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Sunday, July 7, 2013

बंगाल सरकार लागू नहीं करेगी केंद्र की खाद्य सुरक्षा योजना!

बंगाल सरकार लागू नहीं करेगी केंद्र की खाद्य सुरक्षा योजना!


क्या केंद्र की सामाजिक योजना लागू करने के लिए राज्य की बाध्यता है खासतौर पर जब उसके पास आवश्क संसाधन न हो और राज्य घनघोर आर्थिक संकट में हो, ऐसा संवैधानिक प्रश्न मुंह बांए खड़ी है। केंद्र की अल्पमत सरकार ने संसद को बाईपास करते हुए जो अध्यादेश लागू किया है, अगर राज्य सरकारें उसके तहत सामाजिक सुरक्षा योजना लागू करने से इंकार कर दें तो भयंकर संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। ममता बनर्जी के विरोध को राज्य की माली हालत को देखते हुए नाजायज नहीं कहा जा सकता। फिर एक तिहाई लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा और बाकी आबादी पर सब्सिडी और वित्तीय घाटे का बोझ कोई न्यायपूर्ण भी नहीं है। बाकी आबादी को तो खुले बाजार से भोजन का इंतजाम करना है और इसकी जिम्मेवारी राज्यसरकार की है। कर्ज लेकर लोगों को खिलाने की हैसियत ही राज्य सरकार की न हो तो उसके पास क्या विकल्प बचते हैं?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खाद्य सुरक्षा  अध्यादेश का कड़ा विरोध किया है। राज्य की आर्थिक बदहाली के मद्देनजर बंगाल सरकार कर्ज लेकर  भोजन का अधिकार लागू नहीं करने वाली है क्योंकि खाद्य सुरक्षा योजना लागू होने से पश्चिम बंगाल सरकार पर 7,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का वित्तीय बोझ पड़ेगा जबकि राज्य पर पहले से ही 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज बोझ है। यही कारण है कि राज्य सरकार ने इस योजना को मौजूदा स्वरूप में लागू करने में अपनी असमर्थता जताते हुए इस बारे में केंद्र सरकार को पत्र लिखने का फैसला किया है।


क्या केंद्र की सामाजिक योजना लागू करने के लिए राज्य की बाध्यता है खासतौर पर जब उसके पास आवश्क संसाधन न हो और राज्य घनघोर आर्थिक संकट में हो, ऐसा संवैधानिक प्रश्न मुंह बांए खड़ी है। केंद्र की अल्पमत सरकार ने संसद को बाईपास करते हुए जो अध्यादेश लागू किया है, अगर राज्य सरकारें उसके तहत सामाजिक सुरक्षा योजना लागू करने से इंकार कर दें तो भयंकर संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। ममता बनर्जी के विरोध को राज्य की माली हालत को देखते हुए नाजायज नहीं कहा जा सकता। फिर एक तिहाई लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा और बाकी आबादी पर सब्सिडी और वित्तीय घाटे का बोझ कोई न्यायपूर्ण भी नहीं है। बाकी आबादी को तो खुले बाजार से भोजन का इंतजाम करना है और इसकी जिम्मेवारी राज्यसरकार की है। कर्ज लेकर लोगों को खिलाने की हैसियत ही राज्य सरकार की न हो तो उसके पास क्या विकल्प बचते हैं?


दीदी का यह रवैया गलत भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि कर्नाटक में तीन रुपये प्रति किलो चावल देने के लिए राज्य सरकार को केंद्र से साल भर में एक लाख अठात्तर करोड़ टन अनाज लेना पड़ रहा है।जबकि उसे और एक लाख सात हजार करोड़ टन सालाना चाहिए।ताजा आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवन-यापन करने वाले लोगों की संख्या 2.4 करोड़ के आस पास है। इसमें से 28 फीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं जबकि 22 फीसदी लोग शहरी क्षेत्रों में। राष्टï्रीय नमूना सर्वेक्षण 2009-10 के आंकड़ों के मुताबिक बीपीएल परिवारों की संख्या के मामले में पश्चिम बंगाल देश का पांचवां सबसे बड़ा राज्य है।  खाद्य सुरक्षा योजना लागू न कर पाने की असली वजह राज्य की खराब माली हालत है। पश्चिम बंगाल पर इस समय करीब 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज बोझ है। इसके अलावा उसे सालाना 25,000 करोड़ रुपये के ऋण पुनर्भगतान की बाध्यता भी है। यानी राज्य का ज्यादातर पैसा कर्ज के भुगतान पर ही खर्च हो जाता है।गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल सरकार राज्य के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को 2 रुपये प्रति किलो की दर से चावल मुहैया करा रही है। इससे राज्य के खजाने पर सालाना 500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है।


