Prabhash Joshi Defends BRAHAMANISM
Indian Holocaust My Father`s Life and time- Two
Palash Biswas
I have always been writing that the Gandhian Ideologues are the Best agents of Indian Manusmriti Apartheid Zionist Ruling Hegemony. Indian Hindi Icon Prabhash Joshi is famous for Promoting only Brahmins during his Tenure as Editor Recruiter. He chose all the Unworthy persons while posing as Secular and Progressive to deny and kill the Careers of Hundreds of SC, OBC, ST, Minority and Non Brahmin Journalists. While criticised, he would name some of the Quota Reservation names including a gandhian Resident editor belonging to the Sangh Parivar.
I have already written a write up in HANS about his KARISHMA to Kill me as a Journalist. No one seemed to believe.
But I know well his roots while he had no chance where he reached until he supported RSS Hindutva Ideology as his GOD fathers belonged to RSS! Like all the gandhian, RSS and Cong people, he talks and writes for Janapad and AAm Admi. But his Janpad and Bharat is always ruled by Brahmins only.He always quote PARAMPARA to justify MANUSMRITI RULE.
Pl see this and judge yourself!
संवाद
सती प्रथा हमारी परंपरा
सुप्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी से आलोक प्रकाश पुतुल की बातचीत
http://raviwar.com/baatcheet/B25_interview-prabhash-joshi-alok-putul.shtml
देश के वरिष्ठ पत्रकार और 'जनसत्ता' के संपादक प्रभाष जोशी क्रिकेट के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने के लिए उस पर लिखते हैं. उनकी राय में भारतीय क्रिकेटर स्वाभाविक रूप से वह कौशल अर्जित करते हैं, जिसकी जरूरत क्रिकेट में होती है, कुछ वैसे ही जैसे ब्राह्मणों ने ब्रह्म से, वायवीय दुनिया से अपने संपर्क के पारंपरिक कौशल के कारण सिलिकॉन वैली में अपना झंडा गाड़ा. प्रभाष जी का मानना है कि भारत में सती प्रथा समेत तमाम मुद्दों को अपनी परंपरा में देखने की जरूरत है. यहां पेश है, उनसे हाल ही में की गई बातचीत.
• आज देश में हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष पुरुष माने जाने वाले प्रभाष जोशी एक विदेशी खेल पर इतने लहालोट रहते हैं, कई लोगों को माजरा समझ में नहीं आता. धोती-कुर्ता और ‘अपन’ वाले प्रभाष जोशी के इस क्रिकेट प्रेम का राज क्या है ?
इंदौर में मैं पला-पनपा. इंदौर में बहुत प्रसिद्ध टीम हुआ करती थी होलकर टीम और इंदौर शहर के लिए वो टीम गौरव का प्रतीक थी. क्योकि उसमें सी.के.नायडू जैसे खिलाड़ी थे, जो कि भारतीय क्रिकेट के प्रथम पुरूष हैं. उसमें मुस्ताक अली जैसे खिलाड़ी थे, जिनसे अधिक रोमांटिक खिलाड़ी तो आज तक नहीं हुआ. उसमें चंदू सरवटे, भाऊ साहेब निर्मलकर थे, जिन्होंने किसी भी हिन्दूस्तानी द्वारा सबसे ज्यादा 443 रन बनाने का रिकार्ड कायम किया था; खंजू रामनेकर और भाऊ निवसरकर, ऐसे लोग उसमें थे. तो एक प्रकार से स्थानीय गौरव की भावना अपने को रिलेट करती थी. फिर मैं क्रिकेट खेलता भी था और अगर मैंने विनोबा का रास्ता ना पकड़ा होता तो शायद मैं टेस्ट क्रिकेट खेलता और रिटायर होता.
मुझे लगा कि क्रिकेट खेलने के बाद दूसरा सबसे करीबी प्रेम दिखाने का तरीका उसके बारे में लिखना होता है. लेकिन लिखना भी मैंने कोई अपने आप शुरू किया ऐसा नहीं है. ‘नई दुनिया’ ने पहली बार खेल का कवरेज चालू किया तो मैं वो पेज निकाला करता था. उस पेज में यह था कि नायडू साहब का कुछ छपे, जगदाले साहब का कुछ छपे तो इनकी तरफ से मैं घोस्ट राइटिंग किया करता था. उस घोस्ट राइटिंग के कारण मुझको लगा कि यह मामला लिखकर आगे बढ़ाया जा सकता है.
अब मैं पाता हूं कि मुझे देखने में जो आनंद आता है, उसे लिखकर मैं बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्त कर सकता हूं. क्योंकि मैं जहां भी जाता हूं, कई महिलाएं मुझे मिलती हैं, वे कहतीं हैं कि हम तो क्रिकेट समझते नहीं लेकिन आप जो लिखते हैं, उसे पढ़ने के लिए हम क्रिकेट पर ध्यान देते हैं. और तो और हिंदी के प्रसिद्ध कवि अपने कुंवर नारायण ने मुझसे कहा कि मैं क्रिकेट देखता नहीं हूं, समझता नहीं हूं. मैं क्रिकेट को आपके गद्य के कारण पढ़ता हूं. अब अगर आपको चारों तरफ से इस तरह का रिस्पांस मिलता है और अगर वो आपका पहला शौक है तो फिर आपकी इच्छा होती है कि आप उसे लगातार करते रहें.
कई बार मेरे मन में यह आता है कि अब तो देख लिया, अब क्या लिखना. मुझे याद आता है कि मैं एक बार विदेश यात्रा पर था तो एक महिला ने मुझे चिट्ठी लिखी कि कल फलां-फलां मैच हुआ, उसमें ऐसी-ऐसी स्थिति हुई. आज सबेरे मैंने इस इरादे से अखबार खोला कि देखते हैं उसमें आप क्या कहते हैं. और आपका लेख न देखकर मुझे बहुत निराशा हुई. तो कम से कम जिस पर सब लोग रुचि रखते हैं, उन पर तो आप जरूर लिखा कीजिए. अब उस महिला को मैं जानता नहीं हूं. यूं भी अपने यहां महिलाओं का क्रिकेट में शौक उतना नहीं है, जितना दूसरे देशों में हो सकता है. लेकिन अगर आपको इतनी व्यापक पाठकीय रुचि और प्रतिक्रिया मिलती है तो यार, लिखने वाला इसके अलावा किसके लिए लिख रहा है ? इसलिए मैं वो करता रहता हूं.
खेल राजाओं का
• एक सवाल उठता है बार बार कि क्रिकेट सामंती खेल है. देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा मानता है कि क्रिकेट को अनावश्यक रूप से बाज़ार के दबाव के कारण बढ़ावा मिला है, उसके बनिस्बत फुटबाल या हॉकी या जो दूसरे बेहतर खेल हो सकते थे, उनको दरकिनार किया गया.
अपने देश में जिस तरह से यह खेल शुरू हुआ है, उस कारण से उसकी यह छवि बनी हुई है. अपने देश में क्रिकेट लाए अंग्रेज, वो अंग्रेज जो आप पर राज करते थे. सबसे पहले उनके साथ किसने खेलना मंजूर किया ? पारसियों ने, जो कि आपकी एक बहुत ही छोटी अल्पसंख्यक कम्युनिटी थी. अंग्रेजों ने उनको इसलिए क्रिकेट में लगाया कि इन लोगों को वो भारतीयों से फोड़ कर, अलग कर के फिर इनका इस्तेमाल कर सकें. उसके बाद यह महाराजाओं की टीमों का खेल बना. उसके बाद पटियाला महाराजा, बड़ौदा के महाराजा, होलकर महाराजा इस तरह से महाराजा लोग इसमें आए. बनारस में रहने वाले महाराज कुमार ऑफ विजयानगरम् ने इसमें रुचि ली क्योंकि वो क्रिकेट के जरिए अंग्रेजों से अपने संबंध ठीक करना चाहते थे. और तो और, क्रिकेट के दूसरे नंबर के दुनिया के सबसे बड़े प्रामाणिक खिलाड़ी रणजीत सिंह जी महाराज कुमार ऑफ जामनगर, वो भी क्रिकेट इसलिए खेलते थे क्योंकि वो अंग्रेजों का खेल था और इसके जरिए वे अपनी रियासत की रक्षा कर सकते थे. इसलिए एक सज्जन ने उन पर पुस्तक भी लिखी है ‘बैटिंग फॉर द एम्पायर’ यानी साम्राज्य के लिए वो खेलते थे.
यह गौरतलब है कि रणजीत सिंह जी इंग्लैंड की टीम से खेले और उनके भतीजे दिलीप सिंह जी, जिनके नाम पर अपने यहां एक प्रतियोगिता भी चलती है; वो जब क्रिकेट खेलने को आए तो इस हालत में थे कि वो भारत के लिए खेल सकते थे और उनको भारत का कप्तान बनाया जाता. लेकिन रणजीत सिंह ने उनको कहा कि तुम इंग्लैंड के लिए खेलो और वो सबसे पहले इंग्लैंड के लिए खेले.
इंग्लैंड के लिए खेलते हुए रणजी ने पहले ही मैच में सेंचुरी बनाई थी. ऐसे में दिलीप सिंह के ऊपर ये दबाव था कि वो भी सेंचुरी बनाएं. तो उन्होंने भी बनाई थी. इसका सबसे मजेदार नतीजा ये निकला कि मंसूर अली खान पटौदी के पिता इफ्तिखार अली पटौदी इंग्लैंड में खेलते थे. वो पहले इंग्लैंड के लिए ही खेले. वो 1932 की बॉडी लाइन सीरीज में थे और जॉर्डिन के साथ नहीं थे. जॉर्डिन वो कैप्टन था, जिसने बॉडी लाईन बॉलिंग इन्वेंट की थी. ये उससे सहमत नहीं थे. तो इसलिए जॉर्डिन ने इनको साइड लाइन कर दिया था.
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रणजी ने और दिलीप सिंह ने इंग्लैंड के लिए खेलते हुए पहले टेस्ट में सेंचुरी बनाई, इसलिए इफ्तिखार अली पटौदी भी इंग्लैंड के लिए खेले और पहले टेस्ट में सेंचुरी बनाई. वो दिन भर खेलते रहे और शाम को 105 रन पर थे. जब वो 105 रन पर थे तो आखिर ओवर शुरू हुआ. उसी समय वो बल्ला लेकर पिच को जगह-जगह से ठपकाने लगे. तो डॉन ब्रैडमैन उनके पास से निकले. डॉन ब्रैडमैन ने कहा “what are you patting at Pat ?” पटौदी को जैसे Pat कहते थे, इनको भी कहते थे. तो डॉन ब्रैडमैन ने कहा- क्या कर रहे हो. तो उसने कहा कि “I am trying to judge the pace of the wicket.” (मैं पिच की स्पीड को समझने की कोशिश कर रहा हूं.) तो डॉन ब्रैडमैन ने कहा कि “It has changed five times you came.” क्योंकि दिन भर वो यही करते रहे क्योंकि सेंचुरी बनाना जरूरी था.
खैर, जब उनका इंग्लैंड का कैरियर खत्म हुआ तो 1946 में पहली बार वो भारत के कप्तान बने इंग्लैंड के टूर पर. वे इंग्लैंड के खिलाड़ियों को भारत के खिलाड़ियों से बेहतर जानते थे. भारत के खिलाड़ियों के तो नाम भी नहीं जानते थे.
आम आदमी का प्रवेश
पहले पोरबंदर को कप्तान बनाया, फिर नवाब इफ्तिखार खान पटौदी को बनाया. दोनों तरफ राजाओं को कप्तान बनाया गया और मैदान पर सीके नायडू ने सबसे पहले टेस्ट में कप्तानी की थी. राजा के पास मर्सीडीज ज्यादा थी और रोल्स रायस ज्यादा थी, रन नहीं थे. इसलिए सीके नायडू को खिलाया गया. सीके नायडू तो बेचारे साधारण परिवार के आदमी थे और बहुत अच्छे एथलीट थे.
मैंने उनको साठ वर्ष की उम्र में खो-खो मैच में चीयर करते हुए देखा. खो-खो की एक बहुत अच्छी लड़की है महाराष्ट्रीयन. इंदौर की थी. उसका पैर मुड़ गया खेलते हुए. सीके नायडू मैदान पर आए और उसको कहा- बैठ. उसको बिठाया और पांव को खींचा और कहा कि- जा खेल. यानी वो फिजिकल चीजों को इतना अच्छा जानते थे.
सीके नायडू साधारण आदमी, मुश्ताक अली तो पुलिस का बेटा, और भी साधारण थे. विजय हजारे वो बिल्कुल पुलिस के यानी साधारण परिवार के आदमी. एकमात्र पैसे वाला आदमी था तो वो विजय मर्चेंट. वो ठाकरसी मिल के मालिक हुआ करते थे.
खिलाड़ी तो सब के सब जमीन से आते थे, छोटे गांव से आते थे और उनके कप्तान या टीम को चलाने वाले राजा-महाराजा होते थे. इसलिए आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को लगा कि ये खेल तो राजा-महाराजाओं का खेल है, उन्होंने इसको हटाया.
हॉकी भी अंग्रेज ही लाए थे, कोई अपना खेल तो है नहीं. फुटबाल तो सारे यूरोप के साधारण, बहुत ही साधारण लोगों का खेल हैं. वहां का सबसे लोकप्रिय खेल यही है. फुटबाल और हॉकी भी अंग्रेज ही लाए लेकिन इन दोनों खेलों को राज का संरक्षण नहीं था. इसमें सिर्फ साधारण लोग खेलते थे. इसलिए हमने यह माना कि ये तो जनता का खेल है और क्रिकेट जो है वो राजा-महाराजाओं का खेल है.
आखिरी राजा-महाराजा जो देश के लिए खेला, वो था अपना नवाब मंसूर अली खान पटौदी. इसको एक वोट देकर, चेयरमैन का वोट देकर नवाब पटौदी को विजय मर्चेंट ने बाहर किया और अजीत वाडेकर को कप्तान बनाया गया.
अजीत वाडेकर पहली बार एक टूर पर जाकर बाहर से दो सीरीज जीतकर लाया. तब से क्रिकेट का जो लोकतांत्रिकीकरण हुआ है, वो गजब का है. उसमें अब ऐसे-ऐसे लोग खेलने के लिए आते हैं, जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं जा सकता था. अब ये विनोद कांबली... कांबली गाड़ी साफ करने वाले क्लीनर का बेटा है. वो अपने यहां विकेट कीपर था, वो किसका बेटा था? ढोली का. अभी भी उसके पिता हरियाणा में कहीं ढोल बजाते हैं. यह सब बहुत ही साधारण, बहुत ही साधारण परिवारों से आए हुए लोग हैं. अब बाजार क्या इसको पुश कर कर रहा है ? बाजार हर उस चीज को पुश करता है, जो उसका सामान बेचने में उसकी सहायता कर सकता है.
मान लीजिए आज फुटबाल इस देश का सबसे लोकप्रिय खेल हो जाए, वो फुटबाल के लिए एडवरटाईज करेंगे. हॉकी इस देश का सबसे लोकप्रिय खेल हो जाए तो सारा बाजार उसको बढ़ाने में लग जाए. इंग्लैंड ने तो क्रिकेट के खेल का आविष्कार ही किया लेकिन आज भी इंग्लैंड में फुटबाल को जितने विज्ञापन मिलते हैं और जितने प्रायोजक मिलते हैं और फुटबाल खिलाड़ी जितने मालामाल हैं, उतना क्रिकेट खेलने वाले नहीं हैं. क्योंकि क्रिकेट को वहां तीसरे नंबर का दर्जा है. फुटबाल है, टेनिस है और उसके बाद क्रिकेट का नंबर आता है.
अपने यहां राष्ट्रीय कारणों से क्रिकेट की लोकप्रियता रही है. यानी इनका खेल के इतिहास से लेना देना नहीं है, अपनी राष्ट्रीयता का सवाल है. पहली बार सीके नायडू ने एमसीसी के विरूद्ध मुंबई में 155 रन बनाए, उसके पहले दिन अर्न गाय अरली नाम के एमसीसी के खिलाड़ी ने आठ छक्के समेत करीब सवा सौ रन बनाए. सीके नायडू ने 11 छक्के मारे और 14 चौव्वे मारे उस दिन. सारे देश में ये फैल गया कि एक हिन्दूस्तानी एक अंग्रेज को क्रिकेट के खेल में मार सकता है. उस दिन से देश के मन में ये भावना पैदा हुई कि अगर इसको राष्ट्रीय समर्थन मिलेगा तो हम अंग्रेजो को पछाड़ सकते है. इसलिए सीके नायडू को मैं भारतीय क्रिकेट का प्रथम पुरूष मानता हूं क्योकि उनके नाम लेते ही जैसी सनसनी हो जाती थी. बंबई में, कलकत्ते में, मद्रास में वो 1926 की एक इनिंग के कारण लोकप्रिय हो गये. 1926 में वो 31 बरस के थे. वो 1895 में जन्मे थे. तो उनके कारण एक तरह का राष्ट्रीय जज्बा पैदा हो गया.
जब भारत में एमसीसी की टीम आई तो गांधी जी के पास लोग गये. गांधी जी ने अपना नाम एमसीसी के टीम के नीचे लिख दिया था. ये जो क्रिकेट के खेल में राष्ट्रीयता की भावना अपने यहां पैदा हुई, वो दूसरे खेलों में नहीं थी. हॉकी में हालांकि हम हर मैडल जीत कर आते थे लेकिन हॉकी में अंग्रेज तो कही थे ही नहीं तो दूसरों को हराने का कोई मतलब नहीं था.
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अंग्रेज क्रिकेट के बादशाह थे और उनको अगर हम क्रिकेट में हरा सकते हैं तो हम बेहतर टीम हो सकते है. ये जो राष्ट्रीय भावना है, इस कारण से अपने यहां क्रिकेट इतना लोकप्रिय है.
लगान और स्लमडॉग मिलेनियर
• राजा-महाराजा, बाजार, कॉरपोरेट और राष्ट्रीयता का जो ये पूरा परिदृश्य बनता है, उसमें ‘लगान’ जैसी फिल्में बनती हैं और बाज़ार उस राष्ट्रीयता को फिर से भुनाता है.
इस देश ने ‘लगान’ फिल्म बहुत देखी और आपको मालूम है कि ‘लगान’ फिल्म आस्कर के लिए भेजी गई थी. आस्कर के अवार्ड में इंग्लिश लोगो का बोलबाला नहीं है. वहां अमरीकियों का बोलबाला है. इसलिए क्रिकेट वाली फिल्म को वहां उतना प्रश्रय नहीं मिला, जितना ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ को मिला. ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ की कथा महामंदी से मारे जा रहे अमरीका के लिए आशा की किरण की तरह थी कि हम फिर से लबालब करोड़पति की तरह हो सकते हैं, ये उसके पीछे भावना थी. अब ‘लगान’ जैसी फिल्म हमें क्या संदेश देती है ? राष्ट्रीयता का देती है न. अपन साधारण लोगों का, क्रिकेट के बादशाह और हम पर राज करने वाले बादशाहों पर विजय का संदेश देती है. यानी उसमें भी क्रिकेटीय superiority या क्रिकेटीय excellence यानी सर्वश्रेष्ठता का सवाल नही है. इसमें भी राष्ट्रीयता का सवाल है. आप पाकिस्तान से खेलते हैं और आपने वर्ल्डकप में पाकिस्तान को मार दिया तो सारे देश में ऐसा जश्न मनता है, जैसे वर्ल्डकप जीत गये हों. बल्कि मुझे कई लोग मिले कि हमारा वर्ल्डकप तो उसी दिन हो गया, जिस दिन इंडिया ने पाकिस्तान को हराया. संयोग से हर विश्वकप के मैच में भारत ने पाकिस्तान को हराया है. तो अपनी राष्ट्रीयता की भावना अब इंग्लैंड से उतनी नही जागती जितनी की पाकिस्तान से.
क्रिकेट, मुसलमान और देशभक्ति
• क्रिकेट में पाकिस्तान को लेकर जिस तरह से उन्माद फैलता है, जिस तरह की राष्ट्रीयता का माहौल तैयार किया जाता है, उसमें बाजार के साथ-साथ सांप्रदायिकता की एक खास भूमिका नजर आती है. बाबरी मस्जिद टूटने के बाद से इस भूमिका को और स्पष्टता के साथ देखा-समझा जा सकता है. ऐसे में क्रिकेट में इस तरह की राजनीति की भूमिका को आप किस तरह देखते हैं ?
आपको याद होगा, बाबरी मस्जिद के पहले शिवसेना ने पिच खोद दी थी. तब बाबरी मस्जिद गिरी नहीं थी. शिवसेना वालों की पाकिस्तान के साथ खेलने के बारे में जो आपत्ति है, वो इसलिए है क्योंकि वो भारत के मुसलमानों को भारत के हिन्दूओं को हराने के साधन की तरह देखते हैं. उनको लगता है कि पाकिस्तानी टीम यहां आती है तो सारे के सारे मुसलमान उसको सपोर्ट करते है. अब इस तर्क का आप क्या करेंगे ?
आपकी टीम इंग्लैंड जाती है तो आप के जितने भी लोग ब्रिटिश नागरीक हो गये है, वो वहां जाकर ब्रिटेन की टीम के लिए चीयर नहीं करते है, वो आपकी टीम के लिए चीयर करते है. जिस देश को छोड़ आए है, जिस देश की नागरिकता भी छोड़ दी. उस देश के मूल के आप हैं, इसलिए अपनी टीम को आप चीयर करते है. अब अगर एक मुसलमान पाकिस्तान की टीम को चीयर करता है तो आप को आपत्ति क्यों होनी चाहिए ? ब्रिटेन वाले कहेंगे कि ये कैसे हिन्दूस्तानी हैं, जो यहां हमारी धरती पर आकर रहते हैं, हमारी धरती पर पले-पनपे हैं, फूले-फले हैं और ये इंडिया की टीम को चीयर करते है. वो ये दलील दे सकते है और उनकी दलील ठीक होगी कि नहीं ?
तो जो उन्माद है, वो भारत-पाकिस्तान की प्रतिद्वंद्विता के कारण है. इसका हिन्दूत्व डॉमिनेंद से ज्यादा लेना-देना नहीं है. वीर सावरकर ने हिन्दूत्व में बहुत पहले ये कहा कि आप अगर कल किसी से लड़ोगे तो क्रिश्चियन और मुसलमान आपकी सेना के खिलाफ हो जायेंगे. यूरोप के दो उदाहरण उन्होंने दिए.
आज तक आपने देख लिया कि तीन युद्ध हो गये पाकिस्तान से, ऐसा कभी नहीं हुआ कि मुसलमानों की बस्ती ने पाकिस्तान की मदद करनी चालू कर दी. एक जगह ऐसा नहीं हुआ तो फिर आप उनकी निष्ठा पर संदेह क्यों करते हैं ?
कौशल वाली कौम
भारतीय क्रिकेट टीम के कई सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी मुसलमान हैं. यानी वर्ल्डकप में भारत का झंडा लेकर जाता हुआ अजहरूद्दीन और एक मैच में आपको याद हो तो पठान भाईयों ने अपने को जिताया था. दोनों आमने सामने थे. लार्डस् का मैच जिसे सबसे बड़ा मैच मानते है, उसको जिताने वाला कौन था ? मोहम्मद कैफ.
मुसलमानों ने भारतीय क्रिकेट का अहित किया हो, ऐसा आपको कहीं नहीं मिलेगा. बल्कि वो ज्यादा अच्छे खिलाड़ी हुए. इसका कारण है. अपने यहां मुसलमान कौन हुए? मुसलमान वो हुए, जो हाथ से काम करने वाले लोग थे. जुलाहे, लोहार, कुम्हार जो-जो भी हाथ से काम करने वाले लोग थे और जिनको आप के समाज में इज्जत की नजर से नहीं देखा जाता था, वो लोग मुसलमान हुए. वे स्वाभाविक रूप से हाथ को, उंगलियों को हैंडल करने वाले लोग थे. उनकी स्किल हमसे और आप से बेहतर है क्योंकि वो हाथ से ही काम करने वाले लोग थे. हम दिमाग से काम करने वाले लोग है.
हाथ में दक्ष होने के कारण अजहरूद्दीन की कलाई बेहतर चलती थी या मुश्ताक अली. स्पिन करने में आपको कलाई और उंगलियां, इनका ही सबसे अच्छा इस्तेमाल करना आना चाहिए. तो वो जो हाथ से काम करने वाले लोग है, उनका स्किल, उनका हुनर, उनका कौशल जो है, वो दिमाग से काम करने वाले से ज्यादा बेहतर होता है, ट्रेनिंग के कारण.
