Saturday, April 6, 2013

जमाना गु‍रिल्‍ला पत्रकारिता का है – ललित सुरजन

जमाना गु‍रिल्‍ला पत्रकारिता का है – ललित सुरजन

वर्धा हिंदी विश्‍वविद्यालय में सुप्रसिद्ध पत्रकार ललित सुरजन का वक्‍तव्‍य

अमित विश्‍वास

वर्धा, 05 अप्रैल, 2013; करीब पाँच दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय देशबन्‍धु पत्र समूह के प्रधान संपादक व जाने माने साहित्यकार ललि‍त सुरजन ने कहा है कि वर्तमान में मीडिया की अंतर्वस्‍तु से वह बहुत निराश हैं जो कुछ आप पढ़ रहे हैं, देख रहे हैं वह विश्‍वनीय नहीं है। बाजारवाद के प्रभाव में पत्रकारिता का जो दौर चल रहा है उसमें आज गु‍रिल्‍ला पत्रकारिता का जमाना है। प्रतिरोधी चेतना हममें जीवित रहनी चाहिये, आप छोटे – छोटे अखबार निकालिये उसे गाँव के पंचायत भवन, या सार्वजनिक स्‍थलों पर लगाइये, कैन्टीन की दीवार पर लगाकर लोगों को चेतस करने की जरूरत है। पत्रकारों को पद, यश और धन तीनों से बचने की जरूरत है। पत्रकारों को अपना एक सहकारी या सामूहिक उद्यम बनाकर अखबार या चैनल (मूल्‍य आधारित अन्तर्वस्‍तु प्रसारित करने के लिये) शुरू करना चाहिये, जिससे कॉरपोरेट घरानों द्वारा संचालित मीडिया से मुकाबला किया जा सके। वर्गीज कुरियन ने अमूल जैसा सहकारी उद्यम बनाकर सह‍कारिता के क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिया। हमें परिवर्तनगामी प्रवृति से वैकल्पिक पत्रकारिता के बारे में सोचने की जरूरत है।

श्री सुरजन महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में बतौर अतिथि वक्‍ता के रूप में आये थे। उनसे हुयी बातचीत में उन्‍होंने बताया कि वैश्विक ग्राम की आड़ में अपने बाजार का विस्तार करने के लिये पूँजीपति मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। आज आप देखेंगे कि मीडिया की नकेल किनके हाथों में है। जब तक मालिकाना हक पत्रकारों के हाथ में नहीं होगा, तब तक मीडिया की विश्‍वनीयता पर सवाल उठता रहेगा। इन्दिरा गांधी के प्रधानमन्त्रित्‍व काल में सूचना एवं प्रसारण मन्त्री नंदिनी शतपथीने डिवोल्‍यूशन ऑफ ऑनरशिप की बात की थी, जिसे कि अब तक क्रियान्वित नहीं किया जा सका है। जनतान्त्रिक सरकार को इस ओर कदम बढ़ाने की जरूरत है। सरकार समानान्‍तर फिल्‍मों के लिए मदद करती हैं तो पत्रकारों के हित के लिये क्‍यों नहीं।

 

ललित सुरजन, देशबन्‍धु पत्र समूह के प्रधान संपादक व जाने माने साहित्यकार तथा राजनीतिक विश्लेषक हैं।

विश्‍वविद्यालय में अति तीव्र गति से हुये विकास कार्य को देखते उन्‍होंने कहा कि किसी संस्थान के बाह्य विकास के साथ उसके भीतरी स्वरूप की सम्पन्नता ही वास्तविक मूल्य रखती है। आज गांधी का विचार यानी गांधी की जीवन शैली किसी भी समय से अधिक प्रासंगिक है। हमें इस देश और पूरी मानवता को विनाश से बचाकर अभय का विचार देना होगा और यह केवल गांधी सोच के द्वारा ही किया जा सकता है। यदि हम महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में गांधी के विचारों को एक जीवन पद्धति के रूप में बहुप्रचारित और प्रसारित कर पाये तो यह संस्थान निश्चय ही एक वैश्विक स्तर का विचारवान संस्थान बन सकने की पात्रता ग्रहण लेगा। यहाँ प्रबुद्धता का वातावरण मुझे बहुत लगा, साथ ही विश्‍वविद्यालय परिसर का माहौल देखकर लगता है कि अगर विभूति नारायण, पाँच साल और यहाँ रहते तो हिन्दी समाज की आकाँक्षा के अनुरूप यह विश्‍वविद्यालय दुनिया के उम्‍दा विश्‍वविद्यालयों में गिना जाता।

ललित सुरजन ने कहा कि नई पीढ़ी से मैं बहुत आशन्वित हूँ, अभिभावकों से मेरी विनती है कि आप अपने बच्‍चों को मशीन व पैकेज में तब्‍दील न होने दें अपितु साहित्‍य, कला, संस्‍कृति का भी ज्ञान दें जिससे वह मूल्‍यानुगत समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सके। आज साम्राज्‍यवादी ताकतें अदृश्‍य तरीके से हमारे दिमाग को भोथरा करने की साजिश रच रही हैं। अगर आपके बच्‍चों के दिन की शुरुआत सचिन के छक्‍के व रात की समाप्ति मुन्‍नी बदनाम हुयी से होती है तो निश्चित रूप से वह बच्‍चा एक बेहतर नागरिक नहीं बन सकेगा। नई व्‍यवस्‍था के अन्तर्गत सांस्‍कृतिक गुलामी से हमें छुटकारा पाने के लिये हम सभी को सचेत होने की जरूरत है। 

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