक प्रोग्रामर, प्रोग्रामर और सर्व शिक्षा अभियान में शामिल
आलोचना[संपादित करें]
केन्द्रीय अनुसंधान ब्यूरो प्रायः विवादों और आरोपों से घिरी रहती है। इस पर केन्द्रीय सरकार के एजेंट के रूप में पक्षपातपूर्ण काम करने का आरोप लगताहै।
''''सुधार''''
'दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन'
सीआरपीसी की धारा 197 (जो न केवल सीबीआई को भी, लेकिन पुलिस के लिए लागू होता है) से पहले सरकारी मंजूरी अभियोजन पक्ष के लिए अनिवार्य बनाता है. [37] [39] 6 पूर्व सीबीआई निदेशकों के समूह ने सुझाव दिया है कि इस जरूरत में संशोधन करने के लिए और शक्ति लोकपाल को दी जानी चाहिए. [38]
सीआरपीसी की धारा 377 और 370, सरकार को अपील और आपराधिक मामलों में संशोधन की शक्ति प्रदान करते हैं. [40] सीआरपीसी की धारा 24 के तहत, सरकार द्वारा सरकारी वकीलों की नियुक्ति की शक्ति का प्रयोग किया है. [41] के लिए अनुरोध अपील और संशोधन सरकार द्वारा नीचे दिया गया है. [38]
6 पूर्व सीबीआई निदेशकों के एक समूह ने सुझाव दिया है कि सीबीआई को अपील फाइल और वकीलों की नियुक्ति की शक्ति दी जानी चाहिए. इसी तरह के अनुरोध पूर्व सीबीआई निदेशक UC मिश्रा ने सीबीआई पर स्थायी समिति के लिए बनाया गया था, लेकिन इसे ठुकरा दिया गया. [38]
एकल निर्देश सिद्धांत का संशोधन
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना की धारा 6A के कारण अधिनियम (DSPE), संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों और ऊपर के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू करने के लिए भी पूर्व अनुमति के करने के लिए संबंधित विभाग के मंत्री से लिया जाना है. यह एक निर्देश में कहा जाता है. ब्याज और अन्य कारणों के संघर्ष के कारण, यह महीनों के लिए आयोजित किया जाता है और एक परिणाम के रूप में, बड़े टिकट भ्रष्टाचार को प्रभावी ढंग से सीबीआई द्वारा कवर नहीं है. [37]
2012 में, 6 पूर्व सीबीआई निदेशक और फिर निदेशक एपी सिंह के एक समूह ने सुझाव दिया है कि सत्ता के लिए अनुमति देने के लिए (अगर सब पर आवश्यक) लोकपाल को दी जानी चाहिए. [38]
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 का संशोधन
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 का कहना है कि, कोई भी अदालत के संज्ञान लेने के लिए जब तक यह सक्षम प्राधिकारी द्वारा मंजूर की है सेवा से आरोपी लगाया दूर करेगा. [37]
6 पूर्व सीबीआई निदेशकों के एक समूह ने सुझाव दिया है कि इस शक्ति लोकपाल को दी जानी चाहिए. [38]
वाह्य सूत्र[संपादित करें]
अद्यतन भारतीय न्यायिक समाचार (Latest in Indian legal news)
গুয়াহাটি: সিবিআইয়ের অস্তিত্ব, এক্তিয়ারকে প্রশ্নের মুখে দাঁড় করিয়ে দিল গুয়াহাটি হাইকোর্টের এক রায়। শীর্ষ কেন্দ্রীয় তদন্ত সংস্থার গঠনকেই অসাংবিধানিক আখ্যা দিল বিচারপতি আই এ আনসারি ও বিচারপতি ইন্দিরা শাহকে নিয়ে গঠিত গুয়াহাটি হাইকোর্টের ওই বেঞ্চ। তাদের রায়ে বলা হয়েছে, সিবিআইয়ের অপরাধের তদন্ত করার ক্ষমতাই নেই। ওই রায়ের পর সিবিআইয়ের সন্দেহভাজনদের গ্রেফতার, অপরাধের তদন্ত ও চার্জশিট পেশ করার এক্তিয়ারই থাকছে না। তারা শুধু অভিযুক্ত, সন্দেহভাজনদের জিজ্ঞাসাবাদ করতে পারবে। বেঞ্চের মন্তব্য, সিবিআই কোনও পুলিশ বাহিনী নয়, তাদের কাজ শুধুই জেরা করা। প্রত্যাশিতভাবে যে সিবিআইকে রাজনৈতিকভাবে ব্যবহার করার অভিযোগে দেশের রাজনৈতিক দলগুলির মধ্যে চাপানউতোর হয়ে থাকে মাঝেমধ্যেই, তাকে আদালতের অসাংবিধানিক তকমা দেওয়াটাকে মেনে নিতে নারাজ সরকার। সোমবারই গুয়াহাটি হাইকোর্টের চাঞ্চল্যকর রায়ের বিরুদ্ধে সুপ্রিম কোর্টে যাচ্ছে কেন্দ্র।
