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Saturday, August 28, 2010

दोस्तों ने गिर्दा के गीत गाते दी अंतिम विदाई

दोस्तों ने गिर्दा के गीत गाते दी अंतिम विदाई

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जनकवि गिर्दा का पार्थिव शरीर आज पंचतत्व में विलीन हो गया. गिर्दा के गीत गाते हुए उनके मित्रों ने उन्हें विदाई दी. गिर्दा के आवास पर आज सुबह से ही उनके प्रशंसक इकट्ठा होने लगे थे. सबने एक एक कर उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि के जरिए अपनी श्रद्धांजलि प्रकट की.

श्रद्धांजलि देने वालों में हिंदुस्तान के संपादक नवीन जोशी, बीबीसी के राजेश जोशी, आंदोलन के साथी शमशेर बिष्ट, पीसी तिवारी, हेमंत बिष्ट, पत्रकार दिनेश मानसेरा, राजीव लोचन शाह, नवीन बिष्ट, पदमश्री शेखर पाठक, विपिन चंद्रा, राहुल शेखावत, जहांगीर राजू, जहूर आलम, घनश्याम भट्ट, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, बीजेपी एमएलए खडक सिंह बोरा समेत कई जनप्रतिनिधि, समाजिक संगठनों से जुड़े पदाधिकारी, ट्रेड यूनियन के नेता, प्रशासनिक अधिकारी, जज आदि शामिल थे.

गिरदा

गिरदा

: गिरदा की आवाज में सुनें फैज की एक रचना : उत्तराखंड से एक बुरी खबर आ रही है. रंगकर्मी, सोशल एक्टिविस्ट और जनकवि गिरीश चंद्र तिवारी उर्फ गिरदा का आज 68 साल की उम्र निधन हो गया. पेट में अल्सर की वजह से उन्हें तीन दिन पहले हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अल्सर फट जाने और इनफेक्शन की वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका. हालांकि डाक्टरों ने आपरेशन कर उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की थी.

चिपको आंदोलन, उत्तराखंड अलग राज्य आंदोलन समेत कई जनांदोलनों में बेहद सक्रिय रहे इस जनकवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से लाखों लोगों को जागरूक किया. सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाने में वे सदा आगे रहे. गिरदा के परिवार में उनका एक बेटा व पत्नी हैं. निधन आज सुबह दस बजे हल्द्वानी के निजी अस्पताल में हुआ.

गिरदा ने युवावस्था से ही उत्तराखंड की पीड़ा को अपनी कविताओं में उकेरना प्रारंभ कर दिया था. 1974 का वन बचाओ आंदोलन हो या 1984 का नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन या 1994 का निर्णायक उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन, सभी में गिरदा ने अपनी कविताओं के जरिए जनजागरण किया. गिरदा अपनी कविताओं से जनसमस्याओं के समाधान के लिए बने शासन-प्रशासन के तंत्र पर तीखे तंज भी कसते रहे हैं. उत्तराखंड की कोई भी समस्या हो, कोई भी आंदोलन हो, कोई भी पीड़ा हो, गिरदा अपनी कविता के माध्यम से सब जगह उपस्थित रहे. उम्र अधिक हो जाने के बावजूद भी उनकी कलम नहीं रुकी.

गिरीश चंद्र तिवारी गिरदा का जन्म 1945 में ज्योली हवालबाग में श्री हंसादत्त तिवाडी तथा श्रीमती जीवन्ती तिवाडी के घर पर हुआ. छठें दशक में पीलीभीत में पीडब्ल्यूडी में नौकरी के दौरान गिरदा का संपर्क कवि सम्मेलनों के माध्यम से अनेक हस्तियों से हुआ. 28 नवंबर 1967 को वह गीत एवं नाट्य प्रभाग से जुड़े. 1977 में भारतेंदु हरिश्चंद्र का 'अंधायुग' नाटक निर्देशित किया. गिरदा द्वारा लिखित नाटक 'नगाड़े खामोश हैं' काफी चर्चित है.

1978 में गिरदा की सामाजिक कविताओं का संकलन 'हमारी कविता के आंखर' नाम से प्रकाशित हुआ. 1999 में दुर्गेश पंत के साथ गिरदा ने शिखरों के स्वर नामक कविता संग्रह संपादित किया. प्रसिद्ध वीरगाथा गायक झुसिया दमाई पर गिरदा ने 400 पेज का एक शोध तैयार किया. इसमें बताया गया कि तीजन बाई की पण्डवानी और झुसिया दमाई की वीरगाथाओं में काफी समानताएं हैं. गिरदा को उत्तराखंडी प्रवासियों के संगठन यूएएनए द्वारा अमेरिका बुलाकर सम्मानित किया गया.