जैसे सिलिकॉन वैली अमेरिका में नहीं होता, अगर दक्षिण भारत में आरक्षण नहीं लगा होता. दक्षिण के आरक्षण के कारण जितने भी ब्राह्मण लोग थे, ऊंची जातियों के, वो अमरीका गये और आज सिलिकॉन वेली की हर आईटी कंपनी का या तो प्रेसिडेंट इंडियन है या चेयरमेन इंडियन है या वाइस चेयरमेन इंडियन है या सेक्रेटरी इंडियन है. क्यों ? क्योंकि ब्राह्मण अपनी ट्रेनिंग से अवव्यक्त चीजों को हैंडल करना बेहतर जानता है. क्योंकि वह ब्रह्म से संवाद कर रहा है. तो जो वायवीय चीजें होती हैं, जो स्थूल, सामने शारिरिक रूप में नहीं खड़ी है, जो अमूर्तन में काम करते हैं, जो आकाश में काम करते हैं. यानी चीजों को इमेजीन करके काम करते हैं. सामने जो उपस्थित है, वो नहीं करते. ब्राह्मणों की बचपन से ट्रेनिंग वही है, इसलिए वो अव्यक्त चीजों को, अभौतिक चीजों को, अयथार्थ चीजों को यथार्थ करने की कूव्वत रखते है, कौशल रखते हैं. इसलिए आईटी वहां इतना सफल हुआ. आईटी में वो इतने सफल हुए.
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अपने समाज में अलग-अलग कौशल के अलग-अलग लोग हैं. अपन ने ये माना कि राजकाज में राजपूत अच्छा राज चलाते है. क्यों माना हमने ? एक तो वो परंपरा से राज चलाते आ रहे है, दूसरा चीजों के लिए समझौते करना, सब को खुश रखना, इसकी जो समझदारी है, कौशल जो होती है, वो आपको राज चलाते-चलाते आती है. आप अगर अपने परिवार के मुखिया है तो आप जानते हैं कि आपके परिवार के लोगों को किस तरह से हैंडल किया जाये.
ब्राह्मणों का वर्चस्व
मान लीजिए कि सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली खेल रहे है. अगर सचिन आउट हो जाये तो कोई यह नहीं मानेगा कि कांबली मैच को ले जायेगा. क्योकि कांबली का खेल, कांबली का चरित्र, कांबली का एटीट्यूड चीजों को बनाकर रखने और लेकर जाने का नहीं है. वो कुछ करके दिखा देने का है. जिताने के लिए आप को ऐसा आदमी चाहिए, जो लंगर डालकर खड़ा हो जाये और आखिर तक उसको ले जा सके यानी धारण शक्ति वाला.
अब धारण शक्ति उन लोगों में होती है, जो शुरू से जो धारण करने की प्रवृत्ति के कारण आगे बढ़ते है. अब आप देखो अपने समाज में, अपनी राजनीति में. अपने यहां सबसे अच्छे राजनेता कौन है ? आप देखोगे जवाहरलाल नेहरू ब्राह्मण, इंदिरा गांधी ब्राह्मण, अटल बिहारी वाजपेयी ब्राह्मण, नरसिंह राव ब्राह्मण, राजीव गांधी ब्राह्मण. क्यों ? क्योंकि सब चीजों को संभालकर चलाना है इसलिए ये समझौता वो समझौता वो सब कर सकते है. बेचारे अटल बिहारी बाजपेयी ने तो इतने समझौते किये कि उनके घुटनों को ऑपरेशन हुआ तो मैंने लिखा कि इतनी बार झुके है कि उनके घुटने खत्म हो गये, इसलिए ऑपेरशन करना पड़ा.
ये मैं जातिवादिता के नाते नहीं कह रहा हूं. एक समाज में स्किल का लेवल होता है, कौशल का एक लेवल होता है, जो वो काम करते-करते प्राप्त करता है. उस कौशल का आप अपने क्षेत्र में कैसा इस्तमाल करते हैं, उस पर निर्भर करता है.
इंदिरा गांधी बचपन में गूंगी गुड़ियाओं की सेना बना कर लड़ा करती थीं. जब वह प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने अपने आसपास गूंगे लोगो की फौज खड़ी की. ऐसे लोग, जो उसके खिलाफ बोल नहीं सकते थे. या जो अपनी खुद की कैपासिटी में कुछ कर नहीं सकते है. वही एक सर्वोच्च नेता रहीं. बचपन के जो खिलौने होते हैं, वो बाद में हमारे औजार बनते है. जिससे हम चीजों को हैंडल करना सीखते है.
क्रिकेट में भी आप देखेंगे, सभी क्रिकेटरों का एनॉलिसिस करके देखेंगे तो आप पाएंगे कि सबसे ज्यादा सस्टेन करने वाले, सबसे ज्यादा टिके रहने वाले कौन खिलाड़ी हैं ? सुनील गावस्कर सारस्वत ब्राह्मण, सचिन तेंदुलकर सारस्वत ब्राह्मण.
ये जो टिके रहने की परंपरा है, वो जाति से नहीं आई. ये आपका लगातार उस काम को करते रहने के कारण है. इस कौशल का जिस भी क्षेत्र में बेहतर इस्तेमाल हो सके वहां आप सफल हो सकते हैं. अगर आज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 11 खिलाड़ियों में से 5 हिन्दूस्तानी निकालेंगे तो उसका कारण यह है कि हमारे यहां वो कौशल विकसित है.
भारतीय बेट्समैन श्रेष्ठ
मैं सभी विश्वकप में देखने जाता हूं, भारतीयों से अच्छी बल्लेबाजी कोई नहीं करता. सचिन तेंदुलकर को आगे-पीछे जाके बल्ला नहीं करना पड़ता है, जब वो गेंद को मारता है तो उसका पांव अपने आप गेंद के सामने होता है. यह कौशल है, जो अचानक नहीं आयी है. वो जो 130 मील प्रति घंटा की रफ्तार से आने वाली सर्विस को जब रिटर्न करते हैं टेनिस कोर्ट पर, तो सोच-समझ कर थोड़ी करते हैं. किसको बैकहैंड मारूंगा, किसको स्लाईस करूंगा, यह पहले से थोड़ी तय करते हैं. आपकी जो रिफ्लेक्सेस हैं, वो इतनी ट्यून्ड होते हैं कि जैसी गेंद आ रही है, आप उसे वैसा खेलते हैं. ये जो ट्रेंड करना है, यह आपके रिफ्लेक्सेस तो आपकी ट्रेनिंग से प्राप्त होती है. जिन लोगों को सदियों से जिस प्रकार के काम को करने की ट्रेनिंग मिली है, वे उस काम को अच्छा करते हैं.
क्रिकेट चूंकि अपने यहां अब समाज के मध्य वर्ग का खेल हो गया है तो आप देखेंगे कि कौशल का स्तर और दूसरी जगहों के स्तर से बहुत उंचा है. आस्ट्रेलियन गेंद को मारता है तो ऐसा लगता है कि हथौड़ा मार रहा है लेकिन जब हिन्दूस्तानी मारता है तो ऐसा लगता है एक तरह की कला से उसने उसको मारा है. दुनिया के सबसे अच्छे बैट्समैन आपके पास हैं, इसलिए क्योंकि वो कला आपकी है.
• जब आप सिलिकॉन वैली की बात करते हैं तो...
हम समंदर में भी होते तो तूफां होते, वहां साहिल नहीं होते. ये तो आपका स्वभाव है.
• जब आप सिलिकॉन वैली, क्रिकेट, कौशल और अंततः ब्राह्मणवाद की बात करते हैं तो इसका एक पाठ यह बनता है कि आप कहीं न कहीं ब्राह्मण होने की श्रेष्ठता को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं...
नहीं-नहीं, मैं ब्राह्मणवाद की बात ही नहीं कर रहा हूं. मैं ब्राह्मण के उस कौशल की बात कर रहा हूं. वो सिलिकान वैली में, आईटी में जाकर सफल हुए, यहां सफल नहीं होते थे. क्योंकि आईटी में आपको जो अमूर्त है, उसको मूर्त करने की कला आनी चाहिए. क्योंकि ब्राह्मण का काम वही है. वो उससे पैदा हुआ है. मैं परंपरा से विभिन्न जातियों के काम के दौरान विकसित हुई कुशलता की बात कर रहा हूं. आप इसे ब्राह्मण जाति या ब्राह्मणवाद से मत जोड़िए.
सती हमारी परंपरा
• मुझको आपका एक बहुचर्चित लेख याद आता है सती प्रथा वाला...
मैं यह मानता हूं कि सती प्रथा के प्रति जो कानूनी रवैया है, वो अंग्रेजों का चलाया हुआ है. अपने यहां सती पति की चिता पर जल के मरने को कभी नहीं माना गया. सबसे बड़ी सती कौन है आपके यहां ? सीता. सीता आदमी के लिए मरी नहीं. दूसरी सबसे बड़ी कौन है आपके यहां ? पार्वती. वो खुद जल गई लेकिन पति का जो गौरव है, सम्मान है वो बनाने के लिए. उसके लिए. सावित्री. सावित्री सबसे बड़ी सती मानी जाती है. सावित्री वो है, जिसने अपने पति को जिंदा किया, मृत पति को जिंदा किया.
सती अपनी परंपरा में सत्व से जुड़ी हुई चीज है. मेरा सत्व, मेरा निजत्व जो है, उसका मैं एसर्ट करूं. अब वो अगर पतित होकर... बंगाल में जवान लड़कियों की क्योंकि आदमी कम होते थे, लड़कियां ज्यादा होती थीं, इसलिए ब्याह देने की परंपरा हुई. इसलिए कि वो रहेगी तो बंटवारा होगा संपत्ति में. इसलिए वह घर में रहे. जाट लोग तो चादर डाल देते हैं, घर से जाने नहीं देते. अपने यहां कुछ जगहों पर उसको सती कर देते हैं.
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आप अपने देश की एक प्रथा को, अपने देश की पंरपरा में देखेंगे या अंग्रेजों की नजर से देखेंगे, मेरा झगड़ा यह है. मेरा मूल झगड़ा ये है.
शैम्पेन के मुकाबले महुआ
कल मैंने अपने एक भाषण में कहा कि अगर भारत के आदिवासियों का राज होता तो महुआ की शराब शैम्पेन से अच्छी होती. हम उनको हिकारत की नजर से देखते हैं क्योंकि हम आदिवासियों को ही हिकारत की नजर से देखते हैं. और इसलिए उनके महुआ पीने को हम बहुत बुरी चीज मानते हैं. दूसरी ओर फ्रेंच लोग अगर शैम्पेन पीते हैं तो मानते हैं कि सर्वश्रेष्ठ वाईन हम पी रहे हैं. ये क्या बात है भाई ? तुम्हारी अपनी चीज है, इसलिए वो पवित्र, पूज्य और प्रतिष्ठित है. हमारी है, इसलिए वो निकृष्ट कोटि की, हिकारत की नजर से देखने की चीज है. अंग्रेजों से या यूरोप से मेरी यही लड़ाई है.
जब अंग्रेज यहां आकर औद्योगिकरण कर रहे थे तो मार्क्स ने कहा कि वो भारत की उन्नति कर रहे हैं. 1857 का जो विद्रोह हुआ, उससे पहले ही मार्क्स ने 1854 में यह लिखा है. तो मैं सवाल यह पूछना चाहता हूं कि अगर यूरोप का सामंत औद्योगिकरण करके भारत को गुलाम बनाता है तो आप उसे प्रगति की निशानी मानते हैं और हमारा सामंत जब अपने लोगों का राज चलाना चाहता है तब आप कहते हैं कि दकियानूसी, पुराणपंथी, पुराने तरीके का आदमी है. क्यों भई? क्योंकि आपको, यूरोप को अपने औद्योगिकरण के लिए सस्ते संसाधन, सस्ता श्रम और खुला बाजार चाहिए. उसके लिए आप इन लोगों को दबा कर रखते हैं.
अंग्रेजों के समय अजमेर से खंडवा तक लाईन बिछाई गई रेल की. वो कोई मालवी लोगों के आवागमन को ठीक करने के लिए नहीं बिछाई गई थी. अजमेर में बहुत बड़ी छावनी थी, नीमच में पुलिस का बहुत बड़ा हेडक्वार्टर. महू तो मिलिट्री हेडक्वार्टर था. तो अपनी सेना और अपनी पुलिस को जल्दी भेजने के लिए उन्होंने रेल की लाईन डाली. अपना माल जो आपको विदेश ले जाना है, उसको जल्दी ले जाने के लिए आपने रेल की लाईन डाली. इससे हमारे लिए यातायात की सुविधा हो गई, यह संयोग है. यह उसका उद्देश्य नहीं है, यह उसका प्रयोजन नहीं हैं. You are incidental to them. उनका मुख्य प्रयोजन भारत की परिस्थिति से पूंजी बनाना है. अगर इस अंतर को हम नहीं समझेंगे तो यूरोप का जो पूरा का पूरा भारत पर आक्रमण है, आप उसको समझ नहीं सकेंगे.
आप इन दो बातों को देखें. लेनिन ने भी साम्राज्यवाद का विरोध किया और गांधी ने भी. लेनिन ने कहा कि साम्राज्यवाद की जड़ में कैप्टलिज्म है. पूंजीवादी वृत्ति के कारण दुनिया भर में साम्राज्य बनाए जा रहें हैं. गांधी ने कहा कि ये मात्र पूंजीवाद का मामला नहीं है, यह सभ्यता का सवाल है. आप अपनी औद्योगिक सभ्यता को सारी दुनिया पर थोप कर उनको गुलाम बनाते हैं. उनके संसाधनों का इस्तेमाल करके, उनके संसाधनों से आप समृद्ध होते हैं और उनको गरीब रखते हैं.
जब अंग्रेज आए थे तब दुनिया की जीडीपी में भारत का योगदान 21 प्रतिशत होता था. यानी इतना अपना व्यापार, इतनी अपनी धन-दौलत हुआ करती थी. अंग्रेज जब गए तो एक फीसदी जीडीपी थी.
भाई, ये कौन-सी आर्थिक नीति है ?
मनमोहन सिंह ने राज संभाला तब देश के उद्योग घरानों के पास देश की जीडीपी का 2 प्रतिशत था. 2008 में गिनती हुई तो 22 प्रतिशत जीडीपी इन घरानों के पास चली गई थी. जब मनमोहन सिंह ने राज संभाला तब खेती का अपनी अर्थव्यवस्था में योगदान करीब 31 प्रतिशत या उसके आसपास हुआ करता था. आज खेती का योगदान 17.6 प्रतिशत है. जबकि उद्योग पर एक प्रतिशत लोग भी नहीं जीते हैं और खेती पर देश के 70 प्रतिशत लोग जीते हैं. जहां ज्यादा लोग हैं, जहां ज्यादा उत्पादन हैं वहां तो जीडीपी गिरकर 17.6 प्रतिशत आ गई है और जहां थोड़े से लोग हैं और पैसा बना रहे हैं, वहां आपकी जीडीपी 22 प्रतिशत चली गई. तो भाई, यह कौन सी आपकी आर्थिक नीति है ? यह कौन सी आपकी इनक्लूसिव ग्रोथ है, जो अंबानी को तो करोड़पति, अरबपति बनाती है और कलावती को दिन में काम नहीं मिलता है ? यह तो अपनी व्यवस्था का मामला है. यह व्यवस्था ही अंग्रजों की व्यवस्था है.
आपने 1947 में सोचा नहीं कि इस व्यवस्था को बदलकर हम दूसरी व्यवस्था लागू करें. क्योंकि वो अपने साम्राज्य को बरकरार करने के लिए आपके यहां राज कर रहे थे. आप अपने लोगों के लिए राज चलाना चाहते हैं तो आपको अलग पद्धति चलानी चाहिए थी. लेकिन कुछ तो पाकिस्तान भारत का विभाजन होने के कारण सारे लोग डरे हुए थे कि हम कुछ भी नया करेंगे, कुछ भी बिगाड़ेंगे चलती हुई चीजों को तो पता नहीं देश टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा.
आप याद कीजिए, शुरू के सारे वर्षों में एकता और अखंडता सबसे बड़ा नारा हुआ करता था. आज कोई एकता -अखंडता की बात नहीं करता. तब सिर्फ उसी की बात होती थी. क्योंकि हमको डर था कि हमारा देश टूट जाएगा. इसलिए हमने कोई प्रयोग नहीं किया. जैसा चलता आ रहा था, उसको वैसा ही चलने दिया. वैसा ही चलने देने के कारण यह परिस्थिति हुई है कि अब अपने ही देश का एक वर्ग आपका शासक वर्ग हो गया है और ज्यादातर लोग उसकी प्रजा, उसका उपनिवेश हो गए हैं. यह कोई मैं कहता हूं ऐसी बात नहीं है.
मारिया मिश्रा नाम की एक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की महिला हैं, उन्होंने एक अच्छी किताब लिखी है India since the Rebellion: Vishnu's Crowded Temple. उसमें उन्होने कहा है कि जवाहर लाल नेहरू तो आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल थे. क्योंकि उन्होंने उन्हीं चीजों को कंटिन्यू किया जो कि गवर्नर जनरल करते थे.
• देश का एक बहुत बड़ा वर्ग तो यह मानता है कि 1947 की जो आजादी थी, वो आजादी थी ही नहीं. और तो और नेहरू के समय में ही आज़ादी से. मोहभंग की बात होने लगी थी तो इसके बरक्स देखा जाए तो क्या हम ठीक-ठीक आज़ाद हुए ?
देखिए, दो लोग थे जिन्होंने कहा कि हम आजाद नहीं हुए. एक तो कम्युनिस्टों ने कहा कि हम आजाद नहीं हुए दूसरा हिंदुत्ववादियों ने कहा था. हिंदुत्ववादी ने भी इस आंदोलन में भाग नहीं लिया और कम्युनिस्टो ने भी.
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कम्युनिस्टों ने भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ अंग्रेजों की मुखबिरी की थी. क्योंकि उस वक्त उनको लगता था कि रूस दुनिया में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा है तो उसकी मदद करो. तो जिधर रूस है, वो उधर चले गए. हिंदुत्ववादियों को लगता था कि अगर पाकिस्तान को यह देश सौंप कर जाएंगे, टुकड़ा करके तो बाकि टुकड़ा हम हिंदुओं को मिलना चाहिए.
सांस्कृतिक नहीं, सांप्रदायिक राष्ट्रवाद
आप जानते हैं कि आरएसएस ने, गोलवलकर ने बकायदा सर्कुलर निकाला था. जिसमें कहा था कि हमको इसमें भाग नहीं लेना है. मौजूद है वो सर्कुलर. तो ये कौन लोग हैं जिन्होंने इस आजादी के आंदोलन में भाग नहीं लिया. इसलिए मेरा खून खौलता है, जब 1992 के मस्जिद गिराने वाले कहते हैं कि वे बहुत राष्ट्रवादी हैं. भाई, तुम कैसे राष्ट्रवादी हो यार ! तुम मानते हो कि हिन्दू ही राष्ट्र है भारत का. और अगर हिन्दू राष्ट्र है तो इस देश की परंपरा और इस देश के लोगों का क्या करोगे आप ? वो कहां जाएंगे ? और अब वो कहते हैं कि हमने तो हिन्दू कोई धर्म के कारण नहीं कहा. हमने तो इसलिए कहा क्योंकि सिंधु नदी के इधर जो भी लोग हैं, सारी दुनिया उन्हें हिंदु कहती थी. इसलिए हम सबको हिंदु कहते हैं.
लेकिन हिंदुत्व की अंतिम कसौटी उन्होंने क्या लगाई ? आप रक्त से हिंदु हैं तो आप हिंदु नहीं हैं. आप माता-पिता के नाते हिंदु हैं तो आप हिंदु नहीं हैं. आपकी अंतिम जो कसौटी है वो ये कि आपकी पुण्यभू यहां है कि नहीं. पुण्यभू तो आपका धार्मिक स्थान है ना ! पुण्यभू तो धार्मिक स्थान को कहते हैं न ! और पुण्य और पाप कभी भी संस्कृति के शब्द नहीं रहे. वो सारी दुनिया में धर्म के शब्द हैं. संस्कृत में भी, हमारी बोली में भी और दुनिया की किसी भाषा में भी. पाप और पुण्य धार्मिक व्याख्या हैं, सांस्कृतिक नहीं.
इसलिए आप जिसको सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहते हैं, वो दरअसल सांप्रदायिक राष्ट्रवाद है. मेरा झगड़ा यही है, सावरकर और इन लोगों से. अपने यहां ये कभी नहीं कहा गया कि आप हिंदु हुए तो आपने बड़ा पुण्य कमाया. अपने यहां कहा गया कि दुर्लभम भारते जन्मः भारत में जन्म लेना दुर्लभ है. यह नहीं कहा गया कि हिंदु धर्म में जन्म लेना दुर्लभ है. अपनी पूरी परंपरा में भारत को लोगों के हिसाब से बांटकर नहीं देखा गया. हमने कभी भी बाहर से आने वाले लोगों को मारकर नहीं भगाया. क्योंकि हमारे यहां ‘वो’ नहीं है, भिन्न है. There is no ‘they’, different लोग हैं. आप मुझसे भिन्न हैं क्योंकि आपकी नाक अलग है, मेरी नाक अलग है, मैं आपकी नाक तो नहीं काटूंगा क्योंकि आपकी नाक मेरी जैसी नहीं है. हम भिन्नता को स्वीकार करते हैं.
ये जो आप शक संवत चलाते हैं, यह किसका चलाया हुआ है ? उन शक राजाओं का चलाया हुआ है, जिनको विक्रमादित्य ने पराजित किया था. विक्रमादित्य ने पराजित करके जिन शकों को दक्षिण की तरफ धकेला, उन लोगों ने विक्रमादित्य से कोई 50-60 साल बाद 100 साल बाद शक संवत चलाया. लेकिन शक लोग एस्ट्रानामी के ज्यादा बड़े पंडित थे. मिहिर जो था, वो तो शक था. मिहिर नाम ही शक जाति का नाम है. मिहिर भट्ट खगोलशास्त्र के बारे में आपसे बेहतर जानता था. इसलिए उसका चलाया हुआ संवत हमने स्वीकार किया. अपने विक्रम का, विजेता राजा का चलाया हुआ स्वीकार नहीं किया.
छठ से छठी तक बाहरी
हमारे यहां छठ की पूजा होती है. सूर्य की पूजा हमारी पंरपरा में नहीं है. वो शक लोग लेकर आए. वो ईरान वाले लोग थे जो कि सूर्य पूजक थे. उनके कारण सारे देश में छठ मनती है. आप जब कहते हैं कि छठी का दूध याद आ जाएगा क्योंकि पहली बार समारोहपूर्वक मां छठ के दिन दूध पिलाती है.
कितनी चीजें हमारे यहां बाहर से आकर शामिल हो गईं हैं. जलेबी इतने प्रेम से खाते हैं, जलेबी तुर्किस्तान से आई है. हलवा इतने प्रेम से खाते हैं, सत्यनारायण भगवान को भोग लगाते हैं, हलवा पश्चिम एशिया से आया है. पराठे बड़े चाव से खाते हैं, बाहर से आया है. आपकी रोटी है और आपकी पुड़ी है. आपका चावल है, आपका जौ है, उसके अलावा आपका कोई अन्न नहीं है. ये बाहर से आए हुए अन्न हैं. 15 वीं शताब्दी तक हम आलू नहीं जानते थे. आलू पहली बार अपने यहां पुर्तगाली लोगों ने लाया. लाल मिर्च अपने देश में नहीं खाई जाती थी. काली मिर्च खाई जाती थी, जो केरल में पैदा होती है. पुर्तगाली लोग जब गोवा पहुंचे तो वो मैक्सिको से लाल मिर्च पहली बार लेकर आए. आज कोई सोच सकता है कि हम लाल मिर्च के बगैर अपना काम चला लेंगे.बल्कि काली मिर्च लोग नहीं खाते हैं, लाल मिर्च खाते हैं. काली मिर्च तो सिर्फ संपन्न लोग खा सकते हैं.
ये जो स्वीकृति है, बाहर की चीजों की, बाहर की चीजों को स्वीकार करके उनको घोट के अपनी बना लेने की, ये जो समन्वय की संस्कृति है, ये भारत का मूल तत्व है.
यूरोप के लोगों ने बाहर से आए लोगों को मार दिया या उनके अधीन हो गए. हमने उनको मारा नहीं. हमने उनको अपने अंदर स्वीकार किया. कहा कि तुम भिन्न हो, हम भिन्न हैं लेकिन भिन्नता के कारण हमारी संस्कृति में भिन्नता बहुलता, विविधता सब चीजें आईं.
आप कहते हैं कि जो विक्रम ने जो चलाया था, वो ही संवत है या फिर वो ही हिंदु संवत है तो इससे बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता. क्योंकि कुछ जगहों पर नया साल विक्रम के संवत से शुरू होता है. लेकिन बंगाल में पहला बैशाख तो उसके एक महीने बाद आता है. और असम में जो बीहू का त्यौहार मनाया जाता है, वो तो और भी बाद में आता है. उसके बाद ओणम, उसके बाद दक्षिण के राज्यों में जो अलग-अलग नए साल शुरू होते हैं. उन सब में आप देखें तो पाएंगे कि अपने यहां तो कई प्रकार के संवत्सरों में हम जी रहे हैं. आप कैसे कहते हैं कि विक्रम संवत ही हिंदु संवत है. वो नहीं है, ये मान लेना चाहिए. क्योंकि इसमें अपना कुछ नहीं बिगड़ता, क्योंकि आप सिर्फ अपने ही लोगों की विविधता को मंजूर कर रहे हो.
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मेरा ये कहना है कि कि यूरोप की पूरी संस्कृति में एक जाति को दूसरी जाति मारकर बाहर निकालती है या दूसरी जाति में अपने को ढाल लेती है. हमने न किसी को मारकर बाहर निकाला, ना हम उनके अधीन हुए. हम उनको पचाने की ताकत जानते थे. सिर्फ अंग्रेजों को हम नहीं पचा सके क्योंकि तकनीक के कारण वो अपने देश से जुड़े रह सकते थे. इसके पहले का कोई भी शासक अपने देश से जुड़ा हुआ नहीं रह सकता था. इसलिए अकबर, इसलिए जितने भी बड़े लोग हुए मुसलमान राजा, वो सब आपके धर्म का, आपकी जाति प्रथा का, आपकी पंरपरा का सम्मान करते थे. बल्कि उनसे ज्यादा सम्मान देने वाले और लोग नहीं थे. क्यों, क्योंकि आपने उनको पचा लिया था, उनको अपना बना लिया था. ये जो अपनी संस्कृति में सब चीजों को स्वीकार करके, उनका समन्वय बनाना है, ये अपनी सबसे बड़ी ताकत है. इसको छोड़ना नहीं चाहिए.
मेरा कहना है कि यूरोप अपनी नज़र से हमको देखता है. एक आदिवासी ने पुस्तक लिखी है. उसने अपनी पुस्तक की भूमिका में कहा कि अब तक आपने शिकार की कथा शिकारी के मुंह से सुनी है. ये कथा शिकार कह रहा है. यानी जिसका आपने शिकार किया है वो ये बता रहा है. हमारा कहना है कि एक हिंदुस्तानी तरीका भी दुनिया को देखना है. वो कोई यूरोप के तरीके से कमतर नहीं है.
संवाद जारी रहे
• शिकार की यह परंपरा लगातार ज़ारी है. बस्तर में, झारखंड में या बाकी जगहों में और जिसके कारण नक्सलवाद, माओवाद या इस तरह की हिंसा पर आधारित आंदोलन के लिए एक स्पेस अपने आप बन जाता है. आपने तो विनोबा जी के साथ काम किया है. तो इस शिकार और हिंसा की पूरी जो राजनीति है, उसको किस तरह देखते-परखते हैं ?
हिंसा में मनुष्यता का विश्वास अटूट है. मनुष्य पहले दिन से ही हिंसा कर रहा है. और आज भी सोचता है कि हिंसा का तरीका सबसे अच्छा है. इसलिए चंबल में जब जयप्रकाश नारायण के वक्त डाकूओं का समर्पण करा रहे थे तो सरकार ने कहा कि आपने उन लोगों को गले लगाया और उनको भाई कहा और आपकी पत्नी ने उनको तिलक लगाया. ऐसा करके आपने डाकूओं को लायनाइज किया है, उनको शेर बनाया है, उनको हीरो बनाया है और इससे कानून और व्यवस्था की हानि हुई है.
जेपी ने इस पर कहा कि अगर मैं आपका जीवन परिवर्तन करने के लिए आपसे बात कर रहा हूं तो क्या मैं आपको गाली देकर बात करूंगा. अगर मैं गाली देकर बात करूंगा तो मैं आपका कोई परिवर्तन नहीं कर सकता हूं. मैं आपको भाई कहुंगा तभी आप मुझमें विश्वास रखेंगे. और तब आप मुझसे आकर बात कर सकते हैं. सरकार अगर यह चाहती है कि मैं उन लोगों को आत्मसमर्पण करने के लिए भी बुलाउं और कहूं कि तुम डाकू हो, तुम बदमाश हो, तुमने इतने खून किए, तुमने इतना वो किया, तुम भाग जाओ यहां से, तो फिर वह आत्मसमर्पण करने के लिए क्यों आएगा ? आत्मसमर्पण किस लिए करवा रहे हैं क्योंकि आप उनको समाज में वापस इज्जत की जिंदगी और इज्जत की जगह देना चाहते हैं. जाहिर है, इज्जत की जगह देने के लिए तो आपको किसी से बात करनी पड़ेगी. उसको मार पीट कर दास नहीं बना सकते क्योंकि दास बनकर तो वह आपके हित में रहेगा ही नहीं कभी भी. अगर आपका इरादा संवाद के जरिए, लोकतांत्रिक तरीके से, शांति के तरीके से, लोगों को अपनी व्यवस्था में शामिल करना है तो सिवाय बात करने के कोई साधन नहीं है. और जिन कारणों से यह उत्पन्न होता है उस अन्याय को आपको मिटाना पड़ेगा.
मेरा कहना यह है कि आप नक्सल आंदोलन से और नक्सल विचार से तभी निपट सकते हैं जब एक- आप अपना अन्याय दूर करें और दूसरा-आप उनसे बात करके उनको वापस लाएं. जब नक्सलियों पर प्रतिबंध लगा तो कुछ पार्टियों ने कहा कि प्रतिबंध लगाना गलत है, क्योंकि हम उनसे राजनीतिक रूप से निपट सकते हैं, ये कहा गया. मैंने तब लिखा कि भाई आप नक्सलाईट से तो राजनीतिक रूप से निपट सकते हैं और इसलिए आप कहते हैं कि उन पर पाबंदी मत लगाओ.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर इस देश में तीन बार पाबंदी लगी, सन 1948 में, सन 1975 में और 1992 में बाबरी मस्जिद के बाद. तब तो किसी लोकतांत्रिक उदारवादी ने उठकर नहीं कहा कि भाई आरएसएस पर पांबदी क्यों लगाते हो. हिंदुत्व से हम विचार से निपटेंगे. हम राजनीतिक रूप से निपटेंगे हिंदुत्व वालों से.
नक्सलाईट के बारे में आप कहते हैं क्योंकि नक्सलाईट से आपको सहानुभूति है. अगर इस देश को अपने हिंदुत्ववादियों से सहानुभूति नहीं होगी तो उनको वो वापस मोड़ कर नहीं ला सकते. इसलिए संवाद सबसे जारी रखना चाहिए. वह चाहे नक्सलवादी हो या फिर हिंदुत्ववादी हो क्योंकि इसके अलावा लोकतंत्र में कोई तरीका ही नहीं है.
गांधीजी अपने एक मुकदमे की बहस कर रहे थे अंग्रेज के सामने, पुणे या किसी और अदालत में. तो वहां उन्होंने कहा कि आप जो कह रहे हो, यह तो आपके हिसाब से सत्य हो सकता है, मेरे हिसाब से यह सत्य है. दूसरा उन्होंने उसका पक्ष रखा. गांधीजी ने कहा कि बिलकुल ठीक है. इसलिए मैं कहता हूं कि अहिंसा जरूरी है, आप अपने सत्य को मुझ पर हिंसा से रोपेंगे तो मैं उसको नहीं मानूंगा. मैं अपने सत्य को हिंसा से आप पर डालूंगा तो वह स्वीकार नहीं होगा. हम सिर्फ बातचीत करके ही एक दूसरे के सत्य को समझकर स्वीकार कर सकते हैं. ये गांधी ने कहा था, ये 1921-22 के आसपास बहस किया था. बात नहीं करोगे तो आप समझोगे कैसे.
संघ वालों से बातचीत करने के लिए हम उनके घर गये थे. मैं, निखिल चक्रवर्ती, जॉर्ज वर्गीस और वो गांधी जी के पोते रामचंद्र गांधी, हम चार लोग थे. बातचीत के दौरान ये लोग हमको इनके ही घर में खाने की टेबल पर छोड़कर चले गए. यानी इतने नाराज हो गए. हम फिर भी बैठे रहे और वो जब लौट कर आए तो उनके साथ हमने खाना खाया. और उनसे अपनी बातचीत आगे चलाई. बिना बातचीत के आप लोकतंत्र में काम नहीं कर सकते हैं. और मुझे खुशी है कि बड़ी संख्या में लोग मिडल ग्राउंड के पक्ष में हैं. अपना जो मीडिया है उसका एक रोल यह भी है, वो मिडल ग्राउंड तैयार करता है. जिससे संघर्ष की समाप्ति की शुरूआत होती है.
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• लेकिन सरकार का जो रवैया है, जिस तरह से आदिवासियों को हाशिये पर ढ़केला जा रहा है लगातार-लगातार और गृहमंत्री चिदंबरम ये कहते हैं कि पहले हमें जमीन पर कब्जा करना होगा और हम गोली का जवाब गोली से देंगे. ऐसे में बातचीत और मिडल ग्राउंड की क्या गुंजाइश बचती है ?
वो कोई समझदारी का वक्तव्य नहीं है. जब पंजाब में इतना चल रहा था तो क्या कहते थे आप ? कि अपने ही बेटे हैं. इनको समझाकर वापस लाना है. इसलिए जिस परिवार के खिलाफ सिक्खों के मन में सबसे ज्यादा गुस्सा था. यानी इंदिरा गांधी और उनके बेटे. उनकी बहू ने एक सिक्ख को प्रधानमंत्री बनाकर सारे सिक्ख समुदाय को वापस आपकी धारा में लोकतांत्रिक धारा में ले कर आ गए. ये तो आपको मानना पड़ेगा ना.
आदिवासियों को हिकारत से देखना बंद करो
जब अकाल तख्त टूटा था तो मैं वहां गया था. मैं तब चंडीगढ़ में था इंडियन एक्सप्रेस में. मैं वहां गया तो मुख्य ग्रंथी जो था, उसने कहा कि जब तक राजीव गांधी यहां आकर मत्था टेक के अपनी गलती स्वीकार नहीं करेगा तब तक हम इन लोगों को नहीं माफ करेंगे. तो मैंने कहा कि मान लो वो यहां आकर मत्था टेक के स्वीकार करता है कि हमारी गलती हुई, क्या आपका आदमी, तब अकाल तख्त का प्रतिनिधि तब संसद में जाकर मत्था टेक कर ये कहेगा कि हमने आपके प्रधानमंत्री को मारा तो गलत किया. उसके लिए हमें माफ किया जाए. अगर हरमंदिर साहब सबसे बड़ी जगह है तो लोकतंत्र का मंदिर भी सबसे बड़ी जगह होना चाहिए. अब जहां इतना अधिक वैमनस्य और रोष था, वहां अब पंजाब में कहीं अलगाववाद की बात नहीं है. क्योंकि आप मानते हैं कि सिक्ख अपने लोग हैं. हमारी आर्मी में, हमारे व्यापार में और सब जगह.
कुछ संवाद और...
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हकू शाह
हबीब तनवीर
असगर अली इंजीनियर
गोविंद मिश्र-राजी सेठ
अशोक वाजपेयी-राजेंद्र यादव
नंदकिशोर आचार्य
आदिवासियों को आप हिकारत की नजर से देखते हैं. समझते हैं कि उनके संसाधनों को लूटे बिना हमारा विकास नहीं हो सकता. पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह कह रहे थे कि 6 करोड़ लोगों को देश में विस्थापित किया गया है, उसमें से 40 प्रतिशत लोग आदिवासी हैं. आदिवासियों के संसाधनों को लूटकर आप क्या करेंगे.
दुनिया भर के वैज्ञानिक कह चुके हैं कि बिना वनों के आदमी के रहने लायक धरती नहीं बचेगी. आप बाघ की रक्षा क्यों करना चाहते हैं. इसलिए नहीं कि वो सुंदर जानवर है, इसलिए कि बाघ नहीं रहा तो आदमी नहीं रहेगा. क्योंकि जो परिस्थिति और पर्यावरण बाघ को बचाये रखती है वही आदमी को भी बचाती है. आप जब अपनी रक्षा के लिए बाघ बचाना चाहते हैं, तो दुनिया की रक्षा के लिए वन क्यों नहीं बचाना चाहते हैं ? और अगर दुनिया की रक्षा के लिए वन बचाना चाहते हैं तो वन को बचाने वाले, सबसे कुशल लोग अगर हैं तो आदिवासी हैं, क्योंकि वन ही उनका जीवन है. उनको अच्छी तरह रखेंगे तो वे वनों को अच्छा रखेंगे. इस बात को कोई नहीं समझना चाहता.
वेदों में आदिवासी शब्द
अंग्रेजों को लगता था कि हमको यहां रहना थोड़ी है, हमको तो लूटपाट के अपने देश को समृद्ध करना है. उन्होंने हमारे संसाधनों के प्रति वही रव्वैया अपनाया, जो एक लुटेरे का होता हैं. एक घर का मालिक भी अपने संसाधनों का उपयोग करता है, लेकिन वो घर को चलाने के लिए करता है. लुटेरा उसको बरबाद करने के लिए करता है. तो उस लुटेरे की प्रवृत्ति में और आपकी प्रवृत्ति में फर्क होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए ? आप इन आदिवासियों को इज्जत की जगह दीजिए.
ऋग्वेद में 63 शब्द मुंडारी भाषा के हैं. कहां से आ गए वो. वो ऋषि लोग क्या चोर थे, जो उनकी भाषा को उठाकर ले आए. उन ऋषियों के साथ इन मुंडाओं का कितना व्यवहार रहा होगा, वो आप सोचिए. उनके सबसे अच्छे श्लोकों में, उनकी सबसे अच्छी ऋचाओं में मुंडारी शब्द आए. मुंडा और आपमें कोई फर्क थोड़ी है. जब तक आप इस बात को लागू नहीं करेंगे तब तक आप इस देश की समस्या कैसे हल करेंगे.
आज आदिवासी हैं, तो फिर कल दलित हैं, फिर मुसलमान हैं, फिर क्रिश्चियन हैं फिर आपका क्या बचेगा ? सिर्फ ब्राह्मण और राजपूत ? सिर्फ ब्राह्मण और राजपूत क्या ये देश को चला लेंगे ? ब्राह्मण से दिमाग के काम करवा लो लेकिन वो मेहनत के कौन से काम कर सकता है. खेती करके खड़ी कर देगा वो या फिर मजदूरी करके खड़ा कर देगा वो ? उससे नहीं बनेंगे ये काम. राजा से भी नहीं बनेंगे.
आप देखेंगे अपने यहां जितनी भी अपराधी जनजातियां हैं, वो कौन थे ? अमृतसर में जो एयरपोर्ट है, उसका नाम राजा सांसी एयरपोर्ट है. सांसी, जिसे आप इतना अपराधी, इतना गया-गुजरा मानते हैं, वो वहां के राजा होते थे. जैसे आपके यहां गोंड़ राजा होते थे, जैसे हमारे यहां भील राजा होते थे.
आपने उनका राज छीनकर उनको निकाल कर बाहर किया. उनको सिर्फ तलवार चलाना, खून करना, चाकू चलाना ही आता था क्योंकि वो राज चलाने वाले लोग थे. तो वो बेचारे अपराधी हो गए. उनको अंग्रेजों ने अपराधी बना दिया. कंजरों को आपने कंजर बना दिया. ये सब सम्मानित जनजातियां थीं. आपने अपना राज बनाने के लिए उनको राज से बाहर करके बरबाद कर दिया और अब आप कहते हैं कि ये अपराध करते हैं. अपराध नहीं करेंगे तो क्या करेंगे ? हमें पहले अपनी गलतियों को सुधारने की जरूरत है, नहीं तो हम कभी भी इस समस्या का हल नहीं निकाल सकेंगे.
18.08.2009, 00.59 (GMT+05:30) पर प्रकाशित
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इस समाचार / लेख पर पाठकों की प्रतिक्रियाएँ
Amrish (amrish2jan@gmail.com) Kolkata
मैं बहुत सामान्य पढ़ा लिखा हूँ, प्रभाष जी की बात पूरी तरह समझ नहीं पाया...क्रिकेट में अजहर और पठान अच्छे खिलाडी हैं, तो सचिन और गावस्कर भी...इसमें उनका मुस्लिम या ब्राह्मण होना सहायक है, ये बात हजम नहीं हो रही...या शायद सही भी हो, आनुवंशिकता के कारण जैसे शारीरिक गुण पीढी-दर-पीढी चलते हैं, वैसे ही मानसिक गुण भी कमोबेश वंशानुगत होते हों...("मैं परंपरा से विभिन्न जातियों के काम के दौरान विकसित हुई कुशलता की बात कर रहा हूं. आप इसे ब्राह्मण जाति या ब्राह्मणवाद से मत जोड़िए.") मेरे विचार से व्यक्ति का रहन-सहन, निजी रुझान, और परिस्थितियां उसकी दशा और दिशा तय करती हैं...
Rakesh Singh () Kansas City
मैं हिमांशु (नोएडा) की प्रतिक्रिया से सहमत हूँ.
आत्महंता () धनबाद
अहसानमंद हैं, गाली नहीं दें
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नहीं मालूम यह कौन सी हवा चली कि लोग अपने दौरों में कीर्तिमान स्थापित करनेवालों को गाली देकर अपनी कालर ऊंची कर रहे हैं। क्रिकेट या टेनिस से मेरी दिलचस्पी मैदान में भारत या भारतीय की मौजदूगी रहने तक सीमित है। लेकिन प्रभाष जी ने खेल पत्रकारिता को जो कलेवर, मिजाज और तेवर दिए वह किसी खेल पत्रकार के बूते की बात नहीं। विषय कोई भी हो, वो अपनी कंटेंट को जिस तरह खोलते हैं, जैसा रिदम पैदा करते हैं विषय की जटिलता या प्रसंग से वाकफियत की कोई जरूरत नहीं होती। आखिर हिंदी का कौन पत्रकार इसे मानने को तौयार नहीं। उन्होंने एक अखबार से/में जो कुछ किया वह हिंदी पत्रकारिता का मानक हुआ। परिदृश्य में उनकी मौजूदगी प्रसंग को अर्थवान बना देती थी।
दुर्भाग्य ही है कि हिंदी पट्टी की नई बिरादरी जो अभी-अभी मीडिया में प्रवेश ही कर रही है, उसे इन चीजों को देखना-सुनना, परखना-गुनना, सीखना-समझना चाहिए। आखिर जिस साक्षात्कार को लेकर लोग वितंडा खडा कर रहे हैं, क्या उसे समग्रता से, विषय को समूचेपन में उन्होंने देखा है। उन्होंने ब्राह्मण की, ब्राह्मणत्व की चर्चा जरूर की, पर कहीं भी उसे स्थापित करने के लिए तर्क नहीं गढ़े। आखिर सदियों का अभ्यास शारीरिक संरचना, व्यवहार, कौशल व उसके बाद संस्कार को कैसे अप्रभावित रहने देंगे।
यह ठीक है कि उन्होंने किसी के चुनाव प्रचार में सभा को संबोधित कर दिया। आखिर कोई तो बता दे कि इस दुनिया की किसी भी सभ्यता का नायक सभी मायने में आदर्श रहा। मेरा तो मानना है कि सभी नायक लात की पैदाइश थे। यदि उनकी सीमाएं लोगों को स्वीकार्य हैं तो प्रभाष जी तो वह मूर्ति नहीं बने। आखिर उनके दाय को देखते हुए, इन चीजों पर स्वस्थ चर्चा संभव नहीं थी। हमें जिनका कर्जदार होना चाहिए, हम उन्हें गरियाकर कालर ऊंची करके खुश हो लेते हैं।
यह सब मैं इसलिए नहीं लिख रहा कि मुझे उनकी कृपा प्राप्त है, या कृपा की अपेक्षा है। मैंने 14 सालों तक कस्बे में पत्रकारिता की है। और बड़े अखबारों में प्रभावी पदों पर रहने का मौका मिला। चीजों को विकृत होते हुए, विकृति के कारणों को खुली आंखों देखा। अखबार नहीं आंदोलन का नारा बुलंद करनेवाले अखबार में समन्वयक व फीचर प्रभारी का पद इसलिए छोड़ दिया कि प्रबंधन अपनी दिलचस्पी के अनुसार चीजों को चलाने की छूट पा गया था। आज खूब खूशी-खुशी मीडिया से विदा होकर सामाजिक कार्य के क्षेत्र में हूं।
mihirgoswami (mgmihirgoswami@gmail.com) bilaspur c.g
ये आठ पन्ने, ये बता किसे याद रखूं, किसे भूल जाउं.
PremRam Tripathi (prt9999@gmail.com) Satna, Bhopal M.P.
प्रभाष जी के लेख में ऐसी कोई भी बात नहीं दिखाई देती, जो वर्ग विभेद को बढ़ावा दे रही हो या एकपक्षीय हो...ये तो वैसी वाली बात हो गई है कि- "जाकी रही, भावना जैसी, प्रभू मूरत देखी तिन तैसी."
ASHOK TIWARI (ashokktiwari@yahoo.com) M.P.
Joshi says- सूर्य की पूजा हमारी पंरपरा में नहीं है. वो शक लोग लेकर आए. वो ईरान वाले लोग थे जो कि सूर्य पूजक थे. This is absolutely wrong. Thousands of rhymes in Vedas dedicated to SUN God. ancient sun temples are found in India. Many Upanishads are based on SUN God as highest Brahm. Will Joshi say Surya Puran was written by Iranians?
बलराम अग्रवाल (2611ableram@gmail.com) दिल्ली(भारत)
मुझे लगता है कि प्रभाष जी की कुछ बातों को उनके निहित अर्थों से भिन्न समझा और उछाला गया है। हाँ, धारणा सिर्फ ब्राह्मणों में ही होने वाली उनकी बात पर मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा कि इस बाम्हनगर्दी ने परशुराम तक को अंधा बना दिया था। उन्हें 'रावण' में कोई आततायीपन नजर नहीं आया था और वे चुन-चुनकर अपने काल के क्षत्रियों को ही काटते रहे थे।
RAGHUVEER RICHHARIYA (raghuveerr@starnews.co.in) NOIDA
साथियों,
रविवार.कॉम में सती प्रथा, सिलकॉन वैली में ब्राह्मण श्रेष्ठता और तेंदुलकर चालीसा का बखान करने वाले प्रभाष जोशी जी के इंटरव्यू को पढ़कर हैरानी हो रही है। उससे ज्यादा परेशानी प्रभाष जी के शिष्यों की अतिवादी प्रतिक्रिया को लेकर। आलोक तोमर जिस तरह से प्रभाष जोशी का बचाव कर रहे हैं (या कहें बचाव के जाल में उन्हें फंसा रहे हैं), उससे हिंदी के इन स्वनामधन्य पत्रकारों के बुद्धि, विवेक पर तरस आता है।
सवाल नं.- 1 जब हम गीता, भागवत, रामचरित मानस, कुरान, बाइबिल में लिखे/छपे तथ्यों, उनके लेखकों पर बहस कर सकते हैं- तो प्रभाष जोशी के सती प्रथा और ब्राह्मणवाद को महिमामंडित करने वाले पोंगापंथी तथ्यों पर क्यों नहीं। ये तो उसी तरह है जैसे जिन्ना पर किताब लिखने वाले जसवंत को बिना पढ़े, सोचे समझे उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। क्या प्रभाष जोशी के लिखे, कहे पर बहस से बचने वाले ऐसा ही नहीं कर रहे हैं।
2- वरिष्ठ पत्रकार और प्रभाष जी के प्रबुद्ध शिष्य आलोक तोमर कह रहे हैं कि प्रभाष जी की मुखालिफत करने लोग वे हैं--जिन्हें जनसत्ता में नौकरी नहीं मिली या जिनके लेख जनसत्ता में नहीं लिखे। तो मेरे भाई आलोक जी, ये तो पता कर लीजिए रविवार.कॉम में जोशी जी का इंटरव्यू करने वाले आलोक प्रकाश पुतुल या जनतंत्र.कॉम चलाने वाले समरेंद्र सिंह ने कब प्रभाष जी से नौकरी मांगी। मेरी जानकारी में कभी नहीं..क्योंकि मैं इन दोनों लोगों को जानता हूं..आलोक ने छत्तीसगढ़ में रहकर देशबंधु औऱ बीबीसी के जरिए जो काम किया है-वो देश के किसी चर्चित पत्रकार के काम से कम नहीं है।
3- तीसरी बात-प्रभाष जी, अपने शिष्यों के बीच हिंदी पत्रकारिता के युगपुरुष कहे जाते हैं-उन्हें सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ बिगुल बजाने वाले संपादक का खिताब हासिल है( जो शायद उन्हें नहीं बल्कि स्वर्गीय श्री रामनाथ गोयनका जी को मिलना चाहिए)-लेकिन सत्ता से करीबी गांठने में इन महानुभाव के चर्चे बहुत कम हुए हैं। बात चल ही पड़ी है तो मैं प्रभाष जी के साथ घटित अपना एक निजी अनुभव (जो शायद उन्हें याद न हो) बांटना चाहता हूं.। 1996 में हम भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से बीजेएमसी कर रहे थे-विवि के महानिदेशक श्री अऱविंद चतुर्वेदी के खिलाफ छात्रों का आंदोलन हुआ-मुद्दे कई थे (पत्रकारिता विवि की मनमाने ढंग से फ्रेंचाइजी बांटी जा रही थी, जिनमें पत्रकारिता कोर्स नहीं कंप्यूटर की डिग्री/डिप्लोमा बंटते थे, ऑडियो-वीडियो लैब के लिए आई भारी भरकम रकम कहां गई थी--ये चतुर्वेदी जी को छोड़कर किसी को मालूम नहीं था। वगैरह..वगैरह...). अरविंद चतुर्वेदी भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति स्व. श्री शंकरदयाल शर्मा के सगे साढ़ू थे-उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत कोई नहीं करता था। प्रभाष जोशी जी और श्री अजीत भट्टाचार्जी विवि के सलाहकार मंडल में थे-छात्रों से समझौता कराने आए-और उन्होंने हमें ऐसा प्रस्ताव दिया कि हम आंदोलन बंद कर दें। बीजेएमसी के छात्रों ने हाथ जोड़ लिए। एक संपादक जो इमर्जेंसी के दौरान सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ दम भरता रहा हो...वो इमर्जेंसी के 21 साल बाद ही सत्ता प्रतिष्ठानों के प्रति ऐसे लोटने लगेगा-ऐसा हम लोगों ने सोचा भी नहीं था।
- उम्र और बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना हमें बचपन से सिखाया गया है। वो हम लोग करत रहेंगे-लेकिन प्रभाष जी के विचारों पर शुरू हुई बहस ऐसे कैसे थम सकती है।
सादर
रघुवीर रिछारिया
abhinaw upadhyay (abhinaw01@gmail.com) delhi
अच्छा लेख है. प्रभाष जी की शैली के अनुकूल.
jawed hasan ksa alahsa
Well Prabash ji very good. आपके विचार बहुत अच्छे हैं.
