Status Update
By Kanwal Bharti
एक और शहादत
(कॅंवल भारती)
इसमें सन्देह नहीं कि इलावरसन ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसकी हत्या की गयी है। कोई भी व्यक्ति एटीएम से रुपये निकाल कर मोटरसाइकल से आत्महत्या करने नहीं जायेगा। वह आत्महत्या कर ही नहीं सकता था, क्योंकि उसने प्रेम किया था और दिव्या के साथ एक नया जीवन जीने के लिये संघर्ष किया था। चूॅंकि प्रेम जाति और धर्म के बन्धनों की परवाह नहीं करता है, इसलिये इन दोनों प्रेमियों ने भी उसकी परवाह नहीं की। वे इस बात को बिल्कुल भूल गये थे कि जाति-धर्म के बन्धनों में जकड़ा हुआ उच्च जातीय समाज लोकतन्त्र और उसके संविधान को नहीं मानता, वरन् वह आज भी 18वीं सदी के धर्म-शासित राजतन्त्र में जीता है। इलावरसन ने अन्तर्जातीय विवाह करके इसी तन्त्र को चुनौती दी, जिसकी कीमत उसने अपनी शहादत देकर चुकायी है।
मैंने इस घटना को अखबारों के जरिये ही जाना है और उतना ही जाना है, जितना कि अखबारों ने छापा है। इसमें हाईकोर्ट की भूमिका मेरी समझ में नहीं आयी। जहाॅं खाप पंचायतों के मसले पर हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट इतना कड़ा रुख अपनाते हैं कि युगल प्रेमियों को सुरक्षा देने और खाप के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये सरकारों को निर्देश देते हंै, वहाॅं मद्रास हाईकोर्ट ने युगल प्रेमी दम्पति के पक्ष में राज्य सरकार को उनकी पूर्ण सुरक्षा का निर्देश क्यों नहीं दिया, जबकि यह स्पष्ट था कि दिव्या भारी सामाजिक दबाव में थी? अगर स्थानीय नेता राजनीतिक लाभ के लिये सामाजिक उपद्रव करा रहे थे, तो क्या इसके लिये प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े नहीं होते हैं? अगर प्रशासन और न्यायपालिका चाहती, तो न केवल जातीय हिन्सा को रोका जा सकता था, वरन् इलावरसन की हत्या को भी रोका जा सकता था।
मुझे दिव्या के कोर्ट में दिये गये बयान पर भी आश्चर्य होता है। एक युवक उसके प्रेम में अपने, अपने परिवार और अपने समुदाय के लिये संकट से जूझ रहा था, वहाॅं दिव्या उस संकट में उसके साथ खड़ी होने के बजाय अपने परिवार और अपने समुदाय के पक्ष में खड़ी थी। आखिर क्यों? ऐसी स्थिति में उसने अपनी माॅं के साथ रहने का कायरों वाला फैसला क्यों किया? वह अपने पति के पक्ष में क्यों नहीं खड़ी रह सकी? अगर वह अपने परिवार के दबाव में थी, तो सच्चे प्रेम का तकाजा तो यह था कि वह उस दबाव का विरोध करती और अदालत से उन तत्वों के खिलाफ कार्यवाही करने पर जोर देती, जो उस पर जातीय दबाव डाल रहे थे। पर, उसने ऐसा न करके उन्हीं तत्वों के पक्ष मे निर्णय क्यों लिया? इसका मतलब तो यही है कि वह इस कहानी का अन्त जान गयी थी और उसे मालूम हो गया था कि इलावरसन को भी ये तत्व जीवित नहीं रहने देंगे। अगर वह यह सब कोर्ट को बताने का साहस कर लेती, तो भले ही जातिवादी असमाजिक तत्व इस कहानी को इसी अन्जाम तक पहुॅंचाते, और भले ही दिव्या को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ती, पर तब सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह शहादत अविस्मरणीय होती।
अब सवाल है इलावरसन की आत्महत्या का, जो साफ तौर पर हत्या का मामला है। क्या जाॅंच एजेन्सी इसे 'आॅनर किलिंग' का मामला मानकर इसकी जाॅंच करेंगी? क्या इसमें दिव्या से भी पूछताछ की जायेगी, जिसके पास इसका कुछ अहम सुराग हो सकता है?
