Follow palashbiswaskl on Twitter

ArundhatiRay speaks

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Unique Identity No2

Please send the LINK to your Addresslist and send me every update, event, development,documents and FEEDBACK . just mail to palashbiswaskl@gmail.com

Website templates

Jyoti basu is dead

Dr.B.R.Ambedkar

Saturday, February 9, 2013

अफजल की फांसी के बाद कश्मीर का क्या होगा?

अफजल की फांसी के बाद कश्मीर का क्या होगा?


Suresh S Duggar

 

सुरेश एस डुग्गर

 

13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर हुए आतंकियों के आत्मघाती हमले के षड्यंत्रकर्ताओं में से एक वादी के सोपोर के रहने वाले पेशे से डाक्टर मुहम्मद अफजल गुरू को फांसी दिए जाने से कश्मीर उबाल पर है। कश्मीर का उबाल पर होना स्वभाविक ही है। 29 साल पहले भी एक कश्मीरी को आतंकी गतिविधियों के लिए फांसी पर लटका दिया गया था। 11 फरवरी 1984 को फांसी पर लटकाए गए मकबूल बट की फांसी ने कश्मीर को नए मोड़ पर ला खड़ा किया था। आतंकवाद की ज्वाला विस्फोट बन कर सामने आ खड़ी हुई। इस फांसी के परिणामस्वरूप जो ज्वाला कश्मीर में सुलगी थी आज पूरा देश उसकी चपेट में है तो अफजल गुरू की फांसी के बाद क्या होगा, अब यह आने वाले दिनों में दिखेगा।

 

इसके प्रति कोई दो राय नहीं है कि 29 साल पूर्व मकबूल बट को दी गई फांसी के पांच सालों के बाद ही कश्मीर जल उठा था और अब पुनः क्या कश्मीर धधक उठेगा। यही सवाल है हर कश्मीरी की जुबान पर। यह सवाल इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि संसद पर हमले के जो दो आरोपी कश्मीर से संबंध रखते थे उनमें से एक मुहम्मद अफजल को आज फांसी दे दी गई है।

 

यह सच है कि कश्मीर में छेड़े गए तथाकथित आजादी के आंदोलन को लेकर जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है उसमें मुहम्मद अफजल दूसरा ऐसा व्यक्ति है जिसे 29 सालों के अरसे के बाद पुनः 'शहीद' बनाए जाने की कवायद कश्मीर में शुरू हो गई है। इससे पहले 11 फरवरी 1984 को जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के संस्थापक मकबूल बट को तिहाड़ जेल में फांसी की सजा सुनाई गई थी। कुछेक की नजरों में स्थिति विस्फोटक होने के कगार पर है। ऐसा सोचने वालों की सोच सही भी है। वर्ष 1984 में बारामुल्ला जिले में एक गुप्तचर अधिकारी तथा बैंक अधिकारी की हत्या के आरोप में मकबूल बट को फांसी की सजा दी गई थी तो तब की स्थिति यह थी कि उसकी फांसी वाले दिन पर कश्मीर में हड़ताल का आह्वान भी नाकाम रहा था। लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं। लोगों की नजर में मकबूल बट की फांसी के पांच सालों के बाद 1989 में कश्मीर जिस दौर से गुजरना आरंभ हुआ था वह अब मुहम्मद अफजल की फांसी के बाद धधक उठेगा। उनकी आशंकाएं भी सही हैं। अलगाववादी संगठन जहां फांसी को भुनाने की तैयारियों में हैं तो दूसरी ओर आतंकवादी गुट इसका 'बदला' लेने की खातिर तैयारियों में हैं।

 

कश्मीर में पिछले 25 सालों में एक लाख के करीब लोग मारे गए हैं। अधिकतर को कश्मीरी जनता 'शहीद' का खिताब देती है। लेकिन कश्मीरी जनता की नजरों में पहले सही और सच्चे 'शहीद' मकबूल बट थे तो अब दूसरे 'शहीद' मुहम्मद अफजल हैं। उसकी फांसी क्या रंग लाएगी इस सोच मात्र से लोग सहमने लगे हैं क्योंकि मकबूल बट की फांसी 25 सालों से फैले आतंकवाद को परिणाम में दे चुकी है। 18 दिसम्बर 2002 में फांसी की सजा सुनाने से पूर्व तक, न ही कोई अफजल गुरू के परिवार से इस कद्र शोक तथा संवेदना प्रकट करने के लिए जा रहा था और न ही कोई उनके प्रति कोई खास चर्चा कर रहा था। लेकिन उसके बाद रातोंरात मुहम्मद अफजल 'हीरो' बन गया है। कश्मीर की 'तथाकथित आजादी' के तथाकथित आंदोलन में उसे 'हीरो और शहीद' का सम्मान दिया जाने लगा है।

 

चिंता यह नहीं है कि फांसी दिए जाने वाले को क्या नाम दिया जा रहा है बल्कि चिंता की बात यह मानी जा रही है कि कश्मीर की परिस्थितियां अब क्या रूख अख्तियार करेंगी। कश्मीर के आंदोलन की पहली फांसी के बाद जो आतंकवाद भड़का था वह क्या दूसरी फांसी के साथ ही समाप्त हो जाएगा या फिर यह धधक उठेगा। अगर यह धधक उठेगा तो इसकी लपेट में कौन-कौन आएगा।

 

इतना जरूर है कि अफजल की फांसी क्या रंग लाएगी, इस पर मंथन ही आरंभ नहीं हुआ था कि धमकियों और चेतावनियों का दौर भी आरंभ हो गया है। अगर राजनीतिक पर्यवेक्षक कहते हैं कि अफजल गुरू की फांसी कश्मीर को नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगी वहीं आतंकी गुटों की धमकी देशभर को सुलगा देने की है।

 

सुरेश डुग्गर कश्मीर से हैं, वरिष्ठ पत्रकार हैं।

No comments: