पत्रकारों ने बजा दी अंबानी की ईंट से ईंट
नोएडा। सीएनएन- आईबीएन 7 से 300 से ज्यादा पत्रकारों को निकाले जाने के खिलाफ आज पत्रकारों और उनके शुभचिंतकों ने अंबानी साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी।
पत्रकार एकजुटता मंच के बैनर तले आज सैकड़ों पत्रकारों ने सीएनएनआईबीएन7 के दफ्तर के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया।
पत्रकार एकजुटता मंच की ओर से कहा गया कि यह मुद्दा केवल सीएनएन-आईबीएन के लगभग 350 मीडियाकर्मियों को रातों-रात नौकरी से निकाल दिये जाने का ही नहीं है, बल्कि मीडिया के लोकतांत्रीकरण का मुद्दा है। आम जनता से लेकर सरोकार से जुड़े लोगों, पूँजी और सत्ता के गठजोड़ में पिस रहे दलित-दमित लोगों को पत्रकारिता की वर्तमान हालत और पत्रकारों से हज़ार शिकायतें होंगी। इन में सैकड़ों खोट नजर आती होंगी, जो कि जायज भी होती हैं। लेकिन ये खामियाँ इसी कारण से हैं क्योंकि मीडिया संस्थान मुनाफे की होड़ में घोर अलोकतांत्रिक बना दिये गये हैं। लिहाजा वहाँ काम कर रहे पत्रकारों की हालत से लेकर उनके द्वारा की जा रही पत्रकारिता में भी विरूपताएं भरी पड़ी हैं। मीडियाकर्मियों की छँटनी को केवल उनके जीवन-यापन के संकट में नहीं देखा जाना चाहिए। यह पूरी पत्रकारिता का संकट है.
आंदोलन की अगुआई कर रहे सुयश सुप्रभ ने कहा कि नोएडा में आज के विरोध-प्रदर्शनमें आज कड़ी धूप में जो साथी भव्य होटल जैसी बिल्डिंग के सामने नारे लगा रहे थे वे केवल 1-2 लाख की#सैलरी पाने वाले मीडियाकर्मियों के लिए वहाँ नहीं जुटे थे। वे तमाम काम छोड़कर वहाँ पहुँचे थे क्योंकि उन्हें उन लोगों की चिंता है जिन्हें दो हज़ार या तीन हज़ार रुपये देकर महीने भर जानवर की तरह खटाया जाता है। वे उन पत्रकारों के लिये भी वहाँ जुटे थे जो सरोकारी पत्रकारिता के लिये हर कीमत चुकाने को तैयार हैं। वे कुछ पत्रकारों को लाख-दो लाख की सैलरी देकर बाकी लोगों को न्यूनतम से भी कम सैलरी देकर दलाल संस्कृति को बढ़ावा देने का विरोध करने के लिये भी वहाँ जुटे थे। आज नारों में दम था, आवाज़ बुलंद थी और हौसला आसमान छू रहा था। आने वाले दिन दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण बनने वाले हैं। इस आंदोलन से समस्या केवल उन लोगों को होगी जिनकी नाभि सत्ताधारी वर्ग से जुड़ी हुयी है।
पत्रकार एकजुटता मंच के बैनर तले आज सैकड़ों पत्रकारों ने सीएनएनआईबीएन7 के दफ्तर के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया।
पत्रकार एकजुटता मंच की ओर से कहा गया कि यह मुद्दा केवल सीएनएन-आईबीएन के लगभग 350 मीडियाकर्मियों को रातों-रात नौकरी से निकाल दिये जाने का ही नहीं है, बल्कि मीडिया के लोकतांत्रीकरण का मुद्दा है। आम जनता से लेकर सरोकार से जुड़े लोगों, पूँजी और सत्ता के गठजोड़ में पिस रहे दलित-दमित लोगों को पत्रकारिता की वर्तमान हालत और पत्रकारों से हज़ार शिकायतें होंगी। इन में सैकड़ों खोट नजर आती होंगी, जो कि जायज भी होती हैं। लेकिन ये खामियाँ इसी कारण से हैं क्योंकि मीडिया संस्थान मुनाफे की होड़ में घोर अलोकतांत्रिक बना दिये गये हैं। लिहाजा वहाँ काम कर रहे पत्रकारों की हालत से लेकर उनके द्वारा की जा रही पत्रकारिता में भी विरूपताएं भरी पड़ी हैं। मीडियाकर्मियों की छँटनी को केवल उनके जीवन-यापन के संकट में नहीं देखा जाना चाहिए। यह पूरी पत्रकारिता का संकट है.
आंदोलन की अगुआई कर रहे सुयश सुप्रभ ने कहा कि नोएडा में आज के विरोध-प्रदर्शनमें आज कड़ी धूप में जो साथी भव्य होटल जैसी बिल्डिंग के सामने नारे लगा रहे थे वे केवल 1-2 लाख की#सैलरी पाने वाले मीडियाकर्मियों के लिए वहाँ नहीं जुटे थे। वे तमाम काम छोड़कर वहाँ पहुँचे थे क्योंकि उन्हें उन लोगों की चिंता है जिन्हें दो हज़ार या तीन हज़ार रुपये देकर महीने भर जानवर की तरह खटाया जाता है। वे उन पत्रकारों के लिये भी वहाँ जुटे थे जो सरोकारी पत्रकारिता के लिये हर कीमत चुकाने को तैयार हैं। वे कुछ पत्रकारों को लाख-दो लाख की सैलरी देकर बाकी लोगों को न्यूनतम से भी कम सैलरी देकर दलाल संस्कृति को बढ़ावा देने का विरोध करने के लिये भी वहाँ जुटे थे। आज नारों में दम था, आवाज़ बुलंद थी और हौसला आसमान छू रहा था। आने वाले दिन दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण बनने वाले हैं। इस आंदोलन से समस्या केवल उन लोगों को होगी जिनकी नाभि सत्ताधारी वर्ग से जुड़ी हुयी है।
इस आंदोलन में नुक्स निकाल रहे पूँजीपतियों के पिट्ठू कुछ संपादक टाइप प्राणियों पर टिप्पणी करते हुये उन्होंने कहा कि हर #सवर्ण शोषक होता है। हर गोरा आदिवासियों और अश्वेतों का दुश्मन होता है। पूँजी की आग में#जाति जैसी गंदगी जल जाती है। मीडियाकर्मियों की #लड़ाई सवर्णों की लड़ाई है, इसलिए हम उनका साथ नहीं देंगे। सारे मीडियाकर्मी पैसा खाकर खबर बेचते हैं। सूची लंबी है। बहुत-से लोग इन सरलीकरणों से अपना घर चला रहे हैं क्योंकि ऐसी बातें लिखने से वे सत्ताधारियों की आँखों के तारे और नाक के बाल (बचपन में रटा मुहावरा बरसों से किसी काम नहीं आ रहा था) बन जाते हैं। इस सुविधावादी #प्रगतिशीलता के खतरों को समझिए।
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