(कॅंवल भारती)
इसमें सन्देह नहीं कि इलावरसन ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसकी हत्या की गयी है। कोई भी व्यक्ति एटीएम से रुपये निकाल कर मोटरसाइकल से आत्महत्या करने नहीं जायेगा। वह आत्महत्या कर ही नहीं सकता था, क्योंकि उसने प्रेम किया था और दिव्या के साथ एक नया जीवन जीने के लिये संघर्ष किया था। चूॅंकि प्रेम जाति और धर्म के बन्धनों की परवाह नहीं करता है, इसलिये इन दोनों प्रेमियों ने भी उसकी परवाह नहीं की। वे इस बात को बिल्कुल भूल गये थे कि जाति-धर्म के बन्धनों में जकड़ा हुआ उच्च जातीय समाज लोकतन्त्र और उसके संविधान को नहीं मानता, वरन् वह आज भी 18वीं सदी के धर्म-शासित राजतन्त्र में जीता है। इलावरसन ने अन्तर्जातीय विवाह करके इसी तन्त्र को चुनौती दी, जिसकी कीमत उसने अपनी शहादत देकर चुकायी है।
मैंने इस घटना को अखबारों के जरिये ही जाना है और उतना ही जाना है, जितना कि अखबारों ने छापा है। इसमें हाईकोर्ट की भूमिका मेरी समझ में नहीं आयी। जहाॅं खाप पंचायतों के मसले पर हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट इतना कड़ा रुख अपनाते हैं कि युगल प्रेमियों को सुरक्षा देने और खाप के खिलाफ कार्यवाही करने के लिये सरकारों को निर्देश देते हंै, वहाॅं मद्रास हाईकोर्ट ने युगल प्रेमी दम्पति के पक्ष में राज्य सरकार को उनकी पूर्ण सुरक्षा का निर्देश क्यों नहीं दिया, जबकि यह स्पष्ट था कि दिव्या भारी सामाजिक दबाव में थी? अगर स्थानीय नेता राजनीतिक लाभ के लिये सामाजिक उपद्रव करा रहे थे, तो क्या इसके लिये प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े नहीं होते हैं? अगर प्रशासन और न्यायपालिका चाहती, तो न केवल जातीय हिन्सा को रोका जा सकता था, वरन् इलावरसन की हत्या को भी रोका जा सकता था।
मुझे दिव्या के कोर्ट में दिये गये बयान पर भी आश्चर्य होता है। एक युवक उसके प्रेम में अपने, अपने परिवार और अपने समुदाय के लिये संकट से जूझ रहा था, वहाॅं दिव्या उस संकट में उसके साथ खड़ी होने के बजाय अपने परिवार और अपने समुदाय के पक्ष में खड़ी थी। आखिर क्यों? ऐसी स्थिति में उसने अपनी माॅं के साथ रहने का कायरों वाला फैसला क्यों किया? वह अपने पति के पक्ष में क्यों नहीं खड़ी रह सकी? अगर वह अपने परिवार के दबाव में थी, तो सच्चे प्रेम का तकाजा तो यह था कि वह उस दबाव का विरोध करती और अदालत से उन तत्वों के खिलाफ कार्यवाही करने पर जोर देती, जो उस पर जातीय दबाव डाल रहे थे। पर, उसने ऐसा न करके उन्हीं तत्वों के पक्ष मे निर्णय क्यों लिया? इसका मतलब तो यही है कि वह इस कहानी का अन्त जान गयी थी और उसे मालूम हो गया था कि इलावरसन को भी ये तत्व जीवित नहीं रहने देंगे। अगर वह यह सब कोर्ट को बताने का साहस कर लेती, तो भले ही जातिवादी असमाजिक तत्व इस कहानी को इसी अन्जाम तक पहुॅंचाते, और भले ही दिव्या को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ती, पर तब सामाजिक परिवर्तन की दिशा में यह शहादत अविस्मरणीय होती।
अब सवाल है इलावरसन की आत्महत्या का, जो साफ तौर पर हत्या का मामला है। क्या जाॅंच एजेन्सी इसे 'आॅनर किलिंग' का मामला मानकर इसकी जाॅंच करेंगी? क्या इसमें दिव्या से भी पूछताछ की जायेगी, जिसके पास इसका कुछ अहम सुराग हो सकता है?
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