http://www.abpananda.newsbullet.in/national/60/43335
সিবিআই তদন্ত অসাংবিধানিক, বলল আদালত |
নিজস্ব সংবাদদাতা • গুয়াহাটি ও নয়াদিল্লি |
সিবিআইয়ের তদন্ত চালানো, গ্রেফতার করা, চার্জশিট দেওয়ার অধিকার নেই বলে একটি মামলায় রায় দিল গুয়াহাটি হাইকোর্ট। হাইকোর্টের মতে, সিবিআই তদন্ত বা গ্রেফতার করলে, অথবা চার্জশিট দিলে তা সাংবিধানিক অধিকার ভঙ্গের সামিল। বিচারপতি ইকবাল আহমেদ আনসারি ও বিচারপতি ইন্দিরা শাহের বেঞ্চ জানিয়েছে, ১৯৬৩ সালে কেন্দ্রের এক প্রস্তাবের (রেজোলিউশন) মাধ্যমে সিবিআই তৈরি হয়। তাতে স্বাক্ষর করেছিলেন তদানীন্তন স্বরাষ্ট্রসচিব ভি বিশ্বনাথন। কিন্তু, সিবিআইকে নিয়ে কোনও আইন পাশ করা হয়নি। তাই তাদের তদন্ত চালানো, গ্রেফতার করা বা চার্জশিট দেওয়ার অধিকার নেই। সারা দেশে অসংখ্য মামলা রয়েছে সিবিআইয়ের হাতে। তাই গতকাল দেওয়া গুয়াহাটি হাইকোর্টের এই রায়ে সুপ্রিম স্থগিতাদেশ না দিলে অভূতপূর্ব আইনি ও সাংবিধানিক সঙ্কট দেখা দেবে বলে ধারণা সংশ্লিষ্ট সব শিবিরেরই। বিতর্কের সূত্রপাত কোথায়? ২০০১ সালে শিলচরে কর্মরত বিএসএন এল-এর কর্মচারী নবীন্দ্র কুমারের বিরুদ্ধে সিবিআই তহবিল তছরূপ ও প্রতারণার মামলা দায়ের করে। সিবিআই আদালতে তিনি দোষী সাব্যস্ত হন। ২০০৫ সালে নবীন্দ্র হাইকোর্টে একটি আর্জিতে (ডব্লিউপি(সি) ৬৮৭৭-২০০৫) বলেন, সিবিআইয়ের গঠন প্রক্রিয়াই অবৈধ। তাই, কারও বিরুদ্ধে তদন্ত চালানোর অধিকার সিবিআইয়ের নেই। ২০০৭ সালে সেই আবেদন খারিজ হয়। ২০০৮ সালে তিনি ফের একই আর্জি দায়ের করেন। সেই মামলাতেই এই রায়। কী বলা হয়েছে তাতে? বেঞ্চ জানিয়েছে, ১৯৪৩ সালে ব্রিটিশ-শাসিত ভারতে ঘুষ ও দুর্নীতির মতো অপরাধ রুখতে দিল্লি স্পেশ্যাল পুলিশ এসট্যাবলিশমেন্ট (ডিএসপিই) আইনের প্রস্তাব করা হয়। ১৯৪৬ সালের ৩০ নভেম্বর থেকে ডিএসপিই কার্যকরী হয়। তখনও তা অর্ডিন্যান্স ছিল। পরে আইন প্রণয়নের সময় একটি বিশেষ বিল ওই আইনের অন্তর্ভুক্ত করা হয়। ওই বিলে বলা হয়, বিশেষ পুলিশ বিভাগের অফিসারেরা প্রয়োজনে যে কোনও রাজ্যে তদন্ত চালাতে পারবেন। তবে, এই আইনে কোথাও 'সেন্ট্রাল ব্যুরো অফ ইনভেস্টিগেশন'-এর (সিবিআই) উল্লেখ ছিল না। ১৯৬৩ সালে স্বরাষ্ট্র মন্ত্রক ডিএসপিই-র অধীনে একটি প্রস্তাবের মাধ্যমে সিবিআই গঠন করে। ওই প্রস্তাবে স্বাক্ষর করেন তৎকালীন স্বরাষ্ট্রসচিব। কিন্তু, সিবিআই তৈরির পরেও তাদের নিয়ে কোনও আইন পাশ করা হয়নি। বিচারপতি আনসারি ও বিচারপতি শাহের বেঞ্চের মতে, পুলিশ রাজ্য সরকারের অধীনস্থ। তাই, কোনও রাজ্যের পুলিশের ক্ষমতা (এ ক্ষেত্রে দিল্লি পুলিশ) ধার করে গোটা দেশে তদন্ত চালানো বা গ্রেফতারির অধিকার সিবিআইয়ের নেই। এই প্রসঙ্গে সংবিধান তৈরির সমকালীন একটি বিতর্কের প্রসঙ্গও টানা হয়েছে। তখন স্থির করা হয়, 'সেন্ট্রাল ব্যুরো অফ ইনটেলিজেন্স অ্যান্ড ইনভেস্টিগেশন' গোটা দেশে অপরাধের ব্যাপারে জিজ্ঞাসাবাদ (এনকোয়ারি) করতে পারলেও তদন্ত (ইনভেস্টিগেশন) করতে পারবে না। তদন্ত ও চার্জশিট দেওয়ার অধিকার থাকবে একমাত্র পুলিশের হাতে। বিচারপতি আনসারি ও বিচারপতি শাহের রায় অনুযায়ী, 'যে হেতু সিবিআই কোনও আইনের অধীনে তৈরি হয়নি, তা কেবল একটি প্রস্তাবের ভিত্তিতে গড়া