Mukesh MIshra (mmishrajaipur@yahoo.com) Jaipur
प्रभाष जी की बातों का विरोध करने वाले उनके द्वारा कही गई सच्ची बातों को नहीं पचा पा रहे हैं और खासकर ऐसे दौर में जबकि ब्राह्मणों का विरोध करने एक फैशन बन गया है. मेरा जोशीजी से निवेदन है कि सच्चाई पर मज़बूत रहें और विरोध की परवाह ना करें. We are all with you sir
rohit pandey (aboutrohit@gmail. com) gorakhpur
बोलने के लिए पूरा पढ़ लेते तो भ्रमित न होते.
Rajni (iilloovveeuu1975@yahoo.com) NPM, Near Doljo Beach, Panglao Island, Bohol, Philippines
प्रभाष जी के कहे को जिस तरह से पढ़ा जा रहा है, उसे देख कर मुझे आश्चर्य हो रहा है. हिंदी का प्रबुद्ध समाज इस तरह लाठी लेकर उन्हें दौड़ाने पर तुला हुआ है...समाजशास्त्र में इसे ही भीड़ का तंत्र कहते होंगे, जहां जिसे मौका मिला, अपना हाथ साफ करने लग गया. प्रभाष जोशी जी के मामले में भी अधिकांश जगहों में यही हो रहा है. लोग बिना पूरा साक्षात्कार पढ़े गाली-गलौज पर उतर आये हैं.
प्रभाष जी को एक तरफ गुऱु कह रहे हैं, दूसरी ओर उनकी कुटाई की बात हो रही है. आपको किसने कहा था गुरु बनाने के लिए ? प्रभाष जी ने आपको आवेदन दिया था? नहीं न. तो फिर इतना हंगामा क्यों ? मत मानिए, उनको अपना गुरु और बंद करें यह रोना-धोना.
प्रभाष जी के कहे पर आप बहस कर रहे हैं, वह तो ठीक है, जो उन्होंने नहीं कही है, उस पर क्यों बहस कर रहे हैं ? उनके मुंह में शब्द डाल कर क्यों कहलवाना चाह रहे हैं ? इतना भदेसपन मत फैलाइए.
मैंने अपनी टिप्पणी दो और साइटों को भेजी थी, जहां प्रभाष जी बर लगातार बहस हो रही है. लेकिन दोनों ही साइटों ने उसे प्रकाशित नहीं किया. इससे समझ में आता है कि उनके यहां अपनी सुविधानुसार प्रतिक्रियाओं को छापने की चतुराई चल रही है. मैं उम्मीद करती हूं कि आप कम से कम मेरा पत्र जरुर प्रकाशित करेंगे.
anurag meerut
सती प्रथा के बारे में प्रभाष जी का लेख पहले पढ़ चुका हूं. मतभेद हो सकते हैं लेकिन बहुत simplify करके ना देखा जाए.
Himanshu (patrakarhimanshu@gmail.com) Noida
सुनंदा जी, लगता है, प्रभाष जी का खरापन लोग पचा नहीं पा रहे हैं और अपनी छद्दम नामों से अपने-अपने ब्लॉग में लेख लिख कर अपनी दुश्मनी निकाल रहे हैं. खुद ही लिख रहे हैं, खुद ही उस पर प्रतिक्रिया भी जमा रहे हैं.
पहली बात तो ये कि प्रभाष जोशी ने कहीं भी सती प्रथा का समर्थन नहीं किया है. अपनी आंखें साफ करके थोड़ा पढ़ लें कि प्रभाष जी ने साफ कहा है कि पति के साथ जल जाना हमारी सती प्रथा नहीं है. हमारी परम्परा में सत्य और निजत्व की बात उन्होंने की है. लेकिन कुछ कुतर्की लोग सती प्रथा वाले वाक्य को हवा में उड़ाए जा रहे हैं. अरे भैया, अपनी औकात बनाओ, फिर प्रभाष जी पर थूको.
दूसरा प्रभाष जोशी ने अपने क्रिकेटरों के बारे में जो कहा कि अजहर या पठान की कला उनकी परंपरा का हिस्सा है. उसको लेकर बात क्यों नहीं करते ? मोतियाबिंद के मरीज की तरह केवल ब्राह्मण वाला हिस्सा लेकर क्यों उड़ रहे हैं जनाब?
तीसरी बात कि प्रभाष जोशी ने पठान या कांबली को लेकर जो कहा है, वो उस सवाल के जवाब में कहा है, जिसमें आलोक जी ने पूछा था कि क्रिकेट सामंतों का खेल है. उन्होंने यह साबित करने के लिए इन लोगों के नाम लिए कि नहीं, ये खेल आम आदमी का खेल है.
इस इंटरव्यू को अपने-अपने तरीके से उठा कर उसको पढ़ने के बजाय समग्रता में पढ़ें. अगर आप में से किसी को प्रभाष जी ने जनसत्ता बाहर किया है ( जैसा कि उन्होंने एक ब्राह्मण राजीव शुक्ला और एक ठाकुर आलोक तोमर के साथ किया था) या फिर आप में से कइयों को नौकरी नहीं दी होगी, तो उसका स्कोर सैटल करने के लिए अपनी गंदगी मत फैलाइए.
Sunanda Singh रांची, झाऱखंड
मैंने कल प्रतिक्रिया लिखते हुए कहा था कि कुछ छुद्र लोग बात का बतंगड़ बना रहे हैं. आज मैंने देखा कि एकाध ब्लॉगों में मेरी प्रतिक्रिया पोस्ट की गई है और रविवार में दी गई कुछ दूसरे लोगों की प्रतिक्रिया भी इस तरह पोस्ट की गई है, जैसे ये उनके ब्लॉग में भेजी गई हो. हमारी प्रतिक्रियाओं को आधार बना कर उस ब्लॉग में लेख भी लिखा गया है.
मतलब ये कि विवाद में रस लेने के लिए जहां-जहां से जो-जो कुछ मिल रहा हो, उसे उठाओ और रसास्वादन करो.
Anindya delhi
इक्कीसवीं सदी में किसी आदमी का जाति व्यवस्था के समर्थन में इस तरह खड़ा होना वाकई हैरतनाक है। अगर किसी को इंदिरा गांधी और सचिन तेंदुलकर की सफलता का कारण उनका ब्राह्मण होना नजर आता है तो उसकी सोच पर तरस ही खाया जा सकता है।
यदि इस इंटरव्यू में व्यक्त विचारों को सही मान लें तो अब भी राजकाज का ठेका राजपूतों और ब्राह्मणों को ही उठना चाहिए क्योंकि कौशल और प्रतिभा का सम्मान करना तो किसी भी समाज का दायित्व है। बाकी तो सिर्फ ठठेरागीरी में माहिर हैं इसलिए उन्हें वही करते रहने देना चाहिए। ब्राह्मणवाद का इस खूबसूरती से बचाव करने के लिए आपको साधुवाद।
ajay patel () varanasi
ये प्रभाष जी की संस्कृति हो सकती है, जहां पति के मरने के बाद पत्नी को सती करवाया जाता होगा और पत्नी के मरने पर अनेक लोगों के साथ शादी करने की छूट थी. कितने पति आज तक सती हुए.
चार्वाक सत्य (charwaksatya11@hotmail.com) कोलकाता
आईटी में ब्राह्मण वर्चस्व के बारे में प्रभाष जोशी गलत बयानी कर रहे हैं । वो या तो तथ्यों से अनभिज्ञ है या बेईमानी कर रहे हैं। फॉर्च्यून- 1000 में शामिल सिलिकॉन वैली की आईटी कंपनियों में गूगल, एचपी, एडोबी, एएमडी, एपल, इ-बे, ओरैकल, इंटेल, याहू, सन माइक्रोसिस्टम्स, सिस्को, नेटएप, सैमेंटेक प्रमुख हैं। इन कंपनियों में किसी एक भी कंपनी में प्रेसिडेंट, चेयरमैन या वाइस चेयरमैन ब्राह्मण नहीं है। इन में से हर कंपनी की साइट पर जाकर चेक करने के बाद ये बात लिखी जा रही है। “सिलिकॉन वैली की हर आईटी कंपनी में प्रेसिडेंट, चेयरमैन या वाइस चेयरमैन ब्राह्मण है”, जैसी बात जोशी जी ने किस आधार पर कह दी, ये आश्चर्यजनक है। ये असावधानी है या अपनी बात को साबित करने की जल्दबाजी। और प्रभाष जी, आईटी कंपनी में सेक्रेटरी कौन सा पद होता।
भारत की दस सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में सिर्फ इंफोसिस के मालिक ब्राह्मण हैं। बाकी टीसीएस, विप्रो, टेक महिंद्रा, एचसीएल, पुराने सत्यम, पटनी सभी के मालिक कोई नाडार, कोई टाटा, कोई प्रेमजी, कोई राजू टाइप अब्राह्मण हैं। प्रतिभा किसी जात विशेष की बपौती नहीं है।
ravi (ravivikram53@rediffmail.com) patna
आखिर सच सामने आ ही गया. प्रभाष जी भी अंततः ब्राह्णणवादी ही निकले.वैसे भी जनसत्ता के उनके दिनों में उनके संपादकीय स्टाफ में 80 फीसदी ब्राह्मण ही थे. आज सचिन या कांबली की बात नहीं है, प्रभाष जी भी पत्रकारिता में ब्राह्मणवादी मेधा को ही सबसे काबिल मानते होंगे. मंडल पर प्रभाष जी की राय ब्राह्णणवादी ही होगी.
Arvind Mishra (drarvind3@gmail.com) Varanasi
सभ्य व्यक्ति अब इस व्यवस्था का पोषण नहीं करेगा ! और अगर सिलिकान वैली में ब्राह्मण इंजीनियरों की संख्या एक तथ्य है तो इसमें नाक भौ सिकोड़ने की क्या बात है! प्रभाष जोशी या किसी को अपनी बात कहने का हक है -क्या उन्होंने भारत का कोई कानून तोडा है ?
Ashutosh Noida, UP
सुनंदा जी, आपकी राय बिल्कुल सही है. दिल्ली में कथित प्रगतिशीलों का एक गिरोह है, जिसमें बलात्कारी, छेड़खानी करने वाले और चोरी करने वाले लोग भी शामिल हैं. ये लोग इसी तरह कौव्वा कान ले गया की तर्ज पर आधी-अधूरी चीजों को पेश करके हंगामा खड़ा करते रहते हैं और फिर दारू पी कर उसका जश्न मनाते हैं. उदय प्रकाश पर, चरणदास चोर पर, फिर आलोक मेहता पर अब प्रभाष जोशी पर ये गिरोह पड़ा हुआ है. इनमें हिम्मत है तो प्रभाश जोशी की बातों का सिलसिलेवार जवाब क्यों नहीं देते ?
Sunanda Singh रांची, झारखंड
आज सुबह से कई ब्लागों पर प्रभाष जी का यह इंटरव्यू टुकड़े-टुकड़े में पढने को मिला और मैं सोचती रह गई कि क्या सच में प्रभाष जोशी ने ऐसा कुछ कहा है.
अभी जब रविवार पर पूरा इंटरव्यू पढ़ गई हूं तो सोच रही हूं कि कुछ लोग अपने छुद्र स्वार्थ के लिए और अपने ब्लाग की हिट्स बढ़ाने के लिए संदर्भों से काट कर बकवास कर रहे हैं. यह बेशर्मी है, पत्रकारिता के नाम पर नीचता है. जो कुछ प्रभाष जोशी ने कहा है, उस पर तो बात करो. केवल उन्हें गरियाने के लिए.....शर्म आनी चाहिए.
satyanarayan patel () indore
अपने मालवा में ऐसी कोई प्रथा नहीं है जिसमें औरत को पति के मरने के बाद जला दी जाए या वह खुद चिता में कूद पड़े. राजस्थान तरफ जरूर ऐसा होता रहा है.
मैं उसी गाँव से हूं जिसके बगल वाले गाँव में प्रभाष जी मास्टरी किया करते थे. हमारे इधर इस प्रथा से लोग वाकिफ हैं पर कोई सती नहीं होती, न किसी को विवश किया जाता है. सत शब्द का उपयोग जरूर किया जाता है लेकिन उसकी पत्नी का चिता में जल कर सती होने से कोई लेना देना नहीं है.
Manish Verma Noida
* Sati Pratha is not an Indian tradition. There is no mention or example of Sati in any old Indian scriptures.
* Women in India often committed suicide to protect their honour from invaders. This custom was called Johar. They built big cauldron like pots, lit then with fire and jumped into them, to die voluntarily in order to save their honour and chastity. There was no forced immolation in that process.
* Sati is an ancient Sanskrit term, meaning a chaste woman who thinks of no other man than her own husband. The famous examples are Sati Anusuiya, Savitri, Ahilya etc. None of them committed suicide, let alone being forcible burned. So how is that that they are called Sati? The word ‘Sati’ means a chaste woman, and it has no co-relations with either suicide or murder.
* The phrase, ‘Sati Pratha’ was a Christian Missionary invention. Sati was taken form the above quoted source and ‘Pratha’ was taken from the practice of Johar’, (by distorting its meaning from ‘suicide’ to ‘murder’) and the myth of ‘Sati Pratha’ was born to malign Indian culture.
* When Raja Dashrath dies in Ramayana, none of his queens perform Sati act.
* In Mahabharata, many warriors died in the war, but there is no mention of Sati anywhere.
Suresh C Mathur कोंकर, रांची, झाऱखंड
यह इतिहास की अपनी तरह से की गई व्याख्या लगती है. सती का मतलब सत्य से जरुर रहा होगा, लेकिन जो प्रथा थी, उसमें विधवा को जबरन जला देना ही था.
आप याद करें राजाराम मोहनराय को. उन्होंने अपनी भाभी को इसी तरह सती किए जाने के बाद ही सती प्रथा का विरोध शुरु किया था और लगातार विरोध के कारण 1829 में अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगाया था. इस प्रथा को देखने का तरीका विदेशी या यूरोप का नहीं था. इस परंपरा को शुद्ध रुप से देसी तरीके से ही देखा गया था और राजाराम मोहनराय कोई विदेशी नहीं थे.
Vicky G Bhopal
"...जिस देश की नागरिकता भी छोड़ दी. उस देश के मूल के आप हैं, इसलिए अपनी टीम को आप चियर करते है. अब अगर एक मुसलमान पाकिस्तान की टीम को चियर करता है तो आप को आपत्ति क्यों होनी चाहिए ?...."
यह कैसा तर्क है जोशी जी? ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के लोग भारतीय टीम का सपोर्ट करते है क्योंकि उनका मूल यानी जड़ भारत से जुडा है. इसलिये उनकी भावनाएं भारत से जुडी हैं. आप बताइए कि किस भारतीय मुसलमान की मूल भूमि पाकिस्तान है? भारतीय मुसलमान तो हमेशा से भारत मे रहे, यही पैदा हुए, यही रहना है. फ़िर पाकिस्तान के सपोर्ट की बात आपको सही क्यों लगती है?
क्या नरसंहार रोका नहीं जा सकता था?
नन्दीग्राम में नरसंहार की भर्त्सना करते हुये पुलिस अभियान के औचित्य का सवाल उठाकर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी ने घायलों और पीड़ितों के बीच जाकर उनके जख्म पर मरहम लगातेहुये कहा वे उनके साथ हैं। इससे पहले उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुये कहा कि यह उनका ख़ून सर्द कर देने वाली आतंकवार्ता थी नन्दीग्राम नरसंहार की ख़बर. नरसंहार के बाद हालांकि घटक दलों की बगावत , जनविद्रोह और वोट समीकरण बिगड़ने के डर से मुख्यमंत्री ने अपनी जिम्मेदारी कबूल कर ली। अलग सफयी भी पेश की। मगर लाख टके का सवाल यह है कि क्या यह नरसंहार रोका नहीं जा सकता था। इस सवाल के मंथन के लिए समयांतर के अप्रैल अंक में वरिष्ठ पत्रकार पलाश बिश्वाश ने काफी सामग्री दीं है। पश्चिम बंगाल के इन हालातों पर विस्तृत सामग्री प्रमुख हिंदी मासिक हंस के मार्च अंक में बंगाल में पोंगापंथ शीर्षक का लेख देखें. इस लिंक को भी देखें। www.hansmonthly.com/ -
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लेबेल: लेख और फोटो नन्दीग्राम
Totalitarianism!
Troubled Galaxy Destroyed Dreams: Chapter 217 परेशान आकाशगंगा तबाह ड्रीम्स: 217 अध्याय
Palash Biswas पलाश विश्वास
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totalitarianism : Definition, Synonyms from Answers.com totalitarianism: परिभाषा, Answers.com से समानार्थी
totalitarianism noun Absolute power, especially when exercised unjustly or cruelly: autocracy , despotism , dictatorship , tyranny. totalitarianism संज्ञा पूर्ण अधिकार है, खासकर जब अन्याय या निर्दयतापूर्वक प्रयोग: निरंकुशता, तानाशाही, तानाशाही, अत्याचार.
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Totalitarianism Totalitarianism
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A photomontage of Stalin 's and Hitler 's images. 'स्टालिन एस और' हिटलर के चित्र एस के एक photomontage. The advocates of the concept of totalitarianism use similar artwork in their publications [1] . Totalitarianism का उपयोग इसी तरह कलाकृति की अवधारणा के अपने प्रकाशनों में अधिवक्ताओं 1 [].
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Forms of रूपों की
government सरकार
List of forms of प्रकार के की सूची
government सरकार
•Anarchy अराजकता
•Aristocracy अभिजात वर्ग
•Authoritarianism स्वैच्छाचारिता
•Autocracy निरंकुशता
•Communist state साम्यवादी राज्य
•Confederation परिसंघ
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•Consociational state Consociational राज्य
•Demarchy Demarchy
•Democracy लोकतंत्र
Direct प्रत्यक्ष
Representative प्रतिनिधि
Consensus आम सहमति
•Despotism तानाशाही
•Dictatorship तानाशाही
Military सैन्य
•Epistemocracy Epistemocracy
•Ethnocracy Ethnocracy
•Exilarchy Exilarchy
•Federation फेडरेशन
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•Military junta सैनिक
•Kleptocracy Kleptocracy
•Kratocracy Kratocracy
•Kritocracy Kritocracy
•Kritarchy Kritarchy
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•Meritocracy प्रतिभा
Geniocracy Geniocracy
•Minarchism / Night Watchman Minarchism / चौकीदार
•Monarchy राजशाही
Absolute निरपेक्ष
Constitutional संवैधानिक
Diarchy/Co-Kingship द्वैध शासन सह /-इंतिज़ाम
•Noocracy Noocracy
•Ochlocracy/Mobocracy ओकलाक्रसी Mobocracy /
•Oligarchy कुलीनतंत्र
•Panarchism Panarchism
•Plutocracy धनिक तन्त्र
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•Republic गणराज्य
Crowned ताज पहनाया
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Totalitarianism (or totalitarian rule ) is a concept used to describe political systems whereby a state regulates nearly every aspect of public and private life. Totalitarianism (या अधिनायकवादी शासन) का एक राजनीतिक प्रणाली का वर्णन जिसके तहत राज्य के सार्वजनिक और निजी जीवन के लगभग हर पहलू को नियंत्रित करता था अवधारणा है. Totalitarian regimes or movements maintain themselves in political power by means of an official all-embracing ideology and propaganda disseminated through the state-controlled mass media , a single party that controls the state, personality cults , control over the economy , regulation and restriction of free discussion and criticism , the use of mass surveillance , and widespread use of state terrorism . अधिनायकवादी शासन या आंदोलनों राजनीतिक सत्ता में अपने एक अधिकारी के माध्यम से सभी को बनाए रखने-विचारधारा और राज्य के माध्यम से प्रसारित प्रचार गले-मास मीडिया, एक पार्टी है कि राज्य के नियंत्रण, व्यक्तित्व cults, अर्थव्यवस्था, विनियमन और मुफ्त के प्रतिबंध पर नियंत्रण नियंत्रण चर्चा और आलोचना, बड़े पैमाने पर निगरानी के इस्तेमाल और राज्य में आतंकवाद के व्यापक उपयोग करें.
http://en.wikipedia.org/wiki/Totalitarianism http://en.wikipedia.org/wiki/Totalitarianism
Intellectuals of Bengal have decided to disclose their political affiliations and support their favourites in the parliamentary elections! बंगाल के बुद्धिजीवियों को अपने राजनीतिक जुड़े खुलासा और संसदीय चुनावों में उनके पसंदीदा समर्थन का फैसला किया है!
Mahashweta Devi leads the Intelligentsia Kolakta to pull down the marxists crying CHANGE! महाश्वेता देवी बुद्धिजीवियों Kolakta सुराग के लिए नीचे परिवर्तन रो रही मार्क्सवादी खींचो! She writes a regular Column in a bengali daily, Dainik staesman. वह एक बांग्ला में एक नियमित कॉलम लिखते हैं दैनिक, दैनिक staesman. The news paper is publishing a series of articles daily written by the Intellectuals of different spheres! समाचार पत्र दैनिक विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों द्वारा लिखे गए लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित है!
Today, the largest circulated Bengali daily, ANANDA BAZAR PATRIKA published a FRONT Page write up writen by Popular Novelist Suchitra Bhattacharya expsing TOTALITARIANISM practiced by Mraxist rulers in Bengal. आज की सबसे बड़ी बंगाली दैनिक परिचालित, आनंद बाजार पत्रिका एक सामने लिखने को लोकप्रिय उपन्यासकार सुचित्रा भट्टाचार्य expsing बंगाल में Mraxist शासकों ने अभ्यास TOTALITARIANISM द्वारा लिखित समाचार प्रकाशित किया. She dealt the issues facing by the masses and also wrote on woman Trafficking! वह जनता के मुद्दों का सामना करना पड़ निपटा और भी महिला तस्करी पर लिखा है!
The eminent Film Director, Sandeep Roy, the worthy son of Indian ICON Satyajit Ray has joined Mamata Camp while Mamata shankar also wants CHANGE but opposed to the idea of joining TMC! प्रख्यात, संदीप रॉय की फिल्म निदेशक, भारत का प्रतीक सत्यजीत रे के बेटे लायक ममता शिविर में शामिल हो गए हैं, जबकि ममता शंकर भी परिवर्तन करना चाहता है, लेकिन टीएमसी में शामिल होने के विचार का विरोध किया!
I NEVER supported Mrs Indira Gandhi who introduced Totalitarianism in Indian Politics for the first time! मैं श्रीमती इंदिरा गांधी ने पहली बार भारतीय राजनीति में Totalitarianism शुरू समर्थन कभी नहीं! I had no ILLUSION with her slogan of Socialism and Poverty eradication! मैं समाजवाद और गरीबी उन्मूलन के अपने नारे के साथ कोई भ्रम था!