बंगाल में राज्य सरकार ने जनवितरण प्रणाली की निगरानी के लिए कमेटियां तो बना दी है लेकिन सामाजिक योजनाओं को नकद सब्सिडी से जोड़ने के कारण यह कवायद बेकार साबित हो रही है। जबकि आधार कार्ड बनाने का काम रुरका हुआ है। महज 78 लाख आधार कार्ड बंगाल में बने हैं।ऐसे में  इस योजना को तकनीकी तौर पर लागू करने की भी कोई व्यवस्था अभी बनी नहीं है।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के खाद्य सुरक्षा विधेयक को अव्यवहारिक और लोकसभा चुनाव के पहले का झांसा करार दिया है। ममता ने कहा कि देश की सुरक्षा में असफल यूपीए लोगों को खाद्य सुरक्षा देने का दावा कर रही है। इसके लिए धन नहीं है। ऐसी चीजें चुनाव से पहले हो रही हैं। यह एक झूठ है और यह एक झांसा है।दक्षिण 24 परगना जिले में पार्टी के पंचायत चुनाव बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वह खाद्य सुरक्षा के खिलाफ नहीं हैं लेकिन चाहती हैं कि खाद्यान्न लोगों तक ठीक से पहुंचे। ममता ने दोहराया कि यूपीए अब सत्ता में नहीं लौटेगी। ममता ने केंद्र सरकार पर धन की कमी से जूझ रहे राज्यों के साथ वित्तीय सहायता के मामले में असहयोग करने का आरोप लगाया।


बिहार में गया जिले के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर परिसर में रविवार सुबह हुए नौ सीरियल ब्लास्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आशंका जताई कि कहीं यह आम चुनाव से पहले राज्यों में शांति भंग करने, राजनीतिक दलों को परेशान करने तथा राजनीतिक नेताओं की हत्या की साजिश तो नहीं है?


ममता ने सोशल नेटवर्किंग साइट पर लिखा, `मैं बोधगया में रविवार को हुए बम विस्फोटों के बारे में जानकर हैरान हूं। हमारी केंद्र सरकार आखिर क्या कर रही है? वे केंद्रीय एजेंसियां क्या कर रही हैं, जो अक्सर राज्यों के कामकाज में हस्तक्षेप करती रहती हैं, लेकिन हमारे देश व लोगों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखतीं?`


ममता ने लिखा, `क्या यह लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों में शांति भंग करने, राजनीतिक दलों को परेशान करने और कुछ राजनीतिक नेताओं की हत्या का षड्यंत्र है कि कोई भविष्य में जनता की आवाज न उठा सके? या यह जिम्मेदारी तय करने से बचने के लिए आरोप-प्रत्यारोप और क्षेत्रीय दलों को खत्म करने की साजिश है, जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार पर आश्रित नहीं हैं।`


उन्होंने लिखा, `मैं समझ नहीं पा रही हूं कि आखिर क्यों इस तरह की घटनाएं नियमित रूप से हो रही हैं। पहले छत्तीसगढ़ में कुछ मासूम लोगों की जान गई, फिर झारखंड में पुलिस अधीक्षक और अन्य अधिकारियों की जान गई। आज बिहार में विस्फोट हुए। कल का निशाना कौन है- पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश या ओडिशा?`


केंद्र के खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के मुताबिक   देश की करीब दो तिहाई आबादी को सस्ती दरों पर अनाज मुहैया कराने का प्रावधान है। इसमें 75 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों की जबकि 50 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्रों की है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रति माह 5 किलोग्राम अनाज दिया जाएगा। इसमें 3 रुपये प्रति किलो चावल, 2 रुपये प्रति किलो गेहूं और मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलो की दर से दिया जाएगा। अनुमान के मुताबिक सरकार को इसके लिए करीब 612.3 लाख टन खाद्यान्न की व्यवस्था करनी होगी।


पश्चिम बंगाल के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक ने कहा, 'प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक खाद्य सुरक्षा योजना लागू करने से राज्य पर अतिरिक्त 7,000 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। राज्य सरकार इस समय वित्तीय संकट के दौर से गुजर रही है और वह फिलहाल किसी तरह का अतिरिक्त वित्तीय बोझ उठाने की स्थिति में नहीं है। यह योजना लागू करने के लिए हमारे पास पैसा नहीं है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शीर्घ ही केंद्र सरकार को पत्र लिख कर योजना लागू करने के लिए भारी मात्रा में धन खर्च करने में अपनी असमर्थता जताएंगी।'


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