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Thursday, October 24, 2013

पहाड़ों को चाहिए स्थाई समाधान, मौका मिलते ही पलट वार कर सकते हैं विमल गुरुंग

पहाड़ों को चाहिए स्थाई समाधान, मौका मिलते ही पलट वार कर सकते हैं विमल गुरुंग


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​



गोरखालैंड आंदोलन की वजह से पहाड़ में पर्यचन,शिक्षा और कारोबार को जो नुकसान हुआ,फिर जीटीए का चेयरमैन बनकर उसकी भरपाई कैसे करेंगे विमल गुरुंग, दार्जिलिंग में अभी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को इस सवाल का जवाब देना होगा। बंगाल की मुख्यमंत्री का इस नायाब कामयाबी से पहाड़ों में भी खिल रहा है घासफूल ,सही है, लेकिन गोरखालैंड समस्या के स्थाई समाधान का रास्ता भूस्खलन के मध्य कितना खुला है,यह अभी देखना बाकी है। आखिरकार गैरजिम्मेदाराना राजनीति से पहाड़ों में जन जीवन कब तक स्थगित रहेगा,यह मुख्य विवेचनीय है। भारत के तमाम पर्वतीय इलाकों में मसलन आतंकवाद और अलगाव की आग में निरंतर सुलग रहे कश्मीर से लेकर, पड़ोसी सिक्किम,उत्तराखंड और हिमाचल के मुकाबले बंगाल के पर्वतीय इलाके विकास की दौड़ में अस्सी के दशक से लगातार पिछड़ रहा। पहले सुबास घीसिंग ने पहाड़ के साथ सौदेबाजी की राजनीति करके विकास,पर्यटन और कारोबार को तबाह किया। सुबास को पहाड़ से निर्वासित करके राजनीति में आये विमल गुरुंग वही किस्सा दोहरा रहे हैं। अगर बंगाल की मुख्यमंत्री जमीनी राजनीति ौर प्रशासकीय दक्षता से इस पहेली को सुलझा पायी तो पहाड़ में विकास के दरवाजे खुलेंगे। वरना भूटान, सिक्किम गोरखालैंड और नेपाल को लेकर वृहत्तर नेपाल बनाने की भूमिगत मुहिम को बंद करने का कोई उपाय नहीं है। गोरखा अंचल के इस आत्मघाती विद्रोह से बार बार सिक्किम अवरुद्ध हो रहा है। चीन के साथ सीमा विवाद और सिक्किम के भारत में विलय पर नये सिरे से उठाये जा रहे सवालों के मद्देनजर दार्जिलंग में किसी तदर्थ राजनीतिक समाधान के बजाय बाकी देश के आर्थिक विकास के साथ बंगाल के पहाड़ों को जोड़ना अब दीदी का नया कार्यभार होगा।


गौरतलब है कि तेलंगाना अलग राज्य के निर्माण के ऐलान के बाद  अचानक गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा ने अनिश्चितकालीन बंद और आर-पार की लड़ाई का एलान कर दिया था। वैसे भी पश्चिम बंगाल में अलग राज्य गोरखालैंड की मांग को लेकर होने वाले आंदोलन पहाड़ों में  मौसम की तरह ही पल-पल बदलता रहा है। पल में तोला ,पल में माशा। अस्सी के दशक में सुबास घीसिंग के उत्थान,फिर उनका अवसान और अद्यतन विमल रुरुंग के अवतार के मध्य यह आंदोलन दार्जीलिंग की ख़ूबसूरत पहाड़ियों, चाय और पर्यटन उद्योग के अलावा इलाक़े के आम लोगों की रोजमर्रे की जिंदगी के लिए निरंतर व्यवाधान व अनसुलझी जनसमस्याओं का पर्याय बनकर रह गया है।