সংস্থা, তাই তারা কোনও তদন্ত চালাতে, কাউকে আটক বা গ্রেফতার করতে অথবা চার্জশিট দিতে পারে না। যদি দেয় তবে তা সংবিধানের ২১ নম্বর ধারা অনুযায়ী সংশ্লিষ্ট ব্যক্তির জীবন ও স্বাধীনতার অধিকার ভঙ্গের সামিল হবে।' গুয়াহাটি হাইকোর্টে নবীন্দ্রের দাবির বিপক্ষে সিবিআইয়ের কৌঁসুলিরা সওয়াল করেছেন। কিন্তু কেন্দ্র কোনও হলফনামা দেয়নি। গতকালের রায়ের পরে নড়েচড়ে বসতে বাধ্য হয়েছে তারা। কারণ, সিবিআই তদন্তের বৈধতা নিয়ে প্রশ্ন উঠলে সারা দেশে অসংখ্য মামলার তদন্ত থমকে যেতে বাধ্য। তার মধ্যে রয়েছে টুজি, কয়লা কেলেঙ্কারির মতো গুরুত্বপূর্ণ মামলাও। সোমবার এই রায়ের বিরুদ্ধে সুপ্রিম কোর্টে যাবে কেন্দ্র ও সিবিআই। গুয়াহাটি হাইকোর্টের রায় খতিয়ে দেখতে আইনজীবীদের একটি দল গঠন করেছেন সিবিআই অধিকর্তা রঞ্জিত সিন্হা। কেন্দ্রীয় আইন মন্ত্রকের প্রতিনিধিদের সঙ্গেও বৈঠক করেছেন সিবিআই কর্তারা। তাৎপর্যপূর্ণ বিষয় হল, নানা ঘটনায় রাজ্য পুলিশের উপরে আস্থা না থাকলে সিবিআই তদন্তের আদেশ দিয়েছে বিভিন্ন হাইকোর্ট এবং সুপ্রিম কোর্ট। এই রায় সেই মামলাগুলিতেও সিবিআই তদন্তের বৈধতা নিয়ে প্রশ্ন তুলে দিয়েছে। কয়লা কেলেঙ্কারির মামলায় তদন্তের ক্ষেত্রে সিবিআইয়ের স্বাধীনতার প্রশ্নটির মীমাংসা করতেও উদ্যোগী হয়েছে শীর্ষ আদালত। অতিরিক্ত সলিসিটর জেনারেল পি পি মলহোত্রের কথায়, "সিবিআইয়ের গঠন আইন মেনেই হয়েছে। সুপ্রিম কোর্টও একাধিক বার সিবিআইকে তদন্তকারী সংস্থা হিসেবে স্বীকৃতি দিয়েছে। ১১ নভেম্বর এই রায়ের বিরুদ্ধে কেন্দ্র ও সিবিআই সুপ্রিম কোর্টে যাবে।" এক শীর্ষ সিবিআই কর্তা জানিয়েছেন, আগেও সিবিআইয়ের অস্তিত্ব নিয়ে প্রশ্ন উঠেছিল। তখন এই কেন্দ্রীয় গোয়েন্দা সংস্থার পক্ষেই রায় দিয়েছিল সুপ্রিম কোর্ট। এ বারও সেই শীর্ষ আদালতের দিকে তাকিয়ে আছেন তাঁরা। |
http://www.anandabazar.com/8desh1.html
Central Bureau of Investigation
Central Bureau of Investigation केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो Kendriya Anveshan Bureau | |||
Common name | Central Bureau of Investigation | ||
Abbreviation | CBI | ||
Seal of the Central Bureau of Investigation | |||
Motto | Industry, Impartiality, Integrity | ||
Agency overview | |||
---|---|---|---|
Formed | 1 April 1963 | ||
Preceding agency | Special Police Establishment (SPE) (1941) | ||
Employees | Sanctioned: 6590 Actual: 5666 Vacant: 924 (14%) as on 31 December 2011[1] | ||
Annual budget | 303.79 crore (US$46 million)(2011-2012)[1] | ||
Legal personality | Governmental: Government agency | ||
Jurisdictional structure | |||
Federal agency | India | ||
Governing body | Government of India | ||
General nature |
| ||
Operational structure | |||
Headquarters | New Delhi, India | ||
Agency executive | Ranjit Sinha, Director | ||
Parent agency | Department of Personnel and Training | ||
Child agency | Interpol National Central BureauIndia branch | ||
Regions | |||
Facilities | |||
Branchs | 52 | ||
| |||
Website | |||
cbi.nic.in | |||
