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Friday, March 2, 2012

राजकोषीय घाटा या वित्तीय नीति नहीं, विनिवेश के लिए मची हड़बड़ी के पीछे कारपोरेट तकाजा


राजकोषीय घाटा या वित्तीय नीति नहीं, विनिवेश के लिए मची हड़बड़ी के पीछे कारपोरेट तकाजा

बाल्को पर वेदांता का तुरत फुरत अग्रिम दावा से अगर आंखें नहीं खुली, तो दिया बत्ती का क्या असर होना है!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


भारत सरकार पर विनिवेश के लिए कितना ज्यादा कारपोरेट दबाव है और कैसे गाट अप गेम के जरिए जनता को उल्लू बनाकर सरकारी कंपनियां बेची जाती हैं, निजीकरण का एजंडा लागू हो जाता है, कल ओएनजीसी की हिस्सेदारी पर विनिवेयश लक्ष्य से कम बोली लगने से सेबी की​ ​ मिलीभगत से फूल सब्सक्राइब की देर रात की परिणाम घोषणा से उसका तनिक खुलासा हुआ होगा।राजकोषीय घाटा या वित्तीय नीति नहीं, विनिवेश के लिए मची हड़बड़ी के पीछे कारपोरेट तकाजा है। बाल्को पर वेदांता का तुरत फुरत अग्रिम दावा से अगर आंखें नहीं खुली, तो दिया बत्ती का क्या असर होना है!स्टरलाइट इंडस्ट्रीज ने हिंदुस्तान जिंक (एचजेडएल) तथा भारत एल्युमिनियम कंपनी (बाल्को) में सरकार की हिस्सेदारी खरीदने के लिए 16,000 करोड़ रुपये की पेशकश की है। इन कंपनियों में अधिकांश हिस्सेदारी वेदांता ग्रुप ने करीब एक दशक पहले ही खरीद ली थी।मालूम हो कि अनिल अग्रवाल कंपनियों की शॉपिंग अभी खत्म नहीं हुई है। जनवरी में केर्न इंडिया में हिस्सा खरीदने के बाद अब वेदांता ग्रुप केचेयरमैन अनिल अग्रवाल लैटिन अमेरिका में कोल माइन खरीदने की योजना बना रहे हैं।सरकार विनिवेश की उनकी पेशकश मान ले तो यह एकीकृत कंपनी के लिए बड़ी ब​ढ़त साबित हो सकती है, जिसके बारे में बाजार में अभी संशय की स्थिति है। संभव हो कि यह पेशकश इसी संशय को सिरे से मिटा दें बशर्तें कि परिणाम सकारात्मक हो।


ओएनजीसी के शेयरों की नीलामी में सरकार की तैयारियों में खामियां सामने आईं। निजी निवेशकों के ठंडे रिस्पॉन्स को देखते हुए एलआईसी को ही शेयरों का बड़ा हिस्सा खरीदना पड़ा है।ओएनजीसी के 42.77 करोड़ शेयरों के इश्यू को 99.3 फीसदी बोलियां मिली, जिसमें से बड़ा हिस्सा एलआईसी का है। नीलामी के लिए सरकार ने शेयरों का फ्लोर प्राइस 290 रुपये तय किया था। बहरहाल जनता के आश्वस्त होने की गुंजाइश जरूर बनी है क्योंकि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आज कहा कि ओएनजीसी के शेयरों के ऑक्शन पर प्रणव मुखर्जी का कहना है कि पहली बार नीलामी के जरिए किसी कंपनी का हिस्सा बेचा गया था।  सरकार ने अन्य कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने से पहले नीलामी प्रक्रिया के विश्लेषण का फैसला किया है। उल्लेखनीय है कि ओएनजीसी की नीलामी प्रक्रिया में बड़ी मुश्किल से लक्षित राशि जुटाई जा सकी। गौर तलब है कि तरह तरह के रंग बिरंगी विशेषज्ञ राजकोषीय घाटा पाटने के लिए सख्त वित्तीय नीत की पेशकश कर रहे हैं और अर्थ​ ​ व्यवस्था के दरपेश चुनौतियों के मुकाबले सब्सिडी खत्म करने और विनिवेश तेज करने के पेनिसिलिन प्रेसक्राइब कर रहे हैं। वेदांता का ताजा दावा इसी समीकरण के अंतर्गत है और इसे अयौक्तिक ठहराया नहीं जा सकता। पहेली तो यह है कि सरकार घाटा पाटने की दिशा में इस शानदार पेशकश को तुरंत मान क्यों नहीं लेती?जाहिर है कि इसके पीछे राजनीतिक मजबूरी या नैतिकता का दबाव जैसी कोई बात नहीं है। यह मसला दरअसल कारपोरेट लाबिंग की ​​गली में फंसी हुई है और अक्सर वेदांता का वहीं फंसना तय होता है।