फिलहाल रुक रुक कर हो रही बारिश के मध्य दार्जिलिंग पहुंचकर पहाड़वासियों के मध्य दीदी ने जो फिर खुलकर कहा कि पहाड़ मुस्करा रहा है,वह पिछले दिनों जिस झंझावात से पहाड़ के लोग गुजर रहे थे , उसके मद्देनजर बड़ी उपलब्धि है। पहाड़वासियों का अगर घीसिंग के बाद विमल गुरुंग की राजनीति से मोहभंग नहीं हुआ तो फिर पहाड़ में ्शांति की आग शुलगने के पूरे आसार है।राज्य सरकार महज राजनीति से नही ं, बल्कि प्रशासकीय दक्षता से पहाड़के लोगों को किस हद तक मुख्यधारा से जोड़ पाती है,उसीपर पहाड़ का भविष्य निर्भर है।


फिलहाल राज्य सरकार के लिए कखुशी की बात यह है कि इस बार की मुख्यमंत्री के यात्रापथ पर रोहिणी,कर्सियाग से लेकर घूम होकर पहाड़ में सर्वत्र गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के झंडे और बैनर गायब हो गये। लेकिन वे कभी भी लौट सकते हैं,इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। दीदी की राजनीतिक कामयाबी यह है कि कंचनजंघा के हिमाच्छादित शिखरों पर बी खिलने लगे हैं घास फूल। लेकिन पहाड़ों को और बाकी राज्य को भी दीदी के राजनीतिक करिश्मे के बजायहमेशा हमेशा गोरखालैंड मुद्दा सुलझा लेने की प्रशासनिक पहल की प्रतीक्षा है। केंद्र सरकार का रवैया अब तक सकारातमक रहा है और बंगाल के राजनीतिक दलों ने भी पहाड़ों में परिस्थितियां खराब कर देने की विमल गुरुंग की कोई मदद नहीं की। लगातार आंदोलन से उद्योग कारोबार और पर्यटन खत्म होने के कगार पर आ गये और पहाड़ों में लोग अपने ही घरों में युद्धबंदी होकर दाने दाने कोमोहताज होने लगे,ऐसे हालात में विमल गुरुंग के लिए बिना ठहरावआंदोलन की पटरी पर अंधी दौड़ जारी रखना असंभव था और मजबूरन उन्होंने हथियार डाले हैं। मौका मिलते ही वे पलटवार कर सकते हैं।पहाडो़ं में गूंज रही मां माटी मानुष के नारों से खुशफहमी में रहना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।


गौरतलब है कि मोर्चा नेताओं की मांग के मुताबिक जीटीए का गठन हुए  करीब दो साल हो गये। इसके जरिये पहाड़ों की तस्वीर बदल सकते थे गुरुंग और मोर्चे के लिए अजेय जनाधार तैयार कर सकते थे। लेकिन उन्होंने विकास के बजाय,जनसमस्य़ाओं को सुलझाने के बजाय महज अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस संस्था को बलि का बकरा बना दिया और रोजमर्रे की ाम जिंदगी खतरे पड़ गय।जिसकी चलते पहाड़ के तमाम जंगी नेताओं को थूककर चाटना पड़ा।गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने दावा किया था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अंधाधुंध गिरफ्तारी करा रही हैं, लेकिन गिरफ्तारियों से लोगों के भीतर पृथकगोरखालैंड की भावना नहीं मिट सकती है। उनका दावा कितना सही रहा और कितना गलत,शायद यह समझना अब भी मुश्किल है।गुरुंग ने फेसबुक पर एक पोस्ट में कहा है कि गोरखालैंड का निर्माण बंगाल का विभाजन नहीं है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से दाजिर्लिंग कभी भी बंगाल का हिस्सा नहीं था. इसे ब्रितानियों ने सिक्किम राज्य से वर्ष 1835 में पट्टे पर लिया था। इसीको मुद्दा बनाकर जैसे घीसिंग को किनारे करके विमल गुरुंग पहाड़ों के अधिनायक बन गये,उसी तरह किसी और अवतार के भविष्य में आविर्भावकी संबावना से इंकार नहीं किया जा सकता।दीदी ने टेढ़ी उंगली से घी जरुर निकाला है, लेकिन बार बार टेढ़ी उंगली कामयाब होती रहेगी,इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।


बहरहाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को दार्जिलिंग में  कहा कि पश्चिम बंगाल और दार्जिलिंग को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यहां पहली रैली को संबोधित करते हुए ममता ने कहा कि दार्जिलिंग बंगाल का दिल है। मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं।इसीके साथ  गोरखालैंड आदोलन के दौरान कार्यालय से अनुपस्थित सरकारी कर्मचारियों को मुख्यमंत्री बड़ी राहत दी है। कर्मचारियों के काटे गए वेतन का अब भुगतान होगा। यह घोषणा उन्होंने स्थानीय चौरास्ता पर हिल तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान की। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों पर सरकार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कोई कार्रवाही नहीं करेगी।

उन्होंने कहा,मैं पहाड़ के लोगों के साथ हूं। यह मातृभूमि है। बंगाल आपके बिना नहीं रह सकता है और न ही आप हमारे बिना रह सकते हैं। जीजेएम का नाम लिए बिना ममता ने कहा कि उनकी सरकार बंद के नाम पर सामान्य जनजीवन को बाधित होने की अनुमति नहीं देगी ,जो शांति और विकास को बाधित करता है। पर्वतीय क्षेत्र से हमें काफी लगाव हैं। इसी कारण मैं यहां का विकास चाहती हूं। पहाड़ बिना बंगाल अधूरा है। यह बंगाल ही नहीं विश्व का हृदय है। उन्होंने अपने भावनात्मक संबोधन में कहा कि मैं आपलोगों को खोना नहीं चाहती। पहाड़ बंगाल का दिल है। कंचनजंघा की पवित्रता और यहां के प्राकृतिक सुंदरता को कौन खोना चाहेगा। दिल तोड़ना आसान है, लेकिन जोड़ना कठिन है। मैं दिलों को जोड़ने पर विश्वास करती हूं। यहां आने का उद्देश्य संगठन विस्तार से नहीं है। यहां की मिट्टी हमें बार-बार खींच लाती है। मैं पहाड़ में शांति का पक्षधर हूं। हिल्स बंद होने से मेरा दिल रोता है। बार-बार पहाड़ को बंद नहीं करने का आह्वान किया। इससे आम लोगों को परेशानी होती है। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस का सिद्धांत नो स्ट्राइक है। लोकतंत्र में वास्तविक शक्ति जनता के हाथों में हैं। सरकार जनता के हित की बात करती है।

गौरतलब है कि जीजेएम हाल ही में गोरखालैंड की मांग के समर्थन में बंद और हिंसा की राजनीति से पीछे हट गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरी सरकार की नीति है कि कोई बंद और हड़ताल नहीं होनी चाहिए। उन्होंने इसके खिलाफ अदालत के आदेश की ओर भी इशारा किया।

उन्होंने कहा कि अगर केवल बंद होगा तब किस तरह से विकास होगा? अगर कंचनजंगा मुस्कुराएगा तब मुझे अच्छा लगेेगा। लेकिन अगर कंचनजंगा के आंखों में आंसू होंगे ,तब मुझे दुख होगा।आंदोलन से विकास प्रभावित होता हैं। यहां देश के विभिन्न प्रदेशों के अलावे विदेश से भी पर्यटक आते हैं। मुख्यमंत्री ने ग्राम्य पर्यटन खोलने पर जोर दिया। इसके लिए सरकार इच्छुक लोगों को आवश्यक सहायता मुहैया कराएगी। यहां के लोगों के हुनर की जमकर सराहना की। सरकार ईमानदारी से यहां का विकास कर रही है। सरकार यहां उद्योग खोलने की कवायद कर रही है। पर्यटन व्यवसाय को और गति देने को सरकार कृत संकल्प है। यहां पूरे देश के लोगों का आना जाना है।