The Central Bureau of Investigation (CBI) is the foremost investigating police agency in India, an elite force which plays a role in public life and ensuring the health of the national economy. It is under the jurisdiction of the Government of India. The CBI is involved in major criminal probes, and is the Interpol agency in India. The CBI was established in 1941 as the Special Police Establishment, tasked with domestic security. It was renamed the Central Bureau of Investigation on 1 April 1963. Its mottois "Industry, Impartiality, Integrity".
Agency headquarters is in the Indian capital, New Delhi, with field offices located in major cities throughout India (including Mumbai). The CBI is overseen by the Department of Personnel and Training of the Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions of the Union Government, headed by a Union Minister who reports directly to the Prime Minister. While analogous in structure to the FBI, the CBI's powers and functions are limited to specific crimes by Acts (primarily the Delhi Special Police Establishment Act, 1946). The current CBI director is Ranjit Sinha.
Contents
[hide]- 1 History
- 2 Organisational structure
- 3 Selection committee
- 4 Infrastructure
- 5 Jurisdiction, powers and restrictions
- 6 Directors (1963 – present)
- 7 Right to Information (RTI)
- 8 Criticism
- 9 Autonomy
- 10 Convictions
- 11 In popular culture
- 12 References
- 13 External links
History[edit]
Special Police Establishment (SPE)[edit]
The Central Bureau of Investigation traces its origins to the Special Police Establishment (SPE) (Hindi: विशेष पुलिस संस्थापन, Vishesh Police Sansthapan), established in 1941 by the government. The functions of the SPE were to investigate bribery and corruption in transactions with the War and Supply Department of India, set up during World War II with its headquarters in Lahore. The superintendent of the War Department and the SPE was Khan Bahadur Qurban Ali Khan, who later became governor of the North West Frontier Province at the creation of Pakistan. The first legal advisor of the War Department was Rai Sahib Karam Chand Jain. After the end of the war, there was a continued need for a central governmental agency to investigate bribery and corruption by central-government employees. Rai Sahib Karam Chand Jain remained its legal advisor when the department was transferred to the Home Department by the 1946 Delhi Special Police Establishment Act.
The SPE's scope was enlarged to cover all departments of the Government of India. Its jurisdiction extended to the Union Territories, and could be further extended to the states with the consent of the state governments involved. Sardar Patel, first Deputy Prime Minister of free India and head of the Home Department, desired to weed out corruption in erstwhile princely states such as Jodhpur, Rewa and Tonk. Patel directed Legal Advisor Karam Chand Jain to monitor criminal proceedings against the dewans and chief ministers of those states.
