राजनीति और सिविल सोसाइटी ने जनता को बुरबक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी! राजनीति तो शर्लिन चोपड़ा हो गयी है।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
प्रधानमंत्री ने इस्तीफा देने से साप इंकार कर दिया। भाजपा उनके इस्तीपे की मांग पर अड़ी हुई है। संसद की कार्यवाही सोनिया गांधी के सुषमा स्वराज से बात करने के बाद भी चालू होने के आसार नहीं है और वाम दलों के मैच फिक्सिंग के आरोप का कोई असर हो रहा है। कोयला युद्ध में अब बाबा रामदेव भी अवतीर्ण है। संसद में दो विधेयक बिना बहस के पास हो चुके हैं। अभी गिलोटिन का इंतजार है।आर्थिक सुधार की निरंतरता बनी रहेगी, चाहे सरकार रहे या जाये। गार का आगाज करने वाले प्रणव दादा राष्ट्रपति भवन में विश्राम पर है और सरकार ने विशेषज्ञ समिति के जरिये इसे तीन महीने के टाल देने का इंतजाम कर ली है। कोयला घोटाले में सरकार के बचाव के जरिये तीसरे मोर्चे की कवायद इस बीच सबसे मजेदार घटनाक्रम है और उससे भी मजेदार हिलेरिया की निर्विरोध कोलकाते की सवारी के इतने अरसे बाद कोलकाता में वामपंथियों का साम्राज्यवादविरोधी महाजुलूस। मुसलमानी मुद्रा में ममता दीदी के फोटोसेशन से उत्तेजक दृश्य है यह। राजनीति और सिविल सोसाइटी ने जनता को बुरबक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।योग गुरु बाबा रामदेव ने नए सिरे से आंदोलन का ऐलान करते हुए जहां कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले को लेकर सरकार पर जोरदार हमला बोल दिया है, वहीं यह भी दावा किया कि वह अन्ना हजारे के मुकाबले ज्यादा पॉप्युलर हैं। बाबा रामदेव ने आरोप लगाया कि घोटाला 200 लाख करोड़ रुपये का है। रामदेव ने सरकार के खिलाफ 2 अक्टूबर से आंदोलन की घोषणा करते हुए कहा कि इस मामले में घोटाला, घाटा और दलाली हुई है।राजनीति तो शर्लिन चोपड़ा हो गयी है। कम से कम वह तो बेझिझक सच बोलने की हिम्मत कर रही है!अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पर निशाना साधा है। आईबीएन 7 संवाददाता विक्रांत यादव से खास बातचीत करते हुए केजरीवाल ने कहा कि ग्राम सभाओं को ज्यादा अधिकार देने के लिए उन्होंने एक बार राहुल गांधी से मुलाकात की थी।
मॉडल और अभिनेत्री शर्लिन चोपड़ा फिर सुर्खियों में हैं। अब शर्लिन चोपड़ा ने बड़ा खुलासा किया है। उनका कहना है कि कई बार पैसे लेकर शारीरिक संबंध बनाए हैं, लेकिन लॉस एंजिलस से लौटने के बाद वह बदल गई हैं।उन्होंने कहा 'मेरे इस कन्फेशंस का मकसद सहानुभूति बटोरना नहीं है। मकसद यह भी नहीं है कि बुरी लड़की से अच्छी बन गई हूं। मैं बस कुछ चीजें बताना चाहती हूं।'वैसे इससे पहले ट्विटर पर जब उनसे उनके एक फॉलोअर ने पूछा कि अपने बारे में कुछ ऐसी बात बताइए, जो हम नहीं जानते। इस पर शर्लिन का जवाब था, 'मैं बहुत शर्मीली हूं। बॉलीवुड मॉडल और अभिनेत्री शर्लिन चोपड़ा प्लेबॉय मैग्जीन के कवर पेज पर नजर आनेवाली हैं।
इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से मुलाकात कर कोयला आवंटन के मुद्दे पर संसद में चल रहे गतिरोध को दूर करने का रास्ता निकालने का प्रयास किया लेकिन उनका यह प्रयास उस समय विफल होता दिखा जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने दो टूक शब्दों में कहा कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद ही संसद चलेगी। पार्टी और सरकार को भंवर में छोड़कर सोनिया गांधी अपनी नियमित स्वास्थ्य जांच के लिए शनिवार दोपहर बाद विदेश रवाना हुई। कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने यहां संवाददाताओं को बताया, 'कांग्रेस अध्यक्ष अपने नियमित जांच के लिए विदेश गई हैं। वह एक हफ्ते के बाद वापस आएंगी।'