अब जो हालत है कि  ओएनजीसी के विनिवेश में हुए जबर्दस्त ड्रामे ने सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। जिसके बाद अब सरकार ने आगे होने वाले विनिवेशों को फिलहाल टाल दिया है। जिसके चलते ऑयल इंडिया औरबीएचईएल में विनिवेश फिलहाल नहीं होगा।ऐसे में अनिल अग्रवाल का दांव बाजार को ही नहीं, सरकारी नीति निर्धारण क्षेत्र को कैसिनों का एरेना बनाने के लिए काफी कहा जा सकता है।


सरकार की बीएचईएल में करीब 68 फीसदी हिस्सेदारी है और वह इसी के जरिए पैसा जुटाने की कवायद में जुटी है। लेकिन ओएनजीसी के शेयरों की नीलामी को देखते सरकार सकते में है। हालांकि बाद में एलआईसी ने सरकार के विनिवेश की लाज बचाई है। लेकिन इश्यू पर बवंडर को देखते हुए सरकार ने आनेवाले इश्यू को फिलहाल टालने का फैसला किया है।सरकार ने सोचा था कि वो विनिवेश के शॉर्टकट से मंजिल पा लेगी। अब तक विनिवेश पर सुस्त सरकार ने फटाफट हिस्सेदारी बेचने के तरीके यानि नीलामी का इस्तेमाल किया। लेकिन इसमें सरकार की जमकर फजीहत हुई है।आखिर एलआईसी और एसबीआई को क्यों सरकार की लाज बचानी पड़ी है।जवाब है कि सरकार ने जिन 6 मर्चेंट बैंकर को चुना में उनमें से 5 विदेशी हैं, जबकि 1 भारतीय बैंकर है।मार्गन स्टैनली, जे एम फाइनेंशियल, सिटीग्रुप, डीएसपी मेरिल लिंच, एचएसबीसी सिक्योरिटीज और नोमुरा जैसे दिग्गजों को सरकार ने बैंकर के तौर पर चुना।अब पहेली सुलझाने के लिए खास विशेषज्ञता की जरुरत तो नहीं होनी चाहिए।सार्वजनिक क्षेत्र की जिन कंपनियों के पास इफरात कैश है, वे अब अपने शेयरों को वापस खरीदने के साथ-साथ दूसरी सरकारी कंपनियों के विनिवेश में भी शिरकत कर सकती हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने काफी समय से अटकते चले आ रहे इस फैसले पर मुहर लगा दी। सरकार अपने इस कदम से सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश को सफल बनाना चाहती है ताकि उसे राजकोषीय घाटे को संभालने में मदद मिल सके। वित्त मंत्री ने पिछले बजट में चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था।शेयर बाजार और रिटेल निवेशकों की मौजूदा हालत को देखते हुए सरकार को उम्मीद नहीं है कि वो विनिवेश का लक्ष्य पब्लिक इश्यू (आईपीओ + एफपीओ) और ऑफर फॉर सेल या नीलामी से पूरा सकती है। इसलिए अब उसने सरकारी कंपनियों के दम पर इस लक्ष्य को पूरा करने का तीसरा रास्ता खोल दिया है। खबरों के मुताबिक इस समय कोल इंडिया, एनटीपीसी, एनएमडीसी, सेल व ओएनजीसी जैसी लगभग दो दर्जन कंपनियों के पास 1,80,000 करोड़ रुपए का कैश रिजर्व है। सरकार अपना ताजा फैसले का फायदा इस साल तो नहीं उठा पाएगी। लेकिन अगले वित्त वर्ष 2012-13 में यह उसके लिए अपने विनिवेश कार्यक्रम को पूरा करने का आसान तरीका बन सकता है।