When Indira Gandhi was made the prime Minister of India after the demise of Lal Bahadur Shashtri, I was still a student of Pitambar Pant in Haridaspur Primary Pathshala. जब इंदिरा गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर Shashtri के निधन के बाद किया गया था, मैं अभी भी हरिदासपुर प्राथमिक Pathshala में एक Pitambar पंत का छात्र था.
When she opted for socialism with her Indira Congress, I was a junior student in the High school. जब वह उसे इंदिरा कांग्रेस के साथ समाजवाद के लिए चुना है, मैं हाई स्कूल में एक जूनियर छात्र था.
My father led two major Mass Movements in 1956 and in 1958 as communist leader. मेरे पिता ने 1956 में दो प्रमुख मास संचलन का नेतृत्व किया और 1958 में कम्युनिस्ट नेता के रूप में. he also visited Riot Torn Assam as a Communist leader in 1960. वह भी 1960 में एक कम्युनिस्ट नेता के रूप में दंगा टॉर्न असम का दौरा किया.
Bengali Partition Victim refugees were on strike in 1956 while in 1958 there was a Peasant uprising in Nainital terai in 1958. बंगाली विभाजन पीड़ित शरणार्थियों को 1956 में हुए हमले में 1958 पर थे वहाँ नैनीताल तराई में एक किसान 1958 में विद्रोह था. In 1960. में 1960.
My father Pulin Babu organised first Ever All India Bengali Refugee Conference out of Bengal in Dineshpur in 1960 while I was an INFANT. मेरे पिता Pulin बाबू पहली बार आयोजित अखिल भारतीय बंगाली रिफ्यूजी Dineshpur में 1960 में बंगाल के सम्मेलन में जब मैं एक शिशु था.
While I learnt sentence making reading in class Two, I had to involve myself in Refugee and peasant affairs just because my father could not write better Hindi than me and all communications had to be made in Hindi! जब मैं सीख दो कक्षा में पढ़ रही वाक्य, मैं खुद को रिफ्यूजी और किसान मामलों में शामिल था क्योंकि मेरे पिता को बेहतर हिन्दी लिख नहीं सकते थे मुझ से और सभी संचार के लिए हिन्दी में किया जाना था!
I was shocked by the Assassination of John Kennedy in 1960. मैं 1960 में जॉन कैनेडी की हत्या के सदमे में थी. But the DEATH of Jawahar Lal Nehru did not invoke any sympathy within me as belonging to a Partition victim family and clan,every member of which was bleeding still! लेकिन जवाहर लाल नेहरू के निधन पर कोई हमदर्दी नहीं है मेरे अंदर एक विभाजन के शिकार परिवार और परिवार हैं, जिनमें से प्रत्येक सदस्य के लिए संबंधित के रूप में लागू किया अभी भी खून बह रहा था!
We, the children, the first Generation of the resettled refugees despised Gandhi and Nehru holding them responsible for the partition of India! हम, बच्चों, बसाया गांधी और नेहरू तुच्छ उन्हें भारत के विभाजन के लिए ज़िम्मेदार ठहरा शरणार्थियों की पहली पीढ़ी के!
I read the Hindutva ideology from the beginning and we were the regular Subscriber of kalayn Monthly dealing with Vedic literature exclusively. मैं शुरू से ही हिंदुत्व की विचारधारा को पढ़ा है और हम विशेष रूप से वैदिक साहित्य के साथ kalayn मासिक निपटने के नियमित सदस्य थे.
We hoped that some day Netaji would come back and India would be REUNITED. हम आशा व्यक्त की कि कुछ दिन नेताजी भारत वापस आ गया और फिर से किया जाएगा. It was universal EXPECTATION amongst the refugees as they were not so alienated from their homeland in East Bengal in sixties. यह शरणार्थियों के रूप में उन्होंने साठ के दशक में ईस्ट बंगाल में देश से बहुत अलग नहीं थे के बीच व्यापक उम्मीद थी.
Being partition victims, we hated Two nation theory and also hated Jinnah and Muslim league as well as Pakistan. विभाजन के शिकार होने के नाते, हम दो राष्ट्र के सिद्धांत और भी जिन्ना और मुस्लिम लीग नफरत के रूप में अच्छी तरह से पाकिस्तान के रूप में नफरत. riots of 1964 and fresh INFLUX of refugees strengthened the sentiment. 1964 और शरणार्थियों की ताजा बाढ़ के दंगों भावना को मजबूत.
Meanwhile, my DIDIMA, the mother of my Jethima belonging to the Orakandi Family of famous Harichand Guruchand Thakur migrated and landed in our family. इस बीच, मेरी, मेरी Jethima की माँ प्रसिद्ध Harichand Guruchand ठाकुर के Orakandi परिवार से संबंधित DIDIMA चले गए और हमारे परिवार में उतरा.
We were overjoyed with Indian Victory against Pakistan in 1965 war! हम भारतीय जीत के साथ 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ बहुत खुश थे!
We were sad with the Untimely demise of Lal Bahadur Shashtri. हम लाल बहादुर Shashtri के असामयिक निधन से दुखी थे.
We had no SYMPATHY whatsoever with Mrs Indira gandhi while she took over superseding Morarji Desai and Babu Jagajivan Ram. हम श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ जो भी सहानुभूति नहीं था, जबकि वह मोरारजी देसाई और बाबू Jagajivan राम superseding पदभार संभाल लिया है. The scenario changed during Bangladesh Liberation War while Bengali Refugee all over the country swung in favour of Mrs Gandhi! बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान परिदृश्य बदल गया है जबकि बंगाली रिफ्यूजी पूरे देश में श्रीमती गांधी के पक्ष में आ गया!
Meanwhile, I read Netaji literature, the novels of GURUDUTTA dealing partition and SATYARTH Prakash by Swami Dayanand Saraswati. इस बीच, मैं नेताजी साहित्य, GURUDUTTA के उपन्यास स्वामी दयानंद सरस्वती ने विभाजन और SATYARTH प्रकाश निपटने पढ़ें.
Meanwhile, the Mother of Shaheede Aazam Sardar Bhagat Singh and freedom Fighter Shachin Buxy visited our home! इस बीच, Shaheede Aazam सरदार भगत सिंह और स्वतंत्रता सेनानी Shachin Buxy की माँ हमारे घर का दौरा किया!
My MINDSET was Totally ANTI Congress! मेरी सोच पूरी तरह विरोधी कांग्रेस था!
I never could support CONGRESS anytime in future. मैं कांग्रेस का समर्थन नहीं कर सकता कभी भी भविष्य में. But disillusioned with congress my father supported congress since 1960 as ND Tiwari joined the REFUGEE Conference and stood ROCK solid with the Resettled refugees in Uttar Pradesh! लेकिन कांग्रेस मेरे पिता 1960 के बाद से कांग्रेस के समर्थन के रूप में नारायण दत्त तिवारी शरणार्थी सम्मेलन में शामिल हो गए और उत्तर प्रदेश में बसाया शरणार्थियों के साथ ठोस रॉक खड़ा से मोहभंग! It did not change my mind! यह मेरे दिमाग को बदल नहीं किया!
Meanwhile, I got the RED BOOK thanks to the NAXALITES sheltered in the Teria during all out Repression in Bengal. इस बीच, मेरे पास लाल बंगाल में सब दमन के दौरान Teria में आश्रय नक्सलियों के लिए बुक करें धन्यवाद.
Meanwhile as a Junior student in Dineshpur High school , I led a strike against ZILA Parishad management. इस बीच Dineshpur उच्च विद्यालय में एक जूनियर छात्र के रूप में, मैं जिला परिषद के प्रबंधन के खिलाफ हड़ताल का नेतृत्व किया.
Shyam Lal Verma, the Freedom fighter was the Zila Parishad Nainital President and my father was in the management of the School. श्याम, स्वतंत्रता सेनानी लाल वर्मा नैनीताल जिला परिषद के अध्यक्ष थे और मेरे पिता ने स्कूल के प्रबंधन में था.
I left my home for months in 1970. मैं महीनों के लिए 1970 में अपना घर छोड़ दिया. I was transferred to the remote area of Shaktifarm for my EXTREMISM. मैं अपने अतिवाद के लिए Shaktifarm के दूरदराज के इलाके में स्थानांतरित किया गया था.
In 1971, my father visited Liberated Bangladesh. 1971 में, मेरे पिताजी मुक्त बांग्लादेश का दौरा किया. He was arrested in Dhaka, demanding Unification of Bengal to solve the REFUGEE Problem for ever! वह ढाका में गिरफ्तार कर लिया, बंगाल के एकीकरण की मांग को हमेशा के लिए शरणार्थी समस्या को हल था! He was bailed out by his friends in media! वह मीडिया में अपने दोस्तों के द्वारा जमानत!
Returning from Bangladesh Jail, he entrusted to the REFUGEE Cause and supported Congress in a hope that Congress would get involved. बांग्लादेश के जेल से लौटने के, क्योंकि वह शरणार्थी को सौंपा है और आशा है कि कांग्रेस के शामिल होगा मिल में कांग्रेस का समर्थन किया. he had been in contact of Mrs Gandhi thanks to ND TIWARI and KC Pant. उन्होंने श्रीमती गांधी को धन्यवाद के संपर्क में नारायण दत्त तिवारी और के.सी. पंत गया था.
I was not convinced at any stage as I missed the REFUGEE policy of government of India and noted the Political game to make the Refugee Population a Mobile ruling Hegemony vote bank. मुझे यकीन किसी भी चरण में के रूप में मैं भारत सरकार के शरणार्थी नीति चूक गए और राजनीतिक खेल के लिए रिफ्यूजी जनसंख्या एक मोबाइल सत्तारूढ़ नायकत्व वोट बैंक बनाने के नोट नहीं था. Very soon, though I returned Dineshpur to finish the High School Course, I TURNED quite a Hard Core Anti State Power social activist. बहुत जल्द ही, हालांकि मैं वापस आ Dineshpur हाई स्कूल पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए, मैं काफी मुश्किल कोर विरोधी राज्य विद्युत सामाजिक कार्यकर्ता बने. We, me and father ceased to discuss POLITICS since than and Never we did discuss Politics until his death! हम, और मेरे पिता के पास से राजनीति पर चर्चा से बंद है और कभी हम अपनी मृत्यु तक राजनीति पर चर्चा किया!
As a student leader, I had to lead anti Emergency Movement in Uttarakhand! एक छात्र नेता के रूप में, मैं उत्तराखंड में आपातकाल विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था!
Hence, I remember the EMERGENCY very well! इसलिए, मैं आपातकालीन बहुत अच्छी तरह से याद है!
Now I am STRANDED in an ENVIRONMENT of EMERGENCY and TOTALITARIANISM in Bengal! अब मैं आपातकालीन और बंगाल में TOTALITARIANISM के वातावरण में फंसे हूँ!
I did not fail to RECOGNISE TOTALITARIANISM taking over Bengal right in January, 1979, while MARICHJHANPI Ethnic Cleansing was ENACTED by the Marxist Manusmriti Apartheid Hegemony shaping in! मैं पहचान TOTALITARIANISM को असफल नहीं हो जनवरी में बंगाल के अधिकार पर ले, 1979 थी, जबकि MARICHJHANPI जातीय शुद्धीकरण मार्क्सवादी Manusmriti रंगभेद को आकार देने में नेतृत्व द्वारा अधिनियमित किया गया था!
I only wonder, why the BENGALI INTELLIGENTSIA and the CIVIL society full of so many dignitaries, icons and Brands failed the do so during last Three DECADES! मैं सिर्फ आश्चर्य है, क्यों बंगाली बुद्धिजीवियों और नागरिक कई गणमान्य व्यक्ति, माउस और ब्रांड से भरे समाज में विफल पिछले तीन दशकों के दौरान ऐसा!
It is so late! यह बहुत देर हो चुकी है! The Awakening may not be fruitful as the DEMOGRAPHY is manipulated for Infinite LEFT RULE in West Bengal, I am afraid of! जागृति के रूप में जनसांख्यिकी अनंत वामपंथी शासन के लिए पश्चिम बंगाल में हेरफेर नहीं है उपयोगी है, तो मैं डर रहा हूँ सकता है!
The TURNAROUND by the Intellectuals like Mrinal Sen, Gautam Ghosh, Mamta Shankar rather confuse me to assess the INTEGRITY and SANCTITY of the BENGALI Caste Hindu Intelligentsia! मृणाल सेन, गौतम घोष, ममता शंकर जैसे बुद्धिजीवियों द्वारा बदलाव बजाय भ्रमित मुझे ईमानदारी और बंगाली जाति हिंदू बुद्धिजीवियों की पवित्रता के आकलन के लिए! Whether they do want any CHANGE at all or are simply engaged to gain Personal and professional Mileage joining the Resistance hegemony equally BRAHAMINICAL and ABSOLUTE as far as the Indigenous, Aboriginal, Minority communities and the REFUGEES are concerned! चाहे वे सब में कोई परिवर्तन करना चाहते हो या बस के लिए निजी और पेशेवर प्रतिरोध नायकत्व समान रूप से शामिल होने BRAHAMINICAL और पूर्ण के रूप में दूर के रूप में देशी, ऐबोरजीनी, अल्पसंख्यक समुदायों और शरणार्थियों का संबंध है लाभ उठाने लगे हैं!
The anti-Left Front intellectuals kicked off a cerebral war, through a slogan, “We want change”, portrayed through giant hoardings in many parts of Kolkata. वाम मोर्चा विरोध के बुद्धिजीवियों से एक मस्तिष्क युद्ध लात मारी, एक नारे के माध्यम से, "हम बदलना चाहते हैं", कोलकाता के कई भागों में विशाल होर्डिंग के माध्यम से दर्शाया. Besides the slogan “We want change” written in bold letters, the hoardings also contain the pictures of the intellectuals and celebrities who are in favour of the “change”. नारे "हम बदल" बोल्ड अक्षरों में लिखा चाहते इसके अलावा, होर्डिंग भी बुद्धिजीवियों और हस्तियों जो बदलाव "के पक्ष में हैं के चित्र में".
The famous faces that appear in the hoarding include actress-turned-director, Aparna Sen, writer Mahashweta Devi, dancer Mamata Shankar, theatre personalities Shaoli Mitra, Kaushik Sen and Bibhash Chakrabarty and painter Shubhaprasanna. प्रसिद्ध चेहरे कि होर्डिंग में दिखाई अभिनेत्री से निर्देशक बने, अपर्णा सेन, लेखिका महाश्वेता देवी, नर्तकी ममता शंकर, रंगमंच व्यक्तित्व Shaoli मित्र, कौशिक सेन और Bibhash चक्रवर्ती और चित्रकार Shubhaprasanna शामिल हैं.
Interestingly, many of these intellectuals and celebrities were known to be close confidants of the Left Front, especially the CPI(M), till about a couple of years ago. दिलचस्प है, इन बुद्धिजीवियों और मशहूर हस्तियों के कई को वाम मोर्चे के बंद विश्वासपात्र हो जाने जाते थे, खासकर सीपीआई (एम), साल पहले के बारे में कुछ तक.
The pro-Left Front intellectuals immediately sprang into action with the talking point: “Change that harms public interest is never acceptable.” They have started raising their voices in favour of the Left Front through newspapers, TV programmes and public meetings. समर्थक वाम मोर्चे के बुद्धिजीवियों तुरंत बात कर बिंदु के साथ कार्रवाई में sprang: "बदलें कि सार्वजनिक हित हानि पहुँचाता कभी नहीं स्वीकार्य है वे समाचार पत्र के माध्यम से वाम मोर्चे के पक्ष में अपनी आवाज उठाने शुरू कर दिया है.", टीवी कार्यक्रमों और सार्वजनिक बैठकों.
The heavyweights on the list include renowned film directors Mrinal Sen and Tarun Majumdar, magician PC Sarkar, poet and educationalist Subodh Sarkar, writer Sunil Gangopadhyay and former cricket team captain Saurav Ganguly. सूची में बड़े नेताओं प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मृणाल सेन और तरूण मजूमदार, जादूगर पीसी सरकार, कवि और शिक्षाशास्री सुबोध सरकार, लेखक सुनील गंगोपाध्याय और पूर्व क्रिकेट टीम के कप्तान सौरव गांगुली शामिल हैं.
Explaining the rationale behind the “change”, Mahashweta Devi said the Left Front government which they supported once is not the same today. "परिवर्तन" के पीछे तर्क यह बताते हुए, महाश्वेता देवी ने कहा कि वाम मोर्चा सरकार का समर्थन किया जो वे एक बार ही आज नहीं है. “When the Left Front came to power in 1977, we supported them. "जब वाम मोर्चे के 1977 में सत्ता में आए, हम उनका समर्थन किया. I never thought we would have to oppose them ever. मैंने सोचा था कि हम उन्हें कभी विरोध नहीं होता. But I witnessed how the state government turned anti-people over the years,” she said. लेकिन मैंने देखा कि राज्य सरकार विरोधी बने साल से अधिक लोगों को, "उसने कहा.
Echoing Mahashweta Devi, Shaoli Mitra said the fact that intellectuals in Bengal wants change is not a clandestine affair and they have expressed their desire for “change” in the last couple of years. महाश्वेता देवी गूंज, Shaoli मित्रा तथ्य यह है कि बंगाल में बुद्धिजीवियों परिवर्तन करना चाहता है ने कहा कि एक गुप्त चक्कर नहीं है और वे वर्ष के पिछले कुछ में 'परिवर्तन' के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है.
On the other hand, renowned film director, Tarun Majumdar has penned an article in Bengali daily Aajkal where he has explained why the “change” will be harmful for the people of Bengal. दूसरी ओर, प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, तरूण मजूमदार बंगाली दैनिक Aajkal में एक लेख जिसमें उन्होंने बताया है क्यों बदल "" बंगाल के लोगों के लिए हानिकारक हो जाएगा लिखी है.
“The people of Bengal understand that if the so-called change comes through, only they will suffer. "बंगाल के लोगों को समझ है कि यदि तथाकथित परिवर्तन के माध्यम से आता है, वे ही भुगतना होगा. In the past also, the people has not supported any force which will unleash a reign of terror and disorder in the state. अतीत में भी लोगों को किसी भी ताकत है जो राज्य में आतंक और अव्यवस्था का राज होगा दिलाने का समर्थन नहीं किया है. I know this time too the people of Bengal will not make any mistake. मैं इस बार भी पता बंगाल के लोगों को बनाना कोई गलती नहीं होगी. Those who are fuelling the sentiment for change will be surely disheartened,” Majumdar wrote. , मजूमदार जो बदलाव के लिए भावना भड़काने रहे हैं निश्चित रूप से निराश हो जाएगा 'लिखा था.
Just remeber the day after Nadigram Massacre, while the Civil society and Intelligentsia joined hands with the Resistance against Marxist Totalitarianism! बस Nadigram नरसंहार के बाद दिन याद है, जबकि नागरिक समाज और बुद्धिजीवी वर्ग मार्क्सवादी Totalitarianism के खिलाफ प्रतिरोध के साथ हाथ मिला लिया! Thousands of people from varied field, including the intelligentsia, took out a protest march in Kolkata against the violence in West Bengal's Nandigram area. लोगों के विभिन्न क्षेत्र से हजारों, बुद्धिजीवियों सहित, पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम इलाके में हिंसा के खिलाफ कोलकाता में ले विरोध मार्च.
Demonstrators marched through the streets of Kolkata streets carrying placards and raising slogans against the Left Front Government headed by Chief Minister Buddhabed Bhattacharjee. प्रदर्शनकारियों कोलकाता तख्तियों ले सड़कों की सड़कों पर मार्च किया और वाम मोर्चे के मुख्यमंत्री Buddhabed भट्टाचार्य के नेतृत्व में सरकार के खिलाफ नारे स्थापना.
“It's a protest. "यह एक विरोध है. A protest against the continuing atrocities in Nandigram,” said eminent filmmaker Aparna Sen. , प्रसिद्ध फिल्म निर्माता अपर्णा सेन नंदीग्राम में अत्याचार के खिलाफ जारी एक विरोध "कहा
“Today thousands of people from all parts of Kolkata , the artists, the filmmakers, the dramatists, and the actors have joined the rally in protest of the massacre in Nandigram,” said eminent film director Supriya Sengupta. , प्रसिद्ध फिल्म निदेशक सुप्रिया सेनगुप्ता "आज लोगों की कोलकाता, कलाकार, फिल्म निर्माता, नाटककारों, और अभिनेताओं के सभी भागों से हजारों नंदीग्राम में नरसंहार के विरोध में रैली में शामिल हो गए हैं" कहा.
The West Bengal Government had planned to set up a special export zoneSEZ) for chemical industries in Nandigram, 150 km southwest of Kolkata , but had to abort the project as villagers refused to give their farmland for the project. पश्चिम बंगाल सरकार ने एक विशेष zoneSEZ निर्यात सेट) नंदीग्राम, कोलकाता से 150 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में रसायन उद्योगों के लिए योजना बनाई थी, लेकिन इस परियोजना के रूप में गिरा था ग्रामीणों को परियोजना के लिए अपने खेत देने से इनकार कर दिया.
In the last week, at least six villagers have been killed in Nandigram, as they fought CPI (M) cadres. पिछले हफ्ते में कम से कम छह ग्रामीणों को नंदीग्राम में मारे गए हैं, क्योंकि वे लड़ाई भाकपा (एम) कार्यकर्ताओं. Dozens of villagers were also injured in the clashes. ग्रामीणों के दर्जनों भी संघर्ष में घायल हो गए.
The row saw violent clashes between locals opposed to the project and the ruling Left Front supporters as well as the police. पंक्ति स्थानीय लोगों के बीच हिंसक संघर्ष परियोजना और सत्ताधारी वाम मोर्चे के समर्थकों के रूप में के रूप में अच्छी तरह से पुलिस का विरोध करते देखा था.
The violence in Nandigram has been a political embarrassment for the Communist Party of India (Marxist), which is heading the Left Front Government in West Bengal. नंदीग्राम में हिंसा भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए एक राजनीतिक शर्मिंदगी हुई है (मार्क्सवादी), जो पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार की ओर बढ़ रही है.
The CPI (M) leaders and the police have blamed the Maoists for the recent violence in Nandigram. सीपीआई (एम) के नेताओं और पुलिस को नंदीग्राम में हाल की हिंसा के लिए माओवादियों को दोषी ठहराया है.
But, the CPI (M)'s own allies have criticised the government , and some ministers in the government threatened to resign over Nandigram issue. लेकिन, सीपीआई (एम) के अपने सहयोगियों की सरकार की आलोचना की है और सरकार में कुछ मंत्रियों को नंदीग्राम मुद्दे पर इस्तीफा देने की धमकी दी.
West Bengal will get 220 companies of central forces the highest among all states in the country for the three-phase Lok Sabha elections. पश्चिम बंगाल केंद्रीय बलों के देश में तीन चरण लोकसभा चुनावों के लिए सभी राज्यों में सबसे ज्यादा 220 कंपनियों को मिलेगा.
Of these, 140 companies will be posted in the Maoist-dominated districts of West Midnapore, Purulia and Bankura. इनमें से 140 कंपनियों माओवादी में तैनात किया जाएगा पश्चिम मिदनापुर, पुरुलिया और बांकुड़ा जिले का बोलबाला है.
Election commissioner Veeravalli Sundaram Sampath made the announcement on Tuesday after extensive meetings with state officials, ahead of the first phase of polls on April 30. चुनाव आयुक्त Veeravalli सुंदरम संपत मंगलवार को राज्य के अधिकारियों के साथ व्यापक बैठकें, 30 अप्रैल को चुनाव के पहले चरण के आगे के बाद घोषणा की है. Sampath said, “The allotment is made on the basis of requisition by the state government and the availability of forces.” The government had asked for 240 companies and the EC could sanction 220, considering the law-and-order situation in the state. संपत ने कहा, "आवंटन माँग के आधार पर राज्य सरकार द्वारा बनाई गई और बलों की उपलब्धता है." सरकार ने 240 कंपनियों और चुनाव आयोग के लिए कहा था कि 220 की मंजूरी, कानून और राज्य में व्यवस्था की स्थिति पर विचार कर सकता है.
The issue of law and order assumed greater importance after People's Committee Against Police Atrocities (PCPA) announced on Tuesday that the forces deployed would have to take responsibility of people's security though the tribal body would cooperate with the administration in the poll process. कानून के मुद्दे और व्यवस्था की पुलिस अत्याचार (PCPA) के खिलाफ लोगों को समिति के बाद अधिक महत्व माना मंगलवार को घोषणा की कि सेना तैनात करने के आदिवासी शरीर प्रशासन के साथ चुनाव प्रक्रिया में सहयोग करेंगे कि लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी होगी.