The SPE acquired its current name by a Home Ministry resolution dated 1 April 1963, and the bureau was consolidated. With the 1968 bank nationalisation, banks and their employees also fell within the remit of the CBI.
CBI takes shape[edit]
The CBI established a reputation as India's foremost investigative agency with the resources for complicated cases, and it was requested to assist the investigation of crimes such as murder, kidnapping and terrorism. The Supreme Court and a number of high courts in the country also began assigning such investigations to the CBI on the basis of petitions filed by aggrieved parties. In 1987, the CBI was divided into two divisions: the Anti-Corruption Division and the Special Crimes Division.
D. P. Kohli[edit]
The founding director of the CBI was D. P. Kohli, who held the office from 1 April 1963 to 31 May 1968. Before this, Kohli was Inspector-general of police for the Special Police Establishment from 1955 to 1963 and held law-enforcement positions in Madhya Bharat (as chief of police), Uttar Pradesh and local central-government offices. For distinguished service, Kohli was awarded thePadma Bhushan in 1967.
Kohli saw in the Special Police Establishment the potential to growing into a national investigative agency. He nurtured the organisation during his long career as inspector general and director and laid the foundation on which the agency grew.
Organisational structure[edit]
The CBI is headed by a director, an IPS officer with a rank of Director General of Police orCommissioner of Police (State). The director is selected based on the CVC Act 2003, and has a two-year term. Other ranks in the CBI which may be staffed by the IPS or the IRS[2][3] are Special director, Additional director, Joint director, Deputy inspector general of police, senior superintendent of police and superintendent of police. Additional superintendent of police, deputy superintendent of police, sub-inspector, assistant sub-inspector, head constable, senior constable and Constable are recruited through SSC or through deputation from Police and Income Tax Departments.
The CBI is subject to five ministries of the Government of India:[4]-
- Ministry of Home Affairs: Cadre clearance
- DoPT: Administration, budget and induction of non IPS officers
- Union Public Service Commission: Officers above the rank of Deputy SP
- Law and Justice Ministry: Public prosecutors
- Central Vigilance Commission: Anti-corruption cases
Selection committee[edit]
According to the CVC Act 2003, the committee recommends a panel of officers for director of the CBI. It consists of:
- Chief Vigilance Commissioner – chairperson
- Vigilance Commissioners – members
- Secretary, Home Ministry – member
- Secretary (Coordination and Public Grievances) in the Cabinet Secretariat – member
When making recommendations, the committee considers the views of the outgoing director.[5] Final selection is made by theAppointments Committee of the Cabinet from the panel recommended by the selection committee.[5][6]
Infrastructure[edit]
CBI headquarters is a 186 crore (US$28 million), state-of-the-art 11-story building in New Delhi, housing all branches of the agency.[7]The 7,000-square-metre (75,000 sq ft) building is equipped with a modern communications system, an advanced record-maintenance system, storage space, computerised access control and an additional facility for new technology. Interrogation rooms, cells, dormitories and conference halls are provided. The building has a staff cafeteria with a capacity of 500, men's and women's gyms, a terrace garden and bi-level basement parking for 470 vehicles. Advanced fire-control and power-backup systems are provided, in addition to a press briefing room and media lounge.[7]
The CBI Academy in Ghaziabad, Uttar Pradesh (east of Delhi) began in 1996.[8] It is about 40 kilometres (25 mi) from the New Delhi railway station and about 65 kilometres (40 mi) from Indira Gandhi International Airport. The 26.5-acre (10.7 ha) campus, with fields and plantations, houses the administrative, academic, hostel and residential buildings. Before the academy was built a small training centre at Lok Nayak Bhawan, New Delhi, conducted short-term in-service courses. The CBI then relied on state police-training institutions and the Sardar Vallabhbhai Patel National Police Academy in Hyderabad for basic training courses for deputy superintendents of police, sub-inspectors and constables.
The Academy accommodeates the training needs of all CBI ranks. Facilities for specialised courses are also made available to the officials of the state police, central police organisations (CPOs), public-sector vigilance organisations, bank and government departments and the Indian Armed Forces.
Jurisdiction, powers and restrictions[edit]
The legal powers of investigation of the CBI are derived from the DSPE Act 1946, which confers powers, duties, privileges and liabilities on the Delhi Special Police Establishment (CBI) and officers of the Union Territories. The central government may extend to any area (except Union Territories) the powers and jurisdiction of the CBI for investigation, subject to the consent of the government of the concerned state. Members of the CBI at or above the rank of sub-inspector may be considered officers in charge of police stations. Under the act, the CBI can investigate only with notification by the central government.