इसी डांवाडोल में सामान्य कर परिवर्जन रोधी नियम (गार) से संबद्ध विशेषज्ञ समिति ने विवादास्पद कर प्रावधान का क्रियान्वयन तीन साल तक के लिए टालने व प्रतिभूतियों के लेनदेन पर पूंजीगत लाभ कर खत्म करने की आज सिफारिश की। समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट वित्त मंत्रालय में जमा कर दी है। रिपोर्ट में ऐसे कई सुझाव दिए गए हैं, जिनसे निवेशकों की चिंता दूर हो सकती है। कर विशेषज्ञ पार्थसारथी शोम इस समिति के अध्यक्ष हैं।आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए वित्त मंत्री पी चिदंबरम के विदेशी निवेशकों को मनाने के नुस्खे पर सरकार ने काम शुरू कर दिया है। पार्थसारथी शोम समिति ने विदेशी निवेशकों को डराने वाले प्रस्तावित कानून जनरल एंटी अवाइडेंस रूल्स [गार] पर अमल तीन साल तक टालने का सुझाव दिया है। साथ ही समिति ने शेयरों की खरीद फरोख्त पर लगने वाले कैपिटल गेन्स टैक्स [पूंजीगत लाभकर] को भी समाप्त करने की सिफारिश की है। गार लागू करने का प्रस्ताव इस साल के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने किया था।वैश्विक निवेशकों का उत्साह बहाल करने की दिशा में कदम उठाते हुए समिति ने अपनी रिपोर्ट के मसौदे में सुझाव दिया कि प्रावधानों का उपयोग मारीशस में कंपनियों के वजूद की विश्वसनीयता की जांच करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।उल्लेखनीय है कि मारीशस के साथ उदार कराधान व्यवस्था की वजह से यह देश विदेशी निवेश का सबसे पसंदीदा मार्ग है। भारत ने मारीशस के साथ दोहरा कराधान बचाव संधि कर रखी है। पार्थसारथी शोम की अध्यक्षता वाली समिति ने सिफारिश की है कि गार को तभी लागू किया जाना चाहिए यदि कर लाभ की मौद्रिक सीमा 3 करोड़ रुपये या इससे अधिक है।वित्त मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट के मसौदे में भागीदारों से 15 सितंबर तक टिप्पणी मांगी गई है। गार पर विदेशी और घरेलू निवेशकों की चिंता दूर करने के लिए इस समिति का गठन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा जुलाई में किया गया था।इस बीच, वित्त मंत्रालय ने गार का दायरा बढ़ाकर उसमें सभी अनिवासी करदाताओं को शामिल कर लिया है। अभी तक इसके दायरे में केवल एफआईआई थे। समिति की रिपोर्ट के मसौदे में कहा गया है, गार को 3 साल के लिए टाला जाना चाहिए। इस तरह से गार आकलन वर्ष 2017-18 से लागू होगा। पूर्व घोषणा विश्वभर में पूंजी के निर्बाध प्रवाह के आज के वैश्विक परिदश्य में एक आम व्यवस्था है।
केंद्र सरकार वैसे भी प्रणब के कई बजट प्रस्तावों से सहमत नहीं थी। खासतौर पर गार को लेकर विदेशी निवेशकों की प्रतिक्रिया को देखते हुए सरकार ने बजट के तुरंत बाद इस पर एक साल के लिए अमल टाल दिया था। उसके बाद ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विदेशी निवेशकों की चिंताओं को दूर करने के लिए शोम की अध्यक्षता में एक समिति बनाकर गार की समीक्षा का काम सौंपा था। समिति ने शनिवार को अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।विदेशी निवेशकों को आश्वस्त करने के आशय से समिति ने अपनी सिफारिशों में गार के प्रस्तावों से मारीशस के वास्तविक निवेशकों को अलग रखा है। समिति ने कहा है कि ये नियम उन विदेशी निवेशकों पर लागू नहीं होंगे जो मूल रूप से मॉरीशस में रहकर भारत में निवेश कर रहे हैं। भारत में सबसे ज्यादा विदेशी निवेश मारीशस के रास्ते ही होता है। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि गार उन्हीं निवेशकों पर लागू हो जिनकी कर छूट की सीमा तीन करोड़ रुपये या इससे अधिक हो।समिति ने सरकार को सुझाव दिया है कि उसे गार के प्रावधानों का उदाहरण के साथ स्पष्टीकरण देने के लिए एक सर्कुलर जारी करना चाहिए। रिपोर्ट के मसौदे में आयकर कानून, 1961 में निश्चित संशोधन करने और आयकर नियमों के तहत दिशानिर्देश निर्धारित करने, गार के प्रावधानों को उदाहरण के साथ स्पष्ट करने व कर प्रशासन में सुधार के लिए अन्य उपाय करने की सिफारिश की गई है। वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि समिति के विषयों का दायरा बढ़ाकर उसमें सभी अनिवासी करदाताओं को शामिल करने का निर्णय किया गया है।
ड्राफ्ट रिपोर्ट पर समिति ने 15 दिन के भीतर सभी संबंधित पक्षों से सुझाव भी मांगे हैं। इस बीच वित्त मंत्रालय ने समिति का दायरा बढ़ाते हुए उसमें विदेशी संस्थागत निवेशकों यानी एफआइआइ के साथ-साथ सभी अनिवासी भारतीय [एनआरआइ] करदाताओं को शामिल कर दिया है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में गार पर अमल टालने की वजह इसकी तैयारियों के लिए समय की आवश्यकता बताया है। इन नियमों को अमल में लाने के लिए न सिर्फ टैक्स ढांचे में बदलाव जरूरी होंगे, बल्कि अधिकारियों के प्रशिक्षण की जरूरत भी होगी।
गार पर अमल तीन साल के लिए टाला जा सकता है, लेकिन वर्ष 2016-17 से लागू होने का एलान अभी से करना होगा। यानी गार वास्तविक तौर पर आकलन वर्ष 2017-18 से अमल में आ पाएगा। समिति का कहना है कि टैक्स प्रावधानों को लागू करने की घोषणा काफी पहले करने की परंपरा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित है। इससे पूंजी के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा मिलता है।
गौरतलब है कि प्रमुख उद्योगपति एन.आर. नारायणमूर्ति ने उम्मीद जताई कि नए वित्त मंत्री पी. चिदंबरम यथाशीघ्र 'उपयुक्त' कदम उठाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार तथा विपक्षी दलों को यह घोषणा भी करनी चाहिए कि वे 'पिछली तिथि से अमल में लाने के आधार पर' कुछ भी नहीं करेंगे।मूर्ति ने कहा, 'सत्तारुढ़ दल तथा विपक्षी दल के नेताओं को यह कहना चाहिए कि वे पिछली तिथि के आधार पर कुछ नहीं करेंगे क्योंकि हो सकता है कि कुछ दिन बाद दूसरी सरकार आती है तो वह कोई काम पिछली तिथि से लागू करने पर काम करने लगे।' इंफोसिस के सह-संस्थापक तथा चेयरमैन इमेरिटस ने यह बात संभवत: पिछली तिथि से संशोधन के बजट प्रस्ताव को ध्यान में रखकर कही है।उन्होंने कहा कि दो इकाइयों के बीच कारोबार की पहली जरूरत विश्वास है और ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए कि जिससे विश्वास में कमी हो। मूर्ति ने उम्मीद जताई कि चिदंबरम यथाशीघ्र उपयुक्त कदम उठाएंगे।
गौरतलब है कि विनिर्माण क्षेत्र के प्रदर्शन में लगातार गिरावट से चिंतित वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शुक्रवार को कहा कि इस क्षेत्र में निवेश की बाधाओं को दूर करने के लिए जल्दी निर्णय लेने की जरूरत है।वित्त मंत्री ने एक बयान में कहा कि निश्चित रूप से निवेश में गिरावट सरकार के लिए चिंता की बात है। इससे एक बार फिर से इस बात की जरूरत बनी है कि निवेश बढ़ाने के लिए तेजी से फैसले लिए जाएं, खासकर विनिर्माण क्षेत्र में निवेश के रास्ते में आ रही सभी अड़चनों को दूर करने की जरूरत है।चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 5.5 फीसदी पर आ गई है। पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह 8 प्रतिशत रही थी। वित्त मंत्री से आर्थिक वृद्धि दर के आंकड़ों पर उनकी प्रतिक्रिया पूछी गई थी।जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट की मुख्य वजह विनिर्माण क्षेत्र का खराब प्रदर्शन है। 2011-12 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर मात्र 0.2 प्रतिशत रही, जो पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 7.3 फीसदी रही थी।