उन्होंने कहा कि अगर दार्जिलिंग में शैक्षणिक संस्थान एक महीने बंद रहता है तब छात्रों का एक साल बर्बाद होता है। ममता ने कहा कि मैं शांति, समृद्धि और दार्जिलिंग का विकास चाहती हूं। उन्होंने अपील कि हम सब साथ मिलकर रहें। झगड़ा भूल जाएं और दार्जिलिंग के विकास के लिए मिलकर काम करें।


मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लेप्चा समुदाय के लिए खजाना खोल दिया है। स्थानीय सेंट अल्फन्सस स्कूल प्रांगण में आयोजित रोंगली डिस्ट्रीब्यूशन (लेप्चाओं का घर वितरण) कार्यक्रम में एक हजार लेप्चाओं को गृह निर्माण करने के लिए आर्थिक सहायता मुख्यमंत्री ने दी। इसके साथ हीं लेप्चा समुदाय के 50 युवाओं को सरकारी नौकरी के लिए नियुक्ति पत्र दिए गए। आवास बनाने के लिए मुख्यमंत्री ने 75 लोगों को तथा शेष 925 को काउंटर से चेक दिए गए। 22 युवाओं को दीदी ने तथा शेष को काउंटर से नियुक्ति पत्र बांटे। इस अवसर उन्होंने कहा कि घर निर्माण के लिए दूसरे चरण में प्रत्येक लोगों को एक लाख और रुपये दिए जाएंगे। एक मकान बनाने के लिए सरकार दो लाख रुपये देगी। लेप्चाओं के लिए मार्केटिंग केन्द्र बनाने की घोषणा की।


उन्होंने कहा कि पहाड़ में जब आंदोलन चल रहा था, उस समय कालिम्पोंग में आयोजित कार्यक्रम में की गई घोषणा को यहां कार्यान्वित किया गया। अब लेप्चा मकान का निर्माण कर सकेंगे। लेप्चा विकास बोर्ड के लिए 50 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। 25 प्राथमिक स्कूलों का निर्माण किया जा चुका है। 29 जूनियर सेकेंडरी स्कूलों को सीनियर सेकेंडरी में अपग्रेड किया गया है। तकदाह में इंजीनियरिंग कॉलेज, गोरुबथान व पेदोंग में टेक्निकल कॉलेज निर्माण करने की योजना है। उन्होंने कहा कि तृणमूल सरकार ने पहाड़ का भरपूर विकास किया है। मैं यहां का और विकास करना चाहती हूं। कर्सियांग, दार्जिलिंग व कालिम्पोंग में विद्युतिकरण के लिए 130 करोड़ दिए गए हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के लिए 29 करोड़ और विभिन्न सड़कों के निर्माण हेतु 179 करोड़ रुपये आवंटित किए जा चुके हैं। पर्यटन को विकसित करने के लिए पहाड़ी क्षेत्र में चार रोपवे निर्माण की योजना



गौरतलब है कि गोरखालैंड मुद्दे को समझने की ममता बनर्जी की क्षमता पर सवाल उठाते हुए माकपा ने कहा था कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री जिस तरह से इस मुद्दे से निपट रही है, वह 'आग से खेल' रही हैं और आरोप लगाया था कि दीदी राज्य के समस्याग्रस्त क्षेत्र की जमीनी हकीकत को समझने में असमर्थ हैं। माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य और पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता सूर्य कांत मिश्रा ने कहा था कि ऐसा लगता है कि वह जंगलमहल और पर्वतीय क्षेत्रों (उत्तरी बंगाल) के बीच अंतर और जमीनी हकीकत को समझने में असमर्थ हैं। फिलहाल दीदी ने पहाड़ों मे पांसा पलट दिया है और माकपाई गलत साबित हो गये हैं।



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