Relationship to state police[edit]
Maintaining law and order is a state responsibility as "police" is a State subject, and the jurisdiction to investigate crime lies with the state police exclusively . The CBI being a Union subject may investigate:
- Offenses against central-government employees, or concerning affairs of the central government and employees of central public-sector undertakings and public-sector banks
- Cases involving the financial interests of the central government
- Breaches of central laws enforceable by the Government of India
- Major fraud or embezzlement; multi-state organised crime
- Mulit-agency or international cases
Recommendations and Proposed amendments[edit]
The Estimates Committee 1991-92 recommended in its 13th Report to the Lok Sabha on April 6, 1992, the "enactment of a new law laying down the organizational structure of the CBI, functions to be discharged by it, types of offences which it can investigate and providing for conferment of powers of Police laid down in Criminal Procedure Code, 1973, on the members of the CBI." It also recommended a constitutional amendment to provide for extension of the CBI to any State without the consent of its government. A draft Constitution Amendment Bill and a draft Bill on the CBI were sent to the Home Ministry on June 12, 1990.[9]
High Courts and the Supreme Court[edit]
The High Courts and the Supreme Court have the jurisdiction to order a CBI investigation into an offense alleged to have been committed in a state without the state's consent, according to a five-judge constitutional bench of the Supreme Court (in Civil Appeals 6249 and 6250 of 2001) on 17 Feb 2010. The bench ruled:
Being the protectors of civil liberties of the citizens, this Court and the High Courts have not only the power and jurisdiction but also an obligation to protect the fundamental rights, guaranteed by Part III in general and under Article 21 of the Constitution in particular, zealously and vigilantly.
—Five-judge constitutional bench of the Supreme Court of India, [10]
The court clarified that this is an extraordinary power which must be exercised sparingly, cautiously and only in exceptional situations.[10][11]
Directors (1963 – present)[edit]
Name[12] | Period |
---|---|
D. P. Kohli | 1963–68 |
F. V. Arul | 1968–71 |
D. Sen | 1971–77 |
S. N. Mathur | 1977 |
C. V. Narsimhan | 1977 |
John Lobo | 1977–79 |
R. D. Singh | 1979–80 |
J. S. Bajwa | 1980–85 |
M. G. Katre | 1985–89 |
A. P. Mukherjee | 1989–90 |
R. Sekhar | 1990 |
Vijay Karan | 1990–92 |
S. K. Datta | 1992–93 |
K. V. R. Rao | 1993–96 |
Joginder Singh | 1996–97 |
R. C. Sharma | 1997–98 |
D. R. Karthikeyan | 1998 |
T. N. Mishra | 1998–99 |
R. K. Raghavan | 4 Jan 1999 – 30 Apr 2001 |
P. C. Sharma | 30 Apr 2001 – 6 Dec 2003 |
U. S. Misra | 6 Dec 2003 – 6 Dec 2005 |
Vijay Shanker Tiwari | 12 Dec 2005 – 31 Jul 2008 |
Ashwani Kumar | 2 Aug 2008 – 30 Nov 2010 |
Amar Pratap Singh | 30 Nov 2010 – 30 Nov 2012 |
Ranjit Sinha | 30 Nov 2012 - present |
Right to Information (RTI)[edit]
CBI is exempted from the provisions of the Right to Information Act. This exemption was granted by the government on 9 June 2011 (with similar exemptions to the National Investigating Agency (NIA), the Directorate General of Income Tax Investigation and the National Intelligence Grid (Natgrid)) on the basis of national security. It was criticized by the Central Information Commission and RTI activists, who said the blanket exemption violated the letter and intent of the RTI Act.[13] The exemption was upheld in Madras High Court.