एबीपी न्यूज और नीलसन ने देश के 28 शहरों में 8 हजार 833 लोगों से बात करके समझने की कोशिश की कि देश की नजर में कोयला घोटाले पर सरकार सही है या कैग? 22 अगस्त से 24 अगस्त के बीच लोगों से बात की गई. तब तक कोयला घोटाले पर सीएजी की रिपोर्ट संसद में पेश की जा चुकी थी।
जनता से पूछा गया कि क्या कोयला ब्लॉकों का आवंटन कांग्रेस-बीजेपी की मिलीभगत से हुआ है ? क्या इसके लिए मनमोहन सिंह जिम्मेदार हैं?
एबीपी न्यूज और नीलसन ने पाया कि 59 फीसदी लोग कोयला ब्लॉकों के आवंटन पर सीएजी की रिपोर्ट के बारे में जानते हैं। यहां पर यूपीए सरकार के लिए राहत की बात यह है कि कोयला घोटाले पर कैग की रिपोर्ट से जनता सहमत नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि क्या वे सरकार के उस तर्क से सहमत हैं जिसमें वो कह रही है अभी तक खदानों से कोयला निकला ही नहीं है इसलिए देश को जीरो घाटा हुआ, इस पर 51 फीसदी लोग सरकार के साथ हैं और मानते हैं कि कोयले का खनन नहीं हुआ है इसलिए कोई नुकसान नहीं हुआ। जबकि 37 फीसदी लोग सरकार से सहमत नहीं हैं और मानते है कि बिना नीलामी के कोयला ब्लॉकों का आवंटन करने से सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा है।
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि बीजेपी के मुख्यमंत्री नहीं चाहते थे कि कोयला खदानों की नीलामी की जाए। इस पर जब लोगों से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि घोटाले के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों जिम्मेदार हैं तो 45 फीसदी लोगों ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। जबकि 36 फीसदी लोग मानते हैं कि यह घोटाला कांग्रेस और बीजेपी की मिलीभगत का अंजाम है। हालांकि मुंबई में 69 फीसदी लोगों ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को जिम्मेदार माना है।
बीजेपी ने कोयला घोटाले के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे इस्तीफा मांगा है। इस बारे में जब जनता से पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि कोयला घोटाले के लिए मनमोहन सिंह निजी तौर पर जिम्मेदार हैं तो 55 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया।55 फीसदी लोग मानते हैं कि मनमोहन सिंह कोयला घोटाले के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि सिर्फ 31 फीसदी लोग पीएम को पाक-साफ मानते हैं।
बिना नीलामी के कोयला ब्लॉक आवंटन करने पर सरकार ने सफाई दी है कि अगर नीलामी का रास्ता अपनाया जाता तो निवेश पर फर्क पड़ता और बिजली महंगी हो जाती। सरकार के इसी तर्क को लेकर जब लोगों से पूछा गया कि क्या कोयला खदानों की नीलामी से बिजली महंगी हो सकती थी? इस पर 67 फीसदी लोग सरकार के तर्क से सहमत हैं और उनका मानना है कि नीलामी के चलते बिजली महंगी हो सकती थी। जबकि 24 फीसदी इस तर्क से इत्तफाक नहीं रखते और उन्होंने न में जवाब दिया।
गौरतलब है कि नवंबर 2006 से मई 2009 के बीच देश में कोई कोयला मंत्री नहीं था. प्रधानमंत्री खुद कोयला मंत्री का काम देख रहे थे।
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