PCPA spokesperson Chhatradhar Mahato assured they would help villagers reach polling stations. PCPA प्रवक्ता Chhatradhar महतो आश्वासन दिया कि वे मदद मिलेगी ग्रामीणों को मतदान केंद्रों तक पहुँचने. “It is for the state government to be responsible for voters' security. "यह राज्य सरकार के लिए है 'मतदाताओं को सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा. We expect the administration will take measures to ensure their safe return to villages,” he said, warning that no security personnel would be allowed inside Lalgarh villages and that deployment of forces must be restricted to five polling stations being set up in the fringes of Lalgarh. हम प्रशासन के उपायों के लिए गांवों को उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के ले जाएगा उम्मीद है, "उन्होंने कहा, चेतावनी है कि कोई भी सुरक्षा कर्मियों Lalgarh गांवों के अंदर की अनुमति दी जाएगी और सेना की तैनाती के पांच मतदान स्टेशनों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ऊपर Lalgarh के किनारे में स्थापित किया जा रहा है . The police deployment would remain only for the 12 hours of polling. पुलिस की तैनाती ही मतदान के 12 घंटे के लिए रहेगा.
PCPA announced that apart from police, administrative employees may be allowed inside villages to escort voters to the booths. PCPA ने घोषणा की कि इसके अलावा पुलिस से, प्रशासनिक कर्मचारियों को बूथ तक ले मतदाताओं को गांव के अंदर की अनुमति दी जा सकती है.
Earlier, EC had assured them that polling booths would be set up within 5 km of each village in Lalgarh, but in reality, voters will have to travel 7-10 km to reach their booths. इससे पहले चुनाव आयोग ने उन्हें आश्वासन दिया था कि मतदान केंद्र Lalgarh में प्रत्येक गांव के 5 किमी के भीतर स्थापित किया जाएगा, लेकिन वास्तविकता में, मतदाताओं को 7-10 किमी की यात्रा के लिए उनके बूथ पहुँचना होगा. The nearest booth from villages like Orma, Sijua, Chotopelia or Shaluka of Lalgarh are beyond 5 km. Orma, Sijua, Chotopelia या Lalgarh के Shaluka जैसे गांवों से निकटतम बूथ 5 km से परे हैं.
Apart from the 140 companies of central forces, a 5,000-strong state force of police, fire and forest department officials will be deployed in West Midnapore, Purulia and Bankura. केंद्रीय बलों, एक 5,000 पुलिस, आग और वन विभाग के अधिकारियों के मजबूत राज्य पुलिस बल के 140 कंपनियों के अलावा पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया में तैनात किया जाएगा. Around 5,000 home guards will also be posted in the three districts. 5000 होमगार्ड भी लगभग तीन जिलों में तैनात किया जाएगा. State police has already hired two helicopters for dropping poll officials near polling stations located in the remote corners of the districts. राज्य पुलिस ने पहले ही मतदान जिलों के दूरस्थ कोनों में स्थित स्टेशन के पास चुनाव अधिकारियों को छोड़ने के लिए दो हेलिकॉप्टर किराए पर लिया गया है.
Police and security personnel have already started combing operations along the district and state borders to flush out the guerrillas. पुलिस और सुरक्षा कर्मियों को पहले ही जिला और राज्य की सीमाओं पर तलाशी अभियान को बाहर छापामारों फ्लश शुरू कर दिया है. Police fear that Maoists may attack polling booths or officials, and they are especially concerned about Lalgarh. पुलिस को आशंका है कि माओवादियों के मतदान केंद्र या अधिकारियों का दौरा कर सकते हैं, और वे विशेष रूप से Lalgarh के बारे में चिंतित हैं. For emergencies, another copter is being kept on standby. आपात स्थिति के लिए, एक और हैलीकाप्टर डिप्टी पर रखा जा रहा है. However, top officials are not disclosing the deployment blueprint of the forces because a threat looms large. बहरहाल, शीर्ष अधिकारियों बलों की तैनाती खाका प्रकट नहीं कर सकते क्योंकि एक बड़ा खतरा करघे हैं.
Intelligence agencies have asked state counterparts to make sure that state agencies check the entire route of central force movement with anti-landmine vehicles, especially in disturbed areas. खुफिया एजेंसियों राज्य समकक्षों से कहा है कि यकीन है कि राज्य की एजेंसियों को विशेष रूप से परेशान क्षेत्रों में केंद्रीय बल के साथ विरोधी आंदोलन के पूरे रास्ते-बारूदी सुरंग वाहनों की जांच करना. Police have also alerted local hospitals and even those in Jamshedpur and Ranchi. पुलिस ने भी स्थानीय अस्पतालों और यहां तक कि जमशेदपुर और रांची में उन लोगों को सतर्क कर दिया.
Sampath and deputy election commissioner R Balakrishnan discussed the last-minute poll arrangements in the 14 constituencies going to polls on April 30 with district magistrates and SPs over video conferencing on Tuesday. संपत और उप चुनाव आयुक्त आर बालकृष्णन अंतिम 14 30 अप्रैल को जिला मजिस्ट्रेटों और मंगलवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के एसपी के साथ चुनाव होने वाले निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान मिनट व्यवस्था पर चर्चा की.
Sampath said, “Some of the forces will be retained after the polls to tackle post-poll violence.” The election commissioner also met political parties who “expressed apprehensions about some areas.” Sampath said, “We got very specific requests from political parties for Keshpur, Sabang, Pingla, Chandrakona and Darjeeling. संपत ने कहा, "सेना में से कुछ के बाद चुनाव के बाद चुनावी हिंसा से निपटने के लिए बनाए रखा जाएगा." चुनाव आयुक्त भी राजनीतिक दल, जो "कुछ क्षेत्रों के बारे में आशंका व्यक्त की से मुलाकात की." संपत ने कहा, "हम राजनीतिक दलों से बहुत विशेष अनुरोध है केशपुर के लिए, Sabang, Pingla, Chandrakona और दार्जिलिंग. We have decided to deploy additional observers in Sabang, Ghatal, Bishnupur and Darjeeling.” Ghatal would get two observers and Sabang, Bishnupur and Darjeeling one each. हमें Sabang, Ghatal, Bishnupur और दार्जिलिंग में अतिरिक्त पर्यवेक्षक तैनात करने का फैसला किया है. "Ghatal दो पर्यवेक्षकों और Sabang, Bishnupur और हर एक को दार्जिलिंग मिलेगा.
Times of India Reports: भारत रिपोर्टों के टाइम्स:
Chief minister Buddhadeb Bhattacharjee on Tuesday fell back on his biggest USP the promise of fast-tracking industrialization to drum up मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने मंगलवार को तेजी से औद्योगिकीकरण को ड्रम पर नज़र रखने का वादा उनकी सबसे बड़ी खासियत पर वापस गिर गया
support for the Left ahead of elections to 14 Lok Sabha constituencies in Bengal which would be held on Thursday. सहायता के लिए आगे के चुनावों के वामपंथी बंगाल में 14 लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों जो गुरुवार को आयोजित किया जाएगा है.
Addressing a meeting of the Calcutta Citizens' Initiative an association of eminent individuals from different streams, including a few mid-rung industrialists just 48 hours before the poll bugle is sounded in the state, the CM held out hope that mega projects announced earlier such as the numerous steel plants and petrochem hub were bound to come up, despite pressures induced by the global economic meltdown.
“I just can't accept the Opposition position. They are opposing everything, even the extension of national highways and acquisition of land for a thermal power plant at Katwa. But, I accept the challenge since I believe in people power and not muscle power,” Bhattacharjee told a gathering at the GD Birla Sabhagar, which also included Nicco's Rajive Kaul and Titagarh Wagon's JP Chowdhary from the industrialist fraternity.
“I have spoken to Sajjan Jindal and he has assured me that the JSW plant would definitely come up despite the problems in raising funds from banks at the moment,” the CM added. Incidentally, Jindal has already gone on record that the proposed 10-million tonne plant at Salboni, which was originally supposed to entail an investment of Rs 35,000 crore, could be delayed because of the current tough economic climate.
Bhattacharjee whose industrialization policies had helped disparate Opposition parties to join hands said his government had taken lessons from the mistakes committed earlier in acquiring land. “Our intention was not bad. I have no personal preference for cars. All I wanted to see was the smiling faces of thousands of workers at Singur. We wanted to make Nandigram another Haldia. But the Opposition played a destructive role,” he asserted.
However, the state was in the process of setting up a land bank largely comprising fallow land at a cost of Rs 500 crore to ensure that plots could be handed over to companies quicker. A rehabilitation package was also being drawn up for affected landlosers. “We are negotiating with a Czech company for a mass rapid transit system,” he added.
Earlier, other speakers invited at the programme said the electorate should teach the Opposition a lesson for its negative brand of politics. “We have to ensure that agitational politics is washed away from the shores of West Bengal,” town planner RM Kapoor said. “The intellectuals who are seeking change through hoardings should have the courage to specify what change they want,” painter Sunil Das said.
http://timesofindia.indiatimes.com/Cities/Industry-well-on-track-CM-/articleshow/4461421.cms
Guest Blog
Mamata Banerjee
Mamata Banerjee is the chief of All India Trinamool Congress Party, a party she formed in 1998 after parting ways with the Congress. A South Kolkata MP since 1991, she aligned with the NDA in the 1998, 1999 and 2004 Lok Sabha elections. In 2009, however, this firebrand leader is aligning with the Congress to consolidate the anti-Left vote bank. She has been railway minister in the Vajpayee government and a Minister of Sports and Youth Affairs in the Narsimha Rao Government. Last year, she made news with her vehement protests against the Tata Group's acquisition of land for the construction of its small car Nano in Singur. Ultimately, the Tatas had to make an exit from the state. In over three decades of Left rule in West Bengal, Mamata Banerjee has emerged as the only constant face of Opposition in the state.
लक्ष्य मायावती: देशी विभाजन समुदाय
टिप्पणी जोड़ें टिप्पणी जोड़ें Palash biswas द्वारा 28 मई, 2009 7:09:00 PM IST पर पोस्टेड # पलाश विश्वास 28 मई, 2009 7:09:00 IST पर पोस्टेड द्वारा #
Target Mayawati:Indigenous Communities DIVIDED Once Again as PRANAB Gets Ready for Budget to Grab Momentum and Wear REFORMS GRAB, DIVESTMENT Being the Most HUMAN FACE and DALIT leaders Co OPTED. लक्ष्य मायावती: स्वदेशी समुदाय एक बार फिर से विभाजन के रूप में प्रणब बजट के लिए ले लो तेजी और पहन लो सुधार पकड़ो, ज्यादातर मानवीय चेहरा और दलित नेता होने के नाते सह शामिल अधिकार सौंपने के लिए तैयार हो जाता है. Mamata Replaces BUDDHA IN the POWER AXIS ममता के स्थान पर बिजली धुरी में बुद्ध
Troubled Galaxy Destroyed Dreams: Chapter 241 परेशान आकाशगंगा तबाह ड्रीम्स: 241 अध्याय
Palash Biswas पलाश विश्वास
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Chat Topic: Can the Congress trust Mayawati? विषय चैट कर सकते हैं: मायावती कांग्रेस पर भरोसा?
IBNLive.com - 9 hours ago IBNLive.com - 9 घंटे पहले
Not long ago, the Mayawati-led BSP had pitched itself as part of the Third Front, projecting itself as a national alternative to the Congress. नहीं बहुत पहले, मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ही तीसरे मोर्चे के भाग के रूप में खड़ा किया था, खुद को कांग्रेस के एक राष्ट्रीय विकल्प के रूप में पेश. ... ...
Justice for Dalit victims on same day, says Mayawati Hindu मायावती हिंदू उसी दिन दलित पीड़ितों के लिए न्याय कहते हैं,
Mayawati reverts to her Dalit agenda Times of India मायावती दलित एजेंडा भारत के टाइम्स के लिए reverts
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BBC News बीबीसी समाचार
SC orders Mayawati govt to reinstate 18000 cops सुप्रीम कोर्ट के आदेश मायावती सरकार 18,000 पुलिस को बहाल करने के लिए
IBNLive.com - May 25, 2009 IBNLive.com - मई 25, 2009
New Delhi: Just a week after her poll debacle, there is another setback to Uttar Pradesh Chief Minister and Bhaujan Samaj Party chief Mayawati. नई दिल्ली: बस उसकी चुनावी पराजय के बाद एक हफ्ते वहाँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और Bhaujan समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती को एक और झटका लगा है. ... ...
Sacked Indian police reinstated BBC News बरखास्त भारतीय पुलिस बीबीसी समाचार बहाल
Take back 18000 cops: SC to Maya Times of India वापस भारत की माया टाइम्स में ले 18,000 पुलिस: एससी
SC blow to Mayawati, orders provisional appointments of sacked ... सुप्रीम कोर्ट ने मायावती को झटका, आदेश के अनंतिम नियुक्तियों को निकाल दिया ... Indian Express इंडियन एक्सप्रेस
Expressindia.com - Economic Times Expressindia.com - इकॉनॉमिक टाइम्स
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Maya continues to juggle with police administration माया को पुलिस प्रशासन के साथ धोखा देना जारी
Economic Times - 7 hours ago पहले आर्थिक टाइम्स - 7 घंटे
NEW DELHI: She may have been handed out a snub by the electorate in her state, but Uttar Pradesh chief minister Mayawati continues with her experiments in ... नई दिल्ली:, वह अपने राज्य में मतदाताओं से बाहर हो सकते हैं सौंप दिया गया है एक चपटी, लेकिन उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती में अपने प्रयोगों के साथ जारी है ...
Another layer of cops for supervisory duty Indian Express पर्यवेक्षी शुल्क इंडियन एक्सप्रेस के लिए पुलिस की एक और परत
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Pass percentage improves पास प्रतिशत में सुधार
Times of India - 6 hours ago भारत के टाइम्स - 6 घंटे पहले
The pass percentage last year was being seen as a fallout of Mayawati government's strict orders of implementing anti-copying norms and revoking the ... पास प्रतिशत पिछले साल विरोधी को लागू करने के मायावती सरकार के सख्त आदेशों का नतीजा-नकल मानदंडों और पलट के रूप में देखा जा रहा था ...
Girls outshine boys in intermediate exams in Uttar Pradesh Indopia लड़कियों उत्तर प्रदेश Indopia में इंटर परीक्षा में लड़कों को मात करना
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Indian Express इंडियन एक्सप्रेस
With Rs 500 each, they took on Mayawati 500 रु प्रत्येक के साथ, वे मायावती पर लिया
Indian Express - May 26, 2009 इंडियन एक्सप्रेस - मई 26, 2009
Supreme Court has ordered Mayawati Govt to provide provisional appointments to the constables dismissed in 2007. सुप्रीम कोर्ट ने मायावती सरकार का आदेश दिया गया है कि 2007 में खारिज कर दिया कांस्टेबल को अस्थायी नियुक्ति प्रदान करते हैं. Theirs is a story of grit, perseverance and ... उनका धैर्य, दृढ़ता और एक कहानी है ...
Rs 500 each and grit saw them through Indian Express 500 रु एक और धैर्य उन्हें इंडियन एक्सप्रेस के माध्यम से देखा
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BSP nominates nine members to UP Legislative Council बसपा के उत्तर प्रदेश विधान परिषद के नौ सदस्य मनोनीत
Times of India - 21 hours ago भारत के टाइम्स - 21 घंटे पहले
27 May 2009, 1520 hrs IST, PTI LUCKNOW: The Mayawati government has nominated nine members to the Uttar Pradesh Legislative Council but the ruling BSP will ... 27 मई 2009, 1520 hrs IST, पीटीआई लखनऊ: मायावती सरकार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के नौ सदस्यों को नामजद किया है, लेकिन सत्तारूढ़ बसपा होगा ...
Cong slams Maya for nominating partymen to LC Times of India कांग्रेस भारत के नियंत्रण रेखा टाइम्स को पार्टी के लिए नामांकित माया ज़ोर से बंद करना
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Mayawati shops for power to meet 24-hr supply target को 24 घंटा बिजली की आपूर्ति लक्ष्य से मिलने के लिए मायावती की दुकानें
Indian Express - May 25, 2009 इंडियन एक्सप्रेस - मई 25, 2009
In order to meet its target of 24-hour power supply by 2012, the Mayawati government is planning to purchase 2000 MW power from the open market for the next ... आदेश में 24 के अपने लक्ष्य घंटे की 2012 तक बिजली की आपूर्ति को पूरा करने के लिए मायावती सरकार को अगले के लिए खुले बाजार से 2000 मेगावाट बिजली खरीदने की योजना बना रहा है ...
Power employees to protest privatisation, no work boycott Times of India बिजली कर्मचारियों को निजीकरण का विरोध करने के लिए कोई काम नहीं भारत के बहिष्कार टाइम्स
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NSE:TORNTPOWER – BOM:532779 – NSE:TORNTPOWER.BL एनएसई: TORNTPOWER - BOM: 532,779 - एनएसई: TORNTPOWER.BL
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Indian Express इंडियन एक्सप्रेस
Mayawati reviews progress of developmental works in UP मायावती में विकास कार्यों की प्रगति की समीक्षा उत्तर प्रदेश
Indopia - May 24, 2009 Indopia - मई 24, 2009
Lucknow , May 24 Uttar Pradesh Chief Minister and BSP supremo Mayawati today held separate meetings with party legislators and reviewed the progress of the ... लखनऊ, 24 मई उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती ने आज पार्टी विधायकों के साथ अलग से बैठक आयोजित की और की प्रगति की समीक्षा ...
Mayawati raps partymen for poor poll show Times of India मायावती गरीब चुनावी शो के लिए पार्टीजनों भारत के टाइम्स raps
Mayawati back to the square one Sakaal Times वर्ग एक Sakaal टाइम्स वापस मायावती
Mayawati wakes up to neglected governance, holds review meet SamayLive मायावती शासन की उपेक्षा के लिए जाग, समीक्षा मिलने धारण SamayLive
Deccan Herald - Merinews डेक्कन हेराल्ड - Merinews
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Cops asked to spruce up service पुलिस को सेवा सजाना कहा
Times of India - 14 hours ago भारत के टाइम्स - 14 घंटे पहले
VARANASI: Following the line drawn by chief minister Mayawati to eliminate corruption at lower level to ensure relief to people, especially the downtrodden, ... वाराणसी: मुख्यमंत्री मायावती द्वारा तैयार की कम स्तर पर भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए लोगों को राहत सुनिश्चित करने, विशेष रूप से, दलितों की रेखा के बाद ...
BBC News बीबीसी समाचार
Stung by defeat, Mayawati to revert to Dalit agenda हार से तिलमिलाए मायावती दलित एजेंडे को वापस
Economic Times - May 19, 2009 आर्थिक टाइम्स - 19 मई 2009
LUCKNOW: Stung by the results in the just-concluded Lok Sabha polls, BSP leader and Uttar Pradesh Chief Minister Mayawati on Tuesday advocated returning to ... लखनऊ: में परिणाम ही में लोकसभा चुनाव संपन्न, बसपा नेता और मंगलवार को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से तिलमिलाए लौटने की वकालत की ...
Mayawati sacks heads, members of state corporations Times of India मायावती के बोरों के अध्यक्ष, राज्य निगमों के सदस्यों के भारत के टाइम्स
Mayawati to review poll outcome tomorrow Hindu मायावती ने चुनाव परिणाम की समीक्षा के लिए कल हिंदु
Mayawati's axe falls on 50 party leaders Sify मायावती की कुल्हाड़ी 50 पार्टी नेताओं पर सिफी फ़ॉल्स
Economic Times - Hindu आर्थिक टाइम्स - हिंदु
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Dalit NRIs opt to set up gurdwaras in foreign lands दलित आप्रवासी भारतीयों के लिए विदेशी भूमि में स्थापित गुरुद्वारे ऑप्ट
Times of India - 8 hours ago भारत के टाइम्स - 8 घंटे पहले
CHANDIGARH: Affluent Dalit Non-Resident Indians are something unheard of. चंडीगढ़: संपन्न दलित अनिवासी भारतीयों के अनसुना कुछ कर रहे हैं. Punjab's Doaba region alone has sent an estimated 20 lakh of them abroad, ... पंजाब के दोआबा क्षेत्र अकेले उनमें से एक का अनुमान 20 लाख विदेशों में भेजा है, ...
Should Dalit Sikhs have the freedom to worship? चाहिए दलित सिखों की पूजा के लिए स्वतंत्रता है? Merinews Merinews
Fire at Vienna exposes Ugly realities of caste discrimination in ... वियना में आग बदसूरत में जातिगत भेदभाव की वास्तविकताओं को उजागर ... Khabrein.info Khabrein.info
The fearless at prayer Indian Express प्रार्थना में निडर इंडियन एक्सप्रेस
Hindustan Times - Times of India हिन्दुस्तान टाइम्स - भारत के टाइम्स
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Justice for Dalit victims on same day, says Mayawati उसी दिन दलित पीड़ितों के लिए न्याय, मायावती कहते हैं,
Hindu - May 26, 2009 हिंदू - मई 26, 2009
The Chief Minister directed the DGP and the Principal Secretary (Home) that in incidents related to murder or rape of Dalits, the area would be visited by ... मुख्यमंत्री ने पुलिस महानिदेशक और मुख्य सचिव गृह (निर्देश) है कि दलितों की हत्या या बलात्कार से संबंधित घटनाओं में, इस क्षेत्र ने दौरा किया जाएगा ...
Mayawati reverts to her Dalit agenda Times of India मायावती दलित एजेंडा भारत के टाइम्स के लिए reverts
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Why Dalits have slammed Mayawati's Sarv-jan Formula? क्यों दलित मायावती Sarv-Jan फॉर्मूला की खिंचाई की है? Kerala Online केरल ऑनलाइन
IBNLive.com - Express Buzz IBNLive.com - एक्सप्रेस बज़
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Nhatky.in Nhatky.in
Dalits favoured in UPA cabinet यूपीए सरकार के पक्ष में कैबिनेट दलितों
Express Buzz - 5 hours ago एक्सप्रेस बज़ - 5 घंटे पहले
Significantly, Dalits have been included in a big way in the new Cabinet, keeping in mind the revival of the Congress in UP, Bihar and Madhya Pradesh where ... गौरतलब है कि नए मंत्रिमंडल में दलितों के पास एक बड़े पैमाने पर शामिल किया गया है, में कांग्रेस की उत्तर प्रदेश पुनरुद्धार, बिहार और मध्य प्रदेश ध्यान में रखते हुए जहां ...
Ministry expansion today, 59 MPs to be inducted IBNLive.com मंत्रालय विस्तार आज, 59 सांसदों IBNLive.com शामिल होना
Meet the B Team of Dr Manmohan Singh MyNews.in मिलने बी डॉ. मनमोहन सिंह की टीम MyNews.in
Manmohan calls up 59 MPs Chandigarh Tribune मनमोहन फोन 59 सांसदों चंडीगढ़ ट्रिब्यून
Nhatky.in - Merinews Nhatky.in - Merinews
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Calcutta Telegraph कोलकाता टेलीग्राफ
Out: Heartland grip In: Ex-cms & Dalits पता: हिंदी क्षेत्र में पकड़: पूर्व सेमी-और दलितों
Calcutta Telegraph - 10 hours ago कोलकाता टेलीग्राफ - 10 घंटे पहले
The other standout features of the ministry are a high number of Dalits and former chief ministers and fewer Muslims than expected. मंत्रालय के अन्य असाधारण विशेषताएँ दलितों और पूर्व मुख्यमंत्री और कम मुसलमानों के एक उच्च संख्या से अधिक होने की संभावना है. ... ...
Dalit count up to 10, Muslim down to 5 Indian Express दलित 10 तक गिनती, मुस्लिम 5 इंडियन एक्सप्रेस के नीचे
THE TRUTH ABOUT THE MUSLIM VOTE Calcutta Telegraph मुस्लिम वोट कलकत्ता टेलीग्राफ के बारे में सच्चाई
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Patna Daily पटना दैनिक
Chhedi Paswan denounces Ram Vilas's Dalit politics Chhedi राम विलास पासवान ने दलित राजनीति denounces
Times of India - May 26, 2009 भारत के टाइम्स - 26 मई 2009
PATNA: With the NDA making a dent into the Dalit vote bank in the just concluded elections to Parliament and total rout of LJP in Bihar led by Dalit ... पटना: राजग दलित वोट बैंक में बस में संपन्न चुनावों में सेंध संसद और लोजपा के बिहार में कुल भगदड़ में दलित बनाने के नेतृत्व के साथ ...
Chhedi Paswan Rips LJP Chief Patna Daily Chhedi पासवान Rips लोजपा के मुख्य पटना दैनिक
Political taunts continue unabated in state Times of India राजनीतिक ताने जारी राज्य में बेरोकटोक भारत के टाइम्स
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Panthic Weekly पंथक साप्ताहिक
Most members of Dalit sect don't follow Sikh tenets दलित संप्रदाय के अधिकांश सदस्यों सिख सिद्धांतों का पालन नहीं करते
Times of India - May 26, 2009 भारत के टाइम्स - 26 मई 2009
... ... their identity lies in the Ravidassia ideology, and with followers of Guru Ravidass, a Dalit saint of the 14th century Bhakti movement of India. उनकी पहचान Ravidassia विचारधारा में है, और गुरु Ravidass, 14 वीं सदी के एक दलित संत भारत के भक्ति आंदोलन के अनुयायियों के साथ. ... ...