जाहिर है कि ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी अगले साल की झांकी है। खामी बस इतनी रह गयी कि इस झांकी के पलस्तर उघड़ गये।असल में सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की सबसे बड़ी शेयरधारक है। इसलिए बायबैक का धन सीधे सरकार को मिलेगा। दूसरे, सरकारी कंपनियां अगर दूसरी सरकारी कंपनियों के विनिवेश में भाग लेती हैं तो इससे मिला धन सरकार राजकोषीय घाटे को पूरा करने में लगा सकती है।



सरकार ने पहले से सेबी से कहा है वह उन तकनीकी दिक्कतों की जांच करे जिससे ओएनजीसी के शेयरों की नीलामी से जुड़े अभिदान के बारे में संदेह पैदा हुआ। बोली प्रक्रिया बंद करने की कोशिश में शेयर बाजार कुल अभिदान की मात्रा अपलोड करने में असफल रहे, जिससे बोली की कुल मात्रा के बारे में संदेह का माहौल बना।

सरकार ने कल रात साफ किया कि नीलामी सफल रही और लक्ष्य के अनुरूप राशि जुटा ली गई।ओएनजीसी विनिवेश के साथ सरकार ने चालू वित्त वर्ष में सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचकर 13,878 करोड़ रुपये जुटा लिए। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।

मुखर्जी ने संवाददाताओं से कहा''यह ओएनजीसी की नीलामी पहला मामला है। हमें विश्लेषण के बाद इसका आकलन करना होगा।'' ओएनजीसी की नीलामी प्रक्रिया आखिरी मौके पर एलआईसी के बचाव भूमिका में उतरने के बाद बड़ी मुश्किल से लक्ष्य राशि जुटा जा सकी।

मुखर्जी ने कल कहा था कि हिस्सेदारी की बिक्री के लिए 98.3 फीसद अभिदान मिला जिससे सरकार को 12,733 करोड़ रुपये मिलेंगे। इस नीलामी प्रक्रिया के जरिये 42.77 करोड़ शेयरों की बिक्री की पेशकश की गई थी, जबकि मांग 42.04 करोड़ शेयरों की रही। बताया जाता है कि इसमें से एलआईसी ने 41 करोड़ शेयर खरीदे हैं।

अनिल अग्रवाल की लैटिन अमेरिका में अधिग्रहण पर 5 अरब डॉलर खर्च करने की योजना है। इसके अलावा सरकारी कंपनी हिंदुस्तान जिंक में भी 29.5 फीसदी हिस्सा खरीदने पर भी अनिल अग्रवाल की नजर है।


हाल में वेदांता ग्रुप ने ऑस्ट्रेलियाई कोल कंपनी न्यू होप कॉर्प के लिए बोली लगाई थी लेकिन ऑस्ट्रेलिया की कंपनी ने 6 अरब डॉलर की बोली न मिलने पर हिस्सा बेचने की योजना ही रद्द कर दी थी।



वेदांता समूह की स्टरलाइट इंडस्ट्रीज ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एच.जैड.एल.)और भारत एल्यूमीनियम कम्पनी (बाल्को) में सरकारी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 16,000 करोड़ रुपए की पेशकश की है।वेदांता समूह ने इन कंपनियों की बहुलांश हिस्सेदारी दशक भर पहले खरीदी थी। करीब 70 अरब डालर के धातु एवं खनन समूह के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने कहा कि वेदांता ने हिंदुस्तान जिंक में शेष हिस्सेदारी खरीदने के लिए गत माह की औसत कीमत के आधार पर बोली लगाई। वेदांता ने वर्ष 2001 में बाल्को की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी 551 करोड़ रुपए में खरीदी थी।


सरकार के पास अभी भी हिंदुस्तान जिंक की 29.54 प्रतिशत और बाल्को की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। सरकार हालांकि वेदांता की पेशकश से खुश नहीं है और इस मामले पर विचार कर रहे एक अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह ने उचित मूल्यांकन होने तक यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा है।


वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने कहा कि सरकार ने हमसे एचजेडएल तथा बाल्को में उसकी हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश की है। हमने मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से 16,000 करोड़ रुपये में यह हिस्सेदारी खरीदने में अपनी रुचि जाहिर की है।उनके मुताबिक सरकार ने इस बारे में कंपनी से जनवरी में ही पेशकश की थी।


वेदांता ने वर्ष 2001 में बाल्को में सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी 551 करोड़ रुपये में खरीद ली थी। इसमें सरकार की अभी भी 49 फीसदी हिस्सेदारी है।



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Palash Biswas
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