गिरदा की आवाज में फैज की रचना ''हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, एक खेत नहीं एक देश नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे...'' को सुनने के लिए क्लिक करें... काकेश की कतरनें

गिरीश तिवारी गिरदा के क्रांतिकारी संबोधन, विचारों व कुछ गीतों को आप इन वीडियो पर क्लिक करके देख सुन सकते हैं...

Comments (9)Add Comment
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written by Bhaskar Upreti, August 26, 2010
BEEMAR wale Girda rukhsat hue hai, VICHAR wale Girda amar rahainge.
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written by v}Sr cgqxq.kk] ikSM|h, August 26, 2010
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written by anurag dwary, August 23, 2010
ये क्या बात हुई गिरदा ...
अभी तो दोस्ती हुई थी .... आपने वायदा किया था ... अगली बार आपके साथ घंटों बैठने का वक्त भी दिया था ...
आप ताउम्र किसी से नहीं हारा ... फिर अल्सर की क्या बिसात थी ...
क्या लिखूं ... लिखते भी नहीं बन रहा ...
बस आपकी लाइनें याद आ रही हैं ... फिर आई बरखा ऋतु लाई ... नव जीवन जल धार ...
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written by narayan pargain, August 23, 2010
girda ka jana uttarkhand k liya bura hai wo sabhi ko hastay tha aur sochnay par bhi majbur kar detay thay aaj unka antim sankar hua to sabhi ki akhay bhar ayi .....har koi unkay janay par ro raha tha kyo ki unkay dwaraa juti gayi shorat aaj unki shav yatray mai deknay ko mil.....smilies/sad.gif
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written by charu tiwari, August 22, 2010
गिर्दा का जाना हम सबके लिये असहनीय है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने उत्तराखंड की आंदोलन की परंपरा को नये आयाम दिये। आंदोलनों को स्वर देने वाले गिर्दा की आवाज उनके लिये थी जो बोल नहीं सकते। उनकी आवाज हमेशा आम जन के हकों को पाने के लिये प्रतिकार के रूप में हमेशा मेहनतकश और आंदोलनरत जनता के साथ रही। यह आवाज उनकी खामोशी के बाद और सुनी-समझी जायेगी। वर्षों तक, सदियों तक। गिर्दा को अश्रुपूर्ण श्रद्वांजलि। आज दिल्ली में विभिन्न संगठनों ने गढ़वाल भवन में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद किया। बहुत ही गमगीन माहौल में लोगों ने लोगों ने उन गीतों और कविताओं का जिकz किया जिसमें वे नई चेतना का रास्ता दिखाते रहे हैं। गिर्दा आपका अपनत्व, प्यार, स्नेह, हमें तब-तब आपकी याद दिलायेगा जब-जब हम आपके उन बिताये पड़ावों से गुजरेंगे, जिसने हम सबकों चेतना का बड़ा पफलक दिया। आपके स्वर वैसे ही रहेंगे-

हम ओड, बारूड़ी, कुलि, कबाड़ी,
जब य दुनि हं हिसाब ल्यूलो,
एक हांग निं मांगू, पफांग नि मांगू,
खाता-खतौनी क हिसाब ल्यूलो।

..............................................

मेरी हाड~नकि बनि छू य कुर्सी,
जेमज भैबैर कर छां तुम राज,
कैकि बाबूकि निहुनि य कुर्सी,
तुमरि मैवाद छु पांचे साल

...............................................