What set off the Vienna violence Calcutta Telegraph क्या बंद वियना हिंसा स्थापित कलकत्ता टेलीग्राफ
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Dalits in Canada call Vienna killing 'act of terrorism' 'आतंकवाद के कनाडा फोन वियना' हत्या में दलितों अधिनियम
Hindu - May 25, 2009 हिंदू - मई 25, 2009
Considered to be one of their largest groups anywhere in the West, the Canadian Dalits number about 15000. कहीं पश्चिम, 15000 के बारे में कनाडा के दलितों की संख्या में अपने सबसे बड़े समूहों में से एक माना जाता. Sant Rama Nand, 57, who headed Dera Sach Khand ... संत राम नंद, 57, जो डेरा सच खंड अध्यक्षता में ...
Vienna incident- Jat-Dalit divide flashpoint वियना घटना जाट-दलित विभाजन चरम बिंदु
PunjabNewsline.com - 22 hours ago PunjabNewsline.com - 22 घंटे पहले
The Vienna incident is the result of a simmering undercurrent of animosity between the dominant Jat Sikh community of Punjab and the largely Dalit Sikh ... वियना घटना दुश्मनी के पंजाब के प्रमुख जाट सिख समुदाय और मुख्यतः दलित सिखों के बीच चल अदेखा का परिणाम है ...
World News विश्व समाचार
Sikhs succumb to casteism सिखों जातिवाद का शिकार
Express Buzz - May 26, 2009 एक्सप्रेस बज़ - मई 26, 2009
These antagonistic sentiments between the Jat Sikhs and the Dalit Sikhs have been heightened by several other factors. जाट सिखों और दलित सिखों के बीच ये विरोधी भावनाओं को कई अन्य कारणों से बढ़ गया है. One is the establishment of various ... एक विभिन्न की स्थापना की है ...
Caste cutting: Clash of identities dividing Sikhs IBNLive.com जाति काटने: सिखों IBNLive.com विभाजन पहचान का संघर्ष
Controversial 'deras' add fuel to Punjab fire Times of India 'विवादास्पद' deras पंजाब भारत की आग टाइम्स को ईंधन जोड़ें
Badal enquires about Sant Niranjan Dass' condition Press Trust of India बादल संत निरंजन 'दास की स्थिति भारत के प्रेस ट्रस्ट के बारे में पूछते हैं
Sify - Thaindian.com सिफी - Thaindian.com
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Vienna clash may put caste in global spotlight वियना संघर्ष वैश्विक सुर्खियों में जाति डाल सकते हैं
Times of India - May 25, 2009 भारत के टाइम्स - 25 मई 2009
But dalit lobbies say that Vienna bloodshed has blown holes in the argument that caste was an Indian phenomenon, firmly showing that it had spilled out on ... लेकिन दलित लॉबी का कहना है कि वियना बहस में उड़ा छेद है कि जाति का एक भारतीय घटना थी, मजबूती दिखा रहा है कि यह बाहर पर गिरा पड़ा है खून ...
Indian,germany,says:Casteism is not equal to racism, but dirtier ... भारतीय, जर्मनी, कहते हैं: जातिवाद नस्लवाद के बराबर नहीं है, लेकिन गंदी ... Times of India भारत के टाइम्स
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Out: Heartland grip In: Ex-CMs & Dalits पता: हिंदी क्षेत्र में पकड़: पूर्व मुख्यमंत्रियों और दलितों
- Singh's full council lays stress on east, west and south - सिंह के पूर्ण कौंसिल पर जोर देता है पूर्व, पश्चिम और दक्षिण की ओर
RADHIKA RAMASESHAN राधिका RAMASESHAN
New Delhi, May 27: The heartland's hold on decision-making has been broken. , 27 मई नई दिल्ली: फैसले पर है गढ़ पकड़ बनाने टूट गया है.
Manmohan Singh and Sonia Gandhi today unveiled the full council of ministers that tilted heavily towards the south, east and west and virtually bypassed the big northern states. मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी आज मंत्रियों की पूरी कौंसिल कि दक्षिण की ओर झुका हुआ भारी, पूरब और पश्चिम और वस्तुतः बड़ा उत्तरी राज्यों को नजरअंदाज का अनावरण किया.
The other standout features of the ministry are a high number of Dalits and former chief ministers and fewer Muslims than expected. मंत्रालय के अन्य असाधारण विशेषताएँ दलितों और पूर्व मुख्यमंत्री और कम मुसलमानों के एक उच्च संख्या से अधिक होने की संभावना है.
Out of the 79 members in the new council, only 16 are from the so-called heartland states of Uttar Pradesh, Rajasthan, Bihar, Jharkhand, Madhya Pradesh, Chhattisgarh and Uttarakhand. 79 सदस्यों में से नए कौंसिल में, केवल 16 उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल के तथाकथित गढ़ राज्यों से हैं.
The UPA in 2004 had 59 MPs and 24 ministers from the seven states. यूपीए 2004 में सात राज्यों के 59 सांसदों और 24 मंत्रियों था. Now, the UPA — more or less the Congress on its own unlike last time when Lalu Prasad and Ram Vilas Paswan were allies — has 65 MPs from the seven states but the number of ministers is down to 16. अब, और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन - कम या कांग्रेस की अपनी विपरीत पिछली बार जब लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान सहयोगी थे - सात राज्यों के 65 सांसदों पर मंत्रियों की संख्या 16 से नीचे है पर है.
Uttar Pradesh, once a kingmaker without which none could have become Prime Minister, will not have a single representative in the cabinet for the first time, although the Congress leapt from nine to 21 Lok Sabha seats in the state this time. उत्तर प्रदेश, एक बार एक kingmaker जिसके बिना कोई भी हो सकता है प्रधानमंत्री पहली बार मंत्रिमंडल में एक भी प्रतिनिधि नहीं होगा, हालांकि कांग्रेस के नौ से 21 राज्य इस समय में लोकसभा सीटों में से जोर से उछले.
Salman Khursheed, who was tipped to get a cabinet berth, was trumped hours before the list was out because a fellow MP and former minister, Sriprakash Jaiswal, wondered aloud why he was being passed over despite being a three-time winner. सलमान खुर्शीद, जो था एक कैबिनेट बर्थ मिल इत्तला दे दी, मात घंटे पहले सूची से बाहर गया था क्योंकि एक साथी के सांसद और पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, जोर से आश्चर्य क्यों जा रहा है तीन बार जीतने के बावजूद वह जा रहा था पर पारित किया गया था.
Khursheed's detractors in the party lent a hand to Jaiswal and had their way. पार्टी में खुर्शीद विरोधियों जायसवाल को एक हाथ उधार और उनके रास्ता था. Khursheed will now be a minister of state with independent charge. खुर्शीद अब स्वतंत्र प्रभार के साथ एक राज्य मंत्री होगा.
The fresh lot of 59 will take oath as ministers tomorrow by when the portfolios, including that of 13 cabinet ministers who were sworn in on Friday, are scheduled to be announced. 59 के ताजा बहुत मंत्रियों कल के रूप में शपथ लेंगे जब सहित विभागों, कि 13 कैबिनेट मंत्रियों में जो शुक्रवार को शपथ ग्रहण करने की घोषणा होने के हो रहे थे.
Sources said the combination of an eagerness to “correct” past regional imbalances — the UPA alliance has done far better than expected in most southern states — and conflicting demands from Uttar Pradesh that could have upset rival caste formations made the Congress tread with caution on the state. सूत्रों ने बताया कि एक उत्सुकता के संयोजन "" पिछले क्षेत्रीय असंतुलन को सही करने के लिए - यूपीए गठबंधन से सबसे दक्षिणी राज्यों - और उत्तर प्रदेश से परस्पर विरोधी मांग में उम्मीद है कि प्रतिद्वंद्वी जाति संरचना है परेशान सकता है कांग्रेस पर सतर्कता के साथ चलने की बेहतर दूर किया है राज्य. Speculation also arose that the state was being kept as a stand-by just in case Rahul Gandhi had to be inducted into the cabinet later. अटकलें भी उठा है कि राज्य में एक स्टैंड के रूप में रखा गया था जा रहा द्वारा बस में राहुल गांधी ने मामले को मंत्रिमंडल में शामिल किया बाद में होगा.
Although the heartland did not dictate the ministry's composition, one of its key players did. किया हालांकि गढ़ मंत्रालय की संरचना, अपने प्रमुख खिलाड़ियों में से एक निर्देशित नहीं किया था. Aware that BSP chief Mayavati was down but not deflated, the Congress has appointed several Dalits. पता है कि बसपा प्रमुख Mayavati नीचे नहीं बल्कि हवा निकाल रहा था, कांग्रेस के कई दलितों को नियुक्त किया है.
Sushil Kumar Shinde and Meira Kumar, brought in the first round, were dubbed “token” representations. सुशील कुमार शिंदे और मीरा कुमार, पहले दौर में लाया, "करार दिया टोकन" अभ्यावेदन थे. But the induction of Mallikarjuna Kharge, Mukul Wasnik, Kumari Selja and Krishna Tirath as cabinet ministers and minister of state with independent charge confirmed that the move was part of a strategy to try and reclaim the Dalit base that the Congress had yielded to the BSP, LJP and the RJD in Uttar Pradesh and Bihar. लेकिन कैबिनेट मंत्रियों और स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य के मंत्री के रूप में मल्लिकार्जुन Kharge, मुकुल वासनिक, कुमारी शैलजा और कृष्णा तीरथ के शामिल होने की पुष्टि की है कि इस कदम से एक कोशिश और दलित आधार है कि कांग्रेस बसपा को मिले थे सुधरनेवाला रणनीति का हिस्सा था, लोजपा और उत्तर प्रदेश और बिहार में राजद.
At the end of an improved showing in Uttar Pradesh and Bihar — although the Congress's increased vote share in Bihar did not yield seats – the party seemed reasonably sure of getting back its upper caste and Muslim votes. उत्तर प्रदेश और बिहार में सुधार दिखा के अंत में - हालांकि कांग्रेस को बिहार में वृद्धि वोट प्रतिशत सीटें उपज नहीं है - क्या पार्टी वापस अपने उच्च जाति और मुस्लिम वोट पाने के काफी यकीन है कि लग रहा था. Which was why the absence of any Muslim from the heartland in the cabinet surprised some Congress leaders who had hoped that at least one, if not two, would make it. कौन सी थी क्यों कैबिनेट में हिंदी क्षेत्र में किसी भी मुस्लिम का अभाव है जो कांग्रेस के कुछ नेताओं को उम्मीद थी कि कम से कम एक, दो नहीं तो, यह आश्चर्य होगा.
Of the five Muslim ministers in the council, only two, Ghulam Nabi Azad and Khursheed, are from the Congress. परिषद में पांच मुस्लिम मंत्रियों में से केवल दो, गुलाम नबी आजाद और खुर्शीद, कांग्रेस से हैं. The other three -- Farooq Abdullah, E Ahamed and Sultan Ahmed – are from the National Conference, the Muslim League (Kerala) and the Trinamul Congress. अन्य तीन - फारूक अब्दुल्ला, ई अहमद और सुल्तान अहमद - राष्ट्रीय सम्मेलन से हैं, मुस्लिम लीग (केरल) और Trinamul कांग्रेस. Azad is the lone Muslim cabinet minister from the Congress. आजाद लोन कांग्रेस से मुस्लिम कैबिनेट मंत्री हैं.
On May 16, as the Congress raced ahead of the BJP, there was a general consensus that the Muslims had played a big role in scripting its victory. 16 मई को, के रूप में कांग्रेस भाजपा से आगे निकल, एक आम सहमति है कि मुसलमानों को अपनी जीत पटकथा में एक बड़ी भूमिका निभाई थी. OnMay 26, this point was underlined by six Muslim organisations, including the Jamaat-e-Islami Hind and the Religious and Linguistic Minorities Association. 26 OnMay, इस बिंदु था, ए इस्लामी हिंद जमात और धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों एसोसिएशन सहित छह मुस्लिम संगठनों द्वारा रेखांकित किया.
In an appeal to Sonia and the Prime Minister, issued in Delhinewspapers, their leaders asked for at least 11 ministers on the “principle of fair representation” and the need to empower the community.As regional and sectional interests were either kept aside or misplaced, the factional pulls and pressures within the Congress that had held upthe second list came into full play. सोनिया के लिए एक अपील और प्रधानमंत्री Delhinewspapers में जारी में, अपने नेताओं को उचित प्रतिनिधित्व के सिद्धांत 'पर कम से कम 11 मंत्रियों के लिए पूछा, "और जरूरत community.As क्षेत्रीय और वर्गीय हितों को सशक्त भी अलग रखा गया था या गलत, गुटीय खींचतान और दबाव है कि कांग्रेस upthe दूसरी सूची आयोजित किया था के भीतर पूरा खेल में आया. Two former chief ministers,Vilasrao Deshmukh of Maharashtra and Virbhadra Singh of Himachal Pradesh,made the cut and increased the size of the “ex-chief minister club” in the ministry to nine. दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, विलासराव महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश के वीरभद्र सिंह के देशमुख, काट दिया और नौ को मंत्रालय में "पूर्व मुख्यमंत्री क्लब का आकार" वृद्धि हुई है.
Deshmukh's Delhi debut six months after he was booted out in Mumbai raised eyebrows. देशमुख दिल्ली की पहली छह महीने के बाद वे मुंबई में हटा दिया गया था दंग रह गया. The most charitable explanation in Delhi was the Congress needed a “big Maharashtra face” ahead of the state elections in October. दिल्ली में सबसे अधिक उदार विवरण कांग्रेस ने एक 'बड़ा महाराष्ट्र चेहरा "अक्टूबर में राज्य में चुनाव से पहले की जरूरत थी.
But Deshmukh's inclusion did not come as a surprise for Congress leaders in Maharashtra who felt that he was sacrificed as chief minister as a damage-control exercise ahead of the Lok Sabha polls. लेकिन देशमुख को शामिल किए जाने के महाराष्ट्र में कांग्रेस नेताओं के लिए एक आश्चर्य के रूप में नहीं आया था, जो महसूस किया है कि वह एक क्षति के रूप में मुख्यमंत्री नियंत्रण लोकसभा चुनाव से पहले अभ्यास के रूप में बलिदान था.
Deshmukh, who turned 64 yesterday, stole the march over Latur compatriot Shivraj Patil as the party chose him over the Nehru-Gandhi family loyalist as a representative from Marathawada. देशमुख ने, जो कल 64 बने लातूर स्वदेशवासी शिवराज पाटिल पर मार्च चुरा के रूप में पार्टी उसे नेहरू पर चुना-Marathawada से एक प्रतिनिधि के रूप में गांधी परिवार के वफादार. “This is indeed a wonderful birthday gift and I am very happy. "यह वास्तव में एक अद्भुत जन्मदिन का उपहार है और मैं बहुत खुश हूँ. I thank Soniaji, Manmohan Singh and Rahul Gandhi for giving me this big responsibility. मैं मुझे इस बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए सोनिया जी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी धन्यवाद. This is my first opportunity to work at the Centre, and I will try to use my administrative and political experience in New Delhi,” said a beaming Deshmukh. , दैदीप्यमान देशमुख यह मेरा पहला केंद्र में काम करने का मौका है, और मैं नई दिल्ली में मेरे प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव का इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे. "
Deshmukh, who had tirelessly campaigned during the general election, is also known as an advocate of the go-it-alone line in Maharashtra – a mantra that has gained currency in the Congress after Rahul Gandhi experimented with it. देशमुख, जो रहकर आम चुनाव के दौरान प्रचार भी किया जा के एक वकील के रूप में जाना जाता महाराष्ट्र में यह रेखा से अकेले - एक मंत्र है कि कांग्रेस की मुद्रा में आ गया है के बाद राहुल गांधी के साथ प्रयोग किया है. Besides, by keeping Deshmukh in Delhi till campaigning begins for the Assembly polls, the Congress is also hoping to minimise the intra-party squabbles with Narayan Rane. इसके अलावा, दिल्ली में चुनाव प्रचार तक देशमुख रखकर विधानसभा चुनावों के लिए शुरू होता है, कांग्रेस को भी अंतर पार्टी नारायण राणे के साथ तकरार कम से कम करने की उम्मीद है.
If a silver lining was to be spotted, it was in the overly large number of Lok Sabha MPs who made it today, unlike in the first round. यदि किसी को उम्मीद की किरण थी देखा होगा, यह लोकसभा सांसदों की पीढ़ी बड़ी संख्या है, जो आज की पहले दौर के विपरीत में था. Of the 59 names, only three – MSGill, Prithviraj Chavan and Jairam Ramesh -- came from the Upper House.The first list had seven Upper House members among 19 ministers and had made restive battle-weary winners of a long and hard election. 59 नामों में से सिर्फ तीन - MSGill, पृथ्वीराज चव्हाण और जयराम रमेश - ऊपरी House.The पहली सूची से आए 19 मंत्रियों के बीच सात ऊपरी सदन के सदस्य थे और बेचैन लड़ाई एक लंबी और कठिन चुनाव के थके हुए विजेता बना दिया.
With inputs from Satish Nandgaonkar in Mumbai सतीश Nandgaonkar से मुंबई में जानकारी के साथ
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http://www.telegraphindia.com/1090528/jsp/frontpage/story_11030536.jsp http://www.telegraphindia.com/1090528/jsp/frontpage/story_11030536.jsp
Mayawati is defeated in the First Ever Varna Yuddha, Open Caste War in the History of Indian Parliamentary democracy thanks to Caste Hindu Vote Polarisation against Dalit Empowerment, Manipulated by Desi Zionist Illuminati, India Incs, Toilet FDI fed Media, Civil society,Intelligentsia and Hindutva forces! शौचालय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मायावती जब Varna Yuddha, खोलो जाति भारतीय संसदीय लोकतंत्र धन्यवाद के इतिहास में पहले युद्ध में दलित अधिकारिता, देसी यहूदी Illuminati, भारत Incs से छेड़छाड़ के खिलाफ जाति हिंदू वोट ध्रुवीकरण को हराया है, नागरिक समाज मीडिया, बुद्धिजीवियों और हिंदुत्व तंग आ गया सेना! Just in a way as they SAVED UPA Government aligning with NDA while the Left projected Mayawati, the Dalit Girl as the Next Prime Minister face. बस एक तरह के रूप में वे यूपीए सरकार को बचाया राजग के साथ aligning जबकि वाम मायावती दलित अगला प्रधानमंत्री चेहरे के रूप में लड़की का अनुमान. So they got unexpected results in Caste strife torn North India as UPA romped home with decisive Mandate to continue Mass Destruction! तो वे जाति संघर्ष में अप्रत्याशित परिणाम निर्णायक जनादेश के साथ यूपीए romped घर के रूप में उत्तर भारत फटे पास सामूहिक विनाश जारी!
Bengali Brahamin Pranab Mukherjee has been the Key man who won the caste war for the Ruling Brahaminical Hegemony and succeeded to defeat the reluctant LEFT as well. बंगाली Brahamin प्रणव मुखर्जी मुख्य आदमी है जो सत्तारूढ़ Brahaminical वर्चस्व के लिए जाति युद्ध जीत और अनिच्छुक वाम हार के रूप में अच्छी तरह से सफल रहा है.
Now Pranab emerges the Political face of DIVESTMENT,more political, strategic and human than Disinvestment, for hard sell of national resources and Production units depriving our people of JOB,Livelihood and Purchasing capacity for survival and sustenance! अब प्रणव राष्ट्रीय संसाधनों और उत्पादन इकाइयों के कठोर बेचने के लिए विनिवेश की राजनीतिक चेहरा, और राजनैतिक, सामरिक और विनिवेश से मानव, उभर रोजगार, आजीविका और उत्तरजीविता और जीविका के लिए खरीद क्षमता का हमारे लोगों को वंचित!
Mayawati is stopped for the time being and she is not DEFLATED in any sense. मायावती ने कुछ समय के लिए बंद कर दिया है और किसी भी मायने में वह हवा निकाल नहीं है. So North India and Mayawati are TARGETED once again using the best toll traditional, Manmohan and Sonia Brigade co opts some Dalit Faces in the Cabinet to appease and divide the black Untouchables. तो उत्तर भारत और मायावती ने एक बार फिर लक्षित सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक टोल, मनमोहन और सोनिया ब्रिगेड सह प्रयोग कर रहे हैं मंत्रिमंडल में कुछ दलित चेहरे opts को खुश और काले अछूत विभाजित.
I have written and spoken so many times that Post Ambedkar Indigenous leaders failed to uphold the Ambedkar Ideology and legacy as the Indian Marxists deviated from Marxism! मैं और लिखा है कई बार बात की है कि पोस्ट आंबेडकर स्वदेशी नेताओं को अम्बेडकर विचारधारा और भारतीय मार्क्सवादी मार्क्सवाद से भटक विरासत के रूप में बनाए रखने में विफल!
This Ideological deviation is the mother of all Calamities as the Gang of Killers and Immoral Impostors,Washington slaves and LPG Mafia backed by Desi and Global Illuminati, Zionism and US Corporate Imperialism as well as Desi fascist Hindutva got FULL CONTROL in affairs related to this DIVIDED Bleeding Geopolitics. इस वैचारिक विचलन हत्यारों और अनैतिक Impostors, वॉशिंगटन दास और रसोई गैस के माफिया गिरोह देसी और ग्लोबल Illuminati, इजरायलवाद और अमेरिकी कॉर्पोरेट सम्राज्यवाद के रूप में के रूप में अच्छी तरह से देसी फासीवादी हिंदुत्व का समर्थन के रूप में सभी आपदाओं की माँ है इस विभाजन से संबंधित मामलों में पूरा नियंत्रण है Geopolitics रक्तस्राव. it turned out to be an INFINITE War Zone and our people have no OPTION but to wait for their TURN to be Killed! यह निकला एक अनंत युद्ध और हमारे क्षेत्र के लोगों को कोई विकल्प नहीं है लेकिन अपनी बारी का इंतजार करने को मारा जा सकता!
DR BR Ambedkar was a national Leader as Netaji Subhash Chandra Bose, MD Ali Jinnah and Deshbandhu CR das had been. डॉ. बी.आर. अम्बेडकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रबंध निदेशक अली जिन्ना और Deshbandhu सीआर दास के रूप में एक राष्ट्रीय नेता थे किया गया था.
DR Ambedkar won TRADE UNION Right for us. डॉ. आंबेडकर ट्रेड यूनियन अधिकार जीत हमारे लिए. Ensured Hindu Code and maternity leave for our enslaved Sudra women. सुनिश्चित हिंदू संहिता और मातृत्व हमारे दास शूद्र महिलाओं के लिए छोड़ दें. Fixed eight hours working time. आठ घंटे निश्चित समय काम. His work as the labour Minister in British council of Minister is NEVER kept in Mind and he has been Portrayed a DISASSOCIATED personality from the Productive forces! अपने मंत्री की ब्रिटिश काउंसिल में श्रम मंत्री के रूप में काम नहीं है कोई बात नहीं रखा और वे उत्पादक बलों से एक DISASSOCIATED व्यक्तित्व को चित्रित किया गया है! This is the Greatest Hinderance that our people constituting most of the Productive and Social forces failed to mobilise themselves against LPG Mafia and the KILLER Money machine! यह सबसे बड़ी Hinderance है कि हमारे लोगों को उत्पादक और समाज के सबसे बलों का गठन होता है खुद को रसोई गैस माफिया और हत्यारा पैसा मशीन के खिलाफ लामबंद असफल! We just became habitual to bear with the Leftist Trade Unions forgetting the role of Ambedkar in trade Unions Movements and the Marxists, led by Bengali and Malayali Brahmans BETRAYED. हम सिर्फ वामपंथी ट्रेड यूनियनों के व्यापार में आंबेडकर की भूमिका संचलन और मार्क्सवादियों, बंगाली और मलयाली Brahmans धोखा के नेतृत्व में भूल संघों के साथ सह आदत बन गई. for last Forty years they are TAGGED with Bargaining and coalition formula and kept the Trade Union as well as Peasant and student Movement into deep FREEZE! पिछले चालीस साल से वे बार्गेनिंग और गठबंधन फार्मूला और ट्रेड यूनियन के रूप में रखा के रूप में अच्छी तरह से किसान और छात्र आंदोलन में गहरी जम के साथ टैग की गईं हैं! Lest they should COME OUT in resistance,so the Manusmriti Hegemony of UPA and NDA chalked out HUNDRED days` plan dictated by India Incs for the FINAL KILL. ऐसा न हो कि वे विरोध में बाहर आओ, तो चाहिए यूपीए और राजग के Manusmriti नायकत्व सौ दिन 'भारत Incs द्वारा अंतिम मारने के लिए तय योजना तैयार.
In Bengal, sizable section of BRAHAMINICAL Hegemony and civil society stood Rock solid with Resistance Face MS Mamata Bannerjee and her Trinamul congress to VOTE OUT the Marxists! बंगाल में BRAHAMINICAL नायकत्व का बड़ा भाग और नागरिक समाज खड़ा रॉक प्रतिरोध का सामना एमएस ममता बनर्जी और उनके Trinamul कांग्रेस के साथ ठोस के लिए मार्क्सवादी बाहर वोट!
But eventually Mamata and TMC also Joined the KILLERS Gang as they never had any Political or Social or Economic Vision or willpower to liberate the Majority Indigenous and Aboriginal communities Enslaved! लेकिन अंत में ममता और टीएमसी भी हत्यारों गिरोह के रूप में वे किसी भी राजनीतिक या सामाजिक या आर्थिक दृष्टि या अधिकतर देशी और ऐबोरजीनी समुदाय मुक्त संकल्प था कभी नहीं दासत्व में शामिल! Mamata , in hand in Hand with Pranab Mukherjee may no prove SAVIOUR of black Untouchables what if the MATUAS led by Thakurnagar Hegemony rally behind her. ममता, हाथ में हाथ में प्रणव मुखर्जी के साथ कोई काला अछूत के रक्षक साबित हो सकता है कि अगर उसके पीछे Thakurnagar नायकत्व रैली के नेतृत्व में MATUAS.
Kolkata Civil society and Intelligentsia never stood with us for our Citizenship, Reservation,Civil and Human rights. कोलकाता के लिए नागरिक समाज और बुद्धिजीवी वर्ग हमारे साथ खड़ा नहीं हमारी नागरिकता, आरक्षण, नागरिक और मानव अधिकारों. they rejected the EXISTENCE of OBC in Bengal. वे बंगाल में अन्य पिछड़ा वर्ग के अस्तित्व को खारिज कर दिया. they practice Scientific UNTOUCHABILITY co opting the best amongst us! वे अभ्यास वैज्ञानिक अस्पृश्यता हमारे बीच बेहतरीन विकल्प चुनने वाले सह! They deny any SPACE for the Black Untouchables in any sphere of life! वे जीवन के किसी भी क्षेत्र में काले अछूत के लिए किसी भी अंतरिक्ष से इनकार! they Kept MUM for SIX decades about the PLIGHT of our People scattered systematically to monopolise Brahamincal state Power and Culture and Nationality and Mother Tongue. वे रखा हमारे लोगों की दुर्दशा के बारे में छह दशकों के लिए माँ को व्यवस्थित बिखरे हुए को Brahamincal राज्य विद्युत और संस्कृति और राष्ट्रीयता और मातृ भाषा एकाधिकार. They remained silent for THIRTY years against ETHNIC CLEANSING in Marichjhanpi by comrade Jyoti Basu assisted by ASHOK MITRA and BUDDHADEB! वे Marichjhanpi में जातीय शुद्धीकरण के खिलाफ तीस कामरेड ज्योति बसु और बुद्धदेव अशोक मित्र की सहायता से साल के लिए चुप रह!
AILA exposed the METRO based media and CIVIL Society once again. AILA मीडिया और सिविल सोसायटी के आधार पर एक बार फिर उजागर मेट्रो. They have no tears for the Black UNTOUCHABLES WHO LIVED IN MORE THAN SEVENTY Villages adjoining SUNDER VANA, WSHED OUT. वे काले अछूत डब्ल्यूएचओ सत्तर VANA, WSHED बाहर सुंदर पड़ोस के गांवों से अधिक रहने के लिए कोई आँसू है.
They keep on CRYING for ELECTRICITY and Water for the PRIVILEGED Metro and SUBURBAN! वे विशेषाधिकार प्राप्त मेट्रो और उपनगरीय के लिए बिजली और पानी के लिए रो रही रहो!
They have not a DROP of TEAR for the DEAD and INJURED and launched an ELECTIONEERING Campaign eying Corporation and Assembly Elections shaped in COMPASSION COMPETITION so NAKED. उन्होंने एक मर चुका है और घायल के लिए आंसू की बूंद और एक चुनाव प्रचार अभियान निगम और विधानसभा दया प्रतियोगिता में आकार का चुनाव eying तो नग्न शुरू की नहीं है.
I am afraid that MOBILISATION of Black UNTOUCHABLES against LPG ANTI NATIONAL Mafia is very TOUGH in Bengal as well as in north India for the same reason as we never try to UNDERSTAND the AMBEDKAR Ideology. मुझे डर है कि रसोई गैस विरोधी राष्ट्रीय माफिया के खिलाफ काले अछूत की लामबंदी बहुत बंगाल में है मुश्किल के रूप में अच्छी तरह से उत्तर भारत में के रूप में एक ही कारण के लिए के रूप में हम कोशिश अम्बेडकर विचारधारा कभी नहीं समझ रहा हूँ. Since Dr Ambedkar was elected to the Constituent Assembly defeating PR Thakur, the Grand son of GURUCHAND Thakur, Matuas never follow AMBEDKAR! के बाद से डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा के लिए चुने गए पीआर ठाकुर, GURUCHAND ठाकुर, Matuas के ग्रैंड बेटे को हराने का पालन करें अम्बेडकर कभी नहीं था! Two Hundred years of DALIT Renaissance in Bengal failed to invoke the Black Untouchables in Bengal as PR Thakur Family joined CONGRESS.Now they affiliate themselves with MAMATA Bannerjee, the best associate of PRANAB MUKHERJEE. दो सौ दलित पुनर्जागरण की बंगाल में साल के लिए बंगाल में पीआर ठाकुर परिवार CONGRESS.Now में शामिल हो गए वे ममता बनर्जी, प्रणव मुखर्जी की सबसे अच्छी सहयोगी के साथ स्वयं को संबद्ध के रूप में काले अछूत आह्वान विफल रहे. Matua Mother BADO MAA appeals MAMATA to solve the Dalit Refugee Problems as Three CORORE Matuas support TMC as she claims! Matua माँ BADO माँ अपील ममता दलित रिफ्यूजी समस्याओं को सुलझाने के लिए तीन CORORE Matuas समर्थन टीएमसी के रूप में के रूप में वह दावा!
Just remember the role of the Power Axis of PRANAB ADWANI and BUDDHA in nationwide DEPORTATION DRIVE against Bengali refugees. बस बंगाली शरणार्थियों के खिलाफ प्रणब ADWANI और बुद्ध के पावर अक्षरेखा के निर्वासन राष्ट्रव्यापी अभियान में भूमिका याद है.
What change?
Only change I see that MAMATA takes the place of BUDDHA in the AXIS! केवल बदल मैं देख रहा हूँ कि ममता धुरी में बुद्ध की जगह लेता है!
Dr AMBEDKAR pleaded for ANNIHILATION of Caste and struggled for Caste less classless Society based on EQUALITY and Fraternity and Justice. डॉ. आंबेडकर जाति के विनाश के लिए प्रार्थना की और संघर्ष जाति के लिए कम वर्गहीन समाज समानता और भाईचारे और न्याय पर आधारित है.
DR Ambedkar NEVER supported Caste System or CASTE Hegemony. डॉ. आंबेडकर कभी जाति प्रणाली या जाति नेतृत्व का समर्थन किया.
BUT POST AMBRDKAR Movement is all about a DALIT HEGEMONY to replace BRAHAMINICAL Hegemony sustaining the Caste System, Manusmriti Rule, LPG mafia ,SEGREGATION of OBC and TRIBALS and Minorities! लेकिन पोस्ट AMBRDKAR आंदोलन सब एक दलित नेतृत्व के बारे में BRAHAMINICAL नायकत्व की जगह जाति व्यवस्था, Manusmriti नियम, रसोई गैस माफिया, ओबीसी और जनजातियों और अल्पसंख्यकों के अलगाव को बनाए रखना है!
Hence UPA as well as NDA and the MARXISTS do SUCCEED to sustain the GREAT caste DIVIDE to defeat and kill our people! इसलिए यूपीए के रूप में के रूप में अच्छी तरह से राजग और मार्क्सवादियों के लिए ग्रेट जाति को हरा विभाजन बनाए रखने और हमारे लोगों को मार सफल हो!
Meanwhile, The Union Council of Ministers was expanded on Thursday with the induction of 59 ministers including three former chief ministers Vilasrao Deshmukh, Farooq Abdullah and Virbhadra Singh at the Cabinet level. इस बीच, केंद्रीय मंत्रियों की परिषद की गुरुवार को तीन कैबिनेट स्तर पर पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख, फारूक अब्दुल्ला और वीरभद्र सिंह समेत 59 मंत्रियों के शामिल होने के विस्तार किया गया था.
In all, 14 cabinet ministers, including DMK nominees MK Alagiri, Dayanidhi Maran and A Raja, and Congress' Mallikarjun Kharge were sworn in by President Pratibha Patil, six days after Prime Minister and 19 others took oath in the first instalment. सभी में, 14 द्रमुक के उम्मीदवार एम.के. Alagiri, दयानिधि मारन और एक राजा, और कांग्रेस के मल्लिकार्जुन Kharge सहित कैबिनेट मंत्रियों में छह दिन प्रधानमंत्री के बाद राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने शपथ ली थी और 19 अन्य लोगों की पहली किस्त में शपथ ली.
Seven Ministers of State with Independent Charge, including Praful Patel of NCP, Prithviraj Chavan, Salman Khursheed and Jairam Ramesh and 38 Ministers of State were also sworn in at a ceremony in the Rashtrapati Bhawan attended among others by Vice President Hamid Ansari, Prime Minister Manmohan Singh and Congress President Sonia Gandhi. सात राकांपा, पृथ्वीराज चव्हाण, सलमान खुर्शीद और जयराम रमेश और 38 राज्य मंत्रियों के प्रफुल्ल पटेल सहित स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य के मंत्रियों ने राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में शपथ ली थी उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा अन्य लोगों के बीच में भाग लिया सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी.
With Thursday's induction, the strength of the Union Council of Ministers goes up to 79, including the Prime Minister, the same as the previous UPA government after the exit of Shivraj Patil. गुरुवार शामिल होने के बाद मंत्रियों की केन्द्रीय परिषद की संख्या 79 तक चला जाता है, प्रधान मंत्री शिवराज पाटिल के निकास के बाद पिछले यूपीए सरकार के रूप में ही शामिल है.
MS Gill, Selja, Subodhkant Sahay, GK Vasan, Pawan Kumar Bansal, Kantilal Bhuria were the other cabinet ministers inducted today, all from Congress who have been elevated from the status of Ministers of State. , शैलजा एमएस गिल, Subodhkant सहाय, जी.के. वासन, पवन कुमार बंसल, Kantilal भूरिया अन्य मंत्रिमंडल ने आज शामिल किया, मंत्री थे कांग्रेस गया है जो राज्य के मंत्रियों के स्तर से ऊपर उठाया से सब. Mukul Wasnik, an MoS in the PV Narasimha Rao government, has been brought in as a Cabinet Minister. मुकुल वासनिक, पी.वी. नरसिंह राव सरकार में राज्यमंत्री में लाया गया है एक कैबिनेट मंत्री के रूप में.
Sriprakash Jaiswal and Dinsha Patel have been elevated as Ministers of State with Independent Charge while Delhi MP Krishna Tirath makes her ministerial debut in the same category. श्रीप्रकाश जायसवाल और दिनशा पटेल गया स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य के मंत्रियों के रूप में पदोन्नत किया है, जबकि दिल्ली के सांसद कृष्णा तीरथ उसी श्रेणी में मंत्री पहली फिल्म बनाता है.
Prominent among the new ministers who were sworn in were Shashi Tharoor, a former UN diplomat who won from Thiruvananthapuram, Sachin Pilot and Praneet Kaur, wife of former Punjab Chief Minister Amarinder Singh, and Agatha Sangma, daughter of former Lok Sabha Speaker PA Sangma. नए मंत्रियों में जो शपथ ली थी बीच प्रमुख शशि थरूर, एक संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक ने तिरुअनंतपुरम, सचिन पायलट और Praneet कौर, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी, और अगाथा संगमा, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा की बेटी से जीते थे.
The expansion also saw induction of six Trinamool Congress MPs, four from DMK and one from Muslim League. विस्तार भी छह तृणमूल कांग्रेस के सांसद, द्रमुक से चार और मुस्लिम लीग से एक के अधिष्ठापन देखा.
Of the 14 new Cabinet ministers, Kharge, a senior leader from Karnataka, Selja and Wasnik belong to Scheduled Caste while Bhuria belongs to Scheduled Tribe. नए 14 कैबिनेट मंत्रियों में से, कर्नाटक, शैलजा और वासनिक के एक वरिष्ठ नेता Kharge अनुसूचित जाति के हैं, जबकि भूरिया अनुसूचित जनजाति का है. Tirath also belongs to Scheduled Caste. तीरथ भी अनुसूचित जाति का है.
Deshmukh, who belongs to dominant Maratha caste, had to quit as Chief Minister in the aftermath of terror attack in Mumbai in November last year. देशमुख, जो प्रमुख मराठा जाति का है मुंबई में आतंकी हमले के बाद पिछले साल नवंबर में मुख्यमंत्री के रूप में छोड़ दिया था.
The other Ministers of State who would be sworn in are E Ahamed (Muslim League), V Narayanasamy, Namo Narain Meena, Srikant Jena, Mullapally Ramachandran, A Sai Prathap, Harish Rawat, D Purandeswari, Panabaka Lakshmi, Ajay Maken, Gurudas Kamat, KH Muniyappa, Jyotiraditya Scindia, Jitin Prasada, MM Pallam Raju, Mahadev Khandela, and KV Thomas (all Congress). राज्य के अन्य मंत्रियों को शपथ दिलाई जाएगी ई अहमद (मुस्लिम लीग), वी नारायणसामी, नमो नारायण मीणा, श्रीकांत जेना, Mullapally रामचंद्रन, एक साई प्रताप, हरीश रावत, डी पुरंदेश्वरी, पनबाका लक्ष्मी, अजय माकन, गुरुदास कामत रहे हैं, के.एच. मुनियप्पा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, एम एम पल्लम राजू, महादेव Khandela, और के.वी. थामस (सभी कांग्रेस).
Sensex up 1.3 pct; Reliance, L&T lead ऊपर सूचकांक 1.3 pct, रिलायंस, एल एंड टी का नेतृत्व
Reuters रायटर
Posted: May 28, 2009 at 1302 hrs IST पोस्ट: मई 28, 2009 1302 बजे IST
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Mumbai The BSE Sensex shrugged off a shaky start and rose 1.3 per cent on Thursday, as investors covered short positions on the last day of monthly derivatives contracts. मुंबई बीएसई सेंसेक्स ने एक अस्थिर शुरू सरका दिया जाता है और गुरुवार को 1.3 प्रतिशत गुलाब, के रूप में मासिक डेरिवेटिव अनुबंधों के आखिरी दिन पर छोटे निवेशकों की स्थिति को कवर.
Energy giant Reliance Industries and leading engineering and construction firm Larsen & Toubro led the gains. ऊर्जा की दिग्गज कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज और इंजीनियरिंग और निर्माण कंपनी लार्सन एंड टुब्रो प्रमुख लाभ का नेतृत्व किया.
"Today, anything that happens will depend on the derivatives expiry," Arun Kejriwal, strategist at research firm KRIS, said. "आज, कुछ भी है कि डेरिवेटिव समाप्ति पर निर्भर करेगा होता है," अरुण केजरीवाल, अनुसंधान फर्म Kris पर रणनीतिकार, ने कहा.
By 12:12 pm, the 30-share BSE index was up 1.3 per cent at 14,289.64 points, with 24 stocks advancing, after briefly turning negative in early deals. 12:12 तक 30 शेयर बीएसई सूचकांक में 1.3 प्रतिशत ऊपर 14,289.64 अंक पर था, 24 में आगे बढ़ने के स्टॉक के साथ, संक्षेप में जल्दी सौदों में नकारात्मक मोड़ के बाद.
The benchmark has gained three-quarters of its value from a 2009 low in early March, riding a global rally and fuelled by about $5.5 billion of investments from foreign funds. एक मानक 2,009 कम से तीन अपने मूल्य के क्वार्टर मार्च के प्रारंभ में इजाफा हुआ है, एक वैश्विक रैली घुड़सवारी और के बारे में 5.5 डॉलर विदेशी धन से निवेश के अरब की शह.
Expectations are high after the Congress party-led coalition won a second term and Finance Minister Pranab Mukherjee said the government needed to push long pending reforms in the financial sector and in the real economy to support growth. कहा उम्मीदें कांग्रेस पार्टी के बाद उच्च नेतृत्व वाली गठबंधन कर रहे हैं एक दूसरे कार्यकाल और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीता सरकार को वित्तीय क्षेत्र में लम्बे समय से धक्का सुधारों की जरूरत है और वास्तविक अर्थव्यवस्था में विकास के लिए समर्थन करते हैं.
India's annual inflation was at 0.61 per cent in the 12 months to May 16, matching the previous week's annual rise, government data showed on Thursday. भारत की वार्षिक मुद्रास्फीति की दर 12 महीने में 0.61 प्रतिशत में 16 मई तक गया था, पिछले हफ्ते की वार्षिक वृद्धि मिलान, सरकारी आंकड़े गुरुवार को दिखाया.
Reliance, which has the most weight in the main index, rose 1.6 per cent to 2,222.10 rupees, while Larsen gained 2.8 per cent to 1,348.50 rupees ahead of its financial result. रिलायंस, जो मुख्य सूचकांक में सबसे ज्यादा वजन है 2,222.10 रुपए पर 1.6 प्रतिशत गुलाब, जबकि लार्सन 1,348.50 अपने वित्तीय परिणाम के आगे रुपये से 2.8 प्रतिशत प्राप्त की.
Top telecoms firm Bharti Airtel, which is in merger talks with South Africa's MTN, advanced 2.8 per cent to 790.35 rupees after falling over 10 per cent in the past three sessions. शीर्ष telecoms कंपनी भारती एयरटेल, जो दक्षिण अफ्रीका के MTN के साथ विलय की वार्ता में है पिछले तीन सत्रों में 10 फीसदी से अधिक गिरने के बाद 790.35 रुपए पर 2.8 प्रतिशत उन्नत.
In the broader section, gainers led losers by more than 1.5 to 1 on relatively heavy volume of 317.1 million shares. व्यापक खंड में, फायदे से अधिक 1.5 से हारे 1 से नेतृत्व में 317.1 million शेयरों की अपेक्षाकृत भारी मात्रा पर.
The 50-share NSE index was up 0.7 per cent at 4,306.55. 50 शेयर एनएसई सूचकांक 0.7 प्रतिशत ऊपर 4,306.55 पर था.
Stock prices zoom as promoters up stake स्टॉक की कीमतों ने हिस्सेदारी प्रमोटरों के रूप में ज़ूम
28 May 2009, 1227 hrs IST, Prashant Mahesh, ET Bureau 28 मई 2009, 1227 hrs IST, प्रशांत महेश, एट ब्यूरो
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MUMBAI: Stocks where promoters have increased stake via the creeping acquisition method during September-March 2009 seem to be catching the eyes मुंबई: शेयर जहां प्रमोटरों जीव अधिग्रहण विधि द्वारा दांव सितम्बर के दौरान वृद्धि हुई है-2009 मार्च लगता आंखों को पकड़ने चाहिए
Pick stocks on fundamentals बुनियादी बातों पर शेयर उठाओ
Fiscal & revenue deficit राजकोषीय और राजस्व घाटा
Short-term plans are safe bets लघु अवधि की योजना बना रहे हैं सुरक्षित दांव
Five facts on stock falls शेयर पर पांच तथ्यों फ़ॉल्स
Volatility: Bet on big guns अस्थिरता: बड़ी तोपों पर शर्त
of shrewd investors. के चतुर निवेशक.
Stocks of several large-cap companies and mid-cap companies, where promoters have increased stake, have moved up during the current rally reflecting investor confidence. कई बड़ी कंपनियों और टोपी मध्य कैप कंपनियों के स्टॉक्स जहां प्रमोटरों की हिस्सेदारी बढ़ गई है, मौजूदा निवेशकों के विश्वास को दर्शाती रैली के दौरान चला गया है. As per Sebi regulations promoters can increase their stake through the open market by 5% every year. सेबी के नियमों प्रमोटरों के अनुसार खुले बाजार के माध्यम से 5% प्रत्येक वर्ष से अपना हिस्सा बढ़ा सकते हैं.
Clearly, it was a tough period for both the Indian as well as global economy. जाहिर है, इसके लिए एक कठिन दौर था दोनों के साथ ही भारत विश्व अर्थव्यवस्था. Capital was scarce and big economies like the US had to pump in several billion dollars to bail out companies. पूंजी दुर्लभ और बड़ा था अमेरिका जैसे अर्थव्यवस्था में कई अरब डॉलर में पंप के बाहर कंपनियों जमानत था. Despite these tough conditions , globally several promoters have raised stake, inspiring confidence in the company. इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, दुनिया भर में कई प्रमोटरों की हिस्सेदारी उठाया है, कंपनी में प्रेरणादायक विश्वास.
While in cases where shareholding is low, an increase in holding helps a promoter ward off any takeover threat, otherwise too, an increase in stake is perceived positively by investors as it indicates confidence of a promoter in his own company. जबकि मामलों में जहां हिस्सेदारी कम है, जोत में वृद्धि में मदद करता है एक प्रमोटर से कोई खतरा अधिग्रहण वार्ड, नहीं तो भी हिस्सेदारी में वृद्धि निवेशकों द्वारा सकारात्मक माना जाता है क्योंकि वह अपनी कंपनी में प्रमोटर के विश्वास इंगित करता है.
Take the case of Reliance Communications , where the promoters have marginally increased their stake by 1.22% by buying 2.05 crore shares, saw its stock price spurt from Rs 232 to Rs 304, a rise of 31%.
Mahindra and Mahindra promoters bought 1.29 crore shares, increasing the promoter stake to 29.20%, with the stock moving up from Rs 514 to Rs 626, a gain of 22%. RPG Group company, Ceat, where the promoters holding increased by 4.82% to 48%, by buying 16.5 lakh shares saw its stock price increase from Rs 58 to Rs 88, a gain of 83%.
Aditya Birla Nuvo, where the promoters bought 12.5 lakh shares, or increased their stake by 1.32%, saw its price move from Rs 550 to Rs 872, a whopping 58%. Videocon Industries saw the promoter buying 9 lakh shares during the period .
The stock price moved up from Rs 114 to Rs 169, a rise of 48%. Tata Elxsi, where the promoters bought 1.38 crore shares, saw its price moving from Rs 124 to Rs 150 a gain of 21%. Bajaj Hindusthan, where the promoters bought 10 lakh shares, saw its price spurt from Rs 108 to Rs 136, a gain of 26%.
Besides this, there are a host of mid-cap companies, where promoters have increased their stake by buying from the open market. Some examples are Simplex Infra, where promoters increased their stake by 4.8% saw its price zoom from Rs 211 to Rs 390, an 85% gain and Vinati Organics where promoters increased stake by 3.74% saw its stock price rise from Rs 90 to Rs 130, a gain of 44%.
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JBF Industries , in which promoters increased their stake by 4.74% to 42.92%, saw its stock move from Rs 43 to Rs 67, a gain of 56%. “A promoter best knows what is happening in the company and if he is increasing his stake in the company, it shows great confidence and increases investor faith” , says Alok Churiwala, managing director, Churiwala Securities.
SEBI may relax rules to help companies raise funds for their arms
28 May 2009, 0704 hrs IST, Reena Zachariah, ET Bureau
MUMBAI: The Securities and Exchange Board of India (Sebi) is considering a proposal to exempt infrastructure companies from the current rule that
SIP route for small investors
How to review MF investments?
Managing short-term loan repayment
What governs interest rates?
restrains parent companies from raising money through public issue of debentures for funding group companies.
Industry officials say the move is aimed at boosting the corporate debt market by making it easier for companies to tap this mode of fund raising. Also, many infrastructure companies are waiting to tap the debt market to fund their projects housed in special purpose vehicles.
“We have received requests to relax the norms for infrastructure companies...we are examining the issue,” said a Sebi official.
Most infrastructure companies follow the holding company and special purpose vehicle (SPV) structure because of the nature of the business. Funding requirements vary from project to project, and so the company undertakes different projects in various SPVs.
Since SPVs do not have a strong credit rating on their own, it becomes difficult for them to raise money by issuing bonds. Also, the debt requirement may not be large enough to justify a public issue of debt.
“In the long term, we believe mainly NBFCs (non-banking finance companies) and infrastructure companies will tap the public issue of debt market, so it is important that the regulatory bottlenecks related to these two sectors are removed,” said a senior banker.
“The highest amount of money required by any sector is infrastructure...and a lot of companies want to raise money from the public,” the banker added.
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