Criticism[edit]
Corruption[edit]
Because of the CBI's political overtones,[14] it has been exposed by former officials such as Joginder Singh and B. R. Lall (director and joint director, respectively) as engaging in nepotism, wrongful prosecution and corruption. In Lall's book, Who Owns CBI, he details how investigations are manipulated and derailed.[15] Corruption within the organisation[16][17] has been revealed in information obtained under the RTI Act,[18] and RTI activist Krishnanand Tripathi has alleged harassment from the CBI to save itself from exposure via RTI.[19]
Political interference[edit]
Normally, cases assigned to the CBI are sensitive and of national importance. It is standard practice for state police departments to register cases under its jurisdiction; if necessary, the central government may transfer a case to the CBI. The agency has been criticised for its mishandling of several scams.[20][21][22] It has also been criticized for dragging its feet investigating prominent politicians, such as P. V. Narasimha Rao, Jayalalithaa, Lalu Prasad Yadav, Mayawati and Mulayam Singh Yadav; this tactic leads to their acquittal or non-prosecution.[23]
Bofors scandal[edit]
In January 2006 it was discovered that the CBI had quietly unfrozen bank accounts belonging to Italian businessman Ottavio Quattrocchi, one of those accused in the 1986 Bofors scandal which tainted the government of Rajiv Gandhi.[24] The CBI was responsible for the inquiry into the Bofors case. Associates of then-prime minister Rajiv Gandhi were linked to alleged payoffs made during the mid-1980s by Swedish arms firm AB Bofors, with US$40 million in kickbacks moved from Britain and Panama to secret Swiss banks. The 410 howitzers purchased in the US$1,300 million arms sale were reported to be inferior to those offered by a French competitor.
The CBI, which unfroze 21 crore (US$3.2 million) in a London bank in accounts held by Bofors, accused Quattrocchi and his wife Maria in 2006 but facilitated his travel by asking Interpol to take him off its wanted list on 29 April 2009. After communications from the CBI, Interpol withdrew the red corner notice on Quattrocchi.[25]
Hawala scandal[edit]
A 1991 arrest of militants in Kashmir led to a raid on hawala brokers, revealing evidence of large-scale payments to national politicians. The Jain hawala case encompassed former Union ministers Ajit Kumar Panja and P. Shiv Shankar, former Uttar Pradesh governor Motilal Vora, Bharatiya Janata Party leader Yashwant Sinha. The 20 defendants were discharged by Special Judge V. B. Gupta in the 650-million case, heard in New Delhi.
The judge ruled that there was no prima facie evidence against the accused which could be converted into legal evidence. Those freed included Bharatiya Janata Party president L. K. Advani; former Union ministers V. C. Shukla, Arjun Singh, Madhavrao Scindia, N. D. Tiwari and R. K. Dhawan, and former Delhi chief minister Madan Lal Khurana. In 1997 a ruling by late Chief Justice of India J. S. Verma listed about two dozen guidelines which, if followed, would have ensured the independence of the investigating agency. Sixteen years later, successive governments circumvent the guidelines and treat the CBI as another wing of the government. Although the prosecution was prompted by a public-interest petition, the cases concluded with no convictions. In Vineet Narayan & Othrs v Union of lndia AIR 1996 SC 3386, the Supreme Court ruled that the Central Vigilance Commission should have a supervisory role over the CBI.[26]
Priyadarshini Mattoo murder case[edit]
In this case Santosh Kumar Singh, the alleged murderer of a 22-year-old law student, was acquitted for what the judge called "deliberate inaction" by the investigating team. The accused was the son of a high-ranking officer in the Indian Police Service, the reason for the CBI's involvement. The 1999 judgment noted that "the influence of the father of the accused has been there".
Embarrassed by the judgment, CBI Director R. K. Raghavan appointed two special directors (P. C. Sharma and Gopal Achari) to study the judgement. The CBI appealed the verdict in Delhi High Court in 2000, and the court issued a warrant for the accused. The CBI applied for an early hearing in July 2006; in October the High Court found Singh guilty of rape and murder, sentencing him to death.[citation needed]
Sister Abhaya[edit]
This case concerns the 27 March 1992 death of a nun who was found in a water well in the Saint Pius X convent hostel in Kottayam, Kerala. Five CBI investigations have failed to yield any suspects.
Sohrabuddin case[edit]
The CBI has been accused of supporting the ruling Congress Party against its opposition, the BJP. The CBI is investigating the Sohrabuddin case in Gujarat; Geeta Johri, also investigating the case, claimed that the CBI is pressuring her to falsely implicate former Gujarat minister Amit Shah.[27]
Sant Singh Chatwal case[edit]
Sant Singh Chatwal was a suspect in CBI records for 14 years. The agency had filed two charge sheets, sent letters rogatory abroad and sent a team to the US to imprison Chatwal and his wife from 2–5 February 1997. On 30 May 2007 and 10 August 2008 former CBI directors Vijay Shankar and Ashwani Kumar, respectively, signed no-challenge orders on the imprisonment. Later, it was decided not to appeal their release.