कस होलो उत्तराखंड, कस हमार नेता,
कस होलो पधान गौंक, कसि हलि व्यवस्था,
जड़ि-कंजड़ि उखेलि सबुकि, पिफर पफैसाल करूल,
उत्तराखंड ल्यल, उकड़ि मन कस बनूलो।


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written by arun sharma, August 22, 2010
jaise hi din me khabar lagi ki girda nahi rahe , viswas nahi hua, jan jan me chetna jagane wala khud so gaya, uttrakhand andolan ke dauran aur uske baad bhi kai maukon par unko suna , ab vah nirbheek aawaj sant ho gayi hai. girda ke saath narendra singh negi ki jugalbandi sahityapremion ko jhakjhor deti thee.tum kahin nahi gaye ho girda, hamesha hamare beech rahoge apne geeton ke madhyam se.
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written by विजय वर्धन उप्रेती, August 22, 2010
उत्तराखण्ड के लोकगायक और जनसंघर्षों को अपने गीतों में पिरौने वाले गिरीश चन्द्र तिवारी गिर्दा हमेशा हमेसा के लिए हमे छोड़ कर चले गये। ताउम्र अपने गीतों से जनसंघर्षों को आगे बढ़ाने वाले गिर्दा लोकगायक कलाकार होने के साथ ही एक लेखक भी थे। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में गिर्दा के गीतों ने आंदोलन की अलख जगाये रखी। एक कलाकार होने के साथ ही गिर्दा उस व्यवस्था के विरोधी भी थे। जिसमें शासक वर्ग जनता का खून चूसते रहते है। इस महान लोकगायक ने कई दफा अपने गीतों से सत्ता के खूनी और पूंजीवादी चरित्र का भी पर्दाफाश किया। गिर्दा एक जनकवि होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। जिन्दगी भर उन्होनें समाज के कमजोर तबके की बेहतरी के लिए संघर्ष किया। जिस सपने को गिर्दा ने जिन्दगी भर देखा और उसका पूरा होना भले ही अभी शेष है। लेकिन गिर्दा का समाज के लिए खुद को मिटा देने का जज्बा ही है कि उनकी मौत की खबर सुनते ही उनके चाहने वाले सदमें में हैं। गिर्दा ने पर्वतीय समाज के दुख.तकलीफों को इतनी बखूबी से गीतों में पिरोया किए सुनने वालों को उनके गीतों में खुद की पीढ़ा नजर आने लगी। गिर्दा की गणना उन कलाकारों में होती है। जो कला के जरिये समाज को बेहतर बनाने में लगे रहते है। शायद इसिलिए गिरीश तिवारी गिर्दा जैसे लोगों को सिर्फ एक कलाकार के खांचें में फिट करना सही भी नही है।

विजय वर्धन उप्रेती

अध्यक्षए हिमालयन जर्नलिस्ट एसोसिएशनए पिथौरागढए उत्तराखण्ड
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written by ravishankar vedoriya 9685229651, August 22, 2010
nam ankho se unhe bhavbini sradanjali arpit bagban unki atma ko shanti pradan kare
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written by sanjay, August 22, 2010
Bhagwan Girda ji ki Aatma ko Shanti de..
Hari Om

'सेल' के पूर्व चेयरमैन की किताब से खुले कई राज

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किताब : कवर पेज

किताब : कवर पेज

: इंदिरा गांधी के 'योग गुरु' चाहते थे स्टील की हेराफेरी : भिलाई की एक कंपनी, एक मुख्यमंत्री और उनके भाई के कारनामों का खुलासा : सत्ताधारी लोग कैसे 'सेल' से लाभ उठाते हैं, इसका विस्तार से है जिक्र : सत्ता के अनैतिक दबाव के कारण तत्कालीन सेल चेयरमैन ने ले ली थी लंबी छुट्टी : स्टील लाबी ने इंदिरा गांधी काल की सबसे 'युवा ताकतवर राजनीतिक हस्ती' को अपने प्रभाव में ले लिया था :
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हवाई पट्टी के हवा सिंह

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: मीडिया पर कहानी : दूसरे महायुद्ध के समय बनी यह हवाई पट्टी आठ लोगों की जान की इस क़दर दुश्मन हो जाएगी, यह उसे क्या, किसी भी को नहीं मालूम था। लग रहा था कि जान अब गई कि तब गई। बस जहाज के उस जीप से टकरा जाने भर की देर थी। दोनों पायलट लगातार एक साथ गालियां और भगवान, दोनों उच्चारते जा रहे थे। सुबह का समय था। लग रहा था गांव के सारे लोग हवाई पट्टी पर ही बसने आ गए हों।

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...खुद खबर है पर दूसरों की लिखता है...