This closed a case of bank fraud in which Chatwal had been embroiled for over a decade. Along with four others, Chatwal was charged with being part of a "criminal conspiracy" to defraud the Bank of India's New York branch of 28.32 crore (US$4.3 million). Four charges were filed by the CBI, with Chatwal named a defendant in two. The other two trials are still in progress. RTI applicant Krishnanand Tripathi was denied access to public information concerning the closed cases. The Central Information Commission later ordered the CBI to disclose the information; however, the CBI is exempt from the RTI Act (see above). Chatwal is a recipient of the Padma Bhushan.[28][29][30]
Malankara Varghese murder case[edit]
This case concerns the 5 December 2002 death of T. M. Varghese (also known as Malankara Varghese), a member of the Malankara Orthodox Church managing committee and a timber merchant. Varghese Thekkekara, a priest and manager of the Angamali diocese of the rival Jacobite Syrian Christian Church (part of the Syriac Orthodox Church), was charged with murder and conspiracy on 9 May 2010. Thekkekara was not arrested after he was charged, for which the CBI was criticised by the Kerala High Court and the media.[31]
Bhopal gas tragedy[edit]
The CBI was publicly seen as ineffective in trying the 1984 Bhopal disaster case. Former CBI joint director B. R. Lall has said that he was asked to remain soft on extradition for Union Carbide CEO Warren Anderson[32] and drop the charges (which included culpable homicide). Those accused received two-year sentences.[33]
2G spectrum scam[edit]
The UPA government allocated 2G spectrum to corporations at very low prices through corrupt and illegal means. The Supreme Court cited the CBI many times for its tardiness in the investigations;[34][35] only after the court began monitoring its investigations[36][37][38]were high-profile arrests made.
Indian coal allocation scam[edit]
This is a political scandal concerning the Indian government's allocation of the nation's coal deposits to private companies by Prime Minister Manmohan Singh, which cost the government 10673.03 billion (US$160 billion). CBI director Ranjit Sinha submitted an affidavit in the Supreme Court that the coal-scam status report prepared by the agency was shared with Congress Party law ministerAshwani Kumar "as desired by him" and with secretary-level officers from the prime minister's office (PMO) and the coal ministry before presenting it to the court.[39]
Autonomy[edit]
Demanding independent investigations, the CBI said that although it deferred to the government's authority in non-corruption cases the agency felt that sufficient financial and administrative powers (including a minimum three-year tenure to ensure "functional autonomy") were required by the director.
"As such, it is necessary that the director, CBI, should be vested with ex-officio powers of the Secretary to the Government of India, reporting directly to the minister, without having to go through the DoPT," the agency said, adding that financial powers were not enough and it wanted a separate budget allocation.[40]
Convictions[edit]
The CBI has a high conviction rate:
Year | Conviction rate |
---|---|
2011 | 67%[1] |
2010 | 70.8%[41] |
2009 | Not available |
2008 | 66.2%[42] |
2007 | 67.7%[43] |
In popular culture[edit]
- The CBI franchise is a series of Malayalam films directed by K. Madhu, scripted by S. N. Swami and starring Mammootty asSethurama Iyer (a CBI officer). By 2011 four films were released in the series, and a fifth is in production. The first four are Oru CBI Diary Kurippu (1988, a CBI diary), Jagratha (1989), Sethurama Iyer CBI (2004) and Nerariyan CBI (2005).
- S.P. Balasubrahmanyam plays CBI officer Laxminarayan in the 1993 Tamil film Thiruda Thiruda, where CBI chases a stolen RBI safe.
- Zayed Khan plays CBI officer Vishal Malhotra in the 2003 Hindi film, Chura Liyaa Hai Tumne.
- Arjun plays CBI officer Vivek Varma in the Tamil film, Bommalattam.
- Vikram plays Kanthasamy (a CBI officer) in the 2009 Tamil film, Kanthaswamy.
- Shankar Nag plays a CBI officer in the film CBI Shankar.
- Akshay Kumar stars in Special 26, inspired by a March 19, 1987 robbery in which a group (posing as CBI officers) conducted an income-tax raid on the Opera House store of Tribhovandas Bhimji Zaveri in Mumbai.
References[edit]
- ^ ab c "cbi_annual_report_2011". p. 62. Archived from the original on 2012-05-03. Retrieved 14 February 2013.
- ^ http://cbi.nic.in/aboutus/adminmanual/APPENDIX_3.pdf
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- ^ "CBI annual report 2008". cbi.gov.in.
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