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: भड़ास4मीडिया पर आज शाम पढ़ेंगे दयानंद पांडेय की मीडिया पर केंद्रित एक और कहानी 'हवाई पट्टी के हवा सिंह' : बहुत महीन है अखबार का मुलाजिम भी / खुद खबर है पर दूसरों की लिखता है.... राजेश विद्रोही के इस शेर को दयानंद पांडेय कभी - कभी झुठलाने की हठ तो नहीं पर कोशिश ज़रूर करते दीखते हैं। पहले उपन्यास 'अपने-अपने युद्ध', फिर 'मुजरिम चांद' कहानी और अब आज शाम को प्रस्तुत करने जा रहे हैं 'हवाई पट्टी के हवा सिंह' कहानी । दयानंद पांडेय की यह तीनों ही रचनाएं मीडिया जगत के दैनंदिन व्यवहार की कहानी कहते हुए हमें ऐसे लोक में ले जाती हैं जहां लोग रचना के मार्फ़त कम ही ले जाते हैं।

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''तेरा जीवन, तेरे शब्द'' का विमोचन

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'भारतीय समाज' के संस्थापक-संपादक व विख्यात पत्रकार स्व. मेघराज खटेड़ की प्रथम पुण्य तिथि के अवसर पर उनके व्यक्तित्व एवं सृजन पर आधारित पुस्तक ''तेरा जीवन, तेरे शब्द'' का विमोचन किया गया। समारोह के प्रमुख वक्ता दैनिक राष्ट्रीय महानगर, कोलकाता के संपादक प्रकाश चंडालिया थे। समारोह को स्वामी रामनिवास महाराज ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शहरकाजी सैयद अयूब अशरफी और समाजसेवी प्रेमसिंह चौधरी थे।

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'शाहजहांपुर की दास्तान' का विमोचन

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यूपी के शाहजहांपुर जिले के युवा इतिहासकार अम्बरेश मिश्रा की पुस्तक ''शाहजहांपुर की दास्तान'' का क्रान्ति दिवस 9 अगस्त पर विमोचन किया गया. समारोह का आयोजन शाहजहांपुर टाउनहाल में स्थित शहीदद्वार पर किया गया था.

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सबसे सच्चा आदमी उम्र भर बोलता रहा झूठ...

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पत्रकारिता में ढेर सारे क्लर्क टाइप लोग आ गए हैं जो यस सर यस सर करने के अलावा और आंख-नाक के सीध में चलने के सिवा, कुछ नहीं जानते, और न करते हैं, और न ही कर सकते हैं. पर पत्रकारिता तो फक्कड़पन का नाम है. आवारगी का पर्याय है. सोच, समझ, संवेदना का कमाल है.

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क्षितिज शर्मा का कहानी पाठ और परिचर्चा 13 को

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पीपुल्‍स विजन एवं हिन्‍द युग्‍म ने संयुक्‍त रूप से 'एक शाम एक कथाकार' कार्यक्रम का आयोजन किया है. इसमें क्षितिज शर्मा का कहानी पाठ होगा. एक परिचर्चा भी आयोजित है. स्थान है- गांधी शांति प्रतिष्‍ठान, दीनदयाल उपाध्‍याय मार्ग, नई दिल्‍ली.

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प्रेमचंद की कहानियां समय-समाज की धड़कन

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: प्रेमचंद जयंती समारोह-2010 : आम आदमी तक पहुंची प्रेमचंद की कथा परंपरा : राजस्‍थान प्रगतिशील लेखक संघ और जवाहर कला केंद्र की पहल पर इस बार जयपुर में प्रेमचंद की कहानी परंपरा को 'कथा दर्शन' और 'कथा सरिता' कार्यक्रमों के माध्‍यम से आम लोगों तक ले जाने की कामयाब कोशिश हुई, जिसे व्‍यापक लोगों ने सराहा। 31 जुलाई और 01 अगस्‍त, 2010 को आयोजित दो दिवसीय प्रेमचंद जयंती समारोह में फिल्‍म प्रदर्शन और कहानी पाठ के सत्र रखे गए थे। समारोह की शुरुआत शनिवार 31 जुलाई, 2010 की शाम प्रेमचंद की कहानियों पर गुलजार के निर्देशन में दूरदर्शन द्वारा निर्मित फिल्‍मों के प्रदर्शन से हुई। फिल्‍म प्रदर्शन से पूर्व प्रलेस के महासचिव प्रेमचंद गांधी ने अतिथियों का स्‍वागत करते हुए कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं में व्‍याप्‍त सामाजिक संदेशों को और उनकी कहानी परंपरा को आम जनता तक ले जाने की एक रचनात्‍मक कोशिश है यह दो दिवसीय समारोह।

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